Monday, October 29, 2012

सुनीलम के नाम एकजुट हुए जन संगठन

अंबरीश कुमार लखनऊ, 28 अक्टूबर।देश के करीब बीस जन संगठन और किसान संगठन कांग्रेस और भाजपा के साथ कारपोरेट घरानों की मिलीभगत को लेकर मध्य प्रदेश में बड़ा अभियान छेड़ने जा रहे है ।इस अभियान के केंद्र में सुनीलम है जिन्हें इस गठजोड़ का विरोध करने की बड़ी सजा मिल चुकी है । इस अभियान में किसान मंच ,किसान संघर्ष समिति के साथ अखिल भारतीय किसान यूनियन के दोनों धड़े शामिल है तो एनएपीएम ,पीयूसीएल से लेकर इंसाफ तक । किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह के मुताबिक इस आन्दोलन के संचालन के लिए बनाई गई समिति में राजेंद्र सच्चर प्रशांत भूषण ,जया जेतली ,प्रेम सिंह ,किसान नेता युद्धवीर सिंह ,ऋषिपाल अम्बावत ,चितरंजन सिंह ,मंजू मोहन, मधुरेश आदि विभिन्न क्षेत्रो के प्रतिनिधि शामिल है । गाँधीवादी और समाजवादी संगठन भी सुनीलम के पक्ष में खड़े होने का एलान कर चुके है ।जिसमे उत्तर प्रदेश ,बिहार ,मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र ,दिल्ली के समाजवादी कार्यकर्त्ता शामिल है । इस अभियान से जुड़े किसान नेताओ और जन संगठनों का आरोप है कि किसानो की जमीन बचाने की लड़ाई में सुनीलम को फंसाया गया है ।मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में अडानी पेच पावर प्रोजेक्ट, पेच डाइवरशन प्रोजेक्ट, मैक्सो व एसकेएस प्रोजेक्ट के नाम पर 50 हजार हजारों किसानों की जमीन छीनी जा चुकी है और वहा जो आंदोलन चला उसका नेतृत्व सुनीलम ही कर रहे थे । पिछले दिनों इस मुद्दे को लेकर छिंदवाडा में मेधा पाटकर की बड़ी जन सभा भी हुई थी । उस जनसभा में किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुनीलम ने कहा था कि- बिजली परियोजनाओं को लेकर किसानो की जमीन छीनने के मामले में कांग्रेस और भाजपा साथसाथ है । यह कहा गया था कि पर्यावरण विभाग के बिना अनुमति के अडानी पॉवर प्रोजेक्ट व पेच परियोजना में माचागोरा बांध निर्माण कार्य को आगे बढ़ने देने के लिए सरकार जिम्मेदार है। यही वह मुद्दा था जिसे लेकर सुनीलम को फंसाने की साजिश रची गई । मानवाधिकार कार्यकर्त्ता चितरंजन सिंह के मुताबिक इस मामले में भाजपा ,कांग्रेस के साथ कारपोरेट घराने भी शामिल है जिसके खिलाफ अब बड़ी लड़ाई लड़ी जाएगी । इसमे जन संगठन तो शामिल है ही पर अभी तक कोई राजनैतिक दल खुल कर सामने नहीं आया । समाजवादी पार्टी ने इस मुड़े पर अफ़सोस तो जताया पर अभी तक मुलायम सिंह ने अपना रुख साफ़ नहीं किया जिससे दुविधा की स्थिति बनी हुई है पर आन्दोलन तो शुरू हो चुका है । इस बीच सर्व सेवा संघ के राम धीरज ने कहा है कि इस लड़ाई में वे न सिर्फ पूरी ताकत से जुड़ेंगे बल्कि अन्य जन संगठनों से भी जुड़ने की अपील करेंगे । जानकारी के मुताबिक जल्द ही एक बैठक में ब्योरेवार कार्यक्रम जरी किया जाएगा । इस बीच चितरंजन सिंह ने सुनीलम से जेल में मुलाकर कर कहा कि वे क़ानूनी लड़ाई जीतने के साथ ही नए सिरे से किसानो के हक़ में संघर्ष शुरू करेंगे । jansatta

