Saturday, December 31, 2011

जश्न में डूबा देश के अंतिम छोर का समुंद्र तट




अम्बरीश कुमार
कोवलम (तिरुअनंतपुरम ) । देश के इस अंतिम छोर पर साल के अंतिम दिन नए साल का जश्न बरसात थमते ही शुरू हो गया है । कोवलम के समुंद्री तट देश विदेश में काफी लोकप्रिय है और यहाँ के ज्यादातर होटल और रिसार्ट दो महीने पहले ही इस दिन के लिए बुक हो जाते है । यही वजह है कि शुक्रवार से ही सैलानियों का आना जो शुरू हुआ वह देर शाम तक नही थमा । दक्षिण के समुंद्री तटों पर तूफ़ान का जो असर पड़ा उससे कोवलम के समुंद्र तट भी प्रभावित हुए है । समुंद्र अशांत नजर आया तो सैलानी उससे भी ज्यादा अशांत । इनमे विदेशी सैलानियों खासकर युवतियों को गहरे समुंद्र में जाने से रोकने के लिए तट पर तैनात सुरक्षा कर्मचारियों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। आज तडके भारी बरसात और तेज हवाओं के चलते सैलानी जो होटल और रिसार्ट में बंध गए थे आसमान खुलते ही समुंद्र तटों पर जम गए । लाइट हाउस समुंद्र तट पर पिछले कुछ समय में बाजार का असर ऐसा पड़ा है कि रेस्तरां और होटल समुंद्र तटों का बुरी तरह अतिक्रमण कर चुके है । कई जगह तो समुंद्र होटल ,रिसार्ट और रेस्तरां की दूरी पच्चीस तीस मीटर ही बच गई है जो किसी भी बड़े तूफ़ान में कहर बन सकती है ।
इस समुंद्र तट पर विभिन्न रिसार्ट और होटल प्रबंधन ने नए साल के जश्न के लिए विशेष प्रबंध किए है । कही सफ़ेद तो काली रेत पर सैलानियों को धूप और बरसात से बचाने के लिए जो छतरी लगाई गई है उसके नीचे आराम करने के लिए जो लंबी बेंचनुमा कुर्सियां है वहा पर हर तरह के पेय रिसार्ट वाले उपलब्ध करा देते है जिसपर दोपहर में ज्यादातर विदेशी सैलानी जमे हुए थे । जबकि देश के अन्य हिस्सों से आए सैलानी रेत पर या लहरों से खेलने का मजा ले रहे थे । शाम होते ही सारे रेस्तरां रंगबिरंगी रोशनी में नहा गए तो तट पर विशेष रूप से लगाए गए बड़े बड़े बल्ब से सारा इलाका जगमगा गया । तट पर कई जगह नीली वर्दी में सुरक्षा कर्मचारी लाल झंडी और सीटी के जरिए सैलानियों पर नजर रख रहे थे ताकि कोई हद पर करने की कोशिश न करे और नए साल का जश्न उसके लिए भारी न पड़ जाए । इनमे ज्यादा जोखम उन लोगों से था जो मदिरा के नशे में लहरों के बीच थे ।
आज रात के लिए पांच सितारा रिसार्ट से लेकर स्पा तक में सैलानियों के जश्न का अलग अलग तरह का इंतजाम है । इनमे विवंता ताज से लेकर कई बीच रिसार्ट पर संगीत , डांस और धमाल का इंतजाम किया गया है । दो हजार रुपए से लेकर दस हजार रुपए तक के अलग अलग पैकेज के इश्तहार समूचे समुंद्र तट पर नजर आते है जिसमे तीन पैग से लेकर छह पैग और रात का खाना या स्नैक्स आदि शामिल है । जोड़ों के लिए विशेष रियायत दी गई है ।

Friday, December 23, 2011

कांग्रेस के आरक्षण के दांव को लेकर पशोपेश में है मुसलमान

अंबरीश कुमार
लखनऊ , दिसंबर । पिछडो के कोटे में अल्पसंख्यकों के लिए साढ़े चार फीसद आरक्षण को लेकर उत्तर प्रदेश के मुसलमान फिलहाल पशोपेश में है । कांग्रेस ने विधान सभा चुनाव से पहले जो यह दांव चला है उसके चंगुल में अगर पिछड़े या दलित नेता फंसे तो नुकसान उन्ही का होगा और फायदा कांग्रेस ले जाएगी । यही वजह है कि इस मुद्दे पर मायावती से लेकर मुलायम सिंह तक फूंक फूंक कर कदम रख रहे है । कांग्रेस के इस खेल में कई पेंच भी है पर मुसलमान इस वजह से इसका स्वागत कर रहे है कि कुछ मिलना तो शुरू होगा । दरअसल पिछड़ों के २७ फीसद कोटा में साढ़े चार फीसद का कोटा अल्पसंख्यक समुदाय के लिए है जिसमे ईसाई ,सिख ,बौद्ध और मुसलमान सभी शामिल है । इसलिए इससे सिर्फ मुसलमानों को फायदा होगा यह कहना ठीक नहीं है । उत्तर प्रदेश में इसका फायदा ,ईसाई ,सिख और बौद्ध भी लेंगे। प्रदेश में बौद्ध धर्म अपनाने वालों की संख्या में इजाफा भी हुआ है । मुस्लिम नेताओं की यह भी आशंका है कि आरक्षण को लेकर अगर कुर्मी और यादव बिरादरी के लोगों ने बौद्ध धर्म अपना लिया तो इसका ज्यादा फायदा वे ही ले जाएंगे । पिछड़ों में आरक्षण का ज्यादा फायदा इनदोनो मजबूत बिरादरी को ज्यादा मिलता है ।
पिछड़ों के कोटा में अल्पसंख्यकों के नए कोटा का फायदा मुसलमानों की करीब दर्जन भर जातियों को मिल सकता है जिनमे अंसारी ,कुरेशी ,इदरीशी आदि शामिल है । मुस्लिम रीजेर्वेशन मूवमेंट के संयोजक जफरयाब जिलानी ने जनसत्ता से कहा -पिछड़ों के आरक्षण में अल्पसंख्यकों को साढ़े चार फीसद के कोटा से यकीनन मुसलमानों की नाराजगी कांग्रेस के प्रति कम होगी पर इसका कितना राजनैतिक फायदा कांग्रेस उठा पायेगी यह नहीं खा जा सकता । यह आरक्षण सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि अल्पसंख्यको के लिए है जिसमे सिख ,ईसाई ,बौद्ध और मसलमान सभी आते है । हम लोगों ने मुसलमानों के लिए नौ फीसद आरक्षण की मांग की थी । रंगनाथ और सच्चर कमेटी ने जो सिफारिशे की थी उनके आधार पर हम आरक्षण की मांग कर रहे है । इसलिए केंद्र के इस कदम से यह मांग पुरी नहीं हुई है यह जरुर ध्यान रखना चाहिए । हमें यह भी आशंका है कि पिछड़ों की कुछ मजबूत जातियां जो अब तक ज्यादा लाभ लेती रही वे आगे भी लाभ उठा सकती है। इसके लिए बौद्ध बनने का भी विकल्प उनके पास है ।
आल इंडिया मुस्लिम फोरम के नेता नेहालुद्दीन अहमद तो इसे कांग्रेस की सियासी चाल मानते है ताकि मुसलमानों का वोट हासिल किया जा सके । पर इसका ज्यादा असर इसलिए भी नहीं पड़ना है क्योकि पिछड़े मुसलमानों की संख्या बहुत कम है । जबकि समाजवादी पार्टी पहले से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के तहत आबादी के हिसाब से मुसलमानों के आरक्षण की मांग करती रही है इसलिए आज भी इसे वे नाकाफी मानती है । पर पिछड़ों में इस तरह हिस्सा बांटने का वे विरोध भी नहीं कर रही है । एक मुस्लिम नेता ने कहा -इस मामले में अगर किसी भी दलित या पिछड़े नेता न कोटे के भीतर कोटे का विरोध किया तो आगामी चुनाव में उसे नुकसान उठाना पड़ेगा और कांग्रेस चाहती भी यही है । jansatta

