Friday, December 13, 2013

आप और हजारे के बीच राजनैतिक टकराव के आसार !

आप और हजारे के बीच राजनैतिक टकराव के आसार ! अंबरीश कुमार लखनऊ,13दिसंबर ।आम आदमी पार्टी और अण्णा हजारे के जनतंत्र मोर्चा के बीच राजनैतिक टकराव के आसार बन रहे है ।इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश में हो सकती है ।गौरतलब है कि जन लोकपाल के बाद समाजसेवी अण्णा हजारे का राजनैतिक एजंडा जन उम्मीदवार होगा।आगामी लोकसभा चुनाव में देश भर में जन उम्मीदवार खड़े किए जाएंगे और अण्णा हजारे इनके लिए प्रचार करेंगे ।दूसरी तरफ आप भी उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में दखल देने जा रही है । दोनों में टकराव यही से तेज होगा ।गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में दागी उम्मीदवार खड़े किए जाते है ।हजारे इन्ही दागी उम्मीदवारों को निशाना बना सकते है । उत्तर प्रदेश में हर दल के दागी उम्मीदवार के खिलाफ जन उम्मीदवार खड़ा किया जाएगा ।हजारे के साथ उत्तर प्रदेश और उतराखंड में जनतंत्र यात्रा में साथ रहने वाले किसान नेता विनोद सिंह ने यह संकेत दिया । अण्णा हजारे खुद भी कुछ समय पहले इस संवाददाता से बात करते हुए यह कह चुके है कि लोकसभा चुनाव में जन उम्मीदवार खड़े किए जाएंगे।पर अब इस दिशा में मंथन शुरू हो चूका है ।दरअसल टीम अन्ना जब हिमाचल के विधान सभा चुनाव में यह चुनाव का प्रयोग करना चाहती थी तब हजारे तैयार नहीं थे और वे इसकी शुरुआत लोकसभा चुनाव से करना चाहते थे।इसे हजारे के साथ अभियान में जुड़े डा सुनीलम भी स्वीकार करते है।सुनीलम के मुताबिक दिल्ली में जो प्रयोग हुआ अगर उसकी बड़ी शुरुआत लोकसभा चुनाव से होती तो ज्यादा असर पड़ता ।तब भी उन्होंने केंद्र सरकार के पंद्रह दागी मंत्रियों के खिलाफ जन उम्मीदवार खड़ा करने के सुझाव दिया था।अब जन लोकपाल के बाद दूसरा बड़ा कदम जन उम्मीदवार होगा। उत्तर प्रदेश में हजारे के साथ जयप्रकाश आन्दोलन से जुड़े पुराने कार्यकर्ताओं का एक बड़ा समूह काम कर रहा है।यह समूह जन उम्मीदवार की योजना पर पहले से विचार कर रहा है।इस समूह का मानना है कि लोकसभा चुनाव में कई तरह से दखल किया जा सकता है जिसमे प्रचार के लिहाज से किसी बड़े उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया जा सकता है जैसे राहुल गाँधी ,सोनिया गाँधी या मुलायम सिंह आदि।पर इसका उतना बड़ा राजनैतिक सन्देश नहीं जाता जितना किसी बड़े बाहुबली के खिलाफ चुनाव लड़ने का जाता है।मसलन बिना किसी परिचय के मोहताज धनंजय सिंह ,मुख्तार अंसारी ,अतीक अहमद ,डीपी यादव आदि को अगर लोकसभा चुनाव में कोई चुनौती दे तो समझ में भी आता है ।वर्ना सारा मामला प्रचार वाला माना जाएगा ।गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में अडानी की बिजली परियोजना के खिलाफ किसानो का बड़ा आन्दोलन चल रहा है तो विदर्भ से लेकर ओड़िसा तक में किसान आदिवासियों के आन्दोलन के गढ़ में अगर कांग्रेस भाजपा की आर्थिक नीतियों को चुनौती देते हुए जन उम्मीदवार के प्रयोग हुए तो उसका बड़ा और व्यापक सन्देश जाएगा ।लोक विद्या आन्दोलन के कार्यकर्त्ता रवि शेखर के मुताबिक ऐसे क्षेत्रों जहाँ किसानो आदिवासियों के शोषण के खिलाफ जन आन्दोलन चल रहे है अगर हजारे इन जगहों पर जन उम्मीदवार खड़ा करें तो इसका ज्यादा व्यापक असर होगा।क्यों नहीं छिंदवाड़ा से सिंगरौली तक उन लोगों को चुनौती दी जाए तो किसानो आदिवासियों की जमीन छीन रहे है। हजारे के साथ काम कर रहे कार्यकर्ताओं का दावा है कि जल जंगल जमीन के सवाल को लेकर पूरे देश में पचास से ज्यादा जन उम्मीदवार खड़ा कर इस प्रयोग की शुरुआत आगामी लोकसभा चुनाव में की जा सकती है।अगर इनमे आधे भी उम्मीदवार जीत गए तो यह एक बड़ा बदलाव होगा जो राजनैतिक मुद्दों के साथ भी जुड़ा होगा। आने वाले समय में यही सबसे बड़ी चुनौती भी है।गौरतलब है कि हजारे की जनतंत्र यात्रा उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,राजस्थान और उतराखंड आदि में निकल चुकी है और उसका सकारात्मक असर भी पड़ा है।ऐसे में हिंदी पट्टी में जन उम्मीदवार उतरने का प्रयोग कोई नया गुल खिला दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए ।दिल्ली उदाहरण है।

Wednesday, August 7, 2013

महाबलीपुरम के समुंद्र तट की मुठ्ठी भर रेत

अंबरीश कुमार करीब तेइस साल बाद उसी काटेज के आगे बैठा था जहां बैठकर सह जीवन की शुरुआत हुई थी । महाबलीपुरम में तमिलनाडु पर्यटन के इस रिसार्ट में बहुत ज्यादा फर्क नहीं आया है ।वैसा ही जंगलों में घूमते हुए जाने का अहसास इस बार भी हुआ जो पहली बार हुआ था ।सागर की लहरे जब पैर को भीगा कर लौटी तो मुठ्ठी भर रेत बटोर ली । कुछ सीपियाँ भी आ गई जिन्हें घर ले आया हूँ ।इस समुन्द्र ने तब इतना डरा दिया था कि कोई उम्मीद भी नहीं बची थी । वर्ष १९९० में विवाह के सिर्फ दो दिन बाद से ही दक्षिण में करीब पखवाड़े भर घूमने का कार्यक्रम था और सीधे चेन्नई (जो तब मद्रास था ) पहुंचे थे । सीधे गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट । देर से पहुंचे थे और बरसात थम नहीं रही थी ।जाना था महाबलीपुरम पर शोभाकांत जी और उनकी पत्नी ने इस बरसात में जाने की इजाजत नहीं दी ,कहा सुबह गाड़ी से भिजवा देंगे ।प्रदीप कुमार ने बताया कि बहुत बड़ा तूफ़ान आ रहा है इसलिए कार्यक्रम रद्द करे और यही रुके । तूफान कि भविष्यवाणी यह थी कि मद्रास शहर का बड़ा इलाका डूब सकता है । पर साथ में यह भी जानकारी दी कि इस तरह की भविष्यवाणी हर साल होती है पर मद्रास तो बच जाता है नेल्लोर में लोग तबाह हो जाते है । खैर प्रदीप ने चौथी मंजिल पर बना अपना कमरा खाली कर दिया और रात खाने के बाद हम लोग आँगन के रस्ते ऊपर चढ़े तो तूफ़ान का अहसास हुआ । तेज आंधी बरसात के चलते सीढी चढ़ते ही भीग चुके थे ।खैर कुछ देर बाद ही लाईट चली गई और आंधी के जोर से खिड़की के पल्ले खुल गए और बरसात से बिस्तर भी भीगने लगा । कुछ देर इन्तजार किया पर कभी एक खिडकी खुल जाती तो कभी दूसरी।और तेज हवा के साथ बरसात के थपेड़े बर्दाश्त से बाहर हो रहे थे ।रात के साढ़े बारह बज चुके थे और तूफ़ान की गति बढती जा रही थी ।अंतत तय हुआ यहाँ रुकना सुरक्षित नहीं है और फिरे नीचे उतरे तो तूफ़ान क्या होता है इसका अहसास हुआ । नीचे सभी लोग जगे ही हुए थे और फिर हाल में सोना हुआ ।सुबह भी मौसम वैसा ही था इसलिए दोपहर बाद जाने का कार्यक्रम बना और रिसार्ट के प्रबंधक को शाम तक पहुँचने की सूचना दे दी गई ।शोभाकांत जी ने वही फियट भेजी जो पहले जयप्रकाश नारायण के साथ थी । समुन्द्र के किनारे किनारे का रास्ता बरसात में देखते बनता था ।नारियल के घने जंगल हवा में लहराते नजर आ रहे थे ।तब तटीय इलाकों पर अतिक्रमण नहीं हुआ था इसलिए लगातार समुंद्र दिख रहा था और उंची लहरे भी । तमिलनाडु पर्यटन विभाग के रिसार्ट तक पहुँचते पहुंचे मौसम और खराब हो चुका था ।कैशुरिना के जंगलों के बीच से एक घुमावदार रास्ता रिसेप्शन के सामने खत्म हो जाता था जहाँ एक तरफ रेस्तरां था तो सामने श्रंखला में बने काटेज । मैनेजर हैरान था क्योकि अकेले हम ही ऐसे सैलानी थे जो आज पहुंचे थे बाकि सभी ने अपने कार्यक्रम तूफ़ान के चलते निरस्त कर दिए थे बहुत से कर्मचारी भी चले गए थे । मैनेजर ने हिदायत दी की अपने काटेज से बाहर बिलकुल ना जाए और समुन्द्र की और तो किसी कीमत पर नहीं । खाने का आर्डर अभी दे दे जो काटेज में सर्व कर दिया जाएगा । नाश्ता तो तब मिलेगा जब सुबह तक बच पाएंगे क्योकि तूफ़ान आधी रात के बाद महाबलीपुरम के तट तक पहुंचेगा । इस बात ने और डरा दिया ।तबतक कार भी जा चुकी थी और कोई चारा नहीं था ।खैर नीचे के काटेज में पहुंचे तो बेडरूम के सामने की दीवार कांच की थी और उसपर लगा पर्दा हटाते ही लगा मानो लहरें कमरे के भीतर तक आ जाएँगी । लगातार बरसात से ठंड बढ़ चुकी थी और पंखा चलाने की भी जरुरत नहीं थी ।आंध्र हो चुका था और कुछ मोमबती दी गई थी इस खौफनाक रात का मुकाबला करने के लिए जहां सामने सी आती उंची उंची लहरे डरा रही थी ।समुन्द्र के पास बहुत बार रुका हूँ पर इतनी उंची लहरे कभी नहीं । सामने पल्लव साम्राज्य के दौर का मशहूर तट मंदिर लहरों औए बरसात में बहुत रहस्मय सा नजर आ रहा था ।नारियल के पेड़ों के झुण्ड तक लहरा रहे थे और सामने कैशुरिना के जिन दो पेड़ों पर आराम करने वाला झूला पडा था वह हवा के झोंके से ऊपर नीचे हो रहा था ।चारो ओर से आ रही तूफानी हवा की आवाज और कमरे के बाहर तक आतीं लहरे । खाना खाते खाते रात के दस बज चुके थे और बैरे के मुताबिक करीब साढ़े बारह बजे तक तूफ़ान के इस तट पर आने की आशंका थी ।मन अशांत था और तब मोबाइल भी नहीं होते थे और फोन लाइन भी शाम को खराब हो गई थी । खैर कब नींद आई पता नहीं चला ,उठा तो कमरे में रौशनी थी हालाँकि सूरज नहीं निकला था ।चाय के लिए बैरे को बुलाया तो पता चला तूफ़ान लेट हो गया है अब दस बारह घंटे बाद आएगा ।बहुत समय था और कई विकल्प भी जिसमे पांडिचेरी की तरफ जाना भी क्योकि वहाँ अरविन्दों आश्रम में भी दो दिन बात काटेज बुक कराया हुआ था । दर भी काफी हद तक निकल चुका था और बरसात थमते ही तट पर आ गए पर लहरों से दूर ही थे ।आसपास घुमे और बरसात के माहौल का आनंद भी उठाया और दक्षिण भारतीय व्यंजनों का भी । कुछ घंटों बाद ही खबर मिली की संभावित तूफ़ान आन्ध्र प्रदेश के नेल्लोर की तरफ चला गया है और पांडिचेरी से लेकर मद्रास के समुन्द्र तट पर अब कोई खतरा नहीं था । इस खबर के बाद महाबलीपुरम के इस रिसार्ट में ही ठहरने का फैसला किया और फिर इस समुंद्र तट और लहरों दोनों से नया सम्बन्ध बना ।उस यादों को सहेजने के लिए ही मुठ्ठी भर रेत लेकर लौटा हूँ जो सविता को दिया शंख सीपियों के साथ रखने के लिए ।

Tuesday, August 6, 2013

दुर्गा शक्ति के कंधे पर बंदूक रखकर होती राजनीति

लखनऊ , अगस्त ।उत्तर प्रदेश के कुछ नेता अखिलेश सरकार की साख पर बट्टा लगाने पर आमादा है ।किस तरह छोटे से मुद्दे को सत्ता के अहंकार में राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया जाता है इसकी प्रेरणा नरेंद्र सिंह भाटी से लेनी चाहिए जिसने प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर मुलायम की प्रतिष्ठा को ध्वस्त करने का प्रयास किया है ।एक आइएएस का निलंबन सिर्फ जिले के एक नेता के अहंकार के चलते हुआ ।मामला यहाँ ज्यादा तूल नहीं पकड़ता अगर भाटी इसका ढिढोरा पीटने के सत्ता में साथ अपनी हनक का बेवजह प्रदर्शन नहीं करते और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को गुमराह न करते । फिर जिस तरह आईएएस एसोसिएशन इस मामले में कूदा और भाजपा ने मुद्दा बनाया वह तो गौर करने वाला था ही कांग्रेस ने किस तरह पलटी मारी वह हैरान करने वाली घटना है ।पर यह ध्यान रखना चाहिए अफसरों के कंधे पर बंदूक रख कर राजनीति नहीं होती ।अफसर तो अफसर है वह फिर उसी व्यवस्था का अंग बन जाएगा । उस उत्तर प्रदेश में जहां पूर्व मुख्यमंत्री मायावती एक जिले का दौरा करते हुए निर्माण कार्य का जायजा लेने के लिए एक खडंजे को ठोकर मारती है और खडंजा के हटते ही बोली -कलक्टर अब तू भी इस जिले से गया और तबादला हो जाता है ।जहां एक आईएएस अफसर बसपा के शीर्ष नेता का जूता उतरता हो और मुख्य सचिव स्तर का अफसर पार्टी मुख्यालय में जाकर मुलायम सिंह के कसीदे कढता हो उस प्रदेश में आला अफसरों पर भी सवाल उठना चाहिए ।क्या वजह थी जो भ्रष्टतम अफसर का चुनाव यहाँ शुरू हुआ । नीरा यादव ,एपी सिंह ,विजय शंकर पांडे जैसे अफसरों ने राजनीति को ज्यादा भ्रष्ट किया या राजनीति ने इन्हें यह बताना बड़ा मुश्किल है । समाजवादी पार्टी की सरकार में कोई एक राजनैतिक प्रबंधक नहीं है वर्ना कँवल भारती जैसे दलित चिन्तक की गिरफ्तारी जैसा मूर्खतापूर्ण कदम नही उठाया जाता ।यह शर्मनाक घटना है । पर जिस तरह दुर्गा शक्ति नागपाल के सवाल पर राष्ट्रीय दबाव बनाया जा रहा है वह भी उचित नहीं है । दुर्गा शक्ति कोई नेता नहीं है वे अफसर है और देर सबेर उन्हें इस व्यवस्था में रहते हुए ही लड़ना है ।उससे फिर पर कोशिश यह हो रही है कि वे सबकुछ छोड़ चुनाव लड़ लें ।हर आदमी को एक अदद अन्ना की लगातार तलाश रहती है ।इसलिए उन्हें भी उसी रस्ते पर ले जाने लका प्रयास हो रहा है जिसपर अन्ना हजारे जाकर लौट चुके है और अब उनकी सभाओं में कोई ऐतिहासिक भीड़ भी नहीं उमडती । दुर्गा शक्ति को भी उसी तरह पेश करने वका प्रयास हो रहा है । वे ईमानदार है तो इसका अर्थ यह नहीं कि बाकी ईमानदार नहीं है ।उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी सहित कई बड़े उदाहरण है ।इस मुद्दे को राजनैतिक मुद्दा बनाया गया यह साफ़ है । कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व दुर्गा शक्ति के खिलाफ आंदोलन करता है और राष्ट्रीय नेतृत्व पक्ष में खड़ा हो जाता है । इसके बाद इसे जाति और परिवार की राजनीति से जोड़कर मुसलिम तुष्टिकरण का भी मुद्दा बना दिया जा रहा है ।ऐसे में मुलायम सिंह ने भी इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है । उत्तर प्रदेश की राजनीति ध्रुवीकरण पर चलती है और अगर विपक्ष इसका प्रयास करेगा तो सत्ता पक्ष भी वोट की ही राजनीति करता है और वह भी करेगा । ध्यान रखना चाहिए जैसे ही दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन खत्म होगा विपक्ष को फिर दूसरे मुद्दे की तलाश करनी होगी ।जनादेश

