Thursday, February 18, 2016

देश डर न जाये इस देशभक्ति से !


देश डर न जाये इस देशभक्ति से ! अंबरीश कुमार जिन छात्रों और नौजवानों से बनी लहर पर सवार होकर नरेंद्र मोदी सत्ता में आये थे. आज उन्हीं छात्रों के खिलाफ सरकार ने लगता है. अघोषित युद्ध छेड़ दिया है. कहा जा रहा है कि यह रणनीति है .देशभक्त बनाम देशद्रोही में बांटने की .इससे पार्टी को फायदा पहुंचेगा . इसी वजह से अदालत में झंडा ,डंडा और ईंटा पत्थर लेकर कुछ देशभक्त वकील न्याय करने उतरे . पर यह रणनीति नाकामयाब होती नजर आ रही है .जेएनयू में विद्यार्थी परिषद के छात्र संघ पदाधिकारी ही विरोध में खड़े हो गये . यह आगे बढ़ा तो यह संगठन और सरकार दोनों पर भारी पड़ेगा.यह देश इतना कमजोर नहीं है कि दर्जन भर गुमराह लोग नारा लगा दे तो देश दरक जाये .यह समझना चाहिये .आज उत्तर से दक्षिण तक परिसर सुलग रहे हैं. मुद्दे अलग अलग हैं. जेएनयू के मुद्दे से देश में बहस छिड़ गयी है. धुर वामपंथी दलों को भी अब मंथन करना चाहिये जिनके ज्यादातर नायक अधिनायक इस देश के नहीं हैं. गांधी, लोहिया और जयप्रकाश का वे नाम नहीं लेंगे. अंबेडकर अब उनकी सूची में जुड़े हैं. वे अफजल गुरु और मकबूल बट के नाम पर कौन सी राजनीति खड़ी करना चाहते हैं. उनकी प्राथमिकता पर शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे होने चाहिए या दूसरे मुद्दे. परिसर में बहस हो, संवाद हो पर कश्मीर की आजादी की लड़ाई इस देश के विश्विद्यालय परिसर में तो नहीं लड़ी जा सकती. पर यह एक पहलू है. दूसरा पहलू परिसर में कट्टरपंथ के बढ़ते दायरे का है. अगर जेएनयू में गलत हुआ तो बनारस हिंदू विश्विद्यालय में संघ का लाठी के साथ पथ संचलन भी ठीक नहीं कहा जा सकता. परिसर में संवाद हो बहस हो हिंसक टकराव की जमीन न तैयार करे. ऐसा हुआ तो छात्र युवा आक्रोश की जमीन तैयार हो जायेगी. हालात वैसे ही बन भी रहें हैं. हैदराबाद से लेकर इलाहाबाद तक. यह युवा आक्रोश बहुत कुछ फिर बदल देगा.शुरुआत हो गई है गुरूवार को दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में छात्र नौजवान सड़क पर उतरे . इस तरह का युवा आक्रोश पहली बार साल 1966 -67 में दिखा था. जो नक्सलबाड़ी से शुरू होकर देश के विभिन्न हिस्सों में फ़ैल गया था. इसके बाद चौहत्तर के आंदोलन में यह आक्रोश उभरा और इस तरह का ही आक्रोश अन्ना हजारे के आंदोलन के दौर में दिखा. बहुत ध्यान से छात्र युवा आक्रोश के समय पर गौर करें. जब-जब छात्र युवा आक्रोश उभरा है. सत्ता भी बदली है. प्रदेश से लेकर देश तक. इसलिए मोदी सरकार को इस आक्रोश को गंभीरता से लेना चाहिए. कौन हैं ये लोग जो छात्रों पर राष्ट्रभक्ति