Wednesday, February 29, 2012

पित्रोदा को बढई,प्रणव को बंगाली और मनमोहन को सरदार बना दिया !


अंबरीश कुमार
लखनऊ फरवरी। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के अंतिम चरण की साठ सीटों के लिए गुरुवार यानि कल प्रचार ख़त्म होने से पहले सभी दलों ने पूरी ताकत झोकने के साथ ही अब आगे के दांव पेंच शुरू हो गए है । मुलायम सिंह यादव और मायावती तो अपने अंदाज में प्रचार कर ही रहे थे अब कांग्रेस ने भी हर हथकंडा अपना लिया है तो भाजपा और आक्रामक हुई है । नजीमाबाद ,धामपुर से लेकर पीलीभीत और लखीमपुर तक फैली इन साठ सीटों के लिए अलग अलग रणनीति अपनाई गई है । कांग्रेस ने राहुल गाँधी समेत अपने दिग्गज नेताओं को आज से कल तक इन क्षेत्रों में झोंक दिया है । जात पर न पात पर का नारा दें वाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी पीलीभीत में बांग्ला समुदाय के बीच बंगाली में बोलते नजर आए तो इसी पार्टी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कार्यक्रम सिख बहुल इलाको में लगाया है । मुखर्जी को बंगाली और मनमोहन को सिख नेता बनाने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी सैम पित्रोदा का पूरा नाम सत्य नारायण गंगाराम पित्रोदा लेते हुए कानपूर में यह बता चुके है कि वे विश्वकर्मा है । पर जब बात नहीं बनी तो राहुल गाँधी ने कहा था ,वे बढई है । जाति पात से ऊपर उठी कांग्रेस का या नया चेहरा है तो भाजपा ने प्रदेश के नेताओं को किनारे करते हुए उमा भारती को पार्टी का नया चेहरा बना दिया है । मायावती ने आज दावा किया कि सबसे ज्यादा सीट बसपा जीतकर सत्ता में लौट रही है तो समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह ने कहा इस बार फिर सपा की सरकार बन रही । उधर सपा के के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पड़ के सबसे मजबूत दावेदार अखिलेश यादव ने कहा -हमें सत्ता में आने से रोकने की साजिश की जा रही है पर हम बहुत आगे है । दूसरी तरफ भाजपा ने नतीजों से पहले ही आरोप लगा दिया कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस व सपा जनसमर्थन से नहीं जुगाड़ से सरकार बनाने का ताना बाना बुन रहे हैं। भाजपा का यह कहना आगे के कुछ संकेत दे रहा है ।
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया व उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने बुधवार को लखीमपुर खीरी व रामपुर में कहा -उत्तर प्रदेश में बसपा के पक्ष में चल रही लहर से साफ जाहिर होता है कि इस बार भी प्रदेश में वर्ष 2007 की भाँति ही सबसे ज्यादा बसपा प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचेंगे और उनकी पार्टी का बेहतर रिजल्ट होगा। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जेपीनगर और मुरादाबाद की सभाओ में कहा -समाजवादी पार्टी के खिलाफ कांग्रेस, भाजपा और बसपा मिलकर साजिश कर रहे है। कांग्रेस राष्ट्रपति राज की धमकी दे रही है। बसपा भाजपा में फिर दोस्ती हो सकती हैं क्योंकि पहले भी वे समाजवादी पार्टी को सत्ता रोकने के लिए ऐसा कर चुके हैं। अब तक हुए मतदान के छह चरणों में समाजवादी पार्टी की निश्चित बढ़त रही है।
पर इन दोनों दलों के दावे के बीच भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने संभल में बुधवार को कहा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस व सपा जनसमर्थन से नहीं जुगाड़ से सरकार बनाने का ताना बाना बुन रहे हैं। नकवी ने कहा कि कांग्रेस की यह धमकी कि युवराज नही तो गवर्नर राज इसी हताशा निराशा के साथ जुगाड़ के जरिए सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के साजिश की एक झलक है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस व सपा के राजनैतिक मैनेजरों को उत्तर प्रदेश की जनता के जनादेश का साफ एहसास हो चुका है । यह भी महसूस हो चुका है कि भ्रष्टाचार, घोटालों, मंहगाई, अपराध के प्रतीक बन चुके राजनैतिक दलों के खिलाफ जबरदस्त जनाक्रोश के साथ जनादेश आ रहा है । धर्म व जाति के पिटे पिटाए फार्मूले से सत्ता के सिंहासन का सपना देखने वाले लोगों में निराशा साफ दिख रही है। इसी लिए यह दल जनादेश पर नहीं जुगाड़ के सहारे सत्ता का सपना देख रहे हैं। नकवी ने कहा कि इसी हताशा और निराशा में कांग्रेस व सपा के मैनेजरों ने जोड़ तोड़ और जुगाड़ का तानाबाना बुनना शुरु कर दिया है । इनकी नजर बसपा की तीन दर्जन सीटों पर है जहां बसपा के जीतने की सम्भावना वाले उम्मीदवारों से सौदबाजी शुरु हो गई है । इतना ही नहीं सुनने में यह आ रहा है की इस काम में कई बड़े औद्योगिक घराने भी लगे हैं। नकवी ने कहा कि इन तमाम जुगाड़ बाजियों और जोड़ तोड़ के बावजूद भी जनता से खारिज होने की ओर बढ़ रही हैं । नकवी ने कांग्रेस को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि कांग्रेस ने जनादेश का अपमान कर जुगाड़ की सरकार बनाने या राष्ट्रपति शासन के माध्यम से उत्तर प्रदेश में सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश की तो उसकी केन्द्र सरकार के लिए यह घाटे का सौदा साबित होगा और उसे केन्द्र की सत्ता से बेदखल होना पड़ेगा।
अंतिम दौर का प्रचार ख़त्म होने के साथ ही एक तरफ नतीजों का इंतजार होगा तो दूसरी तरफ नई सरकार के जोड़तोड़ का खेल परदे के पीछे शुरू हो जाएगा । भाजपा नेता नकवी की यह टिपण्णी इसी तरफ इशारा कर रही है ।

Tuesday, February 28, 2012

टूटा मायावती का सब्र ,मुलायम निश्चिंत


अंबरीश कुमार
लखनऊ ,फरवरी । उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के छठे के मतदान के साथ बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का सब्र टूटता नजर तो मुलायम सिंह दिन भर के दौरे के बाद उत्साह से लबरेज नजर आए । आज पश्चिम की ६८ सीटों के लिए मतदान हुआ जिसमे अजित सिंह का गढ़ था और मुस्लिम बहुल इलाके भी थे जहाँ से धुर्वीकरण की खबर आ रही है । मेरठ बागपत से लेकर सहारनपुर और मुजफ्फरनगर तक कही तिकोना संघर्ष हुआ तो कही चौतरफा । इस अंचल में भी यही कहा जा रहा है कि घटेगी बसपा तो बढ़ेंगे सब । इसका आभास भी शायद सत्तारूढ़ दल को हो गया है जिसके चलते मायावती ने आज कहा -भाजपा अफवाह फैला कर मुस्लिम समाज को भ्रमित कर रही है कि सपा अब पहले व भाजपा दूसरे नम्बर पर है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का दुष्प्रचार इसलिए किया जा रहा है जिससे लोग बसपा को अपना अमूल्य वोट न दे । लेकिन सच्चाई यह है कि यह सब विरोधी पार्टियों की मुस्लिम वोट को बांटने की साजिश है। मायावती ने आगे कहा -
मतदाता को विरोधी पार्टियों को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करना चाहिए। दूसरी तरफ मुलायम सिंह ने आज रामपुर ,बरेली और बदायूं की जनसभाओं में कहा -जनता ने बसपा का विकल्प समाजवादी पार्टी को मान लिया है। सब जान गए हैं कि अब समाजवादी पार्टी की ही सरकार बनेगी। समाजवादी पार्टी प्रमुख ने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में किसी भी तरह की गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। समाजवादी पार्टी का कार्यकर्ता भी गड़बड़ करेगा तो वह भी जेल जाएगा।
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने आज शाहजहांपुर और पीलीभीत में आक्रामक तेवर में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी व समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा। मायावती ने कहा ने कहा कि ये सभी पार्टियां आपसी नाटकबाजी करके बसपा के लोगों व जनता को गुमराह करने पर आमादा है।
मायावती जब बोलती है तो गुस्सा झलकता है ,अब यह गुस्सा बढ़ता जा रहा है खासकर पश्चिम के बदलते राजनैतिक समीकरण के बाद । दूसरी तरफ मुरादाबाद से लखनऊ लौटते समय जब मुलायम सिंह को बताया इस दौर में करीब पैसठ फीसद मतदान हुआ है तो आत्मविश्वास से भरे मुलायम सिंह का जवाब था ,साफ़ हो गया कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनने जा रही है ।
इन दोनों नेताओ की भाव भंगिमा से कुछ कुछ स्थिति साफ़ होती जा रही है । इस बार के चुनाव में नए और बढे हुए मतदाताओं को लेकर हर पार्टी का अलग विश्लेषण है । बसपा समर्थक बुद्धिजीवी इसे दलित नौजवानों का नया उभार बता रहे है और मान रहे है बसपा को इस बार अप्रत्याशित फायदा होने जा रहा है जिसका मीडिया को अंदाजा नहीं है । हालाँकि इसपर राजनैतिक टीकाकार वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा -मायावती ने जनहित के इतने भी कम नहीं किए है लोग उत्साह में लाइन लगाकर वोट डाले । जिन बाहुबलियों के चलते मुलायम सिंह विवाद में फंसे वे सभी बाद में बहुजन के एजंडा पर काम कर रहे थे । जब भी वोट बढ़ा है अमूमन सत्तारूढ़ दल के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूटा है । पश्चिम से खबरे भी अलग कहानी कह रही है । मुजफ्फरनगर से जनसत्ता प्रतिनिधि संजीव के मुताबिक जिले की ज्यादातर सीटों में मुख्य मुकाबले में समाजवादी पार्टी ,कांग्रेस लोकदल गठबंधन और भाजपा है । बसपा कई जगह मुकाबले से बाहर होती नजर आ रही है । जबकि मेरठ में प्रदीप वत्स के मुताबिक इस बार कांग्रेस की स्थिति पिछले चुनावों के मुकाबले काफी बेहतर है और वह लड़ाई में दिख रही है । मेरठ में इस बार जो ध्रुवीकरण हो रहा है उसका फायदा कुछ जगह भाजपा को हो सकता है । अजित सिंह अपने गढ़ में मजबूत है पर उम्मीदवार को लेकर लोकदल भी दिक्कत का सामना करती नजर आई है । इस बार बहुजन समाज पार्टी को नुकसान हो जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए जबकि समाजवादी पार्टी इस अंचल में कुछ सीटों फायदा हो सकता है ।
यही हाल सहारनपुर का रहा । मुस्लिम वोटों को लेकर जिस तरह का माहौल बना उससे कई इलाकों में ध्रुवीकरण हुआ है । यही वजह है कि मायावती को सब्र तोड़ते हुए आज कहना पड़ा कि भाजपा अफवाह फैला कर मुस्लिम समाज को भ्रमित कर रही है कि सपा अब पहले व भाजपा दूसरे नम्बर पर है। इससे इस अंचल में चुनाव के रुख का कुछ अंदाजा तो जरुर लगाया जा सकता है । गठबंधन का फायदा कांग्रेस को जरुर मिलने जा रहा है पर सपा जिसके पास खोने को कुछ नहीं ही उसे जो भी मिला राजनैतिक मुनाफा ही माना जाएगा और खोने वाली पार्टी बसपा नजर आती है । jansatta

Monday, February 27, 2012

टीम अन्ना के सदस्य पर हत्या समेत १६७ मुक़दमे !

सुबह से टीम अन्ना के कई साथियों का फोन आया .साफ़ कर दूँ टीम अन्ना की कोर कमेटी के सदस्यों में अपने आंदोलन के कई पुराने समाजवादी साथी है जो जयप्रकाश आंदोलन में साथ रहे .टीम अन्ना के सदस्य संजय सिंह बोले -हम गोवा में है और अरविन्द केजरीवाल आने वाले है उनसे उन मुद्दों पर बात होनी है जो आपने आज जो लिखा है उसमे सवाल तो सही है पर संसद की भूमिका पर बहस होनी चाहिए जिसने कई जन विरोधी और विवादास्पद बिल पास किए .मेरा जवाब था -इसी संसद ने इंदिरा गाँधी को सत्ता से बेदखल किया और इण्डिया शाइनिंग वाले अटल विहारी वाजपेयी को .पर इस पर बाद में बात होगी .एक रोचक जानकारी आप सभी के लिए जो संसद और विधान सभा की शुचिता के लिए चिंतित है .जो लोग भी आन्दोलन और राजनैतिक जीवन में होते है उनके खिलाफ बहुत से आपराधिक मामले होते है .केजरीवाल के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आन्दोलन करने वाले मध्य प्रदेश विधान सभा के पूर्व विधायक सुनीलम पर किसान आन्दोलन के दौरान हुई हिंसा जिसमे दो दर्जन किसान और एक पुलिस वाला मारा गया था बहुत से मुकदमे हुए जिसमे हत्या का भी आरोप लगा .उनपर आंदोलनों के चलते १६७ मुक़दमे है और टीम अन्ना के सदस्य भी है .अपने मित्र है और पिछले दिनों उनके आंदोलन की कवरेज के लिए महाराष्ट्र भी गया .मेधा पाटकर भी साथ थी और मंच से इन दोनों लोगो ने मेरे लेखन की तारीफ़ की थी चितरंजन सिंह भी साथ थे .आज जो लिखा वह टीम अन्ना के कुछ मित्रों को ठीक नहीं लगा .पर तर्कों से वे सहमत थे खुद संजय सिंह ने कहा ,मेरे ऊपर १७ मुक़दमे है गुंडा एक्ट भी लगा है इसलिए मुक़दमे से अपराधी नहीं माना जा सकता .संजय सिंह से अपन ने भी कहा आज नहीं दो दिन रुके फिर लिखा जाएगा और आपका पक्ष भी रहेगा .
अम्बरीश कुमार

जन संगठनों ने पूछा -क्या है संसदीय लोकतंत्र का विकल्प बताएं केजरीवाल


गाँधीवादी संगठनों ने किया किनारा तो किसान संगठन विरोध में उतरे
अंबरीश कुमार
लखनऊ फरवरी । उतर प्रदेश के विधान सभा चुनाव ख़त्म होने से ठीक पांच दिन पहले टीम अन्ना सुर्ख़ियों में दिखी पर जिस बयान को लेकर चर्चा में आई उसका सबसे तीखा विरोध जन संगठनों खासकर महिलाओं ,नौजवानों और किसानों के बीच काम कर रहे कार्यकर्ताओं के साथ बुद्धिजीवियों ने किया है ।केजरीवाल ने संसद को अपराधियों का अड्डा बताया था । इन संगठनों ने पूछा है कि टीम अन्ना के पास संसदीय लोकतंत्र का विकल्प क्या है । दूसरी तरफ जयप्रकाश आंदोलन और गांधीवादी विचारकों ने इस मुद्दे पर टीम अन्ना के एक सदस्य अरविंद केजरीवाल की राय से अपने को पूरी तरह अलग करते हुए साफ़ कर दिया है कि देश में यही संसद रहेगी जरुरत चुनाव सुधारों के जरिए इनका चरित्र बदलने की है । गौरतलब है अगस्त आंदोलन के बाद लगातार कांग्रेस को धमकाने वाले अन्ना हजारे कई घोषणाओं के बाद भी उत्तर प्रदेश नहीं आए । दूसरी तरफ चुनाव सुधारों का राग अलापने वाली टीम अन्ना ने माफिया और बाहुबलियों के किसी भी विधान सभा क्षेत्र में न तो कोई मोर्चा खोला और न घुसी । उदाहरण है मुन्ना बजरंगी से ले कर बाहुबली धनंजय सिंह और मुख़्तार अंसारी का इलाका । मुस्लिम महिलाओं में काम करने वाली संस्था तहरीके निसवां की अध्यक्ष ताहिरा हसन ने कहा -जमीन पर लड़ने और मीडिया के जरिए आंदोलन चलने में बहुत फर्क होता है । यहाँ रोज धमकी ,हमला और मुकदमा झेलना पड़ता है । यह तो जमीन पर आते नहीं और संसदीय लोकतंत्र के खिलाफ जिस तरह आग उगल रहे है वह जाँच का विषय है । विश्व बैंक और फोर्ड फ़ाउंडडेशन किस तरह कुछ एनजीओ के जरिए एशियाई देशों में मूल सवालों से हटाकर नए मुद्दों को उठा रहा है वह बहुत गंभीर बात है । केजरीवाल उन्ही ताकतों के हाथ में खेल रहे है । सर्व सेवा संघ के संयोजक और अन्ना आंदोलन के प्रमुख नेता राम धीरज ने कहा -संसद तो यही रहेगी इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता । चुनाव सुधार लागू कर इसका चरित्र बदला जाना चाहिए जैसे लोक उम्मीदवार खड़ा कर । इसके अलावा गांधी शब्दों की हिंसा के भी खिलाफ दे यह बात सभी को समझनी चाहिए । दूसरी तरफ राजनैतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर प्रमोद कुमार ने कहा ,टीम अन्ना शत प्रतिशत ईमानदार हो सकती है पर सौ फीसद नासमझ है यह इकी टिपण्णी से साफ हो गया । इन्हें पता नहीं यह कह क्या रहे है ।
साझी दुनिया संगठन की सचिव और लखनऊ विश्विद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर रूप रखा वर्मा ने कहा - अन्ना हजारे और उनकी टीम शरू से ही इस देश में एक अच्छी नियत के तानाशाह की वकालत कर रहे है । इन्हें यह ग़लतफ़हमी हो गई है कि सिर्फ ये ही भारत को सुधार सकते है । ठीक वैसे ही जैसे जर्मनी में हिटलर को यह ग़लतफ़हमी हो गई थी । ये कौन है और किसने इन्हें यह अधिकार दे दिया है जो यह संसदीय लोकतंत्र की जड़ खोद रहे है यह जाँच का भी विषय है । दूसरी तरफ किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -नौजवान से लेकर किसान तक की लड़ाई हम लोग लड़ रहे है । मुकदमा झेल रहे है कई किसान मारे गए तो कई जेल गए पर यह टीम अन्ना जिसने न कभी दो लाठी खाई और न चार दिन जेल में रहे ,ये है कौन यह तय करने वाले कि संसद कैसी होगी । ये लोग विदेश से मिलने वाले पैसे से एनजीओ चला रहे है और क्रांति करने की ग़लतफ़हमी पाले हुए है । सिर्फ इसलिए कि मीडिया का एक तबका इनका समर्थन करता है जिसने कभी किसी आंदोलन का समर्थन नहीं किया । नौजवानों और छात्रों के बीच तीन दशक से काम करने वाले इलाहबाद विश्विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा -समाज की विभिन्न ताकतों का प्रतिनिधित्व संसद में होता है उसका चरित्र बदलने के लिए रोजगार ,खेती ,उत्पादन आदि का सवाल उठाकर नौजवानों किसानो को लामबंद कर एक आंदोलन छेड़ना होगा । सिर्फ प्रलाप करने से संसद का चरित्र नहीं बदल जाएगा,दुर्भाग्य यह है कि टीम अन्ना देश के बुनियादी सवालों से पूरी तरह कटी हुई है ।
किसान संगठन से जुड़े बृजेश राय नेकहा - उत्तर प्रदेश में किसानो का आंदोलन लाठी गोली से दबाया गया । बहुत से लोग दमन का शिकार हुए पर कभी यह टीम अन्ना झाँकने नहीं आई । संसद में जो लोग जाते है वे गांवों से लेकर कसबे शहर तक वोट से चुने जाते है ।चुनाव तक तो यह टीम अन्ना कही नजर नहीं आई अब जब चुनाव निपटने के करीब आया तो इन्हें अपराधी याद आ गए बेहतर होता चुनाव में कुछ प्रयोग कर दिखाते । अब समय आ गया है कि इस सिविल सोसायटी के खिलाफ खड़ा हुआ जाए । किसान यूनियन अम्बावत के ऋषिपाल ने कहा - यह टीम अन्ना क्या चाहती है इसे साफ़ कर देना चाहिए । कौन सी व्यवस्था होगी जिससे अपराधी किस्म के लोग न चुने जाए यह तो बताना ही चाहिए ।फिर जब अभियान चलने का मौका था तो भाग खड़े हुए ,वरना बाहुबलियों के इलाके में आकर विरोध करना चाहिए था तब समर्थन भी मिलता ।राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -अन्ना के आंदोलन को उनकी टीम के कुछ लोगों के अहंकार ने ही ख़त्म कर दिया है और यह ध्यान रखे कोई आंदोलन जब ख़त्म होता है तो दोबारा नहीं उठ पाता ।
जनसत्ता