Wednesday, December 21, 2011

कड़ाके की ठंड में टीम अन्ना कैसे भरेगी उत्तर प्रदेश की जेलों को

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,दिसंबर । समूचे उत्तर प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और पारा अलग अलग शहरों में दो से छह सात डिग्री तक जा चूका है जिसमे और गिरावट की आशंका है । ऐसे में अन्ना हजारे का जेल भरो आंदोलन छेड़ने का तुक किसी को समझ नहीं आ रहा । इस समय प्रदेश के राजनैतिक दल अलाव और रैन बसेरों की मांग कर रहे है ताकि ठंड से लोगों की मौत का सिलसिला थम सके । कई जिलों में ठंड की वजह से बच्चों के स्कूल बंद किए जा चुके है और कालेजों की छुट्टी होने जा रही है। अन्ना के आन्दोलन में मध्य वर्ग की बड़ी भूमिका रही है जिसमे नर्सरी से लेकर स्कूलों के बच्चे भी शामिल रहे है जो गालों पर मै भी अन्ना लिखवा कर धरना स्थल पर अपन परिवार वालों के साथ मौजूद रहते थे । पर अब हालात बदल गए है । जेल भरो आंदोलन एक ठेठ राजनैतिक कार्यक्रम है जो मोमबती जुलूस से अलग होता है । लखनऊ विश्विद्यालय की छात्रा रेनू जोशी ने कहा -खुद तो अन्ना मुंबई जैसे गर्म इलाके में चले गए है और उत्तर भारत में वे जेल भरो आंदोलन करना चाहते है यह तो राजनैतिक अपरिपक्वता का प्रतीक है। कई बार एलान के बाद भी अन्ना एक बार उत्तर प्रदेश नहीं आए पर इतना तो जानते होंगे की आजकल यहाँ ठंड से लोग मर रहे है ऐसे में इस आंदोलन को वे चैनल पर चलाए यहाँ के लोगों को तो बख्स दें ।
अन्ना आन्दोलन के महत्वपूर्ण नेता मुन्ना लाल शुक्ल ने जनसत्ता से कहा -हमने जेल भरो आंदोलन के लिए पचास स्कूलों को पत्र लिखा है पर अभी तक किसी ने जवाब नहीं दिया है।मौसम तो सही में खराब है ,स्कूलों में छुट्टी भी कर दी गई है ऐसे में दिक्कत तो आ रही है । भाजपा के नेता अमित पुरी ने कहा -राजनैतिक कार्यक्रमों के लिहाज से जेल भरो आंदोलन के लिए यह समय उचित नहीं है ,पर अन्ना का तो समूचा आंदोलन प्रतीकों का आंदोलन है ऐसे में इसे भी प्रतीकात्मक नजरिए से देखा जाना चाहिए । दरअसल अभी तक अन्ना के आंदोलन सामान्य ढंग के थे जिसमे लोग काला कपडा पहन कर नुक्कड़ नाटक करते या शाम को मोमबत्ती जला देते । इसकी इजाजत भी मध्य वर्ग के परिवार वाले दे देते थे । पर जेल जाने की बात सुनते ही लोग भड़क जाते है । एक इंजीनियर के पुत्र जो जोर शोर से इन आंदोलनों में शामिल हुए थे उनको घर वालों ने कहा -देखो अब जेल जाने ,पुलिस के चक्कर में पड़ने वाला काम नहीं होगा । बहुत मुश्किल से पढ़ा रहे है अन्दर हो गए तो सरकारी नौकरी भ नहीं मिलेगी फिर एनजीओ ही चलाओगे ।
राजनैतिक टीकाकार वीएन भट्ट ने कहा -पता नहीं अन्ना हजारे के सलाहकार कौन है जो इस तरह की अव्यवहारिक सलाह दे देते है वह भी ऎसी ठंड में जब मुख्यधारा के राजनैतिक दल इस तरह के कार्यक्रम करने से बचते है। ऐसे में जेल भरो आन्दोलन फ्लाप हुआ तो उनके आंदोलन की हवा भी नकल जाएगी । इस बीच वाराणसी से राम धीरज ने कहा -जेल जाने वालों की सूची हम बना रहे है ।ठंड का असर तो खैर पड़ेगा ही पर कार्यक्रम तो होना ही है । दूसरी तरफ
समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश कोहरे और भीषण ठंड की चपेट में है। हाड़ कंपकंपाती ठंड से बचाव के लिए सरकार को कुछ करने के बजाय केन्द्र को इसे प्राकृतिक आपदा घोषित कराने की चिन्ता है। मुख्यमंत्री चिट्ठीपत्री में माहिर है। उन्होने ठंड के लिए भी राहत पैकेज मांग लिया है। खुद उनकी सरकार ने अलाव और रैनबसेरों के लिए मात्र छह करोड़ रूपए जारी किए हैं। गरीब और दलित इस ठंड के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं लेकिन अपने को दलित की बेटी बतानेवाली मुख्यमंत्री को इनकी फिक्र नही सताती है। गरीब और दलित खुले आसमान के नीचे ठंड से मर रहे है। सरकार ने न अलाव की व्यवस्था की है, नहीं कंबल बांटे हैं और नहीं रैन बसेरे बनाए है।

Tuesday, December 20, 2011

अब मायावती को मुसलमान याद आए


अंबरीश कुमार
लखनऊ ,१९ दिसंबर । मुसलमानों का सवाल उठाकर मायावती अब नए संकट में फस गई है । विपक्षी दलों ने आज मायावती से सवाल किया कि बाबरी ध्वंस करने वाली ताकतों के साथ सरकार बनाते समय बनाते समय उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की याद आई थी या नही । भाजपा के साथ तीन बार सरकार बनाने के बाद मायावती गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अक्तूबर २००२ में चुनाव प्रचार के लिए गई थी जिसे लेकर वे विवादों में घिर गई थी । इसे लेकर वाम दलों ने भी मायावती को आड़े हाथों लिया तो गैर भाजपा अन्य दलों ने भी सवाल उठाया था । अब जब मुसलमानों को लेकर उत्तर प्रदेश में चुनावी लड़ाई तेज हो रही है तो ऐसे में मायावती का मुसलमानों का हमदर्द बनाने का दावा धर्म निरपेक्ष दलों के गले नहीं उतर रहा है । यही वजह है कि उनको लेकर फिर सवाल खड़ा हो गया है । भाकपा नेता अशोक मिश्र ने कहा -आज हर पार्टी मुसलमानों की हमदर्द बन रही है जो पूरी तरह सियासी खील है वास्तवकिता तो यह है कि सपा ,बसपा से लेकर कांग्रेस तक ने मुसलमानों को एक वोट बैंक के रूप में ही देखा है । उनके भले के लिए ,उनकी सामाजिक आर्थिक तरक्की के लिए इन दलों ने कोई कदम नहीं उठाया ।
कांग्रेस प्रवक्ता वीरेंदर मदान ने कहा - मायावती को जब जब मौका मिला उन्होंने कट्टर मजहबी ताकतों से हाथ मिलाया और सरकार बनाई । अब वे मुसलमानों की हमदर्द बन रही है । वे नरेंद्र मोदी का प्रचार भी करेंगी और मुसलमानों का हमदर्द भी बनेंगी यह कैसे संभव है । समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद हसन ने कहा - चुनाव करीब आते ही मुख्य मंत्री जी को मुसलमानों की याद आई और बाबरी मस्जिद की शहादत में कांगेस और भजपा की साजिश भी याद आयी लेकिन बाबरी मस्जिद को दिन दहाडे शहीद करने वाली भाजपा के साथ मिलकर हुकूमत बनाते समय उनको मुसलमानों की याद क्यों नहीं आई ।
उन्होंने आगे कहा -बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया को उस दिन मुसलमानों की याद क्यों नहीं आयी जब मुसलमानों पर नरसंहार कराने वाले गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव में उनके लिये वह वोट मांगने स्वयं गुजरात गई थी ।इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने पार्लियामेंट में भाजपा द्वारा पोटा बिल को पास कराने में भाजपा की हिमायत क्यों की थी और उस समय भाजपा का साथ क्यों दिया था, जब कि पोटा के कारण आज भी हजारों मुसलमान जेलों में बद हैं । मायावती ने बाबरी मस्जिद के शहादत के अपराधी श्री लाल कृष्ण अडवानी का स्वागत अम्बेडकर पार्क में करके मुसलमानों के घाव पर नमक छिडकने का काम किया है । मायावती को मुसलमानों को ख्याल उस समय क्यों नहीं आया जब सिमी की गतिविधियां उत्तर प्रदेश में न होने के बावजूद उन पद केन्द्र की भाजपा सरकार और कांग्रेस सरकारों को समर्थन देकर उन पर प्रतिबंध जारी रखा । जब कि माननीय मुलायम सिंह जी ने सिमी पर प्रतिबंध हटा दिया था ।jansatta

