Monday, January 2, 2017

चार लोग भी नहीं मिले आज मुलायम को !

अंबरीश कुमार अठहत्तर साल के मुलायम सिंह यादव आज शाम जब दिल्ली में निर्वाचन आयोग के दफ्तर गए तो उनके साथ चार नेता भी नहीं थे .यह उस पार्टी के अध्यक्ष का हाल था जिसने देश के सबसे बड़े सूबे में तीन बार खुद मुख्यमंत्री रहे ,देश के रक्षा मंत्री रहे और प्रधानमंत्री बनतेबनते रह गए .यूपी में उनकी सरकार है पर साथ कौन लोग थे अमर सिंह .जयाप्रदा और शिवपाल .ये तीन नेता किस राजनैतिक संस्कृति के प्रतीक माने जाते हैं ,यह किसी को बताने की जरुरत नहीं है .यह देख बहुत ही खराब लगा. जो व्यक्ति अपनी राजनैतिक दबंगई के लिए मशहूर था वह कितना असहाय नजर आ रहा था . मुलायम सिंह यूपी में पिछड़ी जातियों की आक्रामक राजनीति के प्रतीक रहे .एक बार उन्होंने कहा था कि अगर इटावा के अहीरों को पता चल जाए कि मै प्रधानमंत्री बनने जा रहा हूं तो यह खबर सुनने के घंटे भर के भीतर वे उत्तेजित होकर किसी का भी सिर फोड़ सकते हैं .पर दुर्भाग्य देखिए उन्ही मुलायम को निर्वाचन आयोग यह बताने के लिए खुद जाना पड़ा कि वे ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं .इससे पहले उनकी पार्टी मुख्यालय भी छीन लिया गया और उन्हें ऐसा ' रहनुमा ' बना दिया गया जिसपर कर दल का पानी पीने वाले नरेश अग्रवाल भी हल्की टिपण्णी कर रहे थे .पर क्या खुद मुलायम सिंह इन हालात के लिए जिम्मेदार नहीं है .उन्होंने समाजवाद को अपने परिवार की राजनैतिक ढाल बना दिया .किसी भी खांटी समाजवादी को उन्होंने वह ताकत ही नहीं दी कि वह परिवार से अलग अपनी कोई जगह बना सके . मोहन सिंह ,बृजभूषण तिवारी से लेकर जनेश्वर मिश्र जैसे समाजवादी पर अमर सिंह ज्यादा भारी पड़ते थे .क्योंकि मुलायम सिंह ने ही अमर सिंह को समाजवाद के सिर पर बैठा रखा था .जुझारू समाजवादी राजबब्बर को किस तरह बेइज्जत कर पार्टी से बाहर किया गया ,यह कोई भूला नहीं है . खैर मामला यहीं तक नहीं रुका .उन्होंने राजनीति में अपराधियों को जमकर बढ़ावा दिया ..प्रदेश के हर माफिया डान का समाजवादी पार्टी में स्वागत होता था .हत्या और अपहरण के आरोपी अमरमणि त्रिपाठी को तो उन्होंने प्रदेश को बचाने वाला महापुरुष घोषित कर दिया था .कौन बाहुबली बचा था उस दौर में जो समाजवादी नहीं कहलाता था .जिस गाडी पर सपा का झंडा उस गाड़ी में में बैठा गुंडा , जैसा नारा उसी दौर का तो है .मुलायम सिंह ने दांव भी सभी को दिया .न चंद्रशेखर बचे न वीपी .और आगे बढाने को तो अपने जिले के कप्तान को भी वे कैबिनेट मंत्री बना सकते थे .पर दुर्भाग्य देखिये ये सब संकट की घड़ी में उनका साथ छोड़ गए .मुझे याद है लखनऊ से गोरखपुर फिर जौनपुर जा रहा था .हेलीकाप्टर में जोई सज्जन मुलायम के साथ बैठे थे उन्हें मै पहचानता नहीं था .उनसे मैंने कहा आप सामने की सीट पर आ जाएं मुझे बात करनी है .वे फ़ौरन मेरी सीट पर आ गए .बाद में मुलायम के सुरक्षा प्रभारी शिवकुमार ने कहा ,आप इन्हें नेताजी के साथ बैठने दे ये बंगाल के बड़े नेता है .बाद में पता चला कि ये किरणमय नंदा थे जिन्होंने बाद में उस सम्मलेन की अध्यक्षता की जिसमे मुलायम सिंह को ' रहनुमा ' बना दिया गया .किरणमय नंदा को क्या नहीं दिया मुलायम सिंह ने पर वे भी साथ छोड़ गए .वजह वे लोग रहे जिन्हें मुलायम सिंह यादव ने आगे बढाया .अमर सिंह ,शिवपाल और गायत्री से लेकर मुख़्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे बहुत से उदाहरण है .एक तरफ परिवार के लोग तो दूसरी तरफ तरह तरह के दागी .टकराव तब बढ़ा जब मुलायम सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी के दबाव में कुछ फैसले लिए .इसे अमर सिंह ,शिवपाल और गायत्री आदि ने शाह दी .अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से इसी दबाव में मुलायम सिंह ने हटाया और उसी के बाद पार्टी बंटने लगी और अब बंटी नहीं पूरी तरह एक तरफ चली गई है .यही वजह है आज चार कद्दावर नेता भी मुलायम को नहीं मिले .दुःख हुआ ' धरती पुत्र ' को धरती पर गिरते देख .यह तय है जिस चुनाव चिन्ह को वे बचाने गए थे वह अंततः जब्त ही होना है .

