Saturday, March 16, 2019

कैंडोलिम के समुद्र तट पर कुछ दिन

अंबरीश कुमार यह कैंडोलिम का समुद्र तट है . दूर तक जाती हुई सफ़ेद रेत . कौन जाने कितनी दूर तक ,इतना चलने की अपनी हिम्मत भी नहीं थी . सुबह के साढ़े पांच थे पर अंधेरा पूरा छटा नहीं था . रात करीब एक बजे गोवा के इस छोटे से कस्बे में पहुंचे थे . रात दिल्ली से चले और गोवा के डाबोलिम हवाई अड्डे से बाहर आते आते बारह बज ही चुके थे . जाना दूर था . करीब पचास किलोमीटर था अपना कैंडोलिम का ठिकाना . इस बार अपन होटल की बजाए एपार्टमेंट में रुके थे . चाय ,काफी ,नाश्ता के अलावा मन हो तो खाना भी बना सके इस वजह से . रात एक बजे जब कैंडोलिम के समुद्र तट के इस कस्बे में पहुंचे तो नजारा ही अलग था . हम तो डर रहे थे की बोतल बंद पानी मिल पाएगा या नहीं क्योंकि दिल्ली से जो पानी लेकर चले थे वह खत्म हो गया था . एयरपोर्ट में टैक्सी लेने की आपाधापी में भूल ही गए . पर जिस न्यूटन सुपर मार्केट के पीछे अपना ठिकाना था उसके सामने और आसपास ज्यादातर रेस्तरां और बार खुले हुए थे . हमें पंजिम का पुराना अनुभव था जहां रात ग्यारह बजे सारे रेस्तरां /बार बंद हो जाते हैं और आटो भी मिलना मुश्किल होता है . जबकि वह गोवा की राजधानी है . और इस समुद्र तटीय कस्बे में रात चार बजे तक रेस्तरां खुले रहते हैं . भारतीय तो कम मिलेंगे पर विदेशी जमे रहते है . पश्चिमी संगीत बजता रहता है . सड़क के ठीक किनारे बैठकर वे अपनी मनपसंद शराब पीते रहतें हैं . कोई रोकटोक नहीं . कैंडोलिम में बहुत कम भीड़ होती है और समुद्र तट साफ़ सुथरा है . कैंडोलिम गोवा का बहुत खूबसूरत समुद्र तटीय गांव है जो यह गांव सोलहवीं शताब्दी में पूरी तरह ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया था . पंजिम शहर रात ग्यारह बजे भले ही सो जाता हो पर कैंडोलिम के होटल रेस्तरां रात चार बजे तक खुले रहते हैं . राष्ट्रवादी सरकार है पर गैर राष्ट्रवादी सभी सामग्री जगह जगह उपलब्ध है खान पान और संस्कृति पर (पुर्तगालियों ) ईसाइयों का ज्यादा प्रभाव है . यहां सब कुछ खाने को मिलेगा जिसका नाम लेने पर उत्तर भारत में लोग डर जाते हों . सुपर मार्किट में सभी तरह की मदिरा मिलती है . लोग चावल दाल शाक सब्जी के साथ विह्स्की से लेकर वाइन तक खरीदते मिल जाएंगे . इनमे सत्तर साल के बुजुर्ग भी होते है . ईसाई समाज बहुत खुला हुआ होता है और वह सब यहां दिखता भी है . इसबार होटल रिसार्ट और गेस्ट हाउस से बचते हुए दो बेडरूम एपार्टमेंट में ठहरना ठीक लगा जिसमे रसोई और बर्तन होते है . वीएन राय साब ने यह सुझाव दिया था . वे कड़ाके की ठंढ के समय महीना भर इस अंचल में रहते हैं . जगह तो बहुत अच्छी है पर खानपान को लेकर कुछ व्यावहारिक दिक्कत आती है . . अपने को सरसों के तेल में खाना ठीक लगता है और सविता शुद्ध शाकाहारी है जिन्हें उन होटल में जाने में दिक्कत होती है जो लोबस्तर ,प्रान और बीफ आदि परोसते हैं . इसलिए वे नाश्ता भी खुद बना रहीं है और खाना भी . इसलिए सब्जियों के भाव भी पता चले . पहाड़ और मैदान में जो हरी मटर तीस रुपए किलो है वह यहां अस्सी रुपए . खीरा साठ रुपए तो सेब दो सौ रुपए . पर विह्स्की /फेनी तो हर दूकान पर और कोल्ड ड्रिंक के दाम में भी मिल जाएगी . पर हवाई आड़े से यह जगह करीब पचास किलोमीटर दूर है . देर रात में टैक्सी का भाड़ा तीस फीसदी बढ़ जाता है ,दो हजार पड़ा . हमें लगा था रात एक बजे तो सन्नाटा होगा पर पता चला चार बजे तक पूरी रौनक रहती है समुद्र तट