Sunday, February 26, 2012

घटती भाजपा पश्चिम की कई सीटों पर बढ़ रही


अंबरीश कुमार
लखनऊ फरवरी । उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सीटों के पुराने आंकड़े में घट रही है पर कई नई सीटों बढ़ भी रही है ।जिसके चलते भाजपा पुरानी पचास सीटों से आगे बढ़ सकती है । पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई जिलों से भाजपा की बढ़त की जानकारी आ रही है । बुंदेलखंड के बाद इः अंचल भी भाजपा को संजीवनी दे सकता है । बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चलते ही भाजपा आगे बढ़ सकती है ।पुराना आंकड़ा तो चुनाव से पहले ही घट चूका है ।सहारनपुर ,मुजफ्फरनगर ,बिजनौर मेरठ और बरेली जैसे कई जिलों से बहुत सी नई सीटों पर भाजपा के मुकाबले में आने की खबर है । पर इसका श्रेय प्रदेश भाजपा का नेतृत्व करने वाले सूर्य प्रताप शाही के प्रताप को नहीं जाता बल्कि पार्टी के नेता इसके लिए कांग्रेस नेताओं के मुस्लिम संबंधी बयानों और मुस्लिम वोटों के बंटवारे को मुख्य वजह बता रहे है । चारों राजनैतिक दलों में सबसे ज्यादा भितरघात ,अंतर्कलह और और विवाद सिर्फ भाजपा में ही हुआ । वह भाजपा जिसने कुल पचास सीते जीती और पार्टी के नेता वरुण गांधी के मुताबिक मुख्यमंत्री पद के पचपन उम्मीदवार है । खास बात यह भी है कि वरुण गाँधी और मेनका गाँधी के इलाके में पार्टी के बड़े नेताओं ने कोई दिलचस्पी भी नहीं ली तो ये दोनों नेता भी कही बाहर नहीं निकले । परत्यय में वरुण गाँधी के खिलाफ जो खेमा है उसका यह भी आरोप है कि पीलीभीत में दूसरे दलों के मुस्लिम उम्मीदवारों का रास्ता रोकने की कोई ठोस पहल इसलिए भी नहीं की गई ताकि वे जीते और लोकसभा के चुनाव में हिदू वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा ज्यादा हो । इसका राजनैतिक संकेत बहुत साफ है ।
भाजपा पिछली बार जो पचास सीट जीती थी उसमे करीब आधी इस क्षेत्र की है जहाँ अब चुनाव होने जा रहा है । पर इस बार जिस तरह मुस्लिम वोटों के लिए कांग्रेस आक्रामक हुई और मुस्लिम आरक्षण और बाटला आदि का मुद्दा उठाया उससे उन इलाकों में भाजपा के पक्ष में भी ध्रुवीकरण हुआ जहाँ मुस्लिम आबादी ज्यादा है और कई जगह टकराव का पुराना इतिहास है। ऐसे एक तरफ जहाँ कई जगह सपा ,बसपा और कांग्रेस में मुस्लिम वोट बाँट रहा है वहा फायदा भाजपा ले जा रही है । बरेली में भाजपा इस बार सभी सीटों पर मुकाबले की लड़ाई में है । बरेली से शंकरदास के मुताबिक मुस्लिम वोटों के बंटवारे में इस बार मौलाना तौकीर रजा की पार्टी इत्तहादे
मिल्लत कौंसिल ज्यादा हिस्सा खींच रही है जिसका अप्रत्यक्ष फायदा भाजपा को मिल रहा है । मिल्लत के नेता मुस्लिम समुदाय की नुक्कड़ सभाओं में वोट के लिए कसमे तक खिला रहे है । हालाँकि पहले ये कांग्रेस के साथ खड़े हो रहे थे पर मामला बिगड़ गया और अब ये कांग्रेस को निपटा रहे है । दूसरी तरफ पीलीभीत में इस बार भी मजहबी ध्रुवीकरण पर वोट पड़ना है और अगर वरुण गाँधी ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन ठीक से किया तो वहा तस्वीर बदल सकती है । पर यह ही कहा जा रहा है कि वरुण गाँधी की चिंता लोकसभा की ज्यादा है विधान सभा की कम ।
यह वह इलाका भी है जहा समाजवादी पार्टी भी काफी उम्मीद लगाए हुए है तो कांग्रेस भी । कुछ सीटों पर जहाँ कांग्रेस ने अच्छे उम्मीदवार दिए है जैसे बदायूं जैसे कुछ जिलों में वहा पार्टी को फायदा हो सकता है । समाजवादी पार्टी के सबसे तेज तर्रार नेता आजम खान भी इस अंचल में न सिर्फ खुद लड़ रहे है बल्कि लड़ा भी रहे है । पार्टी ने उन्हें प्रचार के लिए अलग से हेलीकाप्टर दिया है जिससे वे कई विधान सभा क्षेत्रों में सपा के पक्ष में माहौल गर्म कर चुके है । पर अभी भी इस समूचे इलाके में समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा मुलायम सिंह ही माने जा रहे है और भाजपा बढ़ी तो सपा भी पीछे नहीं रहने वाली । अंतिम समय पर यहाँ जो ध्रुवीकरण होगा वह पुराना सारा समीकरण बिगड़ देगा । सहारनपुर से सुरेंद्र सिंघल के मुताबिक सहारनपुर ,मुजफ्फरनगर ,बिजनौर और प्रबुद्ध नगर आदि की कई नई सीटों पर भाजपा उम्मीदवार मुकाबले में आ चुके है । इसलिए भाजपा के बारे में अब कई जगह लोगों की राय बदल रही है । बिजनौर की एक सीट पर भी यही दिख रहा है । इसी तरह शामली ,कैराना ,पुरकाजी और थाना भवन जैसी सीटों पर भाजपा मजबूती से लडती नजर आ रही है । jansatta

जहां बाघ के बच्चे दरवाजा खटखटाते है


सविता वर्मा
कतरनिया घाट (भारत-नेपाल सीमा)। घने जंगलों के बीच करीब पंन्द्रह किलोमीटर चलने के बाद हम जंगलात विभाग के निशानागाहा गेस्टहाउस पहुंचे। यहां बिजली नहीं है और पानी भी हैंडपंप का। दो मंजिला गेस्टहाउस के बगल में रसोई घर है जिसका रसोइया शाम होते ही सहमा-सहमा नजर आता है। घर बगल में ही है जहां एक-दो कर्मचारी और रहते हैं। पर उसके डर की वजह है बाघ के शैतान बच्चे। पता नहीं उसका भ्रम है या हकीकत। पर बाघ के इन बच्चों के आधी रात को दरवाजा थपथपाने से भयभीत रहता है। कतरनिया घाट वन्य जीव अभ्यारण के रेंजर ने बताया कि बाघ शाम से ही इस क्षेत्र में विचरण करने लगते हैं। अंग्रेजों के बनाए निशानगाढ़ा गेस्टहाउस का नज़ारा उस जमाने के नबाबों राजओं के शिकारगाह से मिलता-जुलता है। जिसके चारों ओर घने जंगल हैं और जानवरों और पक्षियों की अजीबो-गरीब आवाज सन्नाटें को तोड़ती रहती है। नीचे का बरामदा लोहे की ग्रिल से पूरी तरह बंद नजर आता है। पूछने पर पता चला कि यह बड़े जानवरों से हिफ़ाजत का इंतजम है। शाम के बाद गेस्टहाउस के आसपास निकलना भी जोखिम भरा माना जता है। जंगलात विभाग के रेंजर हमें रात में जंगल का एक दौरा वन्य जीव से कराने के लिए कह रहे थे। पर दिन भर नेपाल की गेरुआ नदी और कतरनिया घाट के जंगलों में घूम-घूम कर हम थके हुए थे इसलिए उनका अनुरोध निम्रता से ठुकरा दिया। दरअसल हमें रुकना कतरनिया घाट के गेस्टहाउस में था हीं भोजन आदि की व्यस्था थी। पर कतरनिया घाट के गेस्टहाउस को देख बेटे अंबर ने कहा, यहां की टूटी खिड़कियों से तो कोई भी जानवर भीतर आ सकता है। और आसपास बाघों से लेकर अजगरों तक का इलाका है। बात सही थी। जिसके बाद हमने डीएफओ रमेश पांडेय को सूचित किया। जिसके बाद हमें दूसरे अति विशिष्ट गेस्टहाउस निशानगाढ़ा में ठहराने की कायद शुरू हुई। खास बात यह है कि कतरनिया घाट तक पहुंचते-पहुंचते सभी तरह के मोबाइल बंद हो जते हैं। घने जंगलों में अत्याधुनिक संचार कंपनियों के कोई भी टार तक नहीं हैं। आसपास कई किलोमीटर तक टेलीफोन विभाग की लाइनें भी नहीं हैं। जंगल का प्रशासन यहां वायरलेस से चलता है और किसी अतिथि के आने पर उसके आने-जने रुकने के साथ भोजन नाश्ते की मीनू की व्यस्था भी अग्रिम होती है। जह मीलों दूर तक कोई बाजर नहीं है। सभी बंदोबस्त पहले से करना पड़ता है। बहरहाल गेस्टहाउस बदलने में हमें दिक्कत नहीं आई और हमें बताया गया कि निशानगाढ़ा गेस्टहाउस में कमरा बुक कर दिया गया है। चूंकि पहले से ही हमने नेपाल से निकलने वाली गेरुआ नदी के किनारे रुकने का मन बनाया था। इसलिए कतरनिया घाट का गेस्टहाउस बुक था। साथ ही दिनरात के भोजन और नाश्ते की व्यस्था भी जंगलात विभाग में कतरनिया घाट में ही की थी। पर जब हमने सुरक्षा की दृष्टि से निशानगाढ़ा जने की जिद्द की थी तो उन्होंने रास्ता बता दिया। अंधेरा घिर रहा था और हम जल्द से जल्द निशानगाढ़ा पहुंचना चाहते थे। कुछ भटकने के बाद हम अंतत: जंगल के बीच प्राचीन शिकारगाह की तर्ज पर बने इस गेस्टहाउस तक पहुंच गए। हालांकि पहुंचने पर पता चला कि निशानगाढ़ा गेस्टहाउस के स्टाफ को वायरलेस से हमारे कार्यक्रम की अग्रिम सूचना नहीं मिली थी। तभी गेस्टहाउस के एक कोने में बीएसएनएल के मोबाइल में सिग्नल नजर आया तो हमने एसडीओ को यहां पहुंचने की क्षला दी। पर आते-जते सिग्नल के व्यधान से बातचीत पूरी नहीं हो पाई। खैर, कुछ देर आराम करने के लिए बैठे तभी रेंजर अन्य कर्मचारी आ पहुंचे। बताया कि आज ही जपान से आकर एक प्रतिनिधि मंडल जो यहां रुका था लौट गया है। जिसके बाद रसोइया भी जंगल से बाहर चला गया है। इसलिए भोजन यहां नहीं बन सकता है और हमें फिर कतरनिया घाट वापस जना होगा। साथ ही रात में कुछ ऐसे ट्रैक भी हैं जिन पर बाघ दिख सकता है। पर थके होने की जह से हम तैयार नहीं हुए तो उन्होंने जीप भेजकर कतरनिया घाट के गेस्टहाउस से ही खाना पैक करा कर मंगाने का इंतजम किया। जंगल के इस शिकारगाहनुमा इस गेस्टहाउस में जंगलात विभाग का ठेठ ब्रिटिश शैली का डिनर अलग अनुभव वाला था। इससे पहले कतरनिया घाट पहुंचते ही हम जंगल के भीतर चले गए। थोड़ी ही दूर जने पर हिरनों के झुन्ड नजर आने लगे तो पास ही अजगरों के रिहाइश के इलाके कतरनिया घाट के घने जंगलों में जंगली जनरों की बहुतायत है। तो छिटपुट अवैध शिकार के प्रयास भी जरी रहते हैं। कतरनिया घाट से गेरुआ नदीं पर बने पीपे के पुल से दिन में नेपाल की तरफ जाने वाले मिल जते हैं। तो देश के अंतिम छोर पर बसे गांव के लोग भी इसी पुल का सहारा लेते हैं। चारों तरफ हरियाली है तो गेरुआ नदी के साफ और नीले पानी में कई टापू नजर आते हैं। इन टापुओं पर मगरमच्छों का राज है। दूर से ही टापुओं की सफेद रेत पर आराम फरमा रहे मगरमच्छों की कतार नजर आती है। दूसरी तरफ प्रासी पक्षियों की भिन्न किस्में। इनमें सुनहरे सुरखाब को देखकर कोई भी अभिभूत हो सकता है। ये ही सुरखाब हैं जिनके चलते सुरखाब के पर वाली कहात मशहूर हुई है। एक तरफ मगरमच्छ, घड़ियाल, सुर खाब प्रासियों की पक्षियों की दुर्लभ प्रजतियां यहां नजर आती हैं तो दूसरी तरफ नदी में डाल्फिन मछली का नृत्य भी देखा जा सकता है। सूर्यास्त होते ही पीपे के पुल के किनारे डाल्फिन मछलियों के खेल का समय भी शुरू हो जता है। यहां डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सौजन्य से चु्निदा पर्यटकों के लिए कुछ विशेष सुविधाए भी दी गई हैं। इनमें वे मोटरोट भी शामिल हैं जिन पर सार होकर हम मगरमच्छ और घड़ियालों के टापुओं तक पहुंचे और सुरखाब के दर्शन किए। अचानक मोटर वोट चला रहे कर्मचारी ने कहा, हम आपको जंगल के भीतर ले चलते हैं जहां गेरुआ नदी बैक वाटर की तरह काफी दूर तक चली गई है। इसके साथ ही हम बेत के जंगलों में जते गेरुआ नदी के पानी के साथ आगे बढ़ने लगे। यहां का दृश्य अंडमान निकोबार की याद दिलाता है।
पानी के किनारे बेत की घनी झाड़ियाँ हैं। इन बेतों को पकड़ने पर उनके तीखे कांटे के चुभने का डर जरूर होता है। पर इन्हीं ङाड़ियों के बीच अक्सर शाम को बाघ पानी पीता नजर आता है। तो हाथियों के झुंड भी खेलते हुए नजर आ सकते हैं। अजगरों के लिए तो यह पूरा इलाका ही उनका प्राकृतिक बसेरा माना जता है। गेरुआ नदी में जगह-जगह पर उसका पानी बड़ी नहर के रूप में जंगल के भीतर तक चला जता है। केरल के बैक वाटर की तरह यहां न तो कोई हाउसोट है न ही पर्यटकों के लिए आास की कोई सु्विधा। यहां तो जंगलात विभाग के कर्मचारी आपको जंगल की सैर कराकर वापस गेस्टहाउस पहुंचा देते हैं। कतरनिया घाट वन्य जीव अभ्यारण के घने जंगल देखने वाले हैं। इसे अगर सीमित ढंग से ही चुनिन्दा पर्यटकों के लिए विकसित किया जए तो यह किसी भी वन्य जी्व अभ्यारण से ज्यादा राजस्व दे सकता है। लखनऊ से करीब दो सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस अभ्यारण में पर्यटकों की आवाजही बहुत कम हैऔर सुविधाए नहीं के बराबर। दो थारू हट है और एक पुराना गेस्टहाउस है जो अंतरराष्ट्रीय विशषज्ञों से खाली होता है तो अफसरों और नेताओं से घिर जाता है। महत्पूर्ण तथ्य यह है कि कतरनिया घाट वन्य जी्व अभ्यारण प्राकृतिक खूबसूरती और जंगली जानवरों की लिहाज से सरिस्का वन्य जी्व अभ्यारण जसे मशहूर अभ्यारण पर भारी बैठता है। पर एक तरफ सरिस्का जहां पर्यटन के राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर अपनी पहचान बना चुका है हीं उत्तर प्रदेश के इस अभ्यारण के बारे में लोगों को बहुत कम जनकारी है।
सविता वर्मा ,जनादेश से

