Friday, December 30, 2016

अब सूतक उतर गया !

अंबरीश कुमार लखनऊ .उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ राजनीति का सूतक आज शाम उतर गया .गम वाले घरों में तो इसकी सीमा दस दिन से तीस तीन होती है पर समाजवादी पार्टी की राजनीति में यह साठ दिन तक चली .अब अखिलेश यादव की राजनीति का नया दौर शुरू हो रहा है .कुछ दल खासकर भाजपा को इससे फौरी ख़ुशी हो सकती है पर ज्यादा देर यह चलने वाली नहीं है . मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पार्टी से बाहर कर दिया .जैसे ही यह खबर आई लखनऊ के पांच कालीदास मार्ग से लेकर विक्रमादित्य मार्ग तक नौजवान कार्यकर्त्ता अखिलेश यादव के समर्थन में सड़क पर उतर आया .यह भीड़ काफी हद तक तमिलनाडु में अन्नादुरै से लेकर जयललिता समर्थक जैसी भी थी .उत्तर प्रदेश के लिए यह नई घटना थी .मुलायम सिंह और उनके संगी साथी को यह उम्मीद नहीं होगी .ये नौजवान दागी नहीं बागी हैं .यह फौरी प्रतिक्रिया थी .कुछ घंटे इन्तजार करे प्रदेश में कई जगह यह दृश्य नजर आएगा .मुलायम सिंह ने अमर सिंह और शिवपाल यादव के कहने पर जो यह कार्यवाई की है उससे अखिलेश यादव का कद और बड़ा होने जा रहा है .वे अब बड़ी चुनौती बनेंगे .विधान सभा चुनाव की हार जीत से आगे अखिलेश यादव की लंबी राजनैतिक पारी के लिए यह निर्णायक मोड़ साबित होगा . यह कार्यवाई विधान सभा चुनाव से ठीक पहले हुई है .मुलायम सिंह काफी समय से जिन ताकतों के हाथ में खेल रहे थे उससे सभी को यह लग रहा था कि देर सबेर अखिलेश यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा .वे मुलायम सिंह यादव के समाजवादी रास्ते पर नहीं चल रहे थे .वे बाहुबलियों के पक्ष में नहीं थे .मुख़्तार अंसारी से लेकर अतीक अहमद तक विरोध किया तो डीपी यादव का भी .खनन से बदनाम हुए गायत्री का भी वे विरोध कर रहे थे तो मुलायामवादी अमर सिंह का भी विरोध कर रहे थे . अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अकेले नेता हैं जिन्होंने समाजवादी पार्टी का परम्परागत एजंडा बदला और छवि बदली .ये वही समाजवादी पार्टी है जिसके बारे में इस संवाददाता ने लिखा था 'बाहुबलियों का समाजवाद .'उत्तर प्रदेश के ज्यादर बाहुबली एक दौर में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में ही बंटे थे .ये वही पार्टी है जिसके सत्ता में आते ही यह धारणा बनती थी कि अब गुंडों बदमाश और माफिया का राज आ जायेगा .यह धारणा बदली तो सिर्फ अखिलेश यादव के राज में बदली .वे लाठी वाली पार्टी को लैपटाप तक ले गए .पहली बार 2012 में समाजवादी पार्टी को गैर मुस्लिम गैर पिछड़ा वोट मिला तो उसकी मुख्य वजह अखिलेश यादव की बदली हुई राजनीति थी .यह सही है कि अखिलेश यादव ने कुछ दागी को भी साथ रखा पर ज्यादातर छांट दिए गए यह भी उतना ही सच है .आप एक झटके में उत्तर प्रदेश की समूची राजनीति को बदल देंगे जो इस मुगालते में हैं उनका कुछ नहीं हो सकता .बहरहाल जातीय गोलबंदी और बाहुबलियों से घिरी राजनीति पिछले पांच साल में बहुत बदली है तो इसका श्रेय अखिलेश यादव को जाता है .कितना विकास हुआ या नहीं हुआ यह यूपी के लोग जानते है किसी विज्ञापन से बताने की जरुरत नहीं है .अमौसी से इंदिरा नगर तक चले जाएं खुद समझ आ जाएगा .नारायण दत्त तिवारी के बाद अखिलेश यादव दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो विकास को एजंडा बना चुके है .ऐसे में चुनावी राजनीति में अखिलेश यादव को काफी आगे ले जा सकती हैं .कुछ दिन और इंतजार करे .पर मुलायम सिंह यादव अब नायक नहीं खलनायक बन चुके हैं .वे लाठी वाली राजनीति पर वापस लौट चुके हैं . किसके इशारे पर उन्होंने यह सब किया यह जानने के लिए किसी शोध की जरुरत नहीं है ,वे तो मोदी के बड़े प्रशंसक बन चुके हैं .

