Thursday, February 28, 2013

यह अखिलेश का दबदबा है

बसपा तीसरे नंबर पर,भाजपा और कांग्रेस की जमानत जब्त अंबरीश कुमार लखनऊ ,1,मार्च ।सत्ता का एक साल पूरा करने से पहले ही पूर्वांचल का पहला उप चुनाव 34000 वोटों से जितवा कर अखिलेश यादव ने राजनैतिक दबदबा दिखा दिया है । इस चुनाव में दोनों राष्ट्रीय विपक्षी दलों भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है ।समाजवादी पार्टी का कोई भी शीर्ष नेता भाटपाररानी विधान सभा क्षेत्र में नहीं गया और आज वह सपा के उम्मीदवार आशुतोष उपाध्याय उर्फ़ बबलू ने चौतीस हजार वोटों से अपनी जीत दर्ज कर सभी दलों को तगड़ा झटका दिया है । यह उत्तर प्रदेश के मौजूदा राजनैतिक हालत को भी दर्शा रहा है जिसमे विपक्ष फिलहाल बहुत दयनीय स्थिति में है । तीसरे नंबर पर रहने वाली बसपा ने मतगड़ना के बाद धांधली का आरोप लगाया है ।सपा के आशुतोष उपाध्याय ने 73100 वोट लेकर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी शुभ कुंवर को 34102 वोटों से हराया । शुभ कुंवर को 38998 वोट मिले जो बसपा का बागी उम्मीदवार था जबकि वास्तविक उम्मीदवार बिंद सिंह कुशवाहा को 24711 वोट मिले । इसके आलावा सभी की जमानत जब्त हो गई । इस चुनाव में कांग्रेस के निर्मल खत्री से लेकर बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य और भाजपा के सूर्य प्रताप शाही की प्रतिस्था दांव पर लगी थी जो ध्वस्त भी हो गई । गौरतलब है भाटपारानी विधान सभा क्षेत्र में उपचुनाव राज्य सरकार में मंत्री श्री कामेश्वर उपाध्याय के निधन के कारण हुआ है। समाजवादी के ब्राह्मण उम्मीदवार को मिले सत्तर हजार से ज्यादा वोट पार्टी के लिए राजनैतिक रूप से बहुत मददगार है जिसके खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था कि पूर्वांचल में स्थिति ख़राब हो चुकी है । पर इतने वोट अलग कहानी कह रहे है और यह समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए भी महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।पूर्वांचल में विरोधी दल दावा कर रहे थे कि इतने दंगे हुए है अखिलेश के राज में कि कोई वोट नहीं देगा और सपा की करारी हार होगी होगी । पर मामला उलट गया । समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि भाटपाररानी विधान सभा क्षेत्र के उपचुनाव के आज घोषित परिणाम से स्पष्ट हो गया है कि जनता को अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी समाजवादी पार्टी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर पूरा भरोसा हे और इस सरकार की लोकप्रियता बराबर बढ़ रही है। मतगणना में समाजवादी पार्टी प्रत्याशी आशुतोष उर्फ बबलू की 34 हजार से ज्यादा वोटों से जीत इस बात पर भी मुहर लगाती है कि समाजवादी पार्टी सरकार के विकास एजेण्डा से जनता संतुष्ट है और बसपा के कुशासन तथा तानाशाही को अभी तक भूली नहीं है। इसीलिए उसने बसपा प्रत्याशी बिन्दा कुशवाहा को तीसरे नम्बर पर ढकेल दिया है। भाजपा की भी बुरी गत बनी है। कांग्रेसी प्रत्याशी को जिस तरह उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने नकारा है उससे यह साफ़ संकेत मिलता है कि केन्द्र सरकार की नीतियों से जनता में घोर असंतोष है। इस बीच बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता ने आज यहाँ आरोप लगाया कि भाटपाररानी (देवरिया) विधान सभा उपचुनाव जीतने के लिये सत्ताधारी सपा द्वारा अपनी गिरती साख के मद्देनजर बड़े पैमाने पर धांधली व सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया गया है।जनसत्ता

