Tuesday, December 18, 2012

आरक्षण को लेकर भाजपा में बगावत

अंबरीश कुमार लखनऊ ,दिसंबर। उत्तर प्रदेश में फिर नए राजनैतिक ध्रुवीकरण कि जमीन तैयार होने लगी है । लगातार नए नए जातीय समीकरण यहाँ बनते रहे है और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर जिस तरह अगड़ी जातियों की नाराजगी का राजनैतिक फायदा समाजवादी पार्टी उठा रही है उससे सबसे ज्यादा चिंता भाजपा नेताओं को हो रही है । सरकारी कर्मचारी की नाराजगी का शिकार बन रही भाजपा के कल दो नेताओं ने आरक्षण के मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती दी तो आज प्रदेश भाजपा ने रही सही कसर पूरी कर दी । प्रदेश भाजपा ने आज कहा कि लोकसभा में आरक्षण संशोधन बिल पर फिर से विचार किया जाए । उत्तर प्रदेश में जो माहौल बन रहा है उसमे राजनैतिक दलों के सामने नया संकट पैदा हो रहा है । भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहा -अब तो बड़ी राजनैतिक लड़ाई समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में सिमट गई है । आरक्षण के मुद्दे पर मायावती का दलित जनाधार पूरी तरह मजबूत हुआ है तो मुलायम सिंह के साथ अगड़ों का बड़ा हिस्सा खड़ा हो गया है । इस मामले में राजनैतिक फायदा मुलायम सिंह का ज्यादा हो रहा है ।सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा का होगा जो अगड़ी जातियों के हित साधने का दावा करती रही है ।कांग्रेस के पद खीने के लिए भी कुछ बचता नहीं दिख रहा । साफ़ है कि अब फिर नए समीकरण बनने के आसार है । भाकपा नेता की इस टिपण्णी से प्रदेश के राजनैतिक हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है । उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के आन्दोलन को अखिलेश यादव सरकार का अप्रत्यक्ष समर्थन हासिल है यह किसी से छुपा नहीं है । सरकारी कर्मचारियों के निशाने पर भाजपा और कांग्रेस ही है और कल भी तो आज भी इनके दफ्तरों पर हंगामा हुआ ।सर्वजन हिताय संरक्षण समिति ने राज्य सभा में पदोन्नति में आरक्षण विषयक संविधान संशोधन बिल पारित किए जाने को संसदीय लोकतंत्र का काला दिन करार देते हुए काँग्रेस व भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में परिणाम भुगतने को तैयार रहने की चेतावनी दी है। भाजपा इस सबसे बहुत चिंतित भी है और प्रदेश के ज्यादातर वरिष्ठ नेता प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ है । आज यहाँ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता सत्यदेव सिंह ने कहा कि कल राज्य सभा में जो 117वाँ संविधान संशोधन दो तिहाई बहुमत से स्वीकार किया गया है वह संविधान संशोधन सामाजिक समरसता को कमजोर करेगा एवं आने वाले समय में समाज में विद्वेष और रोष को बढ़ाएगा।। बुधवार को इस विधेयक को लोकसभा से पारित कराया जाना है। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए पहले से ही संविधान में समुचित व्यवस्था है और यदि इसके रहते भी वांछित परिणाम नही आ पाएं है तो इसकी जिम्मेदारी केन्द्र सरकार पर है। ऐसे क्या कारण रहे है जिससे संविधान प्रदत्त आरक्षण का पूरा लाभ अनुसूचित जाति एवं जनजाति को नही मिल पाया है। पार्टी प्रवक्ता ने आगे कहा -आरक्षण व्यवस्था जाति व्यवस्था तथा सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध सुरक्षा एवं अवसर प्रदान करने के लिए संविधान में स्वीकार किया गया है। सबको बराबर का अवसर, भागीदारी एवं राष्ट्रीय सम्पदा में समानता के सिद्धांत पर साझेदारी के अवसर उपलब्ध कराना ही आरक्षण की मूल भावना है। यह संविधान संशोधन सामाजिक समरसता को कमजोर करेगा एवं आने वाले समय में समाज में विद्वेष और रोष को बढ़ाएगा। लोकसभा के सभी सम्मानित सदस्यों को इस आरक्षण से उपज रहे तनाव, प्रशासनिक दक्षता पर होने वाले आघात को विचार में रख कर ही मतदान करें ऐसा आग्रह है। राष्ट्रहित समाज हित व वंचितों तथा पिछड़े गए लोगों के हित का सम्यक ध्यान रख कर ही इस संविधान संशोधन पर लोकसभा में मतदान होना चाहिए। जल्दवाजी में और मात्र चुनावों की गणित से समाज को तोड़ने की कार्यवाही किसी भी दृष्टि से उचित नही है। सिंह ने अपील किया कि लोकसभा में इस बिल पर पुनः विचार किया जाए क्योंकि इस संशोधन के वर्तमान स्वरूप के कारण राष्ट्रहित पर होने वाले दूरगामी परिणाम से बचा जा सके। भाजपा के प्रवक्ता की इस टिपण्णी से आरक्षण पर पार्टी की विचारधारा को आसानी से समझा कजा सकता है ।

अगड़ी जातियों को लामबंद करने की कवायद

अंबरीश कुमार लखनऊ , दिसंबर ।सरकारी नौकरी में तरक्की में आरक्षण का मुद्दा समाजवादी पार्टी के लिए फायदा पहुँचाने वाला है भले यह ' पिछड़ा पावे सौ में साठ ' वाले समाजवादी नारे और मूल्यों के हिसाब से उचित न माना जाए । उत्तर प्रदेश में इस समय आरक्षण समर्थक और विरोध का जो माहौल बन रहा है उससे समाज का बड़ा वर्ग प्रभावित है । मायावती का परंपरागत वोट बैंक इस मुद्दे को लेकर एकजुट होगा यह तय है पर मुलायम के साथ मध्यमार्गी राजनैतिक दलों का वह अगड़ा मतदाता साथ आ रहा है जो कांग्रेस और भाजपा के साथ खड़ा होता रहा है । आरक्षण को लेकर उत्तर प्रदेश में पहले भी बड़े आन्दोलन हुए है पर वे ज्यादा आगे बढ़ नहीं पाए क्योकि इन्हें मजबूत राजनैतिक समर्थन नहीं मिला । जबकि मंडल के बाद जो राजनीति बदली उसके चलते अगड़ों के हाथ से जो सत्ता गई वह आज तक नहीं लौटी । पर अब प्रमोशन में आरक्षण का विरोध कर समाजवादी पार्टी ने आरक्षण विरोध की राजनीति को नया और बड़ा मंच दिया है । वैसे भी पिछले विधान सभा चुनाव में मायावती को हराने के लिए अगड़ी जातियों ने अखिलेश यादव का समर्थन किया और लखनऊ जैसे शहर में समाजवादी पार्टी का दबदबा कायम हो गया था । इसकी कई वजहे थी जिसमे समाजवादी पार्टी का पुराना चोला उतरना भी एक था । कभी कंप्यूटर का विरोध करने वाले समाजवादी अब लैपटाप और टैबलेट का नारा दे रहे थे । यह लाठी वाले खांटी समाजवादियों का नया अंदाज था अखिलेश यादव के रूप में । मुलायम सिंह इस नए वोट बैंक को आरक्षण की राजनीति के चलते साथ लेना चाहते है । हालाँकि समाजवादियों के बीच इस मुद्दे को लेकर मतभेद भी है और एक तबका दलितों को साथ लेकर चलने का पक्षधर है । इनका मानना है कि मुलायम सिंह को दलित ,पिछड़े और मुस्लिम को साथ लेकर चलना चाहिए जो पुरानी धारा भी रही है ।पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह का मुख्य मुकाबला मायावती से होता है और राजनीति भी उसी हिसाब से होती है । यह सभी मान रहे है कि जब एक तरफ इस मुद्दे को लेकर दलित मायावती के साथ पूरी ताकत से खड़े होंगे तो गैर दलित आरक्षण विरोध के चलते मुलायम सिंह के साथ खड़े होंगे। यह होने लगा है ।कल से आज तक आरक्षण विरोधियों के निशाने पर भाजपा और कांग्रेस रही ।सरकारी कर्मचारियों ने तो भाजपा मुख्यालय पर हंगामा भी किया।इससे आगे की राजनीति को आसानी से समझा जा सकता है । वैसे भी समाज में अगड़ी जातियों का एक बड़ा तबका आरक्षण के खिलाफ रहा है ,अब उसे भी ताकत मिल रही है । समाजवादी पार्टी हर मौके पर इस मुद्दे को लगातार उठाकर इस तबके का समर्थन जुटाने की कोशिश करती रहती है ।आज फिर समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बने नौ महीने हो गए हैं। इस सरकार को विरासत में पंगु प्रशासन भ्रष्टतंत्र और छिन्न-भिन्न कानून व्यवस्था मिली थी। अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई थी। अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही अव्यवस्था को व्यवस्था में बदलने का संकल्प लिया। दहशत और अधिनायकशाही से जनता को मुक्ति मिली। भ्रष्टाचार पर रोक लगी। प्रशासन में पारदर्शिता कायम हुई।समाजवादी पार्टी की सरकार ने इस अवधि में किसानों, नौजवानों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के हित में तमाम निर्णय लिए। पिछली सरकार में विकास के नाम पर थोथी घोषणाएं होती रहती थी। योजनाएं शिलान्यास और उद्घाटन के पत्थरों पर ही दिखाई देती थी। सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी जरूरतों पर ध्यान देने के बजाय बसपा सरकार ने पार्को, स्मारकों और प्रतिमाओं में पत्थरों पर जनता का खजाना लुटा दिया। समाजवादी पार्टी सरकार ने अनुत्पादक मदों पर खर्च करने के बजाय ठोस और समयबद्ध कार्यक्रमों को अमल में लाने की पहल की। समाजवादी पार्टी सरकार ने पहली बार गन्ना किसानों को 290 रूपए कुंतल का मूल्य दिया है जबकि केन्द्र सरकार ने 210 रूपए मूल्य निर्धारित किए है। केन्द्र सरकार गन्ना किसानों को उचित मूल्य नहीं देना चाहती है। इस टिपण्णी से सपा की राजनीती को आसानी से समझा जा सकता है ।

Thursday, November 29, 2012

सरकार की साख से खेल रहे है बेलगाम नौकरशाह

अंबरीश कुमार लखनऊ ।उत्तर प्रदेश में नौकरशाही बेलगाम हो रही है ।आशंका यह है कि कही इसके चलते प्रदेश सरकार की ज्यादातर योजनाएं लटक न जाएं और साख अलग ख़राब हो ।प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी जैसे कुछ अफसर अपवाद है पर उन अफसरों की संख्या बहुत ज्यादा है जो सरकार के नियंता बनते जा रहे है ।पूर्व मुख्यमंत्री मायावती सूबे के बड़े से बड़े अफसर को तू तूम से संबोधित करती थी और अफसर जो आदेश होता था उसे मानते थे ।मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का अंदाज अलग है तो नौकरशाही का अंदाज भी बदला हुआ है । एक जिले का कलेक्टर बदल दिया जाता है और मुख्यमंत्री को जानकारी नहीं होती । पूर्वांचल के एक असरदार मंत्री राम गोविन्द चौधरी का स्टाफ एक नर्स के तबादले के लिए अदने से अफसर से गुहार लगाता है कोई सुनवाई नहीं । पंचम तल के नाम हर अफसर अपनी चला रहा है और पंचम तल पर भी सत्ता का एक अलग केंद्र है जो अपने अंदाज में काम करता है । पर यह सब हो रहा है सरकार की साख की कीमत पर जिसे लेकर सवाल उठ रहे है ।मुख्यमंत्री चुनाव के घोषणा पत्र के वायदे को अमली जामा पहनाना चाहते है तो एक अफसर कहता है 'चुनावी वायदों से मेरा क्या लेना देना । एक वरिष्ठ अफसर आनंद मिश्र का मामला विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह को जिस अंदाज में उठाना पड़ा वह चर्चा का विषय है ।इस सबकी वजह से न कोई काम हो ढंग से हो पा रहा है और न बजट का कारगर इस्तेमाल । मुख्यमंत्री घोषणा करते है और आमतौर पर अफसर उसपर कोई अमल नहीं करते । उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के सचिव सिद्धार्थ कलहंस ने कहा -सत्ता बदली तो माहौल भी बदला पर अब एक बार फिर वरिष्ठ पत्रकारों को परेशान होना पड़ रहा है क्योकि सूचना विभाग के आला अफसर अपनी चला रहे है और जिन्हें मान्यता मिलनी चाहिए उसे पुराने और अटपटे नियमो के चलते दौड़ना पड़ रहा है और जो ओसे लोगों को मान्यता दी जा रही है जो उसके हक़दार नहीं है । यही कहा जाता है कि पंचम तल की एक अफसर के दबाव में यह सब हो रहा है । यह एक बानगी है । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -ऐसा नहीं कि सभी अफसर गड़बड़ हो पर कुछ अफसरों के चलते सरकार की साख ख़राब होती है तो कुछ अफसर अपने काम से धारणा बदल भी रहे है । नोयडा में जो अफसरों के चलते हुआ वह सामने है ।पावर कारपोरेशन का एक उदाहरण ले वहां प्रबंध निदेशक स्तर के एक अफसर धीरज साहू जब दफ्तर पहुँचते है तो कमरे के बाहर लाल बत्ती जल जाती है और कोई मिल नहीं सकता। ऐसे में क्या एक मेगावाट बिजली का भी अतिरिक्त उत्पादन हो पाएगा यह आसान नहीं लगता ।पर दूसरी तरफ वाराणसी में आज किसानो को अगर आठ दस घंटे बिजलो मिल रही है तो पूर्वांचल में पावर कारपोरेशन के एमडी एपी मिश्र की लोग सराहना भी कर रहे है और इसका श्रेय सरकार को ही जाता है ।इसलिए अफसर दोनों तरह के है यह समझना होगा । राजनैतिक विश्लेषक वीरेन्द्र नाथ भट्ट ने कहा -इस समय ज्यादातर मंत्री नौकरशाही से त्रस्त है ।अफसर मंत्रियों की नहीं सुन रहे है । दरअसल पहले के दौर में मुख्यमंत्री और कैबिनेट सचिव इन अफसरों से किस भाषा में बात करते थे यह जग जाहिर है । उसे भाषा भी कहना गलत होगा सीधे गाली देकर बात होती थी और सत्ता का एक केंद्र था पर अब अलग अलग अफसर अपने अलग अलग सत्ता के केंद्र के प्रति जवाबदेह हो गए है ।इस तरह की प्रतिक्रिया से उत्तर प्रदेश में अफसरों के बदलते अंदाज को समझा जा सकता है । jansatta

