Friday, July 26, 2013

मोदी के आने से पहले ही उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुमत !

अंबरीश कुमार पिछ्ले महीने ही उत्तर प्रदेश में एक उप चुनाव हुआ था । इलाहाबाद के हंडिया में । हंडिया विधान सभा के इस उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को तीन हजार आठ सौ नौ वोट मिल तो कांग्रेस को दो हजार आठ सौ अस्सी वोट । एक को पौने दो फीसद तो दूसरे को पौने तीन फीसद । पर यह चुनाव समाजवादी पार्टी ने छब्बीस हजार से ज्यादा वोट से जीता था । दोनों राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा की जमानत जब्त हो गई थी ।यह इसलिए याद रखना चाहिए कि एक सर्वे रपट में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को करीब आधी सीट मिलने का आकलन किया गया है । लोकसभा आधी सीट का सीधा अर्थ विधान सभा में बहुमत के पास पहुंचना होता है । यह किसी चमत्कार से कम नहीं है खासकर उस पार्टी के लिए जिसका प्रदेश अध्यक्ष भी पिछले विधान सभा चुनाव में बुरी तरह हारा हो । इस आकलन के बारे में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से बात की तो वे ठहाका मार कर हँसने लगे । बोले ,जब पार्टी का खुद का अंदरूनी आकलन ज्यादा से ज्यादा बीस सीट का हो तो यह सर्वे हैरान करने वाला तो लगेगा ही । उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हलकों में इस सर्वे के साथ भाजपा की राजनैतिक ताकत को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है । इसकी मुख्य वजह यह है कि भाजपा को अभी भी तीसरे चौथे नंबर की पार्टी माना जा रहा है और न तो प्रदेश में हिंदुत्व की कोई लहर नजर आ रही है और न ही पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग में कोई बदलाव आया है । ऐसे में भाजपा का अचानक नंबर एक पर आ जाना सभी को चौंकता है । उत्तर प्रदेश का चुनाव जातियों के गठजोड़ पर ही होना है जबतक कि कोई बड़ा परिवर्तन न हो जाए। मंदिर आंदोलन के बाद प्रदेश में मजहबी ध्रुवीकरण का फिर वैसा माहौल नहीं बना जिससे भाजपा को बहुत फायदा हो । अपवाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्रों को बताया जा रहा जिसे लेकर पिछले दो महीने से चर्चा हो रही है । कहा जा रहा है इस बार लोकसभा चुनाव में इस अंचल में भाजपा या हिंदू उम्मीदवार ज्यादा संख्या में जीतेंगे । यही एक ऐसा तर्क है जिसके आधार पर भाजपा के बढ़त की बात कही जा रही है । पर बहुत सी सीटों पर तो पहल्र से ही गैर मुस्लिम सांसद है । मसलन पिछले लोकसभा चुनाव में बिजनौर से संजय चौहान ,अमरोहा से देवेन्द्र नागपाल ,रामपुर से जयाप्रदा ,आंवला से मेनका गाँधी ,बरेली से प्रवीन सिंह ऐरन पीलीभीत से वरुण गाँधी ,अलीगढ से राजकुमारी चौहान ,हाथरस से सारिका बघेल ,बुलंदशहर से कमलेश वाल्मीकि ,मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल ,सहारनपुर से जगदीश सिंह राणा ,फिरोजाबाद से राजबब्बर आदि चुनाव जीत चुके है । यह उस पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक बानगी है जिसके बारे में बताया जा रहा है आगामी लोकसभा चुनाव में इस अंचल से बड़ी संख्या में गैर मुस्लिम सांसद जीतेंगे क्योकि मजहबी ध्रुवीकरण तेज हो रहा है । उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार बनने के बाद शुरुआती दौर में ही कई जगह दंगे फसाद हुए और सरकार की साख पर बट्टा भी लगा । पर यह भी साफ हुआ कि दंगे फसाद के पीछे कट्टरपंथी ताकते भी है जिनका मकसद लोकसभा चुनाव से पहले कई इलाकों में मजहबी ध्रुवीकरण तेज कराना रहा है । पर फिलहाल कट्टरपंथी ताकतों के मंसूबो पर अंकुश लग चुका है इसलिए इस आधार पर भाजपा को बहुत फायदा होने की स्थिति नजर नहीं आती है । पार्टी की राजनैतिक ताकत का आकलन चुनाव नतीजों से भी होता है जिसपर एक नजर डालना चाहिए । पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अगड़ी जातियों के १९५ उम्मीदवार खड़े किए थे जिसमे कुल तीस जीते तो पिछडी जाति के १०५ उम्मीदवारों में बारह जीते । कुल चार सौ में एक कम यानी ३९९ उम्मीदवारों में ४८ उम्मीदवार जीते थे । तबसे अब तक उत्तर प्रदेश भाजपा की राजनैतिक ताकत में कोई बड़ा इजाफा हुआ हो यह नजर नहीं आता । यही वजह है कि उत्तर प्रदेश को लेकर ताजा सर्वे को लोग हैरानी से देख रहे है । वरिष्ठ भाकपा नेता अशोक मिश्र के मुताबिक भाजपा अगर तीसरे नंबर से दूसरे नंबर पर भी पहुँच जाए तो यह बड़ा चमत्कार होगा नंबर एक की बात तो छोड़ ही दे ।