Friday, August 2, 2013

दक्षिण के गाँधीवादी संत शोभाकांत दास

अंबरीश कुमार चेन्नई ,३ अगस्त । शुक्रवार की शाम चेन्नई के गोपालपुरम में जयप्रकाश नारायण के साथी शोभाकांत दास जी के यहाँ जब पहुंचा तो वे चरखा से सूत / धागा तैयार कर रहे थे । करीब तीस साल से अपना शोभाकांत जी से संबंध है जिसकी शुरुआत अस्सी के दशक में तबके मद्रास से एक अखबार निकालने को लेकर हुई थी और तब मै लखनऊ से पहली बार वाहिनी की साथी किरण और विजय के साथ मद्रास सेंट्रल के ठीक बगल में ५९ गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट पहुंचा था और बगल में ठहरने का इंतजाम था ।बहुत ही अलग अनुभव था । उनका जड़ी बूटियों का बड़ा कारोबार स्थापित हो चूका था ।शोभाकांत जी के पुत्र तब तमिलनाडु छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के संयोजक भी थे और उनसे मित्रता हो गई क्योकि वे अपनी उम्र के आसपास के ही थे ।पत्रिका की योजना बनने से पहले ही विजय बिहार चले गए । हफ्ते भर बाद शोभाकांत जी का निर्देश हुआ कि मै पत्रिका शुरू करने से पहले तमिलनाडु को समझू ।उन्होंने अपने दफ्तर को कहा कि पांडिचेरी में अरविंदो आश्रम के गेस्ट हाउस में हम लोगों के रहने और आने जाने का इंतजाम कर दिया जाए और खर्च के लिए नकद भी दे दिया जाए। उस दौर में बिहार से रोजाना बहुत से लोग उनके यहाँ आते थे और सबका खाना भी साथ नीचे बैठकर ही होता था । शोभाकांत जी की पत्नी मैथिल बोलती थी और उनका आतिथ्य कभी भूल नहीं सकता ।अमूमन इडली वडा साम्भर आदि का नाश्ता तो पास के होटल से आ जाता था पर दोपहर और रात का खाना वे खुद बनाकर खिलाक्ती थी चाहे कितने ही लोग न हो ।खाना उत्तर भारतीय होता था बिहार का उसपर प्रभाव भी दिखता था ।तब बिहार के सभी वरिष्ठ नेता जो मद्रास आते थे शोभाकांत जी के ही मेहमान होते थे ।एम् करूणानिधि समेत तमिलनाडु के शीर्ष राजनीतिक भी उनके मित्र ही थे । जयप्रकाश नारायण को शोभाकांत जी ने जो बादामी रंग की फियट दी थी बाद में उससे हमने भी कई यात्रा की ।पास में ही उनके मित्र और मीडिया के सबसे बड़े और कद्दावर व्यक्तित्व श्री रामनाथ गोयनका का घर था । कल बाद में दिल्ली से साथ आए वर्ल्ड सोशल फोरम के विजय प्रताप ,भुवन पाठक और मुदगल जी से शोभाकांत जी की रात के भोजन पर मुलाक़ात हुई तो उन्होंने विजयप्रताप से उलाहना देने के अंदाज में कहा -अंबरीश जी को तो मद्रास से अखबार निकालने के लिए बुलाया था पर जब इनका मन उत्तर भारत छोड़ने का नहीं हुआ तो रामनाथ गोयनका के पास भेज दिया ।तबसे आजतक वह अखबार नही निकल पाया ।खैर विजयप्रताप से गाँधी , जेपी ,सुभाष चंद्र बोस से लेकर धर्मपाल और राजीव गाँधी तक के कई संस्मरण उन्होंने सुनाए । तेरह साल की उम्र में वे आजादी की लड़ाई से जुड गए थे और जवान होते होते आंदोलन और जेल के बहुत से अनुभव हो चुके थे । हजारीबाग जेल में जेपी को क्रांतिकारियों का पत्र पहुंचाते और उनका सन्देश बाहर लेकर आते ।बाद में सरगुजा जेल में खुद रहना पड़ा जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी के नाम उन्होंने गुडवंचारी में आश्रम बनवाया जिसके ट्रस्ट में तमिलनाडु के सभी महत्वपूर्ण लोग शामिल थे और आसपास के तीस गांवों में इसका काम फैला हुआ था । बिहार से बहुत से लोग मद्रास के वेलूर अस्पताल में इलाज करने आते तो वे शोभाकांत जी के घर या बादे में राजेंद्र भवन में रुकते जो उन्होंने मद्रास शहर के बीच बनवाया हुआ है ।कई साल पहले वाहिनी के सम्मलेन में ही शोभाकांत जी ने जनादेश वेबसाईट की शुरुआत की थी और मुलाक़ात होने पर उसकी भी चर्चा की । अनुपम मिश्र की पुस्तक आज भी खरे है तालाब देख कर बोले -तमिल में इसे छपवा देता हूँ अगर वे इजाजत दे दे ।जयप्रकाश नारायण की कई पुतकों को वे तमिल भाषा में प्रकाशित करवा चुके है ।बाद में तय हुआ पर्यावरण और परम्परागत चिकत्सा पद्धति पर तमिलनाडु में पहल की जाए और इसकी पहली बैठक बुलाने की जिम्मेदारी प्रदीप कुमार ने स्वीकार कर ली साथ ही तमिल में लोगों से संवाद की भी ।सुबह जल्दी उठा तो यह सब लिखने बैठ गया जो अभी जारी रहेगा क्योकि समुंद्र तट पर घूमने के लिए ही जल्दी उठा हूँ ।

Friday, July 26, 2013

मोदी के आने से पहले ही उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुमत !

अंबरीश कुमार पिछ्ले महीने ही उत्तर प्रदेश में एक उप चुनाव हुआ था । इलाहाबाद के हंडिया में । हंडिया विधान सभा के इस उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को तीन हजार आठ सौ नौ वोट मिल तो कांग्रेस को दो हजार आठ सौ अस्सी वोट । एक को पौने दो फीसद तो दूसरे को पौने तीन फीसद । पर यह चुनाव समाजवादी पार्टी ने छब्बीस हजार से ज्यादा वोट से जीता था । दोनों राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा की जमानत जब्त हो गई थी ।यह इसलिए याद रखना चाहिए कि एक सर्वे रपट में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को करीब आधी सीट मिलने का आकलन किया गया है । लोकसभा आधी सीट का सीधा अर्थ विधान सभा में बहुमत के पास पहुंचना होता है । यह किसी चमत्कार से कम नहीं है खासकर उस पार्टी के लिए जिसका प्रदेश अध्यक्ष भी पिछले विधान सभा चुनाव में बुरी तरह हारा हो । इस आकलन के बारे में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से बात की तो वे ठहाका मार कर हँसने लगे । बोले ,जब पार्टी का खुद का अंदरूनी आकलन ज्यादा से ज्यादा बीस सीट का हो तो यह सर्वे हैरान करने वाला तो लगेगा ही । उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हलकों में इस सर्वे के साथ भाजपा की राजनैतिक ताकत को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है । इसकी मुख्य वजह यह है कि भाजपा को अभी भी तीसरे चौथे नंबर की पार्टी माना जा रहा है और न तो प्रदेश में हिंदुत्व की कोई लहर नजर आ रही है और न ही पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग में कोई बदलाव आया है । ऐसे में भाजपा का अचानक नंबर एक पर आ जाना सभी को चौंकता है । उत्तर प्रदेश का चुनाव जातियों के गठजोड़ पर ही होना है जबतक कि कोई बड़ा परिवर्तन न हो जाए। मंदिर आंदोलन के बाद प्रदेश में मजहबी ध्रुवीकरण का फिर वैसा माहौल नहीं बना जिससे भाजपा को बहुत फायदा हो । अपवाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्रों को बताया जा रहा जिसे लेकर पिछले दो महीने से चर्चा हो रही है । कहा जा रहा है इस बार लोकसभा चुनाव में इस अंचल में भाजपा या हिंदू उम्मीदवार ज्यादा संख्या में जीतेंगे । यही एक ऐसा तर्क है जिसके आधार पर भाजपा के बढ़त की बात कही जा रही है । पर बहुत सी सीटों पर तो पहल्र से ही गैर मुस्लिम सांसद है । मसलन पिछले लोकसभा चुनाव में बिजनौर से संजय चौहान ,अमरोहा से देवेन्द्र नागपाल ,रामपुर से जयाप्रदा ,आंवला से मेनका गाँधी ,बरेली से प्रवीन सिंह ऐरन पीलीभीत से वरुण गाँधी ,अलीगढ से राजकुमारी चौहान ,हाथरस से सारिका बघेल ,बुलंदशहर से कमलेश वाल्मीकि ,मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल ,सहारनपुर से जगदीश सिंह राणा ,फिरोजाबाद से राजबब्बर आदि चुनाव जीत चुके है । यह उस पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक बानगी है जिसके बारे में बताया जा रहा है आगामी लोकसभा चुनाव में इस अंचल से बड़ी संख्या में गैर मुस्लिम सांसद जीतेंगे क्योकि मजहबी ध्रुवीकरण तेज हो रहा है । उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार बनने के बाद शुरुआती दौर में ही कई जगह दंगे फसाद हुए और सरकार की साख पर बट्टा भी लगा । पर यह भी साफ हुआ कि दंगे फसाद के पीछे कट्टरपंथी ताकते भी है जिनका मकसद लोकसभा चुनाव से पहले कई इलाकों में मजहबी ध्रुवीकरण तेज कराना रहा है । पर फिलहाल कट्टरपंथी ताकतों के मंसूबो पर अंकुश लग चुका है इसलिए इस आधार पर भाजपा को बहुत फायदा होने की स्थिति नजर नहीं आती है । पार्टी की राजनैतिक ताकत का आकलन चुनाव नतीजों से भी होता है जिसपर एक नजर डालना चाहिए । पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अगड़ी जातियों के १९५ उम्मीदवार खड़े किए थे जिसमे कुल तीस जीते तो पिछडी जाति के १०५ उम्मीदवारों में बारह जीते । कुल चार सौ में एक कम यानी ३९९ उम्मीदवारों में ४८ उम्मीदवार जीते थे । तबसे अब तक उत्तर प्रदेश भाजपा की राजनैतिक ताकत में कोई बड़ा इजाफा हुआ हो यह नजर नहीं आता । यही वजह है कि उत्तर प्रदेश को लेकर ताजा सर्वे को लोग हैरानी से देख रहे है । वरिष्ठ भाकपा नेता अशोक मिश्र के मुताबिक भाजपा अगर तीसरे नंबर से दूसरे नंबर पर भी पहुँच जाए तो यह बड़ा चमत्कार होगा नंबर एक की बात तो छोड़ ही दे ।

Tuesday, July 9, 2013

मोदी के नाम पर फिर से उग्र हिंदुत्व की राह पर भाजपा

अंबरीश कुमार लखनऊ ,8 जुलाई ।उत्तर प्रदेश में भाजपा फिर उग्र हिंदुत्व की राह पर जा रही है । इस बार यह कवायद नरेंद्र मोदी के चेहरे के पीछे से होगी ।यह बात मोदी के सिपहसालार अमित शाह की भाषा से साफ़ हो गई है ।फिर वही जुमले ' जिस हिंदू का खून न खौला खून नही वह पानी है , उछलने लगे है ।अमित शाह ने कल पूर्वांचल के गोरखपुर में पार्टी के जिला अध्यक्षों की बैठक में कहा - जब समाजवादी पार्टी द्वारा आतंकवादियों को छोड़ने की बात की जाती है, गो तरस्करी हो रही है। बांग्ला देशी घुसपैठियों पर कोई नियत्रण नही है। क्या यह सब देखकर सुनकर भाजपा के कार्यकर्ता का खून नही खौलता ? खून खौलने वाली इस तरह की भाषा इससे पहले नब्बे के दशक में मंदिर आंदोलन के दौर सुनी गई थी ।अब नरेंद्र मोदी ने प्रदेश की कमान अप्रत्यक्ष ढंग से संभाल ली है तो उनकर राजनैतिक हथकंडे भी सामने आने लगे है ।यह उसकी बानगी है । भाजपा के चुनाव अभियान के प्रभारी नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों की राजनैतिक नब्ज पकडना शुरू कर दिया है ।उनके सिपहसालार और उत्तर प्रदेश के प्रभारी अमित शाह अबतक मेरठ ,लखनऊ ,अयोध्या और गोरखपुर का दौरा कर बैठकों का सिलसिला शुरू कर चुके है ।उनके साथ सह प्रभारी रामेश्वर चौरसिया और सतेन्द्र कुशवाहा पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ बुंदेलखंड के हालात का जायजा ले रहे है ।ये सिर्फ हालात का जायजा ही नही ले रहे बल्कि हर समस्या का समाधान भी बताएँगे ।पार्टी कार्यकर्त्ता मोदी और उनकी इस टीम को लेकर उत्साहित भी है ।भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -अमित शाह की कार्य शैली से कार्यकर्ताओं का उत्साह बढा है ।वे बगैर लाग लपेट के अपनी बात रखते है । जिलों जिलों में प्रदेश स्तर के एक एक नेता को प्रभारी बना कर भेजा गया है ।मै खुद अबतक पांच बार आंबेडकर नगर जा चुका हूँ ऐसे में जिलों के नेता गांव गांव तक तो पहुँच ही चुके है । पूर्वांचल में भाजपा को काफी उम्मीद है । यह अंचल पहले से ही योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व की प्रयोगशाला रहा है।अब नरेंद्र मोदी के आ जाने के बाद यहाँ के हालात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है ।यह तय है कि हिन्दुत्ववादी ताकते चुनाव से पहले ही माहौल बनाकर ध्रुवीकरण का प्रयास करेंगी ।यह अमित शाह की भाषा से साफ़ हो गया है । पूर्वांचल के गोरखपुर में अमित शाह ने जिला अध्यक्षों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास किया और कहा -भारतीय जनता पार्टी इस तरह की पार्टी है जो बिना प्रत्याशी के बावजूद भी चुनाव अभियान की शुरूआत कर सकती है। हम पार्टी की रीति नीति को मण्डल, शहर, गांव में क्या प्रत्याशी के माध्यम से ही जाएंगे। क्या हम एक व्यक्ति के आधार पर चुनाव लड़ेंगे। पहले से मन से निकाल कर उखाड़ कर फेक दीजिए कि भाजपा को प्रत्याशी जिताएगा । भाजपा का कार्यकर्ता भाजपा को हिन्दुत्व व विचारधारा के साथ पार्टी को जिताएगा। पार्टी चलाने का दायित्व विधायक, सांसद का नही है। बल्कि दायित्व जिलाध्यक्ष का है। शाह ने कहा कि आप सभी अपने अपने जिलों में पार्टी का चेहरा है। बूथ की रचना यह सोच कर नही करना है कि हमें 2014 का लोकसभा का चुनाव लड़ना है। बल्कि बूथ की रचना अगले 20 वर्षो के लिए मजबूत ढाचे पर भाजपा को खड़ा करने के लिए बनाना है। चुनाव में बूथ की अहम भूमिका होती है। चुनाव जीतते है तो बूथ प्रबन्धन से और हारते है तो भी बूथ की वजह से । शाह ने कहा कि जब समाजवादी पार्टी द्वारा आतंकवादियों को छोड़ने की बात की जाती है, गो तरस्करी हो रही है। बंगलादेशी घूसपैठीयों पर कोई नियत्रण नही है। क्या यह सब देखकर सुनकर भाजपा के कार्यकर्ता का खून नही खौलता ? इन सबको रोकने की जिम्मेदारी हमारी है। कांग्रेस और सपा पिछड़ो के हितों की बात करती है। और संविधान द्वारा 50 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा पिछड़ो और दलितो को दी गयी है। यदि कांग्रेस और सपा मुस्लिमो को आरक्षण देने की बात करती है। तो वह पिछड़ो व दलितो के ही हक को मारने का काम कर रही है। यह बात पिछड़ो और दलितो को समझाना होगा। भाजपा ही पिछड़ो व दलितो के हित व अधिकार की बात करती है। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी व सदर सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम सब अपने पराक्रम को विस्मृत कर देते है। इसी नाते हम पीछे है। हमारा पराक्रम हिन्दू राष्ट्रवाद के आधार पर होगा। हम लोग यदि जाति के पीछे अगड़े पीछड़े के चक्कर में फसे तो नतीजा अच्छा नही होगा। हमारे पास सबसे बड़ा वोट बैंक है। उस दायरा को अगर हम तोड़ने का काम करते है तो हमारा नुकसान होगा। इसलिए हमें हिन्दूत्व व विकास के आधार पर जनता के बीच में जाना चाहिए।

रामलीला में तब्दील होती राजनीति

अंबरीश कुमार लखनऊ, 9 जुलाई। बाबा साहब आम्बेडकर के कदमो पर चलने वाले कांसीराम ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था से संघर्ष करने और दलितों को सामाजिक राजनैतिक ताकत देने के लिए जिस बहुजन समाज पार्टी को बनाया था उसकी लगातार हो रही रैली में शंख घंटा और घड़ियाल के साथ मंत्रोचार के बीच फरसा लेकर खड़े परशुराम का स्तुतिगान हो रहा है । पिछले एक महीने में प्रदेश में जगह जगह हुए बसपा के ब्राह्मण भाईचारा सम्मलेन में यह सब हुआ और आगे भी होगा । यह स्थिति डा राम मनोहर लोहिया के विचारों को मानने वाली समाजवादी पार्टी की भी है । ब्राह्मणों के लिए सपा और बसपा उत्तर प्रदेश में समूची राजनीति को रामलीला में बदलती नजर आ रही है । यह सब राजनैतिक पार्टी के मंच पर बहुत नाटकीय भी लगता है । बसपा ने रविवार की रैली के लिए चित्रकूट से जो भगवा वस्त्रधारी बुलाए थे उनमे हरेक को आने जाने की सुविधा के साथ भोजन और पांच सौ रुपए दिए गए । वे ब्राह्मण के रूप में पेश किये गए । इसी तरह समाजवादी पार्टी ने जब ब्राह्मण सम्मलेन किया तो अयोध्या मथुरा काशी के पंडित मंच पर विराजमान थे तो पीछे बैनर पर फरसा लिए परशुराम । खांटी समाजवादी जनेश्वर मिश्र ब्राह्मण के रूप में याद किए जा रहे था । नारे भी नए नए गढे गए । हाथी नही गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है या फिर ब्राह्मण शंख बजाएगा ,हाथी दिल्ली जाएगा । करीब चौदह फीसद ब्राह्मण वोट बैंक के लिए जिस तरह की राजनैतिक प्रतिद्वंदिता सपा और बसपा में चल रही है वह आम्बेडकर और लोहिया के विचारों को ध्वस्त करने जैसी है । हाशिए के समाज के लिए जिन लोगों ने सामाजिक राजनैतिक लड़ाई लड़ी वे विचारों के संदर्भ में खुद हाशिए पर जाते दिख रहे है भले उनके नाम की मूर्ति और पार्क बढते जाए । राजनैतिक विश्लेषक वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा -जिन्हें ब्राह्मणवाद से लड़ना था वे खुद ब्राह्मण को राजनीति के केंद्र में बहुत भौंडे ढंग से ला रही है । अयोध्या में चले जाए इस तरह भगवा वस्त्रधारी मिल जाएंगे जिन्हें कोई भी पार्टी ब्राह्मण बनाकर पेश कर दे जैसे चित्रकूट से पांच पांच सौ रुपए देकर लाए लोगों को ब्राह्मण बना दिया गया । अवसरवादी राजनीति की यह पराकाष्ठा है । रोचक तो यह है कि अयोध्या में ज्यादातर साधू संत पिछड़ी जाति के है । पर राजनैतिक लोगो का यह दिमाग बन गया है कि शंख ,घंटा घड़ियाल लेकर किसी को भी ब्राह्मण बना दो लोग भरोसा कर लेंगे । दूसरी तरफ इंडियन पीपुल्स फ्रंट के संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा -यह कर्मकांड कोई ब्राह्मण नहीं कर रहा बल्कि सपा और बसपा कर रही है जिसका कोई असर समाज पर नहीं पड़ने वाला । पौराणिक किवदंतियों में भी परशुराम मात्रहंता माने गए है उन्हें सामने रखकर यह पार्टियां क्या दिखाना चाहती है । एक तरफ आम्बेडकर के नाम पर चलने वाली पार्टी है तो दूसरी तरफ लोहिया के विचारों पर । ये दोनों दल इतना बड़ा प्रतिगामी कदम ब्राह्मण के नाम पर उठा रहे है जिसका साहस भाजपा और कांग्रेस जैसे दल नही कर पाए जो ब्राह्मणों के वोट की राजनीति करते रहे है । अब बसपा में लोग मनु की मूर्ति लेकर चल रहे है । कम से कम इन लोगों को जाति के बारे में लोहिया के विचार तो पढ़ ही लेने चाहिए ।