Friday, February 22, 2013

अस्सी साल पूरे हुए -केपी सक्सेना

अस्सी साल पूरे हुए -केपी सक्सेना व्यंग्य की दुनिया में लखनऊ के पद्मश्री केपी सक्सेना एक जाना पहचाना और सम्मानित नाम हैं.साथ ही उनकी ख्याति लगान,स्वदेस,जोधा-अकबर और हलचल जैसी चर्चित फिल्मों के संवाद लेखक के रूप में भी है. शोहरत की तमाम बुलंदियों के बावजूद केपी को लखनऊ छोड़ना गवारा नहीं हुआ. शायद इसीलिए आशुतोष गोवारिकर की नई फिल्म की स्क्रिप्ट भी वे अन्य फिल्मों की तरह लखनऊ में रहकर ही लिख रहे हैं. हिमांशु बाजपेयी ने केपी से उनके व्यंग्य और फिल्मी लेखन के अनुभव के बारे में बातचीत की. आदी सदी से ज्यादा समय हो गया आपको समसामयिक घटनाओं में व्यंग्य का पहलू खोजते हुए, क्या इस दौर में भी ये काम उतना ही सहज है जितना जवानी में हुआ करता था ? अस्सी साल पूरे कर लिए हैं मैने उम्र के. अट्ठारह हज़ार प्रकाशित व्यंग्य हैं.इन्ही के चलते जो कुछ मिला है वो सब आप जानते ही हैं.इसलिए अब जवानी की तरह ढेर सारा लिखने का मतलब नहीं बनता.चुनिन्दा तौर पर लिखता हूं, जिस विषय पर लिखना अनिवार्य हो जाए. इसीलिए अब कम ही छपता हूं. सिर्फ हिन्दुस्तान में एक कालम जो मेरी बहन मृणाल पान्डेय के विशेष आगृह पर लिखना शुरू किया था वही नियमित लिखता हूं, लेकिन दिमाग व्यंग्य को आज भी उसी तरह सूंघता, खोजता और सोचता है भले ही मै लिखूं न. तीन घंटे पहले ही जो अखबार आया है उसमें अमर सिंह को तिहाड़ भेजे जाने की हेडलाइन है. पढ़ते ही पढ़ते मै सोच रहा था कि तिहाड़ न हुआ कोई महातीर्थ हो गया. सब इसी ओर प्रस्थान कर रहे हैं. अमां और भी तो जेले हैं मुल्क में...इस तरह दिमाग आज भी उसी तरह वयंग्य कसता है.बस अब लिखता कम हूं. आपके जब लिखना शुरू किया होगा तब तो लखनऊ में कविता,कहानी और उपन्यास का माहौल था, फिर आपने व्यंग्य को ही क्यों चुना ? आपकी बात सही है. व्यंग्य मैने चुना नहीं, ये मेरे गुरू अमृतलाल नागर ने मेरी पीठ पर लाद दिया, उनकी इच्छा को आजतक निभा रहा हूं. उस दौर में लखनऊ में कहानी, उपन्यास और शायरी की ही धूम थी.इन्ही विधाओं में व्यंग्य यत्र-तत्र निहित रहता था. मै भी शुरूआत में उर्दू में अफसाने लिखा करता था. नागर जी ने मुझसे कहा कि केपी क्रिकेट का खिलाड़ी भी शाट मारने से पहले फील्ड को देख लेता है और उधर ही शाट मारता है जिधर फील्डर कम हों. कहानी में फील्डर बहुत ज्यादा हैं, इसमें आगे बढ़ने में ज्यादा साधना करनी पड़ेगी.जबकि व्यंग्य की विधा में अभी भी मैदान खाली है. तुम्हारी नई शैली का लोग स्वागत करेंगे.