Tuesday, January 31, 2012

अब हाथी को न मारो ,बाकी किसी को मारों


अंबरीश कुमार
गोंडा ,फरवरी । अब हाथी को न मारो ,बाकी किसी को मारों । यह टिप्पणी पूर्वांचल में मशहूर मनिकापुर रियासत के राजा आनंद सिंह की महुआपाकर में आज हुई जनसभा में पिपरवाखान से एक कास्तकार शिव प्रसाद मौर्य की थी ।यहाँ मारने से उनका अर्थ बैलेट पर मोहर मारने से था भले चुनाव अब मशीन से होता है । ऎसी ही प्रतिक्रिया पास खड़े गोविंद प्रसाद की थी जो बोले -बारह सौ रुपया में यूरिया जो खरीदे है वह वोट देते समय भी याद रहेगा । गांव के लोगों की यह नाराजगी इस चुनाव की दिशा भी दिखा रही है । कल ही आंबेडकर नगर में आलापुर विधान सभा क्षेत्र में बसपा के उम्मीदवार त्रिभुवन दत पर हमला का उसका सर फोड़ दिया । इससे पहले कुशीनगर में बसपा के प्रदेश अध्यक्ष और काबीना मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के काफिले को भी ऐसी ही नाराजगी का सामना करना पड़ा था । आज गोंडा के परसपुर बाजार में श्रीपति सिंह ने कहा -अगर इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा बिना सुरक्षा के यहाँ आ जाए तो उनपर भी लोग हमला कर देंगे । भ्रष्टाचार और महंगाई दोनों मुद्दे गांव के लोगों पर असर डाल रहे है । खेत जोतने वाला भी आज भ्रष्टाचार -भ्रष्टाचार चिल्ला रहा है तो रिक्शा चलाने वाला भी । इसका भी असर पड़ेगा ।
समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार अखिलेश यादव के साथ पूर्वांचल के कुछ जिलों का दौरा करने से यह तो साफ हो गया कि जाति ,धर्म के साथ कुशासन ,भ्रष्टाचार और महंगाई भी लोगों के जेहन में है और इसका भी असर पड़ेगा । अखिलेश यादव ने आज अपनी विभिन्न सभाओ में कहा -अब हम सिर्फ सरकार बनाने नहीं बहुमत की सरकार बनाने के लिए वोट मांग रहे है । पूरे दौरे में सिर्फ एक विधान सभा क्षेत्र में लोगों की मौजूदगी कम थी बाकी सभी जन सभाओ में जमकर भीड़ उमड़ी । बाराबंकी जैसे मुस्लिम आबादी वाले इलाके में आज राहुल गांधी की जनसभा भी थी जो अखिलेश यादव की सभा के मुकाबले बहुत कमजोर नजर आई । बाराबंकी ,बस्ती और गोंडा जैसे जिलों में समाजवादी पार्टी आगे बढती नजर आ रही है ।
समाजवादी पार्टी पूर्वांचल में इस बार अच्छी बढ़त लेगी पर कई जगह टिकटों के गलत बंटवारे की जगह उसे नुकसान भी उठाना पड़ेगा । समाजवादी पार्टी को पूर्वांचल में कांग्रेस के वोट कटवा उम्मीदवारों से ज्यादा दिक्कत हो रही है । कांग्रेस ने यादव बहुल सीटों पर यादव और मुस्लिम बहुल सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार देकर सपा का खेल बिगड़ने का भी प्रयास किया है । परसपुर विधान सभा क्षेत्र में भी कांग्रेस ने यही किया है । समाजवादी पार्टी के सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह ने तरबगंज में जनसत्ता से कहा -पूर्वांचल में कई जगह हम बढ़ रहे है पर कुछ जगह टिकट के चलते नुकसान भी हो सकता है । इस बार के चुनाव में चुनाव आयोग की कड़ाई भी सभी दलों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है । हेलीकाप्टर से उतरते ही नायब तहसीलदार और पुलिस के लोग कैमरा ले कर पहुँच जाते है और पूरा ब्यौरा नोट करते है । चुनाव आयोग के चलते ही हर जगह साइकिल मोटर साइकिल और छोटे वहां ही नजर आए ट्रैक्टर और बस अदि कही नहीं दिखी । इस मामले में चुनाव का रंग उतना चढ़ता नजर नहीं आया जितना पहले के चुनाव में था ।
अखिलेश यादव अपनी सभाओं में समाजवादी पार्टी की पुरानी छवि तोड़ रहे है और नई छवि गढ़ भी रहे है । वे आक्रामक तेवर में मायावती पर हमला करते है । ऊपर से मायावती के हाथियों की और इशारा करते हुए कहा -ये भ्रष्टाचार के प्रतीक बन गए है और यही लोगों की नाराजगी की बड़ी वजह भी है । अगर हजारों करोड़ रूपये इन बुतों पर खर्च हो सकता है तो शिक्षा के क्षेत्र में कम्पूटर और लैपटाप पर क्यों नहीं ? जब यह सवाल वे अपनी सभाओं में दोहराते है तो तालियों की गडगडाहट लोगों का मूड बता देती है ।
जनसत्ता

Saturday, January 28, 2012

उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को लेकर मचा घमासान

अंबरीश कुमार
लखनऊ जनवरी। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को लेकर सियासी जंग तेज होती जा रही है। इसकी शुरुआत तो कांग्रेस ने की पर यह मामला काफी आगे जाता नजर आ रहा है। करीब अठारह फीसद आबादी व करीब सौ सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाने वाले मुसलमान इस चुनाव की धुरी बनते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के बारे में हमेशा से यह कहा जाता है कि सांप्रदायिक कार्ड पहले वह खेलती है पर उसका फायदा दूसरे लोग ले जाते हैं। अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर शिलान्यास तक इसके उदाहरण माने जाते हैं। अब मुस्लिम आरक्षण भी कांग्रेस के गले की हड्डी बनती नजर आ रही है। मुस्लिम आरक्षण को लेकर जहां भाजपा ने अपने पिछड़े हिन्दू मतदाताओं को गोलबंद करने का प्रयास किया तो उसकी प्रातक्रिया में समाजवादी पार्टी के पक्ष में नए सिरे से ध्रुवीकरण की संभावना जताई जा रही है। पूरे खेल में कांग्रेस की प्रतिक्रिया से जाहिर है की वह अब कही ना कही अपने आपको ठगा महसूस कर रही है। आज जैसे ही मौलाना बुखारी ने मुलायम सिंह यादव के साथ प्रेस कांफ्रेंस की उसके कुछ देर बाद ही कांग्रेस,भाजपा व पीस पार्टी की तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष डा रीता बहुगुणा जोशी ने बुखारी को नसीहत देते हुए कहा उलेमा और मौलाना सियासी फतवों से दूर रहना चाहिए और दिग्विजय सिंह ने तो बुखारी को दहशतगर्दों का हिमायती बता दिया। भाजपा के विनय कटियार ने मुलायम सिंह यादव व मौलाना बुखारी के बीच डील की बात कह कर मामले को और गरमा दिया है। राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा- इन सबसे जाहिर है कि सपा के पक्ष में जाने अनजाने मुसलमानों का ध्रुवीकरण हो रहा है। पीस पार्टी की प्रतिक्रिया से इसकी और पुष्टि हो जाती है। पीस पार्टी अपने को मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा मानती है। और आज देवबंदी मुसलमानों के मुलायम सिंह के पक्ष में खड़े होने के साथ ही उसकी राजनैतिक मजबूरी सामने भी आ गई।
पीस पार्टी ने आज एक बयान जारी कर कहा - समाजवादी पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर मंदिर मस्जिद के नाम पर राजनीति की और वोटों का ध्रुवीकरण कराया। इस आंदोलन से मुसलमानों को अधिकतम क्षति हुई। सपा ने मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचते हुए अयोध्या के नायक कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में ले लिया । साक्षी महाराज और डालमिया को राज्यसभा में भेजने का काम किया। यह सपा का भाजपा से मिलीभगत का एक उदाहरण है। मुलायम सिंह ने उर्दू उत्थान के नाम पर 2005 में न्यायिक सेवाओं में जो उर्दू अनिवार्य विषय हुआ करता था। उसको परीक्षाओं से हटा दिया। यह कार्य भाजपा भी नहीं कर पाई। क्या यही मुलायम सिंह का मुसलमानो की प्रगति का रास्ता है। मुलायम सिंह की सरकार ने इजराईल के राजदूत डेविट डैनियल को लखनऊ आमत्रित ही नही किया साथ ही उनसे विचार विमर्श भी किय। । यह कार्य भाजपा सरकार ने भी नहीं किया। कांग्रेस भाजपा व पीस पार्टी की इस प्रतिक्रिया से उत्तर प्रदेश के सियासी हालात को आसानी से समझा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में पहले भी जब जब भाजपा ने मुसलमानों के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाया था तो सपा को उसका राजनैतिक लाभ मिला था। उत्तर प्रदेश में मौलाना बुखारी का मुसलमानों पर कोई बहुत ज्यादा असर नहीं रहा है यह सब जानते है । पर जिस तरह से उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा और उसके बाद राजनैतिक दलों ने उनका विरोध और साथ ही में मुलायम सिंह यादव का विरोध किया उससे मुस्लिम राजनीति में फिर से हलचल तेज होती नजर आ रही है ।

संकट में है कोवलम के समुंद्र तट


अंबरीश कुमार
देवताओं के अपने देश यानी केरल का समूचे विश्व में मशहूर कोवलम समुंद्र तट खतरे में है। गोवा समेत यह देश के सबसे खूबसूरत समुंद्र तटों में से एक है जहां पर साल भर सैलानियों का जमावड़ा लगा रहता है । जैसा सभी समुंद्र तटों का इतिहास है यह भी मछुवारों का गांव रहा जो अब आलिशान रिसार्ट ,होटलों और रेस्तराओं की भीड़ में में बदल चुका है। बाजार इस समुंद्र तट को लील रहा है । प्रकृत के इस अनोखे समुंद्र तट पर अब समुंद्र की हदबंदी कर दी गई ।बगल के राज्य तमिलनाडु में समुंद्र तट के नियम कायदे काफी कड़े है और कोई भी निर्माण पांच सौ मीटर के भीतर नहीं हो सकता जिसका उदाहरण चेन्नई के मैरिना समुंद्र तट से लेकर महाबलीपुरम तक में देखा जा सकता है। पर केरल की ताकतवर होटल लाबी ने अपने राज्य में इन नियम कायदों को ताक पर रखकर निर्माण कर डाला है । केरल का पर्यटन विभाग का नारा है देवताओं का अपना देश । पर देवताओं के इस देश में सबसे मशहूर समुंद्र तट का समुंद्री पर्यावरण संकट में है और इसके चलते कभी भी कोई बड़ा हादसा भी हो सकता है ।
केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम में कई समुंद्री तट हैं जिनमें से एक कोवलम तट हैं। रेतीले तटों पर लहराते नारियल के पेड़ों को देखकर ऐसा लगता है मनो आप कोई पिक्चर पोस्ट कार्ड देख रहे हों । यहाँ लहराता समुंद्र है ,नारियल के घने जंगल है तो हरे भरे जंगलों के बीच बैक वाटर और ख़ूबसूरत लैगून भी हैं। कोवलम बीच के पास तीन और तट भी हैं जिनमें से दक्षिणतम छोर पर स्थित लाइट हाउस बीच सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इस समुंद्र तट पर अब समुंद्र की जगह कम होती जा रही है और होटल ,रेस्तरां बढ़ते जा रहे है । विदेशी सैलानी इस तट पर सबसे ज्यादा नजर आएंगे क्योकि यही पर सूरज की किरणों के बदलते कोणों के साथ ही पानी रंग बदलता नजर आता है ।समुंद्र तट पर आते ही बाई तरफ नारियल से घिरी पहाड़ियों पर पुराना लाइट हाउस है जिसकी रौशनी शाम ढलते ही घुमने लगती है। रात में अरब सागर की स्याह लहरों पर जब इस लाइट हाउस की रौशनी पड़ती है तो लगता है कोई जहाज दिशा पहचान कर इधर ही आ रहा है । शाम को सूर्यास्त का अद्भुत नजारा इन सुंदरा तटों पर दिखता है। और शाम के बाद तट पर फैलता बाजार आबाद हो जाता है। अरब सागर की ओर खुले इन रिसार्ट ,होटल और रेस्तरां में सीजन के समय शाम से ही सीटे भर जाती है जिनमे विदेशियों की भी बड़ी संख्या होती है। दिन में लाइन से लगी छतरियों के नीचे ये विदेशी बिकनी में धूप सेकते नजर आते है तो सत्तर -अस्सी दशक का गोवा का कलंगूट याद आ जाता है जो हिप्पियों के चलते इस कदर बदनाम हुआ कि वहां अपसंस्कृति से बचने के लिए नग्न होने पर रोक लगा दी गई और आज भी वहा इस तरह के बोर्ड नजर आते है। कोवलम के समुंद्र तटों पर भी कुछ हद तक विदेशियों का यह असर महसूस किया जा सकता है जो विदेशों में तो आम है पर दक्षिण भारत के इस अंचल में लोगों को अटपटा लगता है । पर्यटन को केरल सरकार काफी बढ़ावा देती है तो उसे इस दिशा में भी सोचना चाहिए ताकि परिवार के साथ जाने वालों को किसी अप्रिय स्थिति का सामना न करना पड़े ।
बंगाल से आए उज्जवल चटर्जी ने कहा - पर्यटन विभाग को यह सोचना चाहिए कि यह जगह गोवा से कुछ अलग है ,यहां तीर्थ यात्रा वाले पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते है जो कन्याकुमारी जाते है ,पद्मनाभम स्वामी के मंदिर में दर्शन करने आते है । जबकि गोवा का पर्यटक पूरी तरह मौज मस्ती के लिए जाता है इस वजह से इन समुन्द्र तटों पर लोग एक सीमा तक ही बेपर्दा हो यह जरुर ध्यान रखना चाहिए ।
दरअसल केरल के इन समुंद्री तटों पर देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले ज्यादातर पर्यटक धार्मिक रुझान वाले होते है क्योकि वे मदुरै ,रामेश्वरम,सबरीमाला ,कन्याकुमारी जैसी जगहों से यहाँ पहुँचते है जो तिरुअनंतपुरम से तीन चार सौ किलोमीटर के दायरेमें है । इन पर्यटकों में उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश ,बंगाल ,और गुजरात के ज्यादातर पर्यटक होते है। कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद की वजह से बंगाली पर्यटक बड़ी संख्या में आते है और कन्याकुमारी के बाद उन्हें सबसे करीब लगभग अस्सी किलोमीटर पर तिरुअनंतपुरम आना ज्यादा सुविधाजनक लगता है।
इस शहर का इतिहास भी काफी रोचक है । अनंतवरम तिरुअनंतपुरम का प्राचीन पौराणिक नाम है जिसका उल्लेख ब्रह्मांडपुराण और महाभारत में मिलता है। 18वीं शताब्दी में त्रावनकोर के महाराजा ने जब इसे अपनी राजधानी बनाया तभी से तिरुअनंतपुरम का महत्त्व बढ़ा। यहाँ के लोगों के मुताबिक 1994-95 के दौरान भारी मात्रा में स्वर्ण आयात होने के कारण तिरुअनंतपुरम 'स्वर्णिम द्वार' कहा गया है। इस शहर का नाम शेषनाग अनंत के नाम पर पड़ा जिनके ऊपर पद्मनाभस्वामी (भगवान विष्णु) विश्राम करते हैं। तिरुवनंतपुरम, एक प्राचीन नगर है जिसका इतिहास 1000 ईसा पूर्व से शुरू होता है। पद्मनाभस्वामी मंदिर की वजह से यहाँ भारी संख्या में तीर्थ यात्री पहुँचते है । इसके बाद कुछ अन्य पर्यटन स्थलों को छोड़कर ज्यादातर सैलानी कोवलम समुंद्र तट का रुख करते है जो शहर से सोलह किलोमीटर की दूरी पर है । उससे पहले करीब आठ किलोमीटर पर शंखमुघम समुंद्र तट पड़ता है जहाँ सैलानी इकठ्ठा होते है पर यहां अरब सागर की सीधी लहरें काफी खतरनाक नजर आती है और यह समुंद्र तट नहाने के लिहाज से सुरक्षित नहीं है । इसलिए सैलानियों को कोवलम का समुंद्र तट ज्यादा भाता है ।
कोवलम के रास्ते में परशुराम का मंदिर पड़ता है जो काफी प्राचीन है । कहा जाता है कि परशुराम के फरसे की वजह से ह केरल बना जो उन्होंने एक बार क्रोधित होकर फेंका था और समुंद्र पीछे हट गया तभी केरल का आकर फरसे की तरह माना जाता है ।पर यह सब धार्मिक किवदंतियां है । बहर्हार इस मंदिर के कुछ ही आगे बढ़ने पर नारियल के पेड़ों से घिरे बैक वाटर का भी नजारा दिख जाता है । बैक वाटर में नाव से घुमाने वाले बहुत से निजी आपरेटर है जो सौ रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से घंटे भर सैर कराते है । इस सैर में प्राकृतिक दृश्य देखते बनता है । हरियाली ऎसी की आंखे बंद होने का नाम न ले । नारियल के घने जंगलों में सुपारी के लंबे दरख्त और बीच बीच में केलों के बगीचे का हरापन काफी लुभाता है । शाम से कुछ पहले कोवलम के लाइट हाउस बीच पर पहुंचे तो दहकता हुआ सूरज नीचे आने की तैयारी कर रहा था । लाइट हाउस के पास ही तक वहां जाता है कि उसके आगे वहां का रास्ता नहीं है और कुली सामान लेकर रिसार्ट तक पहुंचाता है । इसी से पता चल जाता है कि इस तट पर बने रिसार्ट और होटल बाद के निर्माण है । इस समुंद्र तट पर पहले जो भी रेस्तरां झोपड़ी के रूप में थे वे अब पक्के निर्माण में बदल चुके है । केरल सरकार के एक वरिष्ठ अफसर ने नाम न देने की शर्त पर कहा -कोवलम के लाइट हाउस समुन्द्र तट पर जो पैदल पक्का रास्ता बनवाया गया है उसके चलते अतिक्रमण रुक गया है क्योकि कोई भी इस रास्ते को पर कर समुंद्र तट पर नहीं जा सकता वर्ना कई निर्माण तो लहरों के किनारे हो जाता । उन्होंने भी माना कि इस समुन्द्र तट पर बहुत ज्यादा अतिक्रमण कुछ सालों में हुआ है जो तटीय नियम कायदों का सीधा उलंघन है ।तमिलनाडु के सामाजिक कर्यकर्ता प्रदीप कुमार ने कहा - तमिलनाडु के मुकाबले केरल में तटीय नियम कानून का जमकर उलंघन किया जा रहा है जिसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण कोवलम के समुंद्र तट है जहाँ पचास मीटर की दूरी पर निर्माण मिल जाएगा । दूसरी तरफ तमिलनाडु में चाहे मैरिना बीच हो या कोई अन्य बीच सभी जगह पांच सौ मीटर तक किसी भी तरह का निर्माण न करने का नियम कड़ाई से लागू है । केरल में जो हो रहा है वह खतरनाक भी है सौ मीटर पर बने होटल और रिसार्ट खतरनाक है । कभी भी कोई सुनामी आई तो बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान हो सकता है ।
कोवलम में रात होते ही तट पर माहौल रंगीन हो जाता है । तट सी लगी हुई सड़क रौशनी में डूब जाती है तो समुन्द्र की तरफ खुले हुए रेस्तरां आबाद हो जाते है ।हर रेस्तरां के सामने समुंद्री जीवों का छोटा सा बाजार खुल जाता है जिसमे तरह तरह की मछलियाँ ,झींगे ,केकड़े ,लोबस्टर आदि होते है जिन्हें देखकर सैलानी अपना आर्डर देते है । यह विदेशों में तो लोकप्रिय है ही अब देश में भी शुरू हो गया है । हर रेस्तरां में अंग्रेजी संगीत के साथ मदिरा का दौर शुरू हो जाता है जिसके चलते कई पर्यटक ग्लास लेकर समुंद्री लहरों के सामने ही बैठ जातें है । नौजवानों का समूह ऐसे में रेत पर ही अपनी महफ़िल सजा लेता है। कोवलम क इस तट पर काफी देर तक सैलानी जमे रहते है ।
२९ जनवरी २०१२ को जनसत्ता में प्रकाशित लेख
फोटो -अंबर कुमार

