Monday, January 28, 2013

चुनाव के लिए पार्टी को चाक चौबंद करने में जुटे मुलायम

अंबरीश कुमार लखनऊ , 28 जनवरी। लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव अपनी पार्टी को पूरी तरह चाक चौबंद करने की कवायद में जुट गए । बीस साल की समाजवादी पार्टी इस समय सबसे ज्यादा राजनैतिक ताकत के साथ राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाने की कवायद में जुटी है ।यह पिछले कुछ समय से साफ़ दिख रहा है । मुलायम सिंह ज्यादा से ज्यादा समय राज्य मुख्यालय पर दे तहे है जहाँ वे पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से लगातार संवाद भी कर रहे है । फिलहाल वे एक तरफ जहाँ पार्टी कार्यकर्ताओं को पुरानी छवि से उबरने की नसीहत दे रहे है वही यह भी कह रहे है कि कार्यकर्त्ता जमीनी स्तर पर चुनावी वादों के पूरे होने की जानकारी पहुंचाएं । पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मुलायम सिंह संगठन और सरकार पर नजर रखे हुए है और जो भी जानकारी उनतक पहुंचती है उसके आधार पर वे अपनी बात रखते है । उत्तर प्रदेश से लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें अगर समाजवादी पार्टी जीती तो केंद्र की भी बड़ी भूमिका उसी की होगी । पर इसके लिए पार्टी को मध्य वर्गीय लोगों का समर्थन भी चाहिए जो विधान सभा चुनाव में मिल चुका है पर प्रशासनिक लापरवाही के चलते कई जगह मुसलिम समाज पर हुए हमलों से बीच में सरकार की छवि भी ख़राब हो चुकी है । वैसे भी समाजवादी पार्टी की परंपरागत छवि काफी अराजक रही है और पिछली सरकार को इसका खामियाजा भी उठाना पड़ा । हालाँकि इस बार मुलायम काफी सतर्क है और बार बार पार्टी कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे है । आज फिर मुलायम सिंह ने कार्यकर्ताओं को अनुशासन में रहने की नसीहत और जन-जन तक समाजवादी पार्टी सरकार की उपलब्धियों को पहुंचाकर लोकसभा के सन् 2014 में होने वाले चुनावों में बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी प्रत्याशियों को जिताने का आव्हान किया। उन्होने उन्हें हमेशा सत्य का साथ देने और अन्याय का विरोध करने की भी सीख दी। मुलायम सिंह ने यहाँ राज्य मुख्यालय पर कार्यकर्ताओं से कहा -आप सब अभी से क्षेत्र मी जाकर चुनाव प्रचार में जुट जाएं क्योंकि लोकसभा चुनाव कभी भी हो सकते हैं। उन्होंने आगे कहा - समाजवादी पार्टी लोकतांत्रिक पार्टी है। हमारा विश्वास लोकतांत्रिक समाजवाद में है। यहां “दबी मुठ्ठी, खुली जबान“ की नीति है यानी अनुशासन के साथ बोलने की आजादी है। पिछले पांच सालों में न तो कोई बसपा नेताओं से मिल सकता था, नहीं उसे पार्टी में भी अपनी बात रखने की आजादी थी। समाजवादी पार्टी में सबको आजादी है। लेकिन उन्होने चेताया कि जो लोग बिना अनुमति पोस्टरों में अपने साथ उनकी फोटो छाप रहे हैं, उन पर अनुशासनहीनता की कार्यवाही की जाएगी। अवैध रूप से झण्डा, स्टीकर नहीं लगना चाहिए।मुलायम सिंह ने कहा कि लोकसभा के आगामी चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश की जीत पर बहुत से राष्ट्रीय नेताओं को जलन और आश्चर्य है, लेकिन इससे पार्टी का सम्मान बहुत बढ़ा है। अब केन्द्र में हमें अपनी पूरी ताकत से पहुंचना है। लक्ष्य सभी सीटें जीतने का होना चाहिए। उन्होने कहा केन्द्र में किसी एक दल कांग्रेस या भाजपा का बहुमत नहीं आएगा। बहुमत तीसरे मोर्चे का ही होगा। इसलिए हमें सावधान रहना है कि हमारे वोट में सेंधन लगने पाए। समाजवादी पार्टी को सभी जातियों और वर्गो ने वोट दिया तभी बहुमत की सरकार बनी। हमारे कार्यकर्ता घमंड न करें। जनता के बीच जाकर समाजवादी पार्टी सरकार की उपलब्धियों की जानकारी दें। उन्होने याद दिलाया कि वंचित जातियों को पहचान और सम्मान समाजवादी पार्टी ने ही दिया है। मुलायम के इस सन्देश से उनकी राजनीति को भी समझा जा सकता है । दरअसल पार्टी को बेरोजगारी भत्ता से लेकर लैपटाप बाँटने के अलावा सुशासन और बुजली से लेकर उद्योग तक के मोर्चे पर भी ध्यान देना होगा । किस जिले में कब बिजली आएगी यह कई जगह लोगों को नई पता । इसी तरह बडी संख्या में पद खाली है जिन्हें भरना भत्ता देने से बड़ा काम है । पर्यटन जैसे क्षेत्र की कोई नीति सामने नहीं आई है । उर्जा के क्षेत्र में समयबद्ध कोई कार्यक्रम भी नहीं है । इन चुनौतियों के साथ भ्रष्टाचार भी है जिसे लेकर आज खुद मु लायम सिंह यादव ने पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे सरकार की योजनाओं में सक्रिय रूचि लें। यह देखें कि कोई पात्र व्यक्ति या लड़की बेकारी भत्ता अथवा कन्या विद्याधन से वंचित न रहे। भ्रष्टाचार पर निगाह रखें। समाजवादी सरकार में भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं है।