के होटल रिसार्ट में . गोवा एक राज्य है और इसके चार समुद्र तट पर रुकना हो चुका था इसलिए अबकी बारी वेगाटार ,बागा और कैंडोलिम समुद्र तट को देखना ठीक लगा . कई महीने बाद गर्म कपड़ों से भी निजात मिली . अगला पड़ाव था सालिगाव . यह उत्तरी गोवा का छोटा सा गांव है . कलंगूट से ढाई किलोमीटर और कैंडोलिम से नौ किलोमीटर दूर . हम कैंडोलिम से करीब ग्यारह बजे चले . धूप थी पर बहुत तेज नहीं . टैक्सी वाले सात आठ सौ रुपए मांग रहे थे . ज्यादा लगा इसलिए बस में बैठ गए . दस रुपए एक आदमी का भाड़ा था दो बैग थे इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं हुई . गोवा की बसों में दक्षिण के अन्य राज्यों की तरह महिलाओं के लिए कई सीट आरक्षित रहती है . पर सभी को जगह मिल गई . थोड़ी देर का ही रास्ता था पर बस हर जगह रूकती हुई चल रही थी . नारियल के पेड़ों से घिरा रास्ता . दोनों तरफ छोटे पर खूबसूरत घर . कुछ देर में ही हम सालिगाव चौराहे पर उतर गए . यहां समस्या हो गई . ओवाईओ के जिस एपार्टमेंट में फ़्लैट बुक कराया था उसका कोई बोर्ड नहीं लगा था . जिसे ढूंढने में दिक्कत हुई और खीज भी . गुस्से में इसके करता धर्ता को डांट भी दिया . दरअसल यह रिसेप्शन विहीन व्यवस्था थी . यहां आपको कोई व्यक्ति नहीं मिलना था ,सारा इंतजाम खुद करना था . मोबाइल पर एक कोड भेजा गया . इस कोड से फ़्लैट पर लगा एक बड़ा ताला खुला और उसमे से मुख्य दरवाजे की चाभी निकली . दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुए . भीतर से फ़्लैट ठीक ठाक था . लिविंग रूम में सोफे टीवी के साथ डाइनिंग टेबल थी . दो बेडरूम थे एसी वाले . हर बेडरूम बालकनी के साथ था . सामने बड़ी बालकनी . बालकनी के ठीक सामने से नारियल के बाग़ में बना एक पुराना चर्च दिख रहा था . हम लोग हल्का नाश्ता करके चले थे ,इसलिए फिर कुछ खाने की इच्छा हुई . चार दिन से ऐसे ही एपार्टमेंट में थे इसलिए सारा सामान था . किचन में बिजली वाला चूल्हा और बर्तन के साथ आरओ भी चालू था . सब्जी फल और ब्रेड मक्खन को फ्रीज में रख दिया गया . गाजर ,मटर ,भुनी मूंगफली ,धनिया मिर्च और चिवड़ा था ही इसलिए सविता ने पोहा बनाया . अपने पास इंदौर की अच्छी नमकीन भी थी . पत्रकार धरा पांडे जब लखनऊ आई तो दे गई थी . वह रखा था . पोहा के साथ भुजिया /नमकीन और नींबू का प्रचलन है . नागपुर की तरफ तली हुई हरी मिर्च नमक और नींबू के साथ दी जाती है . दरअसल पोहा आदि का नाश्ता अपने पुरबिया परिवार में सविता के आने के बाद शुरू हुआ . वे बुन्देलखंड की है जिसपर मराठा खानपान का असर रहा . इसी वजह से पोहा अपने घर में भी ज्यादा बनने लगा . खैर इस एपार्टमेंट के किचन में भी बालकनी थी जो आम और नारियल के बगीचे में खुलती थी . वहीँ कुर्सी लेकर बैठ गया . आम में बौर आ चुके थे . कई जगह आम के टिकोरे दिखे भी . यह आबोहवा का असर था . कुछ देर बाद नीचे उतरे और आसपास निकले . कार्यक्रम बना कि वेगाटार समुद्र तट निकला जाए मापुसा होकर . पीछे ही सालिगाव का मशहूर चर्च था . यह पुराना चर्च है . Mãe de Deus Parish Church 1873 में बना था . इसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं . पर सलिगाव इधर चर्चा में आया पानी बचाने को लेकर . भूजल का दोहन इधर काफी तेज हुआ है जिसे लेकर यहां के लोगों ने चिंता जताई . दरअसल बगल में गोवा का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल कलंगूट है . इधर से पानी उधर जाता है और उधर का कूड़ा कचरा इधर डंप किया जाता है .