Friday, October 14, 2016

अखिलेश को हाशिये पर डाला मुलायम ने

अंबरीश कुमार लखनऊ .समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने आज यहां प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी की राजनीति में हाशिये पर तो फेंक ही दिया है .मुलायम सिंह ने आज कहा कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह अभी तय नहीं .चुनाव के बाद पार्टी का संसदीय दल यह फैसला करेगा .मुलायम सिंह जब यह टिपण्णी कर रहे थे तो एक तरफ खनन के चलते चर्चा में रहने वाले गायत्री प्रजापति थे तो दूसरी ओर शिवपाल यादव .पच्चीस साल बाद पार्टी जिस रास्ते पर है उसके वास्तविक प्रतीक ये दो नेता माने जा सकते है .जिस पार्टी की नीव कभी जनेश्वर मिश्र ,बृजभूषण तिवारी ,मोहन सिंह से लेकर खुद मुलायम सिंह यादव ने डाली हो उसकी रजत जयंती मनाने की जिम्मेदारी अगर गायत्री प्रजापति को मुलायम सिंह ने सौंप दी है तो अब सबकुछ साफ़ हो चुका है .मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को अब गैर समाजवादियों को ठेके पर दे दिया है . जिसमे ताकतवर खेमा अमर सिंह ,शिवपाल यादव ,गायत्री प्रजापति और अंसारी बंधुओं का है .मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब इस पार्टी में हाशिये पर है तो समूची युवा टीम भी .अब अखिलेश यादव को अपना रास्ता तय करना है .वे या तो अमर सिंह ,शिवपाल और गायत्री गुट के आगे समर्पण कर कोयले की कोठरी में प्रवेश करे या समाजवाद का नया मुहावरा गढ़ें .अब बाईस चौबीस कैरेट वाला समाजवाद तो कही मिलेगा नहीं जो भी बचा हुआ है उसमे अखिलेश यादव से लोगों को बहुत उम्मीद है .क्योंकि उन्होंने ही मुलायम सिंह के समाजवाद की धारा मोड़ने की कोशिश की थी .बाहुबलियों के समाजवाद को हाशिये पर डाल यूपी की राजनीति में विकास का एजंडा तो सामने रख ही दिया .हो सकता कुछ को यह विकास कहीं से भी न दिखे तो यह उनकी समस्या है पर आम लोगों को कुछ न कुछ दिख्ग रहा है .सबसे बड़ी बात कि कोई उम्मीद नजर आ रही है .वह उम्मीद जो ढाई दशक की मंदिर मंडल की राजनीति में खत्म हो गई थी .पर अब रास्ता इतना आसान भी नहीं है .उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अपना दबदबा कायम करने वाली ताकतों ने पहले बहुजन समाज पार्टी को अपना निशाना बनाया फिर समाजवादी पार्टी को .क्योंकि इन्ही दोनों दलों के पाले में उत्तर प्रदेश की राजनीति सिमटी हुई थी .अब कई साल बाद अगर फिर यूपी में जय श्रीराम का नारा गूंज रहा है तो पूरी तैयारी के साथ वे आ रहे है .वे खुद को मजबूत कर रहे हैं और दलित पिछड़ों की राजनीति को कमजोर करते जा रहे हैं .फिर भी लोगों को अगर उम्मीद है तो अखिलेश यादव से ही है .पर वे इस राजनीति में कितना जोखम लेंगे यह उन्हें ही तय करना है .वे ठीक उसी मोड़ पर खड़े है जिस मोड़ पर कभी इंदिरा गांधी कांग्रेस के दिग्गजों के सामने खड़ी थी .इंदिरा गांधी में हिम्मत थी और उन्होंने नई कांग्रेस खडी कर दी .वे इस देश में अपनी जो जगह बना गई है उसे लोग याद रखते हैं .अब अखिलेश यादव के सामने बड़ी चुनौती है .साथ है विकास का एजंडा और नौजवानों की एक टीम भी तो खांटी समाजवादियों का साथ भी .अगर वे चुनौती मंजूर करते है तो नया इतिहास रच देंगे नहीं तो हाशिये पर धकेल दिए जाएंगे .फिलहाल तो मुलायम सिंह से लेकर शिवपाल तक यही चाहते भी है .