Tuesday, January 22, 2013

फिर कट्टरपंथी ताकतों की धुरी बन रहा है अयोध्या

अंबरीश कुमार लखनऊ , 22 जनवरी। कट्टरपंथी ताकते सिर उठाने लगी है । लखनऊ से लेकर अयोध्या तक इसकी तपिश महसूस होने लगी है । अब एक फिल्म को लेकर माहौल गरमा रहा है । जिसे लेकर प्रदेश के रंगकर्मी ,सामाजिक और मानवाधिकर कार्यकर्त्ता से लेकर प्रेस कौंसिल आफ इंडिया तक इसे लेकर आगाह कर चुका है । अयोध्या और फैजाबाद इसकी धुरी बन रहा है जहाँ अल्पसंख्यको पर कई हमले भी हुए है । अयोध्या फिर बारूद के ढेर पर बैठा नजर आ रहा है । खास बात यह है कि मीडिया का एक हिस्सा फिर पुरानी भूमिका में लौटता दिख रहा है जो नब्बे के दशक में वह निभा चुका है । आनंद पटवर्धन की फिल्म राम तेरे नाम के बहाने कट्टरपंथी ताकते फिर माहौल बिगाड़ रही है । अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के आयोजकों का कहना है की अयोध्या/ फैजाबाद का मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अपनी पेशागत नैतिकताओं के विरुद्ध निहायत गैरजिम्मेदाराना,पक्षपाती, शरारती, षडयंत्रकारी, सांप्रदायिक और जनविरोधी हो चला है। वह अपनी विरासतों/ नीतिगत मानदंडों का खुल्लमखुल्ला उलंघन करने पर उतारु है। अयोध्या में घटी हाल की घटनाओं पर रिपोर्टिंग से उसकी इसी नियत/ चरित्र का पता चलता है। इन खबरों में 23 जुलाई में मिर्ज़ापुर गांव की घटना, 21 सितंबर देवकाली मूर्ति चोरी प्रकरण, 13 अक्टूबर को मूर्ति बरामदगी आंदोलन में भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के कूदने और 24 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के दौरान हुए फसाद के आस-पास क्या क्या गुल नहीं खिलाए? भारतीय प्रेस परिषद की तरफ गठित कमीशन को तथ्य/ रिपोर्ट मुहैया करा देना इन अख़बारों को बहुत नागवार गुज़रा। जिसके बाद सांप्रदायिक खुन्नस निकालने का सिलसिला शुरू हुआ । फिल्म फेस्टिवल के आयोजक शाह आलम ने कहा -ताज़ा मामला काकोरी कांड के नायक अशफाकउल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के शहादत दिवस पर हुए तीन दिवसीय छठे अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के समापन के बाद ऐसी साजिश देखने को मिली। 21 दिसंबर को फिल्म उत्सव का समापन हुआ। 22 दिसंबर को भारतीय जनता पार्टी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विधार्थी परिषद ने फिल्म फेस्टिवल के खिलाफ हमला बोल दिया। कुछ अख़बार भी भय, भ्रम और दहशत फ़ैलाने में इन कट्टरपंथी ताकतों का साथ देने लगे । एक प्रमुख अख़बार की खबर का शीर्षक था फिल्म फेस्टिवल में महापुरुषों का हुआ अपमान। अख़बारों ने इस ताः की कई खबर दी लेकिन इस मामले में फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन का बयान नहीं छापा, न ही लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की आवाज उठाने वालों की प्रतिक्रिया। 10 जनवरी को एक अख़बार ने फोटो के साथ तीन कॉलम की जिसका शीर्षक था -फिल्म फेस्टिवल के विरोध में छात्रों का प्रदर्शन लेकिन 10जनवरी को ही आनंद की प्रेस नोट जो इन अख़बारों को भेज गया वह नहीं छापा गया । 14 जनवरी को जस्टिस सच्चर, पूर्व आईजी एस आर दारापुरी, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर संदीप पांडे, लेखक डॉ प्रेम सिंह आदि की प्रतिक्रिया भी दबा दी गई। गौरतलब है कि अयोध्या/ फैजाबाद का माहौल पहले से ही संवेदनशील है। 22साल पुरानी फिल्म 'राम के नाम' जिसे सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट मिला है। भारत सरकार ने इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया है, इतना ही नहीं उच्च न्यायालय के आदेश पर इसे दूरदर्शन पर प्राइम टाइम में दिखाया जा चुका है। वैसे भी आनंद की फिल्मों को दुनिया की बेहतरीन फिल्मों में रखा जाता है।शाह आलम ने आगे कहा -एक अख़बार विद्यार्थी परिषद के हवाले से अपने पाठकों को बताता है 'राम के नाम' काल्पनिक फिल्म है, अयोध्या का नाम इस्लामपुरी है जिसे बाबर ने बसाया है, हिन्दू देवी - देवताओं, धर्मग्रंथों, हिन्दुओं का अपमान किया गया है। प्रभु राम का अस्तिस्त्व नहीं है, रामचरित मानस मनगढ़ंत है। भारतीय महापुरुषों पर अभद्र टिप्पणी की गई है। भारतीय संस्कृति के खिलाफ हमला किया गया है आदि आदि । इस दुष्प्रचार के खिलाफ लोगों को आगाह करना जरुरी है ।क्योकि मामला सिर्फ सिनेमा तक सीमित नहीं रहेगा जब आग फैलेगी तो उसमे सभी जलेंगे ।