Tuesday, October 23, 2012

जाना एक और कबीर यानी दा का

अंबरीश कुमार छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का एक दौर आज ख़त्म हो गया .दा राजनारायण मिश्र नहीं रहे ,यकीन नहीं होता .वे ग्रामीण पत्रकारिता के पुरोधा थे .स्टेट्समैन का ग्रामीण पत्रकारिता का पुरुस्कार भी उन्हें मिला .पर वे इस सबसे ऊपर थे .वे पत्रकारिता में कबीर परम्परा के वाहक थे .फक्कड़ों जैसा जीवन गुजारा .छतीसगढ़ में अपनी मुलाकर कैसे हुई यह याद नही पर जब एक लेख पर उन्हें गिरफ्तार किया गया तो हम भी साथ खड़े हुए .जनसत्ता लांच हुआ था और वह भी पूरे तेवर में .दा ने कहा वे जनसत्ता से जुड़ेंगे और सीखेंगे भी तो नए साथियों को सिखाएंगे भी पर कोई पारश्रमिक नहीं लेंगे .राज कुमार सोनी ने उनके बारे में बहुत कुछ बताया था .अख़बार का संपादक पहली बार बना था वह भी जनसत्ता का .बहुत कुछ सीखना था दा ने पहला पाठ सिखया सिखाया स्टाफ में मुस्लिम जरुर हो छतीसगढ़ के लोग उत्सव प्रेमी होते है कोई त्यौहार आया तो बिना बताए छुट्टी चले जाएंगे . ऊनके इस सुझाव से कई बार जनसत्ता का रायपुर संस्करण बिना किसी दिक्कत के निकलता रहा .वे मुझे छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव ले गए और कई बार गाँव में रुका और खाना पीना सब हुआ .वे शाकाहारी थे और शराब भी नहीं पीते कई तरह की आर्युवैदिक दवा लेते थे .पर किसी की आवभगत में कोई कमी ना रह जाए यह जरुर ध्यान रखते .वे जनसत्ता के रायपुर संस्करण के हेड मास्टर की तरह थे जिसका नाम रजिस्टर में भले न हो पर समूचा स्टाफ मेरे बाद उन्हें ही जानता . मुझे याद है किस तरह उन्होंने किसानो की ख़ुदकुशी पर महासमुंद से खबरे कराई .शिखा दास को दा के कहने पर ही रखा था जिसने किसानो पर जब खबरे शुरू की तो जोगी सरकार के कई अफसर नाराज हुए और शिखा पर हमला हुआ तब भी राजनारायण मिश्र और समूचा जनसत्ता शिखा के साथ खड़ा हुआ .यह दा की मानवीय संवेदना को दर्शाता था .यह एक उदाहरण है वे आए दिन गाँव ,किसान और खेती मजदूरी से जुड़े सवालों को उठाते उनका कालम '' साधो जग बौराना ..बहुत लोकप्रिय था .इसके साथ ही उन्होंने साहित्य संस्कृति की आंचलिक प्रतिभाओं को भी जोड़ा ,परदेसी राम वर्मा उदाहरण है .बहुत कम लोगो को पता होगा कि छत्तीसगढ़ में सत्ता से टकराव के बाद जब इंडियन एक्सप्रेस प्रबंधन ने मेरा तबादला दिल्ली किया तो मैंने अख़बार छोड़ने का मन बना लिया .दा ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने मेरे लिए दिल्ली से एक पत्रिका निकालने का प्रबंध कराया और साफ़ कहा कि किसी तरह की आर्थिक दिक्कत नहीं आने दी जाएगी .वह पत्रिका आज भी निकल रही है जिसका पहला संपादक मुझे उन्होंने बनवाया था .पर एक्सप्रेस प्रबंधन ने मेरी इच्छा की जगह पोस्टिंग की बात मानी और मै इस समूह से जुड़ा रहा .इसमे शेखर गुप्ता और महाप्रबंधक जीआर सक्सेना की बड़ी भूमिका रही .जीआर मेरे तब भी मेरे मित्र माने जाते थे और आज भी है .बहरहाल उस संकट के दौर में मेरे साथ दा जिस मजबूती से खड़े हुए वह उनकी दृढ इच्छा शक्ति का प्रतीक था .इस तरह के लोग आज बहुत कम मिलेंगे जो दूसरों के लिए समर्पित हो .दा ने अपन क ओ बहुत कुछ सिखाया है .वे ही मेरी ख़बरों का संपादन करते थे .वे ही छतीसगढ़ी शब्दों का अर्थ भी बताते .उन्होंने ही बस्तर दिखाया ,उन्होंने ही महासमुंद के किसानो की भुखमरी और पलायन पर लिखने को प्रेरित किया .उन्होंने लड़ने का भी सलीका सिखाया तो लिखने का .बहुत अफ़सोस की आज मै रायपुर में नहीं हूँ ,दा को अंतिम विदाई देने के लिए .

