Saturday, December 15, 2018

द टेलीग्राफ का ऐसे तनकर खड़ा होना !

आज के दौर में जब मीडिया घुटने टेक रहा हो तो टेलीग्राफ का तन कर खड़ा होना हमें सत्तर ,अस्सी और नब्बे के दशक में इंडियन एक्सप्रेस की याद दिलाता है .अस्सी के दशक के अंतिम दौर में इंडियन एक्सप्रेस समूह के अख़बार ' जनसत्ता ' से जुड़ना हुआ .वह दौर कांग्रेस का था .बहुत ही उठापटक का भी .बोफर्स का दौर देखा और सरकार पर एक्सप्रेस कैसे हमला करता है यह भी देखा ,देखा ही नहीं उसके हरावल दस्ते का हिस्सा भी रहा .और लोग अख़बार का क्या इन्तजार करते होंगे जब एक्सप्रेस समूह के चेयरमैन श्री राम नाथ गोयनका खुद अपने सुंदर नगर स्थित आवास पर सुबह चार बजे उठकर अपने तीनो अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ,जनसत्ता और फाइनेंशियल एक्सप्रेस का इन्तजार करते थे .कई बार हम लोग देर रात की पाली से जब निकलते तो एक्सप्रेस साथ ले जाते .अख़बार क्या होता है ,उसकी क्या ताकत होती है यह तब देखा .अंग्रेजी में अरुण शौरी तो हिंदी में प्रभाष जोशी के लिखे का इंतजार होता .तब कहा जाता था कांग्रेसी जनसत्ता अखबार बाथरूम में पढ़ते हैं क्योंकि पता चल गया तो पार्टी से बेदखल हो जाएंगे .हमले हुए जनसत्ता के पत्रकारों पर ,हड़ताल हुई और लंबी चली पर अख़बार डटा रहा .तिमारपुर में रहता था ज्यादातर सिख परिवार थे .सुबह देखता तो बालकनी में जनसत्ता पढ़ते नजर आते .ऐसी रिपोर्टिंग सिख दंगों की हुई .बिहार प्रेस बिल आया तो इंडिया गेट पर खुद रामनाथ गोयनका ,कुलदीप नैयर और खुशवंत सिंह जैसे दिग्गज हाथ में प्ले कार्ड उठाए नजर आये .अब वह दौर नहीं रहा .मीडिया का बड़ा हिस्सा सत्ता के खिलाफ लिखने बोलने से बच रहा है .वेब साइट जरुर कुछ मोर्चा लिए हैं .पर टेलीग्राफ का ऐसे तनकर खड़ा होना सुखद है .यह लोकतंत्र के लिए शुभ है .हर अख़बार दब नहीं सकता यह सन्देश भी है .

Tuesday, December 11, 2018

क्या टूटने लगा है मोदी का तिलिस्म !