Monday, January 14, 2013

नई लड़ाई की शुरुआत बिहार से करेंगे वीके सिंह और अन्ना हजारे

अब मुद्दा जल ,जंगल ,जमीन से लेकर नौजवान और किसान होगा अंबरीश कुमार लखनऊ ,14 जनवरी । अन्ना हजारे और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह बिहार से बदलाव की बड़ी लड़ाई लड़ने जा रहे है । पटना के गांधी पर 30 जनवरी को जनतंत्र रैली से इसकी शुरुआत होगी जिसके बाद देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर नौजवान और किसान के बीच दोनों नेता जाएंगे ।मुद्दा भी व्यापक होगा जल जंगल जमीन से लेकर नौजवान और किसान । यह जानकारी जनसत्ता से बात करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने दी । उन्होंने विकास के मौजूदा ढांचे का जहाँ विरोध किया वही किसानो की दो फसली और तीन फसली जमीनों के अधिग्रहण का भी विरोध किया । यह पूछे जाने पर कि बदलाव की इस लड़ाई की शुरुआत कैसे होगी और क्या कार्यक्रम है ,वीके सिंह ने कहा -देश में नौजवान किस कदर नाराज है यह अब किसी से छिपा नहीं । दिल्ली में बार बार नौजवान सड़क परर उतर रहा है । इसे पहले अन्ना हजारे के आन्दोलन में भी लाखो नौजवान सड़क पर उतर चुके है । समय आ गया है कि इन नौजवानों को लामबंद कर समाज में बदलाव की बड़ी लड़ाई लड़ी जाए । इस लड़ाई में सभी को जोड़ा जाए । यह सब करने का विचार कैसे आया ? दरअसल रिटायर होने के बाद बहुत से विकल्प होते है ,सरकार की तारीफ़ कर कोई बड़ा पद ले सकते है । घूमने फिरने के साथ गोल्फ खेलने के बाद शाम को एक पैग व्हिस्की के लेकर अलग तरह का जीवन भी गुजर जा सकता है । पर मैंने इन नौजवानों का गुस्सा देखा । जल जंगल जमीन के लिए लड़ते आदिवासियों को देखा । अपना खेत बचाने की लड़ाई लड़ता किसान देखा । भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते अन्ना हजारे को देखा । ऐसे में इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए मै भी आ गया हूँ । नौजवानों के बीच जा रहा हूँ तो किसानो के बीच भी । किस तरह शुरुआत होगी यह पूछने पर वीके सिंह ने कहा -इस बारे में अन्ना हजारे से बात हुई है । नौजवान किसान से लेकर जल जंगल और जमीन के लिए लड़ रहे आदिवासियों के मुद्दों के साथ अन्य सवालों को लेकर एक पब्लिक एजंडा तैयार किया जाएगा । इस जनता एजंडा को लेकर हम सब जगह जाएंगे । हम राजनैतिक दलों को भी यह एजंडा देंगे और चाहेंगे कि वे इस पर भरोसा दे । फिर आगे की रणनीति बनेगी ,शुरुआत तो होने दे । बदलाव की लड़ाई तो माओवादी भी लड़ रहे है ? वीके सिंह -वे भी इस देश के नागरिक है लड़ने के तरीके पर मतभेद हो सकता है और विरोध भी । जब मुठभेड़ में बड़ी संख्या में सुरक्षा बल के जवान मारे गए थे तो सरकार चाहती थी की सेना कार्यवाई करे पर मैंने सेनाध्यक्ष के रूप में मना कर दिया जिससे चिदम्बरम नाराज भी हुए । जंगल पर पहला हक़ तो आदिवासी का ही बनता है जिसे वहां से हटाया जा रहा है और कारपोरेट घरानों को जंगल सौंपा जा रहा है ।ऐसे में आदिवासी कहा जाएगा । आप बिना सुरक्षा के और हवाई जहाज में इकोनामी क्लास में चल रहे है ,नागपुर में प्रशासन ने कोई सुरक्षा भी नहीं दी इससे कोई समस्या तो नहीं आती ? वीके सिंह -सुरक्षा मामला तो छोडिए क्या कभी सेनाध्यक्ष की सुरक्षा वापस लेने की सार्वजनिक घोषणा होती है ,यह जानकारी आप किसे देना चाहते है हथियारों ले उन दलालों को जिनका काम मेरे सेनाध्यक्ष रहते नहीं हुआ । किसे बताना चाहते है की अब सेनाध्यक्ष निहत्था हो गया है ।यह इस सरकार की मानसिकता को दर्शाता है । मेरे पास तो जयपुर से एक जवान का फोन आया जिसके पास सौ कमांडो का दस्ता है उसने कमांडो देने को कहा तो मैंने मना कर कर दिया।जहाँ तक आम आदमी की तरह चलने की बात है तो थरूर जिस कैटल क्लास की बात कही थी उसमे चलने पर आम आदमी के ज्यादा करीब होता हूँ । विकास के नए माडल को लेकर क्यों विरोध कर रहे है ? वीके सिंह -विकास का अपना माडल जन विरोधी है ,हम विकास के खिलाफ नहीं है । कुछ उदाहरण देखने वाले है । जब टाटा को सिंगूर में जमीन दिखाई गई तो तीन विकल्प थे पर उन्हें वही जमीन दिखाई गई जो किसानो की खेती की ऊर्वरक जमीन थी जिसपर विवाद हुआ ।दूसरे हरियाणा के फतेहाबाद में जो इलाका तीस चालीस साल पहले तक बहुत कम आबादी वाला था वह कोई उद्योग नहीं लगा आज जब कई गाँव बस गए अच्छी खेती हो रही है तो वह एटमी बिजली घर चाहते है यह कौन सा तर्क है ।यह जगह सामरिक लिहाज से भी जोखम भरी है जहाँ पकिस्तान मिसाईल से हमला कर सकता है ।कम से गाँव और खेत तो न उजाडा जाए । यही हाल विदर्भ में देखा जा रहा है जहाँ पानी का भयानक संकट है और बिजली घर की कई परियोजनाए आ रही है । अभी भी सरकार का भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव ठीक नहीं है । किसानो की जमीन लेकर उद्योगों को दे देना ठीक नहीं । किसानो को लेकर कोई संगठन बनाना चाहते है ? पहले से ही बहुत संगठन है जिसमे आपस में बहुत मतभेद है को एक मंच पर ले आया जाए तो बड़ा काम होगा । jansatta