Tuesday, September 13, 2016

नियामक आयोग मत बने

शेखर गुप्ता को लेकर सबसे ज्यादा एतराज इस बात पर हो रहा है कि उन्होंने एमसीडी के बारे में नहीं लिखा दिल्ली सरकार के बारे में ट्वीट किया .उन्होंने जो लिखा वह सोशल मीडिया पर लिखा जिसपर न जाने कितने लोग हर समय अल्ल बल्ल लिखते रहते हैं .कोई क्या लिखेगा इसका नियामक आयोग खुद को न बनाये .अभिव्यक्ति की आजादी इस मुल्क में है तो उसे बने रहने दे .वे भाजपाई हो गए हैं इससे अगर एतराज है तो इससे ज्यादा मूर्खतापूर्ण तर्क और कोई नहीं हो सकता .किसी पत्रकार के लिए क्या यह कोई नियम है कि वह सिर्फ कांग्रेसी बने ,सिर्फ वामपंथी बने या संघी बने .आप यानी आम आदमी पार्टी वाली धारा तो सबसे नई है जिसकी अभी तक कोई विचार धारा ही साफ़ नहीं है .इसके बावजूद बहुत से रिपोर्टर से लेकर संपादक तक बह गए और अब ठीकठाक जगह पहुंच भी गए है तो क्या इस तर्क के आधार पर सब दलाल हो जायेंगे .जो भाजपा का गुणगान करते करते सरकार से सम्मानित हुए और लाभ के पद पर पहुंच गए क्या वे सब दलाल हो जाएंगे .जो कांग्रेस के दौर में साल में छह महीने विदेश रहते थे कई तरह का लाभ लेते थे क्या वे सब दलाल हो गए .इंडियन एक्सप्रेस समूह में मैंने अरुण शौरी को मंडल आयोग के खिलाफ जहर भरा अभियान चलाते देखा जिसके चलते उन्हें एक्सप्रेस से जाना भी पड़ा तो प्रभाष जोशी को आपरेशन ब्लू स्टार का समर्थन करते .हम लोग इसके खिलाफ थे .पर कोई क्या लिख रहा है उसके आधार पर उसे किसी का दलाल कह दे यह कौन सा कुतर्क है .पत्रकार अपनी धारा तय करता है और उसपर चलता है .रिपोर्टर से यह अपेक्षा होती है कि वह खबर और विचार का घालमेल न करे .पर वह अपना निजी विचार न जाहिर करे यह कौन सा तर्क .लोकतंत्र है और विचार इस लोकतंत्र की आक्सीजन है .तानाशाही नहीं है .सवाल उठाइए असहमति जताइए पर खुद को खुदा बनाकर किसी को भी ' दलाल ' घोषित करने का फ़तवा न दे .ये तो पूर्ण राज्य वाले भी नहीं है .हमने बड़े बड़े क्षत्रपो को हाशिये पर जाते देखा है .

Thursday, February 18, 2016

देश डर न जाये इस देशभक्ति से !