Sunday, December 18, 2011

अब हमलावर नही ,बचाव की मुद्रा में मायावती

अंबरीश कुमार
लखनऊ , दिसंबर । बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने पिछले विधान सभा चुनाव में नारा दिया था ,चढ गुंडों की छाती पर -मुहर लगाओ हाथी पर लेकिन आगामी विधान सभा चुनाव के लिए आज मायावती ने नया नारा दिया ,चढ़ विपक्ष की छाती पर -मुहर लगेगी हाथी पर । मायावती की अन्य रैली की तरह इस रैली में भी भारी भीड़ थी और मुस्लिम ,क्षत्रिय और वैश्य समाज के साथ अन्य बिरादरी के लोग भी जुटे । पर इस एकजुटता का प्रदर्शन करने के लिए यह सम्मलेन हुआ उसका जिक्र कम हुआ और कांग्रेस पर हमला ज्यादा हुआ । यह मायावती के राजनैतिक एजंडा और उनकी आशंका को भी दर्शाता है । वे मुलायम सिंह से ज्यादा राहुल गांधी से असुरक्षित महसूस कर रही है या राजनैतिक रणनीति के चलते ऐसा कर रही है यह साफ़ नही है। यह उत्तर प्रदेश का सियासी मिजाज जानने वाले अच्छी तरह जानते है कि चुनावी लड़ाई में फिलहाल मायावती मुलायम सिंह से पिछड़ रही है और अब सत्ता में आने के लिए सिर्फ गठबंधन का एक कमजोर रास्ता ही विकल्प नजर आता है । पर उसके लिए भी संख्या महत्वपूर्ण है । इसी संख्या के लिए वे कांग्रेस को किसी भी तरह मुकाबले में लाने की पुरजोर कोशिश कर रही है ताकि मुस्लिम वोटों का किसी तरह बंटवारा हो जाए ताकि आगे बढ़ती समाजवादी पार्टी का जनाधार प्रभावित हो ।
पिछले विधान सभा चुनाव से लेकर अब तक हर राजनैतिक दल का सामाजिक राजनैतिक समीकरण बदल चुका है । आगामी विधान सभा चुनाव के मद्देनजर सबसे ज्यादा राजनैतिक नुकसान बसपा का नजर आ रहा है जो इस बार भ्रष्टाचर से लेकर उसी कानून व्यवस्था को लेकर घिरी हुई नजर आ रही जिसके नारे पर वे पिछली बार छप्पड़ फाड़ बहुमत से जीत कर आई थी । पर तब से अबतक बहुत कुछ बदल चुका है । मायावती सरकार के मंत्रियों का बहुमत भ्रष्टाचार के घेरे में है तो कई नेता विधायक और सांसद हत्या और बलात्कार के मामले में फंस चुके है । ऐसे में वह मध्य वर्ग जो उन्हें जिता कर लाया था वह बिदक चुका है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के साथ राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस हमला तेज करती जा रही है। राहुल गांधी का यह वाक्य -लखनऊ में एक हाथी बैठा है जो पैसा खाता है ,न सिर्फ मशहूर राजनैतिक जुमला बन रहा है बल्कि अब मायावती को भी आहत कर रहा है । यही वजह है आज मायावती ने कहा -कांग्रेस का दिमाग ख़राब हो गया है जो उन्हें हाथी भी पैसा खाता दिखता है । दरअसल यह जुमला भी भ्रष्टाचार का मुहावरा बन रहा है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश की नई पीढी ने न तो बाबरी ध्वंस का समय देखा है ,न राम जन्म भूमि आन्दोलन और न ही वे बोफोर्स से बने राजनैतिक माहौल के बारे में जानते है । ऐसे में कांग्रेस के इतिहास को लेकर बहुत ज्यादा असर पड़ता नहीं दिख रहा है । दूसरी तरफ सभी दलों को अपने परंपरागत जनाधार और संघर्ष की क्षमता के आधार पर ही वोट मिलना है । ऐसे में घूम फिरकर लड़ाई फिर सपा बसपा के बीच नजर आती है जिसमे कांग्रेस लोकदल गठबंधन के बाद बढ़ रही है पर उसक भी एक सीमा है । इसलिए मायावती हमला भले कांग्रेस पर करे पर ज्यादा आशंकित वे समाजवादी पार्टी से है जिसका समूचे प्र्रदेश में बूथ स्तर का मजबूत ढांचा है । पर उत्तर प्रदेश में चार साल से लड़ रही समाजवादी पार्टी पर मायावती ज्यादा हमला न कर कांग्रेस को निशाने पर रखती है। रहुल गाँधी के हाल के दौरे और पहले के दौरे के बाद मायावती ने जैसी प्रतिक्रया की है उससे तो यही लगता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बसपा ही लड़ रही है । अपवाद के रूप में भाजपा के आरोप भी मायावती की जबान पर आते है पर उसमे चेतावनी कम नसीहत ज्यादा होती है । आज भी मायावती ने भाजपा को अपना बचा खुचा जनाधार बरक़रार रखने की सलाह दी बजे इसके कि वह उनके परिजनों पर आरोप लगाए । आखिर भाजपा का जनाधार चुनाव बाद किसके काम आता है यह जाहिर है ।