Sunday, October 21, 2012

आक्रोश में है मुलताई में किसान

अंबरीश कुमार लखनऊ अक्टूबर । किसान आंदोलन की वजह से किसान नेता सुनीलम को आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ अब बड़े जन आंदोलन की तैयारी शुरू हो गई है । इस आंदोलन को ताकत देने का बीड़ा सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर ने उठा लिया है । इस बीच एक हजार किसान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र भेज कर जन विरोधी फैसले का विरोध करेंगे । जबकि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान संगठनी ने सुनीलम के साथ अपनी एकजुटता दिखाते हुए लखनऊ से दिल्ली तक इसका विरोध करने का फैसला किया है । यह आंदोलन दिल्ली ,भोपाल ,लखनऊ ,नागपुर से लेकर मुलताई तक चलेगा और अन्य कई राज्यों के किसान इसमे शिरकत करेंगे । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने आज यहाँ यह जानकारी दी । उन्होंने बताया कि इस मुद्दे को लेकर देश की वामपंथी ,समाजवादी और लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट किया जा रहा है । मेधा पाटकर जो अस्वस्थ होने की वजह से हैदराबाद में रुक गई थी वे दिल्ली पहुँच कर साभी वरिष्ठ नेताओं से संपर्क शुरू करेंगी । बाद में नवंबर में मुलताई में किसानो की राष्ट्रीय पंचायत बुलाई जाएगी जिसमे कई राज्यों के किसान संगठन और अन्य जन संगठन हिस्सा लेंगे । इस बारे में किसान संघर्ष समिति ,एनएपीएम और किसान मंच के बीच बातचीत हो रही है । आज यहाँ समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता और एमएलसी राजेंद्र चौधरी ने कहा कि सुनीलम के मुद्दे पर वे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह से बात कर उन्हें पूरी जानकारी भी देंगे। सुनीलम समाजवादी पार्टी के विधायक भी रहे है । राजेंद्र चौधरी ने कहा -सुनीलम समाजवादी आंदोलन के साथी रहे है और किसानो के लिए लगातार संघर्ष करते रहे है । किसान मंच के मुताबिक इस बीच मुलताई और आसपास के इलाके में कई गांवों में किसानो ने फैसले के खिलाफ चूल्हा बंदी आंदोलन किया । बैतूल में गाँव गाँव में किसानो ने भूख हड़ताल की । किसानो का कहना है कि यह अजीब फैसला है जिसमे किसानो पर गोली चलाई गई और किसान ही सजा पा रहे है । बहरहाल किसानो के तेवर देख साफ है कि अब एक और बड़े आंदोलन की जमीन तैयार हो रही है । इस बीच महाराष्ट्र के किसान नेता प्रताप गोस्वामी मुलताई पहुँच गए है और वे सुनीलम के मुक़दमे के फैसले का पूरा ब्यौरा लेकर सिल्ली के वरिष्ठ वकीलों से राय मशविरा करेंगे । प्रताप गोस्वामी ने फोन पर कहा -मुलताई में किसान बहुत आहत और आक्रोश में है । बड़े कारपोरेट घरानों की शह पर अगर इस तरह जुझारू किसान नेता को फंसाने का फैसला होने लगा तो हालत बेकाबू होंगे । मेधा पाटकर इस घटना को भाजपा कांग्रेस के साथ कारपोरेट घरानों की सांठगांठ का नतीजा मानती है और यह प्रवृति महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश से लेकर कई राज्यों में दिखाई पड़ रही है । मुलताई कांड जब हुआ तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे जिसमे दो दर्जन किसानो की जान गई थी और अब भाजपा के राज में जो फैसला आया है उसमे सुनीलम समेत तीन लोगों को आजीवान कारावास की सजा सुनाई गई है । इसी तरह महाराष्ट्र में प्राकृतिक संसाधनों की लूट में भाजपा कांग्रेस और कारपोरेट घराने साथ साथ खड़े है । इसके खिलाफ अब बड़े जन आंदोलन की जरुरत है जिसमे समाजवादी हो वामपंथी हो तो मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाले भी शामिल हो । गौरतलब है कि विदर्भ में बड़े पैमाने पर बिजली घर परियोजनाए शुरू हो रही है जिसके चलते एक लाख एकड़ जमीन से किसान विस्थापित होंगे । इसी तरह मध्य प्रदेश में किसानो की जमीन छीन कर कई योजनाएं बन रही है । इसका एक उदाहरण महाराष्ट्र मध्य प्रदेश सीमा पर छिंदवाडा में अडानी समूह की परियोजना है जिसके खिलाफ सुनीलम लगातार संघर्ष कर रहे थे । यह भी कहा जा रहा है कि कल आए फैसले में उन्हें आजीवन कारावास की सजा इसलिए भी सुनाई गई ताकि वे छिंदवाडा से लोकसभा का चुनाव न लड़ सके जहाँ से कमलनाथ चुनाव जीतते रहे है । दरअसल सुनीलम न सिर्फ कांग्रेस बल्कि भाजपा के लिए भी आँख की किरकिरी बने हुए है । बहरहाल समाजवादी पार्टी के लिए भी अपनी राजनैतिक जमीन मजबूत करने का यह बड़ा मौका है अगर वह अपने इस किसान नेता की लड़ाई लड़ने के लिए खुल कर सामने आए । किसान संगठन इस सिलसिले में मुलायम सिंह से भी संपर्क करेंगे । jansatta

Thursday, October 18, 2012

गोली चलाई पुलिस ने फंसे सुनीलम

एशिया न्यूज़ नेटवर्क
भोपाल . (एशिया न्यूज़ नेटवर्क )किसान नेता सुनीलम को मुलताई में १९९८ में हुए किसान संघर्ष के सिलसिले में स्थानीय अदालत ने दोषी करार दिया दिया है जिसके बाद उन्हें पुलिस हिरासत में ले लिया गया .आज उन्हें इस मामले में सजा सुनाई जाएगी .यह घटना उस समय हुई थी जब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे और किसानो पर हुए गोलीकांड में 24 किसान मारे गए थे .गोलीकांड के जवाब में भी हिंसा हुई जिसमे दो पुलिस वालों की जान गई थी .ये किसान सुनीलम के नेतृत्व में मुलताई के परेड ग्राउंड में धरना दे रहे थे . किसान मंच ने अदालत के फैसलों को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसे चुनौती देने का एलान किया है .किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -जिस घटना में पुलिस की गोली से पच्चीस किसान मारे जाए और किसी पुलिस वाले को दोषी न माना जाए और एक किसान नेता समेत दो लोगो को फंसा दिया जाए यह इन्साफ तो नहीं है .इस मुद्दे को लेकर देश भर के किसान संगठन एकजुट होकर विरोध करेंगे. गौरतलब है कि सुनीलम छिंदवाडा में अडानी के पावर प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे है जिसे कमलनाथ का संरक्षण मिला हुआ है .सुनीलम टीम अन्ना के सदस्य रहे है पर अन्ना से लेकर केजरीवाल तक का कोई बयान इस पर नहीं आया है .

