Sunday, October 27, 2019

महाबलीपुरम के समुद्र तट पर कमल सक्सेना का वह काला चश्मा !

अंबरीश कुमार बात काफी पुरानी है .साल याद नहीं .हम लोग बंगलूर ,मैसूर ,ऊटी ,महाबलीपुरम जैसी जगह घूमने गए थे .मै ,अपूर्व ,कमल सक्सेना ,रवि जुनेजा और बाबू सिंघा थे .गजब का अनुभव हुआ उस दौरे में .फस्ट क्लास का डब्बा जो लखनऊ से चला वह झांसी में उस ट्रेन से काट कर अलग कर दिया गया .फिर कुछ घंटे बाद उसे किसी दूसरी ट्रेन में जोड़ दिया गया .हम विजयवाड़ा पहुंचे तो तो फिर .फस्ट क्लास का यह डिब्बा काट दिया गया और बताया गया दस घंटे बाद यह किसी दूसरी ट्रेन में जोड़ा जायेगा तबतक यह डिब्बा यार्ड में खड़ा होगा .हम लोग अपने केबिन में ताला बंद कर विजयवाड़ा शहर घूमने निकले .खाना खाया और काफी कुछ देखा .फिर डिब्बे में लौटे .यह डिब्बा अपना होटल बन गया था जो बंगलूर तक चला .बंगलूर स्टेशन पर आधी रात के बाद पहुंचा .वोटिंग रूम में चले गए .चादर वगैरह तो थी पर ठंढ बढ़ेगी यह अंदाजा नहीं था .अप्पू जिधर सोया था उसके बगल में कोई सज्जन होल्डाल बिछा कर सो रहे थे .ठंढ बढी तो अप्पू ने उसका कंबल खीच लिया .सुबह के समय उसने अप्पू को उठाया और कहा ,भईया मेरी ट्रेन आ गई है अब कंबल दे दें .तब उसे कंबल देना ही पड़ा .फिर बंगलूर शाहे मैसूर आदि घूमते हुए ऊटी पहुंचे .महंगा हिल स्टेशन था .ज्यादा पैसे थे नहीं .तय हुआ लंच कांटिनेंटल होगा और खुद बनाया जायेगा .ऊटी की सब्जी मंडी गए .प्याज ,पत्ता गोभी ,टमाटर ,मिर्च आदि खरीदी गई और बंद भी .फिर झील के किनारे सैंडविच बनाकर खाया गया .काफी सामने के रेस्तरां में पी गई .फिर कई शहर घूमते हुए महाबलीपुरम पहुंचें .इस बीच बाबू सिंघा ,रवि जुनेजा और अप्पू किसी बात पर कमल से खुन्नस खा गए .दरअसल वह काम नहीं करता था और पेंट शर्ट के साथ बूट पहनकर हमेशा स्मार्ट बनकर घूमता था .एक कोई महंगा चश्मा भी पहनता था .एक बार वह चश्मा महाबलीपुरम के सी बीच पर छूट गया .कमल को पता नहीं चला .खुन्नस खाए मित्रों को मौका मिला .तय हुआ इसे छुपा दिया जाए .पर फिर सोचा गया अगर बाद में यह मिल गया तो कमल घर जाकर सबकी शिकायत करेगा .बड़ी समस्या सामने थी .अंततः रवि ने कहा सबूत को मिटाना पड़ेगा इसे इधर ही समुद्र तट की रेत में गाड़ दिया जाए .बाबू सिंघा ,अप्पू आदि ने गड्ढा खोदा .पहली फोटो में इसी मंदिर से पहले के कुंड के कोने में ,इसी जगह पर उस महंगे गागल्स का अंतिम संस्कार किया गया .सब लोग चाहे तो आज भी वह चश्मा वहां मिल सकता है क्योंकि प्लास्टिक /शीशा ख़राब तो होता नहीं .इस तरह कमल के उस चश्मे का राज आज मै खोल दे रहा हूं वे चाहे तो सबसे उसका हर्जाना ले सकते हैं .दौरे की कुछ फोटो भी देखें