Thursday, December 15, 2011

अदम गोंडवी की हालत गंभीर

कौशल किशोर
जनकवि रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोण्डवी की हालत अब भी चिंताजनक बनी हुई है। अपनी गजलों व शायरी से आम जन में नई स्फूर्ति व चेतना भर देने वाले अदम लखनऊ के संजय गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान ;पी जी आईद्ध के गेस्ट्रोलॉजी विभाग, पांचवा तल, जी ब्लॉक, बेड न0 3 में भर्ती हैं और अपने जीवन के लिए मौत से पंजे लड़ा रहे हैं। उनकी चेतना जब भी वापस आती है, वे अपने भतीजे दिलीप कुमार सिंह को सख्त हिदायत देते हैं कि मेरे इलाज के लिए सहयोग के लिए अपनी तरफ से न कहो। जैसे कहना चाहते हैं कि सारी जिन्दगी संघर्ष किया है, अपनी बीमारी से भी लड़ेगे। उसे भी परास्त करेंगे। वे आंख खेलते हैं और चारो तरफ अपने साथियों को पाते हैं। उनके चेहरे पर नई चमक सी आ जाती है। एक साथी उन्हें सुनाते है ‘काजू भुनी प्लेट में ह्निस्की ग्लास में/उतरा है रामराज विधायक निवास में’ और अदम अपना सारा दर्द पी जाते हैं और उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल जाती है।
अदम गोण्डवी का लीवर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। किडनी भी ठीक से काम नहीं कर रहा है। पेट फूला हुआ है। मुँह से पानी का घूँट भी ले पाना उनके लिए संभव नहीं है। खून में होमोग्लोबीन का स्तर भी नीचे आ गया है। सोमवार की रात तीन बोतल खून चढ़ाया गया। संभव है आगे और खून चढ़ाना पड़े। मंगलवार को अदम गोण्डवी का इन्डोस्कोपी हुआ तथा कई जाँचें की गई। इनकी रिपोर्ट आने के बाद आगे के इलाज की दिशा तय होगी। पी जी आई के डाक्टरों का कहना है कि अदम गोण्डवी के इलाज में करीब तीन लाख रुपये के आसपास खर्च आयेगा।
‘जनसंदेश टाइम्स’ में उनकी बीमारी की खबर तथा सहयोग की अपील का अच्छा असर देखने में आया है। आज सुबह से ही लेखकों, संस्कृतिकर्मियों का पी जी आई आना शुरू हो गया। कई संगठन और व्यक्ति भी सहयोग के लिए सामने आये। जो किसी कारणवश नहीं पहुँच पाये, वे भी लगातार हालचाल पूछते रहे। पहुँचने वालों में वीरेन्द्र यादव, प्रो0 रमेश दीक्षित, राकेश, भगवान स्वरूप कटियार, आर0 के0 सिन्हा, श्याम अंकुरम, आदियोग, संजीव सिन्हा, पी सी तिवारी, रामकिशोर आदि प्रमुख थे।
अदम गोण्डवी के इलाज के लिए सहयोग जुटाने के मकसद से कई संगठन सक्रिय हो गये हैं। जसम, प्रलेस, जलेस, कलम, आवाज, ज्ञान विज्ञान समिति आदि संगठनों की ओर से राज्यपाल व मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया तथा उनसे माँग की गई कि अदम गोण्डवी के इलाज का सारा खर्च प्रदेश सरकार उठाये। ऐसा ही ज्ञापन उŸार प्रदेश हिन्दी संस्थान और भाषा संस्थान को भी भेजा गया है। लेखक संगठनों का कहना है कि अदम गोण्डवी ने सारी जिन्दगी जनता की कविताएँ लिखीं, जन संघर्षों को वाणी दी। ये हमारे समाज और प्रदेश की धरोहर है। इनका जीवन बचाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। वह आगे आये। रचना व साहित्य के लिए बनी सरकारी संस्थाओं का भी यही दायित्व है।
ज्ञात हो कि कल सोमवार 12 दिसम्बर को अदम गोण्डवी को गोण्डा से लखनऊ के पी जी आई में लाया गया था। उनकी हालत काफी गंभीर थी। वे नीम बेहोशी की हालत में थे। कई घंटे वे बिना भर्ती व इलाज के पड़ रहे। इससे उनकी हालत और भी खराब होती गई। बाद में पी जी आई के इमरजेन्सी में भर्ती हुए। सबसे बड़ी दिक्कत पैसे की थी। परिवार के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। सबसे पहले मुुलायम सिंह यादव का सहयोग सामने आया। उन्होंने पचास हजार का सहयोग दिया। ए डी एम, मनकापुर ने दस हजार का सहयोग दिया। गोण्डा में जिस प्राइवेट नर्सिंग होम में उनका इलाज चला, वहाँ के डाक्टर राजेश कुमार पाण्डेय ने दस हजार का सहयोग दिया।
कल से चले इलाज से इतना फर्क आया है कि कल जहाँ वे नीम बेहोशी में थे, आज वे लोगों को पहचान रहे हैं तथा थोड़ी.बहुत बातचीत भी कर रहे हैं। लेकिन अदम गोण्डवी का यह इलाज लम्बा चलेगा। इसमें अच्छे खासे धन की जरूरत होगी। इसके लिए सभी को जुटना होगा। उस समाज को तो जरूर ही आगे आना होगा जिसके लिए अदम गोण्डवी ने सारी जिन्दगी संघर्ष किया। कहते हैं बूँद बूद से घड़ा भरता है। लोगों का छोटा सहयोग भी इस मौके पर बड़ा मायने रखता है। वे सहयोग के लिए आगे आ सकते हैं। इस सहयोग से हम अपने कवि का जीवन बचा सकते हैं। सहयोग के लिए सम्पर्क है: दिलीप कुमार सिंह 09958253708 तथा सीधे अदम गोण्डवी के एकाउण्ट में भी धन जमा किया जा सकता है। एकाउण्ट नम्बर हैः अदम गोण्डवी 31095622283 (स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, परसपुर

Monday, December 12, 2011

मीडिया को सबक सिखाते सिखाते छतीसगढ़ में भाजपा को निपटा देंगे रमन सिंह


अंबरीश कुमार
छत्तीसगढ़ से मित्र लोगो ने बताया कि फेसबुक पर अभिव्यक्ति की आजादी की हिमायत करने वाली भाजपा की इस राज्य की सरकार मीडिया की ठीक से खबर ली रही है .इस राज्य में दो पत्रकारों की हत्या हो चुकी है और विज्ञापनों की राजनीति से प्रिंट मीडिया को लगातार दबाया जा रहा है .एक चैनल और एक अखबार पर रमन सिंह के बिगडैल अफसरों की मेहरबानी बहती जा रही है .ऐसे ही बिगडैल अफसरों ने अजित जोगी को सत्ता से बेदखल कर राज्य की राजनीति के कूड़ेदान पर फेक दिया था .वे जोगी जो मीडिया के सबसे करीबी रहे .मुझे याद है मै जब इंडियन एक्सप्रेस की नै जिम्मेदारी निभाने के लिए छत्तीसगढ़ पहली बार पहुंचा तो सर्किट हाउस में अजित जोगी के एक सहयोगी ने पूछा था -कोई भी दिक्कत हो तो बता दीजिएगा .खैर बाद में जोगी मुख्यमंत्री बने और उनसे करीबी संबंध भी बना .कई बार उनका सुबह सुबह फोन आ जाता था इंडियन एक्सप्रेस देखने के बाद और बधाई देते थे .दिल्ली से आए चार पांच मित्रों को वे दावत पर भी बुलाते थे .पर जबख्बरों में सरकार की आलोचना शुरू हुई तो उनकी नजरे भी बदल गई .जनसत्ता उसी दौर में मैंने लांच किया तो 'सबकी खबर दे ,सबकी खबर ले नारे , के मुताबिक कवरेज भी शुरू हुई और सरकार आए दिन विधान सभा में घिरने लगी .इसपर कुछ अफसरों ने जोगी के कान भरे और फिर खुल कर टकराव हुआ .जनसत्ता के दफ्तर पर हमला हुआ और फिर लम्बा आन्दोलन चला .उस दौर में अपन के साथ अनिल पुसदकर ,राजकुमार सोनी ,संजीत त्रिपाठी ,अनुभूति ,भारती यादव जैसे कई पत्रकार इस लड़ाई में साथ थे .बस्तर में वीरेंदर मिश्र ने मोर्चा संभल रखा था .पर हमारे फ्रेंचायाजी पार्टनर विजय बुधिया अखबार के इन तेवरों से घबडा गए और मुझे वापस भेजने का दबाव दल था .पर तबतक सारा कम हो चुका था .मुझे याद है एक दिन प्रदेश के कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल (वही इमरजेंसी फेम वाले ) ने मुझसे कहा -अंबरीश जी यह अभियान कब तक चलता रहेगा ,तो मेरा जवाब था जब तक मै यहाँ रहूँगा .
जो पहल अभिव्यक्ति की आजादी के संघर्ष के लिए छत्तीसगढ़ के पत्रकारों ने की उसी ने भाजपा को सत्ता तक पहुँचाया था यह बात छत्तीसगढ़ में आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी इस सरकार के मंत्री और बिगडैल अफसर लगता है भूल गए है .
अब लोगो को फिर जोगी याद आ रहे है क्योकि वे ही इस सरकार से सीधा लोहा ले सकते है .ऐसा अपने छत्तीसगढ़ के कई सहयोगियों का मानना है .लगता है छत्तीसगढ़ में फिर इतिहास दोहराया जा रहा है .मीडिया को निपटाते निपटाते रमन सिंह भी भाजपा को निपटा देंगे यह बात नितिन गडकरी को तो समझ में आ जानी चाहिए .मीडिया ने दो मुख्यमंत्रियों रमन सिंह और नितीश कुमार की जो छवि बनाई है वह विज्ञापन के पैसे से बनी है और विज्ञापन के पैसे से जब इंडिया साइनिंग नहीं चला तो रमन सिंह की भोली भाली छवि जिसपर खनन क्षेत्र का दाग लग रहा है वहह कब त़क चलेगी . जनसंपर्क विभाग के थके हुए अफसरों से कोई राजनैतिक लड़ाई न जोगी लड़ पाए थे और न रमन लड़ पाएंगे .हैरानी यह जरुर है की मीडिया के मठाधीश इस पर खामोश क्यों है .