Monday, March 4, 2019

इस अहलुवालिया ने तो हवा ही निकाल दी !

अंबरीश कुमार नई दिल्ली .अद्भुत सरकार है यह .ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक की कि देश के लोगों का दिमाग घूम गया है .कहां मारा गया ,किसे मारा गया और कितने मारे गए . जिस पार्टी की सरकार है उसका मुखिया कह रहा है कि पकिस्तान में आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला कर ढाई सौ से ज्यादा आतंकवादी मार गिराए गए .दूसरी तरफ पार्टी अध्यक्ष के इस दावे की हवा खुद सरकार के केंद्रीय मंत्री एसएस अहलुवालिया ने ही निकाल दी .केंद्रीय मंत्री एसएस अहलुवालिया ने कहा है कि इस हमले का उद्देश्य मानवीय क्षति पहुंचाना नहीं बल्कि एक संदेश देना था कि भारत दुश्मन के क्षेत्र में अंदर दूर तक घुसकर प्रहार कर सकता है. अहलुवालिया ने कहा कि न तो प्रधानमंत्री और न ही किसी सरकारी प्रवक्ता ने हवाई हमले के हताहतों पर कोई आंकड़ा दिया है. बल्कि यह तो भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया ही था जहां मारे गए आतंकवादियों की अपुष्ट संख्या की चर्चा हो रही थी. उन्होंने शनिवार को सिलीगुड़ी में संवाददाताओं से सवाल किया कि हमने भारतीय मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें देखी हैं और यह भी देखा कि मोदीजी ने क्या कहा था.यह कहकर उन्होंने भाजपा के चुनावी गुब्बारे की हवा ही निकाल दी है .हो सकता है वे कल को खंडन कर दे पर जो फजीहत वे सरकार की कर चुके हैं उसकी भरपाई संभव नहीं है .अब सभी सरकार की इस कार्यवाई को शक की नजर से देखने लगे हैं . इससे पहले विदेश सचिव ने इस मामले पर गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड लिया .दरअसल रायटर्स ,बीबीसी और अल जजीरा आदि की रपट के बाद सरकार घिर गई है .सरकार सिर्फ इसलिए घिरी क्योंकि वह सेना के पराक्रम को अपने चुनावी पराक्रम में बदलना कहती थी .वर्ना हमले के दस बारह घंटे बाद ही यह कह सकती थी कि इस हमले का मकसद सिर्फ पकिस्तान को सांकेतिक चेतावनी देना था ,किसी को मारना नहीं .इससे सरकार की प्रतिष्ठा कम नहीं होती . दरअसल इस हवाई हमले की नाकामी हमारे ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी है दूसरे यह हमारी विदेश नीति की भी नाकामी है .अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया भर में हल्ला नहीं मचाया होता कि भारत पकिस्तान पर कुछ बड़ा करने जा रहा है तो शायद बालाकोट के आतंकी शिविर खाली नहीं मिलते .ट्रंप को इस मामले में डालने का यह बड़ा नुकसान हुआ .दूसरे जिस कश्मीर को हम दो देशों का मुद्दा मानते आएं हैं वह अब पंचायती हुक्का बन चुका है .अब अमेरिका हर बातचीत में दखल भी देगा .