Saturday, February 25, 2012

चुनाव नही ,चुनाव आयोग से लड़ रही है है कांग्रेस


रात बारह बजे भी प्रधानमंत्री बन सकते है राहुल -जायसवाल
अंबरीश कुमार
लखनऊ फरवरी । उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इस बार जो भाषा बोली गई और केंद्रीय मंत्रियों ने जो आचरण दिखाया वह कांग्रेस की नई आचार संहिता के रूप में देखा जा रहा है । इस भाषा और कांग्रेस के केंद्रीय मंत्रियों के आचरण ने इस चुनाव को चुनाव आयोग बनाम कांग्रेस में बदल दिया है ,यह आरोप समूचे विपक्ष का है । कानपुर में केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के बयान पर कि कांग्रेस की सरकार नही बनी तो राष्ट्रपति शासन लगेगा ,चुनाव आयोग ने इसे गंभीर मामला मानते हुए उन्हें जो नोटिस दिया उसका अभी जवाब नहीं दिया गया है । इस बीच आज फिर केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने मथुरा में यह कहकर हलचल तेज कर दी कि राहुल गांधी रात बारह बजे भी प्रधानमंत्री बन सकते है । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रहते हुए उन्ही के मंत्रिमंडल का एक मंत्री इस तरह का बयान देकर किसकी गरिमा गिरा रहा है यह साफ़ है ।विपक्ष ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि हारती हुई कांग्रेस ने लोकतंत्र को मजाक बना दिया है । इस संवाददाता ने कई चुनाव देखे लेकिन पहला चुनाव इस तरह का नजर आया जिसमे कांग्रेस के शीर्ष नेता अलग भाषा बोल रहे है । राहुल गांधी लगातार दो सरकारों को गुंडों और चोरों की सरकार बता रहे है । यह बात अलग है कि कामनवेल्थ से लेकर टू जी घोटाले में केंद्र सरकार पर वह कोई टिपण्णी नहीं करते ।पर समूची सरकार को गुंडा और चोरों की सरकार बताना कुछ अटपटा लग रहा है । इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील सतीश शुक्ल ने कहा -कानून में गुंडा और चोर की परिभाषा तय है यदि उस दायरे में कोई नेता आता है तो उसके खिलाफ कार्यवाई होती है ऐसे में इन शब्दों का इस्तेमाल समूची सरकार के लिए किया जाना समझ से परे है । यही वजह है कि विपक्ष इसे चुनाव में कांग्रेसी आचरण की नई आचार संहिता बता रहा है ।ऐसा लग रहा है मानो कांग्रेस चुनाव आयोग से दो दो हाथ कर रही हो । आज कांग्रेस नेताओ के बयान पर समाजवादी पार्टी ,बसपा ,भाजपा और भाकपा ने पुरजोर विरोध दर्ज कराया । भाकपा नेता अशोक मिश्रा ने कहा -हम १९६७ से चुनावों को देख रहे है पर यह भाषा कभी नहीं देखी जो कांग्रेसी बोल रहे है । कांग्रेस ने समूचे उत्तर प्रदेश पर राजनैतिक कब्जे की जो योजना बनाई ,हवा बनाई वह तो ध्वस्त हो गई । अब हताश निराश कांग्रेसी अपनी खिसियाहट दिखा रहे है । इसका जवाब और कोई नहीं उत्तर प्रदेश की जनता देने जा रही है ।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -कांग्रेस के नेता और मंत्री यहाँ तक कि राहुल गांधी जो भाषा बोल रहे है उसने पूरे चुनाव की मर्यादा तार तार कर दी है। कांग्रेस लगता है राजनैतिक भाषा भूल गई है,इस बार तो लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी चुनाव आयोग से ही लड़ रही है । चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसकी गरिमा तोड़ी जा रही है । इनके मंत्री क्या बोल रहे है उन्हें पता ही नहीं । कोई एक प्रधानमंत्री के रहते आधी रात में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का एलान करता है तो कोई धमकता है कि कांग्रेस को वोट दो नहीं तो राष्ट्रपति शासन लग जाएगा । शर्मनाक तो यह है कि सब बाद में मुकर भी जाते है ,बेनी, सलमान और जायसवाल यह कर चुके है पर इनका जवाब जनता देगी ।
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कहा -कांग्रेस इस चुनाव में विभिन्न प्रकार की साजिशें रच कर जनता को भ्रमित कर रही है। कांग्रेस पार्टी अब पूरी तरह से निराश और हताश हो चुकी है। इसीलिए उनके नेतागण उल-जलूल बयान बाजी कर रहे हैं। कांग्रेस को अब यह पूरी तरह आभास हो चला है कि इस चुनाव में वह परास्त हो चुकी है, इसीलिए बौखलाकर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की बेहूदी बातें अभी से ही करने लगे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता पहले ही कांग्रेस को खारिज कर चुकी है और अब तो उसके नेतागणों ने भी इसे स्वीकार कर लिया।भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -श्रीप्रकाश जायसवाल रात में बारह बजे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाकर क्या संदेश देना चाहते है । जब एक प्रधानमंत्री कम कर रहा हो तो उसी के मंत्रिमंडल का एक सहयोगी इस तरह की बात कर अपनी ही सरकार का मजाक उड़ा रहा है ।आज मथुरा में जायसवाल ने यह बयान देकर साफ़ कर दिया कि न तो उन्हें लोकतंत्र की कोई चिंता है न चुनाव आयोग की ।उनके एक बयान पर चुनाव आयोग नोटिस दे चूका है पर उनके आचरण में कोई बदलाव नजर नहीं आता । इससे यह सभी को लग रहा है कि कांग्रेस डरा धमका कर चुनाव तो लड़ रही है साथ ही चुनाव आयोग से भी लड़ रही है ।jansatta

Friday, February 24, 2012

मुस्लिम वोटों के लिए पश्चिम में कांग्रेस का रास्ता आसन नहीं


अंबरीश कुमार
लखनऊ , फरवरी। छठे और सातवें चरण के चुनाव के लिए मुसलमान खुद एजंडा बन गया है । इस दौर में कुल १२८ सीटों पर चुनाव होना है जिसमे पश्चिम के मुस्लिम बहुल इलाके शामिल है। पर सारे हथकंडे अपनाने के बावजूद कांग्रेस मुसलमानों की पहली पसंद नहीं बन पा रही है। जिस तरह पूर्वांचल में बाटला कांड का मुद्दा कांग्रेस को भरी पड़ा उसी तरह सच्चर की सिफ़ारिशो से लेकर पिछड़ों में अल्पसंख्यकों के साढ़े चार फीसद आरक्षण का मुद्दा पार्टी के लिए मुसलमानों का वह समर्थन जुटा नहीं पा रहा है जिसकी अपेक्षा थी । इसके चलते कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने बहुत आक्रामक ढंग से मुसलमानों का सवाल उठाया । राहुल गाँधी से लेकर सलमान खुर्शीद तक । आज सोनिया गाँधी ने भी मुरादाबाद की सभा में कहा कि विरोधियों के प्रचार से अखलियत के लोगों को गुमराह नहीं होना चाहिए । कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया । उन्होंने सच्चर कमेटी का भी नाम लिया पर मुसलमानों को लेकर कांग्रेस की चिंता दिख रही है । वजह की तरफ इशारा करते हुए आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा -कांग्रेस अभी भी मुसलमानों को सत्तर के दशक का मुस्लमान समझ रही है जो उसके रहमो करम पर था । चालीस साल में मुसलमानों को नई नस्ल सामने है जो रहम नहीं अधिकार चाहती है । सात साल से ज्यादा समय से केंद्र की सरकार को भले यह लगे उसने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया पर मुसलमान यह मानने को तैयार नहीं और जो खबरे पश्चिम से आ राही है उसके मुताबिक पूर्वांचल की तरह यहाँ भी कांग्रेस की तरफ मुसलमानों का झुकाव बहुत कम है ,अपवाद चार पांच सीटें है । जिलानी की तरह पश्चिम के कुछ मुस्लिम नेता भी यह मान रहे है कि कांग्रेस बीते लोकसभा के चुनाव को लेकर ग़लतफ़हमी में है । बहुत कुछ बदल गया है ।
अलीगढ़ विश्विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष हाफिज उस्मान ने कहा - मुसलमानों को राजनैतिक दल नासमझ मान लेते है जिसमे कांग्रेस सबसे आगे है । साढ़े चार फीसद आरक्षण वह भी चुनाव से चंद दिन पहले क्या इस तरह के झांसे में लोग आ जाएंगे । बाटला कांड में एक नेता निंदा करता है तो गृह मंत्री चिदंबरम उस कांड की कार्यवाई का समर्थन करते है जिसके चलते पूर्वांचल में मुस्लिम नाराज भी हुआ और उसने कांग्रेस का विरोध किया । पश्चिम में भी यही होने जा रहा । क्या मुसलमान भूल गए है कि बाबरी मामले पर इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले से जब मुसलमान निराश था तब कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष जीत का जश्न मनाती नजर आई थी । इन दो टिपण्णी से मुस्लिम बिरादरी का मिजाज समझा जा सकता है । खुद इस संवाददाता ने आजमगढ़ ,गाजीपुर .जौनपुर जैसे कई मुस्लिम बहुल इलाकों का दौरा किया तो भी कांग्रेस के पार्टी कही पर भी पूरा समर्थन नहीं दिखा । मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी की तरफ था तो उसके बाद कांग्रेस का नंबर था । आजमगढ़ में तो बाटला कांड पर कांग्रेस की सियासत से मुस्लिम नौजवान बहुत नाराज थे ।आजमगढ़ में बीस साल के नौजवान रिजवान ने कहा -बाटला का मुद्दा आजमगढ़ और आसपास ज्यादा प्रभाव डाल रहा था पर कांग्रेस ने उसे प्रदेश व्यापी बना दिया इसका नुकसान उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उठाना पड़ जाए तो हैरान नहीं होना चाहिए ।
दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का बड़ा हिस्सा उन मुलायम सिंह से नाराज था जिन्होंने मंदिर आंदोलन के नायक कल्याण सिंह को आगरा के सम्मलेन में समाजवादी लाल टोपी पहना दी थी । यह सब हुआ था पिछड़ों का एक बड़ा वोट बैंक तैयार करने के लिए पर कल्याण सिंह से मुसलमानों की नाराजगी मुलायम सिंह पर फूटी । जिसमे आजम खान ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी । अब हालात अलग ही नहीं है मुलायम सिंह की नई भूमिका पर भी समर्थन मिल रहा है । कल्याण सिंह की समाजवादी टोपी उतर चुकी है और वे फिर अपने पुरानी एजंडा और लोध राजनीति की तरफ जा चुके है । दूसरे बाबरी ध्वंस पर जब इलाहबाद हाई कोर्ट का संपति बांटने के तर्ज फैसला आया तो मुलायम सिंह पहले नेता था जिहोने कहा था - इस फैसले से मुसलमान ठगा हुआ महसूस कर रहा है । यह बयान तब आया जब कांग्रेस मुख्यालय में जश्न वाला माहौल था और तब जफरयाब जिलानी ने कहा था -कांग्रेस के लोग भूल जाए पर मुसलमान इस जश्न को याद रखेगा ।
मुसलमानों को लेकर कांग्रेस पर हमला करने में मायावती भी पीछे नहीं है । आज की जनसभा में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह पार्टी पिछड़ा वर्गों के लिए आवंटित 27 फिसद के आरक्षण में से नौ फिसद आरक्षण का लालच मुस्लिम समाज को देकर उनके वोट हासिल करने की साजिश रच रही हैं। इसके साथ ही वह पिछड़े समाज और मुस्लिम समाज को भी आपस में लड़ाना चाहती है। jansatta

मुस्लिम वोटों की लड़ाई सिर्फ सपा और बसपा में



सहारनपुर से रोमा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के छटे और सातवें चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुल 127 सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं , यह दौर सरकार बनाने में एक निर्णायक भूमिका अदा करेगा। इन 127 सीटों में से कम से कम 30 ऐसी विधान सभा सीटें हैं, जहां पर मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 से 45 फीसदी तक है। साथ ही प्रदेश का यह पश्चिमी क्षेत्र दलित बहुल्य इलाका भी है। यही मुस्लिम मतदाता इस चुनाव में आगामी सरकार बनाने में एक अहम् भूमिका निभाएगें। गौर तलब है कि इस बार भी मुस्लिम मतदाता के ऊपर एक ऐसी सरकार चुनने की जिम्मेदारी है, जो कि साम्प्रदायिक शक्तियों को चुनौती दे सके। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि 80 और 90 के दशक में यह क्षेत्र भारी दंगों की गिरफ्त में रहा है। जिसमें पसमांदा मुस्लिम समाज ने बहुत तकलीफें झेली हैं। इसलिए मुस्लिम समाज में एक खास वर्ग पसमांदा मुस्लिम समुदाय अपनी मांगों के लेकर काफी मुखर हो कर सामने आ रहा है। इस वर्ग पर ही कांग्रेस व भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों की अलग अलग कारण से नज़र है। चूंकि यह बात इन पार्टियों को अच्छी तरह से मालूम है कि अगर उत्तरप्रदेश की सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना है, तो मतों का ध्रुवीकरण होना बहुत ज़रूरी है, चाहे वो हिन्दु हों या फिर मुसलमान। यही वजह है कि मतों का धु्रवीकरण करने में यह राष्ट्रीय पार्टियां अपनी ओर से कोई कोर-ओ-कसर नहीं छोड़ रही हैं वो चाहे भाजपा उमा भारती का सहारा लेकर कर रही हों या फिर कांग्रेस द्वारा कूटनीतिक चाल के तहत साम्प्रदायिक छवि वाले नेताओं को साथ लेकर कर रहे हों।
लेकिन इस बार के चुनाव में यह संभव होता दिखाई नहीं दे रहा है। एक तो इस विस चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं को भाजपा का खौफ नहीं है। और दूसरे कम-अज़-कम मुस्लिम मतदाता तो कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी की नीयत को अच्छी तरह से समझता है। इसलिए कांग्रेस को भले ही यह खुशफहमी हो कि मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में उन्हें अपना मत देंगे पर ऐसी उम्मीद पर तो यही कहा जा सकता है कि ‘‘दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है‘‘। साम्प्रदायिकता से त्रस्त इन दोनों तबकों के गरीब वर्गों के मतों का ध्रुवीकरण करना इन राष्ट्रीय पार्टियों के लिए आसान नहीं ही है, बल्कि इसकी कोशिश मात्र करना भी इन पाटियों को काफी भारी पड़ सकता है।