Sunday, December 11, 2011

आदिवासी महिलाओं पर फर्जी मुकदमे


अंबरीश कुमार
लखनऊ , दिसंबर । कैमूर क्षेत्र की महिलाएं पंद्रह हजार से ज्यादा फर्जी मुक़दमे झेल रही है । इनमे ज्यादातर मुक़दमे मिर्जापुर ,चंदौली और सोनभद्र जिले की दलित व आदिवासी महिलाओं पर है । अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर सैकड़ों महिलाओं ने प्रदर्शन कर प्रदेश सरकार और प्रशासन को चेतावनी दी है कि अगर एक महीने के भीतर इन महिलाओं और उनके परिजनों के खिलाफ मुक़दमे वापस नही हुए तो जनवरी के अतिम हफ्ते में महिलाओं का जेल भरो आंदोलन शुरू होगा । गौरतलब है कि महिलाओं के उत्पीडन को लेकर कैमूर क्षेत्र में राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच आंदोलनरत है । इस अंचल में आदिवासी और दलित महिलाओं को जंगलात विभाग के लोग छोटे छोटे मामलों में फंसा कर उनका उत्पीडन करते है । महिलाओं के आंदोलन के बाद पिछले साल मायावती सरकार ने इस तरह के सात हजार मुकदमों को वापस लेने का एलान किया था पर यह एलान भी राजनैतिक घोषणा की तरह कागजों में ही फंस कर रह गया । रस्म अदायगी के लिए लोक अदालत भी बैठी पर सौ डेढ़ सौ महिलाओं से जुर्म कबूल कराने बाद जुर्माना ठोका और छोड़ दिया। इन महिलाओं का अपराध था जंगल में बकरी चराने से लेकर सूखी लकडियां बटोरना । जिन महिलाओं पर जंगलात विभाग ने गंभीर धाराएँ लगा दी थी वे इस अदालत के दायरे से बाहर थी ।
अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर सोनभद्र में उत्तर प्रदेश, झाड़खंड़ व बिहार के कैमूर क्षेत्र के हज़ारों आदिवासी दलित महिलाओं ने प्रदर्शन कर अपना सवाल उठाया साथ ही दंतेवाड़ा की आदिवासी अध्यापिका सोनी सोरी की गिरफतारी का कड़ा विरोध कर आंदोलन करने की चेतावनी दी।
महिलांए अपने गले में 5/26 रद्द करों, 5/26 मे हमें गिरफ्तार करों की तख्तियां लगा रखी थी।महिलाओं का कहना था कि वन विभाग ने उत्पीड़न की सारी सीमाएं पार कर दी हैं। अब करो या मरों की स्थिति पैदा हो गई हैं। जमानत दार नहीं मिल रहे। बच्चे भूखे मर रहे हैं। ऐसे में अब हमारे आगे सिर्फ एक ही रास्ता बचा है, हम या तो सामूहिक रूप से आत्म हत्या कर ले या हथियार उठाकर माओवादी बन जाएँ । इस मौके पर शांता, रोमा, धनपति, राजकुमारी, धनमनिया, फूलबसिया, सोकालो, हुलसी, शंखा, गीता, शोभा और , मुन्नी ने महिलाओं के उत्पीडन का सवाल उठाया । इन महिलाओं ने कहा कि यह सभ्य समाज के लिए एक कलंक की बात है कि आज भी पुलिस अभिरक्षा में महिलाओं की किसी भी प्रकार से सुरक्षा मौजूद नहीं है । मानवाधिकार के सभी नियमों का खुले आम उल्लघंन कर छतीसगढ़ पुलिस ने संविधान में दिए गए तमाम प्रावधानों का मज़ाक उड़ाया है। जिसपर देश की शीर्ष न्याययिक व्यवस्था खामोश खड़े तमाशा देख रही है। गौरतलब है कि सोनी सूरी ने अपनी गिरफतारी के वक्त ही हाई कोर्ट दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश का पत्र द्वारा यह आशंका जताई थी कि अगर उन्हें छतीसगढ़ ले जाया गया तो उनके साथ कुछ भी हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने केस की सुनवाई की मांग किसी अन्य राज्य में की थी। लेकिन उनकी लिखे इस पत्र को दिल्ली हाई कोर्ट ने नज़रअंदाज किया और छतीसगढ़ पुलिस ने उन्हें रिमांड पर लेकर पूछताछ का बहाना कर उनके साथ वो अमानवीय कृत्य किए जिसे यह समाज शर्मसार हो गया है। लेकिन अभी तक देश की इस व्यवस्था में आदिवासी महिला की सुरक्षा की कहीं कोई पहल दिखती नज़र नहीं आ रही। यह आदिवासी समाज का तो अपमान है ही साथ ही महिलाओं का तो घोर अपमान है जिसे अपने आप को लोकतंत्र कहने वाला यह भारत महान जैसा देश किस तरह मूक दर्शक बने देख रहा है। जिस देश की राष्ट्रपति एक महिला हो, देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष महिला हो और चार प्रमुख राज्यों की मुख्यमंत्री महिला हो वहां भला इस अमानवीय कृत्य के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही, ऐसे अफसरों को फांसी की सज़ा दी जानी चाहिए।
उरांव जनजाति की हुलसी देवी ने कहा कि जब शरद पवार पर पड़े एक थप्पड़ से सारी पार्टिया एक सुर में खड़ी हो गई तो सोनी सूरी जैसे मामलों में क्यों एक साथ खड़े हो कर इसका विरोध नहीं करती ये पार्टिया । इसलिए महिलाओं के प्रति हो रहे इस अमानवीय कृत्य से अब वो दिन दूर नहीं जब महिलाए सड़क पर इन नेताओं से हिसाब किताब चुकाएगी और थप्पड़ तो क्या लात घूसों की भी नौबत आ सकती है। साथ ही अंर्तराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर ही कैमूर क्षेत्र की महिलाओं ने वनविभाग के पंद्रह हजार से भी उपर फर्जी मुकदमों को रदद करने की चेतावनी दी और रदद न करने की सूरत में जेल भरो आंदोलन की धमकी दी। बाद में सोनभद्र के कलेक्टर विजय विश्वास पन्त के साथ बातचीत में तय हुआ कि कलेक्टर शासन स्तर पर इन फर्जी मुकदमों को वापिस करने के लिए पत्र लिखेगें।

Thursday, December 8, 2011

खाए पिए भाजपा बिल चुकाए बसपा !