Tuesday, July 9, 2013

मोदी के नाम पर फिर से उग्र हिंदुत्व की राह पर भाजपा

अंबरीश कुमार लखनऊ ,8 जुलाई ।उत्तर प्रदेश में भाजपा फिर उग्र हिंदुत्व की राह पर जा रही है । इस बार यह कवायद नरेंद्र मोदी के चेहरे के पीछे से होगी ।यह बात मोदी के सिपहसालार अमित शाह की भाषा से साफ़ हो गई है ।फिर वही जुमले ' जिस हिंदू का खून न खौला खून नही वह पानी है , उछलने लगे है ।अमित शाह ने कल पूर्वांचल के गोरखपुर में पार्टी के जिला अध्यक्षों की बैठक में कहा - जब समाजवादी पार्टी द्वारा आतंकवादियों को छोड़ने की बात की जाती है, गो तरस्करी हो रही है। बांग्ला देशी घुसपैठियों पर कोई नियत्रण नही है। क्या यह सब देखकर सुनकर भाजपा के कार्यकर्ता का खून नही खौलता ? खून खौलने वाली इस तरह की भाषा इससे पहले नब्बे के दशक में मंदिर आंदोलन के दौर सुनी गई थी ।अब नरेंद्र मोदी ने प्रदेश की कमान अप्रत्यक्ष ढंग से संभाल ली है तो उनकर राजनैतिक हथकंडे भी सामने आने लगे है ।यह उसकी बानगी है । भाजपा के चुनाव अभियान के प्रभारी नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों की राजनैतिक नब्ज पकडना शुरू कर दिया है ।उनके सिपहसालार और उत्तर प्रदेश के प्रभारी अमित शाह अबतक मेरठ ,लखनऊ ,अयोध्या और गोरखपुर का दौरा कर बैठकों का सिलसिला शुरू कर चुके है ।उनके साथ सह प्रभारी रामेश्वर चौरसिया और सतेन्द्र कुशवाहा पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ बुंदेलखंड के हालात का जायजा ले रहे है ।ये सिर्फ हालात का जायजा ही नही ले रहे बल्कि हर समस्या का समाधान भी बताएँगे ।पार्टी कार्यकर्त्ता मोदी और उनकी इस टीम को लेकर उत्साहित भी है ।भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -अमित शाह की कार्य शैली से कार्यकर्ताओं का उत्साह बढा है ।वे बगैर लाग लपेट के अपनी बात रखते है । जिलों जिलों में प्रदेश स्तर के एक एक नेता को प्रभारी बना कर भेजा गया है ।मै खुद अबतक पांच बार आंबेडकर नगर जा चुका हूँ ऐसे में जिलों के नेता गांव गांव तक तो पहुँच ही चुके है । पूर्वांचल में भाजपा को काफी उम्मीद है । यह अंचल पहले से ही योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व की प्रयोगशाला रहा है।अब नरेंद्र मोदी के आ जाने के बाद यहाँ के हालात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है ।यह तय है कि हिन्दुत्ववादी ताकते चुनाव से पहले ही माहौल बनाकर ध्रुवीकरण का प्रयास करेंगी ।