Sunday, January 1, 2017

चूहे के हाथ तो चिंदी है !

चू अंबरीश कुमार नोटबंदी के पचास दिन बीत गए .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पचास दिन ही तो मांगे थे .उसके बाद के तीन दिन भी बीत गए .अब नया साल भी शुरू हो गया है .पर बीते साल की नोटबंदी ने कई घरों में अंधेरा छाया हुआ है .बीते साल के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले .पर ऐसा कुछ नहीं बोले जिसकी देश के लोगों को उम्मीद थी .इससे पहले भी बोले थे तो चूहे की बात कही .वे अपने अंदाज में बोले ,' एक नेता कहते हैं कि मोदी ने खोदा पहाड़ और निकली चुहिया. मैं बता दूं कि मैं चुहिया ही चाहता था. क्योंकि वो ही सभी कुतर-कुतर के खा जाती है.' प्रधानमंत्री ने ही कहा कि वे सिर्फ चुहिया ही निकालना चाहते थे .इससे ज्यादा कुछ नहीं .शेर का पिंजड़ा लगाकर उन्होंने जिस चुहिया को पकड़ा उसके हाथ तो सिर्फ चिंदी लगी है .क्या आपने सुना किसी बड़े कारपोरेट घराने का कोई बड़ा काला धन पकड़ा गया .क्या कोई बड़ा नेता काला धन के साथ पकड़ा गया ,क्या कोई बड़ा आतंकवादी काला धन के साथ पकड़ा गया .ये तो काला धन के जंगल के शेर चीते है .पर मोदी ने चुहिया पकड़ी है .क्या देश इसी ' चुहिया ' को पकड़ना चाहता था .क्या इसी चुहिया को पकड़ने के लिए करीब सवा सौ लोग घोषित रूप से कतार में शहीद हो गए .अघोषित यानी नकदी के आभाव में गंभीर रूप से बीमार लोग जो मर गए वे अलग हैं .जिन घरों में शादियां टूट गई वे परिवार अलग है .छोटे मझोले उद्योगों के जो मजदूर शहर से गांव लौट आए वे अलग है .जो किसान रबी की फसल समय पर कर्ज के बावजूद नहीं बो पाए वे अलग है .कर्ज भी तो पुरानी करेंसी में था .पर इस सब पर प्रधानमंत्री खामोश रहे .वे आगे बोले , 'यही देश, यही लोग, यही कानून, यही सरकार और यही फाइलें थीं. वो भी वक्त था कि जब सिर्फ जाने की चर्चा होती थी. ये भी एक वक्त है कि अब आने की चर्चा होती है. देश के लिए जज्बा, लोगों के प्रति समर्पण हो तो कुछ करने के लिए ईश्वर भी ताकत देता है.पर मोदी जी माल्या को क्यों भूल जाते हैं .मध्य प्रदेश के व्यापम को क्यों भूल जाते हैं .छतीसगढ़ के अनाज घोटाले को क्यों भूल जाते है .आपके राज में भी बहुत माल जा रहा है . वे कल बोले पर बहुत सपाट सा बजट भाषण जैसा .चेहरे पर थकावट का भाव .यह उम्मीद तो किसी को नहीं थी .सभी मान कर चल रहे थे कि प्रधानमंत्री बताएंगे कि देश को कितना काला धन मिला .कितने उद्योगपति पकडे गए ,कितने नेता धरे गए .पर उन्होंने इसपर कुछ नहीं कहा क्योंकि नोटबंदी से इनपर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पडा .पकडे गए तो चंद मिठाई वाले ,दवाई वाले या कुछ बैंक मैनेजर .क्या इन्ही के लिए देश को आर्थिक आपातकाल का सामना करना पड़ा .कृषि के जानकार देवेंद्र शर्मा ने बताया है कि इस नोटबंदी से किस तरह छोटे और मझोले किसान तबाह हो गए .तराई के इलाके में दलहन की फसल पर बुरा असर पड़ चुका है .पर इनके अर्थशास्त्री भी गजब के हैं जो बता रहें हैं कि इस नोटबंदी में किसानो ने झूम कर बुआई कर डाली है .बंपर फसल होगी .जब सबकुछ कागज पर ,भाषण में ही करना है तो कोई भी सब्जबाग दिखा सकते है .ये गंजों के शहर में कंघे का कारोबार कर सकते है .यूपी का चुनाव होने जा रहा है .वे कल भी बोलेंगे .पर देखिएगा अबकी कितना गजब का बोलेंगे .हाथ हिलाकर ,चेहरा बनाकर .वाराणसी याद है न किस तरह राहुल गांधी के कथित घूस के आरोप पर नाटकीय अंदाज में तालियां बटोर ली थी .पर याद रहे सारे नाटकीय अंदाज के बावजूद न ये दिल्ली बचा पाए न बिहार .अब यूपी की बारी है .यूपी की नजर भी उसी ' चूहे ' पर है जिसकी तलाश में इन्होने किसानो का खेत खलिहान खोद डाला .उद्योग धंधे की नीव खोद डाली .पर उस चूहे के हाथ तो चिंदी है .बड़े लोग तो निकल चुके हैं .