Tuesday, November 27, 2012

जेल प्रशासन झुका ,सुनीलम ने तोडा अनशन

जेल में सुनीलम से बातचीत अंबरीश कुमार
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में अडानी पेच पावर प्रोजेक्ट, पेच डाइवरशन प्रोजेक्ट, मैक्सो व एसकेएस प्रोजेक्ट के नाम पर पचास हजार से ज्यदा किसानों की जमीन छीनी जा चुकी है और वहा इसके खिलाफ आंदोलन करने वाले सुनीलम अब भोपाल के केन्द्रीय जेल में है । बीते शुक्रवार को जेल के भीतर इस संवाददाता ने उनसे जब बातचीत की तो सुनीलम ने कहा -मुझे मुलताई कांड में जो सजा स्थानीय अदालत से मिली है वह भाजपा कांग्रेस की उस मिलीजुली साजिश का नतीजा है । क्योकि मै छिंदवाडा में हजारों किसानो की जमीन छीनने के खिलाफ आन्दोलन कर रहा था । आज सुनीलम ने किसान नेताओं के जरिए जेल से सन्देश भेज कर जनसत्ता को बताया कि जेल प्रशासन के खिलाफ उन्होंने जो अनशन शुरू किया था वह ख़त्म हो गया और उनकी सभी मांगे मान ली गई है । सुनीलम ने जेल पढने के लिए दो अख़बार हिंदू और जनसत्ता माँगा था जो उन्हें नहीं दिया गया । बाद में मीडिया में इसकी खबर आने के बाद दबाव बढ़ा और आज जेल प्रशासन ने उनकी मांग मान ली । सुनीलम ने आज यह जानकारी जेल से फोन पर किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह को भी दी । गौरतलब है कि सुनीलम को मुलताई कांड में फंसाए जाने के खिलाफ मुलताई ,छिंदवाडा से लेकर भोपाल तक धरना प्रदर्शन हो चुका है । उनसे मिलने बड़ी संख्या में लोग भोपाल के सेंट्रल जेल पहुँचते है । जिस दिन इस संवाददाता ने जेल में उनसे बातचीत की उस समय भी काफी किसान उनसे मिलने आए थे और उनकी बातचीत आन्दोलन को जारी रखने के मुद्दे पर हो रही थी । जिस मामले में उन्हें सजा हुई है उसके बारे में पूछने पर सुनीलम में कहा -जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर हो चुकी है और इंसाफ मिलेगा । इस मुद्दे पर देश के विभिन्न जन संगठनों ,किसान संगठनों और समाजवादी कार्यकर्ताओं का उन्होंने आभार भी जताया । बीते शुक्रवार को ही जन संघर्ष मोर्चा ने भोपाल में प्रदर्शन भी किया था जिसमे बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाए भी शामिल हुई थी । सुनीलम ने आगे कहा -मुझे जेल में डालने से छिंदवाडा में किसानो का आन्दोलन थमेगा नहीं और बढेगा । दुर्भाग्य की बात यह है कि किसानो की जमीन छीनने के मामले में कांग्रेस और भाजपा साथसाथ है । छिंदवाडा में यह कहा गया था कि पर्यावरण विभाग के बिना अनुमति के अडानी पॉवर प्रोजेक्ट व पेच परियोजना में माचागोरा बांध निर्माण कार्य को आगे बढ़ने देने के लिए सरकार जिम्मेदार है। सुनीलम ने यह भी साफ़ किया कि क़ानूनी लड़ाई के साथ किसानो का आन्दोलन भी जारी रहेगा । सुनीलम को एक दूसरा मोर्चा जेल में भी खोलना पड़ा और जब जेल प्रशासन ने उनकी मांगे नहीं मानी तो उन्होंने अनशन शुरू कर दिया । इस बारे में पूछने सुनीलम ने कहा -जेल में बहुत ही अमानवीय हालात में बंदी रह रहे है । कोई आवाज उठाता है तो उसकी बुरी तरह पिटाई की जाती है । जेल में एड्स से पीड़ित बंदी भी है जिनके बाल काटने वाला नाई उसी उस्तरे का इस्तेमाल आम बंदियों पर भी ही करता है । यह एक उदाहरण है ।कोई पत्र नहीं भेज सकते ,अख़बार नहीं मंगा सकते ,जेल मैनुवल नहीं दिया जाता और मार डालने की अप्रत्यक्ष धमकी भी मिलती है । मुलायम सिंह और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी पत्र भेजा पर शायद वह भी आगे नहीं भेजा गया , इसी वजह से अनशन शुरू किया है । इस बीच जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने सुनीलम से अनशन तोड़ने की अपील की तो आज जेल प्रशासन ने मीडिया की रपट और मानवाधिकार आयोग से की गई अपील को देखते हुए उनकी मांगे मान लेने का एलान किया । सुनीलम ने आज यह जानकारी जेल से फोन पर किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह को भी दी ।जनसत्ता

Saturday, November 24, 2012

मानवाधिकार संगठनों ने कहा -जेल में सुनीलम की जान खतरे में

अंबरीश कुमार किसान संगठन और मानवाधिकार संगठनों ने किसान नेता डा सुनीलम की जेल में हत्या की आशंका जताते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गुहार लगाईं है । सुनीलम से जेल में मिलकर लौटे किसान मंच ,किसान संघर्ष समिति ,एनएपीएम और जन संघर्ष मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने आज यह जानकारी दी । किसान नेता विनोद सिंह ने कहा -सुनीलम ने शुक्रवार को जेल में बताया कि उनका उत्पीडन किया जा रहा है और अप्रत्यक्ष ढंग से हत्या की धमकी दे दी गई है । जेल के एक अफसर ने साफ़ कह दिया है कि अनशन बंद नहीं किया तो इंजेक्शन देकर ठंढा कर दिया जाएगा इसे लेकर किसान मंच और पीयूसीएल ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से दखल देने की अपील की है । पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने जनसत्ता से कहा -यह बहुत गंभीर मामला है । पहले सुनीलम को राजनैतिक वजहों से फंसाया गया और अब उनकी हत्या की आशंका है । इस बीच समाजवादी पार्टी ने इसे काफी संवेदनशील मामला बताते हुए इसे सुनीलम का मानसिक उत्पीडन बताया है । पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -इस घटना से साफ़ है कि मध्य प्रदेश सरकार को लोकतंत्र में अब को भरोसा नहीं रह गया है ।इस मामले की उच्च स्तरीय जाँच कराई जनि चाहिए । घटना का ब्यौरा देते हुए विनोद सिंह ने कहा - घटना का ब्यौरा देते हुए विनोद सिंह ने कहा - यह विवाद एक कैदी अनीस युसूफ को बुरी तरह मारे जाने के विरोध में सुनीलम के अनशन पर बैठने पर शुरू हुआ । इस कैदी को इतना पीटा गया कि वह अधमरा हो गया । इस घटना के विरोध में सुनीलम ने अनशन शुरू किया तो उन्हें भी धमकाया गया । जेल में कायदों की अनदेखी पर सुनीलम ने पहले भी विरोध कर चुके थे । उन्होंने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को जेल की बदहाली और बंदियों के उत्पीडन को लेकर जो पत्र लिखा उसे जेलर नी यह कहकर रख लिया कि वे पहुंचा दिया जाएगा । सुनीलम समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी रहे है और मुलायम सिंह अपने कार्यकर्ताओं की मुसीबत के समय मदद करते आए है इसी वजह से उन्हें भी पत्र लिखा था । उन्हें न कोई पत्र या अख़बार दिया जाता है और न समाचार सुनने की व्यवस्था है । सुनीलम ने हिन्दू और जनसत्ता अख़बार पढने के लिए माँगा था पर जेल प्रशासन ने मना कर दिया दिया । जब उन्होंने जेल मैनुवल माँगा तो उसे भी देने से इंकार कर दिया गया । फिर एक कैदी अनीस युसूफ को किसी बात पर नाराज होकर कांस्टेबुल सुनील पाठक ने बेल्ट से मार मार कर अधमरा कर दिया ।इसपर सुनीलम ने विरोध जताया और अनशन शुरू कर दिया । अनशन के चलते जेल प्रशासन ने सुनीलम से मिलने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया था । पर कल किसान संगठनों के लोगों को मुलाकात की इजाजत मिल गई । पर जेल में हालत बहुत ख़राब है । इसे लेकर शुक्रवार को वहां प्रदर्शन भी हुआ । इस बीच सुनीलम की रिहाई के लिए 25 नवम्बर को बांग्लादेस भारत-पाकिस्तान पीपल्स फोरम ने बैठक बुलाई है ।सामाजिक कार्यकर्त्ता एके अरुण के मुतानिक 26 को कई सांसद भी धरना पर भी देने वाले है ।इनमे शरद यादव,देवब्रत विस्वास ,मोहन जेना ,,कैप्टन निषाद धनञ्जय सिंह ,मुन्नवर सलीम, राम विलास पासवान,भक्त चरण दास,आदि के अलावा जस्टिस राजिंदर सचर ,डा बीडी शर्मा, चितरंजन सिंह, कविता श्रीवास्तव,,राजीव भृगु कुमार रंजन,अनिल चौधरी के साथ जन संगठन युवा भारत,किसान संघर्ष समिति,भारत मुक्ति मोर्चा,आदि शामिल हैं।दूसरी तरफ सोश्लिष्ट फ्रंट के अध्यक्ष विजय प्रताप सुनीलम के मुद्दे को समज्वादो संगठनों के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी उठाने जा रहे है। जनसत्ता फोटो -सुनीलम की रिहाई के लिए प्रदर्शन करते आदिवासी सुनीलम की मदद के लिए समाजवादी संगठनों ने लिया मदद का संकल्प अंबरीश कुमार
लखनऊ नवम्बर। किसान संगठनों के साथ देश भर के समाजवादी संगठनों ने किसान नेता सुनीलम की मदद के लिए अभियान छेड़ने का संकल्प लिया है । यह अभियान 23 नवम्बर से शुरू होगा । यह जानकारी यहाँ सोश्लिष्ट फ्रंट के संयोजक विजय प्रताप ने दी । इससे पहले 17 से 19 नवम्बर तक केरल के त्रिशूर में समाजवादी संगठनों की बैठक में सुनीलम के साथ झारखण्ड की दयामनी बरला के मुद्दे पर अभियान चलाने का संकल्प लिया गया । इस बैठक में केरल के समाजवादी संगठन लोहिया विचार वैदिकी के विजय राघवन ,राष्ट्र सेवा दल के जार्ज जैकब ,युसूफ मेहरअली युवा बिरादरी के अलावा एनएपीएम ,लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और लोक शक्ति अभियान जैसे संगठनों के प्रतिनिधि जुटे । जिसमे सुनीलम और दयामनी को लेकर अभियान चलाने का संकल्प लिया गया । इसी सिलसिले में सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर ने 23 नवंबर को भोपाल में सुनीलम की मदद के लिए बैठक भी बुलाई है । इस बीच किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने बताया कि जबलपुर हाई कोर्ट में सुनीलम की याचिका दायर की जा चुकी है । इस क़ानूनी प्रक्रिया में करीब चार से पांच लाख का खर्च आएगा जिसके लिए किसान संगठनों और समाजवादी कार्यकर्ताओं से मदद की अपील की गई है । मुलताई के स्टेट बैंक में किसान संघर्ष समिति का खाता नंबर 32059516258 है जिसमे लोगो से अपने हिसाब से मदद करने की अपील की गई है । समाजवादी पार्टी लके एमएलसी और प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -सुनीलम हमारे संघर्ष के समाजवादी साथी है और कांग्रेस - भाजपा की जमीन लूटने के अभियान के खिलाफ तनकर खड़े है जिसका हम पूरा साथ देंगे । दूसरी तरफ किसान संगठन भी सुनीलम की मदद के लिए इस अभियान में जुट गए है । नागपुर से किसान नेता प्रताप गोस्वामी के मुताबिक कई लोगों ने सुनीलम की मदद के लिए आगे आने की इच्छा जताई है जिसमे विदर्भ के किसान भी शामिल है। दरअसल सुनीलम के इस संघर्ष के साथ ही मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसानो का एक आन्दोलन खड़ा होने की सुगबुगाहट भी महसूस हो रही है । अडानी की परियोजना के खिलाफ छिंदवाडा में पहले से आन्दोलन चल रहा था जो मेधा पाटकर की गिरफ़्तारी के बाद और तेज हुआ । अब 23 की बैठक के बाद यह और आगे बढ़ सकता है क्योकि इसमे कई और जमीनी संगठन जुड़ने जा रहे है । वैसे भी किसानो की जमीन के सवाल पर महाराष्ट्र में भी माहौल बन रहा है जहाँ किसानो की करीब एक लाख एकड़ जमीन विभिन्न बिजली परियोजनाओं के नाम लेने की कोशिश हो रही है ।

Monday, October 29, 2012

सुनीलम के नाम एकजुट हुए जन संगठन

अंबरीश कुमार लखनऊ, 28 अक्टूबर।देश के करीब बीस जन संगठन और किसान संगठन कांग्रेस और भाजपा के साथ कारपोरेट घरानों की मिलीभगत को लेकर मध्य प्रदेश में बड़ा अभियान छेड़ने जा रहे है ।इस अभियान के केंद्र में सुनीलम है जिन्हें इस गठजोड़ का विरोध करने की बड़ी सजा मिल चुकी है । इस अभियान में किसान मंच ,किसान संघर्ष समिति के साथ अखिल भारतीय किसान यूनियन के दोनों धड़े शामिल है तो एनएपीएम ,पीयूसीएल से लेकर इंसाफ तक । किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह के मुताबिक इस आन्दोलन के संचालन के लिए बनाई गई समिति में राजेंद्र सच्चर प्रशांत भूषण ,जया जेतली ,प्रेम सिंह ,किसान नेता युद्धवीर सिंह ,ऋषिपाल अम्बावत ,चितरंजन सिंह ,मंजू मोहन, मधुरेश आदि विभिन्न क्षेत्रो के प्रतिनिधि शामिल है । गाँधीवादी और समाजवादी संगठन भी सुनीलम के पक्ष में खड़े होने का एलान कर चुके है ।जिसमे उत्तर प्रदेश ,बिहार ,मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र ,दिल्ली के समाजवादी कार्यकर्त्ता शामिल है । इस अभियान से जुड़े किसान नेताओ और जन संगठनों का आरोप है कि किसानो की जमीन बचाने की लड़ाई में सुनीलम को फंसाया गया है ।मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में अडानी पेच पावर प्रोजेक्ट, पेच डाइवरशन प्रोजेक्ट, मैक्सो व एसकेएस प्रोजेक्ट के नाम पर 50 हजार हजारों किसानों की जमीन छीनी जा चुकी है और वहा जो आंदोलन चला उसका नेतृत्व सुनीलम ही कर रहे थे । पिछले दिनों इस मुद्दे को लेकर छिंदवाडा में मेधा पाटकर की बड़ी जन सभा भी हुई थी । उस जनसभा में किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुनीलम ने कहा था कि- बिजली परियोजनाओं को लेकर किसानो की जमीन छीनने के मामले में कांग्रेस और भाजपा साथसाथ है । यह कहा गया था कि पर्यावरण विभाग के बिना अनुमति के अडानी पॉवर प्रोजेक्ट व पेच परियोजना में माचागोरा बांध निर्माण कार्य को आगे बढ़ने देने के लिए सरकार जिम्मेदार है। यही वह मुद्दा था जिसे लेकर सुनीलम को फंसाने की साजिश रची गई । मानवाधिकार कार्यकर्त्ता चितरंजन सिंह के मुताबिक इस मामले में भाजपा ,कांग्रेस के साथ कारपोरेट घराने भी शामिल है जिसके खिलाफ अब बड़ी लड़ाई लड़ी जाएगी । इसमे जन संगठन तो शामिल है ही पर अभी तक कोई राजनैतिक दल खुल कर सामने नहीं आया । समाजवादी पार्टी ने इस मुड़े पर अफ़सोस तो जताया पर अभी तक मुलायम सिंह ने अपना रुख साफ़ नहीं किया जिससे दुविधा की स्थिति बनी हुई है पर आन्दोलन तो शुरू हो चुका है । इस बीच सर्व सेवा संघ के राम धीरज ने कहा है कि इस लड़ाई में वे न सिर्फ पूरी ताकत से जुड़ेंगे बल्कि अन्य जन संगठनों से भी जुड़ने की अपील करेंगे । जानकारी के मुताबिक जल्द ही एक बैठक में ब्योरेवार कार्यक्रम जरी किया जाएगा । इस बीच चितरंजन सिंह ने सुनीलम से जेल में मुलाकर कर कहा कि वे क़ानूनी लड़ाई जीतने के साथ ही नए सिरे से किसानो के हक़ में संघर्ष शुरू करेंगे । jansatta