अंबरीश कुमार धान का कटोरा कहे जाने वाले छतीसगढ़ में भाजपा के चाउर वाले बाबा की सरकार जा चुकी है । छतीसगढ़ में भाजपा बुरी तरह हारी है । वोट काटने की रणनीति के चलते खड़े किए गए पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी कोई मदद नहीं कर पाए । राजा महाराजों के अंचल राजस्थान में महारानी का राजपाट भी जा रहा है । सिर्फ मध्य प्रदेश में भाजपा के पिछड़े नेता शिवराज सिंह चौहान ही मुकाबला कर पाए हैं ।हालांकि सपा बसपा ने यह साफ़ कर दिया है कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे ऐसे में कांटे के मुकाबले में मध्य प्रदेश में भी भाजपा का रास्ता बहुत आसान नहीं है । तीनो ही हिंदी भाषी राज्यों में शाम तक के रुझान के मुताबिक भाजपा को बड़ा झटका लगा है ।इसके साथ ही भाजपा के शीर्ष नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है । हिंदी पट्टी जिसे ' गाय पट्टी ' भी कहते है वहां के तीन राज्यों से भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव के मुकाबले बुरी तरह हार गई है।हालांकि भाजपा कई बार चुनाव हारने के बाद भी जोड़ तोड़ से सरकार बना लेती है।राज्यपाल तो अभी अपनी भूमिका निभाएंगे ही । पर भाजपा और मोदी को बड़ा झटका लग चुका है यह वास्तविकता भी है । ये वही ' गाय पट्टी ' है जहां भाजपा गाय ,गोकशी और मंदिर का मुद्दा लगातार उठा रही थी । पर जमीनी मुद्दों ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया । इन तीनो राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल थी । कहीं नेतृत्व था तो कहीं बिखरा हुआ नेतृत्व था । कांग्रेस के लिए इन राज्यों में कुछ खोने को नहीं था । हालांकि कांग्रेस ने अगर अपना अहंकार छोड़ कर तीनो ही राज्यों में बसपा सपा के साथ गठजोड़ किया होता तो जीत और बड़ी होती । राहुल गांधी के लिए भी यह एक सबक है ।इसके बावजूद राहुल गांधी की राजनैतिक ताकत बढ़ी है । पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी मोदी को सीधी चुनौती देते रहे हैं । राहुल गांधी ने नोटबंदी ,राफेल से लेकर बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाने वाले उद्योगपतियों का सवाल ढंग से उठाया था । संजोग से आज ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल का पार्टी अध्यक्ष के रूप में एक साल पूरा हुआ है।साल भर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कैसा काम किया यह उसका नतीजा भी है।पिछले एक दशक में की राजनीति में काफी बदलाव आया है । अब वे अपनी तीखी राजनैतिक टिपण्णी की वजह से भी चर्चा में रहते हैं । जैसे कभी मोदी अपने भाषण की वजह से चर्चित हुए थे । पर अब तो मोदी के भाषण भी उनकी हताशा को दर्शा रहे हैं तो सरकार के कामकाज को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं । अब मोदी के भाषण में न तो राजनैतिक धार बची है न ही भाषा की मर्यादा ।' कांग्रेस की विधवा ' वाली टिपण्णी की देशभर में मोदी की निंदा हुई है । बहरहाल सरकार का कामकाज ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है । मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कामकाज का भी यह नतीजा है।यह चुनाव नतीजा कामकाज और भाषण के फर्क को भी दर्शाता है।आप बहुत अच्छे वक्ता हो सकते हैं पर अगर सरकार ढंग से नहीं चला सकते हैं तो आम जनता को ज्यादा दिन भरमा नहीं सकते ।साफ़ है केंद्र और राज्य सरकार ने जो भी काम करने का दावा किया था वह जमीनी स्तर पर हवा में था । दूसरे उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में भाजपा जिस हिंदुत्व के मुद्दे को उभारने में जुटी थी उसका कोई बहुत ज्यादा असर इन राज्यों पर नहीं पड़ा । किसानो का सवाल ,नौजवानों का सवाल हो या दलित आदिवासियों का सवाल ज्यादा प्रभावी रहा । इन तीनो हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था । तरह तरह के घपले घोटाले तो थे ही साथ ही सरकार के कामकाज के तौर तरीकों से हर वर्ग नाराज हो रहा था । सबसे ज्यादा नाराजगी किसानो को की थी .