Sunday, March 23, 2014

पूर्वोत्तर की दो दर्जन सीटों पर घमासान

पूर्वोत्तर की दो दर्जन सीटों पर घमासान इंफाल से रीता तिवारी अपनी धनी सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संपदा से भरपूर देश के पूर्वोत्तर राज्यों को अक्सर गलत वजहों से ही सुर्खियां मिलती रही हैं. देश के बाकी हिस्सों के साथ पूर्वोत्तर में भी तमाम छोटे-बड़े राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल कमर कस कर चुनावी अखाड़े में कूद चुके हैं. लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में इनके बारे में कोई चर्चा ही नहीं है. शायद इसकी एक वजह यह है कि इन सात राज्यों को मिला कर लोकसभा की कुल 24 सीटें ही हैं और राष्ट्रीय राजनीति में इनकी कभी कोई निर्णायक भूमिका नहीं रही. लेकिन वजूद की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी अबकी इलाके से अधिक से अधिक सीटें जीत कर दिल्ली की गद्दी की दावेदारी को मजबूत करने के लिए मैदान में उतरी हैं. अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और मेघालय में नौ अप्रैल को मतदान होगा जबकि मणिपुर में दो चरणों में नौ और 17 अप्रैल को वोट पड़ेंगे. अरुणाचल में तो विधानसभा चुनाव की 60 सीटों के लिए भी वोट पड़ेंगे. असम में मतदान की प्रक्रिया तीन चरणों में 24 अप्रैल को पूरी होगी. पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले असम में लोकसभा की सबसे ज्यादा 14 सीटें हैं. यही वजह है कि दिल्ली के सत्ता के दोनों प्रमुख दावेदारों की निगाहें इसी पर टिकी हैं. लेकिन सिर मुंडाते ही ओले पड़ने की तर्ज पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत की अगुवाई वाली असम गण परिषद (अगप) के साथ आखिरी मौके पर चुनावी तालमेल नहीं हो पाने की वजह से भाजपा को शुरूआत में ही झटका लगा है. पिछले चुनाव में दोनों के बीच तालमेल था. भाजपा ने तब असम से पहली बार सबसे ज्यादा चार सीटें जीती थीं. भाजपा से नाता टूटने के बाद अगप ने तेरह सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं. उधर, सत्तारुढ़ कांग्रेस का बोड़ो पीपुल्स फ्रंट के साथ तालमेल जस का तस है. कांग्रेस नेता और उसके स्टार प्रचारक राहुल गांधी ने पिछले सप्ताह पूर्वोत्तर के चार राज्यों में चुनाव प्रचार किया. इस कड़ी में सबसे पहले उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में एक रैली को संबोधित किया. अपने खानदान का जिक्र करते हुए राहुल ने कहा कि वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अरुणाचल को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया था और उनके पिता राजीव गांधी ने इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया. राहुल ने अरुणाचल के महिलाओं और युवकों को देश की मुख्यधारा में शामिल करने का वादा किया और राज्य के विकास की दिशा में केंद्र सरकार के सहयोग का ब्योरा दिया राज्य की प्राकृतिक सुंदरता और खनिजों की उपलब्धता का जिक्र करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि ने कहा कि इस राज्य में पूरे देश को पनबिजली की सप्लाई करने की क्षमता है. ध्यान रहे कि अरुणाचल प्रदेश में बनने वाले