Tuesday, October 23, 2012

जाना एक और कबीर यानी दा का

अंबरीश कुमार छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का एक दौर आज ख़त्म हो गया .दा राजनारायण मिश्र नहीं रहे ,यकीन नहीं होता .वे ग्रामीण पत्रकारिता के पुरोधा थे .स्टेट्समैन का ग्रामीण पत्रकारिता का पुरुस्कार भी उन्हें मिला .पर वे इस सबसे ऊपर थे .वे पत्रकारिता में कबीर परम्परा के वाहक थे .फक्कड़ों जैसा जीवन गुजारा .छतीसगढ़ में अपनी मुलाकर कैसे हुई यह याद नही पर जब एक लेख पर उन्हें गिरफ्तार किया गया तो हम भी साथ खड़े हुए .जनसत्ता लांच हुआ था और वह भी पूरे तेवर में .दा ने कहा वे जनसत्ता से जुड़ेंगे और सीखेंगे भी तो नए साथियों को सिखाएंगे भी पर कोई पारश्रमिक नहीं लेंगे .राज कुमार सोनी ने उनके बारे में बहुत कुछ बताया था .अख़बार का संपादक पहली बार बना था वह भी जनसत्ता का .बहुत कुछ सीखना था दा ने पहला पाठ सिखया सिखाया स्टाफ में मुस्लिम जरुर हो छतीसगढ़ के लोग उत्सव प्रेमी होते है कोई त्यौहार आया तो बिना बताए छुट्टी चले जाएंगे . ऊनके इस सुझाव से कई बार जनसत्ता का रायपुर संस्करण बिना किसी दिक्कत के निकलता रहा .वे मुझे छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव ले गए और कई बार गाँव में रुका और खाना पीना सब हुआ .वे शाकाहारी थे और शराब भी नहीं पीते कई तरह की आर्युवैदिक दवा लेते थे .पर किसी की आवभगत में कोई कमी ना रह जाए यह जरुर ध्यान रखते .वे जनसत्ता के रायपुर संस्करण के हेड मास्टर की तरह थे जिसका नाम रजिस्टर में भले न हो पर समूचा स्टाफ मेरे बाद उन्हें ही जानता . मुझे याद है किस तरह उन्होंने किसानो की ख़ुदकुशी पर महासमुंद से खबरे कराई .शिखा दास को दा के कहने पर ही रखा था जिसने किसानो पर जब खबरे शुरू की तो जोगी सरकार के कई अफसर नाराज हुए और शिखा पर हमला हुआ तब भी राजनारायण मिश्र और समूचा जनसत्ता शिखा के साथ खड़ा हुआ .यह दा की मानवीय संवेदना को दर्शाता था .यह एक उदाहरण है वे आए दिन गाँव ,किसान और खेती मजदूरी से जुड़े सवालों को उठाते उनका कालम '' साधो जग बौराना ..बहुत लोकप्रिय था .इसके साथ ही उन्होंने साहित्य संस्कृति की आंचलिक प्रतिभाओं को भी जोड़ा ,परदेसी राम वर्मा उदाहरण है .बहुत कम लोगो को पता होगा कि छत्तीसगढ़ में सत्ता से टकराव के बाद जब इंडियन एक्सप्रेस प्रबंधन ने मेरा तबादला दिल्ली किया तो मैंने अख़बार छोड़ने का मन बना लिया .दा ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने मेरे लिए दिल्ली से एक पत्रिका निकालने का प्रबंध कराया और साफ़ कहा कि किसी तरह की आर्थिक दिक्कत नहीं आने दी जाएगी .वह पत्रिका आज भी निकल रही है जिसका पहला संपादक मुझे उन्होंने बनवाया था .पर एक्सप्रेस प्रबंधन ने मेरी इच्छा की जगह पोस्टिंग की बात मानी और मै इस समूह से जुड़ा रहा .इसमे शेखर गुप्ता और महाप्रबंधक जीआर सक्सेना की बड़ी भूमिका रही .जीआर मेरे तब भी मेरे मित्र माने जाते थे और आज भी है .बहरहाल उस संकट के दौर में मेरे साथ दा जिस मजबूती से खड़े हुए वह उनकी दृढ इच्छा शक्ति का प्रतीक था .इस तरह के लोग आज बहुत कम मिलेंगे जो दूसरों के लिए समर्पित हो .दा ने अपन क ओ बहुत कुछ सिखाया है .वे ही मेरी ख़बरों का संपादन करते थे .वे ही छतीसगढ़ी शब्दों का अर्थ भी बताते .उन्होंने ही बस्तर दिखाया ,उन्होंने ही महासमुंद के किसानो की भुखमरी और पलायन पर लिखने को प्रेरित किया .उन्होंने लड़ने का भी सलीका सिखाया तो लिखने का .बहुत अफ़सोस की आज मै रायपुर में नहीं हूँ ,दा को अंतिम विदाई देने के लिए .

Sunday, October 21, 2012

आक्रोश में है मुलताई में किसान

अंबरीश कुमार लखनऊ अक्टूबर । किसान आंदोलन की वजह से किसान नेता सुनीलम को आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ अब बड़े जन आंदोलन की तैयारी शुरू हो गई है । इस आंदोलन को ताकत देने का बीड़ा सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर ने उठा लिया है । इस बीच एक हजार किसान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र भेज कर जन विरोधी फैसले का विरोध करेंगे । जबकि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान संगठनी ने सुनीलम के साथ अपनी एकजुटता दिखाते हुए लखनऊ से दिल्ली तक इसका विरोध करने का फैसला किया है । यह आंदोलन दिल्ली ,भोपाल ,लखनऊ ,नागपुर से लेकर मुलताई तक चलेगा और अन्य कई राज्यों के किसान इसमे शिरकत करेंगे । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने आज यहाँ यह जानकारी दी । उन्होंने बताया कि इस मुद्दे को लेकर देश की वामपंथी ,समाजवादी और लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट किया जा रहा है । मेधा पाटकर जो अस्वस्थ होने की वजह से हैदराबाद में रुक गई थी वे दिल्ली पहुँच कर साभी वरिष्ठ नेताओं से संपर्क शुरू करेंगी । बाद में नवंबर में मुलताई में किसानो की राष्ट्रीय पंचायत बुलाई जाएगी जिसमे कई राज्यों के किसान संगठन और अन्य जन संगठन हिस्सा लेंगे । इस बारे में किसान संघर्ष समिति ,एनएपीएम और किसान मंच के बीच बातचीत हो रही है । आज यहाँ समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता और एमएलसी राजेंद्र चौधरी ने कहा कि सुनीलम के मुद्दे पर वे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह से बात कर उन्हें पूरी जानकारी भी देंगे। सुनीलम समाजवादी पार्टी के विधायक भी रहे है । राजेंद्र चौधरी ने कहा -सुनीलम समाजवादी आंदोलन के साथी रहे है और किसानो के लिए लगातार संघर्ष करते रहे है । किसान मंच के मुताबिक इस बीच मुलताई और आसपास के इलाके में कई गांवों में किसानो ने फैसले के खिलाफ चूल्हा बंदी आंदोलन किया । बैतूल में गाँव गाँव में किसानो ने भूख हड़ताल की । किसानो का कहना है कि यह अजीब फैसला है जिसमे किसानो पर गोली चलाई गई और किसान ही सजा पा रहे है । बहरहाल किसानो के तेवर देख साफ है कि अब एक और बड़े आंदोलन की जमीन तैयार हो रही है । इस बीच महाराष्ट्र के किसान नेता प्रताप गोस्वामी मुलताई पहुँच गए है और वे सुनीलम के मुक़दमे के फैसले का पूरा ब्यौरा लेकर सिल्ली के वरिष्ठ वकीलों से राय मशविरा करेंगे । प्रताप गोस्वामी ने फोन पर कहा -मुलताई में किसान बहुत आहत और आक्रोश में है । बड़े कारपोरेट घरानों की शह पर अगर इस तरह जुझारू किसान नेता को फंसाने का फैसला होने लगा तो हालत बेकाबू होंगे । मेधा पाटकर इस घटना को भाजपा कांग्रेस के साथ कारपोरेट घरानों की सांठगांठ का नतीजा मानती है और यह प्रवृति महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश से लेकर कई राज्यों में दिखाई पड़ रही है । मुलताई कांड जब हुआ तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे जिसमे दो दर्जन किसानो की जान गई थी और अब भाजपा के राज में जो फैसला आया है उसमे सुनीलम समेत तीन लोगों को आजीवान कारावास की सजा सुनाई गई है । इसी तरह महाराष्ट्र में प्राकृतिक संसाधनों की लूट में भाजपा कांग्रेस और कारपोरेट घराने साथ साथ खड़े है । इसके खिलाफ अब बड़े जन आंदोलन की जरुरत है जिसमे समाजवादी हो वामपंथी हो तो मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाले भी शामिल हो । गौरतलब है कि विदर्भ में बड़े पैमाने पर बिजली घर परियोजनाए शुरू हो रही है जिसके चलते एक लाख एकड़ जमीन से किसान विस्थापित होंगे । इसी तरह मध्य प्रदेश में किसानो की जमीन छीन कर कई योजनाएं बन रही है । इसका एक उदाहरण महाराष्ट्र मध्य प्रदेश सीमा पर छिंदवाडा में अडानी समूह की परियोजना है जिसके खिलाफ सुनीलम लगातार संघर्ष कर रहे थे । यह भी कहा जा रहा है कि कल आए फैसले में उन्हें आजीवन कारावास की सजा इसलिए भी सुनाई गई ताकि वे छिंदवाडा से लोकसभा का चुनाव न लड़ सके जहाँ से कमलनाथ चुनाव जीतते रहे है । दरअसल सुनीलम न सिर्फ कांग्रेस बल्कि भाजपा के लिए भी आँख की किरकिरी बने हुए है । बहरहाल समाजवादी पार्टी के लिए भी अपनी राजनैतिक जमीन मजबूत करने का यह बड़ा मौका है अगर वह अपने इस किसान नेता की लड़ाई लड़ने के लिए खुल कर सामने आए । किसान संगठन इस सिलसिले में मुलायम सिंह से भी संपर्क करेंगे । jansatta

Thursday, October 18, 2012

गोली चलाई पुलिस ने फंसे सुनीलम

एशिया न्यूज़ नेटवर्क
भोपाल . (एशिया न्यूज़ नेटवर्क )किसान नेता सुनीलम को मुलताई में १९९८ में हुए किसान संघर्ष के सिलसिले में स्थानीय अदालत ने दोषी करार दिया दिया है जिसके बाद उन्हें पुलिस हिरासत में ले लिया गया .आज उन्हें इस मामले में सजा सुनाई जाएगी .यह घटना उस समय हुई थी जब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे और किसानो पर हुए गोलीकांड में 24 किसान मारे गए थे .गोलीकांड के जवाब में भी हिंसा हुई जिसमे दो पुलिस वालों की जान गई थी .ये किसान सुनीलम के नेतृत्व में मुलताई के परेड ग्राउंड में धरना दे रहे थे . किसान मंच ने अदालत के फैसलों को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसे चुनौती देने का एलान किया है .किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -जिस घटना में पुलिस की गोली से पच्चीस किसान मारे जाए और किसी पुलिस वाले को दोषी न माना जाए और एक किसान नेता समेत दो लोगो को फंसा दिया जाए यह इन्साफ तो नहीं है .इस मुद्दे को लेकर देश भर के किसान संगठन एकजुट होकर विरोध करेंगे. गौरतलब है कि सुनीलम छिंदवाडा में अडानी के पावर प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे है जिसे कमलनाथ का संरक्षण मिला हुआ है .सुनीलम टीम अन्ना के सदस्य रहे है पर अन्ना से लेकर केजरीवाल तक का कोई बयान इस पर नहीं आया है .

Wednesday, October 17, 2012

बादलों के पार एक गांव

अंबरीश कुमार यह एक ऐसा पहाड़ी गाँव है जहाँ हर समय बादल उड़ते रहते है .सेब और नाशपाती के बड़े बगीचों के बीच से जाता रास्ता हर मोड़ पर नया दृश्य रच देता है .कभ सूरज सामने आता है तो कभी बादल उसे ढक देते है .अचानक बादलों का रंग बदलने लगा .बिजली कड़कने लगी और सामने की पहाड़िया बरसात और धुंध में गायब होने लगी .चौथा दिन था अपना
की तरफ .मुक्तेश्वर की शाम यादगार थी तो सुबह अद्भुत हिमालय के इतने रंग कभी नहीं देखे .हिमालय की एक एक कर चोटियाँ बादलों के बीच से उभर रही थी .अल्मोड़ा शहर की रौशनी जो कुछ देर पहले अँधेरे में चमक रही थी वह अँधेरा छटते ही बादलों में डूब चुकी थी और ऐसा लग रहा था मानो उस शहर पर पहाड़ों के बीच कोई नदी बह रही हो .हम इंतजार कर रहे थे कि कब हिमालय की चोटिया आसमान और बादल के बीच उभर कर सामने आए.आसमान भी सफ़ेद ,बादल भी सफ़ेद और ये चोटियाँ भी जिसके चलते सब आपस में गडड मड्ड हो गए थे .इन्जार था तो सिर्फ सूरज की रौशनी का जो इन्हें अलग कर सकती थी और उसी के इंतजार में देवदार के जंगल के किनारे बर्फीली हवा में खड़े थे .बीती शाम से ही ठंडी हवा चल रही थी .डाक बंगले का चौकीदार और खानसामा गोपाल सिंह कई बार चाय दे चुका था वह भी स्टील के ग्लास में जिससे कुछ गरमी मिलती .बाद में भटेलिया और सतबुंगा होते हुए लौटे तो थक चुके थे .नींद भी आ रही थी .शाम को इला मयंक को मल्ला के बस स्टेशन पर गाड़ी में बैठाकर सामने के हिमालय को देखने पहूंचे तो वह बादलों से ढक चुका था और हम लोगों को रात के खाने का सामान लेने के साथ महादेवी सृजन पीठ के पीठ की तरफ भी जाना था .अपना कुत्ता टाइगर जो अपनी माँ घोटू को खोने के बाद घर छोड़ पुलिस चौकी में रहने लगा था अचानक मछली बेचने वाले के पास मिल गया और फिर साथ चल दिया .जोशी जी की दूकान से उसे बिस्कुट दिया .बहादुर ने कल रात ही बताया कि करीब तेरह साल से साथ रहने वाली घोटू को बाघ उठा ले गया तो बहुत ख़राब लगा .वह बीमार भी थी .सविता को फोन पर बताया तो कुछ देर खामोश रहने के बाद बोली ,उसे मुक्ति मिल गई पर बहुत खल रहा है .कुत्ता पालना बचपन में उस समय छोड़ दिया जब एक छोटे से पिल्लै की मौत हो गई और एक दिन दुःख में खाना नहीं खाया .यहाँ कई कुत्ते रहे जो पाला बहादुर ने पर परिवार का हिस्सा बन गए .अम्बर के तो वे दोस्त ही रहे पर एक एक कर सब बाघ का शिकार भी होते गए .पहला कुत्ता काले रंग का भूटिया कुत्ता था जो करीब दस साल पहले बाघ का शिकार बना था. खैर बाजार में ही साथ आए मित्रों का इन्तजार करने लगे .क्योकि खाने सामान लेकर जाना था .राज नवरात्र में शुद्ध शाकाहारी हो जाते है इसलिए एक दिन पहले वे चिकन बनाना चाहते थे पर पता चला आज हल्द्वानी से मुर्गे वाली गाड़ी ही नहीं आई इसलिए दूसरे विकल्प के रूप में पूर्वांचल के एक लोकप्रिय व्यंजन 'निमोना' बनाने का फैसला हुआ जो ताजी हरी मटर को पीस कर बनाई जाती है .आजकल यहाँ बहुत अच्छी किस्म की मटर खेतों से आ भी रही है .रात करीब आठ बजे से खाना बनाना शुरू हुआ जो दो घंटे में पूरा हुआ और हम बरामदे से बीतर आ गए .बरामदे में आग जलवा ली थी क्योकि ठंड बहुत ज्यादा थी .बरामदे में शीशे की बड़ी खिडकियों से सामने का जंगल दिख रहा था और चर्चा के साथ ग्लास भी टकरा रहे थे .कब खाना हुआ और नींद आ गई पता नहीं चला शायद थकान की वजह से .इस दौरे के अंतिम दिन फिट चोटिया सामने थी पर बादल तेजी से बढ़ रहे थे और कुछ देर सामने की पहाड़ी पर तेज बरसात शुरू हो गई .घोडाखाल में तो ओले भी घिरे और अचानक बड़ी ठंड के बाद हम रजाई के भीतर जा चुके थे .रात में जब गागर पर के जंगल से गुजते तो तेज हवा से देवदार और चीड के दरख्त से पानी भी ऊपर आ जा रहा था