यह विदेश नीति में हुए बदलाव का नतीजा है .ओआईसी में बची खुची कसर निकल गई जिसने अपने प्रस्ताव में भारत को कश्मीर में आतंक फैलाने वाला देश घोषित कर दिया .सुषमा स्वराज के लिए इससे ज्यादा फजीहत की बात क्या होगी .चीन किस तरफ है यह सभी को पता है .दरअसल पकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थित के चलते कई देशों की जरुरत बना हुआ है .जिसमे चीन सबसे ऊपर है तो अमेरिका भी उसके बाद ही है .यह बात समझनी चाहिए .ऐसे में बहुत संभल संभल कर कदम रखने की जरुरत थी . पर मोदी के लिए चुनाव सबसे ऊपर है .जब सीमा पर बम गोला चल रहा था तो भी वे देश में बूथ मजबूत करने में जुटे थे .जब पुलवामा हमला हुआ तो भी वे शूटिंग और चुनाव प्रचार में लगे थे .जब सैनिक का शव पटना आ रहा था तो भी वे रैली में ही थे .कोई मंत्री तक इन शहीदों के घर झांकने नहीं गया . पर चुनाव प्रचार में सैनिक की फोटो ये ढाल बना चुके हैं .इससे न सिर्फ विश्व मंच पर देश की फजीहत हो रही है बल्कि विदेशी मीडिया में भी खिंचाई हो रही है .हमले में मारे गए लोगों की संख्या से यह शुरुआत हुई .सरकार ने जानबूझ कर पहले तीन सौ /चार सौ लोगों के मारे जाने की खबर लीक कराई .ताकि चुनावी प्रचार में माहौल बने और विपक्ष ठंढा पड़ जाए .पर मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इस सर्जिकल स्ट्राइक को मनोरंजन में बदल दिया .कोई सैनिक बनकर टीवी पर आ गया तो कोई तोप तमंचा लेकर .जो संख्या ठीक लगी वह चला दी ,चार सौ कुछ कम लगी तो छह सौ तक पहुंच गए .पर जब अंतरराष्ट्रीय एजंसियों ने खबर लेनी शुरू की तो मामला गड़बड़ा गया .दरअसल सारा मामला ख़ुफ़िया जानकारी का ही था .इसमें चूक हुई होगी यह माना जा रहा है .ख़ुफ़िया तंत्र हमारा इतना लचर कभी नहीं रहा जितना देसी जेम्स बांड डोवाल के समय में हो गया है .वर्ना अर्ध सैनिक बल के इतने बड़े दस्ते के रास्ते में तीन सौ किलो विस्फोटक न आता .घाटी में रोज अपने जो जवान मारे जा रहे हैं उसके पीछे भी ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता बड़ी वजह है . पर सरकार तो चुनाव का बूथ मजबूत करने में लगी है .लोग समझ नहीं पा रहें हैं कि पचास सैनिक हमारे मारे गए .एक को पकिस्तान ने हमें दिया .नुकसान हमारा ज्यादा हुआ फिर भी ढोल नगाड़ा हम ही बजा रहें है .हम क्यों उत्सव मना रहे हैं यह एक सैनिक परिवार ने भी पूछा .पर कौन सुनता है किसी सैनिक की आवाज .सैनिक की फोटो को जीप के बोनट पर डाल कर वोट जो मांगना है .पर इसमें अहलुवालिया ने खलल डाल दिया है .आप दिग्विजय सिंह को क्या घेरेंगे ,मीडिया को क्या घेरेंगे पहले अपने मंत्री से तो निपट लें जिसने सेना के पराक्रम को पार्टी पराक्रम में बदलने की योजना में पलीता लगा दिया है .