देश डर न जाये इस देशभक्ति से ! अंबरीश कुमार जिन छात्रों और नौजवानों से बनी लहर पर सवार होकर नरेंद्र मोदी सत्ता में आये थे. आज उन्हीं छात्रों के खिलाफ सरकार ने लगता है. अघोषित युद्ध छेड़ दिया है. कहा जा रहा है कि यह रणनीति है .देशभक्त बनाम देशद्रोही में बांटने की .इससे पार्टी को फायदा पहुंचेगा . इसी वजह से अदालत में झंडा ,डंडा और ईंटा पत्थर लेकर कुछ देशभक्त वकील न्याय करने उतरे . पर यह रणनीति नाकामयाब होती नजर आ रही है .जेएनयू में विद्यार्थी परिषद के छात्र संघ पदाधिकारी ही विरोध में खड़े हो गये . यह आगे बढ़ा तो यह संगठन और सरकार दोनों पर भारी पड़ेगा.यह देश इतना कमजोर नहीं है कि दर्जन भर गुमराह लोग नारा लगा दे तो देश दरक जाये .यह समझना चाहिये .आज उत्तर से दक्षिण तक परिसर सुलग रहे हैं. मुद्दे अलग अलग हैं. जेएनयू के मुद्दे से देश में बहस छिड़ गयी है. धुर वामपंथी दलों को भी अब मंथन करना चाहिये जिनके ज्यादातर नायक अधिनायक इस देश के नहीं हैं. गांधी, लोहिया और जयप्रकाश का वे नाम नहीं लेंगे. अंबेडकर अब उनकी सूची में जुड़े हैं. वे अफजल गुरु और मकबूल बट के नाम पर कौन सी राजनीति खड़ी करना चाहते हैं. उनकी प्राथमिकता पर शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे होने चाहिए या दूसरे मुद्दे. परिसर में बहस हो, संवाद हो पर कश्मीर की आजादी की लड़ाई इस देश के विश्विद्यालय परिसर में तो नहीं लड़ी जा सकती. पर यह एक पहलू है. दूसरा पहलू परिसर में कट्टरपंथ के बढ़ते दायरे का है. अगर जेएनयू में गलत हुआ तो बनारस हिंदू विश्विद्यालय में संघ का लाठी के साथ पथ संचलन भी ठीक नहीं कहा जा सकता. परिसर में संवाद हो बहस हो हिंसक टकराव की जमीन न तैयार करे. ऐसा हुआ तो छात्र युवा आक्रोश की जमीन तैयार हो जायेगी. हालात वैसे ही बन भी रहें हैं. हैदराबाद से लेकर इलाहाबाद तक. यह युवा आक्रोश बहुत कुछ फिर बदल देगा.शुरुआत हो गई है गुरूवार को दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में छात्र नौजवान सड़क पर उतरे . इस तरह का युवा आक्रोश पहली बार साल 1966 -67 में दिखा था. जो नक्सलबाड़ी से शुरू होकर देश के विभिन्न हिस्सों में फ़ैल गया था. इसके बाद चौहत्तर के आंदोलन में यह आक्रोश उभरा और इस तरह का ही आक्रोश अन्ना हजारे के आंदोलन के दौर में दिखा. बहुत ध्यान से छात्र युवा आक्रोश के समय पर गौर करें. जब-जब छात्र युवा आक्रोश उभरा है. सत्ता भी बदली है. प्रदेश से लेकर देश तक. इसलिए मोदी सरकार को इस आक्रोश को गंभीरता से लेना चाहिए. कौन हैं ये लोग जो छात्रों पर राष्ट्रभक्ति के नाम पर हमला कर रहे