Friday, January 27, 2012

लैपटाप ,टेबलेट की घोषणाओं से स्कूल कालेजों तक पहुंच गया चुनाव


अंबरीश कुमार
लखनऊ , जनवरी । उत्तर प्रदेश में नई शिक्षा क्रांति होने जा रही है ।विधान सभा का यह पहला चुनाव है जब स्कूल कालेज के छोटे छोटे बच्चों से लेकर बड़े छात्र भी इसे दिलचस्पी से देख रहे है ।छात्रों को लैपटाप देने का जो वादा मुलायम सिंह ने किया उसने एक झटके में साइकिल वाले खांटी समाजवादियों की पुरानी छवि को ध्वस्त कर कम्पूटर और फेसबुक वाले छात्रों के नए जमात से उन्हें जोड़ दिया है । नतीजा यह हुआ कि आज भाजपा ने लैपटाप के साथ टेबलेट बांटने का एलान कर दिया ।हैरानी की बात यह है कि इसकी शुरुआत उन मुलायम सिंह यादव ने की जिन्हें अमर सिंह लगातार अंग्रेजी और कंप्यूटर विरोधी बताते रहे है । आने वाले विधान सभा चुनाव में बड़ी संख्या में नौजवान मतदाता हिस्सा लेने जा रहे है जिनमे इंटर के छात्र भी शामिल होंगे । इस बार छब्बीस लाख इंटर के छात्र और करीब पचास लाख हाई स्कूल के छात्र उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षा देने जा रहे है ।इनमे सीबीएससी और आईसीएससी के छात्र जोड़ ले तो यह संख्या करोड़ पर कर रही है । ऐसे में लैपटाप और टेबलेट बांटने की घोषणाओं ने उन स्कूली छात्रों को काफी रोमांचित कर दिया है जो कंप्यूटर से भी दूर है। भाजपा ने माध्यमिक स्कूल और इंटर के छात्रों एक हजार में टेबलेट और पांच हजार में लैपटाप देने को कहा है पर गरीब छात्रों को यह सब मुफ्त मिलेगा ।
हालांकि समूचे प्रदेश में बिजली का जो हाल है उससे गाँव के बच्चे लैप्ताप्से कितना पढ़ पाएंगे यह अलग सवाल है । पर स्कूली छात्र बहुत खुश है और ऐसा चुनाव वे जल्दी जल्दी चाहते है ताकि कुछ और तोहफे भी मिले क्योकि यह तो शुरुआत है । दक्षिण में साड़ी और रंगीन टीवी की जो शुरुआत हुई उसे उत्तर प्रदेश के चुनाव में और विस्तार दिया है जहां ग़रीबों को गाय से लेकर छात्रों को लैपटाप देने का एलान कर दिया गया है । कन्या धन और साइकिल वगैरह तो पहले से था पर अब बच्चियों के नाम एफडी का वायदा काफी लुभाने वाला है । पर इस सब पर लैपटाप और टेबलेट भारी पड़ रहा है । खास बात यह है कि याह कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है । राजनैतिक टीकाकार वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा -जब मायावती मूर्तियों पर पंद्रह हजार करोड़ खर्च कर सकती है तो मुलायम बीस हजार करोड़ खर्च कर अगर एक करोड़ छात्रों को लैपटाप या टेबलेट दे देंगे तो शिक्षा क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी । स्कूल कालेजों में तो अब इसपर चर्चा भी हो रही है और नए मतदाताओं को यह लुभा भी रहा है इसलिए मुलायम सिंह को इसका फायदा हो सकता है क्योकि शुरुआत तो उन्ही की थी ।
दूसरी तरफ भाजपा ने भी समाजवादी पार्टी की तर्ज पर छात्रों को 10वी व 12वी पास करने पर टेबलेट कम्प्यूटर व लैपटाप देने का वादा किया है। यह भी रोचक है कि
खांटी समाजवादी अगर अपना पुराना चोला बदल रहे है तो रथयात्रा जैसे प्राचीन प्रतीकों की राजनीति करने वाली भाजपा भी अब कंप्यूटर ,लैपटाप और टेबलेट की बात कर रही है । समाजवादी पार्टी के वैचारिक तो नहीं पर नए तौर तरीकों का श्रेय पहले अमर सिंह को जाता था । मुलायम के पुराने साथी और दिग्गज कुर्मी नेता जो अब कांग्रेस में है वे कुछ साल पहले कहते थे -हमारी संस्कृति तो अमर सिंह ने बदली जो आज सफारी सूट में है वर्ना तो बालों में सरसों का तेल चुपड़ कर मुड़ा तुड़ा कुरता पहन कर देश घूम आते थे ,यह सब अमर सिंह ने बदल दिया । समाजवादी पार्टी अबतक गांवों में ज्यादा असर रखने वाली पार्टी मानी भी जाती थी । पर अब उसके राजनैतिक विज्ञापन अंग्रेजी के अख़बार में आते है । वेब साईट है तो प्रदेश अध्यक्ष अखिलेह यादव खुद फेसबुक पर है । वे विदेश में पढ़े और नए विचारों वाले समाजवादी माने जाते है । इसलिए छात्रों को लैपटाप देने की घोषणा का विचार भी उनका माना जा रहा है जो पार्टी के इस वायदे को स्कूल कालेज तक पहुंचा तो रहा ही है । अब देर सबेर कांग्रेस और बसपा को भी इस राह चलना पड़ेगा ।jansatta

Wednesday, January 25, 2012

चुनाव से बाहर है टीम अन्ना



अंबरीश कुमार
लखनऊ ,जनवरी । उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव से टीम अन्ना बाहर होती नजर आ रही है । आज चौथे चरण की अधिसूचना जारी हो गई जिसमे लखनऊ भी शामिल है । बावजूद इसके लखनऊ से लेकर अन्य कई जिलों में टीम अन्ना की किसी मुहिम की जानकारी ज्यादातर लोगों को नहीं है ।टीम अन्ना की पहली सभा फैजाबाद में तीन फरवरी को है जहाँ आठ फरवरी को मतदान होना है । इस अंचल से कांग्रेस के सबसे स्वच्छ छवि के सांसद निर्मल खत्री है जो प्रख्यात समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव के प्रपौत्र है । जानकर बताते है कि इस जगह का चयन कांग्रेस के बडबोले मंत्री और खांटी समाजवादी नेता बेनी प्रसाद वर्मा को सबक सिखाने के लिए किया गया है,क्योकि उन्होंने टीम अन्ना को कई बार चुनौती दी थी । हालाँकि बेनी का राजनैतिक दांव बाराबंकी में लगा हुआ है । पर यह भी रोचक है कि जिस कांग्रेस को टीम अन्ना निपटा रही थी वह उत्तर प्रदेश में बढ़ रही है यह बात जहां कई सर्वेक्षण में सामने आई वही राजनैतिक विशेषग्य भी मान रहे है ।
लखनऊ में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के संयोजक अखिलेश सक्सेना टीम अन्ना के दिशा निर्देशों के तहत जनता का घोषणा पत्र बांट रहे है और अब तक सौ से ज्यादा लोगों तक वे पहुँच चुके है । लखनऊ में नौ विधान सभा क्षेत्र है और हर क्षेत्र में तीन से साढ़े तीन लाख मतदाता है जो सभी क्षेत्र मिलाकर पच्चीस लाख से ऊपर बैठता है। ऐसे में इस मुहिम की रफ़्तार से किसी तरह का असर चुनाव पर पड़ेगा यह नहीं लगता । अन्ना आन्दोलन के दौरान सबसे ज्यादा फोकस उत्तर प्रदेश पर था और टीम अन्ना लोकपाल बिल को लेकर कांग्रेस को लगातार धमकाती रही कि लोकपाल पास नहीं हुआ तो कांग्रेस का सफाया कर देने के लिए खुद अन्ना हजारे उत्तर प्रदेश का दौरा करंगे । कांग्रेस को हराने के साथ ही कई तरह के कार्यक्रम जो जेपी आंदोलन के थे उन्हें भी लागू करने की बात कही गई थी । इनमे जनता उम्मीदवार ,जनता घोषणा पत्र और प्रतिनिधि वापसी जैसे जेपी आन्दोलन के कार्यक्रम थे । कुछ कार्यक्रम गांधीवादी और सर्वोदय वाले भी थे । पर खुद की न कोई विचारधारा और न कोई कार्यक्रम के चलते अन्ना आंदोलन का समूचे प्रदेश में कोई दीर्धकालीन असर नहीं पड़ पाया ।
अन्ना आंदोलन के एक प्रमुख नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा -यह आंदोलन बहुत दूर तक जा सकता था पर अराजनैतिक सोच और नेताओं के अहंकार ने इसे निपटा दिया । हिसार में कांग्रेस का विरोध दूसरी बड़ी गलती थी जिसके चलते आंदोलन पर संघ का जो ठप्पा लगा उसका नतीजा सामने है ।आज इस आंदोलन के लोगों के सामने न कोई दिशा है और न कोई कार्यक्रम ,साथ ही उल जलूल बयान देकर आए दिन कोई न कोई नेता फंसता जा रहा है जिसका असर कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है । लखनऊ में दो गुट है ,एक गुट हिसार वाली लाइन यानी कांग्रेस को हराओं पर चल रहा है तो दूसरा गुट मतदाताओं को जागरूक करने में जुटा है जो काम मतदाता मंच कई दशकों से कर रहा है और उसका कोई असर कभी पड़ा नहीं । अन्ना आंदोलन के नेता अखिलेश सक्सेना से इस बारे में पूछने पर उनका जवाब था -हम मतदाताओं को जागरूक करेंगे ,किसे वोट दें है यह तो उन्हें ही तय करना होगा । यह पूछने पर कि अगर आपका जनता घोषणा पत्र किसी क्षेत्र में तीन चार उम्मीदवारों ने मन लिया तो किसे वोट देने को कहेंगे ,इसपर जवाब था -यह सब जनता को तय करना है । राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -टीम अन्ना तो बुरी तरह फंसी हुई है और इतनी भ्रमित है कि उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा ।उदाहरण, यहाँ की एक सीट पर भाजपा के कलराज मिश्र है जिनपर कल्याण सिंह आरोप लगाते रहे है तो दूसरा उम्मीदवार एक महा भ्रष्ट चर्चित अफसर के घर का है तो दूसरा जमीन कब्ज़ा करने वाला और जितने वाला भी इन्ही तीनो में से एक है अब अन्ना के आंदोलन का क्या असर मानेगे ।भाजपा नेता अमित पुरी ने कहा -टीम अन्ना के सामने कोई विकल्प बताने को जब है ही नहीं तो उनकी भूमिका भी सीमित नजर आती है ।
टीम अन्ना फ़ैजाबाद से अपनी मुहिम शुरू कर रही है जहां मुख्य लड़ाई में समाजवादी पार्टी और बसपा है । फ़ैजाबाद से त्रियुग नारायण तिवारी ने कहा -टीम अन्ना की सभा यहाँ गुलाबबाड़ी में रखी गई है पर इस आंदोलन का कोई असर तो कही दिख नहीं रहा । फ़ैजाबाद से आंबेडकर नगर तक कांटे के मुकाबले में समाजवादी पार्टी और बसपा है ,भाजपा और कांग्रेस तो इस बार कही वोट कटवा न बन कर रह जाए यह आशंका है ।पर और दूसरी जगहों से कांग्रेस के बढ़ने की भी खबर आ रही है । इन हालत में टीम अन्ना का न कोई असर दिख रहा है और न उनके आंदोलन का ।भ्रष्टाचार तो मुद्दा ही नही बन पाया है ।