नतीजा सामने है । दो राज्यों में तो काफी लंबे समय से ही भाजपा की सरकार थी.राजस्थान में पांच साल में ही भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था । इन चुनाव नतीजों पर बात करने से पहले देश में पिछले एक वर्ष की घटनाओं पर नजर डालें।सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चार जज सार्वजनिक रूप से प्रेस कांफ्रेंस करते हैं।वे चीफ जस्टिस की मनमानी के खिलाफ सवाल उठाते हैं।मुद्दा मनचाही बेंच को मनचाहा मामला देने से शुरू हुआ।जानकारी के मुताबिक केस था लालू प्रसाद यादव वाला।विवादों में घिरे चीफ जस्टिस के खिलाफ कांग्रेस महाभियोग प्रस्ताव भी लाती है।हाल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर हुए जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मीडिया कप बताया कि चीफ जस्टिस किसी बाहरी ताकत के इशारे पर काम कर रहे थे।यह आरोप आजाद भारत में पहले कभी नहीं लगा।लोकतंत्र का एक स्तंभ न्यायपालिका की साख किस तरह गिरी यह इस उदाहरण से साफ़ है।अब आइए सीबीआई पर।सीबीआई चीफ को सरकार ने तब छुट्टी पर भेजा जब उनके मातहत अफसर पर सीबीआई ने ही आपराधिक मामला दर्ज कर लिया।इस मामले के तार प्रधानमंत्री कार्यालय तक जुड़े हैं ऐसा आरोप लगा है।सोमवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया।उससे पहले सरकार और रिजर्व बैंक के बीच हुआ विवाद चर्चा का विषय बना रहा।यह बानगी है मोदी सरकार के कामकाज की।नोटबंदी से लेकर जीएसटी जैसे मुद्दों को अलग रखे।डीजल पेट्रोल के लगातार बढती कीमतों को भी अलग रखे तो भी केंद्र सरकार के खिलाफ हिंदी पट्टी में एक आक्रोश तो उभरता हुआ दिख ही रहा था। जिन हिंदी भाषी राज्यों में चुनाव हुए उन सभी राज्यों में अलग अलग मुद्दे प्रभावी हुए। छतीसगढ़ में भाजपा ने चुनाव से पहले ही बहुत जोड़तोड़ किया था पर मामला बना नहीं । अजीत जोगी वाला पैंतरा भी नहीं चला ।भाजपा तो जा ही रही है साथ ही जोगी को भी निपटाती जा रही है । पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इन तीनो राज्यों के चुनाव के बाद की राजनीति हो गई है । अब लोकसभा का चुनाव सामने है । विपक्ष एकजुट होने लगा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न सिर्फ एकजुट विपक्ष की बड़ी चुनौती मिलेगी बल्कि पार्टी के भीतर भी चुनौती मिल सकती है । अब मोदी का चेहरा पार्टी को लोकसभा चुनाव में जीत दिला पाएगा या नहीं यह सवाल भी उठ सकता है । पार्टी ही नहीं संघ नेतृत्व में भी मंथन तो होगा ही । संघ अगर भाजपा के लौह पुरुष रहे आडवाणी को हाशिए पर डाल सकता है तो दूसरे को भी उसी रास्ते पर भेजने में वे क्यों हिचकेंगे । इसकी बड़ी वजह उत्तर प्रदेश और बिहार की मौजूदा बदलती राजनैतिक स्थितियां हैं ।बिहार में भाजपा लगातार कमजोर हो रही है ।उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का मुद्दा अब भाजपा के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है । दूसरे बसपा और सपा के बीच गठजोड़ होना तय है ,ऐसे में भाजपा को सबसे बड़ी चुनौती यूपी से ही मिलेगी ।प्रदेश से भाजपा में सबसे ज्यादा सीटें जीती है । इन तीनो राज्यों के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी असर पड़ना तय है । हालांकि दिल्ली में विपक्ष की राजनीति से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जिस तरह दूरी बनाई हुई है वह समझ से बाहर है। जबकि अब क्षेत्रीय दल सीबीआई के खौफ से मुक्त होते जा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा । आज दिल्ली के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित संशोधित टिपण्णी