Sunday, October 14, 2012

सूर्यास्त से सूर्योदय तक

अंबरीश कुमार तीन दिन से पहाड़ पर हूँ .हिमालय के दर्शन तो गागर में ही हो गए थे पर मुक्तेश्वर में पहली बार हिमालय का जो रंग देखा वह अद्भुत था .शाम को सूर्यास्त के रंग तो सुबह सूर्योदय का दृश्य .सुबह करीब साढ़े तीन बजे उठ गया था क्योकि रात की बैठकी दस बजे ख़त्म हो गई थी .ठंड काफी ज्यादा है और जी डाक बंगले में चौथी बार रुका हूँ वहा सामने देवदार के घने जंगल तो आगे अल्मोड़ा शहर की रोशनी जगमगाती नजर आ रही थी .बगल के कमरे ब्लू हेवन में इला मयंक रुके तो पिंक मेमोरीज में राज और आदि .बीच के कमरे में मै .खास बात यह थी कि मेरे कमरे में रात में बैठने से पहले फायर प्लेस में लकड़ियाँ जला दी गई थी इसलिए कमरा गर्म था .दो घंटे तक एक कामेडी फिल्म देखते देखते बात चलती रही और तब उठे जब गोपाल सिंह ने खाना तैयार होने की सूचना दी .इला पहाड़ की है और उन्होंने पहाड़ी दाल चुड़कानी यानि भट्ट की दाल खाने की इच्छा जताई और हम लोगों ने भी पहली बार इसका स्वाद लिया .खाना खाने के कुछ देर बाद ही नींद आ गई और उठे तो साढ़े तीन बज रहा था .सूर्योदय देखने के साथ कुछ फोटो अपलोड करनी थी और फिर लिखने के लिए बैठना था .सभी सो रहे थे .राज को जगाया तो वे लैपटाप देने के बाद फिर रजाई में जा चुके थे .कुछ देर काम किया फिर चाय बनाई ,अकेले ही पीनी पड़ी पर कुछ गरमी आई और कुछ फोटो वाला काम भी हो गया .तभी आदित्य कमरे में आ गए और हल लोग बाहर निकले तो तेज हवा और कंपकपा देने वाली ठान में आसमान पर तारे नजर आ रहे था .फिर कमरे में लौट आये .अंग्रेजो के बनाए इस डाक बंगले की खासियत यह है कि सामने ही हिमालय की श्रृंखला नजर आती है जिसमे नंदा देवी से लेकर त्रिशूल आदि शामिल है .चारो ओर देवदार के घने जंगल है जो तेज हवा से लहराते नजर आ रहे थे . शाम को ऊपर पर्यटन विभाग के रेस्तरां में काफी पीने जब पहुंचे तो सूरज डूब रहा था और देवदार के जंगलों के ऊपर जो रंग बिखर रहे थे उसे आदि कैमरे में कैद करते जा रहे थे .हवा में इतनी ज्यादा ठंड थी कि कुछ देर बाद ही रेस्तरां के भीतर जाना पड़ा . दरअसल दो दिन पहले ही यहाँ भरी बारिश और ओले पड़े थे जिसके चलते ठंड बढ़ गई थी .हालाँकि यह मौसम हिमालय देखने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है और स्थानीय लोग इसे बंगाली सीजन भी कहते है क्योकि दुर्गा पूजा से पहले बंगाल से काफी सैलानी इधर आते है और होटल भी भरे मिलते है .पर्यटन विभाग का होटल भी भरा हुआ था . इसकी एक और वजह गर्मी और बरसात के मौसम में हिमालय की चोटियाँ आसानी से नहीं दिख पाती है धुंध और बादल की वजह से जबकि अक्तूबर के महीने में आसमान साफ़ होता है .नवम्बर के बाद फिर मौसम बिगड़ेगा और तब इधर बर्फबारी शुरू हो जाएगी .मुक्तेश्वेर में बर्फ भी जमकर गिरती है और कई बार रास्ता भी बंद हो जाता है . यह साढ़े सात हजार फुट की ऊँचाई पर है और अगर भूल जाएँ तो डाक बंगले के बरामदे में लगा बोर्ड यह याद दिला देता है .पिछली गर्मियों में आलोक जोशी और उनके साहबजादे निंटू के साथ इस डाक बंगले में आया था .पर पहली बार बरसात के मौसम में यहाँ रुका था और धुंध में डूबा यह डाक बंगला कभी भुला नही जा सकता है .इस डाक बंगले को बने १४० साल हो चुके है और यह भी इस अंचल में इतिहास का एक महत्वपूर्ण पन्ना है . मुक्तेश्वेर में प्रवेश करते ही बांज के घने जंगल के बीच जाती सड़क लगता है जंगल में कही खो जाएगी .जंगल पर करते ही पोस्ट आफिस और बाई तरफ जोशी जी कि मशहूर चाय की दुकान नजर आती है.इसके बाद यहाँ न कोई दूकान है और न ढाबा .दोपहर में जब पहुंचे तो खानसामा ने पहले बता दिया था कि जो भी खाना खाना है पहले बता दे क्योकि दो किलोमीटर दूर से सामन लाना होगा जो शाम ढलने के बाद नहीं मिलेगा ..ज्यादातर सामान तो साथ लेकर ही चले थे क्योकि इसका अंदाजा था .अपने काफी हाउस के एक अन्य एडमिन और विश्विद्यालय के पुराने साथी सनत सिंह को भी यहाँ आना था पर तबियत ख़राब होने कि वजह से वे नहीं पहुंचे और दिनेश मनसेरा से भी मुलाकात का मौका नहीं मिला .पर जो भी साथ आए वे हिमालय और सूरज के रंगों को देख सम्मोहित थे .इला फिर बर्फ गिरने के बाद आने का कार्यक्रम बना रही है .चंचल अगर आते तो हिमालय को कैनवास पर भी उतार देते .

Sunday, October 7, 2012

सार्वजनिक अवकाश की राजनीति में हाशिए पर है जेपी ,वीपी और लोहिया

अंबरीश कुमार लखनऊ, अक्टूबर। उत्तर प्रदेश न तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानी जेपी के नाम कोई सार्वजनिक अवकाश होता है और न मंडल मसीहा वीपी सिंह के नाम जिन्होंने हिंदी पट्टी की राजनैतिक सामाजिक दिशा बदल दी । न ही समाजवादी चिंतक आचार्य नरेन्द्र देव से लेकर डा राम मनोहर लोहिया के नाम कोई अवकाश है होता है और न नेहरु ,इंदिरा से लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम । ऐसे में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापाक कांशीराम के नाम मायावती सरकार की तरफ से घोषित सार्वजनिक अवकाश को रद्द करने को लेकर राजनैतिक विभूतियों के नाम अवकाश घोषित करने पर बहस शुरू हो गई है ।उत्तर प्रदेश में तररह तरह के सार्वजनिक अवकाश बढ़ते जा रहे है जिसके चलते काम के दिन कम हो रहे और बच्चो के स्कूल की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है । इस समय स्कूलों में छमाही परीक्षा चल रही है और कांशीराम के नाम होने वाले अवकाश के चलते परीक्षा का कार्यक्रम भी बदलना पड़ा क्योकि यह कैलेंडर में नहीं था । अब सरकार ने अवकाश निरस्त कर दिया है तो फिर इस दिन का कार्यक्रम बनेगा । जो अवकाश राजनीति के चलते होते है वे सत्ता बदलने पर लोगों की चिंता का विषय बन जाते है । ऐसे ही एक छुट्टी होती है परशुराम जयंती पर जो सामाजिक न्याय के चलते शुरू की गई और जारी है । ऐसे कई और नए नए अवकाश सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर हाल के वर्षों में शुरू हुए है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -इस तरह अवकाश घोषित करने और उसे निरस्त करने की राजनीति बंद होनी चाहिए । उत्तर प्रदेश में सिर्फ राजनैतिक वजहों से कई सार्वजनिक अवकाश घोषित हो चुके है इससे समाज का ही नुकसान हो रहा है । इसके लिए कोई नीति भी बनानी चाहिए और इसे जाती धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए । राजनैतिक टीकाकार चंचल के मुताबिक इस तरह के अवकाश घोषित करने के दो पैमाने है पहला केंद्र में कैबिनेट तय करती है दूसरे राज्य । पर जिस तरह कांशीराम के नाम पर अवकाश घोषित किया गया उससे कई सवाल भी उठे खासकर उनके सामाजिक योगदान को लेकर । देश और प्रदेश में बहुत सी विभूतिया ऐसी हुई है जिनका आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी के बाद भी बड़ा योगदान रहा है । पर उनके नाम किसी ने कोई सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया इसलिए यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है । इनमे जेपी ,वीपी से लेकर आचार्य नरेन्द्र देव भी आते है । कांशीराम ने एक जाति को राजनैतिक ताकत दी पर और लोग भी हुए है जिनका बड़ा सामाजिक योगदान है । अगर यह रास्ता खुला तो कल किसी और ऐसे नेता जिसने अपनी जाति की बेहतरी के लिए काम किया हो उसके नाम भी इसी आधार पर अवकाश की मांग की जाएगी । दरअसल उत्तर प्रदेश में कांशीराम ने दलितों को लामबंद कर उन्हें सत्ता तक पहुँचाया जिसे उनका बड़ा योगदान माना जाता है पर मायावती ने उनके नाम अवकाश घोषित कर राजनैतिक फायदा लेने की कोशिश की । यही वजह है कि समाजवादी पार्टी सरकार के फैसले को सही कदम मानती है । पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -सरकार ने पहले की सरकार की गलती को सुधारा है । बहरहाल ज्यादातर लोगो का मानना है कि इससे दलित अस्मिता से न जोड़ते हुए एक व्यापक नीति बनाकर अब तक घोषित सभी सार्वजनिक अवकाश की समीक्षा की जाए यह समाज के लिए बेहतर कदम होगा । जनसत्ता

Saturday, October 6, 2012

मायावती के गले की हड्डी बन गए सिपहसालार

अंबरीश कुमार लखनऊ,6 अक्टूबर। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के सिपहसलार ही अब उनका संकट बढ़ा रहे है । अखिलेश यादव सरकार के सात महीने होने जा रहे है प़र मुख्य विपक्षी दल यानी बहुजन समाज पार्टी सरकार को घेरने की बजाय खुद घिरती जा रही है । आमतौर पर मुख्य विपक्षी दल सरकार बनने के छह महीने बाद खुलकर विरोध पर उतरने लगते है पर उत्तर प्रदेश में उल्टा हो रहा है । सत्तारूढ़ दल हमलावर मुद्रा में है और मुख्य विपक्षी दल बचाव की मुद्रा में । बाबूसिंह कुशवाहा तो विधान सभा चुनाव से पहले ही बसपा के साथ भाजपा के गले की हड्डी बने अब रही सही कद्र कसर लगता है लोकसभा चुनाव से पहले मायावती के बाकी मंत्री पूरी कर देंगे । मायावती के राज में बुंदेलखंड के बाहुबली मंत्री रहे बादशाह सिंह लैकफेड घोटाले के चालते जेल भेजे जा चुके है । इसके बाद सहकारिता विभाग की विशेष जाँच शाखा यानी एसआईबी ने पूर्व मंत्रियों रंगनाथ मिश्र ,अवधपाल सिंह यादव , अनीस अहमद ,नंद गोपाल नंदी ,चौधरी लक्ष्मी नारायण और चन्द्र मोहन देव यादव को नोटिस जारी किया है । खास बात यह है किस इस सूची में दो नाम गायब है जो नसीमुद्दीन और स्वामी प्रसाद मौर्य के माने जा रहे है । हालाँकि बादशाह सिंह पहले ही इससब के लिए पंचम तल की तरफ उंगली उठा चुके है जहाँ दो अफसरों शशांक शेखर सिंह और विजय शंकर पांडे की सत्ता चलती थी ।हालांकि ये दोनों अफसर एक दूसरे की टांग भी खींचते रहते थे । इनमे एक एक उद्योग घराने से लेकर मंत्रियों से डील करते थे तो दूसरे सर्वजन के प्रतीक थे और उनके हर फैसले में यह झलकता भी था । मीडिया की नकेल कसने के लिए जितने भी अजीबोगरीब नियम बने उसका श्रेय पांडे को जाता है जिन्होंने मायावती के खिलाफ माहौल बनवाने में बड़ी भूमिका निभाई । हालाँकि बाद में उनकी भूमिका भी बहुत छोटी रह गई थी पर पंचम तल यानी मुख्यमंत्री सचिवालय का राजनैतिक प्रतीक यही दोनों अफसर रहे । किसी मामले में यह भी चपेटे में आ जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए । राजनैतिक टीकाकार वीरेन्द्रनाथ भट्ट ने कहा -यह मामला मायावती के लिए बड़ा राजनैतिक संकट बनेगा खासकर लोक्साभा चुनाव से पहले । जिस घोटाले में बसपा का शीर्ष नेतृत्व फंस रहा हो वह मामला कितना गंभीर होगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया लगायाता है । इस मामले में नसीमुद्दीन और स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम आने के बाद बसपा के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं है । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने कहा है कि “चोर मचाए शोर“ कहावत की तर्ज पर बसपा नेता अपने काले कारनामों के उघड़ने पर अनर्गल बयानबाजी पर उतर आए हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में करोड़ों का घपला ही नहीं हुआ दो सीएमओ और एक डिप्टी सीएमओ की हत्या भी हो गई जिसकी सीबीआई जांच हुई है। लैकफेड घोटाले में परत-दर-परत बंदरबांट की नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं । घोटाले के अभियुक्त अपने साथियों के साथ बसपा राज के कई मंत्रियों की करतूतें भी बयान कर रहें हैं। बसपा नेता इससे बहुत हैरान परेशान हैं क्योंकि उन्हें कानून की गिरफ्त में आने का डर सता रहा है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने ने कहा -बसपा के कुछ नेता इतना आतंकित हैं कि वे अपनी ही बातें काट रहे हैं। एक बड़े बसपा नेता एक तरफ तो अपने जमाने के एक मंत्री की गिरफ्तारी को गलत बताते हुए उनका बचाव करते हैं और दूसरी तरफ उनके पंचमतल पर उंगली उठाने को दुराग्रहपूर्ण बयानबाजी बताते हैं। पिछले पांच सालों के इतिहास के हर जानकार को यह पता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री तो घर को ही दफ्तर समझती थी और जो कुछ भी होता था सब पंचमतल से ही होता था। उस समय तो चुनाव हों या स्थानान्तरण, ठेकों की नीलामी हो या सरकारी मिलों की बिक्री इस सबका फैसला मुख्यमंत्री कार्यालय से ही होता था। समाजवादी पार्टी ने तब महामहिम राज्यपाल को भी कई ज्ञापन देकर बताया था कि सचिवालय एनेक्सी के पंचमतल से ही भ्रष्टाचार का परनाला बह रहा है। रागद्वेष की बात करनेवाले यह क्यों भूल जाते हैं कि बसपा मुख्यमंत्री ने सत्ता में आने के पहले दिन ही पूर्व मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ 150 से ज्यादा मुकदमें दर्ज करवा दिए थे। पंचायत चुनावों में डीजी से लेकर दरोगा तक और डीएम से लेकर लेखपाल तक को बसपा के चुनाव एजेन्ट की तरह इस्तेमाल किया गया था।

Thursday, October 4, 2012

एक बेमिसाल विद्रोही

एस मुलगांवकर
रामनाथ गोयनका ने मौत को भी आसानी से नहीं जीतने दिया,ठीक उसी तरह जैसे सारी जिंदगी उन्होने बिना संघर्ष किए कभी हार नहीं मानी.तीन साल से स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा था. सांसें कभी भी उनका साथ छोड सकती थीं.पिछले छह महीने में दो बार डाक्टर उन्हे कुछ ही घंटे का मेहमान करार दे चुके थे.लेकिन उन्होने जबरदस्त संघर्ष करके मौत का मुह फेर दिया.ब्रीच कैन्डी अस्पताल के एक डाक्टर का तो कहना था कि इस व्यक्ति ने न केवल आयुर्विज्ञान बल्कि प्रकृति को भी अंगूठा दिखा दिया. गोयनका जी ने अपनी जीवनधारा के बारे में कई भविष्यवाणियों को झूठा साबित किया. इसकी इंडियन एक्सप्रेस से बेहतर मिसाल क्या हो सकती है.तीस के दशक में उनहोने यह अखबार शुरू किया.तब न इसका संपादन ठीक से होता था और न छपाई.हिंदू और मद्रास मेल जैसे तगडे प्रतिद्वंदियों से इसका मुकाबला था.एक्सप्रेस को बहुत कम विज्ञापन मिलते थे और इसका प्रसार भी कम था. तब किसी को यकीन नहीं था कि एक्सप्रेस टिका रहेगा.अक्लमंदी का तकाजा था कि अखबार को बंद कर दिया जाता. लेकिन गोयनका जी ने इसे स्वीकार नहीं किया.एक विदेशी शासन के खिलाफ उनका प्रखर राष्ट्रवाद भी उनके लिए नुकसानदेह साबित हो रहा था.फिर भी उन्होने प्रकाशन जारी रखा.आखिर में उन्ही की जीत हुई पर यह जीत उनके लिए वर्णनातीत थी.आगे पढ़े - गोयनका जी अंत तक एक बेमिसाल विद्रोही रहे. इंडियन एक्सप्रेस के जम जाने के बाद भी वे हमेशा किसी न किसी लक्ष्य के लिए किए जाने वाले संघर्ष में अपना सब कुछ दांव पर लगा देने से कभी पीछे नहीं हटे. 1975 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो वे कलकत्ता के एक अस्पताल में दिल के दौरे से जूझ रहे थे.कई महीने तक वे नीम-बेहोशी में रहे. जब वे ठीक हुए तो पाया कि सरकार ने एक्सप्रेस पर अपना निदेशक मंडल थोप दिया है.सभी ने उन्हे सलाह दी कि वे शांति से काम लें. अगर उन्होने जल्दबाजी में कुछ किया तो उन्हे ही नुकसान होगा क्योंकि देश में इमरजेंसी लगी हुई है.पर गोयनका जी ने जो किया वो काफी हद तक भौचक्का कर देने वाला था.उन्होने मद्रास से दिल्ली की उडान भरी और सरकारी बोर्ड को भंग करके चेयरमेन के रूप में बागडोर संभाल ली. सरकार के पास इमरजेंसी अधिकार थे लेकिन वह चुप रही.गोयनका जी ने सब कुछ दाव पर लगाकर इस तरह ये लडाई जीत ली.कुछ दिनों बाद उन्हे फिर ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ा.सरकार ने दीवानी और फौजदारी के 250 मुकदमे उनपर लाद दिए.कुछ निजी तौर पर उनके खिलाफ थे और कुछ एक्सप्रेस के, ताकि उनपर हर तरह का दबाव डाला जा सके. फिर उन्हे वही सलाह दी गई कि सरकार से टकराना पागलपन होगा.गोयनका जी ने एकबार फिर इस सलाह की उपेक्षा की और कई साल तके वे इन दबावों को झेलते रहे. यहां गोयनका जी के अपूर्व साहस की चर्चा करना अनावश्यक है.एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में इंडियन एक्सप्रेस को सिर्फ साहस के आधार पर ही खडा नहीं किया जा सकता था.इस अखबार को स्वतंत्र विचारों का बनाने के बारे में उनका इरादा शुरू से ही पक्का था इसीलिए राजनैतिक रूप से कांग्रेसी होते हुए भी उन्होने कभी भी अखबार को पार्टी का मुखपत्र नहीं बनने दिया. न ही उन्होने उस पर अपने विचार थोपे.वे अपना वास्ता अखबार की व्यापक नीति से ही रखते थे.अखबार की स्वतंत्रता को मजबूत करने वाले किसी भी विचार और सुझाव का स्वीकार करने के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे. जब उनसे कहा गया कि अमेरिकी और यूरोपीय शैली के लोकपाल को अपनाना सार्वजनिक हित और मूल्यधर्मी पत्रकारिता के पक्ष में होगा तो उन्होने इसे उत्साह पूर्वक लिया. इसपर अमल क्यों नहीं हो सका इसके पीछे साजिश और स्वार्थ की कहानी है जिसे मै यहां पेश नहीं करूंगा. दोबारा उन्हे एक संपादकीय ट्रस्ट बनाने का सुझाव दिया गया जो निर्धारित नीति से अखबार के हटने के खिलाफ सतर्क रहता. गोयनका जी ने इसपर अमल शुरू तो कियी पर शायद ज्यादा उम्र के कारण वे इसके लिए जरूरी गतिशीलता नहीं जुटा पाए और इस विचार के विरोधी कामयाब हो गए. वृद्धावस्था और और खराब स्वास्थ्य ने उस शानदार विद्रोही से यह कीमत वसूल की.आज का दिन भारतीय पत्रकारिता के लिए सर्वाधिक दुखद दिन है. (आज रामनाथ गोयनका की पुण्य तिथि है .उनके निधन पर पांच अक्तूबर १९९१ को इंडियन एक्सप्रेस के संपादक एस मुलगांवकर ने जो लिखा वह एक बार फिर दिया जा रहा है )