Tuesday, January 24, 2012

पूर्वांचल में टूटने लगा पीस पार्टी का करिश्मा



अंबरीश कुमार
गोरखपुर /लखनऊ जनवरी ।पूर्वांचल में जोर शोर से उठी पीस पार्टी का करिश्मा अब टूटता नजर आ रहा है ।इसके चलते ज्यादा बड़ा नुकसान बसपा का हो सकता है तो यही समाजवादी पार्टी को आगे ले जा सकता है। पीस पार्टी में पिछले कुछ समय में कई बार टूट फुट हुई और कई दलों के दागी और बागी उम्मीदवार साथ खड़े हो जाने से इसकी सोशल इंजीनियरिंग भी कमजोर पड़ गई है । करीब १८ फीसद मुस्लिम और २७ फीसद अति पिछड़ी जातियों को लामबंद कर सत्ता का समीकरण बनाने में जुटी पीस पार्टी को कई जगहों पर अब वोट कटवा पार्टी कहा जा रहा है । खुद आज पीस पार्टी के वरिष्ठ नेता डाक्टर एमजे खान ने देश की दो प्रमुख पार्टियों पर उनकी पार्टी की छवि बिगाड़ने का आरोप लगाया । उन्होंने कहा -पीआर एजंसियों की मदद से कुछ चैनलों ने यह भी बताया कि पीस पार्टी का बसपा से तालमेल है ,यह पार्टी की छवि बिगाड़ने वाली मुहिम का हिस्सा है । पीस पार्टी भले ही पूर्वांचल में आगे रहने का दावा करे पर गोरखपुर बस्ती मंडल में इस पार्टी का करिश्मा मंद पड़ता नजर आ रहा है । इस वजह से बस्ती और गोरखपुर की बहुत सी सीटों पर राजनैतिक समीकरण बदल गए जिसके चलते जहां बसपा पिछड़ रही है वही समाजवादी पार्टी बढ़ रही है इसके बाद कांग्रेस और भाजपा है। प्रदेश के अन्य अंचल की तरह यहाँ भी ज्यादातर सीटों पर मुख्य मुकाबले में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है पर दोनों के बीच फर्क बढ़ता जा रहा है । पीस पार्टी के उदय के साथ ही मन जा रहा था कि यह मुसलमानों का वोट बड़ी संख्या में लेगी और समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान भी होगा । इसीलिए शुरू से ही आरोप लगता रहा है कि योगी आदित्यनाथ ने हरिशंकर तिवारी के असर को ख़त्म करने के लिए पीस पार्टी को बनवाने में मदद की है । बाद में इस पर बसपा से सांठगांठ का भी आरोप भी लगा । अब पीस पार्टी को अन्य आरोपों के साथ इन आरोपों का भी जवाब देना पड़ता है ।
पीस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल मन्नान ने इन आरोपों पर जनसत्ता से कहा - हमारे खिलाफ मीडिया जो कर रहा है उसपर हम कहते है ,लश्कर तुम्हारी ,सरदार तुम्हारा -तुम सच को झूठ लिख दो अखबार तुम्हारा । पर यह मुहावरा चैनल पर ही फिट बैठता है । हमारी पार्टी में कोई विभाजन नहीं हुआ समाजवादी पार्टी बंट गई है। जो भी आरोप लगाए जा रहे वह पूरी तरह गलत है ,पूर्वांचल में हमारी ताकत बरक़रार है । दूसरी तरफ राष्ट्रीय महासचिव एमजे खान ने कहा -यह सारा खेल हमें बदनाम करने और बसपा का एजंट घोषित करने की कवायद का हिस्सा है जिसमे नामी गिरामी विज्ञापन और जनसंपर्क एजंसियां लगी है । एक चैनल तो पेड न्यूज़ की तरह इसका प्रचार कर चुका है । खान के अपने तर्क है पर पूर्वांचल में जो लोग राजनैतिक घटनाक्रम पर नजर रख रहे है उनकी राय अलग है । गोरखपुर के खंडराइच गाँव के अरुण सिंह ने कहा -पीस पार्टी का अब वह असर नही रहा जो कुछ उप चुनावों में दिखा था । जिस सामाजिक आन्दोलन के आधार पर यह चली थी वह अब कहीं नजर नहीं आता इसी वजह से इसका करिश्मा भी टूट रहा है क्योकि अपराधियों के सहारे कोई सामाजिक बदलाव नहीं ला सकते। अब गोरखपुर से लेकर बस्ती तक समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को ज्यादा बढ़त मिल रही है और मुसलमान भी जितने वाले को वोट करेगा ।

गोरखपुर से जनसत्ता संवादाता एसके सिंह के मुताबिक जिले के नौ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में होने वाले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में मुख्य आसार है। चिल्लुपार में लोकतांत्रिक कांग्रेस के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी, सहजनवां में विधायक व निर्दल प्रत्याशी यशपाल रावत, बांसगांव में भाजपा के बागी उम्मीदवार रामलक्ष्मण चुनाव को और रोचक बना रहे है। अल्पसंख्यक मतों के सपा, बसपा, भाजपा व पीस पार्टी में बिखराव के चलते पिछले चुनावों में अल्पसंख्यक मतों के सशक्त दावेदार के रूप में उभरी पीस पार्टी के वोट काटने वाली पार्टी के रूप में ही प्रदर्शन के आसार है। हालांकि आगामी हफ्ते में चुनावी तस्वीर साफ होने पर चुनावी समीकरण में उलटफेर की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
पिपराइच विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला सपा प्रत्याशी व पूर्व राज्यमंत्री स्व जमुना निषाद की पत्नी विधायक राजमती देवी, बसपा प्रत्याशी पूर्व राज्यमंत्री जितेंद्र कुमार जायसवाल उर्फ पप्पू व भाजपा प्रत्याशी व सदर सांसद योगी आदित्यनाथ के करीबी राधेश्याम सिंह के बीच है। कांग्रेस के अमरजीत यादव मुकाबले को चौतरफा बनाने का प्रयास कर रहे है। गोरखपुर ग्रामीण में मुकाबला सपा के जफर अमीन डक्कू, भाजपा प्रत्याशी व मानीराम के विधायक विजय बहादुर यादव, बसपा प्रत्याशी पूर्व राज्यमंत्री रामभुआल निषाद व कांग्रेस उम्मीदवार काजल निषाद के बीच है। नगर क्षेत्र में मुख्य मुकाबला नगर विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल, सपा प्रत्याशी राजकुमारी देवी व बसपा प्रत्याशी दिवेशचंद्र श्रीवास्ताव के बीच सिमटने के आसार है। कांग्रेस प्रत्याशी यहां भी मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने के लिए संघर्षरत है। बांसगांव में मुख्य मुकाबला सपा की शारदा देवी, बसपा के डा विजय कुमार, भाजपा उम्मीदवार पूर्व सांसद व वर्तमान भाजपा सांसद कमलेश पासवान की मां सुभावती पासवान, भाजपा के बागी व गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के करीबी रामलक्ष्मण के बीच है। कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व केंद्रीय मंत्री महावीर प्रसाद की पुत्री निर्मला देवी मुकाबले को पंचकोणीय बनाने के लिए संघर्षरत है। गोरखपुर के कारोबारी रामानंद ने कहा -मुख्य मुकाबला तो अंत में सपा बसपा में ही होना है ,कुछ सीटों पर कांग्रेस भाजपा आ जाएगी ।पर जिस तरह पीस पार्टी उठी थी अब वह असर नहीं है जिसके चलते मुस्लिम वोटों में ज्यादा बंटवारा होने की भी आशंका नहीं है यह सपा के लिए फायदेमंद हो सकता है । भाजपा को पहले फायदा दिख रहा था पर बाद में जो सब विवाद हुए उससे नुकसान हुआ हैं।कांग्रेस कुछ चौकाने वाले नतीजे भी दे सकती यह ध्यान रखना चाहिए ।

चौरीचौरा में मुख्य मुकाबला बसपा प्रत्याशी जयप्रकाश निषाद कांग्रेस प्रत्याशी विधायक माधो पासवान, सपा के अनूप पांडे,व भाजपा के विनय कुमार सिंह उर्फ बिन्नू के बीच है। चिल्लूपार में मुख्य मुकाबला सपा प्रत्याशी सीपी चंद्र, बसपा प्रत्याशी पूर्व राज्यमंत्री राजेश त्रिपाठी, लोकतात्रिंक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व काबीना मंत्री हरिशंकर तिवारी व भाजपा प्रत्याशी विजय प्रताप यादव के बीच है। खजनी में मुख्य मुकाबला बसपा प्रत्याशी पूर्व आयकर आयुक्त रामसमुझ, भाजपा प्रत्याशी पूर्व विधायक संतप्रसाद बेलदार व सपा व कांग्रेस के प्रत्याशियो के बीच है। सहजनवां में मुख्य मुकाबला बसपा प्रत्याशी राजेंद्र उर्फ बृजेश सिंह, भाजपा के अश्वनी त्रिपाठी, सपा के संतोष यादव उर्फ सनी व निर्दल प्रत्याशी विधायक यशपाल रावत व कांग्रेस प्रत्याशी के बीच है। आगामी 27 जनवरी को पर्चा वापसी के बाद जब प्रत्याशियों को चुनाव चिन्हों का आबंटन हो जाएगा व चुनाव प्रचार में तेजी आएगी तब चुनावी परिदृश्य में कुछ बदलाव की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। पर मुख्य मुकाबला इन्हीं प्रत्याशियों व दलों के बीच होने की प्रबल संभावना है। अभी जो चुनावी परिदृश्य उभर कर सामने आया है। उसमें पार्टी के अलावा जातीय आधार पर भी मतों का ध्रुवीकरण होने की संभावना है। सदर सांसद योगी आदित्यनाथ का प्रभाव क्षेत्र होने के कारण धार्मिक आधार पर भी मतों का ध्रुवीकरण होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।जनसत्ता

चैनलों पर पेड़ न्यूज़ के खिलाफ वाम दलों ने मोर्चा खोला



आशुतोष सिंह
लखनऊ जनवरी। उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पेड़ न्यूज़ को लेकर वाम दलों ने मोर्चा खोल दिया है । भाकपा ,भाकपा माले और जन संघर्ष मोर्चा ने आरोप लगाया है कि कई चैनलों पर बड़ी पार्टियों का चुनाव प्रचार पेड़ न्यूज़ के जरिए हो रहा है जिसके चलते छोटे दल प्रचार में पिछड़ जा रहे है । इसलिए चुनाव आयोग को इस मामले में फ़ौरन दखल देना चाहिए । भाकपा ने जहां पत्र लिख कर चुनाव आयोग से दखल देने को कहा वही जन संघर्ष मोर्चा इस मुद्दे को लेकर सख्त कार्यवाई की मांग की है । भाकपा माले और तहरीके निसवां की संयोजक ने इस प्रवृति पर चिंता जताई है । जन संघर्ष मोर्चा के संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा -चुनाव में सभी के लिए बराबरी वाला मैदान होना चाहिए तभी छोटे दलों के साथ न्याय हो पाएगा । बड़े दलों की चैनलों पर जरुरत से ज्यादा कवरेज कई तरह के सवाल खड़ा कर रहा है ।
भाकपा के राज्य सचिव गिरीश ने कहा -चैनल पर बड़े दलों का जो कवरेज हो रहा है वह सीधा सीधा पेड़ न्यूज़ की श्रेणी में आता है जिसकी जाँच पड़ताल कराई जानी चाहिए ।
खबरिया चैनलें कुछ पार्टियों के अभियान को दिन रात अपने चैनल पर दिखा रहे हैं। यह कृत्य अपने आपमें पेड न्यूज का ही एक प्रकार है।
उन्होंने कहा - इस बार निर्वाचन आयोग ने साफ़ तौर पर स्पष्ट किया है कि उनकी पैनी निगाह पेड न्यूज़ पर सबसे ज्यादा रहेगी। गौरतलब है कि पिछले दिनों पूरे प्रदेश में एक अभियान चला कर हर गाड़ियों की तलाशी लेकर प्रचार प्रसार सामग्री चुनाव आयोग ने जब्त की थी । उस समय लगा था कि चुनाव आयोग इस बार अपनी बातें मनवा कर रहेगा। पर जिस तरह से पार्टियों के अभियान को धड़ले से खबरिया चैनल पर दिखाया जा रहा है। इससे चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान लगने लगें हैं।
इस मुद्दे को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आज प्रमुख न्यूज चैनलों पक्षधरता की शिकायत मुख्य निर्वाचन आयुक्त व मुख्य निर्वाचन अधिकारी से की। उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का प्रचार जारी है और निर्वाचन आयोग के बनाए कड़े नियमों से प्रचार कार्य में आपा धापी नहीं चल पा रही है। यह बहुत अच्छी बात है लेकिन प्रमुख न्यूज चैनल आयोग के नियमों व अपेक्षाओं की धज्जियां सरे आम बिखेर रहे हैं। वे पूंजीवादी पार्टियों के समाचार प्रसारित कर रहे हैं। जिनसे उन्हें विज्ञापन मिल रहे हैं। अथवा जो उन्हें पिछले रास्ते से आर्थिक लाभ पहुंचाने में समर्थ हैं। इन चैनल्स में उत्तर प्रदेश की केवल चार पार्टियां कांग्रेस, भाजपा, बसपा व सपा के अभियानों को दिन रात प्रसारित व प्रचारित किया जा रहा है। भाकपा ने इन न्यूज़ चैनलों पर अपनी पार्टी के खबर ना प्रकाशित करने का भी आरोप लगाया। न्यूज चैनल्स की यह पक्षधरता लोकतंत्र व आदर्श आचार संहिता का भी उल्लंघन है। डा गिरीश ने इस पर तत्काल रोक लगाए जाने की भी मांग की है। आयोग को लिखे पत्र में भाकपा ने मांग की है कि सभी चैनल्स के लिए एक गाइडलाइन तैयार की जाए। जिससे वे अपने बुलेटिनों के कुल प्रसारण समय में सभी राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त दलों को एक सामान स्थान दें। क्षेत्रीय दलों को इसके बाद स्थान दिया जा सकता है। साथ ही समाचार चैनल्स के प्रसारण पर निगरानी रखने को एक उच्च स्तरीय समिति बनाई जाए। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश, प्रेस परिषद के वरिष्ठ सदस्य, सेवानिवृत्त निर्वाचन आयुक्त व एक स्वतंत्र बुद्धिजीवी को शामिल किया जाए।
दूसरी तरफ तहरीके निसवां की संयोजक ताहिरा हसन ने कहा -इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग से दखल की अपील हम सब कर रहे है। यह काफी गंभीर मामला है निष्पक्ष चुनाव पर कही न कही असर पड़ता है।

