Monday, February 9, 2015

यह मोदी के खिलाफ ' जनादेश ' है

यह मोदी के खिलाफ ' जनादेश ' है अंबरीश कुमार नई दिल्ली ।दिल्ली में वही हुआ जिसकी उम्मीद थी ।सड़क के आदमी ने सत्ता के शीर्ष पर बैठे मोदी को जमीन दिखा दिया है ।दिल्ली में जब आप के नेताओं ने झंडा लहराते हुए इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ कहा -दिल्ली जीत गए है हम तो तालियों की गडगडाहट सुनने वाली थी ।आप के नेताओं ने इस जनादेश का श्रेय अपने निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दिया है जिस कार्यकर्त्ता को कांग्रेस और भाजपा ने किनारे लगा दिया था । यह भाजपा के शीर्ष नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति के खिलाफ जनादेश है ।यह अमित शाह की चौकड़ी वाली राजनीति के खिलाफ जनमत संग्रह है ।मोदी ने जिस पार्टी को हाशिए पर पहुंचाया उसके कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में उन्हें राजनीति का पाठ भी पढ़ा दिया ।इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ आम आदमी से भी मोदी और शाह लड़ रहे थे ।पर भाजपा नहीं लड़ रही थी ।संघ भी किनारे खड़ा था ।यह चुनाव मोदी और शाह कारपोरेट घरानों के साथ साम दाम दंड भेद सभी हथकंडो से लड़ा था । मोदी एक मिथक बन रहे थे और अहंकार में दूब चुके थे ।दिल्ली चुनाव के प्रचार में उनका यह अहंकार बार बार दिखा ।वे कहते थे -हमारी मास्टरी सरकार चलने की है हमें वह काम दीजिए , उनकी मास्टरी धरना देने की है उन्हें वह काम दीजिए ।पर दिल्ली ने मोदी को दिल्ली नहीं दी ।वे बुरी तरह हारे है , अपनी राजनीति से ।पहले के माहौल पर नजर डाले । कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा था ।इस गुस्से को अन्ना हजारे ने आंदोलन में बदल दिया था ।राजनैतिक प्रयोग हुआ और केजरीवाल की दिल्ली में सरकार बनी ।इसके बाद समूचे देश में माहौल बना और आम आदमी पार्टी से देश भर के लोग अपेक्षा करने लगे ।पर केजरीवाल ने जिस तरीके से अचानक दिल्ली की सत्ता छोड़ी और वाराणसी चुनाव में खुद उतरे उसने देश भर के युवा आक्रोश को मोदी की तरफ एक झटके में मोड़ दिया ।तब मोदी कांग्रेस के खिलाफ एकछत्र नेता के रूप में उभर रहे थे ।ऐसे में केजरीवाल का उन्हें सीधी चुनौती देने एक बड़े वर्ग को खला और देशभर में जो माहौल बना था वह भाजपा के पक्ष में चला गया ।पर उसके मूल में जो आम आदमी था उसे केजरीवाल और उनकी युवा टीम ने फिर जगा दिया है ।आम आदमी के मुद्दों को लेकर ।भाजपा ,सही बात यह है कि मोदी और शाह ने इस चुनाव में केजरीवाल के खिलाफ जो जो हथकंडे अपनाए वे सब न सिर्फ भोथरे साबित हुए बल्कि उसने आम आदमी के गुस्से को भी भड़काया ।इस चुनाव में जाति धर्म से ऊपर उठकर वोट पड़ा भले डेरा सच्चा सौदा आया हो या मौलाना बुखारी ।दरअसल दिल्ली का यह पूरा चुनाव तो प्रतीक रूप में देश लड़ रहा था ।यह लड़ाई गरीब बनाम अमीर भी थी ।यह लड़ाई अहंकार और सत्ता के सारे हथकंडो के खिलाफ थी ।ध्यान से देखे भाजपा छोड़ सभी राजनैतिक दल अप्रत्यक्ष रूप से आम आदमी पार्टी के पीछे खड़े थे ।और सबसे बड़ी जीत तो यह उन नौजवान कार्यकर्ताओं की है जिन्होंने अपनी जान लगा थी इस चुनाव में ।आज जब ज्यादातर राजनैतिक दल एनजीओ के सहारे होते जा रहे है ऐसे समय में एनजीओ से निकले लोगों ने अगर तीस हजार प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की फौज दिल्ली में कड़ी कर दी तो इसे एक बड़ा आन्दोलन मानना चाहिए ।और अभी यह आंदोलन और आगे बढ़ने जा रहा है ।चौबीस फरवरी के बाद किसानो की जमीन के सवाल पर अन्ना हजारे फिर दिल्ली आ रहे है ।आर पार की लड़ाई के संकल्प के साथ ।मोदी के लिए आत्ममंथन का समय अब आ गया है ।जनादेश

Saturday, February 7, 2015

तो टूट गया मोदी का तिलिस्म ?