Friday, September 28, 2012

वेगाटार समुन्द्र तट की एक शाम

अंबरीश कुमार पणजी से फेरी जैसे ही मांडोवी नदी पर करती है एक छोटा सा गाँव बेती आता है जहाँ से कलंगूट के लिए बस मिलती है ।पणजी और बेती के बीच मांडोवी नदी है जिसमे अरब सागर का पानी भी आ मिलता है ।इस पर एक पुल भी बना है जिसका रास्ता काफी लम्बा है जिसकी वजह से आमतौर पर लोग फेरी से बेती जाते है ।बनती से
का सफ़र करीब एक घंटे का है हालाँकि दूरी सिर्फ सोलह किलोमीटर है लेकिन यह बस हर गाँव में रुकते हुए चलती है ।रस्ते में पड़ने वाले गाँव लैंडस्केप की तरह नजर आते है ।इन गांवों का हर मकान वास्तुकला का खूबसूरत नमूना है ।आखिर गरीब लोग तो गोवा में भी है लेकिन उत्तर भारत की तरह उनके रहन सहन से गरीबी की कोई झलक नही मिलती ।चाहे ईसाई हो या हिन्दू या फिर मुसलमान सभी के घर एक जैसे और काफी साफ़ सुथरे है । घर से बाहर एक छोटा सा बगीचा और उसमे दौड़ते कुत्ते बिल्ली के बच्चे ।समूचे गोवा में लोग बिल्ली पालते है । पुर्तगाली और फ्रांसीसी वास्तुकला का असर भी देखने को मिलता है ।गाँव का कोई भी घर उजाड़ या पुराना नजर नहीं आता । रंगों का प्रयोग खूबसूरती से किया दिखता है ।गोवानी समाज अपनी इसी सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है ।यहाँ का समाज न सिर्फ खुला समाज है बल्कि उसे अपनी परम्पराओं और संस्कृति से काफी लगाव है ।यह बात सभी धर्मो में बराबर है ।गोवा ही देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ सामान धार्मिक कानून लागू है ।लोगो को यहाँ धर्म संबंधी सारी आजादी भी है । यहाँ के लोगों को सबसे ज्यादा खतरा सांस्कृतिक प्रदूषण से नजर आता है यह बात कलंगूट ,वेगाटार ,अंजुना और बागा बीच जाने पर साफ़ हो जाती है । एक समय कलंगूट और अंजुना समुंद्र तट हिप्पियों के चलते रष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गए थे । हिप्पियों की अपसंस्कृति का मुकाबला गोवानी समाज ने काफी समय तक किया । आज से करीब दो दशक पहले कलंगूट का समुंद्र तट ऐसा नहीं था । शाम होते ही कलंगूट का यह छोटा सा गाँव किसी बड़े क्लब और कैसिनो में तब्दील हो जाता था । समुंद्र तट की रेट पर ही बीयर और फेनी की बोतले खुलती थी । कुकुरमुत्तों की तरह पसरे दर्जनों ढाबों में अंग्रेजी गानों की आवाज दूर तक गूंजती थी । गोवा को देखने के लिए पणजी से ओल्ड गोवा की यात्रा इतिहास में पहुँचाने वाली है । मांडोवी के किनारे किनारे सेंत आगस्टीन चर्च चर्च तक पहुँचने में कई भव्य चर्च नजर आते है । इसमे सबसे भव्य है 'बासिलिका आफ बोम जोसस '। १६ वीं शताब्दी में बने इस चर्च की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति है । इसमे सेंट फ्रांसिस जेवियर का शरीर रखा गया है ,पर यह 'ममी ' नहीं है क्योकि इसपर रसायनों का लेप या पट्टी आदि नहीं है । उसे एक शीशे के बाक्स में रखा गया है जिसको लेकर कई तरह की किवदंतियां है । यह चर्च नवजात जीसस को समर्पित किया गया है । यही वह जगह है जिसे १५१० में अफोंसों डे अल्बुकर्क ने जीत कर पुर्तगाली साम्राज्य का पूर्वी मुख्यालय बना दिया था । बासिलिका आफ बीम जोसस की यह इमारत गोथिक वास्तुकला का नायब नमूना है । इस चर्च को अब विश्व परंपरा का हिस्सा मान लिया गया है । इसके आलावा कैथेड्रिल है जो एक मस्जिद की जगह बनाया गया है । यह चर्च पहले सेंट कैथरीन को समर्पित किया गया था । इसी में मशहूर गोल्डेन बेल है जिसकी आवाज कभी पणजी तक सुनी जाती थी । चर्च में लगी यह घंटी दुनिया भर में मशहूर है । कभी इसका इस्तेमाल लोगों को दुश्मनों के हमले से आगाह करने के लिए किया जाता था । इसकी एक और खासियत इसमे बनी कब्रें है जिनमे इसके वास्तुशिल्पी की कब्र भी शामिल है । यह चर्च करीब नब्बे वर्ष में बनकर तैयार हुआ जिसकी शुरुआत १५१० में हुई थी । इसके अन्दर दो बालकनी भी नजर आती है जिसमे एक शासकों के परिवार के लिए बनाई गई थी । इसके अलावा ओल्ड गोवा के प्रमुख चर्चों में सेंट फ्रांसिस आफ अस्सीसी ,काजेरान , चर्च आफ अवर लेडी आफ रोजरी और नन्री आफ शांता मोनिका भी शामिल है । गोवा के शांत खड़े चर्च सैकड़ों साल का इतिहास समेटे हुए है जिनकी भव्यता आज भी बरकरार है । चर्च के अलावा गोवा में कई मशहूर मंदिर भी है जिनमे मंगेशी और सीता दुर्गा मंदिर शामिल है । मंगेशी गाँव के पास यह मंदिर बना हुआ है । इसी गाँव के लोग आपने नाम के आगे ' मंगेशकर 'लगाते है । गोवा में चर्च है तो मंदिर मसजिद और किले भी कम नहीं । मसजिदों में १५६० में इब्राहिम आदिलशाह की बनवाई शफा मसजिद भी मशहूर है । गोवा का आगुदा फोर्ट पुर्तगालियों ने १६०९ में बनवाया हा ताकि ओल्ड गोवा को दुश्मनों के हमले से बचाया जा सके । फिलहाल यह किला जेल में तब्दील हो चुका है । इस किले के पास से पणजी का खुबसूरत दृश्य नजर आता है । फिर भी गोवा का मुख्य आकर्षण यहाँ के समुंद्र तट ही साबित होते है । वेगातार समुंद्र तट तक पहुँचते पहुँचते शाम हो जाती है । लेकिन चट्टानों पर आघात करती लहरों को हम देखते ही रह जाते । यहाँ सामने एक रेस्तरां नजर आता है । बेगाटार पणजी से २२ किलोमीटर दूर एक शांत जगह है । एक तरफ नारियल के जंगल है तो दूसरी तरफ समुंद्र । खेत काफी पीछे रह गए है । यहाँ से बागा तट का रास्ता हैरान कर देने वाला है । दूर तक फैले धान के खेतों में सड़क एक पगडंडी जैसी नजर आती है । बीच में एक जगह सड़क के दोनों ओर नारियल के पेड़ों की कतार नजर आई जिसके ख़त्म होते ही लहर जैसी कोई नदी । पुल से कुछ आगे जाने पर ही बागा तट आ जाता है । समुंद्र में डूब रहे सूरज को देखते समय आवाज थी तो सिर्फ लहरों की और अँधेरा गिरने लगा था । काफी देर बैठे रहे समुंद्र के सामने पड़े पत्थरों पर ।

बनवारी लाल शर्मा कौन थे

अरुण कुमार त्रिपाठी
कम लोग जानते हैं कि बनवारी लाल शर्मा कौन थे। जो जानते हैं उनमें से भी कम लोग उनके कामों को सफल मानने को तैयार होंगे। मुख्यधारा का मीडिया और उसकी दैनिक खुराक बन चुकी राजनीति को उनके जैसे लोगों से क्या लेना देना। हर कोई यह सवाल करने लगता है कि आखिर वैश्वीकरण और उदारीकरण का विरोध करके बनवारी लाल शर्मा ने क्या कर लिया? क्या वह नीतियां रुक गईं? क्या बहुराष्ट्रीय कंपनियां भाग गईं? क्या उदारीकरण की गति धीमी पड़ गई? इस तरह के सवालों से उनका मूल्यांकन करने वाले या तो हकीकत से मुंह चुराते हैं या अपने झूठ की आंधी चलाते रहते हैं। वे दुनिया की हकीकत से बाखबर होकर भी अपने प्रचार की झोंक में विकल्प के उन विमर्शों को भूल जाते हैं जो पूरी दुनिया में चल रहे हैं और जिनके कारण वैश्वीकरण की नीतियां आज चकरघिन्नी हो रही हैं। पर बनवारी लाल शर्मा थे इसीलिए हमारा समाज है और आगे भी रहेगा। वे चले गए इससे खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ईमानदार, कर्मठ, मेधावी व्यक्ति अपनी जितनी भूमिका निभा सकता है उतनी निभा कर वे चले गए। कल जब उनके निधन की खबर आई तो दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रेम सिंह दुखी मन से कहा कि एक दिन उन्हीं की तरह हम लोग भी खामोशी से चले जाएंगे। पर मेरा मानना है कि बनवारी लाल शर्मा जैसे लोग खामोशी से नहीं गए न ही प्रेम सिंह जैसे लोगों की आवाज आसानी से खामोश होने वाली है। बनवारी लाल ने जो अलख जगाई वह जलती रहेगी और उनके नारों, विमर्शों और व्याख्यानों की आवाज देर तक गूंजती रहेगी। वह आवाज इसलिए भी गूंजती रहेगी कि उसके पीछे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए हो रहे वैश्वीकरण की अमानवीय नीतियों का विरोध ही नहीं मानवता के पक्ष में वैश्वीकरण किए जाने का मुकम्मल आह्वान है। बनवारी लाल कोई कूढ़ मगज और नामसझ और कोरी भावुकता वाले इंसान नहीं थे। वे गणित की ऐसी शाखा के विद्वान थे जिसको पढ़ने वाले दुनिया में कम लोग मिलते हैं। उन्होंने उसमें फ्रांस से डीएससी की थी और उनके पढ़ाए हुए छात्र आज देश दुनिया के तमाम विश्वविद्यालयों में गणित पढ़ाकर रिटायर भी हो चुके हैं। लेकिन उन्होंने जब देखा कि दिसंबर 1984 में आधी रात के समय यूनियन कार्बाइड नाम की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने भारत के मध्य में स्थित भोपाल शहर में हजारों लोगों को मार कर और सैकड़ों लोगों को अपाहिज बना दिया और उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया, उल्टे भारत सरकार उसके अधिकारी की खैरख्वाही करती पाई गई तो उनका मन विचलित हो गया। उन्होंने तभी से ठान लिया कि वे इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की करतूतों का खुलासा करते रहेंगे और उसके लिए मानवता के पक्ष में जितना बनेंगे उतना करेंगे। तब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी सत्ता में आए थे और भारत में उदारीकरण का दौर शुरू नहीं हुआ था। उनकी आशंकाएं सही निकलीं और जल्दी ही भारत ही नहीं पूरी दुनिया पर वाशिंगटन सहमति के आधार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियां लागू की जाने लगीं। डंकेल का प्रस्ताव उस दिशा में लाया गया पहला दस्तावेज था। जब वह प्रस्ताव आया तो देश में जो तीन वरिष्ठ लोग मुखर रूप से उस प्रस्ताव के विरोध में आए उनमें बनवारी लाल शर्मा, किशन पटनायक और डा ब्रह्मदेव शर्मा प्रमुख थे। बाद में उसमें एक नाम प्रभाष जोशी का भी जुड़ा। प्रभाष जोशी तो पत्रकार थे लेकिन बाकी तीनों शिक्षक, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनके साथियों की अपनी अपनी टोलियां थीं। अगर किशन पटनायक के साथियों ने- गुलामी का खतरा-- नाम से पुस्तक प्रकाशित की तो बनवारी लाल शर्मा ने इलाहाबाद के कुछ साथियों की मदद से आजादी बचाओ आंदोलन की स्थापना की और-- नई आजादी उद्घोष-- के नाम से पत्रिका निकालनी शुरू की। इन लोगों की विद्वता, निष्कलंक जीवन और तर्कों और तथ्यों की स्पष्टता ने देश और विशेषकर हिंदी इलाके के तमाम नौजवानों को दीक्षित कि या। उन्हीं में एक युवा राजीव दीक्षित भी थे जो अपने साम्राज्यवादी विमर्श को सांप्रदायिकता तक लेकर चले गए और बनवारी लाल शर्मा से दूर होते गए। राजीव दीक्षित और उनके जैसे युवाओं के कारण ही कई लोग बनवारी लाल शर्मा में भी सांप्रदायिकता के प्रति नरमी या उसके प्रति झुकाव देखते थे। पर उन्होंने उधर ध्यान दिए बिना अपना काम जारी रखा। आज पलट कर देखा जाए तो बनवारी लाल शर्मा अपने पीछे जनविरोधी आर्थिक नीतियों के विरोध ही नहीं विकल्प की एक लंबी और जुझारू विरासत छोड़ गए हैं। इस टिप्पणीकार से एक बार समाजवादी नेता विजय प्रताप ने- आजादी बचाओ आंदोलन- पर अध्ययन कर किताब लिखने को कहा था। वह काम नहीं हो पाया। उसका मलाल है पर एक बात की खुशी जरूर है कि इस टिप्पणीकार ने डा कमल नयन काबरा और डा एके अरुण के साथ 2001 में बनारस से जौनपुर के बीच डेढ़ सौ किमोमीटर घूम कर वह मानव श्रृंखला देखी थी जो उनके और साथियों की मेहनत से पेप्पी कोक और दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरोध के लिए बनी थी। उसके बाद उस आयोजन पर जनसत्ता के रविवारी में कवर स्टोरी भी की थी जो काफी चर्चित रही। जिसका जिक्रसमाजवादी विचारक सुरेंद्र मोहन जी रवींद्र त्रिपाठी को श्रेय देते हुए करते थे। आज बनवारी लाल जी के जीवन और उनके अथक संघर्ष की थाती को आगे बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि उन्होंने जिस सुबह का सपना देखा था उसे आने में बहुत देर नहीं है। वैश्वीकरण की लड़खड़ाती नीतियां अब दुनिया में ज्यादा दिन की मेहमान नहीं हैं। भले बनवारी जी अपने जीवन में वो मंजर नहीं देख पाए और उदारीकरण समर्थकों के ताने सुनते रहे पर उनके साथियों को वह ज्यादा दिन तक नहीं सुनने पड़ेगे। यही उनकी ताकत है यही उनकी सफलता है।

मालिक तो खूब ही कमात है, पत्रकार भाई खाली हाथ है!