जनसत्ता

Sunday, January 22, 2012

राजनैतिक दलों के निशाने पर अब मुलायम

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,जनवरी । उत्तर प्रदेश में मुख्य दलों के निशाने पर मायावती की जगह मुलायम आ गए है। पिछले दो दिनों में कांग्रेस और भाजपा ने मुलायम सिंह पर सीधा हमला बोला । चुनाव घोषणा पत्र में लैपटाप बांटने को लेकर भाजपा ने तो मुस्लिम आरक्षण को लेकर कांग्रेस ने । अब भाजपा ,बसपा और कांग्रेस सभी ज्यादा निशाना मुलायम पर साध रहे है। समाजवादी पार्टी का परंपरागत जनाधार तोड़ने के लिए कांग्रेस ने रणनीति बनाकर कई पहल की तो बाद में भाजपा भी इस खेल में शामिल हो गई। पिछले लोकसभा चुनाव में अस्सी से ज्यादा सीटे समाजवादी पार्टी बहुत कम अंतर से हारी थी जिसपर इस बार काफी ध्यान दिया जा रहा है । पर इन सीटों पर कांग्रेस की भी नजर गड़ी हुई है और वह खुद जीते न जीते सपा को हराने के लिए वोट कटवा की भूमिका निभा सकती है ताकि सपा की ज्यादा से ज्यादा सीटें न आने पाए, इस खेल मे बसपा को भले फायदा हो जाए।
गौरतलब है कि चुनाव के पहले दौर में बसपा और कांग्रेस ने एक दूसरे की भरपूर मदद कर समाजवादी पार्टी को हाशिए पर डालने की कोशिश कर चुके है। राहुल गांधी हर सभा में मायावती पर निशाना साधते और मायावती राहुल पर । पर जब भी राहुल मुस्लिम बहुल इलाकों में जाते उनके निशाने पर मुलायम होते ताकि सपा के मुस्लिम वोटों में सेंध लगे जा सके।पिछले लोकसभा चुनाव में कल्याण सिंह के चलते इसी मुस्लिम वोटो का फायदा कांग्रेस को हुआ था और सपा को झटका लगा था । हाल ही में मुस्लिम आरक्षण का एलान कांग्रेस की इसी रणनीति का हिस्सा था। कांग्रेस अपना परंपरागत जनाधार बहाल करने की कवायद में जुटी है जिसमे दलित और मुस्लिम पहली प्राथमिकता है । राहुल गांधी पिछले कुछ सालों से उत्तर प्रदेश में दलितों के घर जाते है वहां रुकते है और ऊनका खाना खाते है। वाराणसी में जब वे दलितों के साथ खाना खा रहे थे तो एक दलित बुजुर्ग की आंखे भर आई और बोले - इंदिरा जी का पोता हमारे साथ खाना खाएगा यह कभी सोचा नहीं था । मायावती ने तब इसे राहुल गांधी का नाटक बताते हुए कहा था ,कांग्रेस का यह युवराज दलितों के यहं से जाने के बाद सुगंधित साबुन से नहाता है । इसे नाटक भले माना जाए पर राहुल गांधी दलितों के बीच कांग्रेस को ले जा रहे है और कुछ न कुछ फायदा पार्टी को मिल सकता है । ठीक इसी तरह कांग्रेस के निशाने पर मुलायम सिंह का मूस्लिम वोट बैंक भी है । कांग्रेस समाजवादी पार्टी के पिछड़ों के वोट बैंक में ज्यादा बदलाव की स्थिति में नहीं है पर बेनी प्रसाद वर्मा के जरिए समाजवादी पार्टी के कुर्मी जनाधार को काफी हद तक दरका रही है ,यह भी सच है ।
दूसरी तरफ भाजपा भी बाबू सिंह कुशवाहा से लेकर उमा भारती को लाकर उनके पिछड़े जनाधार पर चोट कर रही है । भाजपा नेता अमित पुरी ने कहा - उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और अति पिछड़ों की लड़ाई तो भाजपा ने ही लड़ी है कांग्रेस का क्या लेना देना ,वैसे भी कांग्रेस के लिए भोजपुरी की कहावत कही जाती है ,मूस मोटइयें तो लोढ़ा होइएं यानी चूहा मोटा होगा तो लोढ़ा जैसा हो जाएगा ,हाथी तो बन नहीं जाएगा ।इसलिए कांग्रेस तो चौथे नंबर की पार्टी है । समाजवादी पार्टी को चुनौती भाजपा दे रही है । पर समाजवादी पार्टी इन दलों को लड़ाई से ही बाहर मानती है । पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -भाजपा और कांग्रेस तो बसपा के साथ मिलकर साजिश कर रहे है । संघ भी जहाँ भाजपा मुकाबले में नहीं है वहा बसपा को जिता रहा है और कांग्रेस भी इसी खेल में लगी है। समूचे प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़त सपा को मिल रही है जिससे इन दलों की हालत ख़राब है । हम सभी साजिशों के बाद सत्ता में आ रहे है । jansatta

बसपा के साथ भी संघ

नई दिल्ली, जनवरी। उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की तुलना में राष्ट्रवाद को ज्यादा अहमियत दे रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भाजपा के बाद दूसरी पसंद बसपा है। संघ चाहता है कि विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर भाजपा उम्मीदवार के जीतने की संभावना कम हो वहां बसपा उम्मीदवार को जितवाया जाए। उसके इस फैसले से भाजपा भी सहमत है। यह संदेश काडर को भेज दिया गया है।
भाजपा दिखावे के लिए भले ही इस चुनाव में बसपा और मायावती की आलोचना करे। लेकिन असलियत कुछ और है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक संघ का मानना है कि भाजपा की लड़ाई मायावती से न होकर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) और सोनिया गाधी की कांग्रेस से है। पार्टी का लक्ष्य 2014 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता हासिल करना है। इसके लिए यह जरूरी है कि लोकसभा में सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा को कमजोर किया जाए। यही वजह है कि बसपा के सत्ता में होने के बाद भी भाजपा पिछली बार चौथे नंबर पर आई कांग्रेस पर निशाने साध रही है।
संघ और भाजपा को राज्य में बसपा की जीत कहीं ज्यादा मुफीद लगती है। इसे देखते हुए संघ की सलाह पर भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया है कि जहां पर उन्हें अपना उम्मीदवार जीतता नजर न आए वहां वोट बरबाद करने की जगह बसपा को स्थानांतरित कर दिया जाए। केंद्र में सरकार बनाने की नौबत आने पर बसपा उसके लिए कहीं ज्यादा सहायक साबित होगी, क्योंकि पिछली बार कल्याण सिंह के साथ हाथ मिलाने के बाद मुलायम सिंह फूंक-फूंक कर कदम रखेंगे। अपने मुसलिम वोट को साथ रखने
के लिए अब वे ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे।
भाजपा का अपना आकलन भी यही है कि वह बमुश्किल सौ सीटों तक पहुंच पाएगी। उसके दूसरे नंबर पर आ पाने की संभावना बहुत कम है। पार्टी इससे पहले तीन बार मायावती की सरकार बनवाने का खामियाजा भुगत चुकी है। इसलिए वह राज्य में उसकी सरकार बनवा कर अपनी फजीहत करवाने की जगह विपक्ष में बैठना ज्यादा पसंद करेगी। पार्टी नेताओं का तो यहां तक मानना है कि चुनाव नतीजे ऐसे भी आ सकते हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ जाए। यह स्थिति भी उसके लिए अच्छी रहेगी।
अपना उम्मीदवार न जीतने पर किसी और दल को वोट डलवा देने का फैसला पहली बार नहीं किया गया है। बोफर्स कांड की आंधी में जब लोकसभा के चुनाव हुए थे तो उत्तर प्रदेश की मऊ लोकसभा सीट पर भी ऐसा ही प्रयोग किया गया था। वहां से कल्पनाथ राय ने चुनाव लड़ा था। उस समय नारा दिया गया था ‘ऊपर काम को व नीचे राम को’। चूंकि राय नें अपने चुनाव क्षेत्र में काफी लोकप्रिय थे, इसलिए लोकसभा में उनको और विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट डालने का फैसला किया गया था। आतंकवाद से जूझ रहे पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की बड़ी वजह वहां संघ की ओर से अपने कार्यकर्ताओं को उसके पक्ष में वोट डालने का निर्देश दिया जाना था। तब संघ को यह लगता था कि हिंदुओं को कांग्रेस ही सुरक्षा प्रदान कर सकती है। उस चुनाव का अकालियों ने बायकाट करने का ऐलान कर दिया था। इससे बेअंत सिंह मुख्यमंत्री बने थे। सूत्र बताते हैं कि संघ के लिए भाजपा की तुलना में हिंदू हितों की सुरक्षा कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
जनसत्ता में विवेक सक्सेना की रपट

Tuesday, January 17, 2012

फिर याद आई मुंबई


अंबरीश कुमार
मुंबई फिर याद आई । मुंबई में बचपन गुजरा है । कल उस दौर की याद ताजा हो गई जब कल रात प्रणय के साथ देर रात तक दावत चली । चर्चा मुंबई से गोवा तक चली । मुंबई में उनका भी बचपन गुजरा है और अब दिल्ली में रहने के साथ गोवा में पर्यावरण के माकूल घर बनवाने जा रहे है अपने उस काजू के बगीचे में जो दो साल पहले लिया था । बगल में प्रिती जिंटा और अमिताभ बच्चन आदि के बड़े फार्म हाउस है । पर पहले मुंबई लौटे ।
मुंबई के भाभा एटामिक एनर्जी की कालोनी चेंबूर में देवनार काटेज के पास थी जो कपूर परिवार का घर था । उस समय पापा भाभा एटामिक एनर्जी संस्थान में इंजीनियर थे और उसी की कालोनी में अपना घर था । अपनी शुरुआती पढाई चेम्बूर में ही हुई । कालखंड अलग रहा पर प्रणय भी मुंबई में पढ़े और उनकी संगत बहुत से फिल्मी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की रही । पर हमने तो दूर से ही देखा हलाकि रोज स्कूल जाते समय गुजरना राजकपूर के घर के बगल से ही होता था ।
बहुत दिन बाद चुनाव के इस दौर में कल रात देर तक तंदूर पार्टी चली । देश में तंबाखू की खिलाफ अभियान चलने वाले प्रणय लाल लखनऊ आए थे तो आशुतोष ने उनके लिए अपनी भव्य बालकनी में जो पार्टी रखी वह देर तक चली .लकड़ी के कोयले की अंगीठी के चारों ओर बैठकर मुगलाई व्यंजनों का स्वाद लिया जा रहा था जो आशुतोष की जीवनसंगिनी 'क्षमता ' तैयार करवा रही थी । छठी मंजिल के इस पैंट हाउस की बालकनी ज्यादा नजर आती है जिसमे दुर्लभ पेड़ पौधे भी है और फूलों से गुलजार है । गमले में लगी स्ट्राबेरी के फल भी बड़े नजर आ रहे थे । अंगीठी की तपिश रात की ठंड का अहसास नहीं होने दे रही थी । वे लोग फलों का जूस ले रहे थे तो मै बकार्डी । प्रणय काफी देश से ज्यादा विदेश में ज्यादा व्यस्त रहते है और उनके शौक काफी हद तक अपने से मिलते है ,मसलन घूमने ,पढने ,पर्यावरण पर काम करने आदि । पर वे अच्छे चित्रकार भी है ,यह जानकारी मुझे कल ही मिली जब उन्होंने १९९२ में मुक्तेश्वर के डाक बंगले में लगी दुर्लभ पेंटिंग का जिक्र किया । मेरा बचपन भी मुंबई में गुजरा है और प्रणय ने भी पहले दक्षिण अफ्रीका और फिर बचपन मुंबई में गुजारा .वे उसी स्कूल में पढ़े जिसमे अभिषेक बच्चन और स्वेता के साथ बहुत से अभिनेता और अभिनेत्री पढ़ चुके है । बाद में स्कूल प्रबंधन अमिताभ बच्चन के अहंकार पर भारी पड़ा और उन्हें बच्चों को वहां से हटाकर स्विट्जरलैंड भेजना पड़ा ,यह सब बातों बातों में पता चला । इस बीच 'क्षमता 'के बनाए तंदूरी मुगलाई व्यंजनों ने सभी को ज्यादा खाने पर मजबूर कर दिया । वे बहुत अच्छा खाना बनाती है,खासकर बिरयानी और तली हुई रोहू। हालांकि हिंदुस्तान के इलाहबाद के संपादक दया शंकर शुक्ल सागर के साथ पिछली बार आशुतोष बरसात के दिनों जब अपने राइटर्स काटेज में रुके थे तो उन्होंने जबरजस्त ठंड के बीच जो अफगानी चिकन टिक्का बनाया था वह कभी भूल नहीं पाते है । एक वजह यह भी थी कि तब बूंदाबांदी के बीच बगीचे में बैठकर कार्यक्रम चल रहा था और कोई स्वीट डिश न मिलने पर रात में डेलिशियस प्रजाति के बहुत ज्यादा मीठे सेब तोड़कर से इसकी भरपाई की गई थी । इसलिए हम दोनों को अच्छा खानसामा मानते है।
प्रणय देश विदेश काफी घूमे है और बताया कि स्विजरलैंड से कही अच्छा अपना सिक्किम है ।फिर पर्यावरण पर बात हुई और मैंने केरल के समुन्द्र तटों पर लिखी अपनी रपट का जिक्र किया जो जनसत्ता में आने वाली है तो वे गोवा पर लौटे । बताया कि गोवा के कुछ समुंद्र तटों पर ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है । उनका फार्म हाउस समुंद्र से कुछ दूर है । ऐसा उन्होंने जानबूझ कर किया क्योकि समुंद्र की खारी हवाओं से उनकी पेंटिंग और पुस्तकें ख़राब हो सकती थी ।
इस पर जो चर्र्चा बढ़ी तो फिर मुंबई पर ख़त्म हुई । बरसात के दिनों में वहा स्कूल जाने के लिए गम बूट ,रेन कोट और छाता जरुरी होता था पर मै जब भी घर लौटता तो भीग कर और गम बूट में पानी भर कर । रोज डांट खाने के बाद भी पूरी बेशर्मी के साथ बरसात में भीगना जारी रहता । अब वह बारिश कम ही दिखती है ।इसलिए वह मुंबई भूलती नहीं .
अंबरीश कुमार

प्रियंका में इंदिरा गांधी को देखता रायबरेली


अंबरीश कुमार
रायबरेली जनवरी । प्रियंका नहीं, यह तो कांग्रेस की दूसरी इंदिरा गांधी है । यह बात रायबरेली पहुंची प्रियंका गांधी से आज सलोन विधान सभा क्षेत्र मिलने आए पिचहत्तर साल के जगदंबा प्रसाद ने कही । यह टिपण्णी प्रियंका गांधी के राजनैतिक करिश्मा की एक बानगी है । प्रियंका गांधी आज दोपहर मुंशीगंज से यहाँ पहुंची और राजीव गांधी ट्रस्ट के अतिथि गृह में विभिन्न विधान सभा क्षेत्रों से आए पार्टी कार्यकर्ताओं से मिली । अंदाज वही पुराना,जिसमे लोग उनके भीतर इंदिरा गांधी देखते है । हावभाव वही ,बालों की शैली वही और भीड़ में उसी तरह लोगों के बीच बिना किसी झिझक पहुँच जाना। मुस्कुराते हुए लोगों से उनका हाल चाल लेना और जो दिक्कते आ रही है उनकी जानकारी लेना। इससे पहले प्रियंका ने यह भी कहा कि वे रायबरेली अमेठी की जिम्मेदारी निभाएंगी पर अगर राहुल गांधी कहेंगे तो आगे की भी सोची जाएगी । पर कांग्रेस के जानकारों के मुताबिक पार्टी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को सत्ता का दूसरा केंद्र नही बनाएगी । प्रियंका गांधी कांग्रेस का अंतिम ब्रह्मास्त्र है इसलिए फिलहाल मौजूदा चुनाव में भी उनकी सीमा रेखा तय है । प्रियंका गांधी सिर्फ रायबरेली अमेठी तक सीमित रहेंगी पर वे समूचे प्रदेश की नजरों में बनी रहेंगी यह भी सच है ।
कांग्रेस के मीडिया प्रबंधन के सर्वेसर्वा राजबब्बर ने जनसत्ता से कहा -यह बात सही है कि आगे बढती कांग्रेस के चुनाव प्रचार में प्रदेश के बहुत से चुनाव क्षेत्रों से प्रियंका गांधी को प्रचार में भेजने की मांग हो रही है पर इस बारे में पार्टी ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है। वे परंपरागत रूप से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्र का काम संभालती रही है और इस बार भी वहा वे पुरानी जिम्मेदारी निभा रही है । राजबब्बर इसके आगे इस विषय पर कुछ बोलने को तैयार नहीं थे । इसी से यह अंदाज लगया जा सकता है यह मामला कितना संवेदनशील है ।
वैसे भी जब मामला राहुल ,सोनिया और प्रियंका गांधी का आता है तो कांग्रेस के प्रवक्ता हाथ खड़े कर देते है । पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा -उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे देश में में सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी पार्टी में सत्ता का केंद्र है । ऐसे में अगर प्रियंका गांधी को भी मैदान में उतार दिया गया तो सत्ता का एक अलग केंद्र बन जाएगा और राहुल गांधी के लिए राजनैतिक मोर्चे पर दिक्कत पैदा हो जाएगी । मीडिया से लेकर विपक्ष तक राहुल और प्रियंका के राजनैतिक करिश्मे की तुलना कर विवाद पैदा कर देगा । इसलिए प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी तक सीमित करने का फैसला पार्टी और परिवार दोनों के लिए बेहतर है । खुद प्रियंका गांधी भी इस सीमा के पक्ष में रही है । पिछले लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने इस संवाददाता से कहा था -मै राजनीति में नही हूँ ,पर अपने परिवार की मदद करने आई हूँ और आगे भी आती रहूंगी । प्रदेश के दूसरे हिस्सों में प्रचार करने के बारे में पूछे गए सवाल पर प्रियंका ने कहा, मैं अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है। इस वक्त मैं यहां कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने आई हूं। बाद में मैं और भाई :राहुल: मिल बैठकर तय करेंगे।पर प्रियंका गांधी ने आगे यह भी जोड़ा -अपने भाई की मदद करने के लिये मैं कुछ भी करूंगी। वह जो कहेंगे मैं करूंगी।
प्रियंका को लेकर रायबरेली के लोग काफी संवदनशील है ।उनमे लोगों को इंदिरा गांधी नजर आती है । सिर्फ शक्ल सूरत ही नही हावभाव और तेवर में भी । ऐसा आक्रामक तेवर जो इंदिरा गांधी में दिखता था । वर्ष १९९९ में जा कांग्रेस के दिग्गज नेता अरुण नेहरु गांधी परिवार के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे । तब प्रियंका गांधी ने रायबरेली में कुछ जनसभाए की । हरचंदपुर की जनसभा में प्रियंका गांधी ने नाराज होकर लोगों से कहा था -आप लोगों ने इस गद्दार को यहाँ घुसने कैसे दिया । यह वही अंदाज था जो रायबरेली के लोग इंदिरा गांधी में देखते थे और आज प्रियंका गांधी में देख रहे है । यही वजह है कि प्रियंका गांधी स्टार प्रचारकों पर भारी पद रही है और उनकी मांग बढ़ रही है ।
जनसत्ता