Saturday, June 29, 2013

सुमेर सिंह के किले में

किले के डाक बंगले में एक रात छह दिन पहले सुमेर सिंह के किले में करीब दोपहर पहुंचे थे और दूसरे दिन दस बजे तक रहे ।तब लिख नही पाया । कल से लगातार हो रही बारिश के बीच आज समय मिला तो लिखने बैठा हूँ । प्राचीन महल जो होटल में तब्दील हो चुके है उनमे कई बार रुकना हुआ पर वह अन्तः होटल की तरह ही महसूस हुआ । इस किले में डाक बंगले जैसा अनुभव हुआ जो कभी बैतूल के डाक बंगले में हुआ था या फिर छतीसगढ के उद्यंती वन्य जीव अभ्यारण्य के तौरंगा के डाक बंगले में हुआ था जो अटल बिहारी वाजपेयी का पसंदीदा डाक बंगला रहा है । यह किला इटावा में यमुना के किनारे एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है जिसका रास्ता पहाड़ों की तरह घुमावदार है और चढाई भी ठीकठाक है । किले को कुछ समय पहले ही एक आलीशान अतिथिगृह में बदला गया है और यह जंगलात विभाग के अधीन है पर नियंत्रण कलेक्टर करता है । जिस दिन इटावा पहुंचा उस दिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी वही थे पर उनके कार्यक्रम में जाना भी नहीं था इसलिए पत्रकार दिनेश शाक्य जो पर्यावरण पर जमकर लिखते है वे सीधे इस किले में ले गए । उत्तर प्रदेश में अल जंगल और जमीन के सवाल पर जिलों में कुछ ही पत्रकार लिखते है इनमे आदि शामिल है । यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योकि मीडिया का एक हिस्सा कलेक्टर के इर्द गिर्द की ख़बरों पर ज्यादा फोकस करता है। खैर यह सब संपादक पर ज्यादा निर्भर करता है कि वह अपने संवाददाता से क्या लिखवाना चाहता है और उसकी खबर को कैसा ट्रीटमेंट देता है । बहरहाल मुद्दा किला है इसलिए वही लौटता हूँ । किले का भव्य और भारी भरकम दरवाजा नया बना है पर पुरानी डिजाइन है जिसके दोनों तरफ द्वारपाल की प्रतिमा लगी है । गाडी जाने के लिए पूरा दरवाजा खुला अंदर खूबसूरत सा बगीचा नजर आया जो ठीक पोर्टिको के सामने था । भीतर से भी नजारा एक भव्य किले जैसा ही था । सीढियाँ चढ कर भीतर गए तो यह किसी चमचमाते होटल जैसा नजर आया पर सन्नाटा छाया था । कुछ दूर चलने के बाद बुर्ज पर जाती सीधी से ऊपर पहुंचे तो लंबा कारीडोर नजर आया और सामने ही चार नंबर का सूट था जिसमे रुकना था । भीतर जाते ही सामने बैठक नजर आई जिसमे आलीशान सोफा और मेज नाश्ते के साथ सजी हुई थी । इसी से एक गैलरी भीतर जाती थी जिसमे बड़ा सा बेड रूम , ड्रेसिंग रूम और फिर बाथरूम आदि था । बेडरूम से लगी बालकनी से उफनती हुई यमुना दिख रही थी । सविता आराम करने गई तो हम दिनेश और उनके सहयोगियों के साथ इस किले के बारे में बात करने लगे । जंगलात विभाग के एक अफसर भी आ गए जो चंबल नदी के बारे में बताने लगे । कुछ देर बाद सभी चले गए और तय हुआ कि चार बजे पचनदा की तरफ चला जाएगा । कुछ देर बाद ही बिजली चली गई तो मैंने दिनेश से कहा कि अब कार्यक्रम में फेरबदल करते हुए जल्दी चलते है तो उन्होंने शहर के एक होटल में बुला लिया ताकि खबर वहां से भेज कर चला जाए । गरमी कुछ ज्यादा ही थी इसलिए होटल में लिखने का काम कर लिया और फिर पचनदा की और चले । चंबल के किनारे पहुंचे तो पत्रकार राधे कृष्ण और फोटोग्राफर दीक्षित जी भी साथ था । बीहड़ से गुजरती चंबल नदी की खूबसूरती देखते बनती थी । जंगलात विभाग के वाच टावर से नजारा देखा और फोटो भी खींची । आगे बढे तो करीब घंटे भर बाद एक छोटे कसबे में आगे की गाडी रुकी और दिनेश उतर कर आए और कहा - भाई साहब यहां साबुत मुंग के मुंगोड़े बहुत अच्छे बनते है । हमने कहा चाय के साथ ख्य जा सकता है । पता चला आगरा और इटावा से लोग इसे खाने आते है । दिनभर में पचास किलों मूंग के पकौड़े बनाकर वह चला जाता है । बहुत ही स्वादिष्ट पकौड़े जिसमे साबुत लहसुन और हींग का स्वाद भारी था । बहरहाल पचनदा तक गए और लौटे तो रात हो चुकी थी और हम कमरे में पहुंचे तो बाकी लोग रिसेप्शन । पूछा तो बताया कि खाना बनवा रहे है । नहाने के बाद हम यमुना को देखने सामने की बालकनी में आए फिर गरमी की वजह से ड्राइंग रूम में ही बैठ गए । भीतर का एसी ठीक से काम नहीं कर रहा था इसलिए कुछ देर बाद नीचे के कमरे में शिफ्ट हो गए । कुछ देर बाद खाना हो गया तो सभी लोग चले गए । यह बताया कि सुमेर सिंह का दूसरा महल जो कुछ दूरी पर है वह उनके सामंती शौक का गवाह भी रहा है और वे नृत्य के भी बहुत शौकीन रहे थे । और जैसा कि हर महल और किले की कहानियां प्रचलित होती है इनके बारे में भी थी । कहा जाता है गांव वालों को आज भी महल के पास घुंघरू की आवाज सुने देती है । पर किले में सन्नाटा था गैलरी के अंतिम छोर तक पहुँचने में भी आठ दस मिनट लग गया ।बाहर अंधेरी रात थी और मुख्य द्वार के पास बेला के फूलों की खुशबू फैली हुई थी ।पता चला किले में सिर्फ एक कुक और दो चौकीदार रहते है । वे कही दिख नहीं रहे थे ।गरमी और उमस के बीच फिर लंबी गैलरी पार कर हम कमरे में पहुंचे तो ग्यारह बज चुके थे ।कही कोई आवाज नहीं ।बाकी सारे कमरे बंद थे ।अजीब सा रहस्मय माहौल था । बालकनी से बाहर भी बहुत दूर रौशनी दिखी आसपास न कोई आबादी न कोई आवाज । ठीक उसी तरह जैसे तौरंगा के डाक बंगले में पहले अंतिम पुलिस चौकी के प्रभारी ने वहाँ रात गुजरने पर चेतावनी दी फिर डाक बंगले के चौकीदार ने समझाया कि रात में दरवाजा मत खोलिएगा यहाँ बाघ से लेकर भालू तक आते है । पर यहाँ बाघ भालू तो कुछ नही था पर फिर भी अजीब सा डरावना माहौल जरुर था ।यह पता चलने के बाद कि इस किले के बहुत प्राचीन कुएं में किसी को मार कर डाला जा चूका है,डर जरुर लग रहा था । किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज पर नींद खुली तो देखा रसोइया चाय और बिस्कुट के साथ खड़ा है । आसमान में बदल छाए हुए थे और हम बालकनी में यमुना का घुमावदार मोड देखते हुए चाय का स्वाद ले रहे थे । अंबरीश कुमार

Wednesday, June 12, 2013

नरेंद्र मोदी के लिए उत्तर प्रदेश में रास्ता आसान नही

अंबरीश कुमार लखनऊ ,१२ जून ।नरेंद्र मोदी और आडवाणी के विवाद के बाद सबकी नजर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश की तरफ है । उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है जहां नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है । आज जैसे ही नरेंद्र मोदी के सिपहसालार अमित शाह लखनऊ पहुंचे उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमा गई । भाजपा बम बम दिखी और पार्टी के एक धड़े का मानना है कि नरेंद्र मोदी के आने से भाजपा उत्तर प्रदेश में मुकाबले में आ सकती है हालाँकि पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ से लेकर अयोध्या के विनय कटियार तक जैसे नेता नरेंद्र मोदी का जयकारा लगाने वाले नहीं है । आडवाणी समर्थक खेमा मोदी के साथ नही आने वाला । भाजपा के एक नेता ने कहा -उत्तर प्रदेश में यह पार्टी फादर और गाड फादर के बीच झूल रही है और यहां लीडर कम चियर लीडर्स ज्यादा है । नेता तो भारी भारी पहले भी थे और बाहर से और भारी नेता आ रहे है पर कार्यकर्त्ता किन औजारों से प्रदेश के बड़े क्षत्रपों से लड़ेगा यह उन्हें नहीं पता है ।यह मायावती और मुलायम जैसे बड़े क्षत्रपों का प्रदेश है जो एक बड़े वोट बैंक के साथ खड़े है जिनसे अत्याधुनिक संचार साधनों से आप नहीं लड़ सकते ,यंहा सोशल मीडिया से चुनावी जंग नहीं जीती जा सकती जंहा ज्यादातर जिलों के गांवों में पन्द्रह घंटे बिजली ही नहीं रहती । इस बीच समाजवादी पार्टी ने साफ़ किया कि उत्तर प्रदेश में किसी मोदी की दाल नहीं गलने जा रही ।यहां सांप्रदायिक ताकतों की कलई खुल चुकी है और वह तीसरे चौथे नंबर की पार्टी है ।सांप्रदायिक ताकतों की पहले ही कलई खुल चुकी है और फिर से उन्हें मजबूत करना आसान नहीं है ।समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने आज यहां कहा कि सांप्रदायिकता के बल पर उत्तर प्रदेश में किसी के मंसूबे सफल नहीं होनेवाले हैं। प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है जो धर्मनिरपेक्षता से गहरे जुड़ी है। गुजरात में मुस्लिमों का कत्लेआम करनेवालों को प्रदेश की जनता जरा भी भाव देनेवाली नहीं है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा का सिर्फ आधार ही नही खिसका बल्कि शीर्ष नेताओं की कलह के चलते पार्टी संगठन का भठ्ठा बैठ बैठ चुका है ।पिछले विधान सभा चुनाव में पार्टी ने एक छोड़ सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारा था जिसमे अढतालीस उम्मीदवार जीते थे अगडी जातियों के तीस उम्मीदवार थे तो बारह पिछड़े और तीन दलित ।इससे इनकी सोशल इंजीनियरिंग को समझा जा सकता है । बाबूसिंह कुशवाहा के बावजूद इन्हें पिछडों की राजनीति में कोई खास फायदा नहीं हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय सीट रही लखनऊ में बड़ी मुश्किल से कलराज मिश्र की सीट के चलते इज्जत बची थी । पिछली लोकसभा में पार्टी की दस सीटें थी जिसे बहुत ज्यादा बढ़ाना आसान नहीं ।ऐसे में नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए जनाधार बढा सके यह बहुत आसान नहीं दिखता । यहां भाजपा खेमों में बंटी है तो अंचलों में भी बंटी है ।पूर्वांचल में सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्यनाथ है और वहां पहुँचते पहुँचते भाजपा हिंदू युवा वाहिनी में तब्दील हो जाती है जिसके सर्वेसर्वा योगी है । टिकट उनकी मर्जी से नहीं दिया गया तो उस उम्मीदवार की हार वे सुनश्चित कर देते है ।इसी तरह कुछ और नेता भी अपने गढ़ में किसी की चलने नहीं देते ।यह सब चुनौतियां नरेंद्र मोदी के सामने है तो उन्हें लेकर भाजपा को कुछ फायदा भी मिल सकता है । धार्मिक आधार पर जिस भी जगह गोलबंदी हुई वह मोदी के आने के बाद और तेज होगी यह तय है । ऎसी जगहों पर भाजपा को फायदा मिल जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए ।भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -मोदी के आने से पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढा है और लोकसभा चुनाव में हमें बड़ा फायदा होने जा रहा है । वैसे भी अमित शाह ने आज कहा कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर ही जाता है ।साफ़ है उन्हें भी उत्तर प्रदेश से बहुत उम्मीद है । अमित शाह की इस टिपण्णी से नरेंद्र मोदी के मंसूबों को भी समझा जा सकता है । jansatta

Tuesday, June 11, 2013

वे कांग्रेस से भी लड़े थे


वे कांग्रेस से भी लड़े थे अंबरीश कुमार विद्याचरण शुक्ल से अपनी पहली मुलाकात सन २००० में रायपुर में उनके घर पर ही हुई जब मै इंडियन एक्सप्रेस की जिम्मेदारी निभा रहा था और जनसत्ता लांच नही किया था ।एक प्रेस कांफ्रेंस में मुझे बुलाया गया जहां हर पत्रकार ने वीसी शुक्ल के पैर छूकर आशीर्वाद लिए। अपवाद मै था और कुछ हैरान भी क्योकि वीसी शुक्ल के बारे में मै सिर्फ उनके आपातकाल के व्यवहार के किस्से कहानियों से ही जानता था ।इसलिए जहां सभी पत्रकार उन्हें विद्या भैया कह कर संबोधित कर रहे थे मैंने उन्हें श्री शुक्ल कहकर संबोधित किया ।छतीसगढ में वह अजित जोगी का दौर था जो दिल्ली में मीडिया से काफी करीब रहे और अपना भी उसी वजह से उनसे परिचय भी रहा । छतीसगढ आया तो इंडियन एक्सप्रेस में सबसे पहले लिखा भी सारे दावों के बावजूद मुख्यमंत्री अजित जोगी ही बनेंगे । वे बने और दिल्ली से पहुंचे पत्रकारों को अक्सर न्योता भी देते और खबर पर फोन कर बात भी करते ।यह शुरू का दौर था और लगता था कि अजित जोगी दूर तक जाएंगे।सुनील कुमार से लेकर शैलेश पाठक और चितरंजन खेतान जैसे जोशीले आइएएस अफसर भी इस धारणा को मजबूत करते थे ।पर बाद में अफसरों के चलते अजित जोगी पहले मीडिया से दूर हुए फिर आमजन से और आंदोलनों का दौर शुरू हुआ ।भाजपा के एक प्रदर्शन के दौरान शीर्ष नेताओं पर लाठीचार्ज हुआ और कई के हाथ पैर टूटे । भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार साय पैर टूटने की वजह से महीनों बिस्तर पर रहे । उसी दौरान वरिष्ठ पत्रकार राजनारायण मिश्र की गिरफ़्तारी के मुद्दे पर भी आंदोलन हुआ तो बाद में सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाने पर जनसत्ता के दफ्तर पर भी हमला हुआ और अपना भी टकराव शुरू हुआ ।जनसत्ता की ख़बरों को देख वीसी शुक्ल ने मुझे घर बुलाया और पूछा ,इस तरह की खबरे कब तक लिखी जाएँगी ।अपना जवाब था ,जब तक यहाँ रहूँगा ।फिर लंबी बातचीत भी हुई । वे किसानो के सवाल पर आंदोलन शुरू कर चुके थे और अब कांग्रेस से लड़ रहे थे ।उस कांग्रेस से जिसके वे सबसे बड़े खलनायक माने गए । वे पंडित रविशंकर शुक्ल के वंशज थे जिनका अविभाजित मध्य प्रदेश में कितना असर आज भी है यह छतीसगढ के बाहर का कोई व्यक्ति नही जान सकता । आज भी मध्य प्रदेश या छतीसगढ के गांव गांव में किसी राजनितिक का नाम लोग जानते है तो वे रविशंकर शुक्ल ही है । बहरहाल वीसी शुक्ल ने उस दौर में खेत खलिहानो में उतर कर आंदोलन किया और शायद धमतरी के संवाददाता की खबर थी जिसपर मैंने तब हेडिंग लगाई थी ' नंगे पैर खेतों में उतरे वीसी ।' वे कांग्रेस से लड़ रहे थे और उस उम्र में जिस अंदाज से लड़ रहे थे वह देखने वाला था ।कांग्रेस अगर छतीसगढ में हारी तो उसकी बड़ी वजह वीसी का वह आंदोलन भी था जिसने कांग्रेस के वोट को बाँट दिया ।वीसी शुक्ल ने कांग्रेस के समान्तर एक पार्टी कड़ी कर दी थी जो खुद भले न जीत पाई पर कांग्रेस को जरुर निपटा दिया जिस कांग्रेस का नेतृत्व दलित आदिवासियों में मशहूर जोगी जैसे नेता कर रहे थे ।सत्ता से जोगी क्या हटे तबसे वे विपक्ष में ही है । इसलिए वीसी शुक्ल की पहचान सिर्फ आपातकाल से ही नही होती । वे एक लड़ाकू राजनितिक रहे और अंत तक लड़े । यूं ही नही समूचा छतीसगढ उन्हें विद्या भइया कहता था ।

Sunday, June 2, 2013

बादलों का लैंडस्केप

अंबरीश कुमार मौसम के चलते कई दिन बाद कैमरा लेकर निकला । बादल भी कई तरह के लैंडस्केप बना देते है । यही देख रहा था । सिंधिया स्टेट के बगीचे के पीछे की पहाड़ियों पर खेलते हुए बादल देखने के लिए खड़ा हो गया ।आसपास कई तरह के पक्षी मंडरा रहे थे जिनमे सबसे ज्यादा संख्या गौरेया की थी ।जो पक्षी मैदानी इलाको में अमूमन नहीं दिखते वे सभी यहाँ नजर आ जाते है ।पक्षियों के बारे में जानने के लिए एक छोटी सी पुस्तक भी ले आया हूँ ।उसी में पढ़ा एक खास प्रजाति का उल्लू जिस जगह आसन जमा लेता है वही वह जम जाता है अंतिम समय तक ।समझ नहीं आया ।आस्पताल के सामने अखरोट के सूखे पेड़ पर एक उल्लू नजर आया था पर दुबारा नहीं दिखा । अचानक गहरे नीले रंग की करीब डेढ़ फुट पंख वाली एक बड़ी चिड़िया सामने नजर आई और कैमरे को फोकस करता तब तक किसी जहाज की तरह लैंड करती हुई नीचे की पहाड़ी की तरफ जा चुकी थी । मौसम में ठंढ थी इसलिए जैकेट पहना था पर फिर भी राहत नही मिल रही थी । सामने की पगडंडियों से उतारते बच्चे दिखाई पड़े जो फल पैक करने वाले गत्ते लेकर उतर रहे थे । पहाड़ी फल पकने लगे है और तल्ला में तो पहले से पाक जाते है क्योकि वह घाटी में है और तापमान कुछ ज्यादा रहता है । बागवानो की कमाई इसी सीजन में होती है और रात भर पैकिंग और ट्रकों पर फलों की पेटियां चढाने का काम होता है ।यह वही तल्ला है जहां के कौवों पर निर्मल वर्मा ने कहानी लिखी तो अभिनेता दिलीप कुमार ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अगर हीरों नही बनता तो रामगढ़ में सेब के बगीचों से पक्षी भगाता रहता । पर मौसम में हुए बदलाव के चलते और मुनाफे ने सेब को तल्ला से बेदखल कर दिया अब वह आडू ज्यादा होता है और अच्छी प्रजाती खड़ी देशो को निर्यात हो जाति है जिसकी कीमत सेब से ज्यादा मिलती है और बची हुई आडू की छोटी प्रजाती लखनऊ दिल्ली के बाजार में चली जाती है । कई और फल जिनपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है उनमे एक नाशपाती की प्रजाती बब्बूगोसा है जो करीब चार सौ ग्राम का एक होता है ।करीब तीन साल पहले यहां से दिल्ली गया तो दर्जन भर बब्बूगोसा ले गया था और एक आलोक तोमर को दिया तो दूसरा कृष्ण मोहन सिंह को ।दोनों नाराज कि क्या एक फल दिया जाता है ,बहरहाल जब उसका स्वाद लिया तो हैरान रह गए ।गजब की मिठास और सेब से किसी मायने में कम नहीं । पर यह मैदानी इलाकों में कम मिलता है । यहां बहुत कम खाई जाने वाली कौव्वा नाशपाती ही दिल्ली लखनऊ के बाजार में चालीस पचास रूपये किलो मिलती है जो यहां से बोरों में जाती है और यहां के लोग उसे कौवों के लिए छोड़ देते थे इसलिए नाम भी ऐसा पड़ा । प्लम और खुबानी जब पेड़ पर पकने लगती है तो उसे संभाला नहीं जा सकता और तोड़ने से पहले ही ज्यादातर फल जमीन गिर जाते है ।यह अपने राइटर्स काटेज के पीछे के हिस्सों में हर साल होता है जंहा काले प्लम का पुराना पेड़ खड़ा हुआ है ।