हैं. अदालत में अराजकता हो रही है. हमला हो रहा है. पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं. जो चेहरे पुलिस को नहीं दिख रहे हैं. वह मीडिया लगातार दिखा रहा है. ये चेहरे कभी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ खड़े नजर आते हैं. अखबार में चैनलों में सभी हमलावर के चेहरे सामने आ चुके हैं. फिर भी सबकी आंखे बंद हैं. यह पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देकर पुलिस को फटकार लगाना पड़ा और कोर्ट परिसर को खाली कराने को कहना पड़ा. यह कौन सा राज स्थापित हुआ है. जंगलराज सिर्फ बिहार में ही नहीं दिल्ली में भी आ सकता है. इसी तरह जब मीडिया पर अदालत परिसर में दो दिन लगातार हमला होता है और केंद्र सरकार के मंत्री प्रकाश जावड़ेकर एनडीटीवी की एक महिला एंकर को पत्रकारिता का ककहरा सिखाते हैं. सत्तारूढ़ दल कौन से आदर्श स्थापित कर रहा है. जो कल तक खालिस्तान के नारे लगाते थे, पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री की हत्या करने वाले नेताओं का महिमामंडन करते थे. उनके साथ भी हाथ मिलाया जाता है. अफजल गुरु को शहीद मानने वाली और कश्मीर में आजादी का नारा देने वाली ताकतों के साथ खड़ी पीडीपी के साथ आप सरकार चलाते हो और दिल्ली में दूसरों को राष्ट्रभक्ति का पाठ भी पढ़ाते हो. यह कैसा विरोधाभाष है. हम कई दशक से अलगाववादियों से संवाद करते रहे हैं. ताकि उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके. खालिस्तान का नारा देने वाले भी इसमें शामिल थे. तो पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिण में अलगाववाद की बात करने वाले भी. हम पकिस्तान से भी संवाद करते हैं. ताकि दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर हो. जब सबसे बात कर सकते हैं तो इस देश की युवा पीढी के एक हिस्से को क्यों छोड़ दें. जो नौजवान भटक गये हो उन्हें भी मुख्यधारा में लाने का प्रयास होना चाहिए या उन्हें भी अलगाववादी आंदोलन में ढकेल देंगे. यह एक छोटा सा हिस्सा हो सकता है पर जरा ध्यान से देखे हैदराबाद से लेकर इलाहाबाद तक में तो मुख्यधारा से जुड़े छात्रों पर हमला हो रहा है. बनारस से लेकर लखनऊ में तो संसदीय राजनीति के पक्षधर ताकतों पर हमला हो रहा है. यह न नौजवान बर्दाश्त करेगा न समाज. अगर युवा आक्रोश बढ़ा,परिसर अशांत हुआ तो उसकी बड़ी कीमत भी देनी पड़ेगी. बहुत छोटी सी शुरुआत होती है. यह सभी जानते हैं. गुजरात में मेस के मुद्दे से छात्रों का जो आंदोलन शुरू हुआ था. उसने देश की सत्ता से इंदिरा गांधी को बेदखल कर दिया था. यह जरुर ध्यान रखें. शुक्रवार