Monday, January 16, 2012

हर दल पर भारी पड़ी जाति बिरादरी

अंबरीश कुमार
लखनऊ जनवरी । उत्तर प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनाव में हर बार की तरह सभी दलों पर जाति बिरादरी भारी पड़ती नजर आ रही है । दूसरे चरण के नामांकन के साथ ही आज से चुनाव घमासान तेज हो गया है । ज्यादातर दलों के उम्मीदवारों की सूची आ जाने के बाद सभी पार्टियों के दिग्गज नेता मैदान में उतर चुके है । इसके साथ ही राजनैतिक दलों सोशल इंजीनियरिंग भी साफ़ हो गई है । राजनैतिक दलों पर जाति बिरादरी किस कदर भारी पड़ी है यह उनकी सूची से जाहिर हो गई है । बहुजन समाज पार्टी ने इस बार पिछड़ी जाति के ११३ उम्मीदवार खड़े किए तो भाजपा के अबतक घोषित ३८१ उम्मीदवारों में १२३ पिछड़ें उम्मीदवार खड़े किए है तो समाजवादी पार्टी ने ११३ और कांग्रेस ने अबतक घोषित ३२५ उम्मीदवारों में से ८७ उम्मीदवार पिछड़ी जातियों के दिए है । कांग्रेस जिसका मुख्य आधार दलित ,ब्राह्मण और मुस्लिम होते थे उसकी सोशल इंजीनियरिंग में यह बड़ा बदलाव माना जा रहा है तो अगड़ों में लोकप्रिय रही भाजपा भी इस बार पिछड़ों को ज्यादा तवज्जो दे रही है । इन पिछड़ों में पिछड़ों के साथ अति पिछड़े भी शामिल है जिनका वर्चस्व बढ़ रहा है । पर समाजवादी पार्टी ने इसे पिछड़ों के खिलाफ साजिश बताते हुए कहा -ये पार्टियाँ हमारे परम्परागत जनाधार और पिछड़ों की एकता को तोड़ने का प्रयास कर रही है इनका पिछड़ों के हित से कोई लेना देना नहीं है ।
गौरतलब है कि बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का शुरूआती नारा था जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी । इस हिसाब से बसपा ने शुरू में जो जमीनी काम किया उसमे दलितों के साथ पिछड़ों ,अति पिछड़ों और मुसलमानों की हिस्सेदारी बधाई और उसका राजनैतिक फायदा भी लिया । पिछले दो दशक में उत्तर प्रदेश ने मंडल ,मंदिर और दलित ऊभार का जो दौर देखा उसपर आज भी मंडल का असर अब दूसरे ढंग से सामने आ रहा है । राजनैतिक टीकाकार वीरेंद्र नाथ
भट्ट न जनसत्ता से कहा - यह नया उभार दरअसल पिछड़ें तबके में मलाईदार वर्ग के खिलाफ गरीब तबके के टकराव का नतीजा है जो बिहार में हो चुका है । वहां यादवों का वर्चस्व कुर्मी ,अति पिछड़ी जातियों और महा दलित ने तोडा वह अब उत्तर प्रदेश में दोहराया जा रहा है । यही वजह है कि सभी राजनैतिक दल इन जातियों के उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में वोट दे रहे है ।
सामाजिक समीकरण को लेकर सभी पार्टियों ने विधान सभा के हिसाब से आंकड़े इकठ्ठा कर पहले उम्मीदवार तय किए और अब प्रचार की भी रणनीति बना रहे है ।भाजपा ने भी इस दिशा में काफी काम किया है और यही वजह है कि से जातीय समीकरण के चालते काफी उम्मीद है । दरअसल पिछड़ों में ज्यादा बड़ी हिस्सेदारी और ताकत अबतक यादव और कुर्मियों के पास रही है जिसे चुनौती देने के लिए अति पिछड़ों को गोलबंद किया जा रहा है । यादव और अन्य पिछड़ों का सबसे ज्यादा हिस्सा मुसलमानों के साथ समाजवादी पार्टी के पक्ष खड़ा है जिसकी वजह से दूसरी पार्टिया इस समीकरण को तोड़ने और अति पिछड़ों को गोलबंद करने का प्रयास कर रही है । समाजवादी पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -यह इस सब दलों की साजिश है जो पिछड़ों की एकता को तोड़ने के लिए समूचे देश में भ्रम फैला रही है । उम्मीदवार बनाकर और उनकी जातियां बताकर बसपा ,भाजपा और कांग्रेस सभी पिछड़े तबके को गुमराह कर रही है । राहुल गाँधी तो सैम पित्रोदा की जाति बढई विशकर्मा बताते है । इससे इन दलों का चरित्र साफ हो जाता है । मंडल के लिए मुलायम सिंह एक नहीं कई बार जेल गए । इसलिए इन दलों से पिछड़ों और अति पिछड़ों को ज्यादा सावधान रहना चाहिए । jansatta

Saturday, January 14, 2012

अब पिछड़ों और अति पिछड़ों को गोलबंद कर रही है भाजपा

अंबरीश कुमार
लखनऊ , १४ जनवरी । बाबू सिंह कुशवाहा के झटके से उबर कर भारतीय जनता पार्टी फिर से पटरी पर लौट रही है । पार्टी का चुनाव अभियान अब जोर पकड़ने लगा है ।टिकटों के बंटवारे को लेकर जो खटास पैदा हुई उसे दूर कर पार्टी के रणनीतिकार विधान सभा की जातीय समीकरण के हिसाब से अपनी रणनीति बना रहे है । पार्टी का फोकस इस बार पिछड़े और अति पिछड़ें तबके पर ज्यादा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद कलराज मिश्र ने जनसत्ता से कहा -पिछड़े और अति पिछड़े पार्टी का परंपरागत आधार रहे है पर इस बार इनका व्यापक समर्थन मिलने की उम्मीद है । केंद्र सरकार ने पिछड़ों के आरक्षण में साढ़े चार फीसद अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित कर पिछड़ों का हिस्सा विभाजित किया है जिससे इस बिरादरी के लोग आहत है। इसे हम चुनाव के दौरान पिछड़े तबके के लोगों को बताएंगे । वैसे भी जिस तरह कुशवाहा को लेकर पार्टी को निशाना बनाया गया उससे पिछड़ी जातियां पार्टी के पक्ष में गोलबंद हो रही है ।
गौरतलब है कि कुशवाहा को लेकर भाजपा पर चौतरफा हमला अगड़ी जातियों के नेताओं का ज्यादा हुआ था और निशाने पर विनय कटियार थे । दूसरे बाबू सिंह कुशवाहा जो पहले कभी कुशवाहा बिरादरी के बहुत असरदार नेता भले न रहे हो पार्टी में आने के बाद जिस तरह वे मीडिया में आलोचना के केंद्र बने उससे वे गाँव गाँव चर्चा में भी आ गए । अब वे उत्तर प्रदेश की पिछड़ा राजनीति में कुशवाहा बिरादरी का राजनैतिक चेहरा भी बन गए है । वे एनआरएचएम घोटाले में जेल भी जा सकते है बावजूद इसके वे बिरादरी के नेता के रूप में स्थापित हो चुके है ।
उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और अति पिछड़ों का बड़ा समर्थन भाजपा को राम जन्मभूमि आन्दोलन के दौरान मिला जब येजतियाँ आक्रामक तेवर के साथ पार्टी से जुडी । इनमे यादव को छोड़ बाकी पिछड़े और अति पिछड़े बड़ी संख्या में थे । अहीर ,यादव ,ग्वाला ,कुर्मी के आलावा लोध लोधा ,लोधी राजपूत ,पाल बघेल ,निषाद ,काछी ,कुशवाहा लोनिया ,नोनिया ,मौर्य ,लोहार जैसी कई अति पिछड़ी जातियां भाजपा के साथ बाद में भी जुडी रही । मंदिर आन्दोलन के बाद के बाद कल्याण सिंह की नई पहचान पिछड़ों के कद्दावर नेता के रूप में होने लगी । कल्याण सिंह ने जब भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोला तो इन्ही पिछड़ी जातियों की नाराजगी के चले पार्टी कमोवेश हाफ हो गई थी । इसलिए पिछड़े वोटों की ताकत भाजपा ठीक से जानती है । उत्तर प्रदेश में कुशवाहा बिरादरी का वोट करीब साढ़े तीन फीसद माना जाता है । जबकि अहीर ,यादव ,कुर्मी और पटेल आदि उन्नीस फीसद से ज्यादा है और कुर्मी ,मल्ल-सैन्थवार आदि करीब सात फीसद है । इसीलिए भाजपा और कांग्रेस इस बार पिछड़ों और अति पिछड़ों पर ज्यादा जोर दिए हुए है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -पिछड़ी जातियों का झुकाव भाजपा के पक्ष में पहले भी रहा है और इस बार पार्टी इन्हें और बड़ी संख्या में जोड़ने की कोशिश कर रही है । कुशवाहा को जिस तरह निशाना बनाया गया उससे इस बिरादरी का भाजपा को बड़े पैमाने पर समर्थन मिलना तय है ,बुंदेलखंड के नतीजे इसकी पुष्टि कर सकेंगे ।
दूसरी तरफ पार्टी इस बार मुलायम सिंह के पिछड़ा मुस्लिम गठजोड़ को तोड़ने का भी प्रयास कर रही है । पार्टी में पिछड़े तबके की नेता के तौर पर उभरी उमा भारती ने इसकी शुरुआत कर दी है । वे साफ़ तौर पर कह रही है कि पिछड़ों के आरक्षण में मुसलमानों का हिस्सा देकर पिछड़ों का हक़ मारा गया है और पिछड़े नेता खामोश है । कलराज मिश्र भी इसी तरफ इशारा कर रहे है । कलराज मिश्र ने कहा -हम पिछड़ों को यह बताएंगे कि किस तरह कांग्रेस ने उनके हक़ में सेंध लगाकर मुसलमानों के तुष्टिकरण का प्रयास किया है ।इस बारे में उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति करने वाले नेता खामोश क्यों है ? कलराज मिश्र ने यह भी कहा कि कुशवाहा का मुद्दा अब समाप्त हो चुका है । वे पार्टी में न होते हुए पार्टी का प्रचार कर रहे है ,इसका असर पड़ना तय है। भाजपा का पीछे तबके में पहले से जो असर रहा है वह और व्यापक होने जा रहा है । jansatta

Friday, January 13, 2012

अपने जीवन के छप्पन बसंत पूरे करने जा रही है मायावती


अंबरीश कुमार
लखनऊ , जनवरी । उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती आने वाली पंद्रह जनवरी को अपने जीवन के छप्पन बसंत पूरे करने जा रही है । पर इस बार उनका जन्म बहुत सादगी से मनेगा क्योकि इस बार चुनाव आयोग की इसपर भी कड़ी नजर है । इस बार उनके जन्म दिन पर न तो कोई सरकारी योजनाएं शुरू होगीं न कोई उपहार आएगा और न बड़े बड़े सरकारी विज्ञापन छपेंगे । पिछले कई वर्षों में मायावती के जन्मदिन के मौके पर पांच हजार करोड़ से ज्यादा की योजनाए शुरू की जाती रही है । पर मायावती का जन्मदिन एक राजनैतिक कार्यक्रम भी रहा है जिसके जरिए वे दलित बिरादरी को अपनी ताकत का अहसास कराती रही है ।सन २००८ से पहले उनका जन्मदिन आर्थिक सहयोग दिवस के रूप में मानता था जिसमे हर वर्ग हर तबके के लोग अपनी श्रद्धा या फिर सत्तारूढ़ दल के बाहुबलियों ,अफसरों के जरिए पैदा हुई श्रद्धा के चलते आर्थिक योगदान देते थे । पर एक इंजीनियर की ढंग से आर्थिक सहयोग न करने पर जब पीट पीट कर हत्या कर दी गई तो इस परिपाटी को बंद कर दिया गया ।
गौरतलब है कि पहले खुद मायावती ने एक बार अपने समर्थकों से कहा था -मूर्तियों पर क्यों चढ़ावा चढाते हो मै तो जिंदा देवी हूँ । इसके बाद मायावती पर चढ़ावे का जो दौर शुरू हुआ वह हर साल नई चर्चा लेकर आता था । कभी वे अपनी विशेष वेशभूषा के लिए चर्चा में रही तो कभी हीरों के हार व अन्य आभूषण को लेकर। कभी सूबे के डीजीपी उन्हें जन्मदिन पर केक खिलाकर विवादों में फंसे तो कभी मुख्य सचिव । पर यह भी सही है कि समूचा सरकारी अमला उनके जन्मदिन के मौके पर झोंक दिया जाता था । कई तरह की सरकारी योजनाए घोषित की जाती । जिनमे दलित वंचित और गरीब तबके के लिए कई तरह की योजनाए रही है । इनमे सावित्री बाई फुले से लेकर अन्य दलित विभूतियों के नाम वाली योजनाए महिलाओं ,लड़कियों और आम तबके के लिए रही है । इनमे कांशीराम शहरी आवास योजना से लेकर जननी सुरक्षा योजना आदि शामिल है जिनके जरिए मायावती दलित तबके को बुनियादी सुविधाए देने का प्रयास करती रही है । हालाँकि कुछ विभाग इसमे झांसा भी देते रहे है जिनमे लखनऊ विकास प्राधिकरण का स्थान सबसे ऊपर रहा है जो हरसाल मायावती के नाम पर योजनाए शुरू करता और बाद में ठप कर देता सिर्फ मलाईदार तबके की योजनाओं पर इसन ज्यादा जोर दिया । पर मायावती इस प्रयास में जरुर रही कि उनके जन्मदिन के बहाने ही सही दलितों को एक राजनैतिक सन्देश दिया जा सके । दलित मायावती की राजनीती का मुख्य आधार है और जन्मदिन के जरिए वे इस बिरादरी को स्वाभिमान और आत्मसम्मान का नया मुहावरा देती रही है । हालांकि विपक्ष इसे नहीं मानता है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -मायावती के जन्मदिन पर इस बार कोई वसूली नहीं हो सकेगी और न कोई तामझाम क्योकि चुनाव आयोग की नजर है । पर बसपा तो चुनाव आयोग के फैसले को भी अपने दलित एजंडा से जोड़कर चल रही है । तभी पार्टी के प्रमुख सिपहसलार सतीश चन्द्र मिश्र ने कहा -चुनाव आयोग भेदभाव कर रहा है ।
मुख्यमंत्री मायावती दलित की बेटी हैं और चौथी बार जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी हैं। उनके शासनकाल में दबे, कुचले, शोषितों व दलितों के स्वाभिमान को जगाने और जनचेतना कायम रखने का व्यापक रूप से कार्य किया गया है। उन्होंने कहा कि पार्कों व स्मारकों में स्थापित मुख्यमंत्री की प्रतिमाएं व हाथी की मूर्तियां किसी भी प्रकार से मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर रही हैं।jansatta