तो टूट गया मोदी का तिलिस्म ? यह चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद पहला वह चुनाव है जिसने मोदी का राजनैतिक तिलिस्म तोड़ दिया है ।अहंकार भी तोड़ दिया है । नसीब भी गया ।पहली बार कोई प्रधानमंत्री बड़ी म्युनिस्पैलिटी के चुनाव में मोहल्ला मोहल्ला घूमा था ।जिसकी जरुरत नहीं थी ,फिर भी कही अश्वमेघ का घोडा मोहल्ले का नौजवान न रोक ले यह डर जरुर था ।साथ ही अपने पर कुछ ज्यादा ही विश्वास भी तो अन्य नेताओं पर अविश्वास । हारी हुई बाजी को जीत में बदल देने का विश्वास ।पर यह भूल गए कि जनता नौ महीने के राजकाज पर अपनी राय भी देने वाली है ।जो पेट्रोल और डीजल के अंतरराष्ट्रीय दाम में हुई गिरावट से देश की महंगाई को नहीं देखने वाली थी ।नून तेल लकड़ी से महंगाई देखी जाती है ,आटा दाल चावल और आलू प्याज से महंगाई नापी जाती है । फिर तुर्रा यह कि ' आपकी टेंट में तो अब पैसा बच रहा होगा , जैसे जुमले भी घाव पर नमक जैसे ही लगते है ।इस सबके बाद एक ठीक ठाक पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र को ताक पर रखकर जिस तरह किरण बेदी को मोदी और शाह ने पार्टी की दिल्ली इकाई पर थोपा उसने रही सही कसर भी पूरी कर दी ।मोदी और शाह तो आम आदमी पार्टी ही नही भाजपा की दिल्ली इकाई से भी लड़ रहे थे ।पैसे के बूते पर ,सत्ता के बूते पर और कारपोरेट घरानों और उनके चैनलों के बूते पर ।वे भूल गए हर बार विज्ञापन से जीत नही मिल पाती । भारतीय जनता पार्टी के संगठन के हिसाब से भी यह चुनाव बहुत निर्णायक हो गया है ।पार्टी में मोदी-शाह की कार्यशैली को लेकर दिल्ली का यह चुनाव अभी काफी उथल पुथल मचाने वाला है ।किरण बेदी से लेकर शाजिया इल्मी जैसे उधार के दगे हुए कारतूसों से जंग नही लड़ी जाती यह भी दस को साफ़ हो जाएगा ।इस चुनाव को मोदी और मीडिया ने जरुरत से ज्यादा तूल दिया और तरह तरह के हथकंडे भी अपनाए ।जो चुनाव दिल्ली भाजपा बनाम आप पार्टी था उसे मोदी ने अपने अहंकार में मोदी बनाम मफलर वाला बना दिया ।आम लोगों को यह मफलर वाला अपनी गली का ही नौजवान नजर आया ।जो अडानी से लेकर अंबानी तक को चुनौती देता है ,बिना किसी डर के ।उधर एक अड़ियल पुलिस वाली को मुकाबले में आगे कर मोदी शाह ने रही सही कसर पूरी कर दी ।कभी भी कोई युद्ध के दौरान सेनापति नही बदलता ।पर मोदी ने बीच युद्ध में पार्टी का सेनापति बदल दिया और किसी की भी नही सुनी ।और इसे मास्टर स्ट्रोक बताया गिया जो पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को रास नही आया था ।इसके बाद चुनावी शतरंज में साम दाम दंड भेद सारे हथकंडे अपना लिए गए ।पुलिस भी लगे गई तो बदमाश भी और साजिश वाले भी जुट गए । सारी लड़ाई ' एक दिए की और तूफ़ान , की लड़ाई में बदल गई ।इस सबके चलते झुग्गी झोपडी से लेकर हाशिए का समाज आज सड़क पर उतरा और फिर चुनावी आकलन ने माहौल बदल दिया है ।अब दस के बाद शुरू होगी दूसरी राजनैतिक लड़ाई ।अब आम आदमी पार्टी इस देश के मुख्यधारा की पार्टियों में पूरी ताकत के साथ शामिल हो गई है ।और इसका श्रेय श्री नरेंद्र मोदी को सौ फीसद दिया जाना चाहिए । जनादेश