यह अमित शाह की भाषा से साफ़ हो गया है । पूर्वांचल के गोरखपुर में अमित शाह ने जिला अध्यक्षों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास किया और कहा -भारतीय जनता पार्टी इस तरह की पार्टी है जो बिना प्रत्याशी के बावजूद भी चुनाव अभियान की शुरूआत कर सकती है। हम पार्टी की रीति नीति को मण्डल, शहर, गांव में क्या प्रत्याशी के माध्यम से ही जाएंगे। क्या हम एक व्यक्ति के आधार पर चुनाव लड़ेंगे। पहले से मन से निकाल कर उखाड़ कर फेक दीजिए कि भाजपा को प्रत्याशी जिताएगा । भाजपा का कार्यकर्ता भाजपा को हिन्दुत्व व विचारधारा के साथ पार्टी को जिताएगा। पार्टी चलाने का दायित्व विधायक, सांसद का नही है। बल्कि दायित्व जिलाध्यक्ष का है। शाह ने कहा कि आप सभी अपने अपने जिलों में पार्टी का चेहरा है। बूथ की रचना यह सोच कर नही करना है कि हमें 2014 का लोकसभा का चुनाव लड़ना है। बल्कि बूथ की रचना अगले 20 वर्षो के लिए मजबूत ढाचे पर भाजपा को खड़ा करने के लिए बनाना है। चुनाव में बूथ की अहम भूमिका होती है। चुनाव जीतते है तो बूथ प्रबन्धन से और हारते है तो भी बूथ की वजह से । शाह ने कहा कि जब समाजवादी पार्टी द्वारा आतंकवादियों को छोड़ने की बात की जाती है, गो तरस्करी हो रही है। बंगलादेशी घूसपैठीयों पर कोई नियत्रण नही है। क्या यह सब देखकर सुनकर भाजपा के कार्यकर्ता का खून नही खौलता ? इन सबको रोकने की जिम्मेदारी हमारी है। कांग्रेस और सपा पिछड़ो के हितों की बात करती है। और संविधान द्वारा 50 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा पिछड़ो और दलितो को दी गयी है। यदि कांग्रेस और सपा मुस्लिमो को आरक्षण देने की बात करती है। तो वह पिछड़ो व दलितो के ही हक को मारने का काम कर रही है। यह बात पिछड़ो और दलितो को समझाना होगा। भाजपा ही पिछड़ो व दलितो के हित व अधिकार की बात करती है। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी व सदर सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम सब अपने पराक्रम को विस्मृत कर देते है। इसी नाते हम पीछे है। हमारा पराक्रम हिन्दू राष्ट्रवाद के आधार पर होगा। हम लोग यदि जाति के पीछे अगड़े पीछड़े के चक्कर में फसे तो नतीजा अच्छा नही होगा। हमारे पास सबसे बड़ा वोट बैंक है। उस दायरा को अगर हम तोड़ने का काम करते है तो हमारा नुकसान होगा। इसलिए हमें हिन्दूत्व व विकास के आधार पर जनता के बीच में जाना चाहिए।