Friday, May 31, 2013

बरसात में भीगा पहाड

अंबरीश कुमार रामगढ़ में तीन चार दिन से जमकर बारिश हो रही है । सामने का दृश्य किसी चित्रकला सा लगता है ।देवदार के पेड़ों के पीछे खडी पहाड़ियां धुंध और बदल से घिरी हुई है और काफी कुछ नीलगिरी की पहाड़ियों जैसी दिखती है ।हालाँकि इनका नीलापन ज्यादा स्याह है जबकि ऊटी में पहाड गहरे नीले नजर आते है शायह इसीलिए वे नीलगिरी की पहाड़ियां कहलाती है ।बरसात में पहाड अद्भुत नजर आता है । रात में तीन की छत पर ओले गिरने की वजह से नीद खुली तो देखा अच्छी खासी बरसात हो रही है और तेज हवा से प्लम का पेड़ लहर रहा है । कल तो जो ओले पड़े उससे सेब के पेड़ के नीचे लगी स्ट्राबेरी के पौधे ही दब गए ।क्यारियों में बर्फ ही बर्फ ।वृन्दावन आर्चिड की तरफ जाने वाले रास्ते में सेब के बगीचे के बाद एक पेड़ खुबानी का पड़ता है जो सबसे पहले पक जाता है। कल बस स्टेशन से जब अखबार लेकर लौट रहा था तो देखा स्कूली लड़कियां एक पुराने घर की तीन की छत पर चढ कर खुबानी तोड़ रही है ।मन हुआ मै भी कुछ खुबानी मांग लू ।अपने यहां खुबानी के तीन पेड़ थे पर एक एक कर सभी सूख गए अब प्लम है ,आडू ,बादाम के साथ सेब की तीन वेरायटी के पेड़ बचे हुए है पर खुबानी का कोई पेड़ नहीं है और पहाड़ी फलों में सेब नाशपाती के बाद यही फल अपने को भाता है ।आडू तो अधपके कलमी आम जैसा लगता है ।वैसे भी सुर्ख होते आडू अब बंदरों के हवाले है जो सुबह अपने घर के रास्ते से निकालते समय इनका स्वाद लेते है तो शाम को लौटते हुए भी । अब शाम को एक बार दूर तक घूमना होता है तो दिन में एक बार बाजार जाना भी । बाजार भी क्या भट्ट ,जोशी की चार पांच दुकाने और दो तीन ढाबे । शुरुआत बकरे और मुर्गे की दुकान से होती है जो भवाली से आने वाले रास्ते में मोड पर है तो अंत पीडब्लूडी के गेस्ट हाउस के पास मछली वाले के पास हो जाता है । अपना टाइगर बहादुर के जाने के बाद यही पुलिस चौकी में रहने लगा है । शाम को मिलता है बिस्कुट खाता है और दुम हिलाते हुए महादेवी सृजन पीठ के आगे शाह जी के बगीचे तक छोड़ने भी आता है पर फिर लौट जाता है । यह आमतौर पर रोज की दिनचर्या है । ब्राडबैंड लग जाने से आकाश और अंबर का ज्यादा समय लैपटाप पर जाता है ,आकाश तो कैमरा लेकर निकल भी आते है अंबर को कोई दिलचस्पी नहीं है पैदल घूमने में । टहलने जाते है तो कई मित्रों के घर और बगीचे भी पड़ते है । इनमे आलोक तोमर भी शामिल है जिनकी इच्छा थी यहां लिखने पढ़ने की पर पूरी नहीं हो पाई । राजेंद्र तिवारी से लेकर सिद्धार्थ कलहंस के भी यहां छोटे छोटे बगीचे है और वे भी आने वाले है । हिमालय पर होने वाली वर्कशाप में । सोनी और हिमांशु भी आ रहे है ।राजेंद्र चौधरी से बात हुई तो बताया सात को पहुँच जाएंगे । कल अल्पना वाजपेयी का फोन आया ,अपने संगठन की तेज तर्रार नेता रही है और बाद में लखनऊ विश्विद्यालय छात्रसंघ की पहली महिला उपाध्यक्ष भी बनी । बहरहाल बरसात में पहाड ज्यादा खूबसूरत नजर आ रहा है और घंटों खिडकी के सामने या बालकनी में बैठकर पढ़ने का मौका भी मिल रहा है । घाट घाट का पानी पुस्तक की भूमिका लिखनी है पर राकेश मंजुल ने एक दिन रुकने को कहा है ।

Sunday, May 12, 2013

राजनीति में राम को किनारे लगाया परशुराम ने !

अंबरीश कुमार लखनऊ, 12 मई।करीब दशक भर पहले तक उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में भगवान राम थे तो अब परशुराम है । आज उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने जिस तरह परशुराम जयंती बनाई वह सोशल इंजीनियरिंग की बदलती राजनीति का आगाज है । दलित और पिछड़े तबके की राजनीति करने वाली दोनों पार्टियां परशुराम जयंती के बहाने ब्राह्मण को अपनी अपनी तरफ खींचने में जुटी । एक कार्यक्रम समाजवादी पार्टी के मुख्यालय में हुआ जिसमे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और विधान सभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय शमिल हुए । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वह फरसा प्रतीकात्मक धंस से हाथ में लिए जो परशुराम का हथियार माना जाता है । समाजवादी पार्टी के मंच पर साधू सन्यासी और बाबा सभी नजर आ रहे । अयोध्या ,मथुरा और काशी जैसा नजारा दिख रहा थे । बसपा ने पूर्वांचल के महाराजगंज में परशुराम जयंती पर बड़ा कार्यक्रम किया । सपा और बसपा दोनों का मुख्य जनाधार अलग अलग पिछड़े और दलित रहे है । दोनों दल एक दौर में अगड़ी जातियों के मुकाबले दलित और पिछडों की लामबंदी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । कांसीराम जब बसपा का जनाधार बना रहे थे तो दलितों को गोलबंद करने के लिए आक्रामक राजनैतिक तौर तरीकों का इस्तेमाल किया ।अब शायद उन नारों को इनके नेता याद नहीं रखना चाहते है जो अस्सी के दशक में गूंजे थे । इनमे तिलक ,तराजू और तलवार ,इनको मारो जूते चार सबसे ज्यादा चर्चित हुआ था ।यह वह दौर भी था जब अगड़ी जातियों का राजनीति पर वर्चस्व था और आरक्षण विरोधी आंदोलन चला था ।बाद में अगड़ी जातियां और कुछ हद तक पिछड़ी जातियों भी मंदिर आंदोलन के साथ जुडी पर मंडल के बाद दलित ,मुस्लिम और पिछडों की गोलबंदी ने उत्तर प्रदेश की जो राजनीति बदली उसके चलते सत्ता के शीर्ष से अगड़ी जातियां बेदखल हो गई और तबसे कोई अगड़ा मुख्यमंत्री नही बन पाया ।आज वही दलित पिछड़ा ताकते ब्राह्मणों को जोड़ने में जुट गई है । ब्राह्मण प्रतीक तलाशे जा रहे है । आज समाजवादी पार्टी के मुख्यालय में जो माहौल था उससे यह भ्रम हो रहा था कि अयोध्या मथुरा या काशी के किसी मंदिर परिसर में आ गए है । शंख ,घंटा घड़ियाल के साथ मंत्रोचार गूंज रहे थे और अयोध्या ,मथुरा से लेकर काशी तक से साधू संत भी दिख रहे थे ।मंच पर भी फलाहारी बाबा से लेकर शाकाहारी बाबा तक थे ।खांटी समाजवादी जनेश्वर मिश्र से लेकर ब्रज भूषण तिवारी ब्राह्मण नेता के रूप में भी याद किए जा रहे थे । समाजवादी पार्टी के युवा नेता सुनील यादव ने कहा -मौजूदा राजनैतिक माहौल में जनाधार बढ़ाने के लिए सभी वर्गों को साथ लेकर चलना जरुरी है और इस तरह के कार्यक्रम इसी कवायद का हिस्सा भी है ।हांलाकि समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी से यह पूछने पर कि समाजवाद से परशुराम का क्या रिश्ता रहा ,जवाब मिला -परशुराम अन्याय के खिलाफ खड़े हुए थे इससे बड़ा क्या संबंध हो सकता है । सपा सरकार ने परशुराम जयंती पर अवकाश घोषित किया था और अब पार्टी ने उनकी जयंती पर भव्य आयोजन है। उन्होंने यह भी कहा कि ब्राह्मण ऐसा प्रबुद्ध समाज है जिसने देश को दिशा दी है। हम उन्हें जाति व वोट का आधार नहीं मानते हैं। भगवान श्री परशुराम जयंती समारोह में विधान सभा अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय, वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव और राजेन्द्र चौधरी सहित राज्यमंत्रीगण पवन पाण्डेय, मनोज पाण्डेय, विजय मिश्रा, अभिषेक मिश्रा, राष्ट्रीय महासचिव डा अशोक बाजपेयी, प्रदेश सचिव एसआरएस यादव, धराचार्य , खाली अखाड़ा, श्री फलाहारी जी महाराज, राजगोपाल मंदिर, श्री जनमे जय शरण, श्री नागेन्द्र जी आचार्य, श्री आनन्द किशोर गोस्वामी, प्रमुख आचार्य श्री बांके बिहारी मंदिर वृन्दावन, 1008 योगेश्वर स्वामी वीरेन्द्र गिरि महाराज, विधायकगण श्री शिवाकान्त ओझा, रमेश दुबे, ओमप्रकाश उर्फ बाबा दुबे, संतोष पाण्डेय नंदिता शुक्ला, पूर्व विधायक श्री जयशंकर पाण्डेय, राजेश दीक्षित, सनातन पाण्डेय, रवीन्द्र पाण्डेय, चरनजीत पाण्डेय, सूर्यकान्त पाण्डेय, दीपक मिश्रा, पी0डी0 तिवारी, सुशील दीक्षित, धर्मानन्द तिवारी, माला द्विवेदी, सुरभि शुक्ला आदि ने भी शामिल थे। समारोह की अध्यक्षता श्री माता प्रसाद पाण्डेय एवं संचालन श्री पवन पाण्डेय ने किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि आज देश के सामने गम्भीर चुनौतियां हैं। बेकारी, महंगाई, भ्रष्टाचार सीमाओं की सुरक्षा जैसे गम्भीर समस्याओं का सामना देश कर रहा है। तमाम तरह की विषमताओं एवं अन्याय-अत्याचार के विरूद्व समाजवादियों ने हमेषा संघर्ष किया है। प्रमोशन आरक्षण का मुद्दा उठाकर श्री मुलायम सिंह यादव ने केन्द्र सरकार, लोकसभा और देश का ध्यान आकृष्ट किया है। नेता जी ने इस प्रशासनिक एवं सामाजिक अन्याय के बारे में चेताया कि इससे भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा जिससे प्रशासनिक व्यवस्था तहस-नहस हो जायेगी। इन तमाम समस्याओं के लिये केन्द्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार है। उन्होंने आगे कहा कि चीन का खतरा टला नहीं है। केन्द्र सरकार ने देश के साथ यह बड़ा धोखा किया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सभी साधू संतो एवं प्रबुद्व नागरिको का अभिनन्दन करते हुये कहा कि उनके सहयोग और शुभकामना से चुनौतियों का सामना करने में समाजवादी सरकार पूरी तौर पर सफल होगी। उन्होने संस्कृत के प्रधानाचार्यो एवं अध्यापको की समस्याओं का समाधान जल्दी ही करने का आश्वासन देते हुये कहा कि वह मानते है कि संस्कृत को बचाने का अर्थ भारतीय संस्कृति को बचाना है। जबकि विधान सभा अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय ने कहा कि ब्राह्मणो का सम्मान समाजवादी पार्टी में ही सुरक्षित है। नौजवानों ने हमेशा परिवर्तन को दिशा दी है। लोकसभा के चुनाव में दिल्ली में नेता जी को ताकत देने के लिये संकल्प के साथ एकजुट होकर अभी से लग जाय। वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि बसपा के षासन काल में दलित एक्ट में हुये उत्पीड़न को समाप्त करने के लिये फर्जी मुकदमे वापस होगें। उन्होने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में ब्राह्मण समाज के सम्मान को कोई आंच नहीं आने दी जाएगी ।

Saturday, May 4, 2013

उत्तर प्रदेश में भाजपा की नैया पार लगा पाएंगे वरुण गांधी

उत्तर प्रदेश में भाजपा की नैया पार लगा पाएंगे वरुण गांधी सविता वर्मा लखनऊ 4 मई । भाजपा इंदिरा गांधी के पौत्र और संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी को उत्तर प्रदेश की राजनीति में आगे कर नौजवानों को जोड़ने की कवायद में जुट गई है । पर यह कवायद कितनी कामयाब होगी यह अभी कहा नही जा सकता । आज वरुण गांधी ने लखनऊ में केंद्र और राज्य सरकार दोनों पर हमला बोल इसकी शुरुआत भी कर दी। वरुण गांधी पर भडकाऊ भाषण देने का आरोप लग चुका है और प्रदेश में भाजपा जिस तरह की राजनीति के जरिए आगे बढ़ना चाहती है उसके लिहाज से वरुण गांधी उनके नए नायक है । वे पीलीभीत में अपनी माँ मेनका गांधी की सीट से जीते थे और तराई का वह अंचल सिख बहुल है जो मेनका को जीता चुका था । अब वे पिता संजय गांधी की कर्मभूमि से चुनाव लड़ने जा रहे है । सुल्तानपुर में वे उस पार्टी के उम्मीदवार होंगे जिनसे इंदिरा गांधी लगातार लड़ती रही । अब उनके पड़ोस में एक तरफ भाई राहुल गांधी होंगे तो दूसरी तरफ बहन प्रियंका गांधी । पर वरुण ने आज चुनाव की तैयारी शुरू कर दी । उन्होंने लखनऊ में राहुल और अखिलेश दोनों पर निशाना साधा । महासचिव वरूण गांधी ने आज यहां कहा कि केन्द्र सरकार के हाथों में देश का सम्मान सुरक्षित नही है। केन्द्र की लचर नीति के कारण सरबजीत की जान नही बचाई जा सकी। वरुण गांधी आज राजधानी लखनऊ स्थित पं दीन दयाल उपाध्याय स्मृतिका पर पार्टी की तरफ से आयोजित धरने सम्बोधित कर रहे थे। उन्होने कहा देश के इतिहास में यूपीए की सरकार ऐसी पहली सरकार है जिसको 70-75 प्रतिशत का समय अपनी सरकार को सत्ता मे बने रहने व ” मैं चोर नही हूँ मै चोर नही हूँ ” साबित करने में लगाना पड़ रहा है। गरीबों, युवाओं और किसानों को ठगा गया है। पांच वर्ष में कर्ज माफी के नाम पर गरीब लोगों से झूठ बोला गया, गद्दारी की गई है। केवल 18 प्रतिशत लोगों की ही कर्ज माफी हुई है। वरुण सिर्फ केंद्र तक ही सिमित नहीं रहे बल्कि अखिलेश सरकार पर भी हल्ला बोला । वरुण गांधी ने कहा - प्रदेश में चारो तरफ अराजकता व आतंक का महौल है। गोरखपुर में सीरियल बम बलास्ट करने वाले आतंकियों पर चल रहे मुकदमों को वापस लेनी वाली सपा सरकार को टांडा के देशभक्त रामबाबू की सुध नही रही। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में फंसे सपा सरकार का कोई भी प्रतिनिधि जघन्य हत्या का शिकार हुए रामबाबू गुप्ता के परिजनों से मिलने के लिए नही गया। उन्होंने सवाल किया कि आखिर उत्तर प्रदेश में ये क्या हो रहा है? राज्य में बेताहाश बढ़ते अपराध महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार व अत्याचार बढ़ते दंगो के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? उन्होंने कहा कि मुलायम माया की पार्टी परिवारवाद में फंसी निजी सम्पति की तरह है। सपा-बसपा देशहित में राजनीति नही करते। वरुण गांधी के इस तेवर से उनकी भावी राजनीति को आसानी से समझा जा सकता है । वे भाजपा के उस वोट बैंक को लाने लेन का प्रयास करेंगे जो जातियों में बंटकर वापस चला गया था । यही भाजपा की भी चुनौती है और वरुण गांधी की भी । जबतक अंध राष्ट्रभक्त और उग्र हिंदुत्व वाली भावना जोर नहीं पकडेगी भाजपा का पुराना जनाधार वापस भी नहीं आ पाएगा । वरुण एक तरफ समाजवादी पार्टी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगा रहे है तो दूसरी तरफ कांग्रेस मुसलमानों की अनदेखी का । यह विरोधाभास काफी रोचक भी है । वरुण मुसलमानों के नाम पर हिंदुत्व का एजंडा सामने रख रहे है तो कांग्रेस इस मुस्लिम वोटों में सेंध लगाना चाहती है जिसके चलते पिछली लोकसभा में वह करीब एक चौथाई सीट जीत गई थी पर कल्याण सिंह के समाजवादी पार्टी से जाने के बाद विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाता फिर सपा में लौटे और कांग्रेस फिर पुरानी दशा में पहुँच गई । अब कांग्रेस की लगातार कोशिश इस वोटों में सेंध लगाने की है तो भाजपा वरुण गांधी के जरिए जातियों की वह गोलबंदी तोडना चाहती है जिसके चलते हिंदू वोट बाँट जाते है ।वरुण गांधी ने इसी वोटबैंक को अपना लक्ष्य बनाया है । पर उत्तर प्रदेश की मौजूदा स्थिति में जातियों कि गोलबंदी तोड़ पाना बहुत मुश्किल काम है । वे मुस्लिम को लेकर अगर सपा पर निशाना साधेंगे तो भाजपा का वोट बढे न बढे सपा का मुस्लिम जनाधार मजबूत ही होगा । जनादेश