मालिक तो खूब ही कमात है, पत्रकार भाई खाली हाथ है! 31 JULY 2010 5 COMMENTS अंबरीश कुमार श्रमजीवी पत्रकारों के वेतनमान को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए वेज बोर्ड की दिल्ली में मंगलवार को हुई बैठक में जनसत्ता के पत्रकार अंबरीश कुमार ने देश भर के पत्रकारों की सामाजिक आर्थिक सुरक्षा का सवाल उठाया और बोर्ड ने इस सिलसिले ठोस कदम उठाने का संकेत भी दिया है : मॉडरेटर देश के विभिन्न हिस्सों में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लड़ने वाले पत्रकारों का जीवन संकट में है। चाहे कश्मीर हो या फिर उत्तर पूर्व या फिर आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश। सभी जगह पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ समय में आधा दर्जन पत्रकार मारे जा चुके हैं। इनमें ज्यादातर जिलों के पत्रकार हैं। खास बात यह है कि पचास कोस पर संस्करण बदल देने वाले बड़े अखबारों के इन संवादाताओं पर हमले की खबरें इनके अखबारों में ही नहीं छप पातीं। अपवाद एकाध अखबार हैं। इलाहाबाद में इंडियन एक्सप्रेस के हमारे सहयोगी विजय प्रताप सिंह पर माफिया गिरोह के लोगों ने बम से हमला किया। उनकी जान नहीं बचायी जा सकी, हालांकि एक्सप्रेस प्रबंधन ने एयर एम्बुलेंस की व्यवस्था की पर सरकार को चिंता सिर्फ अपने घायल मंत्री की थी। कुशीनगर में एक पत्रकार की हत्या कर उसका शव फिंकवा दिया गया। गोंडा में पुलिस एक पत्रकार को मारने की फिराक में है। लखीमपुर में समीउद्दीन नीलू को पहले फर्जी मुठभेड़ में मारने की कोशिश हुई और बाद में तस्करी में फंसा दिया गया। लखनऊ में सहारा के एक पत्रकार को मायावती के मंत्री ने धमकाया और फिर मुकदमा करवा दिया। यह बानगी है उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर मंडरा रहे संकट की। बावजूद इसके पत्रकार ही ऐसा प्राणी है जिसका कोई वेतनमान नहीं, सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा नहीं। और न ही जीवन की अंतिम बेला में जीने के लिए कोई पेंशन। असंगठित पत्रकारों की हालत और खराब है। जिलों के पत्रकार मुफलिसी में किसी तरह अपना और परिवार का पेट पाल रहे हैं। दूसरी तरफ अखबारों और चैनलों का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। इंडियन एक्सप्रेस समूह के दिल्ली संस्करण में छह सौ पत्रकार – गैर पत्रकार कर्मचारियों में दो सौ वेज बोर्ड के दायरे में हैं, जो महीने के अंत में उधार लेने पर मजबूर हो जाते हैं। दूसरी तरफ बाकी चार सौ में तीन सौ का वेतन एक लाख रुपये महीना है। हर अखबार में दो वर्ग बन गये है। देश भर में मीडिया उद्योग ऐसा है, जहां किसी श्रमजीवी पत्रकार के रिटायर होने के बाद उसका परिवार संकट में आ जाता है। आजादी के बाद अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों की दूसरी पीढ़ी अब रिटायर होती जा रही है। पत्रकार के रिटायर होने की उम्र ज्यादातर मीडिया प्रतिष्ठानों में 58 साल है। जबकि वह बौद्धिक रूप से 70-75 साल तक सक्रिय रहता है। जबकि शिक्षकों के रिटायर होने की उम्र 65 साल तक है। इसी तरह नौकरशाह यानी प्रशासनिक सेवा के ज्यादातर अफसर 60 से 65 साल तक कमोबेश पूरा वेतन लेते हैं। इस तरह एक पत्रकार इन लोगों के मुकाबले सात साल पहले ही वेतन भत्तों की सुविधा से वंचित हो जाता है। और जो वेतन मिलता था उसके मुकाबले पेंशन अखबार भत्ते के बराबर मिलती है। इंडियन एक्सप्रेस समूह में करीब दो दशक काम करने वाले एक संपादक जो 2005 में रिटायर हुए, उनको आज 1048 रुपये पेंशन मिलती है और वह भी कुछ समय से बंद है, क्‍योंकि वे यह लिखकर नहीं दे पाये कि मैं अभी जिंदा हूं। जब रिटायर हुए तो करीब चालीस हजार का वेतन था। यह एक उदाहरण है कि एक संपादक स्तर के पत्रकार को कितनी पेंशन मिल रही है। हजार रुपये में कोई पत्रकार रिटायर होने के बाद किस तरह अपना जीवन गुजारेगा। यह भी उसे मिलता है, जो वेज बोर्ड के दायरे में है। उत्तर प्रदेश का एक उदाहरण और देना चाहता हूं, जहां ज्यादातर अखबार या तो वेज बोर्ड के दायरे से बाहर है या फिर आंकड़ों की बाजीगरी कर अपनी श्रेणी नीचे कर लेते हैं। इससे पत्रकारों का वेतन कम हो जाता है। जब वेतन कम होगा तो पेंशन का अंदाजा लगाया जा सकता है। जबकि इस उम्र में सभी का दवाओं का खर्च बढ़ जाता है। अगर बच्चों की शिक्षा पूरी नहीं हुई तो और समस्या। छत्तीसगढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश तक बड़े ब्रांड वाले अखबार तक आठ हजार से दस हजार रुपये में रिपोर्टर और उप संपादक रख रहे हैं। लेकिन रजिस्टर पर न तो नाम होता है और न कोई पत्र मिलता है। जबकि ज्यादातर उद्योगों में डाक्टर, इंजीनियर से लेकर प्रबंधकों का तय वेतनमान होता है। सिर्फ पत्रकार है, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर कोई वेतनमान तय नहीं। हर प्रदेश में अलग अलग। एक अखबार कुछ दे रहा है, तो दूसरा कुछ। दूसरी तरफ रिटायर होने की उम्र तय है और पेंशन इतनी कि बिजली का बिल भी जमा नहीं कर पाये। गंभीर बीमारी के चलते गोरखपुर के एक पत्रकार का खेत-घर बिक गया, फिर भी वह नहीं बचा। अब उसका परिवार दर दर की ठोकरें खा रहा है। कुछ ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि रिटायर होने के बाद जिंदा रहने तक उसका गुजारा हो सके और बीमारी होने पर चंदा न करना पड़े। बेहतर हो वेज बोर्ड पत्रकारों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की तरफ ध्यान देते हुए ऐसे प्रावधान करे जिससे जीवन की अंतिम बेला में पत्रकार सम्मान से जी सके। पत्रकारों को मीडिया प्रतिष्ठानों में प्रबंधकों के मुकाबले काफी कम वेतन दिया जाता है। अगर किसी अखबार में यूनिट हेड एक लाख रुपये पाता है, तो वहां पत्रकार का अधिकतम वेतन बीस-पच्चीस हजार होगा। जबकि ज्यादातर रिपोर्टर आठ से दस हजार वाले मिलेंगे। देश के कई बड़े अखबार तक प्रदेशों से निकलने वाले संस्करण में पांच-दस हजार पर आज भी पत्रकारों को रख रहे हैं। मीडिया प्रतिष्ठानों के लिए वेतन की एकरूपता और संतुलन अनिवार्य हो खासकर जो अखबार संस्थान सरकार से करोड़ों का विज्ञापन लेते हैं। ऐसे अखबारों में वेज बोर्ड की सिफारिशें सख्ती से लागू करायी जानी चाहिए। एक नयी समस्या पत्रकारों के सामने पेड न्यूज़ के रूप में आ गयी है। अखबार मालिक खबरों का धंधा कर पत्रकारिता को नष्ट करने पर आमादा हैं। जो पत्रकार इसका विरोध करे उसे नौकरी से बाहर किया जा सकता है। ऐसे में पेड न्यूज़ पर पूरी तरह अंकुश लगाने की जरूरत है। खबर की कवरेज के लिए रखा गया पत्रकार मार्केटिंग मैनेजर बन कर रह जाएगा। और एक बार जो साख खतम हुई, तो उसे आगे नौकरी तक नहीं मिल पाएगी। इस सिलसिले में निम्न बिंदुओं पर विचार किया जाए… 1.) शिक्षकों और जजों की तर्ज पर ही पत्रकारों की रिटायर होने की उम्र सीमा बढायी जाए। 2.) सभी मीडिया प्रतिष्ठान इसे लागू करे, यह सुनिश्चित किया जाए। 3.) जो अखबार इसे लागू न करे, उनके सरकारी विज्ञापन रोक दिये जाएं। 4.) सरकार सभी पत्रकारों के लिए एक वेतनमान तय करे जो प्रसार संख्या की बाजीगरी से प्रभावित न हो। 5.) पेंशन निर्धारण की व्यवस्था बदली जाए। 6.) पेंशन के दायरे में सभी पत्रकार लाये जाएं, चाहे वेज बोर्ड के दायरे में हों या फिर अनुबंध पर। 7.) न्यूनतम पेंशन आठ हजार हो। 8.) पेंशन के दायरे में अखबारों में काम करने वाले जिलों के संवाददाता भी लाये जाएं। 9.) पत्रकारों और उनके परिवार के लिए अलग स्वास्थ्य बीमा और सुविधा का प्रावधान हो। 10.) जिस तरह दिल्ली में मान्यता प्राप्त पत्रकारों को स्वास्थ्य सुविधा मिली है, वैसी सुविधा सभी प्रदेशों के पत्रकारों को मिले। 11.) किसी भी हादसे में मारे जाने वाले पत्रकार की मदद के लिए केंद्र सरकार विशेष कोष बनाये। प्रमोद जोशी की पोस्ट पर इसी देना था पर लग नहीं पाया यह मोहल्ला ने भी दिया था जिससे लेकर दे रहा हूँ http://mohallalive.com/2010/07/31/journalists-plight-and-wage-board/

Tuesday, September 25, 2012

अखिलेश सरकार को कही संकट में न डाल दे दंगों की साजिश !

अंबरीश कुमार
लखनऊ,२५ सितंबर।उत्तर प्रदेश फिर बारूद के ढेर पर बैठा नजर आ रहा है । पिछले छह महीने में छह बार कट्टरपंथी ताकतें प्रदेश को मजहबी दंगों की आग में झोंकने का प्रयास कर चुकी है पर फिलहाल उन्हें यह सफलता नहीं मिली । पर पुलिस प्रशासन की भूमिका कई जगह विवादों में रही है । खास बात यह है कि इस बार प्रदेश की कट्टरपंथी हिंदू ताकतों की जगह बाहरी ताकत की भूमिका नजर आ रही है जो अल्पसंख्यकों को भड़का रही है । चाहे लखनऊ हो या मसूरी दोनों जगह अल्पसंख्यकों को मोहरा बनाने की कोशिश हुई और वे बने भी ।ख़ुफ़िया सूत्रों के मुताबिक नवरात्र के साथ ही एक बार यह कोशिश की जाएगी जब दुर्गा पूजा और दशहरा का उत्सव मन रहा होगा । फिलहाल अभी तक जिस अंदाज में पुलिस प्रशासन ने दंगों से निपटने का प्रयास किया है यदि उसमे बदलाव नहीं हुआ तो अखिलेश सरकार के दमन पर बड़ा दाग भी लग सकता है ।खास बात यह है कि इस बार जिस तरह का फसाद हो रहा है उसमे वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों एक ही भाषा बोल रहे है ।बहरहाल अब सरकार और सत्तारूढ़ दल दोनों इसे लेकर गंभीर हुए है । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज साफ़ कहा कि सांप्रदायिक ताकतों का मजबूती से मुकाबला किया जाएगा । समाजवादी पार्टी इसके पीछे राज्य के राजनैतिक दलों की भूमिका भले देखे पर यह साफ़ है कि कट्टरपंथी हिंदू ताकते उस तरह नजर नहीं आती जैसे पहले के दंगों में दिखाई पड़ी थी । पूर्वांचल में जहाँ योगी का दबदबा रहा है वहा अभी तक कोई ऐसी शुरुआत नहीं हुई है । गोरखपुर ,बस्ती ,बलरामपुर ,आजमगढ़ और आसपास के अन्य जिलों में इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है ।उलटे दूसरे और नए शहर निशाने पर है ।पर इन दंगों के पीछे कौन है यह सवाल पूछने पर भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहा -चाहे लखनऊ हो या मसूरी ,पहली बार अल्पसंख्यक तबका आक्रामक होता नजर आ रहा है । पहले जिस तरह संघ परिवार के संगठन इस तरह की गतिविधियों में नजर आते थे वे दिख नहीं रहे ।लखनऊ में जो फसाद हुआ उसकी प्रतिक्रिया जैसी मेरी थी ठीक वही लालजी टंडन की थी । यह पहले कभी नहीं हुआ ।बहरहाल अभी तक यह मजहबी टकराव में नहीं बदला है यह गनीमत है पर अब मुख्यमंत्री को आगाह हो जाना चाहिए ।दूसरी तरफ भाजपा प्रवक्ता ह्रदय नारायण दीक्षित ने कहा -लखनऊ ,कानपुर ,इलाहाबाद और मसूरी सब जगह देख ले किसने शुरुआत की । जब किसी को यह महसूस हो जाए कि सरकार ने उन्हें छूट दे दी है तो यह होगा ही । पुलिस को जब यह सन्देश हो कि एक खास समुदाय पर कड़ाई न होने पाए तो वही होगा जो गाजियाबाद में हुआ ।यह हो सकता है कि बाहरी लोग भड़का रहे हो पर ये इतनी जल्दी भड़क क्यों जाते है । इस बीच समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में आनेवाले दिनों में सांप्रदायिक हिंसा होने की आईबी (इंटेलीजेंस ब्यूरो) की आशंका गम्भीर मामला है। समाजवादी पार्टी की सरकार इस सम्बन्ध में पहले से सचेत है क्योंकि जातीय और सांप्रदायिक ताकतें विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त खाकर कुंठित और हताश है। राज्य सरकार इन तत्वों की साजिशों को किसी भी सूरत में कामयाब नहीं होने देगी। अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही यह घोषणा की थी कि समाजवादी पार्टी सरकार में सांप्रदायिक शक्तियों को सिर उठाने का मौका नहीं दिया जाएगा। प्रदेश के किसी भी हिस्से में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वालों के प्रति कठोरता से पेश आया जाएगा और इस सम्बन्ध में कलेक्टर और एसपी जिम्मेदार होंगे । जनसत्ता