Sunday, December 9, 2018

मुंबई में लखनऊ देखना है तो आएं !

आलोक जोशी दो हिस्सों में लिखा था। मगर अब पूरा एक साथ लगा रहा हूँ। और जो लोग रह गए उनके लिए एक ख़बर। मजाज़ की दास्तान का एक और शो है मुंबई में। अगले शनिवार पंद्रह दिसंबर । बायकला में। ------------------------- मैंने पहले भी कहा हिमांशु बाजपेयी अपने आप में चलता फिरता लखनऊ हैं। रामगढ़ में एक मुख्तसर सी मुलाक़ात। फेसबुक पर कुछ देखा देखी और कभी कभार फोन पर कुछ सवाल जवाब। यही था मेरा और हिमांशु का रिश्ता। अतुल तिवारी के शब्दों में लखनऊ का लड़का। लखनऊ के बुजुर्ग लड़के नए वालों को ऐसे ही बुलाते हैं। तो जनाब ख़बर मिली कि हिमांशु आ रहे हैं और मजाज़ की दास्तान ला रहे हैं। मन हुआ कि चलो सुना जाए। भाई उस लड़के को क्यों न सुना जाए जो लखनऊ से दिल लगाए है और जिसके दिल में बसा लखनऊ साथ साथ दुनिया का दौरा करता है, अपना रंग बखेरता है। तो हम सुनने गए थे हिमांशु को। लगातार दो दिन। शनिवार और रविवार। दास्तान ए आवारगी यानी क़िस्सा मजाज़ लखनवी का। Dastan-e-Aawaargi ( A Dastangoi Performance by Himanshu Bajpai) शनिवार बांद्रा के कुकू क्लब में फ़ुल हाउस। पहले तो हिमांशु ने सिखाई रिवायत दास्तान गोई की, फिर ये भी बताया कि यहाँ तालियाँ बजाना गुनाह होता है। दिल खुश हो तो दाद दीजिए। मगर दाद की भी कुछ शर्तें हैं, वरना वाह वाह को आह आह में बदलते वक़्त नहीं लगता। ज़ाहिर है, महफ़िल को अदब सिखाना भी तो लखनऊ का फ़र्ज़ है। तो फ़र्ज़ अंजाम दिया गया और शुरू हुई -दास्तान ए आवारगी। बस शुरू होने का ही होश है, बाद उसके तो हम बस घूँट घूँट भरते गए और मजाज़ दिल में उतरते गए। कब कहें वाह! कब न कहें, सोचने की कोई ज़रूरत ही न रही। मजाज़ को जानना हो, गहराई से पहचानना हो और अपने दिल में उतारना हो, तो बस हिमांशु की ये दास्तान सुननी काफी है। और अगर आपने ये न सुनी तो जितना भी मजाज़ पढ़ा सुना हो, सब नाकाफ़ी है। तकलीफ़ सिर्फ ये कि कुकू क्लब में महफ़िल की शुरुआत में ही सख़्त हिदायत दी गई कि मोबाइल बंद कर दें और फ़ोटो खींचने या वीडियो बनाने की जुर्रत न करें। मगर बाद में लगा कि ये तकलीफ़ दरअसल कोई तकलीफ़ नहीं दिमाग का वहम था। ...2 ... आप पूछेंगे कि क्यों था दिमाग का वहम? तो जवाब अगले दिन मिला। जब भवन्स के एस पी जैन कॉलेज में हिमांशु Himanshu Bajpai फिर पहुँचे दास्तान ए आवारगी के साथ। और हम भी पहुँचे। इस बार Namita, Vineeta और Siddharth के साथ। यहाँमाहौल कुछ फ़र्क़ था। Ajay Brahmatmaj जी भी मिल गए और Ila Joshi भी। महफ़िल थी चौपाल। आग़ाज़ ही हुआ अतुल तिवारी की एक शानदार तक़रीर से जिसने ज़मीन बना दी, हवा में नमी घोल दी और हाज़रीन नाज़रीन को बेताब कर दिया सोचने के लिए कि आख़िर अब क्या बचा है जानने को जो हिमांशु की दास्तान में मिलेगा? महफ़िल की शान में चार चाँद लगाने दास्तान सुननेवालों की अगली क़तार में गुलज़ार साहब भी मौजूद थे। फिर शुरू हुआ क़िस्सा असरारुल हक़ ‘मजाज़’ लखनवी का। और फिर महफ़िल पर रंग छाने लगा। यहाँ बहुत से थे जो घूँट घूंट पी रहे थे और वाह वाह बरसा रहे थे। बोल अरी ओ धरती बोल, राज सिंहासन डांवाडोल! यहाँ से लेकर, आवारगी को बख़्शी गई इज़्ज़त और न जाने कितनी हसीनाओं के ख़्वाब के तारे, आँख के काजल, दिल के क़रार और अरमानों के क़ुतुबमीनार मजाज़ लखनवी की शायरी में औरत के मेयार पर जो और जिस अंदाज में हिमांशु ने रौशनी डाली वो क़ाबिले ग़ौर नहीं, क़ाबिले तारीफ नहीं सिर्फ क़ाबिले रश्क है। -हाय हिमांशु, ऐसा कभी हम क्यों न कर पाए! ये दूसरी शाम भी दिल में उतर गई, एक जगह घर कर गई। और अब समझिए कि रिकॉर्डिंग न करने की हिदायत तकलीफ़ के बजाय तोहफ़ा क्यों थी। क्योंकि लगातार दो शाम एक ही दास्तान दोबारा सुनने में भी कहीं यूँ नहीं लगा कि ये तो कल ही सुना था। दोनों बार पूरा मजा आया, नए सिरे से आया। कुछ बहुत फर्क भी था। हाजरीन को देखकर अंदाज भी बदल रहा था तो सुननेवालों का मिज़ाज भी। अाखिर में गुलज़ार साहब ने दो लाइनें बोलीं मगर सब कुछ कह दिया। उन्हीं की दो लाइनें - हिमांशु , कहा गया कि आप मजाज़पर तालिबे इल्म ( विद्यार्थी) हैं, मगर आप तो मजाज़ पर पूरे प्रोफ़ेसर निकले। - मार्क्सिज्म के बारे में और कुछ भी कहा जाए लेकिन अगर मार्क्सिज्म ने हमें एक मजाज़ दिया तो उसकी कामयाबीके लिए इतना ही काफी है। बधाई Himanshu Bajpai और शुक्रिया Dastan-e-Aawaargi ( A Dastangoi Performance by Himanshu Bajpai) के लिए।साभार