(उस समय तक हिन्दी व्यंग्य में सिर्फ परसाई जी स्थापित थे, उनकी शैली विशुद्ध व्यंग्य की मारक शैली थी, नागर जी व्यंग्य में हास्य के पक्षधर थे.) इसी के बाद मैने व्यंग्य में कदम रखा. शरद जोशी भी लगभग उसी समय अवतरित हुए. परसाई जी और आपके सोचने में मूल अंतर क्या है ? परसाई जी की शैली तीखी और गहरा काटते हुए चले जाने वाले व्यंग्य की है. मै व्यंग्य में नागर जी की प्रेरणा से आया. नागर जी के व्यंग्य में हास्य घुला हुआ रहता था.वही शैली मेरी भी रही. मतलब तीखी बात हंसी की मिठास के साथ देने की.कई बार इससे चोट भले ही कम लगती हो लेकिन असर देरतक रहता है.शरद जोशी की शैली भी इसी तरह की है. मेरा मानना है कि व्यंग्य एक तरह की तीखी एंटीबायोटिक दवा है जिसे अंदर पहुंचाने के लिए उसे हास्य के स्टार्च कैप्सूल खोल में लपेटना जरूरी होता है. वरना कई बार दवा अंदर नहीं जा पाती.मै व्यंग्य में हास्य मिलाकर पेश करने का हिमायती हूं. व्यंग्य लिखते-२ फिल्मी संवाद कैसे लिखने लगे ? परेश रावल की वजह से. उन्होने ही आमिर खान को लगान के लेखन के लिए मेरा नाम सुझाया था. परेश मेरे बहुत पुराने दोस्त हैं.असल में आमिर को फिल्म में अवधी जुबान, अंग्रेजी मिली हिन्दी और बादशाही जुबान तीनों में संवाद चाहिए थे. परेश रावल ने आमिर खान को कहा कि इसके लिए एकदम फिट आदमी को जानता हूं लेकिन वो फिल्म का आदमी नहीं हैं. पहली बार लिखेगा. आमिर ने कहा कि मेरा भी पहला प्रोडक्शन है. फिर आमिर खान ने मुझे फोन किया. पहले तो मुझे लगा कि कोई मुझसे मजाक कर रहा है. मैने उनसे पूछा भी कि स्थापित फिल्मी लेखकों के होते हुए भी मेरे जैसे अखबारों, मैगजीनों में लिखने वाले को क्यो याद किया. आमिर ने कहा क्योंकि इस फिल्म को आपकी जरूरत है. आपने चार फिल्मों के संवाद लिखे, सबसे ज्यादा संतुष्टि किस फिल्म से मिली ? जोधा-अकबर से. क्योंकि एक तो इसमें मुझे दौरे-मुगलिया के असली ऐतिहासिक पात्रों के संवाद लिखने थे,जिनमें अकबर,जोधाबाई,मान सिंह,टोडरमल जैसी बड़ी ऐतिहासिक शख्सियतें थी.दूसरी और ज्यादा अहम बात ये है कि इसमें मुझे मेरी उर्दू को बाहर लाने का मौका मिला था.मुझे ज्यादा खुशी इसी बात की थी.क्योंकि मूलत: मै उर्दू का ही आदमी हूं. मैने लेखन की शुरूआत इसी से की थी. इस फिल्म में मुझे मेरे हिन्दी उर्दू के भाषाई हुनर को पूरी तरह दिखाने का मौका मिला. आगे कौन सी फिल्मों के लिए लिख रहे हैं ? ज्यादा नहीं. आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक विषय पर एक फिल्म बनाने वाले हैं. जिसके संवाद लिखने हैं इसके अलावा उन्ही की एक कामेडी फिल्म भी लिखनी है. जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