इस विधान सभा चुनाव में मुस्लिम जनाधार पर अब तीन पार्टियों की दावेदारी है, बसपा, सपा और कांग्रेस। आज मुस्लिम जनाधार का मतदाता उनके समाज से जुड़े कई बुनियादी मुददों पर मुखर होकर बात कर रहा है। जिसमें पसमंदा मुस्लिम समुदाय जो कि मुस्लिम समुदाय में अति पिछड़े, दलित व अन्य ग़रीब तबकों से आते हैं, के मुददे अब राजनैतिक मुददे बनते जा रहे हैं । ज्ञात हो कि इसी समुदाय के सक्रिय सहयोग ने ही बिहार में नितिश सरकार को दो बार सत्ता में लाने का काम किया है। उत्तरप्रदेश के भी अगले चरण के चुनावों में यही तबका काफी महत्वपूर्ण है, जिसपर यह तीनों पार्टियां अपनी-अपनी दावेदारी कर रही हंै। विश्लेषण के दृष्टिकोण से इन तीनों पार्टियों की दावेदारी में फर्क करना निहायत ज़रूरी है और तीनों के जनाधार को अलग से देखना भी ज़रूरी है। दो दशक पहले की स्थिति को देखें तो मुस्लिम जनाधार सपा के पक्ष में साम्प्रदायिक शक्तियों को चुनौती देने के लिए ही शिफ्ट हुआ था, जो कि एक ज़माने में कांग्रेस का मज़बूत जनाधार था। लेकिन पिछले एक दशक से सपा के इस जनाधार में भी काफी गिरावट आई है, जिसकी वजह पिछले दो चुनावों में पिछड़ों की राजनीति के नाम पर सपा द्वारा कल्याण सिंह से अंदर ही अंदर गठजोड़ करना और वहीं दूसरी और मुस्लिम साम्प्रदायिक शक्तियों को आगे बढ़ावा देना, जिससे कई जगहों पर भाजपा को फायदा मिलना आदि शामिल है। आज कई मुस्लिम इलाकों में यह बात भी हो रही है कि अगर सपा की सरकार आई तो फिर से दंगे हांेगे। दूसरी और पिछले चुनावों में बसपा को इस मुस्लिम जनाधार का कुछ फायदा ज़रूर मिला था क्योंकि इस जनाधार में पसमंदा मुस्लिम समुदायों की संख्या काफी अधिक है। मुस्लिम जनाधार में बसपा की दावेदारी इस बार और भी मजबूत हुई है, चूंकि इन पांच सालों में उत्तरप्रदेश में साम्प्रदयिक दंगे नहीं हुए। और कुछ जगहों पर अगर छुट-पुट वारदात हुई भी हैं, तो उन को प्रशासनिक कड़ाई से संभाल लिया गया। साथ ही इन पांच सालों में सरकार ने पसमंदा मुस्लिम समुदाय को विकास के कई कार्यक्रमों में शामिल किया। उदाहरण के तौर पर कांशी राम आवास योजना मंे 15 से 20 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय को आवास मिलना जिसमें महिलाओं की संख्या भी है। तीसरी दावेदारी कांग्रेस की है जो कि अपने खोए हुए मुस्लिम जनाधार को बेताबी से वापिस लाने के कयास लगा रही है। जिसके लिए वह सपा और बसपा दोनों के जनाधार में सेंध लगाने के लिए गुणा-भाग के गणित में लगी हुई है। वैसे तो कांग्रेस के लिए बसपा के जनाधार में सेेंध लगाना इतना आसान नहीं है और उत्तरप्रदेश में वह मूल रूप से बसपा के ही टक्कर में है। इस तरह से अगर उसे बसपा को हराना है, तो उसे सपा के जनाधार पर सेंध मारी तो करनी ही होगी। कांग्रेस के लिए मुस्लिम जनाधार इसलिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस वजह से भी कांग्रेस सपा के साथ प्रतिस्पर्धा में है, जिसे लेकर दोनों के बीच एक घमासान मचा हुआ है। इस प्रतिस्पर्धा में कहीं कहीं भाजपा को भी फायदा मिल सकता है।

लेकिन जिस तरह से यह मुस्लिम जनाधार तीन जगहों पर बंट रहा है, उससे कांग्रेस की मुश्किलें भी काफी बढ़ गई है और यह पार्टी इस जनाधार को अपने पक्ष में करने के लिए किसी भी सूरत में मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण करने के लिए किसी भी तरह का हथकंडा अपनाने से गुरेज़ भी नहीं कर रही है। मुस्लिम मतदाता अभी तक कांग्रेस पर अपना भरोसा कायम नहीं कर पाए हैं, जिसकी कई वजह हैं, जैसेः 80 व 90 के दशक में मुरादाबाद, मेरठ, मलियाना आदि के दंगों में नकरात्मक भूमिका, बाबरी मस्जिद का विध्वंस, बटला हाउस कांड आदि जिनके लिए उत्तरप्रदेश का मुस्लिम समुदाय उन्हें कभी माफ नहीं कर पाएगा। लेकिन इस बात को जानते हुए भी इस चुनाव में कांग्रेस द्वारा मुस्लिम जनाधार को समेटने के लिए फिर से साम्प्रदायिक शक्तियों का ही साथ लिया जा रहा है। जिसकी सबसे बड़ी मिसाल सहारनपुर और मुज़फ्फरनगर विधान सभा की सीटों पर उभरते समीकरण हैं।
कांग्रेस द्वारा पश्चिमी उत्तरप्रदेश में अपने जनाधार को मज़बूत करने के लिए चुनाव से महज़ एक महीना पहले सहारनपुर में पिछले 30 से अधिक वर्षों से कांग्रेस के धुर विरोधी रहे और सपा से राज्य सभा के सदस्य रहे मुस्लिम नेता रशीद मसूद को पार्टी में शामिल किया गया है। रशीद मसूद पिछले एक दशक से इस क्षेत्र में गुजरात दंगों के बाद साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं व उनके नेतृत्व में 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा सहारनपुर और मुज़फ्फर नगर की तमाम सीटें हार गई थी। यही नहीं 2007 के विधान सभा चुनाव में रशीद मसूद द्वारा सहारनपुर सीट का धु्रवीकरण कराकर अपनी पार्टी के प्रत्याशी संजय गर्ग को हराकर भाजपा को जिताने की कूटनीतिक चाल भी चली थी। गौरतलब है कि इसी सीट पर 2002 में रशीद मसूद के एकता पार्टी के तहत अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी, जब उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी संजय गर्ग को समर्थन दिया था और इस सीट से अपनी धर्मर्निपेक्ष राजनीति के कारण संजय गर्ग को लगभग 49 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे। लेकिन संजय गर्ग की मुस्लिम समुदायों में बढ़ती हुई लोकप्रियता व मुंिस्लम समुदायों द्वारा रशीद मसूद व उनके परिवार पर उठते सवालों को उनके लिए हज़म करना काफी मुश्किल था। इसलिए गुजरात दंगों के बाद अपनी स्वार्थपूर्ण राजनीति को जिंदा रखने के लिए रशीद मसूद ने साम्प्रदायिक राजनीति का सहारा लिया। मौज़ूदा चुनाव में कांग्रेस और रशीद मसूद के बीच जो करारनामा हुआ है, उसे राजनैतिक हलकों में दोनों की मौकापरस्त राजनीति ही कहा जा रहा है व इन दोनों पर साम्प्रदायिक शक्तियों को मजबूत करने का आरोप लग रहा है। कांग्रेस का यह गणित था कि रशीदमसूद को पार्टी में शामिल करने से उनके साथ मुस्लिम जनाधार उनको मिल जाएगा और इस चक्कर में कांग्रेस ने क्षेत्र के पुराने कांग्रेसियों को भी दरकिनार कर दिया और रशीदमसूद के कहे अनुसार सहारनपुर की सात व मुज़फ्फर नगर की तमाम विधानसभा सीटों पर टिकट दे कर इस इलाके में अपनी हार का रास्ता साफ कर लिया है। इस बार कांग्रेस के तमाम प्रत्याशियों का तो अन्य पार्टियां मुकाबला करेंगी ही, लेकिन रशीद मसूद व उनके परिवार की इस स्वार्थपूर्ण और साम्प्रदायिक राजनीति को हराने के लिए सहारनपुर शहर सीट से बसपा प्रत्याशी संजय गर्ग, सांसद जगदीश राणा व कांग्रेस से निकले दिग्गज नेता चै0 यशपाल सिंह ने अपनी कमर को कस लिया है। रशीद मसूद व कांग्रेस की कूटनीति के चलते इस क्षेत्र के कई प्रभावशाली पुराने कांग्रेसी नेता सपा में शामिल हो गए हैं।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस-रशीद मसूद गठजोड़ द्वारा सहारनपुर शहर से संजय गर्ग को हराने के लिए भाजपा को ही मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। चूंकि कांग्रेस को यह मालूम है कि कांग्रेस तो जीतने वाली नहीं है और अगर भाजपा जीत जाएगी तो भाजपा का डर दिखा कर अगामी लोकसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस की शरण में आना ही होगा। कांग्रेस-भाजपा गठजोड़ का भंडाफोड़ तो उसी दिन हो गया था, जब नामांकन की आख़री तारीख से ठीक एक रोज़ पहले सहारनपुर की चार सीटों पर भाजपा द्वारा प्रत्याशियों की अदला-बदली की गई । सहारनपुर देहात से भाजपा के प्रत्याशी कुलबीर राणा का टिकट एक दिन पहले ही खारिज कर दिया गया, जिन्होंने प्रेसवार्ता में इस बात का खुलासा किया कि उनका टिकट कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए खारिज किया गया है। साथ ही गंगोह व देवबन्द सीट में प्रत्याशियों की नामांकन से ठीक एक दिन पहले की गई अदलाबदली को लेकर भी उन्होंने यही आरोप लगाया। देवबंद में भाजपा की ठाकुर महिला प्रत्याशी को गंगोह भेज दिया गया, चूंकि भाजपा व सपा ने भी ठाकुर समुदाय से ही प्रत्याशी को टिकट दिया था। ठाकुर समुदाय के वोट न बंटे इसलिए यह एडजेस्टमेंट किया गया और गंगोह से गुजर समुदाय के प्रत्याशी को देवबंद भेज दिया गया और इस के बदले में कांग्रेस ने सहारनपुर शहर सीट एक कमज़ोर प्रत्याशी को दिया ताकि भाजपा को फायदा मिल सके और बसपा के प्रत्याशी संजय गर्ग को हराया जा सके। इसी तरह बेहट विधान सभा सीट से भी कांग्रेस और भाजपा द्वारा सैनी प्रत्याशी दिए गए थे, जिसकी जगह पर नामांकन के आख़री दिन भाजपा द्वारा राजपूत प्रत्याशी को लाया गया ताकि सैनियों का वोट विभाजन न हो और बसपा के प्रत्याशी महावीर राणा के राजपूत वोट पर सेंध मार कर उन्हें हराया जा सके।
कांग्रेस द्वारा सहारनपुर एवं मुज़फ़्फरनगर की सीटों पर इस तरह की साम्प्रदायिक गठजोड़ की नीति अपनाई जा रही है। जबकि खासतौर पर सहारनपुर शहर की सीट पर इस समय हिन्दु व मुस्लिम दोनों कट्टरपंथियों के खिलाफ़ एक बहुत बड़ा संघर्ष है। गौर तलब है कि संजय गर्ग अपनी धर्मनिर्पेक्ष छवि के लिए जाने जाते हैं जिन्होंने 1993 में बाबरी विध्वंस के बाद जनता दल से चुनाव लडा था। तब वे 64000 वोट लेकर दूसरे स्थान पर ज़रूर रहे, लेकिन वे साम्प्रदायिकता के खिलाफ उस माहौल में एक बड़ी चुनौती लेकर उभरे थे। यही वजह थी कि इस मुस्लिम बहुल्य इलाके में वे फिर लगातार 1996 और 2002 में भी भारी मतों से जीत कर आए। फिलहाल शहर प्रत्याशी संजय गर्ग द्वारा अपनी व्यक्गित छवि के चलते इस समय दोनों तरह की साम्प्रदायिकता हिन्दु व मुस्लिम को कड़ी चुनौती देने का काम किया जा रहा है, जिसको बसपा से समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस एवं भाजपा द्वारा इस तरह का गठजोड़ अन्य सीटों पर भी किया जा रहा होगा, जिसके ऊपर धर्मर्निपेक्ष ताकतों को पैनी और कड़ी निगाह रखनी होगी।
देखा जाए तो पश्चिमी उत्तरप्रदेश में मुस्लिम नेता तो बहुत रहे हैं, लेकिन मुसलमानों के नेता न के बराबर हैं। जोकि पसमंदा मुस्लिम समुदायों के मुद्दों पर इर्मानदारी से काम करें। मुस्लिम समुदाय एक संप्रदाय नहीं बल्कि अलग-अलग जातियों में बंटा हुआ समाज है। मुस्लिम समुदाय में पसमांदा समाज अगर भाजपा को हिन्दु साम्प्रदायिकता फैलाने का दोषी ठहराता है तो मुस्लिम समुदाय के अभिजात वर्ग व धार्मिक नेताओं को भी मुस्लिम साम्प्रदायिकता फैलाने का भी ज़िम्मेदार ठहराता है। यह समुदाय मुख्य रूप से दस्तकार, बुनकर, रिक्शा चलाने वाले, दर्ज़ी, बढ़ई, लकड़ी कारीगर, नक्काशी करने वाले, खेतीहर मज़दूर, ईंट भट्टों पर काम करने वाले मज़दूरों का एक बड़ा तबका है, जोकि आज अपनी विशिष्ट बुनियादी मांगों के लगातार अनदेखी होने के कारण अपने मुस्लिम नेताओं का बहिष्कार कर रहे हैं और उन ताकतों के साथ जा रहे हैं, जो उनका विकास कर सके, व रूढ़िवादी सोच के बंधन से उनको मुक्त करा सके। इस लिए यही समुदाय बेहद मुखर तरीके से साम्प्रदायिकता के खिलाफ भी खड़ा है। दूसरी ओर कांग्रेस और सपा के एजेंडे में मुस्लिम समुदाय के अंदर जातिवाद से जूझ रहे पसमंदा मुस्लिम समाज के अधिकारों को लेकर कोई ठोस कार्यक्रम भी नहीं है, बल्कि ये कहा जाए कि इन पार्टियों के राजनैतिक कार्यक्रमों में पसमंदा मुस्लिम समाज के मुद्दे किसी बहस में ही नहीं है। मुस्लिम बनुकरों के लिए कुछ कर्ज़ की स्कीमें या पिछड़ों में डेढ़ प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर के कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। जरूरत है इन तबकों को संगठित करके उनकी सरोकार से कोई दीर्घकालीन कार्ययोजना बनाना। लीपापोती से इन तबकों का सुधार होने वाला नहीं है। सारे मुस्लिम समुदाय को एक मुश्त तरीके से देखना पसमंदा समाज की मांगों को नज़रअंदाज़ करना ही है। ज्ञात हो कि इस मुद्दे पर कई छोटी-छोटी पार्टियां सवाल ज़रूर उठा रही हैं, जिसका असर चुनावी प्रक्रिया में ज़रूर पड़ेगा। यह असर कितना होगा इस बात को तो हर सीट के आधार पर विश्लेषण करके ही सही रूप से समझा जा सकता है। केवल मुस्लिम वोट को आधार मान कर जीत निश्चित नहीं समझी जा सकती है। अन्य समुदायों के और विशेषकर दलित और अति पिछड़ी जातियों के परिपे्रक्ष्य में पसमंदा मुस्लिम समाज की भूमिका को देखना होगा। जहां यह समीकरण बनेंगे यह ग़रीब मुस्लिम वर्ग भी वहीं जाएगा, जो कि जगह जगह पर दलित और अतिपिछड़ों की गोलबंदी से काफी प्रभावित है। 2009 के संसदीय चुनाव में पश्चिमी उत्तरप्रदेश में यह तथ्य एकदम साफ रूप से उभर कर सामने आया था। 90 दशक के शुरू में जब उत्तरप्रदेश भंयकर रूप से हिन्दुवादी साम्प्रदायिकता का दौर चल रहा था उस समय से ही इन समुदायों के बीच भी इस साम्प्रदयिकता के खिलाफ गठजोड़ होना शुरू हो गया था। जिसके परिणामस्वरूप 1993 के विधान सभा चुनाव में हिन्दुवादी शक्तियों को करारा झटका मिला था और प्रदेश में पहली बार सपा-बसपा की साझा सरकार बनी थी। हांलाकि दो साल बाद ही सपा की हठधर्मी के चलते यह राजनैतिक गठबंधन टूट गया लेकिन सामाजिक स्तर पर यह गठबंधन दलित, अतिपिछड़ों और मुसलमानों में खत्म नहीं हुई और उनकी एकता मजबूत होती गई। इन तबकों की चेतना से ही उत्तरप्रदेश दंगों की दूसरी ़त्रास्दी से बच गया नहीं तो यह प्रदेश भी गुजरात बन जाता। बसपा और सपा का राजनैतिक आधार इन्हीं तबकों में है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि आगे आने वाले सालों में भी यह राजनीति असर करती रहेगी और यहीं वजह हैं कि कांग्रेस भाजपा लगातार कमजोर होती गई।
अगर कांग्रेस व भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को उत्तरप्रदेश की कमान संभालनी है, तो उसे इस साम्प्रदायिक राजनीति से बाहर आना होगा। अगर यह काम आज से ही इनके द्वारा शुरू किया जाए तो भी कम से कम उन्हें इस प्रदेश में शासन करने के लिए 20 वर्ष और इंतज़ार करना होगा। लेकिन अभी फिलहाल विधान सभा चुनाव में लड़ाई सपा और बसपा के बीच ही है।
www.janadesh.in