के नाम पर हमला कर रहे हैं. अदालत में अराजकता हो रही है. हमला हो रहा है. पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं. जो चेहरे पुलिस को नहीं दिख रहे हैं. वह मीडिया लगातार दिखा रहा है. ये चेहरे कभी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ खड़े नजर आते हैं. अखबार में चैनलों में सभी हमलावर के चेहरे सामने आ चुके हैं. फिर भी सबकी आंखे बंद हैं. यह पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देकर पुलिस को फटकार लगाना पड़ा और कोर्ट परिसर को खाली कराने को कहना पड़ा. यह कौन सा राज स्थापित हुआ है. जंगलराज सिर्फ बिहार में ही नहीं दिल्ली में भी आ सकता है. इसी तरह जब मीडिया पर अदालत परिसर में दो दिन लगातार हमला होता है और केंद्र सरकार के मंत्री प्रकाश जावड़ेकर एनडीटीवी की एक महिला एंकर को पत्रकारिता का ककहरा सिखाते हैं. सत्तारूढ़ दल कौन से आदर्श स्थापित कर रहा है. जो कल तक खालिस्तान के नारे लगाते थे, पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री की हत्या करने वाले नेताओं का महिमामंडन करते थे. उनके साथ भी हाथ मिलाया जाता है. अफजल गुरु को शहीद मानने वाली और कश्मीर में आजादी का नारा देने वाली ताकतों के साथ खड़ी पीडीपी के साथ आप सरकार चलाते हो और दिल्ली में दूसरों को राष्ट्रभक्ति का पाठ भी पढ़ाते हो. यह कैसा विरोधाभाष है. हम कई दशक से अलगाववादियों से संवाद करते रहे हैं. ताकि उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके. खालिस्तान का नारा देने वाले भी इसमें शामिल थे. तो पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिण में अलगाववाद की बात करने वाले भी. हम पकिस्तान से भी संवाद करते हैं. ताकि दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर हो. जब सबसे बात कर सकते हैं तो इस देश की युवा पीढी के एक हिस्से को क्यों छोड़ दें. जो नौजवान भटक गये हो उन्हें भी मुख्यधारा में लाने का प्रयास होना चाहिए या उन्हें भी अलगाववादी आंदोलन में ढकेल देंगे. यह एक छोटा सा हिस्सा हो सकता है पर जरा ध्यान से देखे हैदराबाद से लेकर इलाहाबाद तक में तो मुख्यधारा से जुड़े छात्रों पर हमला हो रहा है. बनारस से लेकर लखनऊ में तो संसदीय राजनीति के पक्षधर ताकतों पर हमला हो रहा है. यह न नौजवान बर्दाश्त करेगा न समाज. अगर युवा आक्रोश बढ़ा,परिसर अशांत हुआ तो उसकी बड़ी कीमत भी देनी पड़ेगी. बहुत छोटी सी शुरुआत होती है. यह सभी जानते हैं. गुजरात में मेस के मुद्दे से छात्रों का जो आंदोलन शुरू हुआ था. उसने देश की सत्ता से इंदिरा गांधी को बेदखल कर दिया था. यह जरुर ध्यान रखें. शुक्रवार