दर्जनों बड़े बांध और उनसे होने वाला विस्थापन अबकी चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा है. असम की कम से चार सीटों पर अल्पसंख्यक वोट निर्णायक हैं. बाकी सीटों पर भी अपने अलग-अलग जातीय समीकरण हैं. पिछले पांच वर्षों के दौरान असम जातीय हिंसा और अलग राज्य की मांग में होने वाले हिंसक आंदलनों से जूझता रहा है. विपक्ष ने इसे ही अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है. लेकिन कांग्रेस यहां कई गुटों में बंटी हुई है और उसके नेता अक्सर सरेआम एक-दूसरे के खिलाफ बयान देते रहते हैं. राज्य में कांग्रेस की जीत की राह में यही सबसे बड़ी बाधा है. अल्पसंख्यकों की रहनुमा होने का दावा करने वाले आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआयूडीएफ) अल्पसंख्यकों वोटों में सेंध लगाने के लिए मैदान में है. भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी भी असम के सिलचर में अपनी रैली के दौरान हिंदी कार्ड खेल चुके हैं. सिलचर इलाका बांग्लादेश से सटा है और यहां बांग्लादेशी शरणार्थियों की समस्या काफी गंभीर है. असम में उस मुद्दे पर काफी हिंसक आंदोलन हो चुका है और अब भी यह समस्या जस की तस है. इलाके में अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और मेघायल तो काफी हद तक शांत हैं. लेकिन बाकी राज्यों में उग्रवाद की समस्या सिर उठाए खड़ी है. उग्रवाद का आलम यह है कि मणिपुर की दो सीटों के लिए दो चरणों में वोट पड़ेंगे. इन राज्यों में लगभग हर चुनाव में उग्रवादी भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं-वह चाहे आतंकवादी गतिविधियों के तौर पर हो या फिर राष्ट्रधारा में शामिल होने की ललक लिए चुनाव मैदान में कूदने के. इस बार भी नजारा अलग नहीं है. खासकर असम में उग्रवादी संगठन उल्फा के कई पूर्व नेता मैदान में हैं. असम में कांग्रेस ने पिछली बार आठ सीटें जीती थीं. केंद्र की एनडीए और यूपीए सरकार के कामकाज के तुलनात्मक अध्ययन पर एक श्वेतपत्र जारी करने वाले मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का दावा है कि अबकी यहां पार्टी की सीटें बढ़ेंगी. वे कहते हैं कि चुनावी सर्वेक्षणों का मतदान से कोई सीधा वास्ता नहीं होता. पड़ोसी पश्चिम बंगाल से प्रभावित होकर यहां भी भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने कई सितारों को टिकट दिए हैं. इनमें बीजू फूकन और जीतू सोनोवाल शामिल हैं. अब रहा सवाल मुद्दों का, तो तमाम राज्यों में कुछ स्थानीय मुद्दे रहे हैं. उके अलावा तमाम राज्य दशकों से उग्रवाद की चपेट में हैं. ऐसे में आम जनजीवन तो प्रभावित हुआ ही है, यह इलाका देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले विकास की होड़ में काफी पीछे छूट गया है. ऐसे में पहले की कई चुनावों की तरह इस बार भी दो प्रमुख मुद्दे हैं---सामान्य स्थिति की बहाली और विकास. मणिपुर की एक छात्रा टी. सोनम सिंह कहती है, ‘हम उग्रवाद से आजिज आ चुके हैं. इसलिए अबकी विकास के लिए अपना सांसद चुनेंगे.’ असम की राजधानी गुवाहाटी में एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर वीरेन महंत कहते हैं, ‘उग्रवाद और विकास ही दशकों से चुनावी मुद्दे रहे हैं. हर पर्टी वादे तो लंबे-चौड़े करती है. लेकिन बाद में उनको भूल जाती है.’ तो क्या अबकी इन लोगों की उम्मीदें पूरी होगी ? लाख टके के इस सवाल का जवाब तो चुनाव के बाद ही मिलेगा. फिलहाल तो तमाम दल अपनी कमीज को दूसरों से सफेद बताते हुए मैदान में उतर गए हैं.जनादेश इलेक्ट लाइन