Saturday, March 2, 2019

कभी इस गांव में भी रुके

अंबरीश कुमार का छोटा सा गांव है .कलंगूट से ढाई किलोमीटर और कैंडोलिम से नौ किलोमीटर दूर .हम कैंडोलिम से करीब ग्यारह बजे चले .धूप थी पर बहुत तेज नहीं .टैक्सी वाले सात आठ सौ रुपए मांग रहे थे .ज्यादा लगा इसलिए बस में बैठ गए .दस रुपए एक आदमी का भाड़ा था दो बैग थे इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं हुई .गोवा की बसों में दक्षिण के अन्य राज्यों की तरह महिलाओं के लिए कई सीट आरक्षित रहती है .पर सभी को जगह मिल गई .थोड़ी देर का ही रास्ता था पर बस हर जगह रूकती हुई चल रही थी .नारियल के पेड़ों से घिरा रास्ता .दोनों तरफ छोटे पर खूबसूरत घर .कुछ देर में ही हम सालिगाव चौराहे पर उतर गए .यहां समस्या हो गई .ओवाईओ के जिस एपार्टमेंट में फ़्लैट बुक कराया था उसका कोई बोर्ड नहीं लगा था .जिसे ढूंढने में दिक्कत हुई और खीज भी .गुस्से में इसके करता धर्ता को डांट भी दिया .दरअसल यह रिसेप्शन विहीन व्यवस्था थी .यहां आपको कोई व्यक्ति नहीं मिलना था ,सारा इंतजाम खुद करना था .मोबाइल पर एक कोड भेजा गया .इस कोड से फ़्लैट पर लगा एक बड़ा ताला खुला और उसमे से मुख्य दरवाजे की चाभी निकली .दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुए . भीतर से फ़्लैट ठीक ठाक था .लिविंग रूम में सोफे टीवी के साथ डाइनिंग टेबल थी .दो बेडरूम थे एसी वाले .हर बेडरूम बालकनी के साथ था . सामने बड़ी बालकनी .बालकनी के ठीक सामने से नारियल के बाग़ में बना एक पुराना चर्च दिख रहा था .हम लोग हल्का नाश्ता करके चले थे ,इसलिए फिर कुछ खाने की इच्छा हुई .चार दिन से ऐसे ही एपार्टमेंट में थे इसलिए सारा सामान था .दरअसल कैंडोलिम में चारो ओर जो होटल रेस्तरां थे उसमे बीफ के व्यंजन भी थे .सविता ठहरी शुद्ध शाकाहारी .साफ़ मना कर दिया कि इन किसी भी होटल में नहीं खाएंगे खुद एपार्टमेंट के किचन में बनाया जायेगा .ठीक बगल में न्यूटन सुपर मार्किट थे .सब्जी भाजी फल से लेकर दाल चावल और फ्रोजेन रोटी तक ले ली गई .मछली भी थी ,अपनी इच्छा भी हुई पर कौन झमेला करता इसलिए मै भी शाकाहारी हो गया .वह सब सामान था ही .किचन में बिजली वाला चूल्हा और बर्तन के साथ आरओ भी चालू था .सब्जी फल और ब्रेड मक्खन को फ्रीज में रख दिया गया .गाजर ,मटर ,भुनी मूंगफली ,धनिया मिर्च और चिवड़ा था ही इसलिए सविता ने पोहा बनाया .अपने पास इंदौर की अच्छी नमकीन भी थी .धरा पांडे जब लखनऊ आई तो दे गई थी .वह रखा था .पोहा के साथ भुजिया /नमकीन और नींबू का प्रचलन है .नागपुर की तरफ तली हुई हरी मिर्च नमक और नींबू के साथ दी जाती है . दरअसल पोहा आदि का नाश्ता अपने पुरबिया परिवार में सविता के आने के बाद शुरू हुआ .वे बुन्देलखंड की है जिसपर मराठा खानपान का असर रहा .इसी वजह से पोहा अपने घर में भी ज्यादा बनने लगा .खैर इस एपार्टमेंट के किचन में भी बालकनी थी जो आम और नारियल के बगीचे में खुलती थी .वहीँ कुर्सी लेकर बैठ गया .आम में बौर आ चुके थे .कई जगह आम के टिकोरे दिखे भी .यह आबोहवा का असर था .कुछ देर बाद नीचे उतरे और आसपास निकले .कार्यक्रम बना कि वेगाटार समुद्र तट निकला जाए मापुसा होकर .पीछे ही सालिगाव का मशहूर चर्च था .यह पुराना चर्च है .Mãe de Deus Parish Church 1873 में बना था .इसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं .पर सलिगाव इधर चर्चा में आया पानी बचाने को लेकर .भूजल का दोहन इधर काफी तेज हुआ है जिसे लेकर यहां के लोगों ने चिंता जताई .दरअसल बगल में गोवा का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल कलंगूट है .इधर से पानी उधर जाता है और उधर का कूड़ा कचरा इधर डंप किया जाता है .सभी सैरगाहों में कूड़ा कचरा डंप करने की बड़ी समस्या आ रही है .मोदी जी ने स्वच्छता अभियान जो चलाया उसका कुछ असर तो सरकारी स्तर पर हुआ है .यह हमें कैंडोलिम में भी दिखा .वहां सुबह छह बजे से लेकर शाम तक कूड़ा उठाने वाले ट्रक कई बार आते थे .पर ये कूड़ा लेकर जाते कहां थे मालूम नहीं .जारी

Friday, March 1, 2019

बदलते हुए इस पाकिस्तान को भी देखें

अंबरीश कुमार विंग कमांडर अभिनंदन जो पाकिस्तान का जहाज गिरा कर उधर ही गिर गए थे वे लौट आएं हैं . पकिस्तान कट्टरपंथियों का देश रहा है कोई लोकतांत्रिक देश नहीं जिससे दुश्मन देश के किसी सैनिक से सम्मानजनक बर्ताव की उम्मीद की जाए .वे क्या जिनेवा समझौता मानेगा जिसने अपने ही जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया था .भुट्टो की बेटी बेनजीर को इसी देश में चुनाव प्रचार के दौरान बम से उड़ा दिया गया .सौरभ कालिया याद है न और अजय आहूजा भी .ऐसे देश से अपना एक बहादुर सैनिक सकुशल लौट आए तो यह ख़ुशी का मौका है ही .पर इसके पीछे कई और वजह भी है .पकिस्तान का नेतृत्त्व कुछ तो बदला रहा है .रोज मुठभेड़ होने के बावजूद भी .गौरतलब है कि विभाजन के बाद भारत ने धर्म निरपेक्ष रास्ता अपनाया तो पकिस्तान मजहबी कट्टरपंथ के रास्ते पर चला गया .जिसका असर उसके चौतरफा विकास पर पड़ा और अर्थव्यवस्था भी बिगड़ती गई .पाकिस्तान की राजनीति कट्टरपंथियों और सेना के कब्जे में चली गई .कश्मीर के अलगाववाद को उसने हवा दी तो खुद भी आतंकवादियों का शिकार होता रहा है .लंबी सूची है पकिस्तान के उन महत्वपूर्ण लोगों की जिनकी जान आतंकवादियों ने ली .बेनजीर भुट्टो भी उन्ही का निशाना बनी थी .पर अब उसी पाकिस्तान की नई पीढी का रास्ता बदलता हुआ नजर आ रहा है . अभी तक हमारे जैसे ज्यादातर लोग पाकिस्तान को धर्मांध ,जाहिल और बर्बर मुल्क के रूप में ही देखते रहें हैं .हालांकि कुछ समय पहले एनडीटीवी की रिपोर्टर ने जब पाकिस्तानी छात्राओं से बातचीत की तो काफी हैरानी हुई थी .ये छात्राएं भारत आना चाहती थी ,लोगों से मिलना जुलना चाहती थी .भारत पकिस्तान के बीच नए सिरे से संबंध विकसित हो इस पक्ष में थी .बहुत ज्यादा इस रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया था .पर दो दिन पहले लाहौर प्रेस क्लब पर पकिस्तान के नौजवानों के प्रदर्शन की जो फोटो देखी तो हैरान रह गया .इसमें छात्र छात्राएं भी थी तो बड़े भी .ये भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई की मांग कर रहीं थी .उस पकिस्तान में जो विश्व के सबसे ज्यादा आतंकी संगठनों से घिरा हुआ है .वह पाकिस्तान जो कट्टरपंथ के रास्ते पर है .हर रोज ये कट्टरपंथी लोगों को निशाना बनाते हैं . ऐसे में नौजवान लड़के लड़कियों का यह प्रदर्शन पकिस्तान की नई पीढ़ी में आ रहे बड़े बदलाव को दर्शा रहा है .इसके पीछे पाकिस्तान के मीडिया की भी भूमिका है .समूचा मीडिया तो नहीं पर बड़ा हिस्सा काफी समय से अपनी निष्पक्षता को बनाए हुए है .