Wednesday, February 4, 2015

यह चुनाव जिताने का नहीं ' हराने ' का है

यह चुनाव जिताने का नहीं ' हराने ' का है अंबरीश कुमार पिछले दस दिन में दिल्ली का चुनाव एकतरफा होता नजर आ रहा है ।इस चुनाव में केजरीवाल को जिताने से ज्यादा मोदी को हराने की ध्वनि सुनाई पड रही है ।अब ये तो नतीजे ही बताएंगे कि मोदी नसीब वाले है या इस चुनाव बाद ' बदनसीब ' बन जाएंगे। सर्वेक्षण तो केजरीवाल को अगला मुख्यमंत्री बना चुके है तो साथ ही मोदी की हार की भविष्यवाणी कर रहे है ,पर सर्वेक्षण पर हम लोगों का भरोसा कम ही होता है ।इसलिए दस तक का इन्तजार करना चाहिए ।पर आम लोगों का जो मूड समझ में आ रहा है और भाजपा के दिग्गज नेता जिस अंदाज में केजरीवाल के खिलाफ अभियान छेड़े हुए है उससे पार्टी की घबराहट सार्वजनिक होती जा रही है ।पार्टी की दिल्ली इकाई पहले से अलग थलग पड चुकी है और कार्यकर्त्ता भ्रमित और पस्त है । मोदी ने जिस तरह मोहल्लो मोहल्लो में भाषण दिया है उससे यह चुनाव फिर केजरीवाल बनाम मोदी बन गया है ।किरण बेदी अब हाशिए पर है और आलाकमान ने बोलती अलग बंद कर दी है ।योगेंद्र यादव ने सही कहा है कि अगर एक ढंग का लाइव इंटरव्यू किरण बेदी का प्रसारित हो जाए तो आप को पूर्ण बहुमत वैसे ही मिल जाएगा ।किसी प्रचार की जरुरत नही पड़ेगी ।वैसे भी आम आदमी पार्टी का प्रचार भाजपा ज्यादा कर रही है ,आप कम ।पर बहुत ध्यान से देखे दिल्ली में बहुत से राजनैतिक दल क्या कर रहे है । कांग्रेस हारी हुई लड़ाई लड़ रही है और भाजपा उसे ताकत देने में जुटी है ।कांग्रेस और गिरी तो भाजपा मुंह के बल गिरी नजर आएगी ।बाकी दल और उनके कार्यकर्त्ता भी एक साफ स्टैंड ले चुके है ।भाजपा को हारने का ,मोदी को हराने ।मुकाबले में आप है इसलिए जाहिर है वोट आप को ही जाएगा ।पर यह अन्य लोगों का यह वोट आप को जिताने से ज्यादा भाजपा को हराने का है ।आप को जिताने वाला वोट आप के तीस हजार कार्यकर्ताओं ने तैयार कर दिया है जिसमे नौजवान ज्यादा है ।झुग्गी झोपडी वाले ज्यादा है ,दलित और पिछड़े ज्यादा है जिन्हें आम आदमी पार्टी बहुत सी कमजोरियों के बाद अपनी नजर आती है । भाजपा ने नौ महीनों में जो किया उससे पार्टी अमीरों की पक्षधर नजर आने लगी है ,यह भाजपा के शीर्ष नेता भी समझ रहे है ।अडानी अंबानी और अन्य बड़े कारपोरेट घरानों का दस लाख का सूट पहनने वाले मोदी से क्या संबंध है यह सार्वजनिक हो चुका है ।गांव गरीब और आम आदमी मोदी के एजंडा से बाहर है ।वे तो कभी अंबानी के साथ दीखते है तो कभी अडानी के ।उन्हें फायदा पहुँचाने वाला भूमि अधिग्रहण अध्यादेश आ चुका है ।मजदूरों के खिलाफ रुख साफ़ हो चूका है । मोदी की राजनीति भी साफ़ हो चुकी है।और अहंकार भी ।देश ने पहला प्रधानमंत्री देखा जो गली मोहल्ले में एक सामान्य से नेता से मुकाबला कर रहा है और पसीने छूट रहे है ।दरअसल सिर्फ प्रचार प्रसार की राजनीति बहुत लंबी नहीं चलती और यही अप्रत्यक्ष मुद्दा भी है ।फिर जिस अंदाज में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को तरह तरह के मामले फंसाने और उलझाने का प्रयास किया गया उससे आम लोगों में नाराजगी भी बढ़ रही है ।काला धन लेकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस हो या भाजपा जब चुनावी चंदे के मसले पर उस पार्टी को घेरने का प्रयास करे जो सब कुछ वेब साईट पर डाले हो तो मामला और हास्यास्पद हो जाता है ।इसलिए ज्यादातर लोग वोट के हथियार का इस्तेमाल मोदी को सबक सिखाने के लिए कर सकते है ।इसलिए यह चुनाव जिताने से ज्यादा हराने वाला नजर आता है ।जनादेश