विदर्भ में न बदल जाए बुंदेलखंड

विदर्भ में न बदल जाए बुंदेलखंड अंबरीश कुमार /हरिश्चंद हमीरपुर/झाँसी , मई ।बुंदेलखंड अब विदर्भ की तरह के पानी के संकट को न्योता देता नजर आ रहा रहा है । इसकी मुख्य वजह तालाब के बाद नदियों की दुर्दशा है । इसके लिए राजनैतिक दल जिम्मेदार है जो उन नेताओं और ठेकेदारों को प्राकृतिक संसाधनों को लूट की छूट दिए हुए है । नतीजा सामने है ।बुंदेलखंड में नदियां सूख रही है ।महोबा में ऐतिहासिक चंद्रावल नदी सूख गई है तो चंदेलकालीन तालाब का पानी तलहटी तक पहुँच चुका है । केंद्र सरकार ने चंदेलकालीन तालाबों में पानी लाने के लिए दो सौ करोड रुपए दिए पर कागज में तो पानी बहने लगा ताल तालाब और सूख गए । बेतवा ,पहुज ,केन ,उर्मिल ,बाणगंगा और धसान जैसी कई छोटी बड़ी नदियां संकट में है ।पहले तो छोटी नदियों का पानी गरमी में सूखता था पर अब बड़ी नदियों का पानी भी सूख रहा है । उरई में कोटरा ,सिकरी व्यास ,मोहाना ,गोडा सिमरिया जैसे बेतवा नदी के घाट पर डुबकी मारने लायक पानी मिलना मुश्किल हो रहा है । यह बानगी है बुंदेलखंड में पानी के आने वाले संकट की । पानी के लिए गांव गांव में विवाद शुरू हो चुका है । यह संकट गांव कस्बो से आगे बढ़ता हुआ जंगल तक पहुँच चुका है ।कुछ दिन पहले कुलपहाड़ में पानी तलाशती एक गर्भवती हिरणी को जंगल में कुत्तों ने मार डाला । जंगली जानवर भी पानी के संकट से जूझ रहे है । यह संकट और बढ़ने जा रहा है क्योकि पारा चढ़ते ही ताल तालाब और नदियों का पानी और घट जाएगा । बुंदेलखंड में बड़ी नदियों के किनारे रहने वाले कभी इस तरह का पानी का संकट नही झेलते थे जैसा हाल के कुछ सालों से झेल रहे है । इसकी एक वजह यह भी थी कि नदी के किनारे कैचमेंट एरिया में बरसात का पानी भर जाता था और वह आसपास की जमीन को भी नम रखता था । साथ ही पहाड और जंगल में पानी के स्रोत भी ताल तालाब और नदियों के जल स्तर को बनाए रखते थे ।पर्यावरण से खिलवाड की छूट मिलते ही सबसे पहले पेड़ काटे गए फिर पहाड खोदे गए और अब नदियों की तलहटी खोदी जा रही है ।जब तलहटी खोद दी जाएगी तो पानी ठहरेगा कहा । अवैध खुदाई करने वाले लोगों में ज्यादातर सांसद विधायक नेता और पूर्व सांसद विधायक है । इनका चरित्र भी सत्ता के साथ बदलता है ।मसलन सिंह ,पंडित ,ठाकुर ,बुधौलिया और गोस्वामी कंस्ट्रक्शन या ट्रांसपोर्ट के नाम वाले ट्रक दिखते थे अब यादव ट्रांसपोर्ट या कंस्ट्रक्शन ज्यादा दिखता है ।पर इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योकि यह सब मुखौटे है और धंधा करने वाला सिर्फ चोला बदलता है कमान उसके हाथ में होती है । एक एक नदी से पांच सौ हजार ट्रक बालू / मौरंग रोज निकालेंगे तो पानी कहा जाएगा यह अंदाजा लगाया जा सकता है । महोबा से निकलने वाली चंद्रावल नदी का नाम वहां की राजकुमारी के नाम पर है जिसे चंदेलों ने ग्यारहवीं सदी में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान से युद्ध कर छुडवाया था ।कहा जाता है कि यह युद्ध करहरा गांव के पास हुआ था और बाद में इस नदी का नाम चंद्रावल रखा गया ।यह नदी आसपास के गांवों के लिए वरदान थी । चंद्रावल नदी अब सूख चुकी है और उर्मिल बांध में भी पानी बहुत कम है । जबकि सोलह चंदेलकालीन तालाबों में पानी लाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पहल की है। तालाबों की भी बहुत दुर्दशा हुई है । मसलन चंदेलकालीन मदन सागर तालाब करीब साढ़े छह किलोमीटर का है पर उसका कैचमेंट एरिया बाईस किलोमीटर का है जिसका पानी इस तालाब में आता था । अब इस कैचमेंट एरिया में लोगों ने मकान बना लिए तो सरकार ने सड़क और पुल बनाकर पानी आने का रास्ता ही बंद कर दिया । पर्यावरण विशेषग्य केके जैन ने कहा -यही इस समस्या की जड़ है ठीक उसी तरह जैसे नदियों की तलहटी खोद कर उन्हें बांझ बनाया जा रहा है । सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो फिर विदर्भ जैसे हालत बुंदेलखंड में पैदा हो जाएंगे ।

Tuesday, April 30, 2013

जहरीली हो गई है तराई की नदियां

जहरीली हो गई है तराई की नदियां अंबरीश कुमार लखनऊ ,।हिमालय की तराई में बड़ी नदियां तो बिगड़ते पर्यावरण का किसी तरह मुकाबला कर अपना अस्तित्व बचा ले रही है पर छोटी और बरसाती नदियां दम तोड़ रही है ।इनका पानी इतना जहरीला हो चुका है कि आदमी तो बीमार पड़ कर इलाज करा लेता है पर जानवर अब दम तोड़ दे रहा है ।बीते तेरह अप्रैल को मनकापुर से आगे सादुल्लानगर वन प्रभाग में विसुही नदी और मनोरमा नदी का पानी पीने की वजह से दो हिरन की मौत हो गई तो फिर सोलह अप्रैल को इसी पानी कि वजह से एक और हिरन की मौत हो गई । प्रमुख सचिव वन व पर्यावरण इस घटना की जाँच कर रहे है पर यह घटना समाज और सरकार के लिए खतरे की घंटी है । तराई में इस तरह की छोटी नदियां चीनी मीलों और उद्योगों के जहरीले कचरे का नाला बन गई है । गोरखपुर की आमी नदी हो या गोंडा की विसुही और मनोरमा नदी हो सभी उद्योगों के कचरे के चलते जहरीली हो गई है । आमी नदी गोरखपुर मंडल में करीब पचासी किलोमीटर क्षेत्र में कभी अमृत जैसा पानी लोगों को देती थी । पर अब आमी नदी दम तोड़ चुकी है और उसका पानी जहरीला हो चुका है ।पिछली बार जब इस नदी को बचाने के लिए आंदोलन हुआ तो राहुल गांधी भी पहुंचे और कुछ ठोस पहल का वायदा भी किया ।पर गोरखपुर के सुग्रीव कुमार के मुताबिक हालत पहले से ज्यादा खराब है ।खलीलाबाद ,बस्ती और गोरखपुर के उद्योगों का कचरा इस नदी को खत्म कर चुका है ।इसे लेकर सामाजिक और राजनैतिक संगठन भी लगातार आवाज उठा रहे है ।पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है ।पूर्वांचल में ताल तालाब पर जिस तरह से बीते दो दशक में कब्ज़ा हुआ है उससे पानी का संकट और बढ़ा है ।कुएं और ताल तालाब पर लोगों ने कब्ज़ा किया तो नदियों को नाला बना दिया ।इसमे बड़े बड़े औद्योगिक घराने भी शामिल है जो पर्यावरण को लेकर एक तरफ अभियान चलते है तो दूसरी तरफ जहरीला कचरा नदी में डाल दे रहे है । तराई के देवीपाटन अंचल में चीनी मिलों तथा अन्य औद्योगिक इकाइयों का कचरा इन नदियों के पानी को जहर में बादल रहा है ।हाल में जिस मनोरम नदी का पानी पीकर हिरन मरे थे उसका उद्गम जिले के रुपईडीह विकास खंड के अन्तर्गत तिर्रे मनोरमा ग्राम पंचायत का एक तालाब है। यहीं पर उद्दालक मुनि का आश्रम भी है। यह नदी जिले के धानेपुर, मनकापुर तथा छपिया कस्बे में प्रवाहित होते हुए करीब 100 किमी की दूरी तरह करके बस्ती जिले के ऐतिहासिक मखौड़ा धाम में सरयू में विलीन हो जाती है। मखौड़ा धाम में महाराजा दशरथ ने पुत्रेश्ठि यत्र किया था। गोंडा से जानकी शरण द्वेवेदी के मुताबिक इस नदी में इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज से निकलने वाला कचरा प्रवाहित होता है। बिसुही नदी बहराइच जिले के चित्तौड़गढ़ झील से निकलती है। यह विशेश्वरगंज से आगे चलकर गोंडा जिले की सीमा में प्रवेश करती हैं और रुपईडीह, इटियाथोक, दतौली, श्रृंगारघाट, गऊ घाट (मसकनवा), घारीघाट होते हुए करीब 150 किमी लम्बी यात्रा करके बस्ती जिले में कुआनो नदी में मिल जाती है। खास बात यह है कि बलरामपुर चीनी मिल की दो इकाइयों दतौली तथा बभनान के कचरे से यह पूरी तरह से जहरीली हो चुकी है । दूसरी तरफ गोंडा जिले के मोतीगंज थाना क्षेत्र के अन्तर्गत कस्टुआ गांव के पास से निकली चमनई नदी को लोग धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। यह नदी सोतिया नाला, टिकरी जंगल होते हुए बस्ती जिले में पहुंचकर सरयू नदी में विलीन हो जाती है। यह करीब 60-65 किमी की दूरी तय करती है। इस नदी में हिंदुस्तान बजाज समूह की कुन्दुरखी चीनी मिल का कचरा मिलता है जो इसे जहरीला बना चुका है । बहराइच जिले के सरयू बैराज से निकलने वाली टेढ़ी की कुल दूरी करीब 150 किमी है। यह कटरा विकास खंड में गोंडा जिले में प्रवेश करती है और बालपुर, नवाबगंज होते हुए पटपरगंज से आगे अयोध्या में सरयू नदी में मिल जाती है। इस नदी में बलरामपुर चीनी मिल गु्रप की मैजापुर यूनिट तथा मूलराज नारंग डिस्टलरी का कचरा प्रवाहित होता है। इसके चलते यह नदी भी विशैली हो चुकी है। इसके साथ ही बलरामपुर जिले में सिरिया, कुआनो तथा राप्ती प्रमुख नदियां हैं, जिनके भरोसे तराई का किसान रहता है। सिंचाई का पर्याप्त साधन न होने के कारण इलाके के किसान इनसे सिंचाई भी करते हैं। किन्तु धीरे-धीरे ये नदियां भी सीजनल होती जा रही हैं। बलरामपुर चीनी मिल की बलरामपुर तथा तुलसीपुर इकाइयों का कचरा कुआनो तथा सिरिया में गिरने से इनका जल भी प्रदूशित है। शासन के प्रदूशण संयंत्र लगाए जाने के बारे में तमाम आदेश इनके समक्ष बौने पड़ रहे हैं। जनसत्ता

Sunday, April 28, 2013

अमेरिकी हेकडी का जवाब देकर अखिलेश ने दिखाई राजनैतिक ताकत

सविता वर्मा लखनऊ, 27 अप्रैल।देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बोस्टन जाकर भी हार्वर्ड विश्विद्यालय के कार्यक्रम का बायकाट कर एक झटके में अमेरिका विरोधी भावनाओं को मजबूत आधार दे दिया है । आहत मुस्लिम समाज ने अखिलेश के इस कदम का स्वागत किया है जिसमे सभी वर्ग के लोग शामिल है । अमेरिकी दादागिरी का यह माकूल जवाब है जिसके चलते अखिलेश यादव अचानक अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में भी आ गए है । हार्वर्ड विश्विद्यालय विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है और उसने अखिलेश यादव को विश्व के सबसे बड़े धार्मिक समागम को आयोजित करने की वजह से न्योता दिया था । वह भारत से ,उत्तर प्रदेश से यह जानना चाहता था कि किस तरह करोड से ज्यादा श्रद्धालू संगम में डुबकी लगाने आते है और इसकी व्यवस्था कैसे होती है ? कैसे लाखों लोग एक महीने तक संगम तट पर रुकते है । पर वह अमेरिका जो कुंभ कि व्यवस्था को जानना चाहता था खुद कैसी अव्यवस्था का शिकार है इसे अखिलेश यादव ने अपने फैसले से समूचे विश्व को बता दिया है । देश ही नहीं बाहर के देशों में इसका बड़ा राजनैतिक सन्देश गया है और मुस्लिम समाज ने इसका स्वागत किया है । क्योकि अमेरिका ने मुसलमान होने की वजह से ही आजम खान को राजनयिक होने के बावजूद बेइज्जत किया था और आम भारतीय इस घटना से आहत था । कई मुस्लिम संगठनों ने इस घटना पर अमेरिका कि भर्त्सना भी की थी । आजम खान ने साफ़ कहा कि मुसलमान होने की वजह से उनका अपमान किया गया है।इस घटना से विश्व भर में लोग नाराज हुए । पत्रकार रिजवान मुस्तफा ने कहा -आतंकवाद के नाम पर अमेरिका को हेडली याद नहीं रहता और खान याद रहता है ।सारा विश्व शाहरुख खान को जनता है पर अमेरिकी हवाई आड़े के अफसर उन्हें आतंकवादी मानकर अभद्र ढंग से तलाशी लेते है । वे पूर्व मंत्री जार्ज फर्नांडीज से लेकर पूर्व राष्ट्रपति के साथ भी यह सब दोहरा चुके है । इसलिए अखिलेश यादव और आजम खान ने इस हेकड़ी का जिस अंदाज में जवाब दिया है उससे मुस्लिम समाज उनके साथ खड़ा हो गया है । अमेरिका में हुई इस घटना का बड़ा राजनैतिक लाभ समाजवादी पार्टी को मिलेगा यह भी साफ है । कांग्रेस जिस तरह बीच बीच में मोदी का भय दिखकर मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से झटकना चाहती थी ,इस घटना ने उस कवायद पर भी पलीता लगा दिया है।उत्तर प्रदेश में मुस्लिम राजनीति को लेकर लगातार उठापटक चलती रहती है और बीच में यह प्रचार भी चला कि समाजवादी पार्टी के मुस्लिम आधार में कांग्रेस कुछ सेंध लगा सकती है ।पर अब तक जो भी सर्वे उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर आए है उनमे पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों के मुकाबले कांग्रेस की सीटें आधी से भी कम आंकी जा रही है इसलिए यह धारणा कि मुस्लिम बाँट सकता है सही नहीं मानी जा सकती । समाजवादी पार्टी कि उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति में पकड़ बढ़ी है और उसके तैतालीस मुस्लिम विधायक विधान सभा में है । विधान सभा चुनाव में सपा ने जितने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किए उसमे आधे जीत गए । ऐसे मुस्लिम राजनीति कि नब्ज पहचानने वाले इन तथ्यों कि अनदेखी नहीं करते है । ऐसी राजनैतिक पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट करना प्रदेश के आहत मुस्लिम समाज को ताकत देने वाला है । प्रदेश का मुस्लिम समाज पहले से ही अमेरिका से बुरी तरह नाराज है ऐसे में अखिलेश यादव का यह कदम समाजवादी पार्टी को ताकत देने वाला साबित होगा ।जनादेश

हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट ,अखिलेश के साथ खड़ा हुआ मुस्लिम समाज

अंबरीश कुमार खनऊ, 27 अप्रैल।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का हार्वर्ड विश्विद्यालय के कार्यक्रम का बायकाट किया जाना उत्तर प्रदेश के साथ देश विदेश की मुस्लिम राजनीति को गरमा गया है। इस मुद्दे पर मुस्लिम संगठनों और बुद्धिजीवियों ने अखिलेश यादव के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि उन्होंने इसे अमेरिका जमीन पर उसे माकूल जवाब दिया है जो अबतक किसी ने नहीं किया ।इस मुद्दे पर आज समाजवादी पार्टी ने भी अमेरिका पर हमला बोलते हुए इसे उसकी नस्ल भेद नीति का उदहारण बताया है और इसका विरोध करने का एलान किया है ।यह मुद्दा अब राजनैतिक रूप भी ले चुका है । बोस्टन हवाई अड्डे पर उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान के पासपोर्ट को लेकर उनसे अलग से पूछताछ की गई थी ।आजम खान के मुताबिक मुद्दा तलाशी का नही बल्कि पासपोर्ट को लेकर देर तक पूछताछ किए जाने का था जबकि वे खुद हार्वर्ड के बुलाए पर वहाँ गए थे ।इसे लेकर हवाई अड्डे के अधिकारीयों से भी कहासुनी हुई और बाद में आजम खान ने कहा कि मुसलमान होने के नाते उनसे इस तरह का व्यवहार किया गया है ।आजम खान ने इसके बाद ही हार्वर्ड के कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला किया था । पर बाद में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत कर खुद भी हार्वर्ड के कार्यक्रम में न जाने का फैसला किया ।जबकि उससे पहले वे अनौपचारिक रूप से हार्वर्ड विश्विद्यालय में गए और वहाँ का पुस्तकालय देख कर प्रभावित भी हुए । पर आजम खान के साथ जो व्यव्हार हुआ उसका अन्तराष्ट्रीय मंच विरोध जताने के लिए उन्होंने हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट किया और अचानक वे और आजम खान दोनों मुस्लिम देशों में भी चर्चा का विषय बन गए ।आजम खान जो उत्तर प्रदेश में ही ज्यादा जाने जाते रहे है वे अंतराष्टीय स्तर पर चर्चा में आ गए । मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा -मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और आजम खान ने अमेरिका की जमीन पर जिस तरह का करारा जवाब दिया है उससे मुस्लिम समाज में उनके लिए इज्जत बढ़ गई है । अमेरिका में लगातार ऎसी हरकत होती रही है । मुसलमानों के साथ यह आम बात है । मौलाना कल्बे सादिक को भी अपमानित किया जा चुका है । पर मुख्यमंत्री ने हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट कर अमेरिका को जो सबक सिखाया है उसका दूरगामी नतीजा होगा ।कम से कम मुस्लिम समाज तो उनके इस फैसले का दिल से स्वागत करता है । लखनऊ के अब्बास हैदर ने कहा -अखिलेश यादव और आजम खान ने जो हिम्मत दिखाई है उससे मुस्लिम बिरादरी उनके साथ खड़ी हो गई है ।अमेरिकी हेकड़ी का इससे बेहतर कोई जवाब नहीं हो सकता । इस बीच समाजवादी पार्टी ने अमेरिका कि जमकर निंदा की है।समाजवादी पार्टी ने कहा है कि अमेरिका में बोस्टन एयरपोर्ट पर उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री आजम खान की तलाशी और पूछताछ के लिए अलग रोककर जो बदसलूकी की गई है उसकी जितनी निन्दा की जाए कम हैं। अमेरिका अपने को लोकतंत्र का हिमायती बताता है उसकी धरती पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के एक वरिष्ठ मंत्री के साथ ऐसा बर्ताव जाहिर करता है कि अमेरिका अपनी शक्ति के घमंड में चूर है। उसे सामान्य शिष्टाचार भी नहीं आता है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने आज यहां पार्टी मुख्यालय पर कहा - मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने साथ गए वरिष्ठ मंत्री के साथ दुर्व्यवहार पर जो सख्त रूख अपनाया है वह उनकी परिपक्व राजनीति को दर्शाता है। भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान को चुनौती देनेवालों को यह कड़ा जवाब है। मुख्यमंत्री जी ने हार्वर्ड में महाकुम्भ प्रबंधन पर अपनी प्रस्तुति रद्दकर राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा की है। अखिलेश यादव ने जता दिया है कि वे एक सच्चे समाजवादी हैं और लोहिया के सिद्धांतों पर चलनेवाले है। अमेरिका ने एक मुस्लिम के नाते आजम खान की विशेष जांच करके अपनी नस्लभेदी मानसिकता जता दी है। डा लोहिया को अमेरिका में ऐसे ही एक प्रसंग में रंगभेद का विरोध करने पर गिरफ्तार तक किया गया था। आजम खान की मुस्लिम होने के नाते जामातलाशी अमेरिकी अधिकारियों ने जता दिया है कि मुसलमानों के प्रति उनमें कितना गहरा पूर्वाग्रह है। अमेरिका की निगाह में हर मुसलमान आतंकवादी है और उससे अमेरिकी सुरक्षा को खतरा है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम, सिने अभिनेता शाहरूख खान और अब आजम खान के साथ अभद्र आचरण यही साबित करता है कि अमेरिका लोकतंत्री व्यवस्था के बजाय अपनी तानाशाही प्रवृत्ति का परिचय दे रहा है।