अंबरीश कुमार
लखनऊ , दिसंबर ।एक दूसरे हमला करने वाली भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के राजनैतिक संबंधों का का नया अध्याय सामने आने से राजनैतिक हलकों में हैरानी जताई जा रही है । भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आए पार्टी की दिग्गज नेताओं का लाखों का बिल मायावती सरकार के हवाले है । इन लोगों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ,रमन सिंह ,शिवराज सिंह चौहान , यदुरप्पा ,पोखरियाल समेत सात राज्यों के मुख्यमंत्री होटल ताज में रुके थे । पार्टी ने साफ़ किया था कि इनका बिल पार्टी देगी । कार्यकारिणी की बैठक से पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने मायावती सरकार को प्रोटोकोल और राजनैतिक शिष्टाचार की नसीहत देते हुए तब एलान किया था कि सभी नेताओं के ठहरने और खाने पीने का बिल पार्टी देगी । अब जब होटल प्रबंधन ने इन बिलों के भुगतान का प्रयास शुरू किया तो सारा मामला सामने आया । इन बिलों में एक नए राज्य के मुख्यमंत्री के कमरे का जो बिल था उसमे मदिरा का भी लंबा चौड़ा बिल था । कुल दो दिन में इन मुख्यमंत्री के कमरे से करीब अस्सी हजार की मदिरा की भी खपत हो गई । । अब शाही कह रहे है कि यह जिम्मेदारी टंडन की थी वे ही बता सकते है । उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव सामने है और चुनाव बाद के समीकरण में बसपा की निगाह भाजपा की तरफ उठना स्वभाविक है क्योकि दोनों दल उत्तर प्रदेश में साझा सरकार चला चुके है । सरकार और भाजपा को भेजे गए बिल की वह प्रतिलिपि जनसत्ता के पास है जिसमे चार जून से पांच जून तक विवांता ताज में ये सभी मुख्यमंत्री रुके थे ।
इसी साल जून में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आए दिग्गज नेता यहां के दो तीन पांच सितारा होटल में रुके थे ।जिसमे लाल कृष्ण आडवानी जहां पिकेडली में थे वही कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री ताज में ठहरे ।बड़े नेताओं के रुकने का इंतजाम स्थानीय सांसद लालजी टंडन और उनके पुत्र गोपाल टंडन के जिम्मे था ।ये वही टंडन है जो मायावती के मुंह बोले भाई माने जाते है और मायावती उन्हें राखी भी बांध चुकी है । जाहिर है पुराने संबंधों ने के चलते नए समीकरण बने ।खास बात यह है कि अनुसूचित जाति जन जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया को राजकीय अतिथिगृह में कोई कक्ष ना देने वाली सरकार भाजपा नेताओं का लाखों का बिल का भुगतान अगर कर देती है तो यह एक राजनैतिक सन्देश भी माना जाएगा । समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -यह भाजपा के दोहरे चरित्र का रोचक उदाहरण है । पार्टी अपने राजनैतिक कार्यक्रम का पैसा भी बसपा सरकार से मांग रही है । उधर कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा -भाजपा और बसपा का संबध अब जग जाहिर है । खाए पीए भाजपा नेता और बिल भरे बसपा सरकार ।
इस पूरे मामले में टंडन पार्टी नेताओं के निशाने पर है जो सत्ता से अपनी नजदीकियों के लिए पहले भी चर्चा में रहे है । मुलायम सिंह के राज में कानपुर में हुए लाठीचार्ज के विरोध में जब वे प्रदर्शन करते हुए मुख्यमंत्री निवास पहुंचे तो रसगुल्ला खाकर बाहर निकले जबकि कानपुर का घायल विधायक सलील बिश्नोई स्तेचार पर था ।
चुनाव के इस माहौल में भाजपा इस समय बसपा को पानी पी पीकर गाली दे रही है ऐसे में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आए नेताओं का बिल सरकार से लेना लोगों के गले नहीं उतर रहा है । खासकर जब पहले ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने यह साफ कर दिया हो कि सभी बिल पार्टी देगी । जो लोग ताज में रुके थे उनमे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ,छत्तीसगढ़ के रमन सिंह ,मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह चौहान ,बिहार से सुशील मोदी आदि शामिल थे । उत्तर प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने नाम न देने की शर्त पर जनसत्ता से कहा - ताज होटल में रुके भाजपा के राज वाले मुख्यमंत्रियों के बिल के भुगतान के लिए भाजपा के एक नेता ने सरकार से अनुरोध किया था । दूसरी तरफ इस विवाद से परेशान भाजपा अब इन बिलों का भुगतान करने का मन बना रही है । jansatta

Tuesday, December 6, 2011

अभिव्यकि की आजादी के नए खलीफा और सीमा आजाद

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,दिसंबर । अभिव्यक्ति की आजादी का नारा देने वाले नए खलीफाओं को सीमा आजाद याद है । वे अपने लिखे और पढ़े की वजह से जेल में है और कोई न्यू या ओल्ड मीडिया उनकी आजादी पर बहस नहीं करता । कोई उस महिला के पुलिसिया उत्पीडन और आजादी की चर्चा नही करता ।फेसबुक पर अराजक किस्म की टिप्पणियों और किसी की धार्मिक व निजी भावनाओं को आहत करने वाले फोटो का सवाल जब कपिल सिब्बल ने उठाया तो फ़ौरन एक शब्द उछाल दिया गया 'सेंसरशिप ' ।सिब्बल सफाई देते रहे और मीडिया इस शब्द को लेकर अन्ना आन्दोलन की तरह गजब की हेडिंग दिखने लागा ,मसलन 'देश की आवाज दबाने की कोशिश ,फेसबुक आंदोलन से डर गई सरकार आदि ।किसी महिला के नग्न फोटो ,शरीर के स्थान विशेष को लेकर की गई टिप्पणी और किसी के धार्मिक स्थल पर खास किस्म के जानवर की फोटो अगर अभिव्यक्ति की आजादी है तो इस नई आजदी की लड़ाई के नए योद्धाओं को यह मुबारक हो ।
सार्वजनिक शौचालय में भी कई लोग कला और विचारों की अभिव्यक्ति करते रहे है और करते रहेंगे । जिन्हें यह लड़ाई लड़नी हो वे लड़े और बहस करे ।पर यह जरुर याद दिलाना चाहेंगे कि राजनैतिक साहित्य की कुछ पुस्तकों को रखने के लिए पत्रकार सीमा आजाद जेल में है और अभिव्यक्ति की आजादी का कोई बड़ा पुरोधा उनकी लड़ाई लड़ने कभी सामने नहीं आया । चाहे वे टीवी चैनल पर आज बहस करने वाले हो या विश्व में सबसे ज्यादा अख़बार बेचने का दावा करने वाले हों । सीमा आजाद एक खास विचारधारा पर अपने लिखे और पढ़े की वजह से जेल में है वे न तो गाली गलौज कर रही थी न किसी की फोटो बिगाड़कर खिल्ली उड़ने का काम कर रही थी,जो आज फेसबुक पर धड़ल्ले से चल रहा है और भाई लोग इसे न्यू मीडिया की ताकत मान रहे है।मैंने एक सज्जन को देखा जो इलाहाबाद में छात्रों पर लाठी चार्ज के लिए भी कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार बता रहे थे क्योकि मायावती का नाम लेते ही पास के थाने का दरोगा उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ बता सकता था । रीता बहुगुणा जोशी ने ऐसी ही भाषा का इस्तेमाल मायावती के लिए किया और जेल भेज दी गई । इसलिए हर किस्म की अभिव्यक्ति की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती यह जरुर समझना होगा ।

Friday, December 2, 2011

सुपुत्र बनाम सुपात्र पर संघ का फरमान !