रामलीला में तब्दील होती राजनीति

अंबरीश कुमार लखनऊ, 9 जुलाई। बाबा साहब आम्बेडकर के कदमो पर चलने वाले कांसीराम ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था से संघर्ष करने और दलितों को सामाजिक राजनैतिक ताकत देने के लिए जिस बहुजन समाज पार्टी को बनाया था उसकी लगातार हो रही रैली में शंख घंटा और घड़ियाल के साथ मंत्रोचार के बीच फरसा लेकर खड़े परशुराम का स्तुतिगान हो रहा है । पिछले एक महीने में प्रदेश में जगह जगह हुए बसपा के ब्राह्मण भाईचारा सम्मलेन में यह सब हुआ और आगे भी होगा । यह स्थिति डा राम मनोहर लोहिया के विचारों को मानने वाली समाजवादी पार्टी की भी है । ब्राह्मणों के लिए सपा और बसपा उत्तर प्रदेश में समूची राजनीति को रामलीला में बदलती नजर आ रही है । यह सब राजनैतिक पार्टी के मंच पर बहुत नाटकीय भी लगता है । बसपा ने रविवार की रैली के लिए चित्रकूट से जो भगवा वस्त्रधारी बुलाए थे उनमे हरेक को आने जाने की सुविधा के साथ भोजन और पांच सौ रुपए दिए गए । वे ब्राह्मण के रूप में पेश किये गए । इसी तरह समाजवादी पार्टी ने जब ब्राह्मण सम्मलेन किया तो अयोध्या मथुरा काशी के पंडित मंच पर विराजमान थे तो पीछे बैनर पर फरसा लिए परशुराम । खांटी समाजवादी जनेश्वर मिश्र ब्राह्मण के रूप में याद किए जा रहे था । नारे भी नए नए गढे गए । हाथी नही गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है या फिर ब्राह्मण शंख बजाएगा ,हाथी दिल्ली जाएगा । करीब चौदह फीसद ब्राह्मण वोट बैंक के लिए जिस तरह की राजनैतिक प्रतिद्वंदिता सपा और बसपा में चल रही है वह आम्बेडकर और लोहिया के विचारों को ध्वस्त करने जैसी है । हाशिए के समाज के लिए जिन लोगों ने सामाजिक राजनैतिक लड़ाई लड़ी वे विचारों के संदर्भ में खुद हाशिए पर जाते दिख रहे है भले उनके नाम की मूर्ति और पार्क बढते जाए । राजनैतिक विश्लेषक वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा -जिन्हें ब्राह्मणवाद से लड़ना था वे खुद ब्राह्मण को राजनीति के केंद्र में बहुत भौंडे ढंग से ला रही है । अयोध्या में चले जाए इस तरह भगवा वस्त्रधारी मिल जाएंगे जिन्हें कोई भी पार्टी ब्राह्मण बनाकर पेश कर दे जैसे चित्रकूट से पांच पांच सौ रुपए देकर लाए लोगों को ब्राह्मण बना दिया गया । अवसरवादी राजनीति की यह पराकाष्ठा है । रोचक तो यह है कि अयोध्या में ज्यादातर साधू संत पिछड़ी जाति के है । पर राजनैतिक लोगो का यह दिमाग बन गया है कि शंख ,घंटा घड़ियाल लेकर किसी को भी ब्राह्मण बना दो लोग भरोसा कर लेंगे । दूसरी तरफ इंडियन पीपुल्स फ्रंट के संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा -यह कर्मकांड कोई ब्राह्मण नहीं कर रहा बल्कि सपा और बसपा कर रही है जिसका कोई असर समाज पर नहीं पड़ने वाला । पौराणिक किवदंतियों में भी परशुराम मात्रहंता माने गए है उन्हें सामने रखकर यह पार्टियां क्या दिखाना चाहती है । एक तरफ आम्बेडकर के नाम पर चलने वाली पार्टी है तो दूसरी तरफ लोहिया के विचारों पर । ये दोनों दल इतना बड़ा प्रतिगामी कदम ब्राह्मण के नाम पर उठा रहे है जिसका साहस भाजपा और कांग्रेस जैसे दल नही कर पाए जो ब्राह्मणों के वोट की राजनीति करते रहे है । अब बसपा में लोग मनु की मूर्ति लेकर चल रहे है । कम से कम इन लोगों को जाति के बारे में लोहिया के विचार तो पढ़ ही लेने चाहिए ।