Thursday, February 23, 2012

हार से डरी कांग्रेस अब वोटरों को धमका रही


जायसवाल का बयान कांग्रेस की रणनीति
अंबरीश कुमार
लखनऊ / कानपूर 23 फरवरी । उत्तर प्रदेश में अगर कांग्रेस की सरकार नही बनी तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगेगा । यह टिपण्णी आज कांग्रेस के दूसरे नेता और कैबिनेट मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कानपुर में की । इसपर विपक्षी दलों ने साफ़ कहा -चुनाव में हार से डरी कांग्रेस अब मतदाताओं को धमकी दे रही है जिसकी शिकायत अब चुनाव आयोग से की जाएगी । समाजवादी पार्टी ,भारतीय जनता पार्टी ,भाकपा और जन संघर्ष मोर्चा आदि ने इसे चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली टिप्पणी बताया । समाजवादी पार्टी और भाकपा इस मुद्दे पर चुनाव आयोग से शिकायत दर्ज करने जा रही है । कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के बाद कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता का यह दूसरा बयान है जो ठीक मतदान शुरू होते दिया गया है । इसका संदेश सभी तरह के मतदाताओं के लिए साफ़ है कि वे कांग्रेस के पक्ष में वोट वर्ना राष्ट्रपति शासन लगेगा । इससे पहले दस फरवरी को श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा था ,मुख्यमंत्री कोई बने रिमोट राहुल गाँधी के हाथ में ही होगा ।राहुल गाँधी ,दिग्विजय सिंह ,सलमान खुर्शीद ,बेनी प्रसाद वर्मा ,कपिल सिब्बल और फिर अब श्रीप्रकाश जायसवाल का बयान कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है ताकि एक तरफ मीडिया की कवरेज में बड़ा हिस्सा पार्टी के के खाते में हो और चर्चा में कांग्रेस हो दूसरा दल नहीं । दूसरे मतदाताओं को यह महसूस होना चाहिए कि कांग्रेस सत्ता में नहीं आई तो अस्थिरता ही बनी रहेगी इसलिए स्थिरता के लिए कांग्रेस को लाए । पर इस रणनीति को लेकर कांग्रेस ज्यादा भ्रमित है बाकि कोई नहीं ।
कानपुर में वोट डालने जा रहे कैबिनेट मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने दावा किया कि यूपी में केवल कांग्रेस की ही सरकार बनेंगी अगर कांग्रेस बहुमत में नहीं आती है तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू होगा। श्रीप्रकाश जायसवाल ने यह भी कहा, चुनाव के परिणाम चैंकाने वाले होंगे। हर चरण में जो 15 फीसदी अधिक मतदान हो रहा है, यह युवा मतदाताओं के वोट डालने का नतीजा है, जो केवल और केवल कांग्रेस के पक्ष में जा रहा है। युवा कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी से प्रभावित होकर ही ये वोट डालने जा रहे हैं। इस संवादाता ने जब पूछा ,चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर कांग्रेस क्या रुख होगा , जायसवाल ने कहा -कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने जा रहा है। अगर हमारे नंबर कुछ कम पड़ते हैं तो राष्ट्रपति शासन लागू होने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। लगे हाथ उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस विधायक दल ने अगर उन्हें नेता चुन लिया तो उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से कोई गुरेज नहीं । अपने इस बयान से जायसवाल भले पलट जाए पर जो कहा वह सभी ने सुना । जायसवाल के इस बयान को कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है । उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबले से बाहर चल रही कांग्रेस की चिंता अपनी सीटे बढ़ाना है ताकि सत्ता के खेल में कोई भूमिका बन सके । समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा - उत्तर प्रदेश में कांग्रेस न तो पक्ष में आ रही है न विपक्ष में ।मुकाबले से बाहर हो चुकी कांग्रेस अब इस तरह के हथकंडों से मतदाताओं को और चुनाव की प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है । चुनाव आयोग से इसकी शिकायत की जा रही है । यह लगातार दूसरी बार हुआ है और केंद्रीय मंत्री लगातार किसी न किसी बहाने चुनाव आयोग पर हमला कर रहे है । इससे बड़ी कोई धमकी हो ही नहीं सकती कि हमें जिताओं वर्ना राष्ट्रपति शासन लगा देंगे । कांग्रेस ने पहले पूर्वांचल और अवध में यह सब हथकंडे अपनाए पर कोई फायदा नहीं हुआ और अब पश्चिम के मुस्लिम मतदाताओं के लिए ह़र हथकंडे अपनाए जा रहे है पर कोई असर नहीं होने वाला । दूसरी तरफ भाजपा नेता कलराज मिश्र ने कहा -यह कांग्रेस की बौखलाहट को दर्शाता है जो पूरब से पश्चिम तक हार रही है । इस मामले में चुनाव आयोग को भी संज्ञान लेना चाहिए क्योकि यह धमकी है । भाकपा के राज्य सचिव गिरीश ने कहा -इस मामले में पार्टी कल चुनाव आयोग से शिकायत दर्ज करने जा रही है ।समूचे प्रदेश में कांग्रेस बुरी तरह पिछड़ चुकी है इसलिए ऐसे हथकंडे अपनाए जा रहे है ।
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि कांग्रेस और उसके नेता प्रदेश की जनता को खुलेआम राष्ट्रपति शासन लगवाने की धमकी दे रहे हैं। जनता खुद इसका हिसाब लेगी। कांग्रेस को दोहरी राजनीति बंद करनी चाहिए।पाठक ने केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हार की संभावनाओं से हताश-निराश कांग्रेसी नेताओं की इस तरह की बयानबाजी स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए घातक है। उन्होंने कहा कि इससे पहले कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह भी इस तरह की बयानबाजी कर अपनी पार्टी की पूर्वनिर्धारित रणनीति का खुलासा कर चुके हैं। किसी भी प्रकार से सत्ता हासिल करना कांग्रेस की मानसिकता हो गई है। ये लोग अपनेे अतिरिक्त किसी और पार्टी को सत्ता में नहीं देखना चाहते। इसलिए जहां दूसरी पार्टियों का शासन है वहां राष्ट्रपति शासन लगाकर शासन करना चाहती है। इस खेल के तहत कांग्रेस के सभी नेता अभी से फील्डिंग करने में लग गए है। JANSATTA

Wednesday, February 22, 2012

होरी तै रूक जाइयो भइयो नेता जी आउत है ...


अंबरीश कुमार / दिनेश शाक्य
इटावा, फरवरी। होरी तै रूक जाइयो भइयो नेता जी आउत है ... । इटावा जिला मुख्यालय से करीब बारह किलोमीटर दूर गुलाबपुरा गांव में यह एक नौजवान नौजवान दूसरे से कहता मिला । यह कोई होली आने की सूचना नहीं बल्कि सत्ता में समाजवादी पार्टी के लौटने की आहट से से पैदा हुए यादव युवक का दंभ , उत्साह और चेतावनी सभी है । इटावा के आसपास के यादव बहुल गांवों का दौरा कर ले तो पता चलेगा यहाँ बिरादरी के नौजवान और बूढ़े सभी उस होली का इंतजार कर रहे है जो चुनाव नतीजों के बाद आने वाली है ताकि मुलायम की ताजपोशी का जश्न रंगों के साथ मनाया जा सके ।मुलायम के गढ़ में उनके सत्ता से जाने के बाद उनकी बिरादरी के उन लोगों को कई तरह की परेशानी का भी सामना करना पड़ा है जो सपा की राजनीति के वाहक रहे है । पढाई ,नौकरी ,फर्जी मुक़दमे से लेकर जब्त हुई बंदूके भी इन समस्यायों में शामिल है । यहाँ बंदूके आतंक से ज्यादा सम्मान का प्रतीक है । वे भी रखते है जिन्होंने सालों से एक परिंदा भी नहीं मारा होगा । मुलायम सिंह के सत्ता में लौटने को लेकर विरोधी दलों के लोग लखनऊ से इटावा तक प्रचार कर रहे है ,यादव तो अभी से लाठी को तेल पिलाने लग गए है । पिछड़ी जातियों में सबसे मुखर और आक्रामक यादव ही माने जाते है जिनमे से बहुत से पिछले साढ़े चार साल से पिट भी रहे है यह दूसरा सच भी है । यह अनायास नहीं है कि हर सभा में अपनी पार्टी के लोगों को भी आगाह करते हुए मुलायाम सिंह कह रहे है -गुंडई अगर पार्टी के लोगों ने की तो फ़ौरन बाहर कर दूंगा । अपने इलाके और बिरादरी का मिजाज मुलायम सिंह यादव से ज्यादा कौन जानता होगा । इसी गुंडागर्दी का ठप्पा लगाकर मायावती ने उन्हें सत्ता से बाहर भी किया था और मायावती अपनी सभाओं में उसी गुंडागर्दी की यादे ताजा करा रही है। पर दूसरा तथ्य यह भी है कि मुलायम राज की पांच साल पुराणी गुंडागर्दी पर मायावती राज का भ्रष्टाचार भारी पड़ रहा है । हालाँकि मैनपुरी में सपा उम्मीदवार ने फिर वही आचरण दिखाया जिससे लोग आशंकित हो जाते है ।
होरी तै रूक जाइयो भइयो नेता जी आउत है , कुछ ऐसी ही देसी जुबान मे सैफई यानी मुलायम के गांव के आसपास के लोग बोल रहे है है । गांव जब कोई बाहरी आदमी का आगमन होता है तो गांव के परिचित से इन शब्दो के जरिए जानने की कोशिश करत है। गांवो के आसपास के खेतो मे गेंहू ही गेंहूँ दीखता है ।जल्दी बोई ही गेहू की फसलो को किसानो को काटते हुए भी देखा गया है। इटावा का अधिकतर इलाका पचार बोला जाता है जहा पर पानी की बहुतायत रहती है इस वजह से गेहु और धान का ज्यादा प्रचलन है । लेकिन कुछ किसान घरेलू उपयोग के लिए सरसो और लहसुन की खेती भी कर लेते है। ऐसे कई गांव का दौरा करने पर मुलायम सिंह को लेकर बिरादरी के लोगों में काफी उत्साह दिखाई पड़ रहा है । यहाँ कल मतदान होगा ।समाजवादी पार्टी के छोटे बडे नेताओ ने इस इलाके मे सपा की नैया को पार लगाने के लिये चुनाव से पहले ही कसरत शुरू कर दी थी जो चुनाव आते आते एक अखाडे मे तब्दील हो चुकी है ।अब मुलायम का इलाका सपा के लिए जहा प्रतिष्ठा का सबाल तो बना ही हुआ है वही दूसरी ओर काग्रेस ओर बसपा भी अपने आप को कम नही मान रही है क्यो कि काग्रेस केराहुल गांधी और बसपा की मुखिया मायावती भी अपने लोगो मे जोश भर गई है।
कई सर्वे रिर्पोटो के बाद इस इलाके के यादव बहुल गांवों मे खासा जोश देखा जा रहा है। उदयपुरा,गंगापुरा,केशवपुरा,अडूपुरा और गुलागबपुरा के किसी भी यादव नौजवान से बात कर ले समाजवादी पार्टी का समर्थक नजर आएगा । सत्ता विरोधी व्यापक लहर और बसपा के खिलाफ बने माहौल ने मुलायम सिंह यादव के पक्ष मे हवा बना दी है। चुनाव से पहले बसपा मे हिस्सेदारी करने वाले गंगापुरा गांव के प्रधान अरिवंद यादव पिछले लोकसभा चुनाव मे बसपा के पक्ष मे थे लेकिन अब बसपा की नीतियो से उनका मोहभंग हो चुका है । अब वी समाजवाद का झंडा उठाए है और लोहिया के नारे लगते है । अरविन्द यादव ने जनसत्ता से कहा - बहुजन समाज पार्टी की वर्तमान सरकार ने प्रदेश के हित मे या प्रदेश के लोगो के लिये कोई कार्य नही किया । इस सरकार मे सिर्फ पार्क और मूर्तियां बनी ,जितने भी सरकारी ठेके थे वह उनके मंत्रियो के चेले चपेटो के अलावा अन्य किसी अन्य को नही दिए । हम किसी भी सरकारी दफ्तर मे जाते है तो बिना पैसे के काम नही होता।सरकार की मुखिया कभी भी जनता के बीच नही जाती ।जबकि मुलायम सिंह यादव हमेशा जनता के बीच रहते है मुलायम सिंह यादव के राज मे प्रदेश मे जितनी सडको और पुलो का निर्माण हुआ वह आज तक किसी अन्य ने नही कराया।
उदयपुरा गांव के 70 साल के बजुर्ग सुदंरलाल यादव का कहना है कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पर हमेशा से ही विरोधी दलो के निशाने पर रहे है । यह आरोप गलत है कि मुलायम सिंह यादव ने सिर्फ अपने इलाके मे ही विकास कार्य का काम कराया सही तो यह है कि हर इलाके मे विकास कराया है। इसके विपरीत अन्य किसी भी सरकार मे इटावा जिले के लिये विकास का ऐसा कोई कार्य नही किया गया जिसको जनता अपने दिल और दिमाग पर रखती है। गंगापुरा के अमरवीर सिंह यादव ने कहा - मुलायम सिंह यादव हमेशा जनता के बीच मे रहकर काम करते है और हमेशा जनता के सुख दुख मे शामिल रहते है। इन प्रतिक्रियाओं से यादव बिरादरी के बड़े होस्से की मनो भावनाओं को समझा जा सकता है ।
चैधरी चरण सिंह पोस्ट ग्रेजुएट कालेज के प्रवक्ता डा.अरविंद यादव ने कहा , इटावा और मुलायम सिंह यादव का गहरा नाता है लेकिन सत्ता की दूरी ने एक दूसरे को मुश्किल मे डाल दिया है। दोनो की इसी मे भलाई हो सकती है कि एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की सत्ता मे मुलायम सिंह यादव के दल का प्रभाव बने तभी इटावा और मुलायम दोनो का भला संभव है। डा.यादव ने आगे कहा - मायावती की अगुवाई मे ऐसे काम भी हुए जो ना केवल जनविरोधी है बल्कि उससे आम लोगो को कोई लाभ नही हुआ है ऐसे मे हवा का रूख बसपा के खिलाफ हो रहा है। बसपा विरोध का फायदा समाजवादी पार्टी को हर हाल मे मिलना तय माना जा रहा है।
मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई के प्रधान दर्शन सिंह यादव ने कहा -बसपा की सरकार मे ऐसे ऐसे काम किये गए है जिसकी वजह से लोग मुलायम के करीब आ रहे है ।ऐसे मे मुलायम यादव की सरकार के ना बनने की कोई संभावना नजर नही आती है। अब साफ हो चला है कि मुलायम के अलावा किसी की भी ताजपोसी नही होगी। वे यह कहने से भी नही चूके कि मुलायम सिंह यादव की जब तब ताजपोशी नही होती तब यह विकास योजनाएं ठप ही पडी रहेगी और मुलायम की वापसी के बिना इनका कोई भी तारणहार नही हो सकता है। गुलाबपुरा गांव के विनोद कुमार यादव का कहना है कि सत्ता विरोधी लहर ने मुलायम सिंह यादव के पक्ष मे माहौल बना दिया है इसी वजह से सत्ता विरोधी लहर आई है सपा की सरकार बनने बनने के पक्ष मे हवा का रूख बह चुका है 2007 मे जैसे मुलायम सरकार की गुंडागर्दी मुलायम के विरोध मे थी ठीक वैसी ही इस समय बसपा के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुददा मुलायम को सत्ता के करीब पहुचा रहा है।
jansatta