Monday, February 18, 2013

काटजू के समर्थन में आए समाजवादी और वामपंथी

कहा- फासीवादी ताकते अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला कर रही अंबरीश कुमार लखनऊ ,१८ फरवरी । उत्तर प्रदेश के पुराने वामपंथी और समाजवादी छात्र नेताओं ने प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू को बर्खास्त करने की भाजपा की मांग का जोरदार विरोध किया और काटजू का समर्थन करने का एलान किया ।इन नेताओं ने काटजू पर हमला अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया ।गौरतलब है कि ये सभी छात्र नेता उस दौर के ही जब काटजू इलाहाबाद विश्विद्यालय में सक्रिय थे । इलाहाबाद विश्विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और इंडिया पीपुल्स फ्रंट राष्ट्रीय संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा-जस्टिस काटजू ने जो कहा वह देश का लोकतांत्रिक समाज पहले से कहता रहा है । दरअसल फासीवाद जिसकी पोषक संघ और भाजपा रही है वह यह सच स्वीकार करने की बजाय सच के दमन पर आमादा है जिसका पुरजोर विरोध किया जाएगा । मेरठ विश्विद्यालय के जाने माने छात्रनेता और समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि भाजपा तो फासीवादी और तानाशाही वाली प्रवृति की वाहक रही है इसलिए उसके नेताओं की टिपण्णी उनकी विचारधारा की पुष्टि ही करती है ।गुजरात में मोदी ने जो किया वह किसी से छुपा नहीं है काटजू ने सच लिखा है और कट्टरपंथी ताकते उसका इसीलिए उसका विरोध कर रही । वाराणसी के छात्र नेता और किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा कि काटजू ने सही बात लिखी है और अगर प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष को यह आजादी नहीं रही तो वह प्रेस की आजादी की लड़ाई कैसे लड़ेगा । काटजू पर यह हमला अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है । सभी लोकतांत्रिक ताकतों को इसका विरोध करना चाहिए। बनारस हिंदू विश्विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और मशहूर चित्रकार चंचल ने कहा - काटजू साहिब ने गलत क्या कहदिया है ? नरेंद्र मोदी जिस रास्ते पर थे , और जिस रास्ते से गुजरात में हाथ पाँव फैला रहे हैं वह एक आत्मघाती संकीर्णता है और खुल्लम खुल्ला जनतंत्र पर हमला .।यह हम इस लिए कह रहे हैं कि धार्मिक उन्माद के सहारे एक चुनी हुई सरकार अगर दूसरे धर्म के ऊपर हुकूमती डंडे से सरकार चलाने का दावाचाहिए करती है तो यह किसी कौम को खौफजदा कर के उस पर अपनी हुकूमत थोपना भर नही है बल्की यह जम्हूरी निजाम को तोडना है ।मोदी ने गुजरात में वही किया है ।खुला सरकारी हमला है । अगर काटजू ने यह कह दिया तो तो यह उनका हक बनता है कि वह सच को सच कहें . क्योकि जैसे जिम्मेदार ओहदे पर काटजू बैठे वह राशन की दूकान नहीं है।वह मीडिया को संचालित और सही ढर्रे पर चलने वाली नियंत्रक संस्थान से बा वास्ता है । जनतंत्र में मीडिया चौथा खम्भा ।है जिस पर जम्हूरी निजाम खड़ा होता है । मोदी के बचाव और काटजू जी के ऊपर आरोप लगानेवाले हमारे पुराने मित्र और धुर विरोधी अरुण जेटली एक तरह से अपने ही नेताओं के खिलाफ बोल रहे हैं । जेटली गुजरात मे जब मुसलमानों पर कत्लेआम हो रहा था उस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी का बयान क्यों खारिज कर रहे हैं ? इतना ही नहीं स्मृति इरानी ने तो और भी आगे जा कर बोल दिया था । तब आप कहाँ थे जेटली साहिब ? जेटली साहिब आपको याद होगा जब मै बनारस विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहा था तो आप मेरे खिलाफ संघी उम्मेदवार के प्रचार में आए थे ।आपने विश्विद्यालय का फैसला तो देखग ही लिया था । आप से अनुरोध है कि देश में समतामूलक समाज के निर्माण में आप सच को स्वीकार करे।निर्माद में आप सच को स्वीकार करे।जनसत्ता