Sunday, January 13, 2013

विदर्भ में बिजली घर के कचरे से तबाह हुआ किसान और बागवान

विदर्भ में बिजली घर के कचरे से तबाह हुआ किसान और बागवान अंबरीश कुमार अमरावती ,१२ जनवरी । विदर्भ का किसान फिर संकट में है । कपास किसान तो पहले ही सरकारी नीतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चलते तबाह होकर खुदकुशी कर रहा है तो अब नया खतरा बिजली घरों के उस कचरे का है जो संतरा किसान से लेकर अन्य किसान और बागवान को तबाह कर रहा है । विदर्भ में १३२ बिजली परियोजनाएं आ रही है तो करीब ढाई दर्जन पहले से ही तबाही मचाए हुए है जिससे सैकड़ों गांवों के किसान परेशान है । इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित चंद्रपुर ,यवतमाल ,अमरावती गोंदियाँ से लेकर नागपुर तक है । इस अंचल में पानी का संकट है और इतने बड़े पैमाने पर बिजली घर कि नई परियोजनाओं के आने के बाद संकट और गहराने वाला है । अमरावती से लेकर नागपुर तक किसान इसके खिलाफ एकजुट हो रहा है । नागपुर से करीब दस किलोमीटर दूर सर ही इन बिजली घरों की तबाही का असर दिखने लगता है । पास के ही कामठी में एक कास्तकार और गांव के सरपंच सुशील भोयार संतरे के बागान दिखाने ले गए जो पास के बिजली घर की राख से तबाह हो रहा । बात सिर्फ संतरे तक ही सीमित नहीं रह गई है बल्कि इसका असर अन्य फसलों और शाक शब्जियों पर भी पड़ने लगा है । खास बात यह है कि इस खेल में कांग्रेस से लेकर भाजपा नेता तक शामिल है ,कुछ नाम से तो कुछ बिना नाम के । एक कास्तकार ओम जजोदिया ने कहा -कांग्रेस के नेता इंडिया बुल्स से लेकर अडानी और लेंकों में बेनामी हिस्सेदारी लिए हुए है तो नितिन गडकरी का पूर्ति बिजलीघर सार्वजनिक है ।दिक्कत यह है कि यह सभी बिजली घर अब किसानो की कीमत पर चल रहे है और पर्यावरण विनाश में जुट गए है । उन्होंने संतरे के बगीचे दिखाए जिसके पौधों पर बिजली घर की राख जमी हुई थी और बहुत से पौधे सूख रहे थे कई ऐसे पौधे भी दिखे जिसके संतरे सूखते जा रहे थे । इन बगीचों में आधी से ज्यादा पैदावार पर बिजली घर कि रख का असर साफ़ दिख रहा था । हेमराज शिंदे हमें सब्जियों के खेत में ले गए जहाँ गोभी ,बैगन और धनिया आदि लगी थी । गोभी की फसल का एक हिस्सा खराब नजर आ रहा था । जिन गोभी के फूल पर ज्यादा रख गिरी थी वे काले पड़ चुके थे और यही स्थिति बैगन कि भी थी । अब ये किसान सरकार से मुआवजा मांग रहे है पचास हजार एकड़ के हिसाब से । किसान मंच के महासचिव प्रताप गोस्वामी इन किसानो को एकजुट कर आंदोलन खड़ा कर रहे है । शनिवार को किसानो की एक बड़ी जनसभा में इस तरह के बिजली घरों को विनाशकारी बताया गया और कहा गया कि इनसे किसान तबाह हो जाएगा । प्रताप गोस्वामी ने जनसत्ता से कहा -अजीब स्थिति है विदर्भ में जहाँ पानी का संकट है वहाँ १३२ बिजली घर लाए जा रहे है जिनकी क्षमता ८४००० मेगावाट की होगी और सारी बिजली दूसरे अंचल में जाएगी जबकि इसका खामियाजा विदर्भ के किसान को झेलना पड़ेगा । अभी जिस तरह का कोयला इन बिजली घरों में इस्तेमाल हो रहा है उससे पचास फीसद राख निकलती है जिससे खेती पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है ।इन बिजली घरों से यह संतरा पट्टी तो पूरी तरह तबाह हो जाएगी क्योकि भू जल स्तर काफी नीचे जा रहा है । गौरतलब है कि सिर्फ नागपुर में जो नए बिजली घर आ रहे है उसके बाद इनकी कुल क्षमता चौदह हजार मेगावाट हो जाएगी । अभी जो चल रहे है उनमे खापरडा में १३४० मेगावाट ,कोराडी में १००० मेगावाट ,एनटीपीसी का ५०० मेगावाट ,रिलायंस का ३०० मेगावाट ,मिहान का १५० मेगावाट ,आइडियल एनर्जी का २७० मेगावाट ,पूर्ति का २५ मेगावाट ,इंडोरमा का पचास मेगावाट शामिल है । अंदाजा लगा सकते है कि नागपुर की स्थिति कुछ सालों में कितनी विकत होगी । सिंगरौली में बिजली घरों की तबाही के खिलाफ लोगों को जागरूक करने जुटी एकता सिंह ने कहा - सिंगरौली से सोनभद्र तक जो तबाही हो चुकी है अब वह विदर्भ में होने वाली है और अगर इसके खिलाफ लोग जल्द खड़े नहीं हुए तो हालात खतरनाक होंगे । वहाँ तो बिजली घरों कि फ्लाई ऐश से पानी जहरीला हो चुका है । पर विदर्भ के किसान अब खड़े हो रहे है । शनिवार को बिजली घर से प्रभावित किसानो की जनसभा में रिटायर
भी शामिल हुए और कहा -यह बड़ी लड़ाई है अगर खेत नहीं बचा ,पानी नहीं बचा तो किसान कहा जाएगा । अब हमें रणनीति बनाकर इसके खिलाफ आंदोलन छेडना होगा । हम आपके आंदोलन में साथ है और जब कहेंगे जमीन पर उतर कर लड़ेंगे । किसानो इस मौके पर जनरल को जनता जनरल घोषित किया और उन्हें इस आंदोलन से जुडने का न्योता दिया । फोटो कैप्शन -विदर्भ में बिजली घर की राख से सूखते संतरे राख से काली पड़ती गोभी तो बैगन के सूखते पत्ते

मुलताई में शहीद हुए किसानों के परिवार वालों को इंसाफ दिलाने के लिए संघर्ष होगा -वीके सिंह

