Monday, February 27, 2012
जन संगठनों ने पूछा -क्या है संसदीय लोकतंत्र का विकल्प बताएं केजरीवाल
गाँधीवादी संगठनों ने किया किनारा तो किसान संगठन विरोध में उतरे
अंबरीश कुमार
लखनऊ फरवरी । उतर प्रदेश के विधान सभा चुनाव ख़त्म होने से ठीक पांच दिन पहले टीम अन्ना सुर्ख़ियों में दिखी पर जिस बयान को लेकर चर्चा में आई उसका सबसे तीखा विरोध जन संगठनों खासकर महिलाओं ,नौजवानों और किसानों के बीच काम कर रहे कार्यकर्ताओं के साथ बुद्धिजीवियों ने किया है ।केजरीवाल ने संसद को अपराधियों का अड्डा बताया था । इन संगठनों ने पूछा है कि टीम अन्ना के पास संसदीय लोकतंत्र का विकल्प क्या है । दूसरी तरफ जयप्रकाश आंदोलन और गांधीवादी विचारकों ने इस मुद्दे पर टीम अन्ना के एक सदस्य अरविंद केजरीवाल की राय से अपने को पूरी तरह अलग करते हुए साफ़ कर दिया है कि देश में यही संसद रहेगी जरुरत चुनाव सुधारों के जरिए इनका चरित्र बदलने की है । गौरतलब है अगस्त आंदोलन के बाद लगातार कांग्रेस को धमकाने वाले अन्ना हजारे कई घोषणाओं के बाद भी उत्तर प्रदेश नहीं आए । दूसरी तरफ चुनाव सुधारों का राग अलापने वाली टीम अन्ना ने माफिया और बाहुबलियों के किसी भी विधान सभा क्षेत्र में न तो कोई मोर्चा खोला और न घुसी । उदाहरण है मुन्ना बजरंगी से ले कर बाहुबली धनंजय सिंह और मुख़्तार अंसारी का इलाका । मुस्लिम महिलाओं में काम करने वाली संस्था तहरीके निसवां की अध्यक्ष ताहिरा हसन ने कहा -जमीन पर लड़ने और मीडिया के जरिए आंदोलन चलने में बहुत फर्क होता है । यहाँ रोज धमकी ,हमला और मुकदमा झेलना पड़ता है । यह तो जमीन पर आते नहीं और संसदीय लोकतंत्र के खिलाफ जिस तरह आग उगल रहे है वह जाँच का विषय है । विश्व बैंक और फोर्ड फ़ाउंडडेशन किस तरह कुछ एनजीओ के जरिए एशियाई देशों में मूल सवालों से हटाकर नए मुद्दों को उठा रहा है वह बहुत गंभीर बात है । केजरीवाल उन्ही ताकतों के हाथ में खेल रहे है । सर्व सेवा संघ के संयोजक और अन्ना आंदोलन के प्रमुख नेता राम धीरज ने कहा -संसद तो यही रहेगी इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता । चुनाव सुधार लागू कर इसका चरित्र बदला जाना चाहिए जैसे लोक उम्मीदवार खड़ा कर । इसके अलावा गांधी शब्दों की हिंसा के भी खिलाफ दे यह बात सभी को समझनी चाहिए । दूसरी तरफ राजनैतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर प्रमोद कुमार ने कहा ,टीम अन्ना शत प्रतिशत ईमानदार हो सकती है पर सौ फीसद नासमझ है यह इकी टिपण्णी से साफ हो गया । इन्हें पता नहीं यह कह क्या रहे है ।
साझी दुनिया संगठन की सचिव और लखनऊ विश्विद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर रूप रखा वर्मा ने कहा - अन्ना हजारे और उनकी टीम शरू से ही इस देश में एक अच्छी नियत के तानाशाह की वकालत कर रहे है । इन्हें यह ग़लतफ़हमी हो गई है कि सिर्फ ये ही भारत को सुधार सकते है । ठीक वैसे ही जैसे जर्मनी में हिटलर को यह ग़लतफ़हमी हो गई थी । ये कौन है और किसने इन्हें यह अधिकार दे दिया है जो यह संसदीय लोकतंत्र की जड़ खोद रहे है यह जाँच का भी विषय है । दूसरी तरफ किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -नौजवान से लेकर किसान तक की लड़ाई हम लोग लड़ रहे है । मुकदमा झेल रहे है कई किसान मारे गए तो कई जेल गए पर यह टीम अन्ना जिसने न कभी दो लाठी खाई और न चार दिन जेल में रहे ,ये है कौन यह तय करने वाले कि संसद कैसी होगी । ये लोग विदेश से मिलने वाले पैसे से एनजीओ चला रहे है और क्रांति करने की ग़लतफ़हमी पाले हुए है । सिर्फ इसलिए कि मीडिया का एक तबका इनका समर्थन करता है जिसने कभी किसी आंदोलन का समर्थन नहीं किया । नौजवानों और छात्रों के बीच तीन दशक से काम करने वाले इलाहबाद विश्विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा -समाज की विभिन्न ताकतों का प्रतिनिधित्व संसद में होता है उसका चरित्र बदलने के लिए रोजगार ,खेती ,उत्पादन आदि का सवाल उठाकर नौजवानों किसानो को लामबंद कर एक आंदोलन छेड़ना होगा । सिर्फ प्रलाप करने से संसद का चरित्र नहीं बदल जाएगा,दुर्भाग्य यह है कि टीम अन्ना देश के बुनियादी सवालों से पूरी तरह कटी हुई है ।
किसान संगठन से जुड़े बृजेश राय नेकहा - उत्तर प्रदेश में किसानो का आंदोलन लाठी गोली से दबाया गया । बहुत से लोग दमन का शिकार हुए पर कभी यह टीम अन्ना झाँकने नहीं आई । संसद में जो लोग जाते है वे गांवों से लेकर कसबे शहर तक वोट से चुने जाते है ।चुनाव तक तो यह टीम अन्ना कही नजर नहीं आई अब जब चुनाव निपटने के करीब आया तो इन्हें अपराधी याद आ गए बेहतर होता चुनाव में कुछ प्रयोग कर दिखाते । अब समय आ गया है कि इस सिविल सोसायटी के खिलाफ खड़ा हुआ जाए । किसान यूनियन अम्बावत के ऋषिपाल ने कहा - यह टीम अन्ना क्या चाहती है इसे साफ़ कर देना चाहिए । कौन सी व्यवस्था होगी जिससे अपराधी किस्म के लोग न चुने जाए यह तो बताना ही चाहिए ।फिर जब अभियान चलने का मौका था तो भाग खड़े हुए ,वरना बाहुबलियों के इलाके में आकर विरोध करना चाहिए था तब समर्थन भी मिलता ।राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -अन्ना के आंदोलन को उनकी टीम के कुछ लोगों के अहंकार ने ही ख़त्म कर दिया है और यह ध्यान रखे कोई आंदोलन जब ख़त्म होता है तो दोबारा नहीं उठ पाता ।
जनसत्ता
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