गोवा के जंगल में ट्रेन का इंतजार



अंबरीश कुमार
गोवा और कर्नाटक सीमा पर एक बहुत खूबसूरत जल प्रपात पड़ता है दूध सागर .घने जंगल में इस जल प्रपात को देखने के चक्कर में कुछ साल पहले विकट स्थिति में फंस गए थे और जान पर बन आई थी .कलंगूट समुंद्र तट पर पर्यटन विभाग के रिसार्ट पर रुके थे जो मेरा सबसे पसंदीदा तट है और जब भी जाता हूँ वहां एक रात जरुर रुकता हूँ .गोवा के कई समुंद्र तट अपनी अलग अलग विशेषताओं की वजह से जाने जाते है जिनमे कलंगूट सत्तर के दशक में हिप्पियों के चलते चर्चा में आया था .
पहली बार जब मुंबई होते गोवा गया था तब सांसद संजय निरुपम मुंबई जनसत्ता में थे और वहां जाने में मदद भी की थी क्योकि २५ दिसंबर के दिन गोवा पहुँच गया था .खैर जब किसी होटल में जगह नहीं मिली तो सर्किट हाउस जो पहाड़ पर सबसे ऊपर है वहां गया . जगह नहीं थी पर गोवा पर्यटन विभाग के एमडी से संपर्क करने को कहा और बात भी कराई गई .एक सरदारजी उस दौर में पर्यटन विभाग के मुखिया थे और दिल्ली से तबादले पर वहां गए थे .वह जनसत्ता का उभार वाला दौर था और प्रभाष जोशी लिख चुके थे -पाठक माईबाप अब जनसत्ता मांग कर पढ़े इससे ज्यादा नहीं छापा जा सकता .वह दौर भी था जब सिख दंगों की कवरेज से अख़बार ने पत्रकारिता को नई दिशा दी थी .यकीनन इसमे बड़ा योगदान आलोक तोमर का था जिन्होंने भाषा और भावनाओं का अलग प्रयोग दिखाया .इससे सिख समाज में अख़बार की बहुत अलग पहचान थी .ऐसे में पर्यटन विभाग के मुखिया सरदारजी को जब परिचय दिया तो बोले ,आप एक सन्देश भेज देते तो कोई दिक्कत नहीं होती .सर्किट हाउस में एक कमरा खाली है और मध्य प्रदेश के एक आईजी उसके लिए कई बार कह चुके है पर आप सर्किट हाउस में आज रुक जाए और इसका किराया दस रुपए जमा करा दे कल पर्यटन विभाग का कलंगूट बीच के रिसार्ट पर शिफ्ट करा देंगे .इससे पहले हजार दो हजार रुपए में भी कोई होटल नहीं मिल रहा था और भाग दौड़ काफी हो चुकी थी .अकेले था इसलिए कही जाने की इच्छा भी नहीं रह गई थी .खाने के लिए पूछा तो बताया रेस्टोरेंट में सब मिल जाएगा .गोवा का सर्किट हाउस बहुत खूबसूरत और भव्य है .कमरे भी काफी बड़े .नहा कर रेस्टोरेंट पहुंचा तो नजारा देख कर हैरान रह गया .पहला सर्किट हाउस देखा जहा बार की सुविधा थी और दिल्ली के प्रेस क्लब जैसा नजारा था .तब इस तरह का शौक नहीं हुआ करता था पर फेनी का बहुत नाम सुना था इसलिए खाने के साथ मंगाया पर एक घूंट में ही दिमांग ठीक हो गया और खाना खाकर उठ गया .रेस्टोरेंट में तली हुई मछली और फेनी की गंध भरी हुई थी जो बहुत से लोगो को अच्छी नहीं लगेगी .फेनी का नाम खूबसूरत है पर वह गोवा की देशी मदिरा है जो नारियल और काजू से बनती है .जिसकी गंध भी बर्दाश्त नहीं हो सकती .फेनी का वह पहला घूंट ही अंतिम घूंट साबित हुआ .हालाँकि जिसने जिसने माँगा था उनके लिए लेकर जरुर गया .पर गोवा की वाइन का स्वाद किसी भी वेदेशी वाइन से कम नहीं है .मुंबई में इंडियन एक्सप्रेस में उस समय विश्विद्यालय के साथी आनंदराज सिंह थे जिनके साथ एक शाम गुजारने के बाद गोवा गया था और उनके लिए भी फेनी की बोतल ले आया था
खैर जिस यात्रा का जिक्र कर रहा हूँ वह तीसरी यात्रा थी जिसमे हम अपने सहयोगी संजय सिंह के साथ परिवार समेत गोवा घूमने गए थे .मै,सविता और संजय ,संध्या और दो गोदी वाले बच्चे .समुंद्र तटों की सैर के बाद कार्यक्रम बना कि दूध सागर जल प्रपात देखा जाए जो घने जंगल में है .सारी जानकारी लेकर कुलेम रेलवे स्टेशन पहुंचे .वैसे बताया गया मडगांव से भी करीब घंटे भर में दूध सागर पहुंचा जा सकता है .यह झरना कर्नाटक गोवा सीमा पर लोन्दा मडगांव रेल रूट पर एक पहाड़ी से गिरता है .इस रूट पर अब दिल्ली गोवा एक्सप्रेस ,हावड़ा वास्को अमरावती एक्सप्रेस और पुणे एर्नाकुलम एक्सप्रेस जैसी कई ट्रेन चलती है .बहरहाल जब कुलेम से दूध सागर जल प्रपात के लिए सुबह ट्रेन पकड़ी तो रेलवे कैंटीन का एक बैरा भी सामान लेकर चढ़ा .उसने बताया कि दूध सागर एक हाल्ट स्टेशन है जहा सवारी गाड़ियाँ दिन में सिर्फ दो मिनट के लिए रुकती है रात में नही रूकती .जब दूध सागर स्टेशन पहुंचे तो पता चला स्टेशन के नाम पर छोटा सा तिन शेड और कोने में एक टायलेट है .न कोई कमरा न कोई टिकट की खिड़की .जगह भी बहुत छोटी से क्योकि पचास मीटर दूरी पर वह झरना है जिसके दूसरी ओर घना जंगल है .दरअसल एक समूची नदी जब पहाड़ से लिपटती हुई उतरती है तो वह जिस झरने में तब्दील होती है है वह दूध सागर झरना कहलाता है .नदी का पानी पहाड़ पर सफ़ेद दूध की ही तरह नजर भी आता है .अब वहा का दृश्य बदल चुका होगा पर तब बहुत कम जगह थी ट्रेन पटरी से नीचे उतर कर झरने तक हम लोग पहुंचे और बच्चों के साथ पानी से खेल ही हुआ .झरना का पानी दूसरी तरफ जंगलों की तरफ चला जा रहा था .जंगल भी काफी घना था .इस बीच बैरा जो साथ आया था बोला खाना खा लीजिए मुझे जो ट्रेन आने वाली है उससे लौटना है .हम लोगों ने पूछा उसके बाद कौन सी ट्रेन मिलेगी तो बताया शाम साढ़े पांच छह पर जो ट्रेन आयेगी उससे लौट आये क्योकि उसके बाद ट्रेन नहीं है .वह चला गया और हम लोगों की पिकनिक होती रही .घडी में जब साढ़े पांच का समय हुआ तो तिन शेड के नीचे आ गए इंतजार करने .पास के गाँव का एक युवक भी आ गया था मडगाव जाने के लिए .ट्रेन की आवाज सुनाई पड़ी तो सब तैयार हो गए .पर ट्रेन आई और धडधडाती हुई आगे निकल गई .हम लोग सन्नाटे में .उस युवक से पूछा तो जवाब मिला ट्रेन तो अभी और आएगी पर मालगाड़ी ..करीब घंटे भर बाद फिर ट्रेन की आवाज सुनाई पडी .यह मालगाड़ी थी जो तेजी से आगे निकल गई .अब अँधेरा हो चुका था और जंगल से तरह तरह की आवाज सुनाई पड़ रही थी .तब मोबाईल का समय भी नहीं था .सभी परेशान और डरे हुए .पैदल करीब दस किलोमीटर घने जंगल में चलने बाद कोई बस्ती मिलने वाली थी पर इस अँधेरे में चला भी नहीं जा सकता था .युवक जो माचिस रखे था उससे कुछ पत्ते और लकड़ी जलाकर रौशनी भी की गई .इस बीच फिर ट्रेन की आवाज सुनाई पड़ी तो तय कर लिया सभी पटरी पर खड़े होका हाथ हिलाए तो शायद काम बन जाए .ट्रेन कुछ धीरे थी इसलिए इंजन की रौशनी में सब दिख रहा था .भाग्य हमारा अच्छा था जो इंजन रुका और हम दरिवेर के पास पहुँच गए .उसने कहा मालगाड़ी में सब डिब्बे बंद है कोई जगह नही है .हम लोग अड़ गए तो बोला इंजन बैठा सकता हूँ पर दस रुपए सवारी लूँगा बच्चो का नहीं लगेगा और कुलेम में उतर दूंगा वहा से मडगांव दूसरी ट्रेन से जाना पड़ेगा .फ़ौरन हम सब इंजन में चढ़ गए .करीब आधे घंटे बाद जब शहर की रौशनी दिखी तो सभी की जान में जान आई .इस तरह एक न भुलाने वाली यात्रा ख़त्म हुई .

Tuesday, February 21, 2012

पता है ,हम सरकार बनाने नहीं जा रहे -कपिल सिब्बल



अंबरीश कुमार
लखनऊ , २१ फरवरी। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के पांचवे चरण के लिए प्रचार बंद होने के साथ अब राजनैतिक दलों के बीच सत्ता का संघर्ष तेज हो गया । एक तरफ जहां कांग्रेस सरकार बनाने के दावे से पीछे हटती नजर आई वही सपा ने सत्ता में आने दावा किया तो मायावती ने दलित समाज से एक और मौका मांगा । । इस बीच मुख्यमंत्री मायावती ने दलित की बेटी को फिर मुख्यमंत्री बनाने की अपील आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चुनावी सभाओ में की ।इस चुनाव में पहली बार मायावती इतने तीखे तेवर के साथ दलित ध्रुवीकरण की कोशिश में दिखी । एक तरफ जहां समाजवादी पार्टी ने फिर सरकार बनाने का दावा किया वही कांग्रेस अब इस दावे से पीछे हटती नजर आ रही है। सोमवार को केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने एक सवाल के जवाब में कहा -हमें पता है कि हमारी सीटें २२ से २२० नहीं होने जा रही और न हम सरकार बनाने जा रहे । पर कांग्रेस को इस चुनाव में बड़ा फायदा होने जा रहा है । सीट भी बढ़ेगी और वोट भी । बीस फीसद बढे हुए वोट में बड़ी हिस्सेदारी कांग्रेस की है। उसके बाद यह दूसरे दलों में बंटा है । सिब्बल की टिपण्णी का संकेत साफ़ है । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने आज दावा किया कि पार्टी का सत्ता में आना तय हो गया है जबकि कांग्रेस अब बुरी तरह पिछड़ गई है ।
समाजवादी पार्टी और बसपा के आक्रामक तेवर उत्तर प्रदेश में सत्ता के बढ़ते संघर्ष का आगाज दे रहे है । मायावती ने जिस तरह आज दलित की बेटी को फिर एक मौका देने के लिए दलित समाज से अपील की है वह काफी महत्वपूर्ण है । आगरा और अलीगढ़ में जाटव बिरादरी का बड़ा समर्थन मायावती को मिल चुका है और वे फिर अपने बिरादरी के लोगों को पूरी तरह एकजुट होकर बसपा के लिए वोट करने को प्रेरित कर रही है । यह उनका वह ठोस और बड़ा वोट बैंक है जिसके चलते वे सत्ता के समीकरण में अपनी दखल बनाए हुए है । कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया का दावा है कि इस वोट बैंक में इस बार कांग्रेस सेंध लगा चुकी है । कांग्रेस ने न सिर्फ जाटव बल्कि गैर जाटव दोनों वोट बैंक को प्रभावित किया है । यदि कांग्रेस का यह दांव चल गया तो इस बार कांग्रेस से ज्यादा सपा व अन्य दलों मसलन लोकदल आदि को उसका फायदा मिल सकता है जो ज्यादातर जगहों पर सीधे मुकाबले में है ।
इस बीच समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि प्रदेश की जनता के बीच अपनी कथनी व करनी के प्रति विश्वसनीयता के चलते सपा को विधानसभा चुनावों में जो बढ़त मिल रही है उससे उसका सत्ता में आना निश्चत हो चुका हैं। इससे हताश व निराश विपक्षी अब भ्रामक प्रचार और झूठे दावों पर उतर आए हैं। इसमें बसपा के साथ कांग्रेस और भाजपा भी शामिल हो गई है। बसपाराज में अत्याचार और भ्रष्टाचार चरम पर रहा जिसको केन्द्र की कांग्रेस सरकार का पूरा संरक्षण रहा है। चौधरी ने कहा कि भाजपा ने इसके खिलाफ कोई संघर्ष नहीं किया क्योंकि इन दोनों की साठगांठ भविष्य की संभावनाओं पर टिकी है। उन्होंने यह भी कहा कि मायावती का उत्तर प्रदेश में सात फीसद विकास दर का दावा महज छलावा और जनता को धोखा देना है। सच तो यह है कि बसपा सरकार में एक प्रतिशत भी विकास दर नहीं बढ़ी है। बसपा ने तो प्रदेश का खजाना लूटकर इसे दिवालिया बना दिया है। जबकि मुलायम सिंह यादव अपने समय में 24 हजार करोड़ रूपए खजाने में छोड़ गए थे। चौधरी ने कहा कि बसपाराज में प्रदेश का विकास तो नहीं हुआ लेकिन कंगाल जरुर हो गया है। उन्होंने कहा कि बसपा राज में उत्तर प्रदेश पर दो लाख करोड़ का कर्ज चढ़ गया है। बसपाराज में अनुत्पादक मदों पर बजट लुटाया गया है। 40 हजार करोड़ रूपए तो पार्को, स्मारकों, पत्थर के हाथियों व कांशीराम व मायावती की मूर्तियों पर ही फूंक दिए गए।
दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जी ने आज अलीगढ़ ,आगरा की चुनावी सभा में कहा कि विरोधी पार्टियां, विशेषकर कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं एक दलित की बेटी की सरपरस्ती में प्रदेश में हो रहे सर्वांगीण विकास को पचा नहीं पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सहित सभी विरोधी दल उत्तर प्रदेश में अपनी खिसकती राजनीतिक जमीन को बचाए रखने के लिए भ्रष्टाचार तथा अपराधियों को संरक्षण देने जैसे भांति-भांति के आरोप लगाकर प्रदेश की सरकार को बदनाम करने में लगे हैं। मायावती ने सर्वसमाज के साथ ही दलित समाज का आव्हान किया कि वे यदि उत्तर प्रदेश में दलित की बेटी को मुख्यमंत्री के पद पर फिर से देखना चाहते हैं तो मतदाता सभी बाधाओं को पार करते हुए और एकजुटता के साथ बसपा के सभी प्रत्याशियों को भारी बहुमत से जिताने का संकल्प लें। उन्होंने कहा कि अपना वोट तो दें हीं, साथ ही अपने संगी-साथियों के भी वोट डालने के लिए उन्हें प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि इसके लिए दलित समाज के लोगों को रात-दिन मेहनत करके गली कूचे से निकालकर एक-एक वोट डलवाना होगा। उन्होंने कहा हर एक सीट जिताना सर्वसमाज की जिम्मेदारी है। उन्होंने दृढ़तापूर्वक विश्वास दिलाया कि यदि बसपा के प्रत्याशी भारी संख्या में जीतकर विधानसभा में आते हैं तो अन्य कोई मुख्यमंत्री नहीं बनेगा, बल्कि आपकी अपनी दलित की बेटी ही मुख्यमंत्री बनेगी।जनसत्ता

Monday, February 20, 2012

कांग्रेस और भाजपा को संजीवनी दे सकता है बुंदेलखंड



अंबरीश कुमार
उरई /महोबा , फरवरी। पानी ,पलायन और बिगड़ते पर्यावरण से जूझ रहा बुंदेलखंड इस बार कांग्रेस और भाजपा को संजीवनी दे सकता है ।समाजवादी पार्टी पिछल बार भी यहाँ दूसरे नंबर थी इसलिए उसका फायदा इन दोनों के मुकाबले कम होगा । दूसरे शब्दों में कहे तो बड़ा नुकसान बसपा का होता नजर आ रहा है और फायदे में बाकी सब हिस्सेदार है । बसपा को यह नुकसान उसकी उस राजनीति से भी हो रहा है जिसके चलते इस पूरे अंचल में प्राकृतिक संसाधनों की बेदर्दी से लूट हुई । महोबा जाते समय कबरई में यह लूट दिखती है जहाँ पहाड़ खोदकर ताल में तब्दील कर दिया गया है । इस लूट को सिर्फ देखा ही नहीं सुना भ जा सकता है ।डाइनामाईट के धमाको की आवाज अब लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई है । बुंदेलखंड दो हिस्सों में बनता हुआ है जिसमे इधर के बुंदेलखंड में बबूल के कांटे नजर आएंगे तो मध्य प्रदेश वाले हिस्से में महुआ ,आम अमरुद और अन्य हरे भरे बड़े दरख़्त । कुछ ही दूर पर मशहूर खजुराहो है जो रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह नजर आता है । इस बुंदेलखंड में ज्यादातर उम्मीदवार वही है पार्टियाँ बदल गई है । और बहुत से उम्मीदवार भी लूट के इस खेल में शामिल है पर उनकी जाति बिरादरी उनका अपराध माफ़ कर देती है । बाबू सिंह कुशवाहा इसका बड़ा उदाहरण है जो प्रदेश के सबसे बड़े घोटाले के मुख्य अभियुक्त होने के बावजूद भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के सबसे बड़े इंजीनियर बने हुए है । फिर भी प्राकृतिक संसाधनों की लूट बड़े नेताओं को अपना राजनैतिक एजंडा बदलने के लिए मजबूर करती है । आज चरखारी में उमा भारती ने कहा -मै इस क्षेत्र के लिए तुलसी समान हूँ जिसमे सभी दलों को पानी डालना होगा ।
वह पानी जो इस अंचल के लिए पिछले कई साल से मुद्दा बना रहा और लोगों का गाँव खेती सब छुट गया । पांच साल में बतीस लाख का पलायन यही दर्शाता है । इस बार बर्ष का रिकार्ड टुटा तो दलहन में उड़द ,मूंग ,मसूर ,मटर जैसी फसलों से किसान कुछ राहत महसूस कर रहा है । पर पानी का संकट महीने दो महीने में फिर गहरा जाएगा । समूचे बुंदेलखंड को जिस तरह खोदा गया है उससे पहाड़ गायब हो रहे है और नदियों पर संकट गहरा रहा है । जालौन हमीरपुर की सीमा बताने वाली बेतवा नदी की धार लोगों ने खोद खोद कर बदल दी है । यह वह नदी है जो सबसे ज्यादा पानी और खुशहाली लेकर आती थी ।अब जालौन के निषाद बिरादरी के हजारों परिवार जो खीर ,कद्दू लौकी जैसी सब्जियां इसके पानी से लेते थे सब बदहाल हो रहे है । बेतवा की यह धार भी अप्रैल आते आते टूट जाती है । उरई में सुनील शर्मा के मुताबिक यह सब सवाल लोगो को मैथ भी रहा है जिसकी कीमत सत्तारूढ़ दल को देनी होगी जिसे इन चुनाव में बड़ा नुकसान होता दिख रहा है ।
यही हाल तालों के शहर महोबा का है जहाँ कुछ दिनों बाद पानी का संकट शुरू हो सकता है । जनसत्ता के प्रतिनिधि हरिश्चंद के मुताबिक बसपा के नेताओ को लेकर लोगों की नाराजगी है और कुशवाहा बसपा से बाहर है इसलिए बिरादरी का साथ ही नहीं मिल रहा बल्कि वे अपनी बिरादरी का वोट भाजपा को ट्रान्सफर भी करा रहे है । दुसरे उमा भारती की वजह से भाजपा का पिछड़ा वोट बैंक मजबूत हुआ है जिसके चलते इस बार बुंदेलखंड में भाजपा को संजीवनी मिलने जा रही है । भाजपा चार पांच सीट जीत सकती है और उसी के आसपास कांग्रेस । सपा बढ़ेगी पर उतना नही जितना भाजपा क्योकि उसके पास पहले से ही चार सीटों का खाता है ।
साफ़ है प्राकृतिक संसाधनों की लूट और पलायन इस बार बुंदेलखंड में बसपा के लिए संकट पैदा कर चुका है । बीते पांच साल में बतीस लाख का लोगो का पलायन जो मुख्यतः लालितपुर ,माहोबा ,बांदा ,जालौन जैसे जिलों से हुआ वह रंग लाता दिख रहा है । भूख भुखमरी और अकाल से जूझते बुंदेलखंड में मायावती के हाथी का रास्ता आसान नहीं है ।jansatta