Thursday, September 20, 2012

सुरजीत जैसी भूमिका में मुलायम

अंबरीश कुमार लखनऊ, सितंबर। मुलायम सिंह यादव अब राष्ट्रीय फलक पर वह भूमिका निभा सकते है जो कभी वीपी सिंह ,वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत से लेकर देवीलाल तक निभा चुके है । आज केंद्र की आर्थिक नीतियों के खिलाफ हुए आठ दलों के साझा प्रदर्शन ने के बाद वाम दलों के रूख से यह साफ़ हो गया है । माकपा नेता प्रकाश करात से लेकर भाकपा नेता अशोक मिश्र तक की प्रतिक्रिया साफ संकेत दे रही है कि साझा संघर्ष ,साझा कार्यक्रम के साथ एक गैर भाजपा गैर कांग्रेस विकल्प कुछ समय में आकार ले सकता है । खास बात यह है कि कोई भी हड़बड़ी में नहीं है न मुलायम और न वाम दल । प्रकाश करात ने जो कहा वही प्रदेश के वामपंथी नेताओं ने कहा । भाकपा नेता अशोक मिश्र ने कहा -सवाल सरकार गिराने का नही है बल्कि साझा कार्यक्रमों और संघर्षों के आधार पर चुनाव तक एक ठोस विकल सामने आए। इसमें कुछ समयी भी लग सकता है । आज जिस तरह समाजवादी पार्टी ने वाम दलों और अन्य दलों के साथ सड़क के संघर्ष में साथ आकर केंद्र की आर्थिक नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला है वह एक बड़ा राजनैतिक संकेत है । प्रकाश करात ने तो कहा भी कि मुलायम सिंह संसद से सड़क तक संघर्ष का नेतृत्व करे हम साथ है । कभी इस तरह की भूमिका वीपी सिंह ,देवीलाल और सुरजीत ने निभाई थी । इस समय राजनैतिक ताकत के हिसाब से कांग्रेस और भाजपा के बाद मुलायम सिंह ही ऐसे नेता नजर आते है जो गैर भाजपा गैर कांग्रेस दलों से सकारात्मक संवाद कर सकते है । अभी तक यह दुविधा थी कि एटमी करार को लेकर सपा की भूमिका से वाम दलों की जो नाराजगी थी वह आड़े न आए । पर आज वाम दलों ने मुलायम की बड़ी भूमिका को रेखांकित भी कर दिया । वैसे भी देश के सबसे बड़े सूबे में अभूतपूर्व बंद समाजवादी पार्टी की वजह से ही हुआ जिसके कार्यकर्ताओं ने जिलों जिलों में अपनी ताकत दिखाई । दरअसल कई राजनैतिक दलों की निगाह गुजरात के चुनाव पर भी है । यही वजह है कि पहले क्षेत्रीय सालों और वाम दलों के बीच नए सिरे से संबंधो की बात हो रही है । कोई भी यह जोखम नहीं लेना चाहता है कि केंद्र से एक धर्म निरपेक्ष सरकार गिराकर भाजपा को कोई अप्रत्यक्ष लाभ लेने का मौका दिया जाए । समाजवादी पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -हम कांग्रेस की जन विरोधी और किसान विरोधी नीतियों का पुरजोर विरोध करते है पर इसका अर्थ यह नहीं कि ऐसा कोई फैसला हड़बड़ी में ले ले जिससे मजहबी राजनीती करने वालों को ताकत मिले । पार्टी नेतृत्व इस बारे में सही समय पर सही फैसला लेगा । समाजवादी धारा के लोग भी मुलायम से अब बड़ी भूमिका की उम्मीद में है । किसान मंच के महासचिव और महाराष्ट्र के किसान नेता प्रताप गोस्वामी ने कहा -राष्ट्रीय स्तर पर मुलायम सिंह में ही यह माद्दा नजर है जो कांग्रेस और भाजपा को बड़ी चुनौती दे सके । दूसरे वे ग्रामीण पृष्ठभूमि के कद्दावर नेता है जैसे कभी देवीलाल थे । ऐसे में उनकी भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है । अब वाम दलों के रूख के बाद यह और साफ हो गया है । संघर्ष वाहिनी मंच के संयोजक राजीव हेम केशव ने कहा -मौजूदा राजनैतिक हालात में मुलायम सिंह की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वे कांग्रेस भाजपा के खिलाफ एक राष्ट्रीय स्तर पर ठोस पहल कर नया रास्ता बना सकते । जनसत्ता

Saturday, September 15, 2012

हावड़ा ब्रिज के सामने

अंबरीश कुमार
हम जिस नदी के किनारे खड़े थे वह बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के नाम से जानी जाती है और देश का सबसे बड़ा और पहला महानगर कोलकता इसके तट पर बसा है । सामने हावड़ा ब्रिज था जिसके बारे में बचपन से सुनता आ रहा था । हावड़ा ब्रिज 1943 के फरवरी महीने में तैयार हुआ था जो 2,300 फुट लंबा है. गर्मी के दिनों में इसकी लंबाई तीन फुट तक बढ़ सकती है। भागते भागते यहाँ पहुंचे पर कोलकता की सडको पर अपनी टैक्सी जिस तरह बार बार बस ,रिक्सा और ट्राम के बीच फंस रही थी उससे पहले ही आभास हो चुका था कि हावड़ा ब्रिज तक पहुँचते पहुँचते रोशनी गायब हो जाएगी । देर तो निकलते समय ही हो चुकी थी । एक वजह होटल हयात रीजेंसी में रुकना भी था जो मुख्य शहर से दूर साल्ट लेक में है जहाँ कुछ साल पहले छोटे छोटे तालाब और खेत थे ।बीच बीच में खेत तो अभी भी दिख जा रहे थे और तालाब या झील के नाम पर साल्ट लेक बची हुई है जिसके किनारे दिन में कुछ समय गुजरा था । लेक के किनारे एक प्लेटफार्म पर कुर्सियों पर तब तक बैठे रहे जबतक बरसात तेज नही हो गई । झील के किनारे एक क़तर में लगे नारियल के पेड़ तेज हवा से लहरा रहे थे और घने बादल आसमान को ढकते जा रहे थे । हटने का मन नहीं हो रहा था पर जब भीगने लगे तो शेड में आ गए पर निगाह वाही लगी रही । राजेंद्र चौधरी शिकायत कर रहे थे कि मई उनकी फोटो क्यों नहीं ले रहा हूँ खासकर इस रूमानी मौसम में जब साल्ट लेक के पानी में तेज हवा के चलते लहर भी उठ रही हो । तभी किनारे आती मोटर बोट दिखी जिस पर छाते लदे हुए थे । यह शायद वहा कुछ वरिष्ठ नेताओं को भीगने से बचाने के लिए मंगाए गए थे । हम लोग एक बड़ी छतरी के नीचे रखी कुर्सियों पर जम गए थे और चाय का इंतजार कर रहे थे । साथ आए रंजीव और भवेश ने चौधरी साहब को आवाज दी तो वे सर पर अख़बार रख कर बरसात से बचाते आए । फोटो लेने लगा तो बोले ,देखिए ऎसी फोटो आनी चाहिए कि यह साल्ट लेक समुंद्र जैसी लगे । कुछ फोटो ली तभी देखा एक मोहतरमा अपने अर्दली से फोटो लेने को कह रही थी और झील के किनारे होने की वजह से तेज हवा में उनकी जुल्फे लहरा रही थी जिसे वे बार बार हाथ से दुरुस्त कर रही थी । कई फोटो खिंचवाने के बाद उन्होंने अर्दली को अपनी कुर्सी दी और खुद मोबाइल से फोटो उतारने लगी । अद्भुत समाजवादी दृश्य था जिसे देख रुका नहीं गया और हमने इनकी फोटो भी ले ली । बाद में पता चला वे उत्तर प्रदेश के एक मंत्री की पुत्री है । तभी कुछ और पत्रकार मित्रों से मुलाकात हुई जो यहाँ कवरेज प़र आए थे । इनमे आजतक की मनोज्ञ ,हिंदुस्तान के सुहैल हामिद और सतेन्द्र प्रताप सिंह आदि शामिल थे । खैर दिन से जो बरसात शुरू हुई वह रुक रुक शाम तक चलती रही जिसके चलते हावड़ा ब्रिज पहुँचते पहुँचते अँधेरा छा गया था । साथ चल रहे भवेश ने यह भी जानकारी दी कि पूरब के इस अंचल में सुबह जल्दी और शाम भी जल्दी हो जाती है । मज़बूरी थी पर सामने हुगली को निहारते रहे तभी एक बड़ी नव दिखी तो मैंने भवेश से कहा देखे नाव जा रही है इस पर वहां बैठे एक युवक ने कहा -यह नाव नही स्टीमर है । हमें कहा हाँ ,गोवा में भी इसी तरह की फेरी से मंडोवी नदी पार की जाती है । बचपन का बड़ा हिस्सा मुंबई में गुजरा तो जवानी का दिल्ली में । कोलकता से कोई सम्बन्ध नहीं बन पाया । सिर्फ बंगाली लेखकों के उपन्यासों से कोलकता को देखा था और पढ़ा था । फिर पढ़ा ' यह आधुनिक भारत के शहरों में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है। १६९० में इस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी "जाब चारनाक" ने अपने कंपनी के व्यापारियों के लिये एक बस्ती बसाई थी। १६९८ में इस्ट इंडिया कंपनी ने एक स्थानीय जमींदार परिवार सावर्ण रायचौधुरी से तीन गाँव (सूतानीति, कोलिकाता और गोबिंदपुर) के इजारा लिये। अगले साल कंपनी ने इन तीन गाँवों का विकास प्रेसिडेंसी सिटी के रूप में करना शुरू किया। १७२७ में इंग्लैंड के राजा जार्ज द्वतीय के आदेशानुसार यहाँ एक नागरिक न्यायालय की स्थापना की गयी। कोलकाता नगर निगम की स्थापना की गयी और पहले मेयर का चुनाव हुआ। १७५६ में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने कोलिकाता पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। उसने इसका नाम "अलीनगर" रखा। लेकिन साल भर के अंदर ही सिराजुद्दौला की पकड़ यहाँ ढीली पड़ गयी और अंग्रेजों का इस पर पुन: अधिकार हो गया। १७७२ में वारेन हेस्टिंग्स ने इसे ब्रिटिश शासकों की भारतीय राजधानी बना दी। कुछ इतिहासकार इस शहर की एक बड़े शहर के रूप में स्थापना की शुरुआत १६९८ में फोर्ट विलियम की स्थापना से जोड़कर देखते हैं। १९१२ तक कोलकाता भारत में अंग्रेजो की राजधानी बनी रही। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुये है।शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को सिटी ऑफ़ जॉय के नाम से भी जाना जाता है।' पार ऐसा कोलकता दिखा नहीं । एक दिन पहले शाम को जिस इलाके से निकले वह झुग्गी झोपड़ियों वाला वह इलाका था जो गंदगी के ढेर प़र बढ़ता जा रहा था । वैसे भी इस महानगर के मुख्य इलाके आज भी पचास साल पहले जैसे दीखते है । दिल्ली,मुंबई और बंगलूर जैसे शहर के विकसित इलाकों जैसी जगह यहाँ कम दिखती है । रोजगार की तलाश में आने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग बहुतायत में है तो उत्तर पूर्व के लोग भी अच्छी संख्या में है । बहरहाल एक बात जो अच्छी लगी वह यह कि यह शहर दिल्ली मुंबई की तरह भागता हुआ नहीं दिखता । पार्क स्ट्रीट की गलियों में तो यह उत्तर भारत के किसी आम शहर की तरह ही धीमी रफ़्तार से चलता नजर आता है तो हावड़ा ब्रिज से पहले जाम में फंसी ट्राम को देख किसी बड़े महानगर का अहसास नहीं होता । पार्क स्ट्रीट एक गली में हाथ रिक्शा चलाने वाले गोपाल से बातचीत हुई तो हमने इस तरह का अमानवीय काम करने की वजह पूछ ली तो बोले -बिहारी हो न ,जल्दी समझोगे कैसे । दस आदमी का परीवार इसी से चलता है । छह हजार से ज्यादा ऐसा रिक्शा यहाँ है ,मजाल नहीं कोई बंद करा से । भवेश ने बताया मै उत्तर प्रदेश का हूँ तो उसका जवाब था उससे क्या फर्क पड़ता है सब एक जैसे है । बाद में पता चला यह हाथ का रिक्शा चलाने से इन्हें ज्यादा पैसा मिलता है क्योकि इस प़र आभिजात्य वर्ग चलता है । कोलकता की गलियों में जब घुटने भर से ऊपर पानी आ जाए तो यही रिक्शा आराम से घर पहुंचा देता है क्योकि इसकी ऊँचाई ज्यादा होती है । मारवाड़ी महिलाओं को इसकी सवारी भी ज्यादा भाती है क्योकि उन्हें बैठने की पर्याप्त जगह भी मिल जाती है । इस हाथ रिक्शा को लेकर काफी शोर शराबा हो चुका है प़र कोई बंद नहीं कर पाया ।

Sunday, September 9, 2012

नितीश,मोदी को पीछे छोडा अखिलेश ने

अंबरीश कुमार
लखनऊ , सितंबर । सत्तर के दशक में कालेज और विश्वविद्यालयों में एक नारा चलता था ' रोजगार दो या बेरोजगारी भत्ता दो ' जिसे बाद में कुछ राज्यों ने लागू भी किया ।इन राज्यों में बंगाल ,हरियाणा और बिहार शामिल थे पर अब यह सब जगह बंद हो चुका है ऐसे में दस हजार बेरोजगार नौजवानों को बेरोजगारी भत्ता देकर जो शुरुआत अखिलेश यादव ने की है वह केंद्र समेत सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए एक बड़ी लकीर की तरह है ।अखिलेश यादव ने अपनी चुनावी सभाओ में जो एलान किया था उसमे एक सबसे बड़ा वादा बेरोजगारी भत्ता देने का था ।आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा भी -जो कहा था उसे पूरा किया और अन्य सभी वायदे भी पूरे होंगे । जयप्रकाश आन्दोलन के प्रमुख कार्यकर्त्ता महात्मा भाई ने कहा -इस कदम से अखिलेश यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और विकास के प्रतीक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पीछे छोड़ दिया है ।अब अन्य राज्यों के सामने यह चुनौती है कि वे अपने प्रदेश के बेरोजगार नौजवानों के लिए क्या पहल करते है । सत्ता में आने के छह महीने के भीतर उस वायदे पर पहल कर देना जिसने प्रदेश के नौजवानों को सबसे ज्यादा आकर्षित किया यकीनन अखिलेश यादव के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है ।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहा -यह तय रूप से सार्थक और ठोस पहल है । हम लोग छात्र जीवन में नारा देते थे काम दो या बेरोजगारी भत्ता दो । बाद में केरल और बंगाल में दिया भी गया पर अब देश में कही पर भी नहीं दिया जाता है इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण कदम है ।भाकपा की तरह अन्य राजनैतिक दल के नेता भी इसे बड़ा कदम मानते है पर खुलकर कुछ कहने को तैयार नहीं । इसलिए अखिलेश यादव का यह कदम राजनैतिक चुनौती के रूप में भी उभरने वाला है । संघर्ष वाहिनी मंच के राष्ट्रीय संयोजक राजीव हेम केशव ने कहा -अखिलेश यादव की इस पहल ने उन्हें देश के अग्रणी मुख्यमंत्रियों की कतार में तो खड़ा कर ही दिया है । इसे नौजवानों के बीच उनकी साख भी बड़ी है जो लोकसभा चुनाव में मदद भी करेगी । दरअसल अभी तक अखिलेश यादव की किसी भी पहल ने उन्हें राष्टीय फलक पर चर्चित नहीं किया था ।बेरोजगारी भत्ता और फिर लैपटाप की योजना उन्हें नई पहचान दिलाने जा रही है । समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा - यह तो शुरुआत हुई है डा लोहिया के सपनो को पूरा करने की । दस हजार को बेरोजगारी भत्ता दिया गया और नौ लाख नौजवानों को दिया जाएगा । बहुत से कदम उठाए जाने है । उदाहरण के रूप में देखे तो मुख्यमंत्री ने शासन सँभालते ही लोकतंत्र सेनानियों के प्रति पूर्ववत् सम्मान की भावना रखी और चुनाव घोषणा पत्र में लोकतंत्र रक्षक सेनानियों के साथ किए वायदे को निभाने में देर नहीं की। प्रदेश की राज्य सरकार ने लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को मुफ्त सरकारी बसों से यात्रा, एक सहायक को भी साथ यात्रा की अनुमति देने, चिकित्सा सुविधा के साथ तीन हजार रूपए मासिक की पेंशन देने की भी घोषणा की है। मुलायम सिंह यादव ने अपने समय में लोकतंत्र रक्षक सेनानियों की पेंषन राशि एक हजार रूपए रखी थी। अखिलेश यादव ने इस राशि में तीन गुना बढ़ोत्तरी कर दी है। पर सरकार की सोच सिर्फ बेरोजगारी भत्ते तक ही नही है बल्कि रोजगार की तरफ भी है । आज समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि उनकी पार्टी की सरकार बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने की भी व्यवस्था करेगी और जो रोजगार से वंचित रहेंगे उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। जनसत्ता