Friday, April 19, 2013

कहवाघर से काफी हाउस का सफर

लोहिया ,फिरोज गांधी ,जनेश्वर और चंद्रशेखर से लेकर मजाज का भी अड्डा रहा अंबरीश कुमार लखनऊ ,19 अप्रैल ।करीब साढ़े सात दशक से लखनऊ का काफी हाउस उत्तर प्रदेश के राजनैतिक घटनाक्रम का गवाह रहा है । अब इसके पचहत्तर साल पूरे होने पर एक आयोजन की तैयारी हो रही है जिसमे इसके इतिहास को याद करने के साथ काफी हाउस के पुराने स्वरुप को बहाल करने का प्रयास किया जाएगा ।इसने अंग्रेजों का दौर देखा तो आजादी का आंदोलन के दौरान भी यह बहस का अड्डा रहा और बाद में राजनीतिकों ,साहित्यकारों ,कलाकारों और छात्र नेताओं का भी अड्डा बना । यहां पर बैठने वालों में आचार्य नरेंद्र देव ,राम मनोहर लोहिया ,हेमवती नंदन बहुगुणा ,चंद्रशेखर ,एनडी तिवारी ,वीर बहादुर सिंह ,जनेश्वर मिश्र ,फिरोज गांधी जैसे राजनितिक थे तो यशपाल ,भगवती चरण वर्मा और अमृतलाल नागर जैसे साहित्यकार थे मजाज जैसे शायर के अलावा नौशाद ,कैफी आजमी से लेकर चित्रकार रणवीर सिंह बिष्ट भी यहां बैठते रहे ।भगवती चरण वर्मा टेम्पो से काफी हाउस आया करते थे ।उस दौर के दिग्गज पत्रकारों में चेलापति राव ,के रामाराव ,सीएन चितरंजन ,एसएन घोष ,चंद्रोदय दीक्षित ,कपिल वर्मा आदि शामिल थे । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लखनऊ का यह काफी हाउस कितना महत्व रखता रहा है । सिर्फ दो मुख्यमंत्री इस काफी हाउस में नहीं आए एक चौधरी चरण सिंह तो दूसरे सीबी गुप्ता ।सीबी गुप्ता को लगता था काफी हाउस में उनके खिलाफ साजिश रची जाती है तो चौधरी चरण सिंह कभी बाजार ही नहीं जाते थे इसलिए वे काफी हाउस के बाहर से ही निकल जाते थे कभी भीतर नहीं गए । पर काफी हाउस ने बदलता हुआ लखनऊ देखा है और दिग्गज नेताओं को यहां लोग बहस करते देख चुके है ।लखनऊ में बैठकबाजी के प्राचीन अड्डों में कहवा घर रहा है जो यहां ईरान से आने वालों का तोहफा माना जाता ।इन कहवा घर का उल्लेख उर्दू साहित्य में भी मिलता है जहां पहले दास्तानगो किस्से सुनाया करते थे ।बाद में यहाँ काफी हाउस खुला । अंग्रेजो के समय में चालीस के दशक में हजरतगंज में आज जहां गांधी आश्रम है वही पर पहला इन्डियन काफी हाउस खुला था ।इसे काफी बोर्ड ने खोला था पर १९५० आते आते काफी बोर्ड ने देश के ज्यादातर काफी हाउस बंद कर दिए ।जिसके बाद कर्मचारियों ने इंडियन काफी हाउस वर्कर्स कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर देशभर में फिर से काफी हाउस की कई शाखाएं खोल दी जिसमे पांडिचेरी ,त्रिशुर ,लखनऊ ,मुंबई ,दिल्ली ,कोलकोता ,पुणे और लखनऊ भी शामिल था । तब लखनऊ में यह जिस जहांगीराबाद बिल्डिंग में शुरू हुआ वही आज भी है । करीब तीन दशक से इस काफी हाउस में नियमित बैठने वाले प्रदीप कपूर ने कहा -यह काफी हाउस उत्तर प्रदेश की साढ़े सात दशक कि राजनीति का गवाह रहा है ।जहां लोहिया,चंदशेखर से लेकर फिरोज गांधी तक बहस करते थे तो मजाज जैसे शायर का भी एक ज़माने में यह अड्डा रहा ।अस्सी के दशक में छात्र नेताओं का भी अड्डा बना । बीच में यह काफी बुरे दौर से भी गुजरा पर अब यह फिर आबाद हो रहा है ।काफी हाउस को हम काफी हाउस आंदोलन के रूप में देखते है।इसे बनाए और बचाए रखने के लिए अगले साल काफी हाउस आंदोलन के पचहतर साल पर एक यादगार कार्यक्रम करने की योजना है ताकि नई पीढ़ी इसके इतिहास को समझ सके । गौरतलब है कि काफी हाउस बीच में बंद हो गया था और इसकी बिजली भी काट दी गई थी । अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने कहा -इसकी संचालिका अरुणा सिंह ने जब यह जानकारी दी तो हमने जरुरी कदम उठाया और बिजली जोड़ी गई । यह काफी हाउस ऐतिहासिक है जहां आचार्य नरेंद्र देव ,लोहिया और चंद्रशेखर तक बैठते थे ।मै खुद भी समय निकाल कर वहाँ बैठने वाला हूँ ।इसे बचाने की और पुरानी संस्कृति को बहाल करने के लिए जो भी मदद होगी मै भी करूँगा । गौरतलब है कि आज भी काफी हाउस की दो तीन मेजों पर राजनीतिक और साहित्यकार व पत्रकार बैठे मिल जाएंगे । पर बाकी पर नौजवान लड़के लड़कियां जो कभी पहले के दौर में नहीं दिखते थे वे नजर आते है ।पर आंदोलन के लोग भी यहां आते है और संचालिका अरुणा सिंह खुद अन्ना हजारे के आंदोलन से भी जुडी हुई है ।पर भुनी हुई उस काफी का स्वाद नहीं मिलता क्योकि काफी के बीज पीसने वाली मशीन नहीं है ।जनसत्ता

Thursday, April 18, 2013

ब्राह्मण क्या फिर शंख बजाएगा

ब्राह्मण क्या फिर शंख बजाएगा सविता वर्मा लखनऊ ,१८ अप्रैल । बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आज फिर ब्राह्मण बिरादरी को याद किया और उन्हें लोकसभा चुनाव में करीब एक चौथाई टिकट भी देने जा रही है । पर इस बार क्या सर्वजन और बहुजन फिर साथ खड़ा हो पाएगा यह बड़ा सवाल है । मायावती ने आज यहां फिर सवर्णों को भी आरक्षण देने की वकालत की है। वे आज यहां ब्राह्मण सम्मेलन में बोल रही थी ।पर ब्राह्मण उनके साथ आएगा या नहीं यह बसपा के बड़े नेताओं को भी साफ़ नहीं है ।पिछले विधान सभा चुनाव में बसपा ने अस्सी ब्राह्मणों को टिकट दिया था जिसमे सिर्फ दस जीत पाए यानी सत्तर हार गए ।यह ब्राह्मण या सव्जन के साथ बहुजन के संबंधों को उजागर करने वाला तथ्य है । वर्ष २००७ के विधान सभा चुनाव में ब्राह्मणों ने बसपा का साथ दिया तो सूबे में सरकार बदल गई । तब नारा था ' ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी आगे चलता जाएगा ।' यह वह दौर था जब समाजवादी पार्टी के बाहुबलियों के आतंक के खिलाफ मध्य वर्ग खासकर अगडी जातियों ने सपा के खिलाफ एकजुट होकर वोट दिया था क्योकि मायावती का नारा था ' चढ गुंडों की छाती पर मुहर लागों हाथी पर ।' इस नारे ने जो माहौल बनाया उससे मायावती अपने बूते बहुमत से सत्ता में आई ।पर सत्ता में आने के बाद उनका रास्ता भी अराजकता कि तरफ जाने लगा । जिन ब्राह्मणों ने बसपा को वोट दिया उसका प्रतिनिधित्व ऐसे लोगों के हाथों में चला गया जो नीचे से राजनीति में नहीं आए बल्कि ऊपर से थोपे गए और राजनैतिक संस्कृति से कटे हुए भी थे । मशहूर वकील सतीश मिश्र भी इसका ही उदाहरण माने जाएंगे जिन्हें मीडिया और मायावती दोनों ने पार्टी का ब्राह्मण चेहरा बना दिया । जबकि ब्राह्मणों ने किसी का चेहरा देख कर नहीं बल्कि मुलायम सरकार को हटाने की प्रतिक्रिया में मायावती को वोट दिया था । यह ग़लतफ़हमी बीते विधान सभा चुनाव में साफ़ हो गई जब बसपा के एक से एक दिग्गज ब्राह्मण उम्मीदवार हार गए। नकुल दुबे,राकेशधर त्रिपाठी ,रंगनाथ मिश्र से लेकर अनंत कुमार मिश्र की पत्नी तक इसमे शामिल है । अस्सी टिकट देने के बावजूद जीत कर आने वालों कि संख्या इसकी चौथाई भी नहीं पहुँच पाई । यह सर्वजन की वह हकीकत है जिसे समझना होगा । इसके बाद तो प्रमोशन में आरक्षण की समर्थक बसपा के खिलाफ अगडी जातियां खड़ी हो चुकी है तो नतीजा समझा जा सकता है ।पर असली वजह जनाधार विहीन नेताओं को आगे बढ़ाना रहा जिन्होंने अपने हित परिवार के हित के आगे कुछ सोचा नहीं ।इससे आम ब्राह्मण मतदाता नाराज हुआ ।दूसरे जिस कानून व्यवस्था के नाम पर सरकार सत्ता में आई वह कानून व्यवस्था बाद में और बिगड गई । एक इंजीनियर वसूली के चक्कर मे पीट पीट कर मारा गया तो दिन दहाड़े सीएमओ कि हत्या कर दी गई ।शीलू से सोनम तक के नाम उसी दौर में कानून व्यवस्था पर ही टिपण्णी कर रहे थे ।ऐसे में सरकार के खिलाफ उन्ही ब्राह्मणों ने फिर वित् दिया जो उन्हें सत्ता में लाए थे । यह वोट किसी सभा सम्मलेन से न तो जुटा था और न आगे जुटेगा ।इसके लिए बसपा को फिर से नई रणनीति पर विचार करना होगा तभी उनके राज में अपमानित सर्वजन दोबारा वापस आने पर सोच सकता है ।जनादेश

Wednesday, April 10, 2013

इन सफ़ेद फूलों की सादगी

इन सफ़ेद फूलों की सादगी अंबरीश कुमार सुबह से बगीचे में हूँ । बगीचा अब अपने पास एक ही जगह है वह भी पहाड़ पर जो करीब दो नाली का है । जिसे गज में नापने चाहे तो पांच सौ वर्ग गज के बराबर होता है जिसमे दो कमरे का ड्यूप्लेक्स '' भी शामिल है । यह फल और फूलों से घिरा हुआ है । कल से इस बगीचे में कई बार टहल चूका हूँ । मौसम ठंढा है और अपने साथी राजू जैकेट शाल और टोपी में बंधे हुए है ।फूलों के पौधों पर तो कम फूल है पर फलों के पेड़ फूलों से लद गए है । सेब के पेड़ों पर सफ़ेद फूलों के गुच्चे भरे हुए है और स्थानीयभाषा में कहें तो फल की सेटिंग होने लगी है । इस साल हालैंड की विशेष प्रजाति के उन सेब पर भी फूल आ गए है जिन्हें पिछले साल अपन ने लगवाया था । इसे देख कर बहुत ख़ुशी हो रही है । बरसों पहले गाँव में दशहरी आम के साथ अमरुद और कटहल अदि का पेड़ लगाया था जिसका फल कभी नहीं खा पाया पर है बहुत फल आता है । पर अबकी अपना लगाया फल और वह भी सेब का सामने फूलों से लदा तैयार था । जब लगाया था तो इसे इसे अपने उन करीबी लोगों के नाम समर्पित किया था जो अचानक छोड़ कर चले गए । सबसे पहले मम्मी गई । उसके बाद बड़ा धक्का प्रभाष जी के जाने का लगा और अंत में साथी आलोक तोमर जो यही पर रुकते थे और इस बगीचे में सिर्फ सिगरेट पीने आते और देर तक सामने के देवदार को देखते । सेब का पेड़ आलोक को बहुत पसंद था । पिछले साल उनकी याद में एक निजी आयोजन किया था । अबकी एक प्रदर्शनी करना चाह रहा हूँ पर्यावरण को लेकर ।महादेवी सृजन पीठ में जो महादेवी जी का घर है । महादेवी वर्मा के इस घर के भी पिचहत्तर साल पूरे हो गए है । कुछ मित्र लोग आना चाहते है अपनी व्यवस्था के साथ जिनके साथ एक दो शाम गुजरेगी । चंचल एक पेंटिंग भेज रहे है जो फ़िलहाल अभी पहुंची नहीं है । सोनू ने सौ साल से करीब दो साल पीछे चल रहे रस्तोगी साहब और उनकी पत्नी की बहुत खुबसूरत फोटो थी जो कल शाम हम सब जब देने गए तो जर्मन टेक्नीकल विश्विद्यालय में हिंदी पढ़ाने वाली अंजना सिंह और उनके जर्मन छात्र छात्राए भी साथ थी । फिर रस्ते भर सेब के सफ़ेद फूलों के बीच से गुजरे । हालाँकि आम के बौर की तरह इनमे कोई मादक खुशबू नहीं होती ।पर सेब के फूल की सादगी आपका ध्यान जरुर खींचती है । जर्मनी की मारियों ने एक पक्षी के बारे में पूछा जिसकी आवाज लगातार आती रहती है और पहाड़ में गूंजती है । मैंने बताया यह पहाड़ की कोयल है जिसकी आवाज मैदान के कोयल से ज्यादा तेज होती है ।शाम तक बीन्स ,धनिया ,भिंडी और मूली के बीज क्यारियों में डलवाता रहा । सविता ने एक तुलसी ,दो पौधे कर्निएशन और एक आर्चिड भेजा था जो कुछ ही दिन में लखनऊ की गर्मी में झुलस जाता । इस सबको क्यारियों में लगवाने के बाद जिम्मेदारी से मुक्त था ।घोटू नाम की कुतिया जो करीब बारह साल से साथ थी उसे कुछ महीने पहले बाघ ले जा चूका था और अपना टाइगर उस सदमे के बाद से घर छोड़ रामगढ बाजार की पुलिस चौकी में रहने लगा है । बाजार में मिला तो कुछ देर साथ भी रहा ।अब परिवार के साथ जाने पर ही वह घर लौटेगा । मौसम ख़राब होने लगा है और हम लौटने की तैयारी कर रहे है ताकि बर्ष से पहले पहाड़ से नीचे उतर जाए ।

Friday, April 5, 2013

अब कारपोरेट घराने करेंगे खेती

अंबरीश कुमार लखनऊ: अप्रैल । केंद्र सरकार खेती के लिए कारपोरेट घरानों को करीब तीन हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी देने जा रही है । जिससे बड़े कारपोरेट दलहन तिलहन और आलू से लेकर केला तक उगाएंगे । यह कारपोरेट घराने उत्तर प्रदेश ,राजस्थान ,मध्य प्रदेश से लेकर गुजरात छतीसगढ़ और पंजाब जैसे कई राज्यों में अब खेती कराएंगे । एक तरफ सरकार की बेरुखी से जहां हजारों किसान ख़ुदकुशी कर रहे कारपोरेट घरानों को खेती की जिम्मेदारी देना हैरान करने वाला है । यह टिपण्णी किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष डा सुनीलम की थी जो अब इस मुद्दे को लेकर कई किसान संगठनों के साथ उठाने जा रहे है । सुनीलम ने जनसत्ता से कहा -. किसान संघर्ष समिति के साथ अखिल हिन्द अग्रगामी किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राघवशरण शर्मा ने इस मुद्दे पर व्यापक ढंग से विरोध करने का फैसला किया है ।उत्तर प्रदेश में किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने इसका पुरजोर विरोध करने का एलान किया है । किसान नेताओं ने कहा है कि हाल ही राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत दस लाख किसानों को लेकर तैयार की गई कम्पनियों की तरफ से पेश सात हजार करोड़ रुपए की योजना केन्द्र सरकार ने स्वीकृत की है, जिसमें 2900 करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में देने का प्रावधान है। सुनीलम् ने बताया कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी से समग्र कृषि विकास (पीपीपीआईएडी) के तहत तैयार की गई इस योजना में 35 प्रस्ताव शामिल है। आईटीसी, गोदरेज एग्रोवर्ट, अडानी, मैरिको, नेसले, टाटा केमिकल्स, श्रीराम, नेशनल स्पाट एक्सचेंज लिमिटेड ., एनएसएल, काटन कार्पो, एनएसएल शुगर्स, एवं एनएसएल टेक्सटाईल्स, नुजिवीदु सीड्स, एक्सेस लाइवलीहुड कन्सल्टिंग प्रालि., भूषण एग्रो, एफआरटी एग्री वेंचर्स, ग्रामको इंफ्राटेक तथा निड ग्रीन्स कम्पनियां शामिल हैं। ये परियोजनाएं 17 राज्यों की 12 लाख हेक्टेयर भूमि पर संचालित होंगी। इनको कार्यान्वित करने के लिए बिहार, आंध्र, तमिलनाडु, राजस्थान, मध् यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बंगाल, मिजोरम, गुजरात, ओड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और झारखण्ड राज्यों के 11 लाख किसानों की भूमि चयनित की गई है।उत्तर प्रदेश में टाटा केमिकल्स से लेकर आईटीसी बड़े पैमाने पर इस तरह की खेती करेंगी और किसानो से मटर चना से लेकर सरसों तक की खेती कराएंगी । किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार ने एक तरफ खेती को घाटे का सौदा बना दिया जिससे कर्ज के बोझ तले किसान आत्महत्या के लिए विवश हो रहा है, दूसरी ओर सरकार किसानों को सब्सिडी बढ़ाने की बजाय उसे खत्म करने पर आमादा है। अब कारपोरेट को बड़ी सब्सिडी देकर सरकार ने किसान संगठनों के इस आरोप को प्रमाणित कर दिया है कि केन्द्र सरकार किसान से भूमि हथियाकर कार्पोरेट को सौंपने की नीयत से कार्य कर रही है। किसान नेताओं ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा कांग्रेस और भाजपा से जुड़े किसान संगठनों से खेती के कार्पोरेटाईजेशन पर सरकार और संगठन की नीति स्पष्ट करने की मांग की है। विशेषतौर पर इस संदर्भ में कि खेती राज्य का विषय है तथा राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार के किसी भी फैसले पर अमल करने या न करने का अधिकार प्राप्त है।जनसत्ता

Thursday, April 4, 2013

उतर प्रदेश में क्या समाजवादी कैडर में बदल गई है पुलिस !