चकराता का भुतहा डाक बंगला



अंबरीश कुमार
बात पुरानी है .घूमने फिरने के शौक के चलते चकराता का कार्यक्रम बना और वहां जाने रुकने के लिए हरिद्वार के संवादाता सुनील दत पांडेय ने परमिट वगैरह बनवा दिया क्योकि सारा इलाका सेना के अधीन है . चकराता बस से गए थे और ज्यादा जानकारी नहीं थी .जब पहुंचे तो भीगी हुई शाम थी .रास्ता पूछते पूछते डाक बंगला की तरफ चले तो घने देवदार की जंगलों में एक किलोमीटर से भी ज्यादा चलने पर एक पुराना बंगला नजर आया जो बंद था .बरामदे की कुर्सियों पर बैठे तभी एक बुजुर्ग सामने आए जो उसके चौकीदार और खानसामा सभी थे .खैर चाय और रात के खाने के बारे में पूछा तो जवाब मिला ,बाजार से साम लाना होगा तभी कुछ बन पाएगा और बाजार बंद होने वाला है .
नाम नहीं याद पर चौकीदार ने डाक बंगले का एक सूट खोल दिया जो ठंडा और सीलन भरा था जिसके कोने में बने फायर प्लेस में रखी लकड़ी को जलाने के साथ मेरे और सविता के लिए दो कप दार्जलिंग वाली चाय भी ले आया तो कुछ रहत मिली .ठंड बढ़ चुकी थी और बाहर बरसात और धुंध से ज्यादा दूर दिख भी नहीं रहा था .यह डाक बंगला अंग्रेजों के ज़माने का था जिसका एक हिस्सा स्कूल में तब्दील हो चुका था .बाद में चौकीदार ने बताया वह भी उसी दौर से यहाँ पर है और जब राजीव गाँधी देहरादून में पढ़ते थे तो छुट्टियों में यही आते और रुकते थे .डाक बंगले में बिजली नहीं थी और एक पुराने लैम्प की रौशनी में खाना खाते हुए चौकीदार से कुछ पुराने किस्से सुन रहे थे .और उस वीराने में कुछ था भी नहीं बाहर बरसात के चलते अगर निकलते भी तो घना अँधेरा .तेज हवा के साथ बरसात की तेज बूंदे टिन की छत पर गिरकर कर्कश आवाज कर रही थी .कमरे के भीतर एक कोने में भी पानी की बूंदे अपना रास्ता तलाश रही थी .
सुबह चाय के लिए जब दरवाजा खटखटाया गया तो नींद खुली और सामने का नजारा देख कर हैरान थे .बदल छंट चुके थे और सामने हिमालय की लम्बी श्रृखला पर सूरज की चमकती किरणों से जो रंग बन रहा था वह अद्भुत था .चारो और जंगल की हारियाली और पहाडो की सफ़ेद बर्फ सम्मोहित कर रही थी .चाय की प्याली लेकर बाहर निकले तो गिट्टी पर रखी कुर्सियों पर जम गए .उठने का मन नहीं हो रहा था .चकराता में देवदार के घने जंगल है और कोई आबादी नहीं .निर्माण पर रोक है .इतनी शांत जगह बहुत कम मिलती है .चौकीदार से घूमने के बारे में पूछा तो उसने टाइगर फाल जाने को कहा पर हिदायत दी कि कोई स्थानीय व्यक्ति को साथ ले ले वर्ना भटक जाएंगे.दूरी करीब आठ दस किलोमीटर की थी पर बहुत निचे उतर कर फिर इतना ही चढ़ना भी था .पर तय कर लिया जाना है ओर चल पड़े .जंगल के बीच से और रास्ता चरवाहों से पूछते गए रास्ता क्या था पगडंडी थी जो कई जगह खतरनाक हो जाती थी .करीब तीन बजे शाम को टाइगर फाल तक पहुँच गए .यह झरना भी काफी खुबसूरत है और बाहुत उंचाई से गिरता है .यही पानी बाद में नदी में तब्दील हो जाता है .करीब आधा घंटा ही हुआ की सामने बदल उमड़ते दिखे और हलकी बरसात भी .स्थानीय लोगों ने कहा किसी को साथ लेकर जाए वर्ना जंगल में फंस सकते है .
एक बच्चे को साथ लिया और बारिश में चढ़ाई शुरू कर दी .चार किलोमीटर की चढ़ाई के बाद जो बरसात तेज हुई तो वह बच्चा भी भाग गया और अँधेरा छाने लगा बरसात अब मुसलाधार हो चुकी थी और जिस पगडंडी के सहारे पेड़ों को पकड़ कर चढ़ रहे थे वह पगडंडी तेज बरसाती नाले में बदल चुकी थी .अब दर भी लग रहा था और साँस भी फूलने लगी थी .कई जगह फिसल कर मिटटी में सराबोर हो चुके थे .कुछ आगे बढे तो सविता पानी के तेज बहाव में नीचे गिरते गिरते बची और ठंड से कांपती हुई बोली अब चला नहीं जा सकता .छोड़ दो .ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था .ठंड में ज्यादा देर रहना खतरनाक था .हिम्मत कर घिसते हुए आधा किलोमीटर चले तो एक गुरुद्वारा दिखा .जान में जान आ गई और अब लगा सही सलामत डाक बंगला तक पहुँच सकते है .गुरुद्वरा का दरवाजा खटखटाया तो बुजुर्ग महिला हम लोगों की हालत देख हैरान थी .तौलिया ,कम्बल दिया और अंगीठी के सामने बिठा कर चाय पिलाई और डांट भी लगाई . बताया यह जंगल जानवरों से भरा है और बिना गाइड कोई सैलानी इस तरह नहीं जाता .खैर घंटे भर बाद सामान्य हुए तो सरदारजी ने टार्च के साथ अपना नौकर भी साथ भेजा .चढ़ाई अभी भी थी पर उत्साह बढ़ चुका था .डाक बंगला पहुँचने से पहले बाजार में रुके और एक फोटोग्राफ़र से सविता की फोटो भी खिंचवाई ताकि यह घटना याद रहे .डाक बंगला पहुच क़र भीगे कपड़ों को बदलने के बाद आग के सामने बैठे . चौकीदार बाबा की चाय के साथ अब हम उन्हें दिनभर का किस्सा सुना रहे थे .ऐसा ही वाकया दूसरी बार गोवा में दूध सागर वाटरफाल की यात्रा के दौरान हुआ था .पर अब वह भुतहा डाक बंगला अपने घर जैसा लग रहा था .

Sunday, February 19, 2012

लो जंगल में फिर दहका बुरांश


नैनीताल से प्रयाग पाण्डे
बसंत और फूल एक-दूसरे के पूरक हैं। जहाँ फूल है, वहां बारहों महीने बसंत है। बसंत है, तो फूल हैं। फूल बसंत ऋतु के द्योतक है। वनों को प्रकृति का श्रृंगार कहा जाता है। वनों के श्रृंगार से आच्छादित प्रकृति बसंत ऋतु में रंग-बिरंगे फूलों के नायाब गहनों से सज-संवर जाती है। फूलों का यह गहना प्रकृति के सौंदर्य में चार चाॅद लगा देता है। प्रकृति के हरे परिवेश में सूर्ख लाल रंग के फूल खिल उठे हों तो यह दिलकश नजारा हर किसी का मन मोह लेता है।उतराखंड के हरे-भरे जंगलों के बीच चटक लाल रंग के बुरांश के फूलों का खिलना पहाड़ में बसंत ऋतु के यौवन का सूचक है। बसंत के आते ही इन दिनों पहाड़ के जंगल बुरांश के सूर्ख लाल फूलों से मानो लद गये है। बुरांश ने धरती के गले को पुष्पाहार से सजा सा दिया है। बुरांश के फूलने से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठा है।
बुरांश जब खिलता है तो पहाड़ के जंगलों में बहार आ जाती है। घने जंगलों के बीच अचानक चटक लाल बुरांश के फूल के खिल उठने से जंगले के दहकने का भ्रम होता है। जब बुरांश के पेड़ लाल फूलों से ढक जाते है तो ऐसा आभास होता है कि मानो प्रकृति ने लाल चादर ओढ़ ली हो। बुरांश को जंगल की ज्वाला भी कहा जाता है।उŸाराखण्ड के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में बुरांश का महत्व महज एक पेड़ और फूल से कहीं बढ़कर है। बुरांश उŸाराखण्ड के लोक जीवन में रचा-बसा है। बुराॅश महज बसंत के आगमन का सूचक नहीं है, बल्कि सदियों से लोक गायकों, लेखकों, कवियों, घुम्मकडों़ और प्रकृति प्रेमियांे की प्रेरणा का स्रोत रहा है। बुराॅश उतराखंड के हरेक पहलु के सभी रंगों को अपने में समेटे है।
हिमालय के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन, प्रियसी की उपमा, प्रेमाभिव्यक्ति, मिलन हो या विरह सभी प्रकार के लोक गीतों की भावाभिव्यक्ति का माध्यम बुराॅश है। उतराखंड के कई लोक गीत बुरांश के इर्द-गिर्द रचे गये है। विरह गीतों की मुख्य विषय-वस्तु बुरांश ही है। पहाड़ में बुरांश के खिलते ही कई भूले-बिसरे लोक गीत एकाएक स्वर पा जाते है। “उ कुमूॅ य जां एक सा द्यूं प्यार सवन धरती मैं, “उ कुमूॅ य जां कुन्ज, बुंरूस, चम्प, चमेलि, दगडै़ फुलनी। “
बुरांश का खिलना प्रसन्न्ाता का द्योतक है। बुराॅश का फूल यौवन और आशावादिता का सूचक है। प्रेम और उल्लास की अभिव्यक्ति है। बुराॅश का गिरना विरह और नश्वरता का प्रतीक है। बुराॅश रहित जंगल कितने उदास और भावशून्य हो जाते है। इस पीडा़ को लोकगीतों के जरिये बखूबी महसूस किया जा सकता है।
बुराॅश के फूल में हिमालय की विराटता है। सौंदर्य है। शिवजी की शोभा है। पार्वती की झिलमिल चादर है। शिवजी सहित सभी देवतागण बुरांश के फूलों से बने रंगों से ही होली खेलते है। लोक कवि चारू चन्द्र पाण्डे ने लिखा यह बुराॅश आधारित होली गीत लोक जीवन में बुराॅश की गहरी पैंठ को उजागर करता है- “बुरूंशी का फूलों को कुम-कुम मारो, डाना-काना छाजि गै बसंती नारंगी। पारवती ज्यूकि झिलमिल चादर, ह्यूं की परिन लै रंगै सतरंगी। लाल भई छ हिमांचल रेखा, शिवजी की शोभा पिङलि दनिकारी। सूरजा की बेटियों लै सरग बै रंग घोलि, सारी ही गागरि ख्वारन खिति डारी,...।“
बुराॅश ने लोक रचनाकारों को कलात्मक उन्मुक्तता, प्रयोगशीलता और सौंदर्य बोध दिया। होली से लेकर प्रेम, सौंदर्य और विरह सभी प्रकार के लोक गीतों के भावों को व्यक्त करने का जरिया बुराॅश बना। वहीं पहाड़ के रोजमर्रा के जीवन में बुरांश किसी वरदान से कम नहीं है। बुरांश के फूलों का जूस और शरबत बनता है। इसे हृदय रोग और महिलाओं को होने वाले सफेद प्रदर रोग के लिए रामबाण दवा माना जाता है। बुरांश की पत्तियों को आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग किया जाता है। बुराॅश की लकडी़ स्थानीय कृषि उपकरणों से लेकर जलावन तक सभी काम आती है। चैडी़ पत्ती वाला वृक्ष होने के नाते बुरांश जल संग्रहण में मददगार है। पहाडी़ इलाकों के जल स्रोतो को जिंदा रखने में बुरांश के पेडा़े का बडा़ योगदान है। इनके पेडा़े की जडे़ भू-क्षरण रोकने में भी असरदार मानी जाती है।
भारत में बुराॅश के पेड़ उतराखंड और हिमांचल प्रदेश में 1800-3600 मीटर की मध्यम ऊँचाई वाले मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाये जाते है। उŸाराखण्ड सरकार ने बुराॅश को राज्य वृक्ष घोषित किया है। नेपाल में बुरांश के फूल को राष्ट्रीय फूल का औहदा हासिल है। बुराॅश सदाबहार पेड़ है। बुरांश बुके पेड़ भारत के अलावा नेपाल, बर्मा, श्रीलंका, तिब्बत, चीन, जापान आदि देशों में पाये जाते है। अंग्रेज इसे रोह्डोडेन्ड्रान कहते है। इस पेड़ की विश्व में एक सौ से ज्यादा प्रजातियाॅ है। प्रजाति और ऊँचाई के आधार पर बुरांश के फूलों का रंग भी अलग-अलग होता है। सूर्ख लाल, गुलाबी, पीला और सफेद। ऊँचाई बढ़ने के साथ बुराॅश का रंग भी बदलता रहता है। कम ऊँचाई वाले इलाकों में बुरांश के फूल का रंग लाल होता है। जबकि अधिक ऊँचाई वाले इलाकों में बुरांश के फूल का रंग सफेद होता है।
दुर्भाग्य से पहाड़ मंे बुरांश के पेड़ तेजी के साथ घट रहे हैं। अवैध कटान के चलते कई इलाकों में बुराॅश लुप्त होने के कगार पर पहुॅच गया है। नई पौधंे उग नहीं रही है। जानकारों की राय में पर्यावरण की हिफाजत के लिए बुराॅश का संरक्षण जरूरी है। अगर बुरांश के पेडों़ के कम होने की मौजूदा रफ्तार जारी रही तो आत्मीयता के प्रतीक बुरांश के फूल के साथ पहाड़ के जंगलों की रौनक भी खत्म हो जाएगी। बुरांश सिर्फ पुराने लोकगीतों में ही रह जाएगा। बसंत ऋतु फिर आएगी। बुरांश विहीन पहाड़ में बसंत के क्या मायने रह जाएगें। नीरस और फीका बसंत।
www.janadesh.in

अटल से लेकर सोनिया गांधी तक के गढ़ में चुनौती दे रही है सपा


अंबरीश कुमार / वीथिका
लखनऊ/रायबरेली , फरवरी। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के आज चौथे चरण के मतदान के बाद सभी दलों के दावों के बीच यह साफ़ हो चुका है कि पूरी ताकत और दमखम के साथ सिर्फ समाजवादी पार्टी ही लड़ रही है । शहरी इलाकों के चुनाव में नए ,युवा और बढे हुए मतदाताओं के चलते सभी दल आशंकित है पर ग्रामीण इलाकों में जहां जातियां लडती है वहां समाजवादी पार्टी सभी जगहों पर मुकाबला कर रही है । यह रुख पूर्वांचल के बाद आज हुए ५६ सीटों के मतदान में भी दिखा । लखनऊ में इस बार भाजपा को सपा के साथ कांग्रेस भी कड़ी टक्कर दे रही है । कुछ जगहों पर बातचीत के बाद नौजवानों का रुझान कांग्रेस ,सपा और फिर भाजपा के पक्ष में दिखा जिसमे आभिजात्य वर्गीय नौजवानों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ नजर आया । पर यह सिर्फ इस शहर के पाश इलाकों का रुझान है इससे भ्रमित नहीं हुआ जा सकता गाँव कस्बो की तरफ बढ़ते ही नजारा बदल जाता है । लखनऊ में अटल विहारी वाजपेयी के असर के चलते कलराज मिश्र को शहरी इलाके में अच्छा समर्थन मीलने की उम्मीद जताई जा रही है। पर इसी शहर की दूसरी सीटों पर समीकरण बदले बदले नजर आ रहे है। फ़िलहाल तस्वीर अभी बहुत साफ़ नहीं है पर अन्य जिलों से जो खबरे आ रही है उनसे एक संदेश साफ़ है कि ज्यादातर सीटों पर समाजवादी पार्टी मजबूती से लड़ रही है । लखनऊ के चुनाव पर नजर रखने वाले वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा - आज जिस तरह मुस्लिम मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट डाला वह १९९३ की याद दिलाता है पर बड़ा फर्क यह है कि यह कोई मजहबी ध्रुवीकरण नहीं बल्कि सत्ता विरोधी रुझान को दर्शा रहा था । यही वजह है कि कही कोई तनाव नहीं हुआ ।
इस बीच समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि विधान सभा के चौथे चरण के मतदान के परिणाम बहुत ज्यादा समाजवादी पार्टी के अनुकूल रहे हैं। पिछले तीन चरणों में जो रूझान मतदाताओं का समाजवादी पार्टी के पक्ष में दिखाई पड़ रहा था, उसमें अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। जनता ने अब त्रिशंकु विधान सभा के खतरे को महसूस करते हुए समाजवादी पार्टी की बहुमत की सरकार बनाने का मन बना लिया है। ऐसा विश्वास हो चला है कि समाजवादी पार्टी को अब तक लगभग 140 से ज्यादा सीटो पर जीत हासिल होगी।
दूसरी तरफ रायबरेली और अमेठी जैसे गांधी परिवार के गढ़ में समाजवादी पार्टी एक छोड़ सभी सीटों पर जिस तरह कांग्रेस को चुनौती दे रही है वह पार्टी के रणनीतिकारों को परेशान कर रहा है । रायबरेली सदर में तो बाहुबली अखिलेश सिंह जो हर बार आसानी से जीत जाते थे उन्हें भी कांटे का मुकाबला करना पड़ रहा है । इसी तरह समाजवादी पार्टी बछरांवा ,हरचंदपुर ,सरैनी ,ऊंचाहार विधान सभा सीट पर कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही है । रायबरेली से जनसत्ता की प्रतिनिधि वीथिका के मुताबिक जिस तरह मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाताओं का झुकाव सपा के पक्ष में आज दिखा वह पहले कभी नहीं दिखा । यह कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योकि उसने पिछले २२ साल में रायबरेली में किसी ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया । ब्राह्मणों के रुख को लेकर जब प्रियंका गांधी से जनसत्ता ने बात की तो उनका जवाब था ,ब्राह्मण हमें नहीं वोट देगा तो किसे वोट देगा । पर जब उन्हें बताया गया कि ब्राह्मणों में यह नाराजगी टिकट बंटवारे को लेकर थी तो प्रिनका गांधी ने कहा -इस गलती को सुधारा जाना चाहिए था । आखिर कांग्रेस ही तो वह पार्टी है जिसके कार्यकर्त्ता मुझसे और राहुल गांधी से यहाँ मिल साकते है और अपनी बात कह सकते है । दूसरे दलों में यह बात नहीं है ।
अमेठी से स्वामिनाथ शुक्ल के मुताबिक अमेठी क्षेत्र की पांचो विधानसभा सीटो पर हुए मतदान में मुस्लिम, यादव व क्षत्रिय मतदाताओं का रूझान सपा में नजर आ रहा है। जो कांग्रेस प्रत्याशियो के लिए शुभ सकेंत नही है। आज के मतदान में तिलोइ के राजा मयंकेश्वर शरण सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर है। साफ़ है इस बार अपने गढ़ में भी कांग्रेस का रास्ता बहुत आसान नहीं है । जनसत्ता