Wednesday, February 13, 2013

राज कुमार सोनी

अपने मोहल्ले की लड़कियां एक लड़की सीखने जाती है सिलाई मशीन से घर चलाने का तरीका एक लड़की दिनभर सुनती है लता मंगेशकर का गाना एक लड़की सुबह भाई को स्कूल छोड़ती है और.. पिता को अस्पताल एक लड़की छत पर खड़े होकर पतंग को कटता देख लगती है रोने एक लड़की शिकाकाई से धोए बालों को मुस्कुराकर सुखाती है आंगन में एक लड़की छज्जे पर केवल कंघी-चोटी करते हुए ही आती है नजर एक लड़की हटती ही नहीं है. आइने के सामने से एक लड़की छोटी सी छोटी बात पर हो जाती है परेशान और पोंछते रहती है पसीना एक लड़की जरा सी गलती पर गिलहरी की तरह कुतरती है दांतो से नाखून एक लड़की छोटे बच्चों को पढ़ाती है ट्यूशन एक लड़की हर रोज चढ़ाती है तुलसी को एक लोटा पानी एक लड़की किसी न किसी घर थाली पर अपने हुनर का घूंघट ओढ़ाकर ले जाती है मीठे-मीठे पकवान एक लड़की हर तीसरे दिन किसी अन्जान आदमी को गाना सुनाती है सितार बजाती है और बताती है चिड़ियां उसने बनाई है तोता भी उसका बनाया हुआ है. मेरे मोहल्ले में कुछ लड़कियां चश्मा पहनती है कुछ मेहन्दी लगाते रहती हैं आप सोच रहे होंगे कि अच्छा लड़कीबाज आदमी है जो लड़कियां देखते रहता हैं क्या करूं साहब.. जिस मोहल्ले में रहता हूं वहां कुछ इसी तरह की लड़कियां रहती है इन लड़कियों में से कोई न कोई लाल रिबन बांधकर झम से आ खड़ी होती है मोटर साइकिल के सामने और थमा जाती है किसी न किसी ईश्वर का प्रसाद. मैं अपने मोहल्ले की लड़कियों को घूरता नहीं... देखता हूं हर रोज ... देर रात जब मैं लौटता हूं अखबार के दफ्तर से तब लड़कियां सीरियल देखकर सो चुकी होती हैं मैंने अब तक मोहल्ले की किसी भी लड़की को काली कार से उतरते हुए नहीं देखा है. इस कविता के लिखने वाले के बारे में भी कुछ कहना चाहता हूँ । अजित अंजुम कुछ दिन पहले जब गीताश्री के साथ घर तो कहा कि कुछ औरों के बारे में भी लिखूं कुछ लाइनों से शुरुआत गीताश्री से की जिनपर लिखने को तो पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है । खैर यह सुझाव अपने को अच्छा लगा और सोचा है बारी बारी से बहुत से लोगों पर लिखूंगा । वर्ष 2000 में जब रायपुर में इंडियन एक्सप्रेस की जिम्मेदारी सँभालने पहुंचा तो कुछ ही दिन में जनसत्ता का रायपुर संस्करण निकालने की भी जिम्मेदारी मिली और जब लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार ले रहा था तभी दुर्ग-भिलाई के एक नौजवान से मुलाकात हुई जिसका लिखा सबसे अलग किस्म का था और मैंने पूछा आप कब से ज्वाइन कर सकते है ,इस पर उसने कुछ संकोच के साथ कहा -काम क्या क्या करना होगा तो मेरे समझ में नहीं आया और मैंने कहा ,जब संवाददाता रखा जा रहा है तो खबर करनी होगी और क्या करेंगे । इस पर उसने फिर सवाल किया कि क्या विज्ञापन भी लाना होगा तो बहुत कोफ़्त हुई उससे कहा कि इंडियन एक्सप्रेस का मार्केटिंग विभाग है संपादकीय विभाग का कोई सम्बन्ध नहीं होता । ये सज्जन थे ,बहरहाल मैंने उन्हें जब नियुक्त करने का फैसला किया तो साथ बैठे गोपाल दास ने कहा -अरे भाई साहब यह तो बड़ा डैंजरस किस्म का कम्युनिस्ट पत्रकार है आप गलत कर रहे है । बहरहाल अपनी आदत के हिसाब से जो फैसला किया उसमे किसी न सुनता हूँ न सुनी । सोनी जनसत्ता में आए और जब उनकीएक से ज्यादा ख़बरों पर नाम देना शुरू किया तो कई लोग भड़क गए जिनमे विजय बुधिया के चाचा से लेकर कई सहयोगी भी थे । अनिल सिन्हा भी । अनिल सिन्हा को प्रदीप मैत्र के कहने पर रखा गया था क्योकि वे नौकरी की तलाश में थे । सोनी ने जोरदार खबरे की और मुख्यमंत्री अजित जोगी उसी सब को लेकर नाराज भी हुए पर राजकुमार सोनी की प्रतिभा सामने आ चुकी थी । राजकुमार सोनी के खुद अपने बारे में लिखा है -दुनिया में आंखे खोलने की तारीख थी- 19 नवंबर। भिलाई इस्पात संयंत्र के कोकवन में काम करने वाले मजदूर पिता ने मुझे बेफिक्री से सोते हुए देखकर कहा-हमारी झोपड़ी में तो लाट साहब आ गया है. धीरे-धीरे नाम पड़ गया- राजकुमार. स्कूल से भागकर फिल्म देखने के शौक के चलते जैसे-तैसे शिक्षा पूरी हुई। गांधी डिवीजन लेकर बीकाम पास. कुछ साल लेखकों के मठों और गिरोह से जुड़कर कविताएं लिखी, लेकिन जल्द ही पता चल गया कि कम से कम कविताओं से तो पेट नहीं भरा जा सकता. कोरस, मोर्चा, घेरा, गुरिल्ला, देश जैसे नाटक लिखे. तमाम तरह की नौटंकियों से गुजरने के बाद फिलहाल कुछ सालों से सक्रिय पत्रकारिता में. देशबन्धु भोपाल, जनसत्ता में काम करने के बाद इन दिनों तहलका हिंदी में प्रमुख संवाददाता ( छत्तीसगढ़ ) की हैसियत से कार्यरत। एक आदिम इच्छा- हिंदी में सुपरहिट मसाला फिल्म बनाने की.।