कारपोरेट खेल था ' महादेव ' की जगह ' मोदी '

कारपोरेट खेल था ' महादेव ' की जगह ' मोदी ' अंबरीश कुमार वाराणसी । भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार महादेव की नगरी में हर हर महादेव के उद्घोष से मुकाबला करने चले थे पर पहले ही धराशाई हो गए ।कारपोरेट प्रचार के तौर तरीकों में कपडे से लेकर हाव भाव और नारे तक विज्ञापन एजंसियां गढ़ती है ,यह सबको पता है ।हर हर मोदी के नारे पर संघ और भाजपा अब भले सफाई दे कि यह भक्तों का गढ़ा है , यह कोई कम से कम यहाँ पर मानने को तैयार नहीं है ।गुजरात में जो दो बड़े प्रमुख तीर्थ स्थान है उनमे एक द्वारिका है जहाँ का आम संबोधन है ' जय द्वारिकाधीश ' और ' जय सोमनाथ ' से सभी परिचित है ।आजतक मोदी के इस राज्य में यह संबोधन और नारा नहीं बदला तो बनारस में मोदी को महादेव के मुकाबले कैसे खड़ा कर दिया गया ।जानकार इसे कारपोरेट घराने की एक विज्ञापन एजंसी का खेल बता रहे है ।हर हर मोदी घर घर घर मोदी भी इसी तर्ज पर गढ़ा गया । इसपर साधू संत नाराज हुए तो संघ परिवार सक्रिय हुआ । 'हर हर महादेव' की तर्ज पर नए नारे 'हर हर मोदी' पर द्वारिका और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने खासा ऐतराज जताया है। उन्होंने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत से बात की । उन्होंने इसे भगवान् का अपमान बताया ।उन्होंने कहा कि यह नारा हर-हर महादेव और हर-हर गंगे के लिए लगाया जाता है। किसी व्यक्ति विशेष से नारा जोड़ने पर लोगों की धार्मिक आस्था आहत हो रही है। वाराणसी एक प्राचीन धार्मिक नगरी है और लोगों की आस्था को भुनाने के लिए विज्ञापन एजंसियां कुछ भी कर सकती है यह ' हर हर मोदी ' के नारे से साफ़ है । बनारस में एक नहीं कई मदिर और मठ के महंत इस नारे से आहत है । उनका यह भी कहना है कि भाजपा और संघ इसे लेकर गुमराह कर रहे है ।कोई भी आस्तिक हिंदू महादेव कि जगह किसी भी नेता को नहीं बैठा सकता और ना ही ऐसा नारा गढ़ सकता है । यह सब मोदी के प्रबंधको का प्रपंच है । जब से मोदी के प्रबंधक बनारस में जमे है तभी से यह सब हो रहा है ।पहली बार यह नारा मोदी की जनसभा में लगवाया गया था । गौरतलब है कि मंदिर आन्दोलन के दौर में भी जब आडवाणी शिखर पर थे तब भी उन्हें श्रीराम के बराबर किसी ने नहीं बैठाया ।अयोध्या में कभी भाजपा के किसी नेता के लिए इस तरह का कोई नारा नही गढ़ा गया ।एक नारा तब चला था ' अयोध्या तो झांकी है - मथुरा काशी बाकी है ।' अयोध्या को तो भाजपा ने लावारिस छोड़ दिया है और अब काशी तरफ कूंच कर दिया गया है ।शुरुआत हर हर महादेव की जगह हर हर मोदी से कर उनके प्रबंधकों ने आगाज कर दिया था ।इसी से आगे की राजनीति का भी संकेत मिल रहा था ।वैसे भी अयोध्या से जो खबरे आ रही है उसके मुताबिक भाजपा वहां मोदी लहर में पिछड़ गई है और फिलहाल मुकाबले से भी बाहर नजर आ रही है ।