अंबरीश कुमार लखनऊ: 4 अप्रैल । उत्तर प्रदेश में पुलिस क्या समाजवादी कैडर में बदल गई है ,यह सवाल विपक्ष का है । यही वजह है कि कानून व्यवस्था की बिगडती हालत को सुधारना मुश्किल होता जा रहा है । वैसे भी पुलिस के तठस्थ अफसरों का मानना है कि उतर प्रदेश में पिछले कुछ सालों में तीन तरह की पुलिस काम कर रही है जिसे समाजवादी पुलिस ,बहुजनी पुलिस और सामान्य पुलिस के रूप में जाना जाता रहा है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विधान सभा में कह चुके है कि बसपा के राज में पुलिस सत्तारूढ़ दल के काडर के रूप में काम करती रही है इसलिए जब एक दल की सरकार पर यह आरोप चस्पां हो सकता है तो फिर सत्ता बदलने पर दूसरा दल भी अगर पुलिस को काडर में बदल दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद बहुजनी पुलिस का शिकार हो चुके है इसलिए उनकी बात गलत भी नहीं है । पुलिस ने मायावती सरकार के समय जिस तरह उन्हें गिरफ्तार किया था वह लखनऊ के लोगों को याद है । वह एक घटना नहीं थी बल्कि कई घटनाएँ ऐसी हुई जिससे पुलिस का बर्बर चेहरा सामने आया था । चाहे विधान सभा पर छात्राओं को गिराकर बेदर्दी से पीटना हो या सपा के युवा नेता का सर बूट से कुचलना हो । अब फिर हालत बिगड़ रही है और विपक्ष फ़ौरन आंकड़े पेश कर बताने लगता है कानपूर के बाइस थानों के थानेदार यादव है तो गोंडा से लेकर गाजियाबाद तक में ज्यादातर थानों के थानेदार सत्तारूढ़ दल की बिरादरी के है । हालाँकि जाति से ही पुलिस का चरित्र बदल जाता हो यह बात गले नहीं उतरती । लखनऊ में एक महिला थानेदार है शिवा शुक्ल जो अपने कामकाज के नए कीर्तमान कायम कर रही है और पुलिसिया हथकंडों को लेकर उनकी शिकायत लखनऊ ही नहीं दिल्ली के आला अफसरों तक पहुँच चुकी है पर कोई बदलाव नहीं आया है । पर फिर भी विपक्ष के निशाने पर एक खास जाति के ही अफसर निशाने पर होते है । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आज इलाहाबाद जनपद में पुलिसकर्मियों के घर में घुस कर महिलाओं के साथ की गई बदसलूकी और कई महिलाओं को घायल करने की घटना को राज्य सरकार के माथे पर कलंक का निशान बताते हुए इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना की है । भाकपा ने इस घटना के सभी दोषियों को फौरन गिरफ्तार करने की मांग की है । पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि प्रदेश में महिलाओं के साथ दुराचार,उनकी हत्याएं और उत्पीडन की वारदातें थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं । भाकपा का मानना है कि इसकी मुख्य वजह पुलिस-प्रशासन का राजनीतिकरण और उसका एकपक्षीय हो जाना है । प्रदेश सरकार ने ऊपर से नीचे तक हर स्तर पर बड़ी तादाद में एक ही पक्ष के लोगों को तैनाती की नीति अपना रखी है. दलित, कमजोर वर्गों तथा अन्य तबकों से आने वाले अधिकारियों-कर्मचारयों को पुलिस एवं प्रशासन की मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया है । डा गिरीश का इशारा सभी समझ सकते है और इसे समझने के लिए किसी खास योग्यता की जरुरत भी नहीं है । दूसरी तरफ भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक खुलकर कहते है कि जब एक जाति वाले पुलिस पर हावी हो जाएंगे तो संतुलन बिगड़ेगा ही । खुद मुख्यमंत्री अगर सभी जिलों के थानेदारों की सूची देख लें तो उन्हें यह असंतुलन नजर आ जाएगा । दरअसल समाजवादी पार्टी के पहले की सरकार और इस सरकार में काफी फर्क आया है और जिस तरह पिछली सरकारों में जातीय समीकरण का ध्यान रखा जाता था वैसा इस सर्कार खासकर अखिलेश यादव से अपेक्षित नहीं है । इसलिए हैरानी जरुर होती है । पार्टी वोट की राजनीति से चलती है इसलिए उसकी मज़बूरी सभी समझते है पर इसका संतुलन जब बिगड़ता है तो उस पार्टी को खामियाजा भी भुगतना पड़ता है जिसे अन्य जातियों का भी वोट चाहिए होता है । बसपा का सत्ता से बाहर जाना इसका उदाहरण जिसे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समझना चाहिए ।

Monday, March 25, 2013

अख़बार ,सुप्रीम कोर्ट और मारकंडे काटजू की ख़ामोशी

जस्टिस मारकंडे काटजू हर सवाल पर बोलते है .वे सरकार पर बोलते है तो नेता से लेकर अभिनेता तक पर बोलते है .पर प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष के रूप में वे मीडिया के कई महत्वपूर्ण सवाल पर खामोश है जो उनकी ही बिरादरी से जुड़ा है .मजीठिया वेज बोर्ड मामला सुप्रीम कोर्ट में करीब एक साल से जिस तरह से लटका हुआ है और आगे भी उसके लटके रहने की आशंका है उससे सुप्रीम कोर्ट और कई बड़े वकीलों को लेकर तरह तरह की अटकले लगाई जा रही है .अख़बार मालिकों का पक्ष देश के जाने माने वकील लाखों रुपये फीस लेकर रखते है और प्रयास यह हो रहा है कि लगातार सुनवाई आगे बढती जाए .कभी बेंच बदल जाए तो कभी रिटायर होने वाले जस्टिस की बेंच में यह मामला चला जाए ताकि उसके रिटायर होने के बाद फिर नई बेंच गठित हो और सुनवाई आगे बढ़ जाए .यह तौर तरीके निचली अदालत में खूब चलते है .पर सुप्रीम कोर्ट में यह अख़बारों से जुड़े पत्रकार और गैर पत्रकारों के सवाल पर हो रहा है जो शर्मनाक है .अख़बार मालिकों का ऐसा दबाव सुप्रीम कोर्ट में पहले नहीं दिखा .पर इस सवाल को जस्टिस मारकंडे काटजू नहीं उठाते है .यह श्रमजीवी पत्रकारों का मामला है और वे प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष भी है .वे कभी यह सवाल नहीं उठाते कि न्याय में यह देरी जो उनके साथ के लोग कर रहे है वे किसका साथ दे रहे है .वे कभी यह सवाल नहीं उठाते कि अख़बार में काम करने वालों को संसथान कोई न्यूनतम वेतन दे रहा है या नहीं .पर वे न्यूनतम योग्यता का सवाल जरुर उठा रहे है .वे मीडिया संस्थानों ठेका प्रणाली पर सवाल नहीं उठाते .वे यह भी चिंता नहीं जताते कि जिलों में काम करने वाले संवादाताओं को एक मजदूर के बराबर मजदूरी मिलेगी या वह खुद कमाओ खुद खाओं के सिद्धांत पर चलता रहेगा .यह सारे सवाल मीडिया से जुड़े है .काटजू ने हाल में ही कहा था कि वे जब बोलते है तो देश सुनता है .अब अपना विनम्र अनुरोध है कि वे मीडिया के सवाल पर बोले .सुप्रीम कोर्ट में जो हो रहा है उस पर मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखे .वे श्रमजीवी पत्रकारों की सामाजिक आर्थिक सुरक्षा पर सवाल उठाए .जो मीडिया संसथान करोड़ों का विज्ञापन ले सकते है वे अपने पत्रकारों को कोई न्यूनतम वेतन और सुविधाए दे इस इस विज्ञापन की शर्त पर सुनिश्चित किया जा सकता है यह हम भी जानते है और अख़बार मालिक और सरकार भी .अब काटजू कुछ बोले तो मीडिया का कुछ तो भला हो .दिल्ली के अखबारी ट्रेड यूनियन नेताओं से हुई बातचीत के बाद इसे लिख रहा हूँ . अंबरीश कुमार

Tuesday, March 19, 2013

आलोक तोमर

आज को गए दो साल पूरे हो गए .संभवतः 1988 के मई में अपनी पहली मुलाक़ात एक्सप्रेस बिल्डिंग में हुई थी ..जबरदस्त गर्मी थी और रात में भी लू चल रही थी .तब विजयप्रताप के आस्था कुटीर में रूका था जो समाजवादी साथियों का अड्डा था .जनसत्ता ज्वाइन करने के बाद उन्हें लड़ते, भिड़ते और लिखते देखा .उनकी खबर का संपादन भी किया जो बहुत मुश्किल होता था क्योकि कही से भी कोई शब्द हटाने का अर्थ पूरी स्टोरी का संतुलन बिगाड़ना होता .कई बार इसे लेकर नाराजगी भी जताई .एक बार आलोक ने कहा ,मै सिर्फ एक वाक्य में पूरी स्टोरी लिख दूंगा और उसका संपादन आसान नहीं होगा .वे जनसत्ता में प्रयोग के दिन थे और प्रभाष जोशी के नेतृत्व में हम सभी सातवें आसमान पर रहते थे .रामनाथ गोयनका वही एक्सप्रेस बिल्डिंग में बैठते थे और एक बार बिजली चली गई तो मैंने उन्हें कमरे से बाहर आकर धोती सँभालते गुस्से में कोहली (जीएम ) को गाली देते हुए देखा .तब वे काली फियट खुद चला कर आते थे .बाद में आलोक सुप्रिया की शादी में आए और बहुत देर तक रहे .परसों ही सुप्रिया भायुक होकर कह रही थी कि जिन लोगों को बीस के कार्यक्रम के लिए बुला रही हूँ उनमे कई तो ऐसे लोग है जिन्होंने मुझे बीस बाइस साल की उम्र से आलोक के साथ देखा है मसलन बनवारी ,कुमार आनंद आदि .आलोक कुछ भी लिख सकते थे और किसी पर भी .एक लेख देखे उनका लिखा हुआ .

Monday, March 18, 2013

कांग्रेस के गले की हड्डी न बन जाएं बेनी बाबू

अंबरीश कुमार लखनऊ: मार्च । खांटी समाजवादी का बडबोलापन कांग्रेस के गले की हड्डी बनता नजर आ रहा है । विधान सभा चुनाव में बेनी बाबू ने इसी तरह की टिपण्णी की और कांग्रेस को लगा कि बेनी के चलते अवध क्षेत्र में कुर्मी एकजुट हो जाएंगे और पार्टी को बहुत फायदा होगा क्योकि टिकट में भी उनकी चली थी । पर नतीजा आया तो कांग्रेस साफ़ थी और बेनी बाबू अपने पुत्र की जमानत तक नहीं बचा पाए थे । अब बेनी ने मुसलमानों को लेकर मुलायम के खिलाफ जो टिपण्णी की है उसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है । मुसलमानों के खिलाफ यही सबसे बड़ा हमला होता है कि वे आतंकवादियों का साथ देते है । आजमगढ़ के संजरपुर को तो आतंकवादियों की नर्सरी तक कहा जा चुका है । इसके बाद आजमगढ़ में कांग्रेस ने नेताओं ने विधान सभा चुनाव में जिस तरह के बयान दिए उससे मुसलमान आहत हुए और कांग्रेस को पूर्वांचल में इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा । अब जब पूर्वांचल में अल्पसंख्यक समुदाय आशंकित है तब बेनी की यह टिपण्णी हिंदू कट्टरपंथी ताकतों को ताकत देने वाली साबित हो रही है । बेनी के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि सिर्फ देवबंदी मुसलमान उनकी टिपण्णी से नाराज है और बरेलवी और शिया समुदाय खुश । क्योकि अखिलेश सरकार में इन दोनों की हिस्सेदारी बहुत कम है । पर यह तर्क अल्पसंख्यक समुदाय के गले के नीचे नहीं उतर प़ा रहा । मुसलमानों को आतंकवादियों का शुभचिंतक बताने का प्रचार राष्ट्रीय फलक पर हो रहा है और मुलायम सिंह के बहाने अगर बेनी ने भी वही काम किया है तो उसकी राजनीति को भी समझना होगा । अवध क्षेत्र में मुस्लिम राजनीति पर नजर रखने वाले रिजवान ने कहा -बेनी गोंडा से चुनाव लड़ेंगे और वह मुसलमानों का बरेलवी समुदाय है जिनका देवबंदियों से छतीस का आंकड़ा है इसलिए वे इस टिपण्णी से बेनी के साथ आ गए है । पर यह तर्क समूचे प्रदेश और देश की राजनीति के लिहाज से अलग नजर आ रहा है । आज उत्तर प्रदेश विधान सभा के सामने मुस्लिम नौजवानों ने बेनी का पुतला फूंका तो उसमे सभी शामिल थे । कांग्रेस के एक कार्यकर्त्ता परवेज ने कहा -जब राहुल गाँधी मुसलमानों को कांग्रेस के पक्ष में लेन का प्रयास कर रहे हो और प्रदेश में आतंकवाद के नाम गिरफ्तार निर्दोष नौजवानों को रिहा करने की मांग हो रही हो ऐसे में बेनी की यह टिपण्णी मुसलमानों को आहत करने वाली है और वे तो मुलायम सिंह को और मजबूत कर रहे है । ऐसी ही टिपण्णी से बेनी विधान सभा चुनाव में पार्टी का भठ्ठा बैठा चुके है । इस बीच समाजवादी पार्टी ने आज कहा कि कांग्रेस का एक केन्द्रीय मंत्री श्री मुलायम सिंह यादव पर बेहूदा आरोप लगाता है कि आतंकवादियों से उनके रिश्ते हैं। कांग्रेस हाईकमान ने झूठे और अनर्गल बयानबाजी करनेवाले मंत्री से अभी तक इस्तीफा नहीं लिया गया है। यह एक गम्भीर मसला है जिस पर कांग्रेस नेतृत्व की तीन दिनों से चुप्पी जताती है कि मुस्लिमों को वह आतंकवादी ही मानती है। कांग्रेस के इस राजनीतिक मर्यादा से गिरे चरित्र से धर्मनिरपेक्षता कमजोर पड़ती है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि कांग्रेस का काम राजनीति को प्रदूषित करना और खासकर मुस्लिमो को गुमराह करना रह गया है। आजादी के बाद कांग्रेस ने मुस्लिमो को विभाजन का दोषी ठहराकर और उनका भयादोहन कर वोट हासिल किए। जब मुस्लिमों के सामने सच्चाई आई तो वे कांग्रेस से छिटककर दूर हो गए। कांग्रेस ने तब उनकी बाबरी मस्जिद के ध्वंस में मदद की, मंदिर का शिलान्यास कराया। अब जब कांग्रेस का सत्ता जाने की बेचैनी है तो फिर मुस्लिमो के लिए उसके नेता घड़ियाली आंसू बहाने लगे हैं।जनसत्ता फोटो -विधान सभा के सामने बेनी का पुतला फूंकते मुस्लिम नौजवान

Friday, March 15, 2013

पोस्ट कार्ड ,अंतरदेशीय और लिफाफा

पोस्ट कार्ड ,अंतरदेशीय और लिफाफा अंबरीश कुमार कल गोरखपुर से आई पुरानी फ़ाइल देखने बैठा क्योकि पापा के घर का बिजली का बिल जमा करने के लिए उनका कंजूमर नंबर के साथ मीटर नंबर आदि चाहिए था तो अचानक एक फ़ाइल पर निगाह गई जो पत्रों से भरी थी । बंगलूर के पते के कई पोस्ट कार्ड ,अंतर देशीय और लिफाफे । घर के मम्मी के ढेर सारे पत्र के अलावा अन्नू का पत्र ,ज्यादा से संवाद था ही नहीं । पर मित्रों और संगठन के साथी कार्यकर्ताओं के पत्र देख कर मन भर गया । मित्रों में जो अब प्रतिष्ठित पत्रकार बन चुके है आलोक जोशी ,वासिंद्र मिश्र ,रामेन्द्र जनवार ,राजेंद्र तिवारी ,आशुतोष मिश्र ,मानुषी की संपादक मधु किश्वर ,तब नवभारत टाइम्स की डा तृप्ति ,चौधरी चरण सिंह की नातिन और संगठन की सहयोगी पत्रकार विनीता सोलंकी ,रश्मि आदि शामिल है । कुछ सर्कुलर भी जो मेरे नाम के अलावा राजेंद्र ,शाहीन ,नुपुर जुत्सी और देवेन्द्र उपाध्याय ( जो अब इलाहबाद हाई कोर्ट के जज है )की तरफ से भेजे गए थे । रामेन्द्र के चुनाव में मैंने जो पम्फलेट लिखा वह भी मिला जिसे बाद में अमृत प्रभात ने प्रकाशित किया था । बिहार में बोध गया आन्दोलन के विजय का पोस्ट कार्ड भी मिला ।हत्यारी संस्कृति यानी गर्भ में बच्चियों की हत्या के खिलाफ अपने अभियान का जो सर्कुलर मिला उसपर देवेन्द्र उपाध्याय ,शाहीन ,शिप्रा दीक्षित ,संगीता अग्रवाल ,राजश्री पन्त ,मोनिका बोस ,लीना गुप्ता ,प्रकृति श्रीवास्तव और मीनाक्षी श्रीवास्तव का नाम है ।इनमे आखि के चार नाम जिनके है उनका चेहरा ध्यान नहीं आ रहा बाकि तो साथ काम करने वाली छात्राए थी जिनमे शिप्रा फेस बुक पर है ।हर चिठ्ठी पर पता 'अंबरीश कुमार ,मनीष टावर ,जेसी रोड ,बंगलूर ,560002 ' लिखा था । सबसे रोचक राजेंद्र के पत्र की दो लाइन लगी जो अपने संगठन से जुडी थी देखने वाली है -युवा की कटिंग मसूद भेज रहा है ।वैसे युवा के वे संस्थापक सदस्य जो एलयूटिसी के नहीं है बिलकुल निष्क्रिय है ।बाद में पता चला है कि जब एक बार युवा की मीटिंग टैगोर के सामने हुई थी तब सुमिता और संदीप कैंटीन में चाय पी रहे थे ।एनी लोगों ने भी कोई उत्साह नहीं दिखाया ।अब अगर युवा को कंटीन्यू रखना है तो सारी ताकत एलयूटीसी को ही देनी होगी । क्रन्तिकारी अभिवादन के साथ आपका ,राजेंद्र तिवारी ,55 तिलक हाल लखनऊ विश्विद्यालय ।यह एक बानगी है उस दौर के लखनऊ की जब मुझे सारी गतिविधियों को छोड़ बंगलूर में एक अख़बार संभालना पड़ा । शायद जितने पत्र उस दौर में अपने पास आए और अपन ने लिखे उतने फिर कभी नहीं लिखे गए ।पात्रता भी काफी संख्या में है ,मन करता है उसका संकलन प्रकाशित करा दूँ पर इसपर राय मशविरा भी होगा । बंगलूर के उन दिनों के बारे में अगली बार