अन्ना के साथ अब देश के दौरे की तैयारी ,पहला सफर ट्रेन से पटना तक अंबरीश कुमार नागपुर ,१२ जनवरी । पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने आज कहा कि मुलताई में आज के ही दिन १९९८ में किसानो पर जो गोली चलाई गई वह आजाद भारत का जलियावाला कांड जैसा था जिसके चलते २४ किसानो की जान गई और आज तक उनके परिवार वालों को न्याय नही मिला । जनरल वीके सिंह आज यहाँ से करीब सौ किलोमीटर दूर मुलताई में शहीद दिवस के मौके पर बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि मुलताई में शहीद हुए किसानो के परिवार वालों को न्याय दिलाने के लिए वे इस जन आंदोलन का पुरजोर समर्थन करते है । जनरल वीके सिंह अब अन्ना हजारे के साथ देश भर में नौजवानों को लामबंद करने के लिए यात्रा पर निकलने जा रहे है जिसका नाम जनतंत्र यात्रा दिया गया है । इस महीने के अंत में पटना तक ट्रेन के सफर से होगी । इससे पहले वे आज मुलताई पहुंचे जहाँ १२ जनवरी को शहीद हुए किसानो को श्रद्धांजलि दी । आज यहाँ मुलताई के मैदान में, उसी जिला कोर्ट के सामने जिसमें 3 नवंबर 2012 को डा सुनीलम् और उनके साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, देश भर के जन आंदोलनों के कार्यकर्त्ता जुटे और सुनीलम कि रिहाई के लिए आंदोलन और तेज करने का संकल्प लिया । गौरतलब है कि १२ जनवरी १९९८ को मुलताई में किसानों के ऊपर हुए गोलीकांड में २४ किसान मारे गए थे आज उस घटना के १५ साल पूरे हुए । इस मौके पर हुई जनसभा को सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर ,बीडी शर्मा ,किसान नेता विनोद सिंह ,राकेश टिकैत ,सुनील और विजय प्रताप आदि ने भी संबोधित किया । इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि जो सवाल किसानों के जीविका के संघर्ष को लेकर था और शासन के द्वारा उसपर हमला किया गयाए जिसमे लोगों के मौत हुई द्य आज भी वह सवाल आज भी मौजूद हैं। देश में किसान और मजदूर वर्ग आज भी जीविका की लड़ाई लड़ रहे हैं और नवउदारवाद के माहौल में नई पूंजीवादी ताकतें राज्य के साथ मिलकर और तेज हमला कर रही है उन्हें जेल में डाला जा रहा है। किसानो पर गोली चलाई जा रही है और सामाजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। इससे पहले सुबह परमंडल गांव में देश के जनांदलनों के समाजकर्मियों ने शहीद किसानों के स्मृति स्तंभ पर श्रद्धासुमन चढ़ाये। इसके बाद मुलताई में शहीद स्तंभ पर भी श्रद्धांजलि दी गई और शहीदों के सपनो को साकार करने का आगाज़ दिया। शहीद स्तंभ से रैली के रुप में हजारों की संख्या में लोेग मुलताई मैदान में पहुंचा। सर्व प्रथम शहिदों के परिजनों को सम्मानित किया गया। किसान संघर्श समिति के नेता जगदीश दोडके वयोवृद्ध नेता टंटी चैधरी ने देश भर से आए सभी का स्वागत किया। आन्दोलन के नेता अनिरूद्ध गुरूजी ने मुलताई के किसान घोषणा पत्र पढ़ा जिसका सभी ने समर्थन किया।