Wednesday, December 5, 2018

अब यूपी में दंगाई भीड़ को भी मुआवजा !

अंबरीश कुमार लखनऊ .अब यूपी में दंगाई भीड़ को भी मुआवजा देने की शुरुआत हो गई है .यह भाजपा की सुशासन वाली सरकार का काम है . उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सांप्रदायिक भीड़ एक पुलिस अफसर की हत्या कर देती है .हत्या में जो नामजद होते हैं वे संघ परिवार से जुड़े बजरंग दल के लोग हैं .भीड़ ने किस तरह हत्या की यह वीडियो भी वायरल होता है .सभी हत्यारों के नाम पता भी पुलिस के पास है .पर इस घटना के बाद सूबे के मुख्यमंत्री पुलिस अफसरों के साथ जो बैठक करते हैं लगता है बजरंग दल ने बुलाई है .पुलिस अफसर की हत्या हुई और बैठक की सरकारी प्रेस रिलीज पूरी तरह बजरंग दल को समर्पित नजर आई .पुलिस अफसर की हत्या पर दो शब्द नहीं और गाय के नाम पर हत्यारी भीड़ का नेतृत्व कर रहे को मुआवजा .यह किस तरह का सुशासन उत्तर प्रदेश में भाजपा ला रही है .भाजपा के और भी मुख्यमंत्री हुए हैं .कल्याण सिंह से लेकर राजनाथ सिंह तक .कभी पुलिस अफसर पर हमला करने वाले के सामने कोई सरकार इस तरह नतमस्तक नहीं हुई है .एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के दौर की एक घटना का हवाला देते हुए लिखा है कि कैसे उन्हें मुख्यमंत्री ने पार्टी के करीबी बदमाश पर कार्यवाई की पूरी छूट दी .और एक सरकार यह है .जिसने दंगाई भीड़ को भी मुआवजा दे दिया है.यह एक ऐतिहासिक घटना है .इसका असर दूरगामी पड़ेगा .इस घटना से भाजपा के सुशासन के दावे की धज्जियां उड़ गई हैं . शहरी मध्य वर्ग भाजपा का समर्थन तो करता है पर बवाल फसाद के साथ नहीं खड़ा होता .मुलायम सिंह यादव से शहरी मध्य वर्ग की बड़ी खुन्नस उनके लाठी वाले समर्थकों से थी .वे आज भी मुलायम सिंह वाली समाजवादी पार्टी को गुंडों की ही पार्टी मानते हैं .वीपी सिंह ने जब दादरी को लेकर अभियान छेड़ा तो किसान उत्पीडन के साथ मुलायम सिंह यादव की इसी लाठी वाली छवि को मध्य वर्ग के बीच पहुंचा दिया .राज बब्बर ने देवरिया से दादरी तक की जो यात्रा कुशीनगर से शुरू की उस सभा का मुख्य नारा था , जिस गाड़ी पर सपा का झंडा ,उस गाड़ी में बैठा गुंडा .यह वही दौर था जब एक लोहिया के नाती ने कैसरबाग में पुलिस इन्स्पेक्टर को बोनट पर टांग कर घुमाया था .ऐसी ही बहुत सी घटनाएं हुई और मुलायम सिंह सत्ता से बेदखल हो गए .शहरी मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा भाजपाई हो गया है पर कभी अपने बेटे बेटी को हुडदंगी या बजरंगी नहीं बनाना चाहता .वह तो खुद के लिए एक सुरक्षित समाज चाहता है .वह अयोध्या में मंदिर चाहता था और वोट भी दिया .पर दंगा फसाद नहीं चाहता .मुझे याद है यूपी विधान सभा का दो हजार बारह का चुनाव प्रचार जब अखिलेश यादव आगे बढ़ रहे थे और मीडिया उन्हें ख़बरों से बाहर किये था .एक वरिष्ठ पत्रकार ने तब कहा था ,अब भाजपाई चाहे जो कटवा दे ये इस बार सत्ता से बहुत दूर हैं . साफ़ कहना था कि मवेशी कटवाने से हर बार सरकार बना लें यह संभव नहीं है .बुलंदशहर में जो हुआ उसकी खोजबीन अभी हो रही है .पर यह साफ़ है कि साजिश दंगा कराने की थी .वह नाकाम रही .इस घटना से बड़ा हिंदू समाज भी डर गया है .ये किस भीड़ का समर्थन किया जा रहा है जो एक हिंदू पुलिस अफसर को दौड़ा का मार डालती है .और आप इस दंगाई भीड़ के साथ खड़े हो गए हैं .उन्हें मुआवजा दे रहे है .क्या उस पुलिस अफसर की बीबी ,बहन और बेटे की बात सुनी .सुन लीजिये यह भी एक हिंदू परिवार की आवाज है . कार्टून साभार -सत्याग्रह