Tuesday, February 9, 2016

नदी को नहर में तो न बदलें

नदी को नहर में तो न बदलें अंबरीश कुमार देश के विभिन्न हिस्सों में शहरों से बहने वाली नदी पर रिवर फ्रंट बनाने की योजना शुरू हो चुकी है । देश में इस योजना की प्रेरणा अहमदाबाद के बीच से बहने वाली साबरमती रिवर फ्रंट से मिली तो विदेश में न्यूयार्क की हडसन नदी से । इसका लोग उदाहरण भी देते है । इसी के चलते पर शुरू होना है । इसका कल्पना भी बहुत अच्छी लगती है और जो सब बताया जाता है वह भी मध्य वर्ग को बहुत लुभाता है । मंद मंद बहती नदी के दोनों तट पर पक्की चमचमाती सड़क । बैठने के लिए शानदार बेंच । संगीत के साथ तरह तरह के व्यंजन परोसते रेस्तरां और नदी में वाटर स्पोर्ट । अत्याधुनिक नाव ,होवरक्राफ्ट और क्रूज सबकुछ । बस नहीं होगा तो नदी का अपना साफ़ पानी । पर इसकी कीमत बहुत ज्यादा है । जिस नदी पर यह बनेगा उसका हाइड्रोलिक सिस्टम पूरी तरह बिगड़ जाएगा । जो जलचर नदी के कच्चे किनारे पर आते जाते अंडा देते वे सब निपट जाएंगे । नदी अपने को रिचार्ज करने के लिए जो पानी अपने कच्चे किनारों से बरसात में लेती वह व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी । साफ पानी तो तो कम मिलेगा सीवेज का पानी ज्यादा मिलेगा । इस योजना से शहर का कुछ सौंदर्य भले बढ़ जाए ,कुछ होटल और क्रूज वालों को मुनाफा भले हो जाए पर पर्यावरण को जो नुकसान होगा उसकी भरपाई सौ साल में भी संभव नहीं होगी । और जो सरकार इस तरह की योजना पर काम कर रही है उन्हें इनके राजनैतिक नुकसान का आकलन जातीय समीकरण से ऊपर उठकर कर लेना चाहिए । इससे पानी का बड़ा संकट भी पैदा होगा । अब लोग पानी के संकट को गंभीरता से लेते है और उसकी वजह भी जानना चाहते है । जिस साबरमती रिवर फ्रंट से लोग प्रेरणा ले रहे है उन्हें यह जानना चाहिए कि इस योजना के चलते साबरमती में बार बार नर्मदा का उधार का पानी डाला जाता है तब वह बची हुई है वर्ना वह भी कई महीने नदी की जगह नाला नजर आएगी । और इसकी कितनी कीमत साबरमती ने चुकाई है वह भी जान ले । शहर के बीच साबरमती की औसत चौड़ाई 1253 फुट थी जो रिवर फ्रंट योजना के बाद 902 फुट बची । यह जो कटौती हुई है उसी पर रिवर फ्रंट बना और इसका एक हिस्सा निजी क्षेत्र के हवाले भी हुआ । इस तरह नदी का एक हिस्सा किस तरह विकास की भेंट चढ़ गया यह सोचने वाला है । अब गोमती हो हिंडन हो या फिर यमुना हो जिस भी नदी पर रिवर फ्रंट बनेगा वह नदी को छोटा कर ही बनेगा । नदी और नहर में जो फर्क होता है उसे तो समझना चाहिए । नदी पानी देती है और खुद ही पानी लेती भी है । कहीं भूजल से अपने को रिचार्ज करती है तो कहीं बरसात के पानी से । जबकि नहर अपने को स्वतः रिचार्ज नहीं कर सकती । दूसरे हर नदी की प्रकृति अलग होती है । गोमती का मुकाबला चम्बल से नहीं हो सकता और न ही टेम्स और हडसन से । टेम्स और हडसन को किस तरह पुनर्जीवित किया गया है यह लोग नहीं जानते । फिर अगर शहर से बहने वाली नदी पर रिवर फ्रंट प्राकृतिक रूप से भी बनाया जा सकता है । चीन के शंघाई में ह्वांगपू रिवर फ्रंट /पार्क इसका नया उदाहरण है जहां नदी के किनारे बिना सरिया सीमेंट की दीवार बनाए प्राकृतिक ढंग से रिवर फ्रंट बनाया गया ।ऐसी व्यवस्था की गई जिससे नदी का पानी साफ़ रहे और उसके पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचे । अपने देश में ज्यदातर नदियां जो शहर से गुजरती है वे बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है ।अब उनके दोनों किनारे सड़क माल और बाजार बनाकर हम उसे पूरी तरह ख़त्म कर देंगे ।साभार -दैनिक हिंदुस्तान फोटो -शंघाई ह्यूटन पार्क का दो दृश्य .ऐसा भी रिवर फ्रंट हो सकता है