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,संबर । भारतीय जनता पार्टी में सुपुत्र बनाम सुपात्र की बहस पर संघ का फरमान आ गया है । यह बहस भाजपा के करीब तीन दर्जन नेताओं के पुत्र पुत्रियों की विधान सभा चुनाव में टिकट की दावेदारी के बाद शुरू हुई थी । राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने भाजपा नेताओं को दो टूक कह दिया है कि कांग्रेस को माँ बेटे की पार्टी बताने से पहले इन नेताओं को अपने गिरेबान में भी झांकना चाहिए और परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहिए । पर जब भाजपा नेताओं ने तर्क
दिया कि क्या अपने बेटे बेटियों को सपा बसपा में भेज दें चुनाव लड़ने के लिए तब संघ परिवार ने बीच का रास्ता निकलते हुए इन नेताओं से कहा - मजबूत नेताओं को चाहिए कि वे पार्टी की कमजोर सीटों पर अपने पुत्र पुत्रियों को मैदान में उतारे और पार्टी को मजबूत करें ।
गोरतलब है कि उत्तर प्रदेश के भाजपा नेताओं में में अपनी दूसरी पीढी को आगे लाने की होड़ लगी हुई है। इन नेताओं में राष्ट्रीय स्टार के नेताओ मसलन राजनाथ सिंह ,लालजी टंडन से लेकर मंडल और जिले स्तर के नेता भी शामिल हो गए है। इस मामले पार्टी में विवाद बढ़ने और कार्यकर्ताओं की नारजगी के बाद संघ परिवार के शीर्ष नेताओं ने भी मंथन किया । हाल ही में संघ परिवार की बैठक में यह मुद्दा उठा । इस बैठक में संघ की तरफ से मधुभाई कुलकर्णी ,सुरेश सोनी ,शिवनारायण कृपाशंकर आदि थे तो भाजपा नेता कलराज मिश्र से लेकर सूर्यप्रताप शाही आदि शामिल हुए । इनके अलावा संघ परिवार के अनुषांगिक संगठन जैसे विद्यार्थी परिषद,बजरंग दल,वनवासी आश्रम आदि के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे । बैठक में यह मुद्दा उठा और संघ के नेताओं ने पार्टी में बढ़ते परिवारवाद पर चिंता भी जताई।यह भी नसीहत दी कि इस तरह आप कैसे गाँधी परिवार के वंशवाद से लेकर मुलायम सिंह के वंशवाद पर हमला कर पाएंगे ।इसलिए इस प्रवृति पर अंकुश लगना चाहिए। इसपर अह भी बताया गया कि जो पुत्र पुत्रिया पार्टी के काम में जुटे हुए है उन्हें क्या सपा बसपा से चुनाव लड़ना होगा। भाजपा सूत्रों के मुताबिक इस मुद्दे पर अंततः रास्ता यह निकला कि प्रदेश की वे वे सीटें जो कमजोर है वहां इन लोगों को मैदान में उतरना चाहिए ताकि सुप्त्र लोगों कू मजबूत सीट पर भी मौका मिल सके । यहभी कहा गया कि जब कोई वरिष्ठ नेता का पुत्र मैदान में उतरेगा तो उस नेता को भी काफी समय देना होगा और इससे पार्टी मजबूत भी होगी । हालांकि इसपर कुछ नेता नाखुश जरुर है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक से इसबारे में पछने पर उनका जवाब था -विधान सभा का टिकट संसदीय बोर्ड तय करेगा ,इसके आगे की मुझे फिलहाल कोई जानकारी नही है।
पर यह मामला पार्टी के लिए आसान नहीं है । विधान सभा चुनाव की तयारी में जुटे एक नेता ने कहा -जब राष्ट्रीय स्तर के नेता अपने पुत्र के टिकट को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर पार्टी उम्मीदवार को हराने में जुट जाए तो आप क्या उम्मीद करते है वे संघ के नेताओं की सुनेंगे । भाजपा को इस बार सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी के बाहर नही पार्टी के भीतर के लोगों से है । अगर सुपात्र का टिकट कटा तो सुपुत्रों के खिलाफ भी माहौल बनेगा ।

jansatta

Thursday, December 1, 2011

याद आये प्रभाष जोशी



अम्बरीश कुमार
प्रभाष जोशी जनसत्ता के संपादक ही नहीं बल्कि सेनापति भी थे । ऐसे सेनापति जिसने भारतीय पत्रकारिता में निहंग पत्रकारों की ऐसी सेना बनाई जिसने कभी किसी से हार नहीं मानी