वह सरकार से सवाल भी पूछता है और अपनी राय भी मजबूती से रखता है .भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन की वीरता के किस्से पहले वहीँ सामने आए जबकि भारतीय मीडिया इस घटना को ही दबाने में जुटा था .मीडिया की खबरों के चलते ये नौजवान सड़कों पर उतरे और एक भारतीय सैनिक को छोड़ने की मांग की . वह भी उस माहौल में जब ज्यादर भारतीय चैनल उन्माद फैलाने में जुटे थे .बालाकोट में हवाई कार्यवाई को पर चैनलों ने तीन सौ से लेकर छह सौ आतंकवादी मारे जाने का दावा कर दिया .जबकि रायटर्स ,बीबीसी से लेकर अल जजीरा की रिपोर्ट इन दावों की हवा निकाल रही थी .रायटर्स ने तो सिर्फ एक कौव्वा मारे जाने की भी खबर दी .चूंकि सेना या विदेश मंत्रालय ने मारे गए आतंकवादियों की संख्या या नाम को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी इसलिए जो जिसके मन में आया वह संख्या देने लगा .हिंदी चैनल वैसे भी रिसर्च आदि की ज्यादा जहमत उठाते भी नहीं हैं .खैर ऐसे तनाव वाले माहौल में भारतीय मीडया युद्ध का उन्माद फैला रहा था तो प्रधानमंत्री देश को संबोधित करने की बजाए पार्टी का बूथ मजबूत करने के कार्यक्रम में जुटे थे .जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने देश की संसद में भारतीय विंग कमांडर को छोड़ने का एलान किया .इसपर वहां की संसद में तालियां भी बजी .यह पहली बार हुआ .नौजवान तो सड़क पर उतरे एक भारतीय सैनिक के समर्थन में तो पकिस्तान की संसद ने उस सैनिक की रिहाई का स्वागत किया .यह बदलाव मामूली बदलाव नहीं है . यह उसी पकिस्तान में हुआ जहां जुल्फिकार अली भुट्टों हजार साल तक लड़ने की बात करते थे .जहां अलगाववादी नेता भारत को नेस्तनाबूद करने की कसम खाया करते थे .उस पकिस्तान में इमरान खान शांति की बात कर रहे हैं .विदेश मामलों के जानकार पत्रकार वेद प्रताप वैदिक इसे इमरान खान की बड़ी कुटनीतिक जीत के रूप में देखते है .विदेशी मीडिया भी इस बदले हुए तेवर की तारीफ़ कर रहा है .थोडा सा पीछे जाएं. इन्ही इमरान खान ने ही करतार साहिब का कारिडोर खोला था .यह कितनी पुरानी मांग थी सिखों की .पाकिस्तान में पहली बार कोई हिंदू महिला जज भी बनाई गई जो अघोषित इस्लामी देश है .ये वही पाकिस्तान है जिसमे सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिलवाया .भगत सिंह के नाम पर लोग सड़कों पर निकल आ रहें है .भगत सिंह के नाम पर चौक बनाने की मांग भी तो नौजवानों ने ही की थी . क्या यह सब बदलाव नए नहीं हैं .ये नई पीढ़ी अब इतिहास को पढ़ रही है और दोनों देशो का इतिहास देख भी रही है .वे तुलना भी तो करते होंगे .भारत कहां से कहां पहुंच गया .शिक्षा में ,स्वास्थ्य के क्षेत्र में ,तकनीक के क्षेत्र में .और पाकिस्तान को कट्टरपंथ की कितनी कीमत चुकानी पड़ी है .ऐसी बहुत सी वजह होगी इस बदलाव के पीछे .पर अगर हम इस बदलाव को अब नहीं देख पाए ,नहीं समझ पाए तो फिर टकराव कभी खत्म नहीं होगा .जिन्हें राजनीति में पिछड़ने की आशंका है वे अब युद्ध का अंतिम हथियार निकालना चाहते हैं .पाकिस्तान बदल रहा है ,कट्टरपंथ के रास्ते से आगे बढ़ना चाहता है और हम पीछे जाने का प्रयास कर रहे हैं .मीडिया का क्या वह तो कभी सरजू लाल कर अयोध्या सामने कर देगा तो कभी भाड़े की वर्दी पहन कर सैनिक बन जाएगा .इसलिए बदलते पाकिस्तान के साथ बातचीत का रास्ता खोलना चाहिए .