Monday, December 3, 2018

उनका इस्लाम और हमारा हिंदुत्व

पकिस्तान में कट्टरपंथी मुसलमानों को इस्लाम की शिक्षा दे रहे हैं .कई वर्षों से ,कट्टरपंथियों ने इस्लाम सिखाते सिखाते हजारों मुसलमानों को मार डाला .भारत में यह मौका पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व सिखाने वालों को खुलकर मिला है .अब अपना हिंदुत्व भी पकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ जुगलबंदी करने लगा है .बुलंदशहर में हिंदुत्व सिखा रही इस भीड़ को देखें ये बेरोजगार हैं जो हिंसक भीड़ में बदल गए नौजवान हैं .बेरोजगार न होते तो ढेला ,पत्थर और कट्टा लेकर सड़क पर कैसे उतरते .बेरोजगार हिंदू भी एक बड़ी ताकत है .जिसका श्रेय सरकार को देना चाहिए .हिंदुत्व के नामपर बड़ा राजनैतिक एजंडा इन्हें दे दिया गया है .आज इन्होने हिंदुत्व सिखाते सिखाते एक थानेदार को मार डाला .वह थानेदार हिंदू ही था .यह वह शुरुआत है जो पकिस्तान में काफी पहले हो चुकी है .हमारे यहां अब हो रही हैं .इस मामले में भाजपा नेताओं का कोई दोष भी नहीं .उनके पुत्र पुत्री तो विदेशों में डाक्टर /इंजीनियर /प्रबंधन की पढ़ाई करते हैं .वे कोई जाहिल नहीं है जो इस रास्ते पर जाएं .इसलिए तो मोदी कहते हैं ,कांग्रेस हमें हिंदुत्व न सिखाए .यह काम तो बेरोजगार हिंदू नौजवानों की भीड़ करने ही लगी है .यह होता है असर धार्मिक और मजहबी एजंडा का .उनको कौन हिंदुत्व सिखा सकता है ,उन्होंने हिंदुत्व सिखाने वाली धर्मान्ध और बेरोजगार हिंसक भीड़ सड़क पर उतार दी है . जो गाय के नाम पर थानेदार तक की हत्या कर देती है . देखिये कभी आपका हिंदू परिवार उनके रास्ते पर न आ जाए .वे किसी को पहचानते नहीं है ,हिंदू को भी नहीं छोड़ेंगे .