Friday, February 8, 2013

स्वाद जो भूलता नहीं

अंबरीश कुमार पिछले कुछ सालों में बहुत यात्रा की और जगह जगह का पानी पिया ।बस्तर के जंगलों से लेकर वायनाड के रिसार्ट तक ।खुबसूरत समुद्री तट से लेकर हिमालय की वादियों तक ।जगह जगह के खानसामो का बनाया अद्भुत व्यंजन का स्वाद लिया पर कई जगह के खानसामों के हाथ का बनाया आज तक नहीं भूलता । बस्तर के जगदलपुर में जब गया तो शाम हो चुकी थी और अँधेरा हो चूका था ।जंगलात विभाग के एक पुराने डाक बंगले में रहने का इंतजाम था । आधा परिवार शुद्ध शाकाहारी है इसलिए मै और अम्बर ही सामिष श्रेणी के थे ।रायपुर से चलने से पहले ही हमेशा की तरह उन्होंने खाने के बारे में पूछ लिया गया था । खाने की मेज पर जब प्लेट लगने लगी तो बताया गया कि मशहूर कड़कनाथ बनवाया गया है जो डाक बंगले के बहुत बुजुर्ग खानसामा ने बनाया था ।ऐसा स्वाद चढ़ा की आज तक भूलता नहीं है और जब भी बस्तर गया कोशिश यही रही कि वह स्वाद मिल जाये पर नहीं मिला । बाद में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राजनारायण मिश्र ने मुझे लखौली के पास एक गाँव में दावत दी जो वहां छत्तीसगढ़ी शैली में बनाए व्यंजनों की थी और खेत में तेजपत्ता के पेड़ के पास बैठकी भी चली । बहुत गौर से मैंने मसलों को भुने जाने से लेकर समूचा खाना बनते देखा और वह स्वाद आज भी याद है ।छत्तीसगढ़ में जगह जगह ताल तालाब है और बहुत अच्छी प्रजाति की मछलियां मिल जाती है और सिंचाई विभाग के एक पुराने डाक बंगले में मैंने खुद कई बार बनाया और कई मित्रों ने स्वाद भी लिया । प्रदीप मित्र से ,अल्लू चौबे लेकर राजकुमार सोनी और प्रकाश होता तक ।पर कई जगह का भोजन जो याद है उसमे कन्याकुमारी के विवेकानंद आश्रम का खाना नहीं भूलता ।मदुरै से जिस बस से चले थे वह ख़राब हो गई और किसी तरह रात साढ़े ग्यारह बजे कन्याकुमारी के विवेकानंद आश्रम पहुंचे ।तब वह जंगल जैसे माहौल में मुख्य कसबे से दूर था और कोई दूकान भी आसपास नहीं थी । पापा ने खाने के बारे में पता किया तो बताया गया अब खाना नहीं मिल सकता सिर्फ एक चांस है की गुजरात से जो तीर्थयात्री आ रहे है उनकी संख्या अगर ज्यादा नहीं हुई तो बुला लिया जाएगा । इस बिच हम लोग कमरे में चले गए सामान रखने के लिए । बहार हवा ठंडी थी और समुंद्र के पास में होने का अहसास करा रही थी तो नारियल के खड खडाते पत्ते रात का माहौल रहस्मयी बना रहे थे । इस बीच रिशेप्शन से खाने के लिए बुलाने एक लड़का आ गया ।भूख जमकर लगी थी । पंगत में नीचे बैठते ही पत्तल पर गर्म गर्म चावल और सांभर ,रसम के साथ कई किस्म की सब्जी और चटनी भी दी गई । बाद में मठ्ठा और केला भी ।वह खाना नहीं भूलता है । इतना सादा और स्वादिष्ट खाना लगा पहले कभी नहीं खाया । इसके बाद लक्ष्य द्वीप की राजधानी कवरेती जिस एमवी टीपू सुलतान जहाज से गए उसका खाना भी गजब का था ।इतनी लम्बी समुंद्री यात्रा पहली बार कर रहा था और सबसे उपरी मंजिल के एक फर्स्ट क्लास केबिन में थे । शाम को डेक पर कुछ देर बैठे फिर आराम करने चले गए । नीचे सविता और आकाश तो ऊपर की बर्थ पर मै । सोना बड़ा मुश्किल हो रहा था क्योकि लगता था पालने में सो रहा हूँ । नींद खुली तो खाने के लिए हाल में बुलाया जा रहा था जो डेक के साथ ही था । शाकाहारियों के लिए आलू टमाटर की सब्जी और चावल था तो दूसरा विकल्प मछली का था । मैंने मछली मांगी जो सरसों और टमाटर में बनी 'टूना ' मछली थी जो जापान में बहुत लोकप्रिय है और सबसे महँगी भी ।पहली बार मैंने स्वाद लिया तो हैरान रह गया क्योकि एक तो यह खट्टी थी दूसरे चिकन की तरह लचीली ।बाद में जब कवरेती और अगति से लेकर बांगरम द्वीप में रुक तो कई बार यह मीनू का हिस्सा बना । उस समय वह इसकी कीमत तीस रुपये किलो थी जो कोच्ची पहुँचते पहुँचते दो सौ रुपये किलो और अन्तराष्ट्रीय बाजार में सात सौ रुपये किलो हो जाती । वह स्वाद भी भूलता नहीं ।