पत्रकार त्रियुग नारायण तिवारी के मुताबिक भाजपा तीसर नंबर पर थी और इसमें बदलाव की कोई गुंजाइश फिलहाल दिख नहीं रही है ।अब काशी की बात हो जाए।यहाँ बाहर से माहौल भाजपा के पक्ष में दिख रहा है क्योकि अभी किसी और दल ने ढंग से मोर्चा भी नहीं खोला है ।दुसरे प्रचार और दुष्प्रचार दोनों में संघ माहिर है ।इसी प्रचार के चलते प्रबंधकों ने महादेव का नारा चुरा लिया गया था जो अब भारी पड़ रहा है ।अब भगवान् से मुक्त हुए तो ठोस जमीनी राजनीति पर मोदी को मुकाबला करना है जो बहुत आसान नहीं है ।जोशी काफी कुछ राजनैतिक उधार विरासत में छोड़ गए है ।दूसरे पंद्रह दिन में ही मोदी ने भाजपा को जिस हालत में पहुंचा दिया है उससे जो शुरुआती लहर बनी थी वह ढहती जा रही है ।पूर्वांचल की कई सीटों पर फिर जाति का समीकरण देखा जा रहा है ।ऐसे में मोदी खुद बनारस से ठीक से जीत जाएं तो वही बड़ी बात होगी ।आसपास की सीटों पर कोई ज्यादा असर पड़ता नजर नहीं आ रहा है ।www.janadesh.in (ambrish2000kumar@gmail.com)

Tuesday, March 18, 2014

मुसलमानो को साधने की कोशिश है मुलायम का आजमगढ़ जाना

मुसलमानो को साधने की कोशिश है मुलायम का आजमगढ़ जाना उत्कर्ष सिन्हा लखनऊ। इटावा दिल है तो आजमगढ़ धड़कन के नारे के साथ समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी । मुलायम सिंह मैनपुरी के अलावा पूर्वांचल की आजमगढ़ सीट से भी किस्मत आजमाएंगे। सपा सुप्रीमो फिलहाल मैनपुरी सीट से सांसद हैं. वहीं, आजमगढ़ सीट पर बीजेपी का कब्जा है. रमाकांत यादव यहां से सांसद हैं। मुलायम के अगमगढ़ पहुचने से पूर्वांचल के इस इलाके का चुनावी दंगल और भी रुचिकर हो गया है। पूर्वांचल के इस इलाके में बनारस से ले कर बलिया तक के आठ लोकसभा सीटों में अभी सपा की सबसे ज्यादा सीटें हैं. समाजवादी पार्टी की इस इलाके में चंदौली,गाज़ीपुर,मछलीशहर और बलिया के रूप में आठ सीटे हैं तो बहुजन समाज पार्टी का भदोही, जौनपुर और घोसी सीट पर कब्ज़ा है। भाजपा के पास महज बनारस की एक सीट है जहाँ से अभी मुरली मनोहर जोशी संसद है और इस चुनावो में नरेंद्र मोदी के उम्मेदवारी के जरिये भाजपा पूर्वांचल को प्रभावित करने की रणनीति बना रही है। मोदी के मैदान में उतरने से पार्टी को यह उम्मीद है की मोदी की कथित लहर के जरिये वह पूर्वांचल के साथ साथ बिहार की कई सीटें प्रभावित कर सकती है। राजनीती के माहिर खिलाडी मुलायम सिंह ने आजमगढ़ के बहाने कई निशाने साधे हैं। मुलायम के यहाँ आने से एक तो मोदी का प्रभाव दूर तक जाने की सम्भावना ख़त्म हो जाती है और मुलायम की इस उम्मेदवारी से इस इलाके में समजवादी पार्टी की सीटे सुरक्षित होने की उम्मीद बढ़ जायेगी। साथ ही साथ मुलायम सिंह आजमगढ़ के घाव को भी सहलायेंगे। बीते दिनों आजमगढ़ के संजरपुर गाव का नाम मुस्लिम आतंकियो से जोड़ने की एक मुहीम सी चली थी और बाटला हॉउस कांड ने भी इस इलाके को सुर्ख़ियों में रखा था। इसी का नतीजा था की उलेमा काउन्सिल नाम की नयी पार्टी के उम्मीदवार ने पिछले चुनावो में लगभग 90 हजार वोट पाये थे। राजनितिक समीक्षक प्रोफ़ेसर रमेश दिक्सित कहते हैं कि आजमगढ़ सीट पर यादव और मुस्लिम वोटर बड़ी तादात में है इसलिए मुलायम के पारम्परिक वोट समीकरण को बनाये रखने का सन्देश भी वे देना चाहते हैं । यह समाजवादी पार्टी का पहले से ही मजबूत इलाका रहा है और मुलायम सिंह के जाने से उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल भी ऊँचा होगा। मुजफ्फर नगर दंगो के बाद यह अटकले लगायी जा रही थी कि समाजवादी पार्टी से मुसलमान वोटर दूर हो रहा है। मुलायम आजमगढ़ के बहाने यह सन्देश भी रहे हैं कि वे मजलूम मुस्लिम युवको के पक्ष में है। और अगर यह सन्देश काम कर गया तो इस इलाके की कम से कम आठ सीटों पर सपा को फायदा हो सकता है। आजमगढ़ से मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव को चुनाव लड़ने की भी कई कवायदे हुयी मगर पार्टी ने पहले सूबे की सरकार के मंत्री बलराम यादव का नाम घोषित किया और फिर उसे बदल कर हवलदार यादव का नाम दे दिया। मगर यह उम्मेदवारी बहुत हलकी थी। आजमगढ़ से अखिलेश सरकार में अभी बलराम और दुर्गा यादव के रूप में दो मंत्री है। वही रमाकांत यादव का कद मुलायम के सामने बहुत बौना है। इसलिए मुलायम को तो यह सीट जीतने में अतिरिक्त मेहनत की तो जरूरत नहीं ही होगी साथ ही साथ मुस्लिमों को बड़ा सन्देश देने में भी आजमगढ़ के जरिये मुलायम कामयाब हो गए तो समाजवादी पार्टी के लिए सूबे की सीटें जीतना आसान हो जाएँगा। जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

लोकसभा चुनाव में जन आंदोलन के साथियों का समर्थन

लोकसभा चुनाव में जन आंदोलन के साथियों का समर्थन प्रिय साथी , आगामी लोकसभा चुनाव में जन आंदोलन से जुड़े बहुत से साथी चुनाव लड़ रहे है।इन साथियों को कैसे मदद की जाए इसे लेकर विभिन्न स्तर पर देश भर में जन आन्दोलन के साथी मंथन कर रहे है ।लखनऊ में इस सिलसिले में दो मार्च को हुई बैठक में किसान संघर्ष समिति ,जल बिरादरी और हरित स्वराज की बैठक में राजेंद्र सिंह ,डा सुनीलम ,विजयप्रताप ,अंबरीश कुमार और अन्य साथी शामिल हुए थे । जिसमे दो मुद्दों विस्तार से चर्चा हुई। पानी और किसानी के सवाल पर एक मार्च को जल बिरादरी और तीन मार्च को किसान एजंडा को होने वाली बैठक के बाद यह तय हुआ कि इस सिलसिले में साझा अभियान चलाया जाय। इसके साथ ही लोकसभा चुनाव में इन सवालों के अलावा जन आंदोलन के साथियों के लिए चुनाव प्रचार में मदद करने के वास्ते एक अभियान चलाया जाए। इस अभियान टीम में आप भी सक्रिय भूमिका निभाएंगे यह हमारा भरोसा है ।अब तक जिन साथियों से इस बारे में सहमति मिली है उनमे पीवी राजगोपाल ,शिव गोपाल मिश्र,डा सुनीलम ,राजेंद्र सिंह ,विजयप्रताप ,प्रफुल्ल सामंत राय ,चितरंजन सिंह ,प्रतिभा शिंदे ,चुक्की नंजु स्वामी ,माधुरी ,अनिल हेगड़े और अंबरीश कुमार शामिल है ।जबकि कई साथियों चर्चा हो रही है ।इस सूची में और किन साथियों का नाम जोड़ा जा सकता है यह सुझाव भी दें ।फिलहाल कुछ साथियों का चुनाव प्रचार कार्यक्रम मिला है। राजेंद्र सिंह मुंबई में मेधा पाटकर और मेरठ में मेजर हिमांशु के प्रचार अभियान में जा रहे है ।