Wednesday, October 17, 2012

बादलों के पार एक गांव

अंबरीश कुमार यह एक ऐसा पहाड़ी गाँव है जहाँ हर समय बादल उड़ते रहते है .सेब और नाशपाती के बड़े बगीचों के बीच से जाता रास्ता हर मोड़ पर नया दृश्य रच देता है .कभ सूरज सामने आता है तो कभी बादल उसे ढक देते है .अचानक बादलों का रंग बदलने लगा .बिजली कड़कने लगी और सामने की पहाड़िया बरसात और धुंध में गायब होने लगी .चौथा दिन था अपना
की तरफ .मुक्तेश्वर की शाम यादगार थी तो सुबह अद्भुत हिमालय के इतने रंग कभी नहीं देखे .हिमालय की एक एक कर चोटियाँ बादलों के बीच से उभर रही थी .अल्मोड़ा शहर की रौशनी जो कुछ देर पहले अँधेरे में चमक रही थी वह अँधेरा छटते ही बादलों में डूब चुकी थी और ऐसा लग रहा था मानो उस शहर पर पहाड़ों के बीच कोई नदी बह रही हो .हम इंतजार कर रहे थे कि कब हिमालय की चोटिया आसमान और बादल के बीच उभर कर सामने आए.आसमान भी सफ़ेद ,बादल भी सफ़ेद और ये चोटियाँ भी जिसके चलते सब आपस में गडड मड्ड हो गए थे .इन्जार था तो सिर्फ सूरज की रौशनी का जो इन्हें अलग कर सकती थी और उसी के इंतजार में देवदार के जंगल के किनारे बर्फीली हवा में खड़े थे .बीती शाम से ही ठंडी हवा चल रही थी .डाक बंगले का चौकीदार और खानसामा गोपाल सिंह कई बार चाय दे चुका था वह भी स्टील के ग्लास में जिससे कुछ गरमी मिलती .बाद में भटेलिया और सतबुंगा होते हुए लौटे तो थक चुके थे .नींद भी आ रही थी .शाम को इला मयंक को मल्ला के बस स्टेशन पर गाड़ी में बैठाकर सामने के हिमालय को देखने पहूंचे तो वह बादलों से ढक चुका था और हम लोगों को रात के खाने का सामान लेने के साथ महादेवी सृजन पीठ के पीठ की तरफ भी जाना था .अपना कुत्ता टाइगर जो अपनी माँ घोटू को खोने के बाद घर छोड़ पुलिस चौकी में रहने लगा था अचानक मछली बेचने वाले के पास मिल गया और फिर साथ चल दिया .जोशी जी की दूकान से उसे बिस्कुट दिया .बहादुर ने कल रात ही बताया कि करीब तेरह साल से साथ रहने वाली घोटू को बाघ उठा ले गया तो बहुत ख़राब लगा .वह बीमार भी थी .सविता को फोन पर बताया तो कुछ देर खामोश रहने के बाद बोली ,उसे मुक्ति मिल गई पर बहुत खल रहा है .कुत्ता पालना बचपन में उस समय छोड़ दिया जब एक छोटे से पिल्लै की मौत हो गई और एक दिन दुःख में खाना नहीं खाया .यहाँ कई कुत्ते रहे जो पाला बहादुर ने पर परिवार का हिस्सा बन गए .अम्बर के तो वे दोस्त ही रहे पर एक एक कर सब बाघ का शिकार भी होते गए .पहला कुत्ता काले रंग का भूटिया कुत्ता था जो करीब दस साल पहले बाघ का शिकार बना था. खैर बाजार में ही साथ आए मित्रों का इन्तजार करने लगे .क्योकि खाने सामान लेकर जाना था .राज नवरात्र में शुद्ध शाकाहारी हो जाते है इसलिए एक दिन पहले वे चिकन बनाना चाहते थे पर पता चला आज हल्द्वानी से मुर्गे वाली गाड़ी ही नहीं आई इसलिए दूसरे विकल्प के रूप में पूर्वांचल के एक लोकप्रिय व्यंजन 'निमोना' बनाने का फैसला हुआ जो ताजी हरी मटर को पीस कर बनाई जाती है .आजकल यहाँ बहुत अच्छी किस्म की मटर खेतों से आ भी रही है .रात करीब आठ बजे से खाना बनाना शुरू हुआ जो दो घंटे में पूरा हुआ और हम बरामदे से बीतर आ गए .बरामदे में आग जलवा ली थी क्योकि ठंड बहुत ज्यादा थी .बरामदे में शीशे की बड़ी खिडकियों से सामने का जंगल दिख रहा था और चर्चा के साथ ग्लास भी टकरा रहे थे .कब खाना हुआ और नींद आ गई पता नहीं चला शायद थकान की वजह से .इस दौरे के अंतिम दिन फिट चोटिया सामने थी पर बादल तेजी से बढ़ रहे थे और कुछ देर सामने की पहाड़ी पर तेज बरसात शुरू हो गई .घोडाखाल में तो ओले भी घिरे और अचानक बड़ी ठंड के बाद हम रजाई के भीतर जा चुके थे .रात में जब गागर पर के जंगल से गुजते तो तेज हवा से देवदार और चीड के दरख्त से पानी भी ऊपर आ जा रहा था