Thursday, January 12, 2012

उत्तर प्रदेश के चुनाव में टीम अन्ना अब पिछड़ गई

अंबरीश कुमार
लखनऊ , जनवरी । उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव गरमा चुका है और इन चुनाव में जन लोकपाल व भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने वाली फिलहाल टीम अन्ना इस चुनाव में पिछड़ चुकी है भले मीडिया में उसकी मौजूदगी बरक़रार हो । प्रदेश की ४०४ विधान सभा सीटों में से प्रमुख दलों के महत्वपूर्ण नेता कड़ाके की इस ठंढ में आधी से ज्यादा सीटों का चुनाव प्रचार कर चुके है ।दूसरी तरफ इन चुनावों में कांग्रेस को साफ़ कर देने का दावा करने वाली टीम अन्ना के किसी भी सदस्य का कोई भी चुनावी दौरा अब तक नहीं लगा है,यह एक कडवी सच्चाई है । टीम अन्ना ने लोकपाल बिल पास न होने की स्थिति में कांग्रेस को हराने के साथ ही जयप्रकाश आंदोलन के विभिन्न चुनाव सुधार कार्यक्रमों को लागू करने को लेकर इन चुनाव में दबाव बनाने का भी एलान किया था पर वह पहल भी नजर नहीं आ रही है । ऐसे में अगर टीम अन्ना जल्द से जल्द भी इन चुनाव में दखल करने का प्रयास करे तो भी विधान सभा की आधी सीटों तक पहुंचना संभव नहीं होगा । प्रदेश के अस्सी फीसद गांवं में जहां रात के एक दो बजे बिजली आती हो वहां चैनल आदि के माध्यम से भी चुनावी दखल देना संभव नहीं है। पहले जयप्रकाश आंदोलन और फिर अन्ना आंदोलन के दौरान प्रमुख भूमिका निभाने वाले सर्व सेवा संघ के सचिव राम धीरज ने जनसत्ता से कहा -यह बात सच है कि अब तक हम लोग इन चुनाओं में प्रभावी दखल नहीं दे पाए है ,और न ही टीम के प्रमुख नेताओं का कोई कार्यक्रम अभी तैयार हुआ है । पर जल्द ही इस दिशा में पहल होगी ।
गौरतलब है कि लखनऊ में अन्ना आंदोलन के चालीस जिलों के कार्यकर्ताओं की बैठक आठ जनवरी को हुई थी जिसमे मनीष सिसोदिया ,संजय सिंह आदि शामिल हुए थे जिसमे उत्तर प्रदेश के लोगों ने जमीनी हकीकत को देखते हुए सिर्फ कांग्रेस का विरोध न किए जाने का सुझाव दिया जिसे अंतत हर स्तर पर मन भी लिया गया । पर अब चुनाव में जब किसी को हराने या जिताने की अपील न हो तो अन्ना आंदोलन की भूमिका मतदाता मंच के कार्यक्रम लागू कराने वाले संगठन जैसी हो जाएगी । इस लिए चुनाव में जहां भीषण राजनैतिक टकराव हो रहा हो वहा टीम अन्ना की भूमिका भी बहुत सीमित हो जाने की आशंका है। इस संकट को आंदोलन के लोग समझ भी रहे है । रजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -टीम अन्ना ने राजनैतिक खेल में फंसकर जो गलती की उसका खामियाजा उसे उठाना पड़ रहा है । इस आंदोलन की एक छवि संघ समर्थित आंदोलन की भी हो चुकी है जिससे दिक्कते आ रही है । फिर कुछ फैसलों को बार बार बदलने से भी साख ख़राब हुई है । उत्तर प्रदेश में कई कार्यक्रम घोषित होने के बावजूद अन्ना हजारे नहीं आए जबकि यहाँ आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी सरकार थी ।यह वजह है कि अब उत्तर प्रदेश में इन्हें ज्यादा समर्थन नजर नहीं आ रहा है । यह उत्तर प्रदेश है जहां जहां भ्रष्टाचार से कुशवाहा का मुद्दा शुरू होता है और कुशवाहा बिरादरी पर आकर ख़त्म हो जाता है ।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में अंतत राजनैतिक विभाजन जाति बिरादरी पर ही हो रहा है । ऐसे में दूसरे मुद्दे चर्चा तक तो चलते है पर जब मुहर या बटन दबाने की बारी आती है तो मामला बदल जाता है। बड़े स्तर पर तो प्रदेश में जातियां ही लड़ रही है इसलिए सैम पित्रोदा यहां विशकर्मा , बढई बताए जाते है तो प्रदेश के सबसे बड़े घोटाले के सबसे बड़े अभियुक्त कुशवाहा बिरादरी के मान सम्मान का मुद्दा बन जाते है । इसी तरह बाहुबली भी अंत में अपनी जातियों के प्रतीक बनकर उभरते है। ऐसे में टीम अन्ना जिसे जमीनी राजनीति का कोई अनुभव नहीं है उसे यहाँ बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। jansatta

Wednesday, January 11, 2012

मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में पलीता लगा रहे है बसपा के बागी क्षत्रप

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,११ जनवरी ।मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में बसपा के बागी क्षत्रप ही पलीता लगा रहे है । पिछला विधान सभा चुनाव मायावती बहुजन के साथ सर्वजन को खड़ा कर जीती थी । अबकी सर्वजन ने अलग रास्ता पकड़ लिया है । इसमे सर्वजन का समर्थन जुटाने वाले बसपा के ज्यादातर क्षत्रप बागी हो चुके है । यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को इस चुनाव में अपनों से ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है खासकर जो अबतक उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे और पिछली बार उनकी ऐतिहासिक जीत के हिस्सेदार थे ।मायावती अबतक सौ से ज्यादा विधायकों का टिकट काटकर ज्यादातर को बाहर का रास्ता दिखा चुकी है और बहुत से खुद ही बाहर हो गए है या दल बदल लिया है। ऐसे मंत्रियों की संख्या दो दर्जन से ज्यादा है जिसमे कई मायावती सरकार के बहुत ही महत्वपूर्ण मंत्री और सरकार के रणनीतिकार भी रहे है।महत्वपूर्ण मंत्रियों में बाबू सिंह कुशवाहा ,अनंत कुमार उर्फ़ अंतु मिश्र ,दद्दन मिश्र ,दद्दू प्रसाद ,राजेश त्रिपाठी ,अवध पाल सिंह यादव ,राकेश धर त्रिपाठी ,अवधेश कुमार कुमार ,अब्दुल मन्नान ,राजपाल त्यागी ,सुभाष पांडेय,अनीस अहमद खान उर्फ़ फूल बाबू , बादशाह सिंह और फ़तेह बहादुर सिंह शामिल है।यह सूची लम्बी है जिसमे बड़ी संख्या में विधायक और सांसद भी है । प्रदेश स्तर के बाहुबली भी है तो इलाके के डान भी । इनमे अगड़े है ,पिछड़े है तो अति पिछड़े भी है जो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में पलीता लगा रहे है ।
इन मंत्रियों में कई मंत्री ,विधायक और सांसद अपनी ही नही बल्कि आसपास की अन्य सीटों को जातीय समीकरण और अपने आभा मंडल के चलते प्रभावित कर रहे है। जिसकी वजह से बहुत कम अंतर से पिछली बार बसपा ने जो लगभग सौ सीटें जीती थी वे इस बार हाथ से निकल सकती है यह एक बड़ा खतरा बसपा पर मंडरा रहा है । पूर्वांचल में मायावती सरकर में मंत्री रहे फ़तेह बहादुर सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता ,पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के पुत्र है। वीर बहादुर सिंह का पूर्वांचल की राजनीति में अलग स्थान रहा है और इसका फायदा भी फ़तेह बहादुर लेते रहे है । अब उनकी बगावत से बसपा के वोटों पर असर पड़ना तय है । जिन मंत्रियों के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान के चलते इस बार माहौल माकूल नहीं था वे भी सरकार से बाहर होने के बाद कुछ राहत महसूस कर रहे है क्योकि अब वे सत्ता का हिस्सा नहीं है। ऐसे में वे अपनों से फिर ताकत हासिल कर रहे है। मायावती पिछली बार जब पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई थी तो उस समय दलितों के साथ उन्हें अगड़ी और अन्य पिछड़ी जातियों का भी वोट मिला था जिसने सत्ता का समीकरण बानाया । इसमे अंतिम समय में मिलने वाला दो तीन फीसद वह वोट भी था जिसने मुलायम सिंह को हराने के लिए उन्हें वोट किया । यह वही वर्ग था जिसका सबसे पहले मायावती से मोहभंग हुआ और इसका असर पिछले २००९ के लोकसभा चुनाव में दिखा जब विधान सभा सीटों के हिसाब से मायावती लगभग सौ सीटे गंवा चुकी थी । मायावती की राजनीति को सबसे बड़ा झटका तभी लग चुका था जिसका फायदा कांग्रेस खासकर राहुल गांधी साफ सुथरे उम्मीदवारों को टिकट देकर उठाया था । कांग्रेस को दूसरा बड़ा फायदा समाजवाद पार्टी में शामिल हुए कल्याण सिंह के चलते हुआ क्योकि मुसलमान सपा से नाराज होकर कांग्रेस की तरफ आया । इसमे आजम खान ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी । ऐसे में बसपा का आकलन पिछले विधान सभा सीटों की बजाय लोकसभा में बची हुई विधान सभा सीटों के लिहाज से किया जाना चाहिए । इन सीटों में भी दलितों के साथ अन्य जातियों का समीकरण बना था जो अब टूट रहा है । कही पर बागी नेताओं की जाति इस समीकरण को तोड़ रही है तो कही ऊनका निजी असर । पूर्वांचल में अगर फ़तेह बहादुर सिंह उदहारण है तो बुंदेलखंड में बाबू सिंह कुशवाहा से लेकर बादशाह सिंह । इसी तरह पश्चिम और मध्य उत्तर प्रदेश के कई नेता बसपा का जनाधार कमजोर कर चुके है । हरदोई के नरेश अग्रवाल ऐसे ही उदाहरण है। इस तरह सत्तर से ज्यादा सीटों पर बसपा को अपने बागियों से मुकाबला करना पड़ रहा है । ये बागी खुद जीतें या न जीते बसपा को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे । मायावती को ज्यादा मशक्कत इन नेताओं की वजह से करनी पड़ रही है । jansatta

बर्फ उठाए हुए ये दरख्त


अंबरीश कुमार
नैतीताल /रामगढ
बर्फ उठाए हुए ये दरख्त देख कर आप पहाड़ की नैसर्गिक खूबसूरती में खो जाएंगे। पहाड़ पर सभी जगह बर्फ गिर चुकी है और नजारा जन्नत का है । सामने की चोटियाँ तो हमेशा ही बर्फ से ढंकी रहती थी पर अब तो चीड ,बुरांस और देवदार के दरख्त भी बर्फ के नजर आते है । देवदार का पेड़ जब बर्फ को अपने आगोश में लेता है तो पहले वह उठा रहता है पर जैसे ही बर्फ का बोझ बढ़ने लगता है देवदार की की टहनियां नीचे झुकने लगती है । यह देखते बनता है । बर्फ की सफेदी से ऊपर तीन की हरी छत पूरी तरह सफ़ेद हो गई है तो सेव और आडू के पेड़ पर भी बर्फ ही बर्फ नजर आती है । जंगल की तरफ जाने पर यह नजारा देखने वाला होता है । ठंड इतनी है कि पशु पक्षी भी दुबके हुए है और अपने दोनों कुत्ते अलाव की जलती लकड़ी के पास ही बोरे पर पसरे हुए है ।
दिल्ली से लेकर लखनऊ तक से छह सात घंटे में कोई भी इन जगहों पर पहुँच सकता है । गोपाल दास तो रायपुर से पिछली बार सुबह की फ्लाईट से से दिल्ली पहुंचे और शाम को राइटर्स काटेज पहुँच गए थे हालाँकि अपनी मुलाकात भीमताल के पास हुई क्योकि मै लखनऊ के लिए निकल चुका था । इस पहाड़ पर बर्फ का इंतजार सिर्फ सैलानी ही नहीं करते बल्कि किसान और बागवान भी करते है । क्योकि जीतनी बर्फ पड़ेगी फलों की पैदावार भी उतनी ही अच्छी होगी पर पहाड़ का जीवन इस समय बहुत कष्टमय हो जाता है । जलावनी लकड़ी की कमी और कड़ाके की ठंड का असर गरीबों पर ज्यादा पड़ता है । शाम पांच बजे ही यहाँ के बाजार में सन्नाटा छा जाता है और लोग घरों में दुबक जाते है । रिसार्ट के डाइनिंग हाल में फायर प्लेस में जलती लकड़ियों के चारों ओर कुछ सैलानी अपनी गिलास के साथ शाम से ही जम जाते है तो कुछ करी की खिडकियों से सामने के बर्फ से लदे देवदार को निहारते नजर आते है ।
बर्फवारी के बाद यहां के ज्यादातर रास्तों में फिलसन बढ़ गई है, जिसके कारण कई लोग घायल भी हो गए । यहां बर्फवारी के बाद रात्रि में पाला पड़ने से बर्फ जम गयी।बिड़ला मार्ग, रैमजे मार्ग, राजभवन मार्ग, किलबरी मार्ग में फिसलन बढ़ी है।रामगढ में गागर से नीचे उतरने में भी काफी दिक्कत आई थी पर अब हालत सामान्य हो गए है ।

बदल गई है राहुल गांधी की भाषा

अंबरीश कुमार
आजमगढ़ ,जनवरी । उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी अब मायावती और मुलायम को सीधी चुनौती दे रहे है । पूर्वांचल दौरे पर निकले राहुल गांधी की भाषा तेवर और अंदाज अब बदल चुके है । अब वे इंदिरा गांधी की तरह विरोधियों पर सीधा हमला कर रहे है । राहुल ने जब राजनीति में कदम रखा और उत्तर प्रदेश के राजनैतिक अखाड़े में उतरे तब से इस संवाददाता को उनकी राजनीति को करीब से देखने का मौका मिला है। अब न उन्हें बाबा कहा जा सकता है और न ही राजनीति में बच्चा माना जा सकता है। आज आजमगढ़ की जनसभा में जिस अंदाज में उन्होंने मुसलमानों के सवाल पर प्रदेश के दोनों बड़े नेताओं को घेरा वह बेमिसाल था। राहुल गांधी ने मुसलमानों के आरक्षण का सवाल उठाते हुए कहा -हमने जब आरक्षण दिया तो ये कह रहे है कम है अठारह फीसद देना चाहिए। मै पूछता हूँ जब ये सत्ता में थे ,तीन बार थे तो क्यों नहीं आरक्षण दिया। मायावती ने क्यों नहीं दिया । देना है तो अपने घोषणा पत्र में लिखे कि सत्ता में आने के बाद मुसलमानों को अठारह फीसद आरक्षण देंगे । राहुल गांधी की बात लोग इसलिए भी गंभीरता से ले रहे है क्योकि आजादी के बाद कांग्रेस के संभवत पहले बड़े नेता है जो गांव ,गरीब और किसान की सिर्फ बात नहीं कर रहे है बल्कि उनके बीच जाकर राजनीति का ककहरा भी सीख रहे है ।
राहुल गांधी के तेवर में यह बदलाव लोगों को भीतर तक छू जा रहा है । राहुल गांधी अपनी सभाओ में कहते है -क्या आपने कभी मायावती जी को अपने गांव में अपने बीच देखा है ,अपने बीच में कभी पाया है । जो नेता आम लोगों के बीच नहीं जाएगा ,गरीबों के बीच जाएगा वह गरीबों का दुखदर्द क्या समझेगा । राहुल गांधी की नई छवि व्यवस्था से नाराज नौजवान की है जो अब काफी आक्रामक तेवर में अपनी बात को लोगों के सामने रख रहा है । राहुल गांधी ने जब राजनीति में कदम रखा था तो जो शैली उनकी थी उसपर लखनऊ विश्विद्यालय के राजनीति विभाग के प्रोफ़ेसर आशुतोष मिश्र ने कहा था -उत्तर प्रदेश जिस सामजिक उठा पटक से गुजरा है उसमे यहां मार डालों,काट डालों वाली राजनीती हावी रही है ऐसे में राहुल गांधी की एनजीओ वाली शैली ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाएगी । इसलिए उन्हें आक्रामक शैली अपनानी चाहिए । यह टिपण्णी कुछ साल पुरानी है और अब राहुल गांधी जिस अंदाज में हमला कर रहे है उससे विरोधी काफी जल्दी विचलित हो जा रहे है । आज राहुल गांधी ने आजमगढ़ की सभा मी जब मनरेगा का हवाला देते हुए कहा कि यह हमने किसी जाति के लिए नहीं क्या तो तालियों से जनसभा गूंज गई । राहुल गांधी ने गरीबों ,वंचितों और ग़रीबों का सवाल उठाया कहा -जो पैसा इन योजनाओं में आता है वह मनमोहन सिंह का पैसा नहीं है ,आडवानी का पैसा नहीं है ,मायावती का पैसा नहीं है । यह तो आपका पैसा है ,आपके खून पसीने का पैसा है जो आपको ही हम लौटा रहे है । इस टिपण्णी पर राहुल गांधी जिंदाबाद के नारे से माहौल गूंज उठा । राहुल गांधी ने आगे कहा - हम चाहते है एक बच्चा भी भूखा न सोने पाए ।
पहले तो मायावती राहुल गांधी के हर दौरे के बाद लम्बा चौड़ा बयान जारी करती । पर अब तो प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य उनके भाषणों का लगता है इन्तजार करते है और फ़ौरन प्रतिक्रिया देते है । पूर्वांचल में राहुल गांधी की दो टिपण्णी बहुत मशहूर हो चुकी है । राहुल गांधी ने गोरखपुर में कहा था -भाजपा ने पहले राम को बेचा अब बाबू सिंह कुशवाहा ने उसे खरीद लिया है । इस बयान पर भाजपा किस कदर बिगड़ी थी वह उनके नेताओं की टिपण्णी से सामने आ चुका है । इससे पहले राहुल गांधी का -लखनऊ में बैठा जादुई हाथी पैसा खा जाता है, काफी लोकप्रिय हो चुका है । राहुल गांधी अब धारा प्रवाह बोलते है जो लिखा हुआ भाषण तो नहीं हो सकता।जिसमे बीच बीच में राजनैतिक चुटकुले और गांवों में बिताए समय के अनुभव भी होते है । जबकि मायावती आज भी आमतौर पर लिखित भाषण पढ़ती है जो इतनी क्लिष्ठ हिंदी में होता है कि कई बार लोग समझ नहीं पाते। दूसरे वे अपने अनुभव नही बल्कि जो जानकारी दी जाती है उसके आधार पर बोलती है । मायावती जहां दलितों की जातीय गोलबंदी का प्रयास करती है वही राहुल हर तरह की जातीय गोलबंदी को तोड़ने का प्रयास करते है । फिरोजाबाद में यही हुआ था और यादवों के गढ़ में राजबब्बर जीते थे । इसलिए राहुल गांधी लोगों को पसंद आ रहे है । jansatta