Sunday, February 3, 2013

कुंभ के बाजार में भटकता हाशिए का समाज

अंबरीश कुमार कुंभनगर (प्रयाग ) ३ फरवरी ।कुंभ में एक बड़ा बाजार भी विकसित हो चुका है जो पहले के कुंभ से काफी अलग भी है ।धर्म आस्था और पुण्य के इस सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम में इस हाशिए के समाज को भटकता हुआ देखा भी जा सकता है। यह इस बाजार का सबसे कमजोर खरीदार भी है ।पर साधू संत और सन्यासियों का एक तबका ऐसा भी है जो भव्य आश्रम के अत्याधुनिक काटेज में रहता है और गंगाजल की जगह मिनरल वाटर पीता और पिलाता भी है ।उनके देशी विदेशी श्रद्धालु भी आभिजात्य वर्गीय होते है और उन्हें सारी सुविधाएँ एक धार्मिक पॅकेज की तरह कुंभ में मिल जाती है । इनके चलते इलाहाबाद के सभी बड़े होटल बुक हो चुके है और दुगनी कीमत पर भी नहीं मिल पा रहे है तो टैक्सी अब कानपुर से मंगवानी पड़ रही है क्योकि दस फरवरी को मौनी अमावस्या का शाही स्नान होना है और उस दिन बड़ी संख्या में लोग यहां आएंगे। इसके बाद बसंत पंचमी का स्नान है । दूसरी तरफ सिर पर मोटरी रखे पचहत्तर साल की दरपानी देवी अरैल के कल्पवासियों के बने तंबू की तरफ जाते हुए मिली ।घर से जो दाल चावल नमक तेल लेकर आई थी वह खत्म हो चुका था इसलिए राशन कि दूकान से सामान लेकर आई थी । बस्ती से आई इस बुजुर्ग महिला से यह पूछने पर कि क्या कोई दिक्कत तो नहीं है वे बोली -बबुआ ,तंबू में अँधेरा बा क्योकि पांच सौ में बिजली मिलत बा पर एतना पैसा नइखे ।कल्पवासियों के लिए तो नेता लोगन को सोचना ही चाहिए । हालाँकि सामने संगम की तरफ अद्भुत रौशनी नजर आ रही थी । समूचा कुंभ नगर जगमगा रहा था पर जिस तरह गांवों में दक्षिण टोले का हाल होता है वही हाल इनका भी दिखता है ।कुंभ की प्राइम लोकेशन बड़े साधू संतों और सन्यासियों ने अपने रसूख के हिसाब से ले ली और करीब महीना भर यहां रहने वाले कल्पवासी दूर के सेक्टर में पहुंचा दिए गए । इन लोगो की आस्था भी देखने वाली है जो नल का पानी पीने की बजाए संगम का पानी पीते है भले वह कैसा भी हो । इनमे ज्यादातर लोग गरीब है और काफी सामान लेकर आते है । एक समय खाना खाते है और शाम को आलू ,मटर या चना चबैना से काम चला लेते है ।पुआल पर दरी गद्दा बिछाकर सोते है और ठंड ज्यादा लगी तो पुआल को कम्बल पर भी दाल कर ओढ़ लेते है । दूसरे श्रधालु ऐसे भी मिले जो कुंभ में दो तीन दिन के लिए आते है और यही चूल्हा लकड़ी खरीद कर रेत पर खाना बनाता है और किसी न किसी आश्रम के पांडाल में रात गुजर देगा या रेत पर भी सो जाएगा । यह यहां के फुटकर बाजार का बड़ा खरीदार भी है । खास बात यह है कि इनका सामन बेचने वाले भी गरीब लोग है जो चूल्हा ,चकला ,बेलन चिमटा से लेकर सब्जी तक बेचते नजर आ जाएंगे। जगह जगह आसपास के गांव की महिलाएं बिंदी ,सिन्दूर कंघी शीशा आदि बेचती नजर आ जाएंगी ।यहां का बाजार आस्था से जुड़ा है इसलिए रुद्राक्ष ,स्फटिक से लेकर तुलसी की माला और धार्मिक साहित्य भी यहां जमकर बिक रहा है । लेकिन साधू संत और न्यासियों का एक वर्ग काफी अलग भी है जो अलग ढंग से रहता है और उसके यहां आने वाले श्रद्धालु भी अलग किस्म के होते है ।ऐसे एक सन्यासी ने कुंभ में जगह ली धार्मिक काम के नाम पर उसके यहां रिसार्ट जैसी सुविधाए है और उसका भुगतान भी ठीक ठाक होता है । बहुत से बड़े साधू संतो का अपना मीडिया केंद्र भी है तो जन संपर्क अधिकारी भी ।इनका प्रसाद भी अच्छी पैकेजिंग के साथ दिया जाता है । एक स्वामी के आश्रम में अमेरिकी फल और मेवा से स्वागत हुआ तो दूसरे के यहां कैलिफोर्निया से आई रोस्टेड काफी पीने को मिली । पर इस सबके साथ कुछ स्वामी पर्यावरण के क्षेत्र से लेकर योग और क्रिया योग के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे है ।चिदानंद मुनि के आश्रम में करीब चालीस देशों से श्रद्धालु आए हुए है ।उनका खानपान भी अलग होता है । उनके आश्रम के सामने ही एक मशीन लगाईं गई है जिसमे दो रुपए का सिक्का डालने पर एक लीटर शुद्ध गंगा जल मिलता है हालाकिं ।इसी तरह स्वामी सत्यम के यहां क्रियायोग को जानने समझने के लिए जो कक्षाएं चल रही है उसमे भी विदेशी पुरुष और महिलाएं हिस्सा लेती है । स्वामी सत्यम ने कहा -हमारे यहाँ करीब ढाई सौ विदेशी श्रद्धालु आए हुए है पर वे सभी आश्रम में ही रुकते है और वही खाना खाते है जो हम लोग खाते है ।हमारे यहाँ दूध या दूध से बनी किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं होता क्योकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है ।गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जब कुंभ में गए तो इनके आश्रम गए थे । इसी तरह कुछ सन्यासियों के आश्रम में उनकी सम्पन्नता और भव्यता भी दिखती है खासकर कई अखाड़ों के आश्रम में । इनमे बहुत से आश्रमों में विदेशी श्रद्धालु दिख रहे है । इनमे से कुछ के विदेशों में न सिर्फ भक्त है बल्कि आश्रम भी है और इनके लगातार विदेश दौरे भी होते रहते है।एक सन्यासी ने कहा -अब तो आस्था के इस क्षेत्र में भी ठेकेदारी शुरू हो गई है किसी को नदी की सफाई का ठेका मिल जाता है तो किसी को जागरूक करने का ।यह पहले नहीं होता था । फोटो -चिदानन्द मुनि के आश्रम में दो रुपये में एक बोतल शुद्ध गंगाजल देने वाली हाइटेक मशीन