Sunday, October 14, 2012

सूर्यास्त से सूर्योदय तक

अंबरीश कुमार तीन दिन से पहाड़ पर हूँ .हिमालय के दर्शन तो गागर में ही हो गए थे पर मुक्तेश्वर में पहली बार हिमालय का जो रंग देखा वह अद्भुत था .शाम को सूर्यास्त के रंग तो सुबह सूर्योदय का दृश्य .सुबह करीब साढ़े तीन बजे उठ गया था क्योकि रात की बैठकी दस बजे ख़त्म हो गई थी .ठंड काफी ज्यादा है और जी डाक बंगले में चौथी बार रुका हूँ वहा सामने देवदार के घने जंगल तो आगे अल्मोड़ा शहर की रोशनी जगमगाती नजर आ रही थी .बगल के कमरे ब्लू हेवन में इला मयंक रुके तो पिंक मेमोरीज में राज और आदि .बीच के कमरे में मै .खास बात यह थी कि मेरे कमरे में रात में बैठने से पहले फायर प्लेस में लकड़ियाँ जला दी गई थी इसलिए कमरा गर्म था .दो घंटे तक एक कामेडी फिल्म देखते देखते बात चलती रही और तब उठे जब गोपाल सिंह ने खाना तैयार होने की सूचना दी .इला पहाड़ की है और उन्होंने पहाड़ी दाल चुड़कानी यानि भट्ट की दाल खाने की इच्छा जताई और हम लोगों ने भी पहली बार इसका स्वाद लिया .खाना खाने के कुछ देर बाद ही नींद आ गई और उठे तो साढ़े तीन बज रहा था .सूर्योदय देखने के साथ कुछ फोटो अपलोड करनी थी और फिर लिखने के लिए बैठना था .सभी सो रहे थे .राज को जगाया तो वे लैपटाप देने के बाद फिर रजाई में जा चुके थे .कुछ देर काम किया फिर चाय बनाई ,अकेले ही पीनी पड़ी पर कुछ गरमी आई और कुछ फोटो वाला काम भी हो गया .तभी आदित्य कमरे में आ गए और हल लोग बाहर निकले तो तेज हवा और कंपकपा देने वाली ठान में आसमान पर तारे नजर आ रहे था .फिर कमरे में लौट आये .अंग्रेजो के बनाए इस डाक बंगले की खासियत यह है कि सामने ही हिमालय की श्रृंखला नजर आती है जिसमे नंदा देवी से लेकर त्रिशूल आदि शामिल है .चारो ओर देवदार के घने जंगल है जो तेज हवा से लहराते नजर आ रहे थे . शाम को ऊपर पर्यटन विभाग के रेस्तरां में काफी पीने जब पहुंचे तो सूरज डूब रहा था और देवदार के जंगलों के ऊपर जो रंग बिखर रहे थे उसे आदि कैमरे में कैद करते जा रहे थे .हवा में इतनी ज्यादा ठंड थी कि कुछ देर बाद ही रेस्तरां के भीतर जाना पड़ा . दरअसल दो दिन पहले ही यहाँ भरी बारिश और ओले पड़े थे जिसके चलते ठंड बढ़ गई थी .हालाँकि यह मौसम हिमालय देखने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है और स्थानीय लोग इसे बंगाली सीजन भी कहते है क्योकि दुर्गा पूजा से पहले बंगाल से काफी सैलानी इधर आते है और होटल भी भरे मिलते है .पर्यटन विभाग का होटल भी भरा हुआ था . इसकी एक और वजह गर्मी और बरसात के मौसम में हिमालय की चोटियाँ आसानी से नहीं दिख पाती है धुंध और बादल की वजह से जबकि अक्तूबर के महीने में आसमान साफ़ होता है .नवम्बर के बाद फिर मौसम बिगड़ेगा और तब इधर बर्फबारी शुरू हो जाएगी .मुक्तेश्वेर में बर्फ भी जमकर गिरती है और कई बार रास्ता भी बंद हो जाता है . यह साढ़े सात हजार फुट की ऊँचाई पर है और अगर भूल जाएँ तो डाक बंगले के बरामदे में लगा बोर्ड यह याद दिला देता है .पिछली गर्मियों में आलोक जोशी और उनके साहबजादे निंटू के साथ इस डाक बंगले में आया था .पर पहली बार बरसात के मौसम में यहाँ रुका था और धुंध में डूबा यह डाक बंगला कभी भुला नही जा सकता है .इस डाक बंगले को बने १४० साल हो चुके है और यह भी इस अंचल में इतिहास का एक महत्वपूर्ण पन्ना है . मुक्तेश्वेर में प्रवेश करते ही बांज के घने जंगल के बीच जाती सड़क लगता है जंगल में कही खो जाएगी .जंगल पर करते ही पोस्ट आफिस और बाई तरफ जोशी जी कि मशहूर चाय की दुकान नजर आती है.इसके बाद यहाँ न कोई दूकान है और न ढाबा .दोपहर में जब पहुंचे तो खानसामा ने पहले बता दिया था कि जो भी खाना खाना है पहले बता दे क्योकि दो किलोमीटर दूर से सामन लाना होगा जो शाम ढलने के बाद नहीं मिलेगा ..ज्यादातर सामान तो साथ लेकर ही चले थे क्योकि इसका अंदाजा था .अपने काफी हाउस के एक अन्य एडमिन और विश्विद्यालय के पुराने साथी सनत सिंह को भी यहाँ आना था पर तबियत ख़राब होने कि वजह से वे नहीं पहुंचे और दिनेश मनसेरा से भी मुलाकात का मौका नहीं मिला .पर जो भी साथ आए वे हिमालय और सूरज के रंगों को देख सम्मोहित थे .इला फिर बर्फ गिरने के बाद आने का कार्यक्रम बना रही है .चंचल अगर आते तो हिमालय को कैनवास पर भी उतार देते .

