Monday, April 27, 2015

वही जगह और वही काटेज

अंबरीश कुमार कलंगूट । वही जगह और वही काटेज । यह संयोग ही था तब नीचे रुके थे और अबकी ऊपर ।सामने नारियल के पेड़ों के बीच से वह समुद्र आधा अधूरा दिख रहा है जो करीब पच्चीस साल पहले खुला हुआ था । यह जानकारी सविता ने कमरे की बालकनी से समुद्र को देखते हुए दी । बताया कि तब जो नारियल औए काजू के पेड़ तब छोटे छोटे थे बवे अब काफी बड़े हो गए है और उनकी कतार से सामने का समुद्र ढक गया है । यानी पच्चीस साल बीत गए इधर के । आज एक पुरानी फिल्म की तरह सब गुजर गया । यह हफ्ता अपने सह जीवन का पच्चीसवां साल भी पूरा कर रहा है । उधर के पच्चीस साल तो अराजकता के ज्यादा रहे इधर के कम रहे ।इस समय कैसे गोवा में है यह कई मित्रों की उत्सुकता का विषय था ।इसी पच्चीस साल को याद करने के लिए इस अरब सागर के इस तट पर ठहरे हुए है ।कायदे से इस समय शुक्रवार के प्रिंट में जाने के वक्त मुझे दिल्ली / लखनऊ में होना चाहिए था । पर इधर के पच्चीस साल को याद करने का कार्यक्रम पहले से बना हुआ था इसलिए उसमे कोई फेरबदल नहीं किया गया । गोवा कई बार आना हुआ है । सविता के आने से पहले एक बार और उसके बाद चार बार । पंजिम की गलियां याद है तो वेगाटार से लेकर कोलवा और मीरमार के समुद्र तट की बहुत सी शाम भी । तब गोवा एक गांव लगता था और अब यह स्मार्ट सिटी में तब्दील हो गया है । तब बेंति से आगे जो पतली पतली सर्पीली सड़के थी वे फोर लें में बदल चुकी है तो तो दोनों तरफ भव्य होटल माल और आलीशान भवन । पुर्तगाली वास्तुशिल्प अब पुराने गोवा या गांवों में सिमटता जा रहा है ।मंडावी नदी पर पांच सितारा कैसिनो आ चुका है और गोवा के पर्यटन विभाग का फोकस भी अब मध्य वर्ग की बजाए आभिजात्य वर्ग की तरफ हो चुका है ।वर्ना इसी रिसार्ट के सामने के रेस्तरां में दाल चावल और आम सब्जियां खाने के मीनू से गायब नहीं होती और उनकी जगह इटैलियन से लेकर फ्रांसीसी व्यंजन प्रमुखता पर नहीं होते । पर्यटन गोवा का मुख्य व्यवसाय है और गोवा के पर्यटन विभाग ने नब्बे के दशक में बहुत अच्छी सुविधाएं सैलानियों को दी थी और वह भी कम दाम में ।अब सुविधाएं तो है पर उच्च वर्ग के सैलानियों के लिए ज्यादा । खैर शहर का मिजाज सभी जगह बदला है तो गोवा क्यों न बदले । हमने इसीलिए गाँवों से लगे पुराने समुद्र तट का रुख किया और सुबह शाम इन्हें फिर से देखा भी ठीक से । आज सुबह तो कलंगूट से बागा समुद्र तट तक पैदल ही चले । खूब बादल उमड़ रहे थे और बूंदें भी पड़ी पर भीगे नहीं । कई जोड़े हाथों में हाथ डाले लहरों के साथ चल रहे थे । रात में गुलजार रहने वाले झोपडीनुमा रेस्तरां अभी बंद थे । मेज पर मेज लदी थी तो कुर्सियों के ढेर पड़े थे । कुछ बैरा उठ गए थे तो कुछ उठ रहे थे । आस पास कुत्तों के झुंड समुद्र से आई मछलियों पर जुटे हुए थे । मौसम काफी खुशनुमा था और सामने पहाड़ी के ऊपर बादल काले हो रहे थे तो नीचे समुद्र का शोर बढ़ रहा था ।हम बीच बीच में अपने भी पच्चीस साल को याद कर रहे थे ।दो तीन फोटो यादगार है ।एक जब पहली बार मुलाकात हुई तो दूसरी चकराता की जब सविता मौत के मुह से वापस आ गई ।तब चकराता के डाक बंगले में रुके थे और पैदल जंगल के बीच पांच छह किलोमीटर नीचे उतर उतर कर गए टाइगर फाल देखने ।लौटते समय आंधी पानी और तूफ़ान की वजह से जिन रास्तो पर चढ़ना था वे झरनों में तब्दील हो चुके थे और दो बार मरते हाथ से फिसल चुकी सविता ने उम्मीद छोड़ कर कहा अब जाओं हम नहीं बच सकते । बाद में अपने ब्लाग पर यह घटना लिखी थी । बहरहाल लौट कर आए तो जो एक फोटो ली वह इस पोस्ट के साथ दे रहा हूँ जो बरसात के बाद चकराता के बस स्टैंड के पास की है ।जबकि पहली फोटो सगाई की मिली ।इन पच्चीस सालों में भी जमकर घूमना हुआ । पहाड़ पर भी ,रेगिस्तान में भी और समुद्र में भी । समुद्र से अपना लगाव पुराना है । समुद्र जहाज पर यादगार यात्रा भी हुई । रुकने की व्यवस्था भी समुद्र तट पर हो इसका हमेशा ध्यान रखा । दीव का सर्किट हाउस तो समुद्र तट पर ही बना है और वहा भी दीव प्रशासन का अतिथि रहने का मौका मिला तो दमन में भी । जब पहली बार पच्चीस दिसंबर को गोवा पहुंचा था तो बिना पहले से बुकिंग के ।पर तब एक सरदार जी पर्यटन विभाग के आला अफसर थे और उन्होंने पहले दिन सर्किट हाउस और दूसरे दिन कलंगूट बीच के इसी रिसार्ट पर ठाह्रने की व्यवस्था कर दी ।तब सर्किट हाउस का किराया दस रुपए एक दिन का पड़ा था और इस रिसार्ट का एक सौ नब्बे रुपए । तभी पता चला की गोवा के सर्किट हाउस में भव्य बार भी है जो और कही नहीं मिलेगा । बहरहाल कल से हम इसी सब को गोवा में याद कर रहे है और बीच बिओइच में अपने साझा इतिहास में भी लौट जाते है ।