सोशलिस्ट फ्रंट के राष्ट्रीय सचिव विजय प्रताप और समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी २५ , २६ और २७ मार्च को योगेंद्र यादव के प्रचार अभियान में होंगे। इसके बाद किशनगंज में अलीमुद्दीन अंसारी के प्रचार में जाएंगे । डा सुनीलम मुंबई में मेधा पाटकर के प्रचार के दूसरे चरण में अठारह मार्च को मुंबई पहुंच चुके है जहां से वे २० को खंडवा ,२१ को बड़वानी ,२२ को इंदौर और फिर २३ को पंजाब के हुसैनीवाला में होने वाले कार्यक्रम में शरीक होंगे। इससे पहले सुनीलम मुंबई ,औरंगाबाद ,शोलापुर ,मांडा का दौरा कर चुके है। इसके अलावा वाराणसी में भी समाजवादी साथी जुटने जा रहे है जिनका कार्यक्रम तय होते ही जानकारी दी जाएगी। बारे में आपका सुझाव भी अपेक्षित है।इस बीच छतीसगढ़ से रजनीश अवस्थी ने एक अप्रैल से तीन अप्रैल के बीच बस्तर और बिलासपुर में आंदोलन के साथियों के लिए प्रचार अभियान में आने की अपील की है। उन्होंने मेधा पाटकर ,राजेंद्र सिंह ,डा सुनीलम और विजयप्रताप समेत अन्य साथियों से रायपुर बस्तर और बिलासपुर पहुँचने का अनुरोध किया है। बस्तर से सोनी सोरी चुनाव लड़ रही है। फिलहाल जन आंदोलनों के जो साथी चुनाव मैदान में है उनमे मेधा पाटकर ,संजीव साने, सुभाष लोमटे, सुभाष वारे ,ललित बाबर ,प्रोफ़ेसर आनद कुमार ,योगेन्द्र यादव ,आलोक अग्रवाल ,अनिल त्रिवेदी ,लिंगराज ,मेजर हिमांशु ,सोनी शोरी ,प्रतिभा शिंदे आदि का नाम सामने आ चूका है ।यह सूची अभी और बढ़ेगी । जन आन्दोलनों के दोस्तों का विचार है कि इन सभी उम्मीदवारों का समर्थन अभियान चला कर किया जाना चाहिए और देश के प्रमुख समाज सेवी इनको जिताने की अपील करें यह प्रयास किया जाना चाहिए ।आगे जिन भी साथियों का चुनाव कार्यक्रम तय हो जायेगा उसकी सूचना सभी को दी जाएगी। , लोकसभा चुनाव के लिए जन आन्दोलन की अभियान समिति से डा सुनीलम /अंबरीश कुमार

नरेंद्र मोदी को हरा कर दिखायेगे: डा.रामगोपाल

नरेंद्र मोदी को हरा कर दिखायेगे: डा.रामगोपाल दिनेश शाक्य भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए समाजवादी पार्टी पूरी तरह से सजग हो चुकी है इसी कारण समाजवादी पार्टी ने अपने मुखिया मुलायम सिंह यादव को पहली बार पूर्वाचंल की आजमगढ से उतारने का फैसला कर लिया इसके बावजूद मुलायम मैनपुरी से भी चुनाव लडेगे। सपा की यह सब कवायत नरेंद्र मोदी के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म करने की मंशा के तहत किया जा रहा है। समाजवादी पार्टी मे चाणक्य की भूमिका अदा कर रहे डा.रामगोपाल यादव नरेंद्र मोदी की रणनीति पर पूरी तरह से निगाह रखे हुए है। नरेंद्र मोदी को रोकने की कवायत किस ढंग से कर रहे रामगोपाल उनसे कई मुददो पर बात की जनादेश सबांददाता दिनेश शाक्य ने। पेश है डा.रामगोपाल यादव के बातचीत के खास अंश। 00 सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को मैनपुरी के साथ साथ पूर्वाचंल के आजमगढ से लडाने का फैसला लेने के पीछे आखिर क्या मंशा है ? 