Sunday, October 7, 2012

सार्वजनिक अवकाश की राजनीति में हाशिए पर है जेपी ,वीपी और लोहिया

अंबरीश कुमार लखनऊ, अक्टूबर। उत्तर प्रदेश न तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानी जेपी के नाम कोई सार्वजनिक अवकाश होता है और न मंडल मसीहा वीपी सिंह के नाम जिन्होंने हिंदी पट्टी की राजनैतिक सामाजिक दिशा बदल दी । न ही समाजवादी चिंतक आचार्य नरेन्द्र देव से लेकर डा राम मनोहर लोहिया के नाम कोई अवकाश है होता है और न नेहरु ,इंदिरा से लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम । ऐसे में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापाक कांशीराम के नाम मायावती सरकार की तरफ से घोषित सार्वजनिक अवकाश को रद्द करने को लेकर राजनैतिक विभूतियों के नाम अवकाश घोषित करने पर बहस शुरू हो गई है ।उत्तर प्रदेश में तररह तरह के सार्वजनिक अवकाश बढ़ते जा रहे है जिसके चलते काम के दिन कम हो रहे और बच्चो के स्कूल की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है । इस समय स्कूलों में छमाही परीक्षा चल रही है और कांशीराम के नाम होने वाले अवकाश के चलते परीक्षा का कार्यक्रम भी बदलना पड़ा क्योकि यह कैलेंडर में नहीं था । अब सरकार ने अवकाश निरस्त कर दिया है तो फिर इस दिन का कार्यक्रम बनेगा । जो अवकाश राजनीति के चलते होते है वे सत्ता बदलने पर लोगों की चिंता का विषय बन जाते है । ऐसे ही एक छुट्टी होती है परशुराम जयंती पर जो सामाजिक न्याय के चलते शुरू की गई और जारी है । ऐसे कई और नए नए अवकाश सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर हाल के वर्षों में शुरू हुए है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -इस तरह अवकाश घोषित करने और उसे निरस्त करने की राजनीति बंद होनी चाहिए । उत्तर प्रदेश में सिर्फ राजनैतिक वजहों से कई सार्वजनिक अवकाश घोषित हो चुके है इससे समाज का ही नुकसान हो रहा है । इसके लिए कोई नीति भी बनानी चाहिए और इसे जाती धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए । राजनैतिक टीकाकार चंचल के मुताबिक इस तरह के अवकाश घोषित करने के दो पैमाने है पहला केंद्र में कैबिनेट तय करती है दूसरे राज्य । पर जिस तरह कांशीराम के नाम पर अवकाश घोषित किया गया उससे कई सवाल भी उठे खासकर उनके सामाजिक योगदान को लेकर । देश और प्रदेश में बहुत सी विभूतिया ऐसी हुई है जिनका आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी के बाद भी बड़ा योगदान रहा है । पर उनके नाम किसी ने कोई सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया इसलिए यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है । इनमे जेपी ,वीपी से लेकर आचार्य नरेन्द्र देव भी आते है । कांशीराम ने एक जाति को राजनैतिक ताकत दी पर और लोग भी हुए है जिनका बड़ा सामाजिक योगदान है । अगर यह रास्ता खुला तो कल किसी और ऐसे नेता जिसने अपनी जाति की बेहतरी के लिए काम किया हो उसके नाम भी इसी आधार पर अवकाश की मांग की जाएगी । दरअसल उत्तर प्रदेश में कांशीराम ने दलितों को लामबंद कर उन्हें सत्ता तक पहुँचाया जिसे उनका बड़ा योगदान माना जाता है पर मायावती ने उनके नाम अवकाश घोषित कर राजनैतिक फायदा लेने की कोशिश की । यही वजह है कि समाजवादी पार्टी सरकार के फैसले को सही कदम मानती है । पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -सरकार ने पहले की सरकार की गलती को सुधारा है । बहरहाल ज्यादातर लोगो का मानना है कि इससे दलित अस्मिता से न जोड़ते हुए एक व्यापक नीति बनाकर अब तक घोषित सभी सार्वजनिक अवकाश की समीक्षा की जाए यह समाज के लिए बेहतर कदम होगा । जनसत्ता