Saturday, February 2, 2013

कुंभ का पुण्य

कुंभ का पुण्य टेंट से बाहर निकला तो घना कोहरा नजर आया । टेंट जिसे यहां अफसर लोग स्विस काटेज बता रहे है कुछ भव्य किस्म का है । बाहर एक बैठक है जहाँ सोफे लगे है तो बीच के हिस्से में डबल बेड और फिर पीछे के हिस्से में एक बेड का छोटा सा हिस्सा है । आगे और पीछे काफी हिस्सा है और पूरा परिसर टिन से घिरा है जिससे बहार जाने पर ताला लगा सकते है । हीटर रात भर चलता रहा इसलिए काटेज भी गर्म था । गंगा में डुबकी लगाने का काम कल शाम ही हो चुका था इसलिए सुबह जाने का कार्यक्रम तो बना पर हिम्मत नहीं हुई । वैसे भी अपना कोई धार्मिक रुझान नहीं है पर सविता को अगले जन्म की भी चिंता रहती है इसलिए हाथ पकड़ कर जब संगम के पानी में डुबकी लगाई तो ठंड का अहसास हुआ और नदी के पानी से फ़ौरन बाहर आ गया । आकाश को इस प्रकार के पुण्य में कोई आस्था नहीं थी इसलिए वह फोटो खींचने में लगे रहे । इससे पहले कल कुंभ क्षेत्र में काफी घूमे और आम लोगो को देखा जो चूल्हा खरीद कर वाही रेत पर खिचड़ी और चोखा बनाने में जुटे थे । यहां कच्ची मिटटी का चूल्हा भी मिल रहा था तो कंडा और लकड़ी भी । आलू टमाटर ही नहीं हर किस्म कि सब्जी भी जगह जगह मिल जा रही थी । पर यह उस हाशिए के समाज के लिए था जो झोला गठरी लेकर संगम में डुबकी लगाने आता है और कुछ समय गुजर कर चला जाता है । पर आभिजात्य वर्गीय समाज भी यहाँ पुण्य कमाने आता है तो बाबा लोगो के भव्य काटेज में रुकता है और उनके सत्संग का लाभ उठाता है । उसके लिए कल्पवासियों की तरह बम्बे यानि नल का पानी नहीं बल्कि बिसलरी और फ़िल्टर का पानी और देशी घी में बना सात्विक भोजन होता है जिसका भुगतान भी ठीक होता है । एक बाबा जी ने तो एटीएम कि तरह फ़िल्टर पानी की मशीन भी लगा रही थी जिससे दो रुपए में एक बोतल पानी आप भर सकते है । ज्यादा प्यास हो तो फिर सिक्का डाले और पानी ले । बाबा लोगो के साथ कुंभ में नया बाजार भी दिख रहा है तो सिंदूर टिकुली वाला पुराना बाजार भी जिसके ज्यादातर सामान प्लास्टिक के आवरण में दिखते है ।बाबा लोगों के प्रसाद कि भी पैकेजिंग गजब की है अपने जेब में भी बाबा जी के दिए कुछ पैकेट कैलिफोर्निया के चिलगोजे और मूंगफली भी है । स्वामी सत्यम ने तो कैलिफोर्निया रोस्टेड काफी से स्वागत किया ।अभी मुख्यमंत्री उनसे मिलने गए थे । वे अपने पाठक नहीं प्रशंसक है । हम भी अभिभूत है जिन स्वामी जी के लोग पैर छूकर आशीर्वाद लेते है वे अपन के मुरीद है क्यों यह समझ नहीं पाया । लखनऊ में घर पर भी वे क्रिया योग के बारे में बता चुके है । खैर इस कुंभ और भी चमत्कारिक साधू संत और सन्यासी है । कल गंगा किनारे गुजर रहा था तो एक संत लोगो को नर्क के बारे में बता रहे थे कि वह बहुत कष्ट होता है मारा पीटा जाता है तो सोचने लगा यह काम तो गांव से लेकर मोहल्ले तक रोज होता है और इसी धरती पर लोगों को नर्क का अहसास हो जाता है । खैर लोगों की आस्था है । आस्था न होती तो इतना कष्ट झेलकर ठंड में क्यों आते । आखिर हम भी तो आए ही है। संगम में देखा लोग दूर दराज से आई महिलाए बच्चों के साथ किस तरह शाम के समय भी पूरे उत्साह से नहा रही थी तो घाट पर एक स्वामी जी का प्रवचन सुनाने वालों की भीड़ लगी हुई थी । एक और भीड़ बुजुर्ग महिलाओं कि राशन की दूकान पर अनाज खरीदने के लिए लगी थी । अंबरीश कुमार फोटो-यह एक स्वामी जी का कुंभ में डाइनिंग हाल का फोटो है