0 देखिये पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलो के कार्यकर्त्ता और नेता यह चाहते थे कि मुलायम सिंह यादव आजमगढ से भी चुनाव लडे और पार्टी के कार्यकर्त्ताओ की इच्छा का सम्मान करते हुए समाजवादी पार्टी ने आज यह निर्णय लिया है कि वो मैनपुरी के साथ साथ आजमगढ से भी चुनाव लडेगे। आजमगढ से चुनाव लडने से हम पूर्वाचंल की लगभग सारी सीटे जीतेगे चाहे वो आजमगढ हो,चाहे लालगंज हो,चाहे गाजीपुर हो,चाहे बलिया हो,सलेमपुर हो,देवरिया हो,बस्ती हो,सिदार्थनगर हो,चाहे जौनपुर हो,चाहे महाराजगंज हो,इन सारी सीटो पर समाजवादी पार्टी चुनाव जीतेगी और मोदी को बनारस मे हरा देगे जो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे है आज देख लीजिऐगा मुलायम सिंह के आजमगढ से उम्मीदवार घोषित होते ही मोदी बनारस के साथ साथ गुजरात से भी चुनाव लडने के लिए तैयार हो गये है ऐसी खबरे मिलने लगी है मोदी दो जगह से चुनाव लडने का कदम इसलिए उठा रहे है कि कही ऐसा ना हो कि बनारस से चुनाव हार जाये। दो दिन मे यह साफ हो जायेगा कि मोदी कहा कहा से चुनाव लडेगे क्यो कि जो दांव यह लोग चल रहे थे कि मोदी को बनारस से लडाने से लहर पूर्वाचंल और बिहार तक चली जायेगी हकीकत मे मुलायम सिंह यादव के आजमगढ से लडने से लहर पूरे पूर्वाचंल मे जरूर चली जायेगी। 00 आजमगढ से मुलायम सिंह यादव के लडने से समाजवादी पार्टी को क्या फायदा मिलेगा ? 0 समाजवादी पार्टी पूरे पूर्वाचंल मे स्वीप करेगी भारतीय जनता पार्टी को एक भी सीट नही मिलेगी ढूढने से भी। 00 रैलियो और विकास के मामले मे समाजवादी पार्टी पहले ही मोदी को पछाड चुकी है ऐसे मे उनको डर इस बात का लग रहा है कि वो बनारस से हार जायेगे इसलिए गुजरात से भी लडने का मन बना रहे है ? 0 देखिये,पहले मुरली मनोहर जोशी का कद बहुत बडा है वो केवल बनारस मे 17000 वोटो से ही जीते थे तो कोई आसन सीट तो है नही कि जाये और चुनाव जीत करके चले आये कोई वेस वोट भी नही है इसलिए उन्हे सुरिक्षत सीट तो ढूढनी ही होगी और हम लोग कोशिश यह करेगे कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश से पराजित होकर जाये कि उत्तर प्रदेश मे जो हमला करने की इनकी कोशिश है आधी तो उनकी उसी दिन फेल हो गई कि जब उनको कही उम्मीदवार नही मिले आप देख रहे आसपास जो भाजपा का उम्मीदवार हो कोई बीएसपी आया है तो कोई और किसी दल से,कोई किसी पार्टी से नही आया है। सब ऐसे ही है करीब करीब 50 प्रत्याशी। जो प्रत्याशी घोषित किये गये है उनके क्षेत्रो मे विरोध इस कदर शुरू हो गया है कि काले झंडे दिखाये जाने लगे है। पार्टी दफतरो मे मारपीट शुरू हो गई है । देवरिया से गाजियाबाद तक बस्ती से लेकर गाजियाबाद तक हंगामा ही मचा हुआ भाजपा के प्रत्याशी घोषित करने मे,यह चल रहा है मीडिया की ही बदौलत भाजपा चुनाव प्रचार मे दिख रही है वर्ना कही भी नजर नही आती भाजपा। 00भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ बनारस से वैसे तो समाजवादी पार्टी ने पहले ही अपना प्रत्याशी उतार रखा है फिर भी किसी साझा उम्मीदवार के उतारने की मंशा है ऐसी खबरे कही जा रही है ? 0 नही,समाजवादी पार्टी के वहा से उम्मीदवार है कैलाश चौरसिया,जो उत्तर प्रदेश सरकार मे राज्यमंत्री है और समाजवादी पार्टी स्वंय अपने बल पर अपने उम्मीदवार के जरिये ही नरेंद्र मोदी को हराने की स्थिति मे है इसलिए किसी साझा उम्मीदवार को उतारने का सवाल ही पैदा नही होता है अगर कोई दल हमारे उम्मीदवार का समर्थन करता है तो समाजवादी पार्टी इस पर विचार करेगी।