Saturday, October 6, 2012

मायावती के गले की हड्डी बन गए सिपहसालार

अंबरीश कुमार लखनऊ,6 अक्टूबर। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के सिपहसलार ही अब उनका संकट बढ़ा रहे है । अखिलेश यादव सरकार के सात महीने होने जा रहे है प़र मुख्य विपक्षी दल यानी बहुजन समाज पार्टी सरकार को घेरने की बजाय खुद घिरती जा रही है । आमतौर पर मुख्य विपक्षी दल सरकार बनने के छह महीने बाद खुलकर विरोध पर उतरने लगते है पर उत्तर प्रदेश में उल्टा हो रहा है । सत्तारूढ़ दल हमलावर मुद्रा में है और मुख्य विपक्षी दल बचाव की मुद्रा में । बाबूसिंह कुशवाहा तो विधान सभा चुनाव से पहले ही बसपा के साथ भाजपा के गले की हड्डी बने अब रही सही कद्र कसर लगता है लोकसभा चुनाव से पहले मायावती के बाकी मंत्री पूरी कर देंगे । मायावती के राज में बुंदेलखंड के बाहुबली मंत्री रहे बादशाह सिंह लैकफेड घोटाले के चालते जेल भेजे जा चुके है । इसके बाद सहकारिता विभाग की विशेष जाँच शाखा यानी एसआईबी ने पूर्व मंत्रियों रंगनाथ मिश्र ,अवधपाल सिंह यादव , अनीस अहमद ,नंद गोपाल नंदी ,चौधरी लक्ष्मी नारायण और चन्द्र मोहन देव यादव को नोटिस जारी किया है । खास बात यह है किस इस सूची में दो नाम गायब है जो नसीमुद्दीन और स्वामी प्रसाद मौर्य के माने जा रहे है । हालाँकि बादशाह सिंह पहले ही इससब के लिए पंचम तल की तरफ उंगली उठा चुके है जहाँ दो अफसरों शशांक शेखर सिंह और विजय शंकर पांडे की सत्ता चलती थी ।हालांकि ये दोनों अफसर एक दूसरे की टांग भी खींचते रहते थे । इनमे एक एक उद्योग घराने से लेकर मंत्रियों से डील करते थे तो दूसरे सर्वजन के प्रतीक थे और उनके हर फैसले में यह झलकता भी था । मीडिया की नकेल कसने के लिए जितने भी अजीबोगरीब नियम बने उसका श्रेय पांडे को जाता है जिन्होंने मायावती के खिलाफ माहौल बनवाने में बड़ी भूमिका निभाई । हालाँकि बाद में उनकी भूमिका भी बहुत छोटी रह गई थी पर पंचम तल यानी मुख्यमंत्री सचिवालय का राजनैतिक प्रतीक यही दोनों अफसर रहे । किसी मामले में यह भी चपेटे में आ जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए । राजनैतिक टीकाकार वीरेन्द्रनाथ भट्ट ने कहा -यह मामला मायावती के लिए बड़ा राजनैतिक संकट बनेगा खासकर लोक्साभा चुनाव से पहले । जिस घोटाले में बसपा का शीर्ष नेतृत्व फंस रहा हो वह मामला कितना गंभीर होगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया लगायाता है । इस मामले में नसीमुद्दीन और स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम आने के बाद बसपा के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं है । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने कहा है कि “चोर मचाए शोर“ कहावत की तर्ज पर बसपा नेता अपने काले कारनामों के उघड़ने पर अनर्गल बयानबाजी पर उतर आए हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में करोड़ों का घपला ही नहीं हुआ दो सीएमओ और एक डिप्टी सीएमओ की हत्या भी हो गई जिसकी सीबीआई जांच हुई है। लैकफेड घोटाले में परत-दर-परत बंदरबांट की नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं । घोटाले के अभियुक्त अपने साथियों के साथ बसपा राज के कई मंत्रियों की करतूतें भी बयान कर रहें हैं। बसपा नेता इससे बहुत हैरान परेशान हैं क्योंकि उन्हें कानून की गिरफ्त में आने का डर सता रहा है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने ने कहा -बसपा के कुछ नेता इतना आतंकित हैं कि वे अपनी ही बातें काट रहे हैं। एक बड़े बसपा नेता एक तरफ तो अपने जमाने के एक मंत्री की गिरफ्तारी को गलत बताते हुए उनका बचाव करते हैं और दूसरी तरफ उनके पंचमतल पर उंगली उठाने को दुराग्रहपूर्ण बयानबाजी बताते हैं। पिछले पांच सालों के इतिहास के हर जानकार को यह पता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री तो घर को ही दफ्तर समझती थी और जो कुछ भी होता था सब पंचमतल से ही होता था। उस समय तो चुनाव हों या स्थानान्तरण, ठेकों की नीलामी हो या सरकारी मिलों की बिक्री इस सबका फैसला मुख्यमंत्री कार्यालय से ही होता था। समाजवादी पार्टी ने तब महामहिम राज्यपाल को भी कई ज्ञापन देकर बताया था कि सचिवालय एनेक्सी के पंचमतल से ही भ्रष्टाचार का परनाला बह रहा है। रागद्वेष की बात करनेवाले यह क्यों भूल जाते हैं कि बसपा मुख्यमंत्री ने सत्ता में आने के पहले दिन ही पूर्व मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ 150 से ज्यादा मुकदमें दर्ज करवा दिए थे। पंचायत चुनावों में डीजी से लेकर दरोगा तक और डीएम से लेकर लेखपाल तक को बसपा के चुनाव एजेन्ट की तरह इस्तेमाल किया गया था।