Saturday, February 18, 2012

खलनायक बन गए है कल्याण ,अमर और पासवान


अम्बरीश कुमार
लखनऊ, फरवरी। उत्तर प्रदेश के राजनैतिक अखाड़े में इस समय कुछ नेता ऐसे है जो दूसरे दलों की निगाह में खलनायक बने हुए है और उनका खतरा भी खुलकर दिख रहा है । इन नेताओं में तीन नेता ज्यादा महत्वपूर्ण है जो राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करते रहे है । ये नेता है पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ,पूर्व केन्द्रीय मंत्री राम विलास पासवान और संसद अमर सिंह । कल्याण सिंह ने आज उमा भारती के क्षेत्र में जाकर चुनौती दी तो पासवान प्रतापगढ़ से लेकर कई इलाकों में मायावती के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है । अमर सिंह कही असर डाले न डाले रामपुर में आजम खान को बांध कर रख दिया है और इस बार का चुनाव उनके लिए पहले के चुनाव जैसा नहीं रह गया है । आज अमर सिंह फिर चर्चा में आए जब महोबा के एक गाँव में हेलीकाप्टर से उतरते समय उन्हें चोट लग गई । दूसरी तरफ कल्याण सिंह ने आज चरखारी विधान सभा क्षेत्र में लोध बिरादरी को एकजुट करने के लिए पनवाड़ी में जनसभा की । इससे पहले कल्याण सिंह ने जनसत्ता से कहा -हम पूरी ताकत से लड़ रहे है और बहुत सी सीटों पर आगे है । चरखारी में लोग हमारे साथ है भाजपा के साथ नहीं । फतेहपुर से लेकर एटा तक राष्ट्रीय जन क्रांति पार्टी अपना दबदबा दिखा रही है । हमने किसी का कही पर भी समर्थन नहीं किया है और अपनी ताकत पर चुनाव लड़ रहे है । कल्याण सिंह के चलते भाजपा आशंकित है और भाजपा की निगाह में वे खलनायक ही है ।चरखारी में लोध वोटों का बंटवारा उमा भारती के लिए संकट पैदा कर सकता है । पर फिलहाल उमा भारती औरों पर भरी नजर आ रही है । उमा भारती कल्याण सिंह को पिता समान मानती है और कह चुकी है कि पुत्र उनका राजनैतिक उतराधिकारी बने या न बने यह पुत्री उनकी राजनैतिक विरासत को जरुर संभालेगी । इन हालात में चरखारी चुनाव पर लोगों की नजर लगी हुई है ।
अमर सिंह जो कभी सपा के नायक होते थे वे आज अपनी पुरानी पार्टी के लिए खलनायक बन गए है । चर्चा ,पर्चा और खर्चा के मूल मंत्र से राजनीती का ककहरा सीखने वाले अमर सिंह खुद इस मूल मंत्र के शिकार हो चुके है । आज परचा भी साथ नहीं दे रहा जिसके चलते अखबारों में विज्ञापन के जरिए अपन बात कहनी पद रही है ।अमर सिंह का कहना है -मेरे जख्म मेरे जेवर है ,मेरी जिल्लतों ने मुझे तराशा है मेरे विरोधी मेरे सहयोगी है ।पर उनके विरोधी भी उनके दांव पेंच से आशंकित रहते है । मुलायाम सिंह ने इस संवादाता से कहा था -अमर सिंह रामपुर में आजम खान को हराने के लिए कोई कसार नहीं छोड़ रहे । यह भी चर्चा है कि पैसा बंटवाया जा रहा है । मुलायम के इस बयान से साफ़ है कि इस दौर में भी अमर सिंह को ख़ारिज नहीं किया जा सकता । दूसरी तरफ मायावती की निगाह में एक खलनायक राम विलास पासवान है जो लगातार सभाए कर रहे है । प्रतापगढ़ के रामलीला मैदान में लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम विलास पासवान ने कहा -मायावती ने बाबा साहेब अम्बेडकर व अन्य महापुरूषों के बगल में अपनी मूर्ति लगवाकर सरकारी खजाने का दुरूपयोग करने के साथ साथ महापुरूषों का भी अपमान किया है। पासवान ने कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी उत्तर प्रदेश मे सत्ता में आई तो हर गरीब भूमिहीन दलितों को सरकार की ओर से जमीन दी जाएगी । पासवान पूर्वांचल के मतदान के बाद भी लगातार दौरा कर रहे है । चुनाव बाद उनके वोटों का आकलन भी दिलचस्प होगा ।बहरहाल तीनो नेता जो राजनीति में किसी के लिए खलनायक बन गए है वे अपने दौर के अपनी राजनीति के नायक भी रहे है । चाहे मंदिर आंदोलन हो मंडल हो या बिहार की राजनीति में दलित उभार का प्रयास हो ।

Friday, February 17, 2012

यह 'ठाकरे बनाम ठाकरे' है


मुंबई से नमिता जोशी
जिस तरह गाँव के दंगल से राष्ट्र की राजनीति नहीं नापी जा सकती उसी तरह मुंबई समेत महाराष्ट्र के नतीजों से देश के विभिन्न राज्यों में हो रहे चुनाव का आकलन करना ठीक नहीं होगा । इन्हें 'स्थानीय' निकाय कहा जाता है इसलिए इसे 'स्थानीय ' ही रहने दिया जाए तो ज्यादा बेहतर है। यहाँ जिस तरह मराठी मानुष ,मराठी अस्मिता और ठाकरे परिवार के नाम की राजनीति होती है वैसी राजनीति उत्तर भारत के किसी राज्य में संभव भी नहीं है ।हालाँकि यह सिर्फ एक दो गुट और उनके समर्थकों तक ज्यादा सीमित रहती है । इन गुटों की तरह न तो पंजाब के लोग इस तरह पंजाबी के लिए लड़ते मरते है (एक दौर छोड़कर वह भी एक खास गुट का खेल रहा ) और न ही उतरांचल में गढ़वाली और कुमाउनी के लिए कोई किसी का सर फोड़ता है । यहाँ पिछले कुछ सालों से एक युद्ध चल रहा है जो सुर्ख़ियों में तब आता है जब उत्तर भारतीय प्रान्तों के लोग पीटे जाते है । मुंबई पर बाल ठाकरे के वर्चस्व को जिन राज ठाकरे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनौती दी थी वह परिवार की लड़ाई में हार गए है यह इस चुनाव का सबसे बड़ा सन्देश है पर दादर के गढ़ पर राज ठाकरे का झंडा लहरा चुका है यह दूसरा सच भी है । ऊतर भारत के लोगों ने इन चुनाव में ठाकरे परिवार में से बाल ठाकरे को चुना क्योकि राज ठाकरे की सेना की तरह उन्होंने 'भैय्या 'लोगों लानत मलानत नहीं की थी ।ऐसे में एक ठाकरे के आतंक से अगर दूसरा ठाकरे बचा ले तो उसे चुनना बेहतर है । दूसरा मराठी भाषी लोगों ने भी राज ठाकरे की जहर घोलने वाली राजनीति का साथ नहीं दिया यह भी साफ़ है ।
बाल ठाकरे का मुंबई की राजनीती पर बहुत समय से दबदबा रहा है जिसे उनके ही परिवार के राज ठाकरे ने चुनौती दी थी । बाल ठाकरे जिस कट्टरता की राजनीति करते रहे उससे आगे निकलने के लिए राज ठाकरे ने मुंबई में मराठी बनाम गैर मराठी का जो जहर घोला था वह ज्यादा नहीं फैला वर्ना हालात कुछ और होते । मुंबई में ऑटो वालों से लेकर खोमचे वालों की जिस तरह पिटाई हुई वह हिदुत्व की दुकान चलने वालों के लिए जरुर शोध का विषय हो सकता है पर मुंबई में लोग इसे परिवार के वर्चस्व की लड़ाई से ही जोड़कर देखते रहे । और उन्ही राज ठाकरे को इन चुनाव में आक्सीजन देने वाले पंवार की एनसीपी ने कांग्रेस का भठ्ठा बिठा दिया ।
एनसीपी के इस खेल में कांग्रेस तो डूबी ही खुद एनसीपी और किंगमेकर राज ठाकरे भी निपटे पर नासिक और पुणे को बचा ले गए । अब फिर अस्सी पार का शेर चिन्ह वाला वह बूढ़ा दहाड़ रहा है जिसपर अन्ना हजार तंज कस रहे थे । इस पुरी कहानी में किसी ने कितना मतदान हुआ और किन लोगों ने मतदान किया इस पार नजर नहीं डाली । यहाँ ४०-४५ फीसद मतदान में यह जनादेश आ गया है जिसपर बौद्धिक चल रहा है । यानी साठ फीसद आबादी इस मतदान से बाहर रही । इस मतदान से बाहर हुए ज्यादातर लोग कोई मराठी नहीं बल्कि दूसरे प्रांतों के लोग थे जिन्हें मतदाता बनने का मौका भी नहीं मिला । एकनामिक टाइम्स के पत्रकार जब भिड कर मतदाता बंनने का प्रयास कर रहे तो एक अफसर ने पूछा -कहा रहता है ,उन्होंने एपार्टमेंट का नाम बताया तो पूछा गया ,भाड़े पर रहता है जवाब में हा सुनते ही वह अफसर भड़का और बोला -भाड़े पर आज यहाँ कल वहां ऐसे वोटर कैसे बन जाएगा।यह एक उदाहरण है ।और जो पुराने मतदाता थे वे निकले भी नहीं ।
अब राजनीति पर भी नज़र डाल लें ।शिव सेना ने यहाँ के अख़बारों में पहले पेज पर जो विज्ञापन दिया उसमे मुंबई के करीब डेढ़ लाख करोड़ रूपए टैक्स का मुद्दा उठाया जो यहाँ से केंद्र को जाता है और इसे मुंबई को देने की जायज मांग भी की । यह लोगों को अपील भी करने वाला था । इसका फायदा भी मिला होगा । पर रोचक यह है कि जिन बड़े कारपोरेट घरानों की इस टैक्स में बड़ी हिस्सेदारी है मसलन अम्बानी आदि उनके मुंबई में कारपोरेट दफ्तर है और कल कारखानों का बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों में है जिनमे उत्तर भारत के राज्य भी शामिल है ।ऐसे में कमाने वाले राज्य उत्तर भारतीय है और कारपोरेट दफ्तर मुंबई से चलाने की वजह से उनकी आमदनी का टैक्स सिर्फ मुंबई को मिले यह सवाल कहा तक जायज है । पर बाल ठाकरे अपना सन्देश पहुँचाने में सफल रहे और मुंबई पर अपना दबदबा फिर दिखा दिया । ये वही ठाकरे है जिन्होंने ताल ठोक कर अन्ना महाराज को चुनौती भी दी थी और उनकी मुंबई से ही अन्ना आन्दोलन की हवा भी निकली । इसलिए इन चुनाव के नतीजों से ज्यादा ग़लतफ़हमी नहीं पालनी चाहिए ।जनादेश से

न उगाही ,न गुंडई का नारा और आडवानी के मंच पर तीन तीन मुजरिम !


अम्बरीश कुमार
लखनऊ 17 फरवरी। शुचिता और स्वराज की अलख जगाने वाली भाजपा का इस बार नारा है ,न उगाही ,न गुंडई ..हम देंगे साफ सुथरी सरकार । पर गुरूवार की रात जब भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवानी लखनऊ में भाजपा के समर्थन में जनसभा करने आए तो मंच पर टंडन परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ हत्या के तीन मुजरिम भी थे । यह देख पार्टी अ एक खेमा नाराज भी हुआ । मंच पर और बगल में अन्य नेताओं के साथ अभय सेठ ,अशोक मिश्र और नरेश सोनकर भी थे । इन पर हत्या जैसे अपराध के आरोप लग चुके है ,पार्टी सूत्रों ने यह जानकारी दी । जमीन पर कब्जे के खेल में बाकायदा फर्जी मुठभेड़ में एक आदमी की जान ले ली गई थी ।इस बारे में भाजपा प्रवक्ता ह्रदय नारायण दीक्षित से पूछने पर उनका जवाब था - सेठ के बारे में सुना था कोई मुकदमा चल रहा था पर इस बारे में बहुत जानकारी नहीं है । बहरहाल लखनऊ में इससे पार्टी का चल चरित्र और चेहरा जरुर सामने आ जाता है । पार्टी कांग्रेस के वंशवाद पर लगातार हमला कर रही है और गुरुवार को जब गडकरी कांग्रेस को माँ बेटे की पार्टी बता रहे थे तभी नीचे बैठे संघ के के एक पुराने कार्यकर्त्ता की टिप्पणी थी -यहा टंडन जी की तीन पीढियां मंच पर विराजमान है । लालजी टंडन टंडन के तीन पुत्र आशुतोष टंडन ,सुबोध टंडन ,अमित टंडन के साथ पोता वंश टंडन की मौजूदगी किस वंशवाद की तरफ इशारा कर रही है ,यह गडकरी नहीं समझ पाएंगे ।
यह एक बानगी है लखनऊ में भाजपा की मौजूदा राजनीति को समझने के लिए । पार्टी की बड़ी समस्या अपनी तीन सीटों को बचाने की है ।यह अटल विहारी वाजपेयी का गढ़ है और रोचक तथ्य यह है कि चुनाव आयोग को भेजी गई सूची में आज भी वाजपेयी पार्टी के स्टार प्रचारक है । पार्टी पिछले ढाई दशक से वाजपेयी के सहारे लखनऊ में अपना झंडा उठाए हुए है और आज जब अटल विहारी वाजपेयी वाजपेयी चल फिर भी नहीं पा रहे तो वे स्टार प्रचारक है । अब वाजपेयी की राजनैतिक विरासत टंडन के हाथ में है जिसे वे अपनी विरासत में तब्दील करते नजर आ रहे है ।पिछली बार विधान सभा उप चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अमित पुरी इसी वजह से हरा दिए गए और इस बार लालजी टंडन के पुत्र गोपाल टंडन मैदान में है । सभी का यह मानना है कि यह चुनाव गोपाल टंडन नहीं बल्कि खुद लालजी टंडन लड़ रहे है । पुत्र के चक्कर में पार्टी के नेता और कार्यकार्ता सभी नाराज हुए और टंडन अब सभी को मनाने में जुटे है । दूसरी तरफ बसपा से भी तार जोड़ा गया है ताकि उधर से ही कोई मदद मिल जाए । अपने लम्बे राजनैतिक जीवन में टंडन के रिश्ते सत्ता के साथ हमेशा मधुर रहे है । मायावती उन्हें राखी बांधती थी तो आन्दोलन के दौरान प्रदर्शन करने गए टंडन को मुलायम सिंह रसगुल्ला खिलाकर वापस भेजते ।
पर अब लालजी टंडन को पुत्र और पार्टी दोनों की साख बचानी है । इसके साथ ही कलराज मिश्र का चुनाव भी है । कलराज मिश्र की राजनैतिक प्रतिष्ठा दांव पर है तो है ही पर इसमे टंडन की भूमिका भी मानी जाती है । इन चुनाव में भितरघात भी हो रहा है और हर हथकंडे इस्तेमाल किए जा रहे है । तभी जो मिला वह साथ लिया जाए की तर्ज पर आडवानी के साथ मंच पर उन लोगों को भी जगह दी जा रही है जिनके खिलाफ पार्टी ने अपना नया नारा गढ़ा है । जो काम टंडन ने अमित पूरी के चुनाव में किया ठीक वैसा योगदान इस बार कुछ खेमे गोपाल टंडन के साथ कलराज मिश्र के चुनाव में भी दे रहे है । लखनऊ विश्विद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रमेश श्रीवास्तव जो कांग्रेस के उम्मीदवार है उनके समर्थन में पिछले बीस साल के दर्जनों छात्र नेता जुट गए है जिससे शहरी वोटों वाली भाजपा को भी चुनौती मिल रही है । इसी तरह दो और सीटों पर शहरी वोटों के बंटवारे के चलते समाजवादी पार्टी को भी काफी उम्मीद नजर आ रही है और मुकाबला तिकोना होता नजर आ रहा है । आज समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लखनऊ में कई जगह दौरा किया और सभाए की । पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -लखनऊ में सपा को इस बार ज्यादा फायदा होने जा रहा है क्योकि यहाँ पर हमारा संघर्ष भी ज्यादा हुआ है । ऐसे में भाजपा के लिए इस बार रास्ता बहुत आसान नाजर नहीं आता ।jansatta