प्रभाष जोशी ने अपने जीवन की पूर्व संध्या अखबार के सहयोगियों के साथ गुजारी थी । इसे कैसा संयोग कहेंगे की दुनिया छोड़ने से ठीक एक दिन पहले लखनऊ में उन्होंने हाथ आसमान की तरफ उठाते हुए कहा -मेरा तो ऊपर भी इंडियन एक्सप्रेस परिवार ही घर बनेगा ।इंडियन एक्सप्रेस से उनका सम्बन्ध कैसा था इसी से पता चल जाता है । प्रभाष जोशी चार नवम्बर की शाम लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर में जनसत्ता और इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकारों के बीच थे । यह उनकी अंतिम बैठक बन गई ।एक्सप्रेस के इस दफ्तर में वे पहली बार आए और यह अंतिम बार में बदल गया । सीतापुर में प्रभाष जोशी की याद में प्रभाष पीठ और अन्य संगठनों की तरफ से दस दिन बाद कार्यक्रम होने जा रहा है । जिसमे पेड़ न्यूज़ से लेकर जहाँ विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होगी वही फोटो और पोस्टर प्रदर्शनी लगाईं जा रही है । प्रभाष जोशी के चुनोंदा लेखों की पुस्तिका भी बांटी जाएगी । कार्यक्रम में आलोक तोमर मुख्या वक्ता होंगे । कार्यक्रम के आयोजकों से बात होते ही एक साल पहले प्रभाष जोशी के साथ हुई बैठक याद आ गई । प्रभाष जी बैठे तो कई मुद्दों पर चर्चा हुई । रामनाथ गोयनका से ले कर उनके पेड़ न्यूज़ अभियान तक । कुछ समय पहले ही छतीसगढ़ में नवभारत के संपादक बब्बन प्रसाद मिश्र की एक पुस्तक प्रभाष जी को भेजी थी जिसमे छत्तीसगढ़ में पेड़ न्यूज़ और नेताओं से पैसे के लेनदेन का ब्यौरा था । प्रभाष जी ने कहा -उसे पढ़ा और बब्बन जी से बात भी करूँगा । पेड़ न्यूज़ के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान में सभी को जोड़ा जाना चाहिए । यह बहुत ही खतरनाक प्रवृति है । इंडियन एक्सप्रेस के नए पत्रकारों को उन्होंने जनसत्ता के शुरुवाती दौर के बारे में भी बताया । एक रोचक उदाहरण भी उन्होंने उस दौर का दिया । जो राजनीति , राजनेता ,अखबार मालिक और संपादक के संबंधों पर रोशनी डालता है । बात उस दौर की है जब राष्ट्रीय राजनीति पर देवीलाल का उदय हुआ था । ख़बरों के चलते हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल का जनसत्ता के पत्रकार राकेश कोहरवाल से नजदीकी संबंध गया था था । एक विवाद को लेकर प्रभाष जोशी ने राकेश कोहरवाल का तबादला चंडीगढ़ कर दिया । जिसके बाद आए दिन देवीलाल का फोन आता कि राकेश कोहरवाल को वापस दिल्ली बुला लिया जाए। प्रभाष जोशी ने तब कहा - देखेंगे । पर जब ज्यादा फोन आने लगा तो उन्होंने अपने पीए राम बाबू से कोई बहाना बनाकर कन्नी काटना शुरू किया क्योकि देवीलाल से उनका भी काफी मिलना जुलना होता था । बाद में प्रभाष जी ने एक पत्र देवीलाल को लिखा जिसमे कहा गया था - आदरणीय चौधरी साहब , आप हरियाणा की सरकार चलाए । जनसत्ता को हमें ही चलाने दें । और यह पत्र डाक से देवीलाल को भेज दिया गया ।
इस बीच नेशनल फ्रंट की एक बैठक बंगलूर में हुई तो राकेश कोहरवाल ने देवीलाल के साथ वहा जाने की इजाजत प्रभाष जोशी से मांगी । प्रभाष जोशी ने उन्हें मना कर दिया और कहा दिल्ली से कवर कराया जाएगा। दिल्ली से प्रदीप सिंह भेजे गए । बावजूद इसके राकेश कोहरवाल छुट्टी लेकर देवीलाल के साथ हेलीकाप्टर से रुकते रुकाते बंगलूर गए । प्रदीप सिंह ने लौटकर दफ्तर में बताया कि वहा तो राकेश कोहरवाल भी गए थे । इसके बाद राकेश कोहरवाल का फिर तबादला कर दिया गया । देवीलाल को जब पता चला तो उन्होंने रामनाथ गोयनका से प्रभाष जोशी की शिकायत की । तब प्रभाष जोशी ने रामनाथ गोयनका से कहा था - किसी रिपोर्टर का दौरा संपादक तय करेगा या कोई मुख्यमंत्री । बाद में प्रभाष जोशी ने राकेश कोहरवाल से कहा था - जनसत्ता को पत्रकार की जरुरत है किसी मुख्यमंत्री के पीआरओ की नही । बाद में कोहरवाल ने जनसत्ता छोड़ दिया ।
प्रभाष जी ने उस दिन कई पुरानी घटनाओ का जिक्र किया । करीब दो घंटे से ज्यादा प्रभाष जोशी एक्सप्रेस समूह के तीनो अखबारों इंडियन एक्सप्रेस , जनसत्ता और फाईनेंशियल एक्सप्रेस के पत्रकारों के साथ रहे । चार नवम्बर को जब वे लखनऊ में एक कर्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे ,मुझे कार्यक्रम में न देख उन्होंने मेरे सहयोगी तारा पाटकर से कहा -अम्बरीश कुमार कहा है ।यह पता चलने पर की तबियत ठीक नहीं है उन्होंने पाटकर से कहा दफ्तर जाकर मेरी बात कराओ।मेरे दफ्तर पहुचने पर उनका फोन आया .प्रभाष जी ने पूछा -क्या बात है ,मेरा जवाब था -तबियत ठीक नहीं है .एलर्जी की वजह से साँस फूल रही है । प्रभाष जी का जवाब था -पंडित मै खुद वहां आ रहा हूँ और वही से एअरपोर्ट चला जाऊंगा ।कुछ देर में प्रभाष जी दफ्तर आ गये .दफ्तर पहली मंजिल पर है फिर भी वे आए ।करीब दो घंटा वे साथ रहे और रामनाथ गोयनका ,आपातकाल और इंदिरा गाँधी आदि के बारे में बात कर पुरानी याद ताजा कर रहे थे। तभी इंडियन एक्सप्रेस के लखनऊ संसकरण के संपादक वीरेंदर कुमार भी आ गए जो उनके करीब ३५ साल पराने सहयोगी रहे है।प्रभाष जी तब चंडीगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस के संपादक थे .एक्सप्रेस के वीरेंदर नाथ भट्ट ,संजय सिंह ,दीपा आदि भी मौजूद थी ।
तभी प्रभाष जी ने कहा .वाराणसी से यहाँ आ रहा हूँ कल मणिपुर जाना है, पर यार दिल्ली में पहले डाक्टर से पूरा चेकउप कराना है।दरअसल वाराणसी में कार्यक्रम से पहले मुझे चक्कर आ गया था । प्रभाष जोशी की यह बात हम लोगो ने सामान्य ढंग से ली।लखनऊ के इंडियन एक्सप्रेस दफ्तर से चलते समय जब एक्सप्रेस के सहयोगियों से मैंने उनका परिचय कराया तभी मौलश्री की तरफ मुखातिब हो प्रभाष जोशी ने कहा था -मेरा घर तो ऊपर भी इंडियन एक्सप्रेस परिवार में ही है ।शायद उन्हें कुछ आभास हो गया था । छह नवम्बर को तडके ढाई बजे दिल्ली से अरुण त्रिपाठी का फोन आया -प्रभाष जी नहीं रहे । लगा चक्कर आ जाएगा और गिर पडूंगा । प्रभाष जोशी ने हम जैसे दर्जनों पत्रकारों को गढ़ा ।
प्रभाष जोशी जनसत्ता के संपादक ही नहीं बल्कि सेनापति भी थे । ऐसे सेनापति जिसने भारतीय पत्रकारिता में निहंग पत्रकारों की ऐसी सेना बनाई जिसने कभी किसी से हार नहीं मानी । यह सेना बाद में बिखर भी गई पर जो जंहा भी गया पत्रकारिता के मैदान में युद्ध लड़ता ही रहा । जनसत्ता सिर्फ अखबार ही नहीं प्रभाष जोशी का अखाड़ा भी था । जनसत्ता ऐसा प्रयोग था जिसने हिंदी पत्रकारिता को शिखर पर पंहुचा दिया । हाल ही में दिल्ली के पत्रकार देवसागर सिंह का फोन आया ,अमर उजाला के प्रबंधक एपी सिंह का हवाला देकर बताया कि वे जापान की समाचार एजंसी से जुड़े है और लिब्रहान को लेकर कुछ जानकारी चाहिए । साथ ही यह भी बताया की वे पहले इंडियन एक्सप्रेस में रहे है और उनकी देश में खासकर हिंदी पट्टी में पहचान जनसत्ता ने बनाई है । मैंने उन्हें बताया कि उनको हम अच्छी तरह जानते है । वे और खुले और बताने लगे कि इंडियन एक्सप्रेस में रहने के बावजूद बिहार और उत्तर प्रदेश में उन्हें लोग जनसत्ता का पत्रकार मानते थे क्योकि तब जनसत्ता हिंदी पट्टी में अंग्रेजी पत्रकारिता को भी पीछे छोड़ चुका था और प्रभाष जी इंडियन एक्सप्रेस की खबरे जनसत्ता में भी देते थे । यह उदाहरण है पत्रकारिता में जनसत्ता के उदय और उसके असर का । इस पर भी बात होगी पर पहले अस्सी के दशक में हिंदी पत्रकारिता की दशा पर नज़र डाल ली जाए ।
तब हिंदी पत्रकार को समाज में न सिर्फ हेय दृष्टि से देखा जाता बल्कि उसकी छवि सुदामा जैसी दिखाई जाती जो याचक मुद्रा में नज़र आता । अगर कोई अखबार में नौकरी करता तो उसके जानने वाले यह जरुर पूछते कि कुछ पैसा मिलता है या समाज सेवा करते हो। कई बार तो कोई ढंग की नौकरी की सलाह भी देते ।जबकि अंग्रेजी अखबार वालो से ऐसे सवाल नहीं होते ।सरकारी दफ्तर से लेकर प्रेस कांफ्रेंस तक में हिंदी वाला पत्रकार धकियाया जाता था । कुछ भी लिख दे कोई पूछने वाला न था । ऐसे ही दौर में रविवार शुरू हुआ जिसने लोगो का ध्यान खीचा ।राजनैतिक हलकों में रविवार का असर पड़ने लगा था । तभी इंडियन एक्सप्रेस समूह जो रामनाथ गोयनका के चलते अपनी अलग पहचान बनाए हुए था उसने प्रभाष जोशी के नेतृत्व में जनसत्ता शुरू किया ।कैसे शुरू हुआ ,क्या क्या कवायद हुई इसपर लिखा भी गया है पर जनसत्ता जिस तूफानी अंदाज में आया उसने सभी जमे जमाए अखबारों और संपादकों को हिला कर रख दिया । सबकी खबर ले ,सबको खबर दे के नारे ने हिंदी अखबारों की दबी कुचली भाषा बदली ,तेवर बदला और पहली बार हिंदी का पत्रकार तनकर खड़ा हुआ
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