Sunday, January 8, 2012

पर्यटन की पुस्तक का पहला अध्याय छत्तीसगढ़ के साल वनों पर


छत्तीसगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस के न्यूज़ ब्यूरो की जिम्मेदारी सँभालने के बाद पहला निर्देश अपने प्रभारी योगेश वाजपेयी से यह मिला कि दो महीने छत्तीसगढ़ में सिर्फ घूमना है जिसका सारा खर्च दफ्तर उठाएगा इससे पहले एक्सप्रेस के समूह संपादक शेखर गुप्ता ने छत्तीसगढ़ को आने वाले समय के लिहाज से महत्वपूर्ण राज्य बताते हुए मुझे वहा भेजा था .खैर मुख्यमंत्री अजित जोगी से उस समय मेरे ही नहीं दिल्ली के अन्य अखबारों के साथी पत्रकारों लव कुमार ,आरती धर ,प्रदीप मैत्र और होता से करीबी संबंध थे लिहाजा इस आदिवासी अंचल को हम सबने घूम घूम कर देखा .फिर जनसत्ता लांच हुआ और पहले अंक में ही प्रभाष जोशी का सम्पादकीय और मेरा पर्यटन पर जो लेख गया वह छत्तीसगढ़ के पर्यटन विभाग की कई नीतियों का आधार भी बना और बाद में जनसंपर्क विभाग ने उसे विज्ञापन की तरह इस्तेमाल किया .पर जब सत्ता से टकराव शुरू हुआ तो अख़बार में ज्यादा समय देना पड़ा सिर्फ रविवार को रायपुर से २९ मील पर नदी किनारे स्थित सिंचाई विभाग का डाक बंगला जो तत्कालीन जनसंपर्क निदेशक चितरंजन खेतान से करीबी संबंधो के चलते हमें मिल जाया वह अड्डा बना दिन भर रहने का और खुद लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाकर खाने का .यह सब फिर से याद कर रहां हूँ क्योकि अब दूसरी पुस्तक राजनीति की बजाय पर्यटन पर होगी और शुरुआत छत्तीसगढ़ से होनी है .बस्तर से लेकर तौरंगा के डाक बंगले की शाम आज भी याद है .इस मामले में जनसत्ता के अपने सहयोगी अनिल पुसदकर , राजकुमार सोनी जो अब तहलका से जुड़ गए है ,संजीत त्रिपाठी ,भारती आदि से भी मदद लेनी है .पहली पुस्तक लिखने के लिए प्रभाष जोशी ने प्रेरित ही नही किया बल्कि उसका विमोचन समारोह भी खुद वीपी सिंह के घर पर करवाया और कांशीराम से विमोचन कराया .अब यह जिम्मेदारी अपने मित्रों की होगी इसकी भूमिका अलोक तोमर को लिखनी थी जो जा चुके है .इस सिलसिले में छत्तीसगढ़ के साथी कुछ पुराने संस्मरण याद दिला सके भेज सके तो मदद मिलेगी .
अंबरीश कुमार

द्वीपों का गुलदस्ता है लक्षद्वीप


अंबरीश कुमार
सुनहरे सम्रुन्द्री तट, नारियल के घने जंगल, जादुई लैगूनों, बहुत कम आबादी, पर्यटकों से प्राय अछूता। टूना मछली के लिए दुनिया में मशहूर ये द्वीप समूह पर्यटकों की आवाजही पर काफी नियंत्रण होने की वजह से दूसरी सैरगाहों से काफी अलग है। कोच्चि से कोई चार सौ किलोमीटर दूर बसे लक्षद्वीप के द्वीप भले ही छोटे हों, यहां के लगून काफी बड़े हैं। लैंगूनों की दुनिया भी अनोखी है। देश में लक्षद्वीप ही ऐसी जगह है जहां पर्यटक धरती की सुंदरता देखने के साथ-साथ लगून की रंगीन दुनिया में भी जा सकते हैं। आपको तैरना भले ही न आए, सम्रु के भीतर की अनोखी दुनिया को देख सकते हैं। अगर तैरना आता हो तो स्कुबा डाइग के जरिए सागर की तलहटी में हजरों किस्म की मछलियों, सजी मूंगे (कोरल) की चित्र-चित्र बस्तियों कछुओं, आक्टोपस और दूसरे सम्रुन्दी जीवों के साथ कुछ समय बिताया जा सकता है। लक्षद्वीप के लैंगून सजे एक्वेरियम की तरह है।

लक्षद्वीप में अगर पानी जमकर बरसता है, तो सूरज की किरण भी भरपूर चमकती हैं। यहां के हर द्वीप से सूर्यादय और सूर्यास्त का रंगीन नजारा देखा जा सकता है। सूर्यास्त के समय लगून पर डूबते सूरज की किरणों के अनोखे रंग अद्भुत पैदा करते हैं। सूरज के सामने अगर कोई छोटी ना आ जाए तो यह दृश्य जैसे मन पर छप जाता है। सोलहवीं शताब्दी में यहां का प्रशासन केन्नानूर के मुसलिम प्रशासकों के हाथ में आ गया था, लेकिन उसकी निरंकुशता से तब आकर यहां के निवासियों ने मैसूर के टीपू सुल्तान से मदद की गुजरिश और उसने पांच द्वीपों पर कब्जा कर लिया। अब टीपू सुल्तान के नाम का एक भव्य समुन्द्री जहाज पर्यटकों को लक्षद्वीप ले जता है। सागर यात्रा के दौरान ज्यादातर पर्यटक अपने वातानुकूलित केबिनों से बाहर निकल कर डेक पर ही जमे रहते हैं। दोपहर में चलने वाला जहाज अगले दिन सुबह लक्षद्वीप पहुंच जता है। जहाज का अनुशासन भी सेना जैसा है। सुबह होते ही जहाज के जनसंपर्क अधिकारी यात्रियों को बताते हैं कि कावरती (लक्षद्वीप की राजधानी) आ गया है और सामान बांध लें। ज्यादातर पर्यटक सामान बांधने की बजाए लक्षद्वीप को पहली नजर से देखने के लिए डेक पर पहुंच ज़ाते हैं।

अरब सागर में गोल आकार का यह खूबसूरत हरा गुलदस्ता दूर से साफ नजर आने लगता है। सूर्यादय के समय हरे-नीले पानी में सुनहरी रेत और उस पर नारियल के झुण्ड। लगून की सीमा पर टीपू सुल्तान रुकता है और लोग छोटी नावों में इंतजार में खड़े हो जाते हैं। लगून की गहराई कम होने की जह से बड़े जहाज सीमा पर ही रुकते हैं, जहां से मोटर बोट के जरिए जेटी तक जाना होता है। मोटर बोट से जेटी तक पहुंचने में करीब एक घंटा लगता है। जहाज से उतर कर मोटर बोट में बैठना भी एक भिन्न अनुभव है, क्योंकि गहरे समुन्द्र की तेज लहरों में मोटर बोट तीन-चार फूट ऊपर-नीचे होती रहती है। मोटर बोट पर बैठे मछुआरे हाथ पकड़ कर लोगों को उतारते है। टीपू सुल्तान में सम्रुद की लहरों के हिचकोले पालने में सोए रहने का सा अहसास जगाती हैं, लेकिन 20-25 लोगों को ले जने वाली मोटर बोट से गहरे सम्रुन्द्र की यात्रा में कइयों को डर लग सकता है। लगून लक्षद्वीप का जादू है। हर द्वीप के एक तरह जहां सम्रुन्द्र की तेज लहरें होती हैं, वहीं दूसरी तरफ द्वीप की आड़ में होने की जह से लहरें काफी हल्की भी हो जाती हैं। जिस तरफ लहरें हल्की होती हैं और द्वीप का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूबा होता है, यह लगून कहलाता है। समूचा लक्षद्वीप जहां ३२ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बसा है, वहीं इसके द्वीपों के लैगूनों का क्षेत्रफल 4200 किलोमीटर से ज्यादा है। कुल ३६ द्वीपों में सिर्फ दस लोग रहते हैं और पर्यटकों के लिए सिर्फ पांच द्वीप खोले गए हैं, जिसमें एक द्वीप बंगरम विदेशी पर्यटकों के लिए भी उपलब्ध है। लक्षद्वीप के तीन दीपों की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग विचार हैं, पर मान्यता चाल्र्स डारविन की व्याख्या को ज्यादा मिली हुई है। उन्होंने १८४२ में कहा था कि ज्वालामुखी वाले द्वीपों के धसकने के बाद उन पर कोरल (मूंगे) इकट्ठा होने से इन द्वीपों का जन्म हुआ जिन जगहों पर ये द्वीप डूबे, यहां पहले एटाल बना और कोरल के चलते लगून बने और उन पर कोरल के चूरे के जमा होने से द्वीपों का जन्म हुआ। मूंगे सीलेट्रेटा प्रजति के रीढ़धारी जीव हैं जो बहुत सूक्ष्म प्राणी, पोलिप के साथ समुन्द्र में रहते हैं। यही पोलिप इन द्वीपों के वास्तुकार माने जते हैं। करोड़ों पोलिप मिलकर एक कोरल बस्ती की रचना करते हैं। पोलिप ही सम्रुन्द्री पानी के जरिए कैल्शियम कंकालों की रचना करते हैं। जब कोरल का जीन समाप्त हो जता है तो ये कंकाल (कोरल द्वीप) सम्रुन्द्री थपेड़ों से टूटते जाते हैं और बालू जेसे चूरे में भी तब्दील हो जाते हैं। कोरल की भी कई किस्में होती हैं।

लक्षद्वीप में पीने के पानी के स्रोत बिलकुल नहीं हैं। वर्षा के पानी को ही इकट्ठा करके इस्तेमाल किया जाता है। कुछ द्वीपों में कुएं बनाए गए हैं, जिसमें वर्षा का पानी जमा किया जाता है और फिर इस्तेमाल किया जता है। नारियल, केला, पपीता और कुछ जंगली पेड़ पौधों के अलावा लक्षद्वीप में ज्यादा कुछ नहीं पैदा होता। मिट्टी न होने की वजह से कई सब्जियां नहीं उगाई जा पाती हैं। खाद्य सामग्री, सब्जियां और जरूरत की दूसरी चीजें खाद्य सामग्री, सब्जियां और जरूरत की दूसरी चीजें कोच्चि से ही मंगाई जाती हैं।

जनसत्ता
फोटो -सविता वर्मा

Friday, January 6, 2012

वाम दलों को मिला उलेमा काउंसिल का साथ


अंबरीश कुमार
लखनऊ , जनवरी । उत्तर प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनाव में वाम ताकतों को इस बार पुनर्जीवन की उम्मीद नजर आ रही है। वाम लोकतांत्रिक ताकतें दो खेमों में अलग अलग भले लड रही हो पर ज्यादातर सीटों पर टकराव टालने का प्रयास भी किया जा रहा है।चुनाव के लिए पहले दौर में भाकपा ,माकपा ,फॉरवर्ड ब्लाक और आरएसपी ने मोर्चा बनाया पर इसमे धुर वामपंथी ताकतों से बात नही बनी ।दूसरी तरफ जन संघर्ष मोर्चा से जुड़े दलों और उलेमा काउंसिल के साथ भाकपा माले ने भी अपनी तीसरी सूची जारी कर दी । विधान सभा चुनाव में भाकपा ५५ सीट ,माकपा १७ सीट ,फॉरवर्ड ब्लाक १७ सीट और आठ सीट पर चुनाव लड रही है । दूसरी तरफ जन संघर्ष मोर्चा से जुड़े दलों ने उलेमा काउंसिल के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है । इस गठबंधन में क्रांतिकारी समता पार्टी ,नव भारत निर्माण पार्टी ,राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी ,सोशलिस्ट पार्टी के साथ माकपा भी साथ आ गई है। पर ज्यादातर सीटों पर किसी तरह का टकराव न हो यह प्रयास किया गया है जो काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है ।
उलेमा काउंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आमिर रशादी ने कहा -आगामी विधान सभा चुनाव के लिए हमने १७५ उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है उसमे उलेमा काउंसिल ७० सीटों पर लड़ने के साथ नव भारत निर्माण पार्टी को ४९ सीटों पर ,माकपा १७ सीटों पर ,जन संघर्ष मोर्चा के घटक दलों में क्रांतिकारी समता पार्टी १७ सीटो पर राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी सात सीटों और सोशलिस्ट पार्टी आफ इंडिया को १८ सीटों पर समर्थन किया जाएगा । काउंसिल बाकी २२८ सीटों की सूचि भी जल्द जारी करेगी ।इसके साथ ही रशादी ने कहा कि उलेमा काउंसिल उत्तर प्रदेश में वामपंथियों ,समाजवादियों ,अम्बेडकरवादी और जनवादी ताकतों के साथ मिलकर विश्वसनीय राजनीति के लिए काम करेगी । उलेमा काउंसिल का उभर लोकसभा चुनाव में दिख चुका है और यह पूर्वांचल के कुछ इलाकों में अपना आधार बनाए हुए है जिसके चलते कांग्रेस ने भी इसका साथ लेने का प्रयास किया था । इस गठबंधन के चलते ही माकपा तीन सीटों आजमगढ़ की मेहनगर ,चंदौली की चकिया और इलाहाबाद की कोरांव सीट पर मुकाबले में आ गई है जहाँ काउंसिल का मुस्लिम जनाधार है । मुस्लिम राजनीति को दो महत्वपूर्ण ताकतों पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल में यह एक बड़ा फर्क दिख रहा है कि एक तरफ जहाँ पीस पार्टी बाहुबलियों और बदमाशों का गुरुकुल बन गई है वही उलेमा काउंसिल समाजवादी और जनवादी ताकतों के साथ खडी हुई है ।
जन संघर्ष मोर्चा के संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने जनसत्ता से कहा -हम लोगों ने जो पहल की है उससे वाम ताकतों को नया जीवन मिलने जा रहा है । यह नया राजनैतिक उभार है जब मुसलमान उलेमा काउंसिल के झंडे तले जनवादी ताकतों के साथ खड़ा हुआ है जो आने वाले समय में नया बदलाव लाएगा । दूसरी तरफ पीस पार्टी जो अजित सिंह से लेकर कांग्रेस तक हर दरवाजे का चक्कर काट कर अब माफिया और अपराधियों की शरणगाह बन गई है उससे लोगों का मोहभंग हो चुका है और वह अपनी ताकत खोटी जा रही है ।उन्होंने यह भी कहा कि वाम दलों के उम्मीदवारों के बीच कोई टकराव न हो यह हर हाल में देखा जाएगा । भाकपा हो या भाकपा माले उनके आधार वाले इलाकों में कोई उम्मीदवार न खड़ा हो यह देखा जा रहा है ।
दरअसल उत्तर प्रदेश में वाम ताकतें तीन खेमों में बंट गई है जिनमे एक तरफ भाकपा ,फॉरवर्ड ब्लाक आदि है तो दूसरी तरफ जन संघर्ष मोर्चा के घटक दल के साथ माकपा और उलेमा काउंसिल है तो तीसरी तरफ भाकपा माले है । भाकपा नेता डाक्टर गिरीश ने कहा - असली वाम ताकते हमारे साथ है और हमारे बीच कोई टकराव भी नही है । जिन लोगों के साथ पहले भी कोई संबंध नहीं रहा उनके साथ इस बार भी नहीं है । jansatta