इस मौके पर कहा गया कि आज लोकतंत्र में इस स्थिति के लिए सरकार जिम्मेदार है क्योंकि जनतांत्रिक आंदोलनों पर लगातार हमले हो रहे हैं । संवाद की मंशा किसी भी सरकार की नहीं रही है और इस कारण कहीं न कहीं समाज में हिंसा का माहौल बढ़ रहा है । आज जरूरत इस बात की है की समाज और सरकार के बीच की दूरी घटे। संवाद और शांति का माहौल बने द्य सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले बंद हो। झूठे मुक़दमे वापस लिए जाएँ और बेगुनाह लोगों को जेल से रिहा किया जाए तभी लोगों का विश्वास जनतांत्रिक प्रक्रियाओं में आगे बढ़ेगा और एक भयमुक्त वातावरण तैयार होगा जिसमे आम जनता के सपने और जीविका के सवाल और संघर्षों का हल निकल सके । पूर्व जनरल वीके सिंह ने आन्दोलन को अपना समर्थन देते हुए कहा मैं समझ नहीं पाया हूं कि निहत्थे लोगों पर खुले मैदान में गोली कैसी चली होगी। जब तक हम शहीदों को याद रखेंगे तब तक हम संघर्श को जारी रख सकेंगे। आज जल-जंगल-खनिज का शोशण हो रहा है, किसानों का शोशण हो रहा है। मैं मानता हूं कि माओवाद का कारण सामाजिक असामनता है मगर जिस दिन हम इकट्ठे हो जायेंगे उस दिन किसानों की बात सुनी जाएंगी। हाल ही में जेल से छूट कर आयीं झारखंड की आदिवासी महिला नेत्री दयामनी बारला ने घोशणा कि कि झारखण्ड की सरकार आज कारापोरेट के हांथो झारखंड की एक-एक पौधे व एक-एक इंच जमीन देने के लिए समझौता किया है। लेकिन झारखंड की जनता ने भी कसम खा ली है कि एक इंच भी जमीन कारपोरेट जगत को नहीं दिया जायेगा।शहीदों की विधवाओं का कहना था की हमे न्याय तभी मिलेगा जब शहीदों के हत्यारों को सजा मिलेगी।मध्य प्रदेश के जन संघर्ष मोर्चा की माधुरी बहन ने कहा कि हम आजाद नहीं हैं हमें आजादी की लड़ाई लड़नी होगी। आज देश की जीविका के साधन जल-जंगल-जमीन को पूंजीपतियों के हाथों कौडि़यों के मोल दिया जा रहा है। जीविका के साधन को बचाने वाले को गोलियों से उड़ाया जा रहा है, जेलों के अन्दर झूठे केस में डाला जा रहा है।भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने देश के किसान संगठनों की एकता की जरूरत की बात कही।समजावदी जन परिशद के सुनील ने कहा कि आर्थिक नीतियों का ही परिणाम है कि देश में सब जगह किसानों का दमन जारी है और सुनीलम जैसे नेताओं को झूठे केसों में जेलों में डाल दिया जाता है। नर्मदा बचाओं आंदोलनो की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा कि हमें सभी शहिदों की शहादत को साथ लेकर आगे बढ़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। 24 किसानों की हत्यारों की आज तक कोई सजा नहीं हुई और निर्दोश जेल में हैं।पूर्व मुख्य न्यायाधीश गुहाटी हाई कोर्ट के बीडी ज्ञानी देश में भ्रश्टाचार बहुत बड़ी समस्या है। उन्होने एक कहानी के माध्यम से बताया की पूरी व्यवस्था में ही दोश आ गया है।सभा को जन आन्दोलनों के राश्ट्र्ीय समन्वय के साथी प्रफुल सामंतरा, मंजू मोहन, विनोद सिंह, देवराम भाई, इरफान पठान, कमायनी, अनिल चैधरी, विमल भाई, जम्मू काश्मिर के पूर्व सांसद अब्दूल रहमान, संतोश भारतीय पूर्व सांसद व संपादक चैथी दुनिया, विजय प्रताप आदि ने सभा को सम्बेधित किया। कोलकता से आई रीता चक्रवर्ती ने शहिदों को श्रद्धांजलि गाने गाए।jansatta