Saturday, September 8, 2012

कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग से बेनी बाबू बाहर

अंबरीश कुमार लखनऊ , सितंबर । आगामी लोकसभा के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अब नए सिरे से सोशल इंजीनियरिंग करने जा रही है हालाँकि इस कवायद से कांग्रेस के खांटी समाजवादी नेता बेनी प्रसाद वर्मा को अलग रखा गया है ।प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष निर्मल खत्री और पार्टी महासचिव राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी यह सोशल इंजीनियरिंग करने जा रही है ।राजनीति में कभी भी कुछ नए समीकरण बन सकते है और कांग्रेस भी इस उम्मीद में है कि राष्ट्रीय स्तर पर अगर मुकाबला सीधा हुआ तो पार्टी की यह कवायद रंग लाएगी ।कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गाँधी होने पर ज्यादा फायदा कांग्रेस को होगा पर इसके लिए एक प्रभावी रणनीति और मजबूर संगठन जरुरी होगा ।इसीलिए उत्तर प्रदेश में संगठन के मोर्चे पर निर्मल खत्री के नेतृत्व में नौजवान नेताओं की दूसरी कतार खड़ी की जा रही है । इसमे अगड़े है तो पिछड़े भी ,दलित है तो ब्राह्मण राजपूत और मुस्लिम भी ।प्रदेश को आठ जोनं में बांटकर जो आठ संयोजक बनाए गए है उनमे पीएल पुनिया ,आरपीएन सिंह ,जितिन प्रसाद .रसीद मसूद ,अनुग्रह नारायण सिंह ,राजाराम पाल ,विवेक सिंह और बृजेंद्र सिंह शामिल है । कांग्रेस के मीडिया प्रभारी सिराज मेंहदी ने कहा - निर्मल खत्री संगठन के नेता रहे है और उनके नेतृत्व में पार्टी को नई ताकत मिलेगी जो कई जमीनी नेताओं को अलग अलग क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपकर संगठन को मजबूत करने जा रहे है ।खास बात यह है कि वे प्रदेश संगठन की गुटबाजी तोड़कर पार्टी को नए रास्ते पर ले जा सकते है ।संगठन को सबसे ज्यादा नुकसान गुटबाजी से हुआ और वह ख़त्म हो गई तो हमारी ताकत और बढ़ेगी।यह पूछने पर कि बेनी बाबू को इस तरह की किसी जिम्मेदारी से दूर क्यों रखा गया ,सिराज मेहंदी ने कहा - वे कांग्रेस के कद्दावर नेता है उन्हें छोटी मोटी जिम्मेदारी में क्यों फंसाया जाए ।हालाँकि पिछली बार यानी विधान सभा चुनाव में उन्हें प्रदेश के अवध क्षेत्र की अप्रत्यक्ष जिम्मेदारी दी गई थी पर उनके बडबोलेपन के चलते फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ ।हो सकता है पार्टी उन्क्की प्रतिभा का इस्तेमाल इस बार राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहे क्योकि उन्होंने ही सबसे पहले यह दावा किया था कि अगला चुनाव राहुल गाँधी बनाम नरेंद्र मोदी होगा ।जिसके बाद से राजनैतिक हलकों में इस संभावना पर भी गंभीरता से बहस शुरू हुई । कांग्रेस इस समय जिस तरह की विवादों से घिरी है उसे देखते हुए पार्टी को यह रास्ता ज्यादा आसान लगता है । पर इसके लिए कांग्रेस को सबसे पहले उत्तर प्रदेश के अपने जनाधार को बचाना बड़ी चुनौती होगी । पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुसलमानों की मुलायम सिंह से नाराजगी का जो फायदा उठाया वह विधान सभा चुनाव में पलट गया । मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा फिर समाजवादी पार्टी की तरफ लौट गया । अब मोदी के नाम पर कांग्रेस को उम्मीद है कि मुस्लिम एक बार फिर उसके साथ आ सकते है । हालाँकि सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के मुताबिक लोकसभा चुनाव में सपा को सबसे ज्यादा फायदा होगा और मुसलमान पूरी ताकत से मुलायम सिंह के साथ खड़ा रहेगा । भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रभावी होगा और कांग्रेस व भाजपा क और नुकसान उठाना होगा । जाहिर है ऐसे हालात में कांग्रेस के लिए भी चुनौती बहुत कड़ी है । जनसत्ता

Tuesday, September 4, 2012

बर्फ में वे दस दिन

अंबरीश कुमार
श्रीनगर के हब्बाकदल में राजा घर जो रुके तो दस दिन तक रुकना पड़ा क्योकि जम्मू श्रीनगर राजमार्ग भारी बर्फ़बारी के चलते बंद हो गया था । पर इतने समय में ध्रीनगर को जमकर देखा । मंदिर मस्जिद ,झील झेलम और मुग़ल बादशाहों के बाग़ । शाहजहां ने चश्म-ए-शाही बाग़ बनवाया जहाँ एक चश्मे के आसपास हरा-भरा बगीचा है। पास ही शिकोह का परी महलसे लेकर निशात बाग हैं तो जहाँगीर का बनवाया हुआ शालीमार बाग जो नूरजहां को समर्पित था । यह बाग़ नही मुग़ल बादशाहों के प्रकृति प्रेम और रोमांस के स्मारक की तरह नजर आते है । जहाँ पहुंचकर ऐसा लगता है मानो आप किसी चित्रकला के भीतर पहुँच गए है । इन बागों को जिस खूबसूरती से बनाया गया वह हैरान करता है । हरे भरे पेड़ पौधों के साथ बहता पानी और दूर तक जाती बर्फीली चोटिया । यही पर 1623 में सादिक खान का बनवाया बगीचा और ईशरत महल है तो मशहूर हजरतबल मस्जिद जो डल झील के किनारे है। दूसरी तरफ समुद्र तल से 1100 फीट की ऊंचाई पर बना शंकराचार्य मंदिर है। शहर से करीब दस किलोमीटर दूर निशात बाग़ 1633 बनाया गया था जहाँ से डल झील देखते बनती है । कश्मीर में जब बर्फ पड़ी हो तो सब कुछ सदेद ही दिखता है । बाग बगीचे से लेकर घर तक पर बर्फ की चादर लिपटी नजर आती है । लाल चौक के पास एक घर के ऊपर जमी बर्फ को हटाने के लिए लोग काफी मशक्कत करते नजर आए । दिसंबर का महीना और कड़ाके की ठंड । बचे सिर्फ इसलिए रहे क्योकि राजा ने स्वेटर से लेकर ओवरकोट तक दे दिया था ।अपने पास और कोई काम नहीं था सिर्फ इसके कि बस अड्डे जाकर सड़क खुलने की जानकारी लेना और फिर जगह जगह घूमना । रात में खाने के समय समूचा परिवार एक साथ जमीन पर बैठ कर खाना खाता था और कई विषयों पर चर्चा होती थी खासकर कश्मीरी पंडितों के रीत रिवाज पर । बहुत कुछ जानने को भी मिला । रात में खाने के बाद जब सोने जाते तो पहले लिहाफ के भीतर कांगड़ी रखकर उसे गर्म किया जाता ।लिहाफ भी काफी भारी और तीन तरफ से मोड़कर बंद किया हुआ ताकि ठंडी हवा न जा सके । सोते समय भी वे लोग लिहाफ के भीतर कांगड़ी रखने को दे देते पर मुझे कांगड़ी के साथ सोना रास नहीं आया ।वहा सुबह सात बजे तक अँधेरा रहता था और मुझे रोज सुबह उठकर बस का पता करना पड़ता था । खैर चाय और कहवा के साथ सुबह होती तो देखता परंपरागत तरीके से पानी गर्म कर हर सदस्य को दिया जाता था । ठंढे पानी में हाथ भी नहीं डाल सकते थे । नाश्ता करने के बाद राजा दफ्तर जाते समय मुझे भी ले जाते जहाँ से मै घूमने निकल जाता । राजा की मम्मी यानी रानी आंटी से अपने लोगों का पारिवारिक संबंध था जो लखनऊ में थी और कश्मीरी व्यंजनों का स्वाद मुझे उन्ही के हाथ से मिला था । कश्मीरी त्योहारों के बारे में भी इसी परिवार से जानकारी मिली । कश्मीर में राजा के मामा से दोस्ती हो गई जो अपने गाइड भी थे । वे बर्फ गिराने के बावजूद फेरन के भीतर कांगड़ी लेकर मुझे काफी हाउस लेकर जाते । पहली बार किसी काफी हाउस में मैंने गद्दे के परदे देखे । बताया गया कि हाड कंपा देने वाली सर्द हवा को रोकने के लिए मोटे गद्दे वाले परदे टांगे गए है ।काफी हाउस के भीतर फायर प्लेस में लकड़ी के मोटे लठ्ठे सुलगते नजर आते जिसकी वजह से भीतर का तापमान गर्म रहता । काफी हाउस में आमतौर पर राजनैतिक बहस का लम्बा दौर चलता और फेरन पहने लोग हाथ में अख़बार मोड़कर आते दिखते । अपन भी रात आठ बजे तक काफी हाउस में जमे रहते और फिर घर लौट जाते । दसवें दिन खबर मिली कि रास्ता साफ होगया है और सुबह जम्मू के लिए बस सेवा शुरू हो जाएगी । खैर वे दस दिन आज भी नहीं भूलते है ।

Monday, September 3, 2012

तीसरी ताकतों से आशंकित है कांग्रेस और भाजपा

अंबरीश कुमार लखनऊ, सितबंर।तीसरे विकल्प को लेकर सबसे ज्यादा आशंकित कांग्रेस और भाजपा है जो लगातार इन्हें ख़ारिज करने में एक दूसरे को पीछे छोड़ रही है । जबकि वामदल अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में पहले ही यह साफ़ कर चुके है कि कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करना है और भाजपा को सत्ता में आने नही देना है ।जाहिर है ऎसी कोई भी पहल जो कांग्रेस और भाजपा को सत्ता में आने से रोके उस पर सवाल खड़ा कर उनकी साख ख़राब करने में दोनों राष्ट्रीय दल पीछे नहीं रहना चाहते ।वामपंथी समाजवादी धारा के लोगो का मानना है कि उत्तर प्रदेश में जिस तरह भाजपा और कांग्रेस का घमंड टूटा है वह आने वाले दिनों का भी संकेत दे रहा है । इस बार केंद्र की राजनीति में भी राजनैतिक समीकरण बदलेंगे और सत्ता की चाभी तीसरी ताकतों के हाथ होगी । भाकपा नेता अशोक मिश्र ने कहा -वाम दलों का साफ रुख है कि कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करना है और भाजपा को सत्ता में आने नही देना है । पटना के राष्ट्रीय महाधिवेशन में भाकपा ने यह साफ़ निर्णय लिया तो तमिलनाडु सम्मलेन में माकपा का भी यही रुख था । अब साफ़ लग रहा है कि कांग्रेस के हाथ से सत्ता जा रही है तो भाजपा के हाथ आ भी नहीं रही ।ऐसे में जोड़तोड़ के सहारे सत्ता में आने का सपना देखने वाली पार्टियाँ किस तरह तीसरी ताकतों को बर्दाश्त कर सकती है ।यही वजह है कि वे तीसरे विकल्प के नाम से भड़क जाती है । दूसरी तरफ फॉरवर्ड ब्लाक के प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर ने कहा -ये दोनों दल यानी कांग्रेस और भाजपा इस देश में भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी है । जबकि वाम दलों के राज वाले केरल और बंगाल में हमारे किसी नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप कोई नहीं लगा सकता । ये तो काजल की कोठरी में बैठे है । इनके हाथ सत्ता भी नहीं आनी ऐसे में वे किसी तीसरे विकल्प की बात पर इनका भडकना स्वभाविक है । इससे इनकी हताशा को भी समझा जा सकता है । गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव साफ कर चुके है कि लोकसभा चुनाव में संख्या का राजनैतिक समीकरण बनेगा इसलिए पहले संख्या आ जाए फिर सब साफ़ हो जाएगा । पर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेद्र चौधरी के मुताबिक देश तीसरे नंबर की पार्टी सपा होगी । साफ है समाजवादी पार्टी सत्ता की चाभी अपने हाथ में ही मानती है । चौधरी ने कहा -जिस तरह अब चुनावी घोषणाओं पर अमल शुरू हुआ है वह कुछ ही समय में महौल बदल देगा ।राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा - जो माहौल दिख रहा है उसमे न कांग्रेस सत्ता में लौटती नजर आ रही है और न भाजपा बहुत ज्यादा बढ़ती । ऐसे में राजनैतिक समीकरण वाम ताकतों और क्षेत्रीय ताकतों के हाथ में ही जाता दिख रहा है ।

Sunday, September 2, 2012

क्या समाजवादी मोर्चा बना पाएंगे मुलायम !

अंबरीश कुमार
लखनऊ, सितबंर। देश के मौजूदा राजनैतिक माहौल में एक गैर कांग्रेस और गैर भाजपा विकल्प को लेकर अन्य राजनैतिक धाराओं के कार्यकर्ताओं के बीच सुगबुगाहट तेज होती जा रही है जिसमे बिहार से लेकर ओड़िसा तक विभिन्न जन आंदोलनों के कार्यकर्त्ता भी शामिल है । खास बात यह है कि तीसरे खेमे के नेतृत्व के नाम पर मुलायम सिंह यादव का नाम चर्चा में आ रहा है पर उनका आंदोलनकारी जमात से फिलहाल कोई संवाद नहीं है और उनका रुझान दलीय धुर्वीकरण की तरफ ज्यादा है । जबकि बड़े बदलाव के लिए इन ताकतों को एकजुट करने से समाजवादी पार्टी का दायरा और व्यापक हो सकता है । राजनैतिक हलकों में माना जा रहा है कि संसद में धरना देकर मुलायम सिंह ने पहली बार कांग्रेस को चुनौती देने का सन्देश दिया है जिससे उनकी साख बढ़ी पर अगर इसके आगे वे नहीं बढे तो ज्यादा दूर तक की राजनीति नहीं हो पाएगी । उनसे लोग बड़ी भूमिका की उम्मीद कर रहे है जैसे कभी देवीलाल ,वीपी सिंह या एनटी रामराव जैसे नेताओ से की थी ।क्यों नहीं वे सभी समाजवादी ,गाँधीवादी और क्षेत्रीय ताकतों का मोर्चा बनाने की दिशा में पहल करते है । पार्टी उत्तर प्रदेश के साथ जबतक अन्य राज्यों में अपनी ताकत नही बढ़ाएगी तबतक उसकी क्षेत्रीय पहचान ही बनी रहेगी । मुलायम सिंह के साथ रहे मध्य प्रदेश के किसान नेता डा सुनीलम के मुताबिक देश में जिस बड़े पैमाने पर गांधीवादी, सर्वोदयी संस्थाएं काम करती हैं यदि वे समाजवादियों के साथ खड़ी हो जाएं तो देश को हिलाने का काम कर सकती है।सुनीलम की यह टिपण्णी महत्त्वपूर्ण है क्योकि आज समाजवादी धारा की सबसे बड़ी पहचान मुलायम सिंह ही है जो गैर कांग्रेस और गैर भाजपा किसी नए धुर्वीकरण को आकर दे सकते है । पर इसके लिए उन्हें अन्य दूसरे राज्यों में अपना जनाधार बढ़ाना होगा या समाजवादी ,गांधीवादी धारा के साथ अन्य जनसंगठनों को एकजुट कर उन्हें ताकत देनी होगी जो ज्यादा आसान रास्ता है । दूसरी तरफ संघर्ष वाहिनी मंच के संयोजक राजीव हेम केशव ने कहा - पिछले छह महीने की राजनीति में पहली बार बड़ा राजनैतिक सन्देश मुलायम सिंह ने संसद में धरना देकर दिया वर्ना वे कांग्रेस के संकटमोचक ही बने हुए थे । दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की सरकार का अभी कोई राष्ट्रीय स्तर का राजनैतिक संदेश नहीं गया है और सभी कुछ दिन और इंतजार भी कर रहे है । पर मुलायम सिंह को तो अब बड़ी भूमिका का कोई संदेश तो देना ही होगा । उनसे लोग अब देवीलाल या रामराव जैसी भूमिका की उम्मीद कर रहे है ।वे क्यों नहीं समाजवादी ताकतों के साथ अन्य धर्म निरपेक्ष ताकतों का मोर्चा बनाते है । नाम तो कोई भी हो सकता है ।वे कई नई पहल कर सकते है ।देश में ऐसे बीस पच्चीस संसदीय क्षेत्र है जहाँ से दिग्गज समाजवादी नेता चुनाव जीतते रहे है । महाराष्ट्र तो समाजवादी आन्दोलन का गढ़ रहा है । यदि समाजवादी धारा के इन गढ़ों में फिर से जान फूंकी जाए तो समाजवादी आंदोलन की एक राष्ट्रीय पहचान तो स्थपित हो ही सकती है । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -समाजवादी आन्दोलन के लोगों को यह तो समझना चाहिए कि आज समाजवाद की धारा को संघर्ष कर जिन्दा रखने का काम मुलायम सिंह ने ही किया है । विचार के साथ जबतक जमीनी संघर्ष नहीं होगा कुछ नहीं हो सकता । देश के सबसे बड़े सूबे में समाजवादी धारा की सरकार मुलायम सिंह ने ही बनाई है और वे अब राष्ट्रीय फलक पर इसका विस्तार देने की कवायद में जुटे है । पार्टी कुछ ही दिनों में बड़ा राजनैतिक संदेश अपने कार्यक्रमों पर अमल कर देगी । जयप्रकाश आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्त्ता महात्मा भाई ने कहा -आज देश में कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जो समाजवादी धारा या अन्य धर्म निरपेक्ष ताकतों को जोड़ सके । हालाँकि मुलायम सिंह चाहे तो वे इस दिशा में पहल कर समाजवादी आंदोलन को ताकत दे सकते है । दलीय राजनीति में मुलायम या नीतीश ही ऐसे नेता नजर आते है जिनसे राष्ट्रीय स्तर पर लोग अपेक्षा कर सकते है । दुर्भाग्य की बात यह है कि जयप्रकाश ,मधु दंडवते से लेकर किशन पटनायक जैसे नेता के गढ़ में भी आज कोई समाजवाद का झंडा उठाने वाला नहीं है । इस दिशा में यदि कुछ हो सके तो यह समाजवादी आन्दोलन को ताकत देगा ।