Thursday, October 4, 2012

एक बेमिसाल विद्रोही

एस मुलगांवकर
रामनाथ गोयनका ने मौत को भी आसानी से नहीं जीतने दिया,ठीक उसी तरह जैसे सारी जिंदगी उन्होने बिना संघर्ष किए कभी हार नहीं मानी.तीन साल से स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा था. सांसें कभी भी उनका साथ छोड सकती थीं.पिछले छह महीने में दो बार डाक्टर उन्हे कुछ ही घंटे का मेहमान करार दे चुके थे.लेकिन उन्होने जबरदस्त संघर्ष करके मौत का मुह फेर दिया.ब्रीच कैन्डी अस्पताल के एक डाक्टर का तो कहना था कि इस व्यक्ति ने न केवल आयुर्विज्ञान बल्कि प्रकृति को भी अंगूठा दिखा दिया. गोयनका जी ने अपनी जीवनधारा के बारे में कई भविष्यवाणियों को झूठा साबित किया. इसकी इंडियन एक्सप्रेस से बेहतर मिसाल क्या हो सकती है.तीस के दशक में उनहोने यह अखबार शुरू किया.तब न इसका संपादन ठीक से होता था और न छपाई.हिंदू और मद्रास मेल जैसे तगडे प्रतिद्वंदियों से इसका मुकाबला था.एक्सप्रेस को बहुत कम विज्ञापन मिलते थे और इसका प्रसार भी कम था. तब किसी को यकीन नहीं था कि एक्सप्रेस टिका रहेगा.अक्लमंदी का तकाजा था कि अखबार को बंद कर दिया जाता. लेकिन गोयनका जी ने इसे स्वीकार नहीं किया.एक विदेशी शासन के खिलाफ उनका प्रखर राष्ट्रवाद भी उनके लिए नुकसानदेह साबित हो रहा था.फिर भी उन्होने प्रकाशन जारी रखा.आखिर में उन्ही की जीत हुई पर यह जीत उनके लिए वर्णनातीत थी.आगे पढ़े - गोयनका जी अंत तक एक बेमिसाल विद्रोही रहे. इंडियन एक्सप्रेस के जम जाने के बाद भी वे हमेशा किसी न किसी लक्ष्य के लिए किए जाने वाले संघर्ष में अपना सब कुछ दांव पर लगा देने से कभी पीछे नहीं हटे. 1975 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो वे कलकत्ता के एक अस्पताल में दिल के दौरे से जूझ रहे थे.कई महीने तक वे नीम-बेहोशी में रहे. जब वे ठीक हुए तो पाया कि सरकार ने एक्सप्रेस पर अपना निदेशक मंडल थोप दिया है.सभी ने उन्हे सलाह दी कि वे शांति से काम लें. अगर उन्होने जल्दबाजी में कुछ किया तो उन्हे ही नुकसान होगा क्योंकि देश में इमरजेंसी लगी हुई है.पर गोयनका जी ने जो किया वो काफी हद तक भौचक्का कर देने वाला था.उन्होने मद्रास से दिल्ली की उडान भरी और सरकारी बोर्ड को भंग करके चेयरमेन के रूप में बागडोर संभाल ली. सरकार के पास इमरजेंसी अधिकार थे लेकिन वह चुप रही.गोयनका जी ने सब कुछ दाव पर लगाकर इस तरह ये लडाई जीत ली.कुछ दिनों बाद उन्हे फिर ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ा.सरकार ने दीवानी और फौजदारी के 250 मुकदमे उनपर लाद दिए.कुछ निजी तौर पर उनके खिलाफ थे और कुछ एक्सप्रेस के, ताकि उनपर हर तरह का दबाव डाला जा सके. फिर उन्हे वही सलाह दी गई कि सरकार से टकराना पागलपन होगा.गोयनका जी ने एकबार फिर इस सलाह की उपेक्षा की और कई साल तके वे इन दबावों को झेलते रहे. यहां गोयनका जी के अपूर्व साहस की चर्चा करना अनावश्यक है.एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में इंडियन एक्सप्रेस को सिर्फ साहस के आधार पर ही खडा नहीं किया जा सकता था.इस अखबार को स्वतंत्र विचारों का बनाने के बारे में उनका इरादा शुरू से ही पक्का था इसीलिए राजनैतिक रूप से कांग्रेसी होते हुए भी उन्होने कभी भी अखबार को पार्टी का मुखपत्र नहीं बनने दिया. न ही उन्होने उस पर अपने विचार थोपे.वे अपना वास्ता अखबार की व्यापक नीति से ही रखते थे.अखबार की स्वतंत्रता को मजबूत करने वाले किसी भी विचार और सुझाव का स्वीकार करने के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे. जब उनसे कहा गया कि अमेरिकी और यूरोपीय शैली के लोकपाल को अपनाना सार्वजनिक हित और मूल्यधर्मी पत्रकारिता के पक्ष में होगा तो उन्होने इसे उत्साह पूर्वक लिया. इसपर अमल क्यों नहीं हो सका इसके पीछे साजिश और स्वार्थ की कहानी है जिसे मै यहां पेश नहीं करूंगा. दोबारा उन्हे एक संपादकीय ट्रस्ट बनाने का सुझाव दिया गया जो निर्धारित नीति से अखबार के हटने के खिलाफ सतर्क रहता. गोयनका जी ने इसपर अमल शुरू तो कियी पर शायद ज्यादा उम्र के कारण वे इसके लिए जरूरी गतिशीलता नहीं जुटा पाए और इस विचार के विरोधी कामयाब हो गए. वृद्धावस्था और और खराब स्वास्थ्य ने उस शानदार विद्रोही से यह कीमत वसूल की.आज का दिन भारतीय पत्रकारिता के लिए सर्वाधिक दुखद दिन है. (आज रामनाथ गोयनका की पुण्य तिथि है .उनके निधन पर पांच अक्तूबर १९९१ को इंडियन एक्सप्रेस के संपादक एस मुलगांवकर ने जो लिखा वह एक बार फिर दिया जा रहा है )