Thursday, January 3, 2013

जंगल में बिखरा रणथंभौर दुर्ग का इतिहास

अंबरीश कुमार
सुबह के करीब पांच बजे जब बैरे ने टेंट के बाहर से चाय के लिए आवाज दी तभी नींद खुली । जिस जगह पर अपना तंबू लगा था उसी के ठीक पीछे से जंगल शुरू होकर दूर पहाड़ियों पर चढ़ जाता था । रात देर से सोए क्योकि सविता सामने ही लकड़ी की आग सेकते हुए राजस्थानी लोकगीत सुन रही थी और गायकों से कुछ गीतों की फरमाइश भी की । ठंड को देखते हुए मै टेंट के भीतर ही पढने बैठ गया । यह रणथंभौर राष्ट्रीय अभयारण्य से लगा राजस्थान पर्यटन विभाग का रिसार्ट था जहाँ काफी चहल पहल थी । ज्यादातर सैलानी सुबह छह बजे और फिर दोपहर दो बजे से शुरू होने वाले जंगल सफारी के इंतजाम में जुटे थे । इसकी बुकिंग भी महीनों पहले हो गई थी और अब फोटो आईडी के साथ टिकट की बारी थी ।अपनी बुकिंग नहीं थी इसलिए शाम को फारेस्ट अफसर साहू से बात हुई तो उन्होंने पूछा कि कैंटर से जायेंगे या जिप्सी से । हमने कैंटर को प्राथमिकता देते हुए सबकी फोटो आईडी के साथ अठारह सौ रुपए चार टिकर के रिसार्ट के मैनेजर को दिए तो उसने बताया कि सुबह छह बजे तैयार रहूँ । अब जब बैरे ने जगाया तो तैयारी शुरू हुई । कुछ देर बाद ही अपना कैंटर पोर्टिको में लग चूका था जिसपर चार पांच नव विवाहित जोड़े थे तो एक बुजुर्ग जोड़ा भी । जंगलात विभाग का एक गाइड भी ।तापमान करीब चार पांच डिग्री रहा होगा पर हवा बर्फीली थी । आम तौर पर नया साल समुंद्र के किनारे मनता रहा है पर इसबार राजस्थान आया और इस ठंढ का अंदाज नहीं था । बहरहाल कैंटर चलते ही ठंढ ने कहर ढाना शुरू किया । कुछ देर बाद जब उबड़ खाबड़ सड़क और झरनों नालों को पार करते हुए किले के सामने पहुंचे तो वहां मोर ,कबूतर और तोतों के झुण्ड नजर आए । कुछ मोर तो सामने किले के मुंडेर पर बंदरों के साथ बैठे हुए थे । अपने गाइड ने बताया कि रणथंभौर अभयारण्य का नाम मूल रूप से रणथंभौर दुर्ग के नाम पर है। अरावली -विंध्याचल पर्वत शृंखला के मध्य यह अभयारण्य और दुर्ग है जो पहले जयपुर रियासत की शिकारगाह रहा है। बाद में इसे टाईगर प्रोजेक्ट का दर्जा दिया गया। रणथंभौर बाघ परियोजना क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 1394 वर्ग किमी माना जाता है । ‘रणथम्भौर’ नाम ‘रण’ व ‘‘थम्भौर’’ दो पहाडियां से बना है। थम्भौर वह पहाडी है जिस पर रणथम्भौर का दुर्ग है और ‘रण ’ उसके पास ही स्थित