Tuesday, February 9, 2016

नदी को नहर में तो न बदलें

नदी को नहर में तो न बदलें अंबरीश कुमार देश के विभिन्न हिस्सों में शहरों से बहने वाली नदी पर रिवर फ्रंट बनाने की योजना शुरू हो चुकी है । देश में इस योजना की प्रेरणा अहमदाबाद के बीच से बहने वाली साबरमती रिवर फ्रंट से मिली तो विदेश में न्यूयार्क की हडसन नदी से । इसका लोग उदाहरण भी देते है । इसी के चलते पर शुरू होना है । इसका कल्पना भी बहुत अच्छी लगती है और जो सब बताया जाता है वह भी मध्य वर्ग को बहुत लुभाता है । मंद मंद बहती नदी के दोनों तट पर पक्की चमचमाती सड़क । बैठने के लिए शानदार बेंच । संगीत के साथ तरह तरह के व्यंजन परोसते रेस्तरां और नदी में वाटर स्पोर्ट । अत्याधुनिक नाव ,होवरक्राफ्ट और क्रूज सबकुछ । बस नहीं होगा तो नदी का अपना साफ़ पानी । पर इसकी कीमत बहुत ज्यादा है । जिस नदी पर यह बनेगा उसका हाइड्रोलिक सिस्टम पूरी तरह बिगड़ जाएगा । जो जलचर नदी के कच्चे किनारे पर आते जाते अंडा देते वे सब निपट जाएंगे । नदी अपने को रिचार्ज करने के लिए जो पानी अपने कच्चे किनारों से बरसात में लेती वह व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी । साफ पानी तो तो कम मिलेगा सीवेज का पानी ज्यादा मिलेगा । इस योजना से शहर का कुछ सौंदर्य भले बढ़ जाए ,कुछ होटल और क्रूज वालों को मुनाफा भले हो जाए पर पर्यावरण को जो नुकसान होगा उसकी भरपाई सौ साल में भी संभव नहीं होगी । और जो सरकार इस तरह की योजना पर काम कर रही है उन्हें इनके राजनैतिक नुकसान का आकलन जातीय समीकरण से ऊपर उठकर कर लेना चाहिए । इससे पानी का बड़ा संकट भी पैदा होगा । अब लोग पानी के संकट को गंभीरता से लेते है और उसकी वजह भी जानना चाहते है । जिस साबरमती रिवर फ्रंट से लोग प्रेरणा ले रहे है उन्हें यह जानना चाहिए कि इस योजना के चलते साबरमती में बार बार नर्मदा का उधार का पानी डाला जाता है तब वह बची हुई है वर्ना वह भी कई महीने नदी की जगह नाला नजर आएगी । और इसकी कितनी कीमत साबरमती ने चुकाई है वह भी जान ले । शहर के बीच साबरमती की औसत चौड़ाई 1253 फुट थी जो रिवर फ्रंट योजना के बाद 902 फुट बची । यह जो कटौती हुई है उसी पर रिवर फ्रंट बना और इसका एक हिस्सा निजी क्षेत्र के हवाले भी हुआ । इस तरह नदी का एक हिस्सा किस तरह विकास की भेंट चढ़ गया यह सोचने वाला है । अब गोमती हो हिंडन हो या फिर यमुना हो जिस भी नदी पर रिवर फ्रंट बनेगा वह नदी को छोटा कर ही बनेगा । नदी और नहर में जो फर्क होता है उसे तो समझना चाहिए । नदी पानी देती है और खुद ही पानी लेती भी है । कहीं भूजल से अपने को रिचार्ज करती है तो कहीं बरसात के पानी से । जबकि नहर अपने को स्वतः रिचार्ज नहीं कर सकती । दूसरे हर नदी की प्रकृति अलग होती है । गोमती का मुकाबला चम्बल से नहीं हो सकता और न ही टेम्स और हडसन से । टेम्स और हडसन को किस तरह पुनर्जीवित किया गया है यह लोग नहीं जानते । फिर अगर शहर से बहने वाली नदी पर रिवर फ्रंट प्राकृतिक रूप से भी बनाया जा सकता है । चीन के शंघाई में ह्वांगपू रिवर फ्रंट /पार्क इसका नया उदाहरण है जहां नदी के किनारे बिना सरिया सीमेंट की दीवार बनाए प्राकृतिक ढंग से रिवर फ्रंट बनाया गया ।ऐसी व्यवस्था की गई जिससे नदी का पानी साफ़ रहे और उसके पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचे । अपने देश में ज्यदातर नदियां जो शहर से गुजरती है वे बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है ।अब उनके दोनों किनारे सड़क माल और बाजार बनाकर हम उसे पूरी तरह ख़त्म कर देंगे ।साभार -दैनिक हिंदुस्तान फोटो -शंघाई ह्यूटन पार्क का दो दृश्य .ऐसा भी रिवर फ्रंट हो सकता है