Wednesday, March 13, 2013

अस्सी के दशक में इंडियन एक्सप्रेस

अस्सी के दशक में इंडियन एक्सप्रेस दो दिन से दिल्ली में था अभी लखनऊ पहुंचा हूँ .वर्ल्ड सोशल फोरम की बैठक के अलावा गांधीवादियों की एक बैठक में शरीक हुआ .कल रात प्रेस क्लब में पुराने मित्रों से भी मिलना हुआ। सारा दिन एक्सप्रेस की लाइब्रेरी में गुजरा अस्सी के दशक में जो लिखा उसमे बहुत कुछ मिला तो काफी कुछ छूट भी गिया .वर्ष 1991 तक पहुँच चूका हूँ और अगली बार फिर चार पांच साल का लिखा देख कर ले आऊंगा .पर अस्सी के अंतिम दौर और नब्बे की शुरुआत में जनसत्ता में जो लिखा गया फिर देख कर इतिहास में लौटा .राजेंद्र माथुर ,रघुवीर सहाय ,शरद जोशी से लेकर नूतन का जाना और राजनैतिक घटनाक्रम पर प्रभाष जोशी का लिखा फिर पढ़ा .कुछ हैडिंग देखे -प्रभाष जोशी ने दलबदल पर लिखा ' चूहे के हाथ चिंदी है ' फिर एक हैडिंग -चौबीस कहारों की पालकी ,जय कन्हैया लाल की ' और एक की हेडिंग थी -नंगे खड़े बाजार में .'उस दौर में जनसत्ता में इंडियन एक्सप्रेस के जिन लोगों की खबरे छपी उनमे अरुण शोरी ,नीरजा चौधरी ,पीएस सूर्यनारायण ,पुष्पसराफ ,अश्वनी शरीन ,चित्रा सुब्राह्मनियम ,आरती जयरथ देव सागर सिंह आदि प्रमुख थे .मैंने देवीलाल का जो इंटरव्यू लिया वह जनसता के साथ एक्सप्रेस में भी प्रकाशित हुआ था वह अभी नहीं मिला है . इसी बीच विजयप्रताप का फोन आया तो जीपीएफ पहुंचा . गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन से मुलाकात हुई तो पता चला वे भी रामगढ की रहने वाली है और डाक बंगले के नीचे गाँव घर है .आना जाना लगा रहता है अब वहां भी मुलाकात होगी .बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसर और पुराने मित्र गोगी बिहार आन्दोलन के बड़े नेता रघुपति के साथ वाइएमसीए में दोपहर का खाना खिलने ले गए .खाने के बाद फिर बहादुरशाह जफ़र मार्ग के दफ्तर .अपना स्कैन कैमरा काम नहीं कर रहा था इसलिए फोटो कापी के लिए निशान लगा कर भेजना पड़ा .लाइब्रेरी में सबसे ख़राब हालत जनसत्ता की है .पर अब विवेक गोयनका के पुत्र ने कुछ सुध ली है और पुराने अख़बार को कंप्यूटर में डाला जा रहा है .इस दौरे में कुमार आनंद से लेकर मनोहर नायक से मुलाकात हुई .बहुत पहले मैंने मनोहर के साथ देव आनंद का लम्बा इंटरव्यू लिया था करीब ढाई घंटे बात हुई थी जो लिखा वह अगली बार निकलना है

Friday, March 8, 2013

राजा के लिए लामबंद हुए राजपूत तो आजम का भी मोर्चा खुला

अंबरीश कुमार लखनऊ 9 मार्च ।कुंडा के सीओ जियाउल हक़ की हत्या के मामले में फंसे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैआ के लिए उत्तर प्रदेश के राजपूत विधायक और सांसद लामबंद हो रहे है। कुंडा कांड की सीबीआइ जाँच के एलान के बाद करीब तीन दर्जन राजपूत विधायकों ने राजा भैया के साथ एकजुटता दिखाई है।सूत्रों के मुताबिक इनकी बैठक भी हुई जिसमे अन्य दल के भी विधायक शामिल हुए । भाजपा के एक शीर्ष राजपूत नेता ने भी राज भैया से संपर्क किया । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी में राजा भैया के धुर विरोधी आजम खान के समर्थकों ने भी मोर्चा खोल दिया है । राजा भैया के समर्थकों ने कुंडा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने आजम खान के खिलाफ नारेबाजी की थी तो अलीगढ मुस्लिम विश्विद्यालय में राजा भैया का पुतला फूंक कर हिसाब बराबर किया गया । आजम खान काफी पहले से राजा भैया के खिलाफ रहे है । प्रतापगढ़ के आस्थान के दंगों जिसमे मुस्लिम समुदाय के चालीस से ज्यादा घर जला दिए गए थे ,इस घटना को लेकर आजम खान ने काफी नाराजगी जताई थी । भाकपा माले न्यू डेमोक्रेसी का साफ आरोप है कि आस्थान दंगों में राजा के सहयोग से प्रवीण तोगडि़या व आरएसएस तत्वों ने मुस्लिम नागरिकों पर हमला किया था, कुंडा के सीओ जिया उल हक़ उन दंगों की जांच भी कर रहे थे इसलिए राजा की भूमिका संदिग्ध है । कुंडा में अब यह सब खुल कर सामने आ गया है । यही वजह है कि राजा भैया के लिए राजपूत विधायक लामबंद हो रहे है । यह ध्यान रखना चाहिए कि मुलायम सिंह से जब अमर सिंह अलग हुए तो राजपूत एकजुटता की जगह राजा भैया ने मुलायम का साथ दिया और अमर सिंह अलग थलग पड़ गए थे । पर अब कुंडा में सीओ जिया उल हक़ के साथ यादव भाइयों की हत्या ने सब समीकरण बदल दिए है । अखिलेश यादव ने मामला सीबीआइ को देकर फिलहाल काफी हद तक हालात को काबू में करने का प्रयास किया है पर जातीय संतुलन गड़बड़ा रहा है । हालाँकि राजा भैया हमेशा निर्दलीय रहते है पर सभी पार्टी में उनका अलग आभा मंडल है कुछ जग जाहिर है तो कुछ परदे के पीछे ।वे भाजपा के राज में भी मंत्री रहे तो सपा के राज में भी । उनके बचाव में राजपूत विधायक और सांसद जिसमे कुछ खुद भी बाहुबली है लामबंद हो रहे है ।वैसे उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों की राजनीति भी दिलचस्प रही है और कई तो कभी भी किसी दल के मोहताज नहीं रहे है । दलों के मुखिया इनके कसीदे काढते रहे है । बाहुबली मुख़्तार अंसारी जिनका लोकसभा चुनाव का प्रचार करने वाराणसी गई बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने तब कहा था - ये तो ग़रीबों के मसीहा है । वे फिलहाल किसी दल में नहीं है । इस समस्या का स्थाई समाधान करने के लिए उन्होंने खुद अपना दल बना लिया है । वे दिन में विधान सभा में प्रदेश चलने की कवायद से जुड़े रहते है तो रात को जेल पहुँच जाते है । अतीक अहमद भी फिलहाल स्वतंत्र है जो पंडित जवाहर लाल नेहरु के संसदीय क्षेत्र का भी प्रतिनिधित्व कर चुके है । उनपर बसपा विधायक राजूपाल की हत्या का आरोप है । अमरमणि त्रिपाठी भी जेल में है जिनके बारे में अगस्त 2003 में मुलायम सिंह ने कहा था -इन्होने प्रदेश ही नहीं देश को भी बचा लिया है । ऐसा नहीं कि इस खेल में सिर्फ सपा बसपा का ही वर्चस्व हो ,भाजपा भी पीछे नहीं है । राजा भैया पर जब मायावती ने पोटा लगाया तो राजनाथ सिंह से लेकर विनय कटियार तक ने एलान किया ,अब पोटा पर सोंटा चल्रेगा । अब फिर राज़ा भैया संकट में है तो प्रदेश के ज्यादातर राजपूत विधायक दलगत सीमा से ऊपर उठकर उनके साथ । राजा भैया का कुंडा में जो दबदबा है उसपर राजनैतिक विश्लेषक वीरेन्द्र नाथ भट्ट ने कहा - राजा भैया तो तुलसीदास के उस दोहे को चरितार्थ कर रहे कि भय बीन हो न प्रीत ,वे अपना राजनैतिक और कारोबारी सामराज्य बचाने के लिए वे सब हथकंडे अपनाते है जो कोई सामंत अपनाता रहा है और जो कुछ वहां हुआ वह इसी कार्यक्रम का विस्तार है । हालाँकि सीबीआइ काफी तेजी से काम कर रही है पर कामयाब हो पाएगी यह समय ही बताएगा ।

Thursday, February 28, 2013

यह अखिलेश का दबदबा है

बसपा तीसरे नंबर पर,भाजपा और कांग्रेस की जमानत जब्त अंबरीश कुमार लखनऊ ,1,मार्च ।सत्ता का एक साल पूरा करने से पहले ही पूर्वांचल का पहला उप चुनाव 34000 वोटों से जितवा कर अखिलेश यादव ने राजनैतिक दबदबा दिखा दिया है । इस चुनाव में दोनों राष्ट्रीय विपक्षी दलों भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है ।समाजवादी पार्टी का कोई भी शीर्ष नेता भाटपाररानी विधान सभा क्षेत्र में नहीं गया और आज वह सपा के उम्मीदवार आशुतोष उपाध्याय उर्फ़ बबलू ने चौतीस हजार वोटों से अपनी जीत दर्ज कर सभी दलों को तगड़ा झटका दिया है । यह उत्तर प्रदेश के मौजूदा राजनैतिक हालत को भी दर्शा रहा है जिसमे विपक्ष फिलहाल बहुत दयनीय स्थिति में है । तीसरे नंबर पर रहने वाली बसपा ने मतगड़ना के बाद धांधली का आरोप लगाया है ।सपा के आशुतोष उपाध्याय ने 73100 वोट लेकर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी शुभ कुंवर को 34102 वोटों से हराया । शुभ कुंवर को 38998 वोट मिले जो बसपा का बागी उम्मीदवार था जबकि वास्तविक उम्मीदवार बिंद सिंह कुशवाहा को 24711 वोट मिले । इसके आलावा सभी की जमानत जब्त हो गई । इस चुनाव में कांग्रेस के निर्मल खत्री से लेकर बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य और भाजपा के सूर्य प्रताप शाही की प्रतिस्था दांव पर लगी थी जो ध्वस्त भी हो गई । गौरतलब है भाटपारानी विधान सभा क्षेत्र में उपचुनाव राज्य सरकार में मंत्री श्री कामेश्वर उपाध्याय के निधन के कारण हुआ है। समाजवादी के ब्राह्मण उम्मीदवार को मिले सत्तर हजार से ज्यादा वोट पार्टी के लिए राजनैतिक रूप से बहुत मददगार है जिसके खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था कि पूर्वांचल में स्थिति ख़राब हो चुकी है । पर इतने वोट अलग कहानी कह रहे है और यह समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए भी महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।पूर्वांचल में विरोधी दल दावा कर रहे थे कि इतने दंगे हुए है अखिलेश के राज में कि कोई वोट नहीं देगा और सपा की करारी हार होगी होगी । पर मामला उलट गया । समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि भाटपाररानी विधान सभा क्षेत्र के उपचुनाव के आज घोषित परिणाम से स्पष्ट हो गया है कि जनता को अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी समाजवादी पार्टी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर पूरा भरोसा हे और इस सरकार की लोकप्रियता बराबर बढ़ रही है। मतगणना में समाजवादी पार्टी प्रत्याशी आशुतोष उर्फ बबलू की 34 हजार से ज्यादा वोटों से जीत इस बात पर भी मुहर लगाती है कि समाजवादी पार्टी सरकार के विकास एजेण्डा से जनता संतुष्ट है और बसपा के कुशासन तथा तानाशाही को अभी तक भूली नहीं है। इसीलिए उसने बसपा प्रत्याशी बिन्दा कुशवाहा को तीसरे नम्बर पर ढकेल दिया है। भाजपा की भी बुरी गत बनी है। कांग्रेसी प्रत्याशी को जिस तरह उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने नकारा है उससे यह साफ़ संकेत मिलता है कि केन्द्र सरकार की नीतियों से जनता में घोर असंतोष है। इस बीच बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता ने आज यहाँ आरोप लगाया कि भाटपाररानी (देवरिया) विधान सभा उपचुनाव जीतने के लिये सत्ताधारी सपा द्वारा अपनी गिरती साख के मद्देनजर बड़े पैमाने पर धांधली व सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया गया है।जनसत्ता

Friday, February 22, 2013

अस्सी साल पूरे हुए -केपी सक्सेना

अस्सी साल पूरे हुए -केपी सक्सेना व्यंग्य की दुनिया में लखनऊ के पद्मश्री केपी सक्सेना एक जाना पहचाना और सम्मानित नाम हैं.साथ ही उनकी ख्याति लगान,स्वदेस,जोधा-अकबर और हलचल जैसी चर्चित फिल्मों के संवाद लेखक के रूप में भी है. शोहरत की तमाम बुलंदियों के बावजूद केपी को लखनऊ छोड़ना गवारा नहीं हुआ. शायद इसीलिए आशुतोष गोवारिकर की नई फिल्म की स्क्रिप्ट भी वे अन्य फिल्मों की तरह लखनऊ में रहकर ही लिख रहे हैं. हिमांशु बाजपेयी ने केपी से उनके व्यंग्य और फिल्मी लेखन के अनुभव के बारे में बातचीत की. आदी सदी से ज्यादा समय हो गया आपको समसामयिक घटनाओं में व्यंग्य का पहलू खोजते हुए, क्या इस दौर में भी ये काम उतना ही सहज है जितना जवानी में हुआ करता था ? अस्सी साल पूरे कर लिए हैं मैने उम्र के. अट्ठारह हज़ार प्रकाशित व्यंग्य हैं.इन्ही के चलते जो कुछ मिला है वो सब आप जानते ही हैं.इसलिए अब जवानी की तरह ढेर सारा लिखने का मतलब नहीं बनता.चुनिन्दा तौर पर लिखता हूं, जिस विषय पर लिखना अनिवार्य हो जाए. इसीलिए अब कम ही छपता हूं. सिर्फ हिन्दुस्तान में एक कालम जो मेरी बहन मृणाल पान्डेय के विशेष आगृह पर लिखना शुरू किया था वही नियमित लिखता हूं, लेकिन दिमाग व्यंग्य को आज भी उसी तरह सूंघता, खोजता और सोचता है भले ही मै लिखूं न. तीन घंटे पहले ही जो अखबार आया है उसमें अमर सिंह को तिहाड़ भेजे जाने की हेडलाइन है. पढ़ते ही पढ़ते मै सोच रहा था कि तिहाड़ न हुआ कोई महातीर्थ हो गया. सब इसी ओर प्रस्थान कर रहे हैं. अमां और भी तो जेले हैं मुल्क में...इस तरह दिमाग आज भी उसी तरह वयंग्य कसता है.बस अब लिखता कम हूं. आपके जब लिखना शुरू किया होगा तब तो लखनऊ में कविता,कहानी और उपन्यास का माहौल था, फिर आपने व्यंग्य को ही क्यों चुना ? आपकी बात सही है. व्यंग्य मैने चुना नहीं, ये मेरे गुरू अमृतलाल नागर ने मेरी पीठ पर लाद दिया, उनकी इच्छा को आजतक निभा रहा हूं. उस दौर में लखनऊ में कहानी, उपन्यास और शायरी की ही धूम थी.इन्ही विधाओं में व्यंग्य यत्र-तत्र निहित रहता था. मै भी शुरूआत में उर्दू में अफसाने लिखा करता था. नागर जी ने मुझसे कहा कि केपी क्रिकेट का खिलाड़ी भी शाट मारने से पहले फील्ड को देख लेता है और उधर ही शाट मारता है जिधर फील्डर कम हों. कहानी में फील्डर बहुत ज्यादा हैं, इसमें आगे बढ़ने में ज्यादा साधना करनी पड़ेगी.जबकि व्यंग्य की विधा में अभी भी मैदान खाली है. तुम्हारी नई शैली का लोग स्वागत करेंगे.(उस समय तक हिन्दी व्यंग्य में सिर्फ परसाई जी स्थापित थे, उनकी शैली विशुद्ध व्यंग्य की मारक शैली थी, नागर जी व्यंग्य में हास्य के पक्षधर थे.) इसी के बाद मैने व्यंग्य में कदम रखा. शरद जोशी भी लगभग उसी समय अवतरित हुए. परसाई जी और आपके सोचने में मूल अंतर क्या है ? परसाई जी की शैली तीखी और गहरा काटते हुए चले जाने वाले व्यंग्य की है. मै व्यंग्य में नागर जी की प्रेरणा से आया. नागर जी के व्यंग्य में हास्य घुला हुआ रहता था.वही शैली मेरी भी रही. मतलब तीखी बात हंसी की मिठास के साथ देने की.कई बार इससे चोट भले ही कम लगती हो लेकिन असर देरतक रहता है.शरद जोशी की शैली भी इसी तरह की है. मेरा मानना है कि व्यंग्य एक तरह की तीखी एंटीबायोटिक दवा है जिसे अंदर पहुंचाने के लिए उसे हास्य के स्टार्च कैप्सूल खोल में लपेटना जरूरी होता है. वरना कई बार दवा अंदर नहीं जा पाती.मै व्यंग्य में हास्य मिलाकर पेश करने का हिमायती हूं. व्यंग्य लिखते-२ फिल्मी संवाद कैसे लिखने लगे ? परेश रावल की वजह से. उन्होने ही आमिर खान को लगान के लेखन के लिए मेरा नाम सुझाया था. परेश मेरे बहुत पुराने दोस्त हैं.असल में आमिर को फिल्म में अवधी जुबान, अंग्रेजी मिली हिन्दी और बादशाही जुबान तीनों में संवाद चाहिए थे. परेश रावल ने आमिर खान को कहा कि इसके लिए एकदम फिट आदमी को जानता हूं लेकिन वो फिल्म का आदमी नहीं हैं. पहली बार लिखेगा. आमिर ने कहा कि मेरा भी पहला प्रोडक्शन है. फिर आमिर खान ने मुझे फोन किया. पहले तो मुझे लगा कि कोई मुझसे मजाक कर रहा है. मैने उनसे पूछा भी कि स्थापित फिल्मी लेखकों के होते हुए भी मेरे जैसे अखबारों, मैगजीनों में लिखने वाले को क्यो याद किया. आमिर ने कहा क्योंकि इस फिल्म को आपकी जरूरत है. आपने चार फिल्मों के संवाद लिखे, सबसे ज्यादा संतुष्टि किस फिल्म से मिली ? जोधा-अकबर से. क्योंकि एक तो इसमें मुझे दौरे-मुगलिया के असली ऐतिहासिक पात्रों के संवाद लिखने थे,जिनमें अकबर,जोधाबाई,मान सिंह,टोडरमल जैसी बड़ी ऐतिहासिक शख्सियतें थी.दूसरी और ज्यादा अहम बात ये है कि इसमें मुझे मेरी उर्दू को बाहर लाने का मौका मिला था.मुझे ज्यादा खुशी इसी बात की थी.क्योंकि मूलत: मै उर्दू का ही आदमी हूं. मैने लेखन की शुरूआत इसी से की थी. इस फिल्म में मुझे मेरे हिन्दी उर्दू के भाषाई हुनर को पूरी तरह दिखाने का मौका मिला. आगे कौन सी फिल्मों के लिए लिख रहे हैं ? ज्यादा नहीं. आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक विषय पर एक फिल्म बनाने वाले हैं. जिसके संवाद लिखने हैं इसके अलावा उन्ही की एक कामेडी फिल्म भी लिखनी है. जनादेश न्यूज़ नेटवर्क