दूसरी पहाडी है। रणथम्भौर का किला लगभग सात किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। रणथम्भौर दुर्ग देश का सबसे पुराने दूसरे नंबर का किला है जबकि चित्तौढ़ का किला पहला माना जाता है। इस किले का निर्माण सन् 944 में चौहान वंश के राजा ने करवाया था जिसपर अल्लाउदीन खिजली, कुतुबुद्दीन ऐबक, फिरोजशाह तुगलक और गुजरात के बहादुरशाह जैसे अनेक शासकों ने आक्रमण किए । यह इतिहास यहाँ बताया जाता है । बाद में हम्मीर महल के सामने वह जगह दिखाई गई जहाँ हजार महिलाओं ने ‘जौहर’ किया था। इस जौहर शब्द पर विवाद हो सकता है पर फिलहाल यहाँ आने वाले सैलानी को यही बताया जाता है । किला वाकई अद्भुत है और इतिहास भी रोमांचित करता है ।कई किस्से और कहानियां इस दुर्ग में दफ़न है । जैन मंदिर है तो अल्लाउदीन खिजली के दौर की एक मजार है तो उसके सामने कब्र भी । इस दुर्ग में त्रिनेत्र गणेशजी का भव्य मंदिर स्थित हैं।जहाँ लोग विवाह का पहला न्योता भी देते है ।दुर्ग में गुप्त गंगा, बारहदरी महल, हम्मीर कचहरी, चौहानों के महल, बत्तीस खंभों की छतरी आदि भी हैं। इस दुर्ग का वास्तुशिल्प तो देखने वाला है ही पर कई बार आप इतिहास में लौट जाते है और कल्पना में युद्ध के दृश्य उभरते है खासकर जब गाइड इस तरह का ब्यौरा देता है। अचानक ध्यान तब टूटा जब कैंटर झटके से रुका और बाघ के पैरों के ताजा निशान दिखाते हुए बताया गया कि अभी अभी वह यहाँ से गुजरा है । इससे पहले आगे जा रही जिप्सी के गाइड ने बाघ गुजरने की जानकारी दी थी । फिर जंगल के अलग ट्रैक पर निकले तो हिरन और सांभर का झुण्ड सामने था । जंगल भी देखने वाला । कही पेड़ों के घने विस्तार तो कही झरनों से उठता पहाड़ । अचानक किंग फ़िशर दिखी तो रास्ते में स्परफाइल मोर, ग्रेट इंडियन हॉर्न्ड आउल, तीतर, पेंटेड तीतर, क्वैल और चील, क्रेस्टड सरपेंट ईगल भी दिखे । एक बड़ा पक्षी तो कैंटर की मुंडेर पर लगातार जमा रहा और अम्बर ने उसकी कई फोटो ली । इस जंगल के ऊंचाई वाले हिस्सों में तेंदुआ दिख जाता है तो लकड़बग्घा, सांभर, चीतल,नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा लगातार नजर आते है हैं। जहाँ पानी दिखा वहां मगरमच्छ भी मिला । करीब चार घंटे की उबड़ खाबड़ ट्रैक की यात्रा ने देह के सभी नट बोल्ट हिल दिए थे । रिसार्ट पहुँचते ही रेस्तरां में तैयार नाश्ते के साथ ही जयपुर लौटने की तैयारी शुरू हो गई ।