Wednesday, February 1, 2012

मजाज भी यहीं के थे



सीमा चिश्ती
रुदौली (उत्तर प्रदेश), फरवरी। मुसलिम बहुल इस इलाके में ‘रुश्दी’ कहने पर कोई भी त्योरी नहीं चढ़ाता, वे खामोशी से अपने विधायक सैयद अब्बास अली जैदी उर्फ ‘रुश्दी’ की तरफ इशारा कर देते हैं। वे यहां समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं। इस क्षेत्र में आठ फरवरी को चुनाव होने हैं। रुश्दी को उम्मीद है कि वे तीसरी बार भी मैदान फतह करेंगे। उनकी सीट फैजाबाद जिले में पड़ती है। समाजवादी पार्टी पिछले दोनों चुनाव यहां से जीती है। इस बार फिर सपा पर मुसलिम वोटर निहाल दिख रहे हैं, इसलिए जैदी को इसका पूरा फायदा मिलने की आस है।
रुदौली या रुदौली शरीफ की ख्याति यहां की सूफी दरगाह के कारण भी है। सर्राफा बाजार की चमक-दमक अलग है। और खास बात यहां की अदबी विरासत है। मजाज जैसे शायर यहीं के थे। इस चुनाव क्षेत्र की अहमियत इसलिए भी है कि यहां के आईने से मुसलिम मानस को पहचाना जा सकता है। इस हकीकत के बावजूद उत्तर प्रदेश का मतदाता, खासकर मुसलिम वोटर, अपनी चाहत जाहिर नहीं करना चाहता और सपा अपने लिए सुनहरा मौका देख सकती है।
रुदौली की कहानी का एक और चमकदार पहलू है। 2002 में गोधरा कांड के चार दिन पहले साबरमती एक्सपे्रस में कार सेवकों और रुदौली स्टेशन में कुछ मुसाफिरों को छोड़ने गए लोगों में टकराव हुआ था। इसके बावजूद यहां अमन-चैन रहा। आम लोगों की राय यही है कि बड़े नेता जब चाहते हैं, तभी कुछ होता है।
समर्थक ताज जहां बताती हैं, ‘रुश्दी पूर्व जमींदार हैं, उनकी बड़ी हवेली है। इस हवेली इरशाद मंजिल में गदर, एलओसी जैसी फिल्मों की शूटिंग हुई है। एक टीवी सीरियल की शूटिंग भी यहां हो चुकी है।’ 36 साल के सैयद अब्बास अली जैदी लखनऊ में पढे-लिखे हैं। अपने विवादास्पद ‘रुश्दी’ उपनाम को लेकर वे मुस्कराते हैं। उनका कहना है कि इस नाम का नाता शायद उस इलाके से रहा होगा, जहां से उनके पुरखे आए थे। इरान में रश नामक स्थान था...वह नाम यहां आकर धीरे-धीरे रुश्दी हो गया।बहरहाल चुनावी जंग में जो चीज रुश्दी के लिए दुश्वारी बन सकती है, वह यह है कि इस बार तीनों प्रमुख उम्मीदवार मुसलमान हैं। जाहिर है इससे वोट बंटेगा। सिर्फ भाजपा ने यहां से एक गैर-मुसलमान रामचंद्र यादव को खड़ा किया है। फिर भी रुश्दी के समर्थक पुरउम्मीद हैं। उनका कहना है कि भाजपा के आपसी कलह से हमें फायदा हो सकता है। ऊंची जाति वाले इसलिए खफा हैं कि भाजपा ने यहां से एक पिछड़े उम्मीदवार को खड़ा किया है। उमा भारती के आने के बाद ऐसा हुआ है।
यहां हर पखवाड़े लगने वाली हाट मुराद अशरफ बाजार में सपा मुखिया मुलायम सिंह के कई समर्थकमिल जाएंगे। दूसरी ओर महंगाई की मार और बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण बहुजन समाज पार्टी लोगों के निशाने पर है।
पूर्व प्रधान अतीक मोहम्मद कहते हैं, ‘हम बसपा से बहुत नाखुश है। लोगों के लिए यह बहुत बड़ी मुसीबत रही। इस सरकार ने भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं तोड़ दीं।’
किसानों ने खादों की बढ़ती कीमतों के लिए सरकार को कोसा। अपनी अतिरिक्त कमाई के लिए ड्राइवरी करने वाले अब्दुल अहमद कहते हैं, ‘ जब यूरिया का मौसम होता है, वे डीएपी खाद से गोदाम भरते हैं और डीएपी के मौसम में यूरिया से...दो सौ की बजाय हमें 500 अदा करने पड़तेहंै...।’
एक स्थानीय अखबारनवीस रहमान कहते हैं, ‘ लोगों का मानना है कि अब पहले जैसी बात नहीं रही। कभी लोग सोचते थे कि यहां केंद्रीय मार्ग या सात राज्यों के लिए बस जैसी सहूलियत है औरयह एक संपन्न कारोबारी केंद्र है...अब उन्हें लगता है कि चूँकि वे मायावती के वोटर नहीं हैं, इसलिए उनके साथ भेदभाव हुआ है।’
लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि कि रुदौली को बाराबंकी जिले से फैजाबाद जिले में भेज दिया गया। एक मुसलिम व्यापारी का कहना है कि जब मायावती आती हैं, हमें फैजाबाद भेज दिया जाता है। ऐसा दो बार हो चुका है। हमारे लिए बाराबंकी जाना ज्यादा आसान है। हम तहजीबी तौर पर भी बाराबंकी और लखनऊ के ज्यादा करीब हैं।बहरहाल यहां एक बात साफ है कि लोगों में मायावती को लेकर गहरा गुस्सा है। जाहिर है, इससे क्षेत्र में कांग्रेस और सपा प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बन कर उभरे हैं।मुलायम सिंह के पक्ष में यही बात जा रही है कि लोगों को भरोसा है कि उनके गाढ़े वक्त में मुलायम ही मददगार बन कर आए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस से

No comments:

Post a Comment