Saturday, January 2, 2016

अपनी जमीन ही नसीब हुई अरविंद उप्रेती को

अंबरीश कुमार अरविंद उप्रेती के जाने की खबर से सन्न रह गया हूं .भीतर से डरा दिया दिया उनके की जाने की खबर ने .वे तो साथ के थे .हम प्याला हम निवाला थे .कुछ महीने पहले दो दिन साथ थे तो लंबी चर्चा हुई थी घर परिवार गाँव को लेकर . उनका अपने पौड़ी स्थित गांव से बहुत लगाव थे .वे वही से आए और अपनी वही जमीन उन्हें नसीब हुई . खबर पच्चीस साल से ज्यादा का संबंध रहा .वे एक अच्छे संपादक थे .बिना किसी अहंकार के बहुत कुछ सिखाया भी .वे कोई साहित्यकार या कवि नहीं थे शांत किस्म के बहुत ही इंट्रोवर्ड किस्म का व्यक्तित्व था .कई तरह की परेशानियों से गुजर रहे थे पर किसी से कुछ कहते नहीं .जब भी दिल्ली आता कोई और हो न हो अरविंद साथ रहते .जब रायपुर में इंडियन एक्सप्रेस ज्वाइन करने जा रहा था तो साथ गए भी बस्तर तक .रम्मू भय्या से मिलवाने के लिये आए थे जिनके साथ वे जबलपुर में काम कर चुके थे .खाने पीने का शौक रहा .पिछली बार दो दिन देहरादून से मंसूरी तक साथ थे .देहरादून स्टेशन आ गए थे लेने और फिर छोड़ने भी आए .दो पराठे और सब्जी बंधवा कर लाये .मंसूरी में मै कार्यशाला में थे तो वे नीचे उतर कर गाँव की तरफ चले गए .कुछ समय पहले बहन गुजर गई थी इसलिए उससे संबंधित दस्तावेज आदि जमा कराने के लिये देहरादून में रहते .बेटे की नौकरी को लेकर परेशान रहते .पर पहाड़ के गांव से मोह था इसलिए कहते जनसत्ता एपार्टमेंट का फ़्लैट बेच कर अब गाँव में रहूँगा .बेटी जाब में आ चुकी थे इसलिए वे उसकी तरफ से निश्चिंत भी रहते .मुझे समझ नहीं आता वे अकेले कैसे देहरादून और पौढ़ी में रहते .पूछता तो बेफिक्र होकर कहते ,कौन दिल्ली में है ही .रिटायर होने के बाद का अकेलापन भी कई बार तोड़ता है .वे जनसत्ता एपार्टमेंट में रहते पर बहुत कम लोगों से संबंध रहा .मै आता तो उनके घर जाता .दो तीन साल पहले घर पर दावत दी तो उनको टोका भी खानपान को लेकर .खाने में फैट जरुरत से ज्यादा था .कोई परहेज नहीं .बाद में सुगर की भी समस्या हो गई पर खानपान अनियमित ही रहता .देहरादून में में कैसे खाना होता है यह पूछने पर बताया था कि नास्ता वे करते नहीं सीधे दाल चावल आदि बना लेते है .यह फिर रात में बाहर से खाना लाकर खाते है .एक्सप्रेस यूनियन में चुनाव हुआ हिंसा हुई वे अपनी हिफाजत में सबसे आगे रहे .अपनी प्रतिबद्धता कभी नहीं बदली और न जीवन शैली .शुक्रवार शुरू किया तो अरविंद से कहा कि वे एपार्टमेंट में ही रहते है तो संपादकीय विभाग का काम संभाले .वेतन भी ठीक ठाक देने की पेशकश हुई .उप्रेती का जवाब था ,छोडो यार बहुत हो गई नौकरी अब मौज करनी है .बेटे की नौकरी के लिये जरुर कहते .एक अंग्रेजी अख़बार में बात भी हुई पर उसे रास न आया .यह चिंता उन्हें जरुर परेशान करती .पर किसी से कोई व्यथा नहीं बताते .याद है कैम्पटी फाल के डाक बंगले में रुके तो वे ही गए खाने आदि का इंतजाम करने .फिर देर तक बैठे और शमशाद बेगम और सुरय्या आदि के गाने सुनते रहे .वे बीच बीच में बाहर जाते झरने की तरफ .बोले यह जगह बहुत अच्छी है यहां दोबारा आऊंगा .पिछली बार एपार्टमेंट स्थित मेरे फ़्लैट में आए और देर तक बैठे .उनसे कहा था ,भाई ये गुटका छोड़ दे .कुछ चेकअप आदि भी करा लिया करे पर वे बेफिक्र थे .कहा -जबतक रहेंगे ठीक से रहेंगे जब चले जाएंगे तो फिर क्या चिंता रहेगी .अभी मंगलेश जी का फोन आया बताया कि परसों ही मुलाकात हुई थी .फिर शंभुनाथ शुक्ल का फोन आया बोले आपके फेसबुक से फोटो ली तो मेरा जवाब था ,अरविंद उप्रेती की तो शायद कोई फोटो मिले भी नहीं .उनका कोई मेल अकाउंट नहीं था फेसबुक तो बहुत आगे की बात है .बीते तीस अगस्त को मैंने उनकी बहुत सी फोटो ली थी कुछ लोक कवि बल्ली सिंह चीमा के साथ तो कुछ अलग .कुछ फोटो ब्लाग पर दे रहा हूं