Thursday, January 5, 2012

मोर्चा संभालने जा रही प्रियंका गांधी


लखनऊ, जनवरी। कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में अब पूरी ताकत झोंकने जा रही है । दो दिन बाद राहुल गांधी पूर्वांचल के दौरे पर निकल रहे है तो जनवरी के दूसरे सप्ताह में प्रियंका गांधी रायबरेली व अमेठी यानी छत्रपति साहूजी महाराज नगर में चुनावी मोर्चा संभालने जा रही है । प्रियंका गांधी इन दोनों जिलों से बाहर नहीं जाएंगी। पर देश और प्रदेश का मीडिया बाहर से वहां पहुँच जाएगा। जिससे वे ख़बरों के केंद्र में रहेंगी । इससे पहले राहुल गांधी पूर्वांचल में माहौल बना चुके होंगे । जबकि पश्चिम में लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित सिंह के अलावा कांग्रेस रसीद मसूद समेत कई नेताओं को प्रचार में उतारने जा रही है। पूर्वांचल में पीएल पुनिया,बेनी प्रसाद वर्मा से लेकर राजबब्बर तक कमान संभालेंगे। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव राहुल गांधी अपने उत्तर प्रदेश के आगामी पांच दिवसीय दौरे 7 जनवरी से 11जनवरी के तहत दिनांक 7 जनवरी को गोरखपुर पहुंच रहे
हैं। राहुल गांधी के दिनांक 7 जनवरी व 8 जनवरी का विधानसभावार दौरे के प्रथम दिन दिनांक 7जनवरी को गोरखपुर जनपद में विधानसभा क्षेत्र 321.पिपराइच में आयोजित जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके विधानसभा क्षेत्र 323.गोरखपुर ग्रामीण के खोराबार में विधानसभा क्षेत्र 327.बांसगांव (सु0) के कौड़ीराम में व विधानसभा क्षेत्र 328 चिल्लूपार के गोलाबाजार में आयोजित जनसभाओं को संबोधित करेंगे।
गांधी अपने दौरे के दूसरे दिन 08 जनवरी को जनपद गोरखपुर के विधानसभा क्षेत्र 326 चौरीचौरा के चौरीचौरा में जनपद देवरिया के विधानसभा क्षेत्र 336 रूद्रपुर के रूद्रपुर में विधानसभा क्षेत्र 339 रामपुर कारखाना के बैकुन्तपुर में 337.देवरिया विधानसभा क्षेत्र के देवरिया में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। गांधी अपने दौरे के तीसरे दिन 09 जनवरी को देवरिया व मऊ जनपद व चौथे दिन दिनांक 10 जनवरी को मऊ व आजमगढ़ जनपद में जनसभाएं करेंगे।
दूसरी तरफ राहुल के मिशन 2012 को सफल बनाने के लिए प्रियंका वाड्रा भी जनवरी के दूसरे सप्ताह में चुनाव प्रचार करेंगी । अभी तक अपने को अमेठी व रायबरेली तक सीमित रखने वाली प्रियंका अन्य क्षेत्रों में भी चुनाव प्रचार के लिए तैयार हो गई हैं। और पहले दौर में 13 व15 जनवरी को चुनाव प्रचार अभियान को अंजाम देने के लिए अमेठी व रायबरेली का दौरा करेंगी। कांग्रेस पार्टी ने अपने 40 स्टार प्रचारकों की सूची को भी निर्वाचन आयोग को सौंप दी है। जिसमे प्रियंका वाड्रा का भी नाम सम्मिलित है।

डीपी यादव को लेकर मोहन सिंह टाए गए

अंबरीश कुमार
लखनऊ , जनवरी । समाजवादी पार्टी ने बाहुबली डीपी यादव के मुद्दे पर प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के एलान के बावजूद पार्टी महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता मोहन सिंह की टिपण्णी को लेकर कड़ा फैसला करते हुए आज उन्हें प्रवक्ता पद से हटा दिया । अखिलेश यादव ने साफ कहा था कि डीपी यादव के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है । इसके बावजूद मोहन सिंह ने टिपण्णी कर दी थी कि इस मामले पर विचार होना है ,जिससे सपा नेतृत्व के फैसले को लेकर सवाल उठने लगा था और राजनैतिक हलकों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी । गौरतलब है कि डीपी यादव को लेकर पार्टी के कुछ नेताओं की राय अखिलेश यादव की राय से अलग थी जिसमे कई पुराने क्षत्रप भी शामिल है । मामला सिर्फ एक बाहुबली का नहीं था बल्कि आधा दर्जन बाहुबली विभिन्न क्षत्रपों के जरिए पार्टी में आने की कोशिश कर रहे थे ।
भ्रष्टाचार को लेकर जहां भाजपा फंसती जा रही है वही समाजवादी पार्टी के युवा चेहरे अखिलेश यादव के तेवर से वे बाहुबली सकते में है जो सपा में आने का रास्ता ढूंढ़ रहे है । बाहुबली डीपी यादव को लेकर पार्टी में जो शीत युद्ध चल रहा था उसमे अंततः जीत अखिलेश यादव की हुई और सबक उन आधा दर्जन बाहुबलियों को मिला जो अन्य क्षत्रपों के जरिए पार्टी में आने की कोशिश कर रहे थे । समाजवादी पार्टी की नई छवि राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है । उत्तर प्रदेश के मौजूदा राजनैतिक माहौल में समाजवादी पार्टी फिलहाल सबसे आगे है और कोई भी गलती करने का जोखम वह उठाना नहीं चाहती इसलिए मुलायम सिंह यादव फूंक फूंक कर कदम रख रहे है । भाजपा के कुशवाहा कांड से सही सबक समाजवादी पार्टी ने लिया है जिसने अपनी साख की कीमत पर कोई फैसला न करने का मन बना लिया है । यही वजह है कि डीपी यादव को लेकर शब्दों के चयन में जो गलती पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और खांटी समाजवादी मोहन सिंह से हुई उसकी भरपाई फ़ौरन की गई और इसका संदेश साफ़ था । मोहन सिंह की जगह प्रोफ़ेसर राम गोपाल यादव को जैसे ही राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाने का एलान हुआ लखनऊ में समाजवादी पार्टी मुख्यालय पर मीडिया का जमावड़ा लग गया । पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जो उस समय मुख्यालय में थे वे मीडिया से बिना मिले चले गए ।
बाद में प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -प्रोफ़ेसर राम गोपाल यादव को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया है । मोहन सिंह महासचिव बने रहेंगे । राजेंद्र चौधरी ने इससे ज्यादा कुछ कहने से इंकार कर दिया। पर पार्टी सूत्रों का मानना है कि यह कदम प्रदेश अध्यक्ष की गरिमा को देखते हुए उठाया गया जो पार्टी में किसी भी बाहुबली और दागी नेताओ को लाने का विरोध कर रहे है । उनके बयान दे देने के बाद किसी भी पदाधिकारी की टिप्पणी गैर जरुरी थी इसी वजह से मोहन सिंह को लेकर यह फैसला करना पड़ा । राष्ट्रीय प्रवक्ता के हटाए जाने का जो बयान आज जारी हुआ वह प्रदेश प्रवक्ता की तरफ से था जिसमे राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह के फैसले की जानकारी दी गई थी । पर इसका राजनैतिक संदेश पार्टी के उन क्षत्रपों के लिए है जो बाहुबलियों का रास्ता बना रहे थे ।jansatta

Wednesday, January 4, 2012

भाजपा के गले की हड्डी बन गए मायावती के दागी मंत्री और बाहुबली !


अंबरीश कुमार
लखनऊ ,४ जनवरी ।मायावती सरकार के बाहुबली नेता और दागी मंत्री अब भाजपा के गले की हड्डी बन गए है। इनमे बाबू सिंह कुशवाहा को लेकर पार्टी में दो खेमे हो गए है जो लखनऊ से दिल्ली तक नजर आ रहे है। कल कुशवाहा को भाजपा में लिया गया और आज सीबीआई छापे के साथ ही पार्टी नेताओं की स्थिति सांप छछूंदर वाली हो गई। भाजपा सूत्रों के मुताबिक पहले तय हुआ कि कुशवाहा को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए पर बाद में उन्हें ढोने का ही फैसला इस शर्त के साथ हुआ कि ऊन्हे चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा ,हालांकि वे विधान परिषद के सदस्य है इसलिए यह तर्क भी जल्दी किसी के गले नहीं उतरने वाला । नीति ,नीयत और नैतिकता का नारा देने वाली भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य आईपी सिंह ने जनसत्ता से कहा -हमारे नेता अन्ना हजारे के मंच पर जाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का एलान करते है तो आडवानी पूरे देश में अलख जागते है और उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े मामले के सबसे बड़े अभियुक्त बाबू सिंह कुशवाहा को हम पार्टी में शामिल कर किस मुंह से जनता के बीच जाएंगे । इस मामले में प्रदेश के कुछ नेताओं ने राष्ट्रीय नेतृत्व को अँधेरे में रखा है । क्योकि कुशवाहा ने कांग्रेस से लेकर सपा तक में संभावना तलाशी पर जब कही जगह नहीं मिली तो वे भाजपा में आए । अब भाजपा का एक खेमा कुशवाहा के बचाव में जुटा है । भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा अब पार्टी को सौ प्याज खाने के बाद सौ जूते खाने वाली कहावत को चरितार्थ करना पड़ रहा है । गौरतलब है कि जब भाजपा कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर रही थी उसी समय समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एलान किया कि उनकी पार्टी में बाहुबली डीपी यादव के लिए कोई जगह नहीं है । यह वही समाजवादी पार्टी है जिसके बारे में २००६ से पहले उत्तर प्रदेश में नारा लगता था -जिस गाड़ी पर सपा का झंडा उस गाड़ी में बैठा गुंडा। इस नारे का सबसे ज्यादा प्रचार तब राजबब्बर ने वीपी सिंह के आन्दोलन में किया था । इसी वजह से मुलायम सिंह की सरकार बदनाम हुई और सत्ता से जाना पड़ा था । उत्तर प्रदेश में किस तरह पार्टियां अपनी छवि बदल रही है यह इसका उदाहरण है। अखिलेश यादव के इस एलान का सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी स्वागत हुआ। डीपी यादव को पार्टी में लाने का प्रयास आजम खान ने किया था जो न सुनने के आदि नहीं है । ऐसे में सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा के चलते भाजपा की फजीहत से सबक नहीं लिया तो सपा भी संकट में फंसेगी। इसकी मुख्य वजह वह नै पीढी है जो मंडल और कमंडल के बाद की है और राजनीति में भय और भ्रष्टाचार के खिलाफ है। अन्ना के आन्दोलन के बाद यह सवाल तो खड़ा ही हुआ है कि राजनीति में दागी लोगो को जगह नहीं दी जाए । भाजपा तो अन्ना आन्दोलन की भी प्रबल समर्थक रही और अब मायावती के चार दागी मंत्री को पार्टी में लेने के बाद बाहुबलियों को टिकट देने की तैयारी में है । भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह के पुत्र जेल में धनंजय सिंह से मिले तो उनके परिजन को टिकट देने की चर्चा हुई । सीडी कांड से मशहूर दूसरे संघ के बड़े नेता ने दिल्ली के नार्थ एवेन्यू में डीपी यादव से मुलाकात की ।पूर्वांचल के एक अन्य बाहुबली के भतीजे को भी टिकट देने की चर्चा है । यही वजह है कि आज बसपा ने भी नसीहत को नसीहत दी ।
बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा - वास्तविकता यह है कि शुचिता और ईमानदारी का दम्भ भरने वाली भाजपा अब भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की शरणस्थली बन गयी है। बसपा से निकाले गए आपराधिक, दागी और भ्रष्ट नेताओं का विपक्षी दल खुलकर स्वागत और सम्मान कर रहे हैं। जनता ऐसी दोहरे चरित्र वाली पार्टियों के बारे में पूरी तरह समझ चुकी है। jansatta

Tuesday, January 3, 2012

सामने आ गया भाजपा का असली चाल, चरित्र और चेहरा

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,३ जनवरी ।चुनाव से पहले ही भाजपा का चाल ,चरित्र और चेहरा का नारा सामने आ गया है। मायावती सरकार के चार दागी मंत्रियों बाबू सिंह कुशवाहा ,अवधेश वर्मा ,दद्दन मिश्र और बादशाह सिंह को पार्टी में लाकर भाजपा नेताओं ने भय और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई की खुद ही पोल खोल दी है। चार दागी मंत्री तो आए ही अब पार्टी जेल में बंद जौनपुर के बसपा सांसद धनंजय सिंह से तार जोड़ चुकी है । मायावती सरकार के जो मंत्री भाजपा में शामिल हुए है उनमे एक मंत्री पर एक अल्पसंख्यक लड़की के बलात्कार का आरोप लगा था तो दूसरे के पुत्र और सुरक्षा गार्ड समूची एटीएम मशीन उठाकर ट्रक में लाद ले गए थे और पुलिस को छापा मरना पड़ा था । तीसरे बाबू सिंह कुशवाहा वही मंत्री है जिनको हटाने के लिए भाजपा लगातार मांग कर रही थी और पार्टी के वरिष्ठ नेता किरीट सोमैया ने तो बाकायदा दो दर्जन कंपनियों की सूची जारी कर उनके भ्रष्टाचार पर रौशनी डाली थी। सदन में भाजपा के एक बड़े नेता ने कहा था -कुशवाहा तो मायावती के कलेक्शन एजंट है और खनन के ठेकों में इनका हिस्सा है । चौथे बादशाह सिंह बुंदेलखंड में काफी समय से बाहुबल के प्रतीक है और लोकायुक्त के दायरे में भी आ चुके है। इन सभी दागी मंत्रियों को पार्टी में लाने बाद एक राष्ट्रीय नेता ने कहा -भाजपा गंगा सामान है जिसमे नदी नाले मिलकर शुद्ध हो जाते है । दूसरी तरफ लखनऊ में मायावती के मुह्बोले भाई की भूमिका निभा चुके लालजी टंडन ने कहा -भाजपा ओपन पार्टी है कोई भी इसमे आ सकता है ।
मायावती सरकार के दागी मंत्रियों और बाहुबलियों को पार्टी में लाने पर भाजपा में ही तूफ़ान मच गया है। माना जा रहा है कि पार्टी अध्यक्ष नीतिन गडकरी के सर्वे को ठेंगा दिखाते हुए किरीट सोमैया को भी उनकी हैसियत बता दी गई है जो कुशवाहा के खिलाफ अभियान छेड़े हुए थे । इन घटनाओं से संघ के नेता भौचक है जो राजनीती में नैतिकता ,शुचिता और जवाबदेही की बात करते थे ।
भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहा -अब भाजपा के नेताओं का असली चाल ,चरित्र और चेहरा सामने आ गया है । कल तक ये लोग राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के घोटाले और उससे जुडी हत्यायों के बाद कुशवाहा के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करते थे । तब इनका आरोप था कि कुशवाहा के यहाँ नोट गिनने की मशीन लगी हुई है ,पर अब लगता है वह मशीन समेत कुशवाहा को पार्टी में ले आए है । अब ये पार्टी किस मुह से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और धनंजय सिंह के परिजन को चुनाव लड़ाकर कौन सा सन्देश देंगे ।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने कहा कि बसपा जिसे निकालती है। भाजपा उसे अपनाती है। भ्रष्टाचार के आरोप में जिन दो मंत्रियों को बसपा ने निकाला है। भाजपा ने उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। इससे भाजपा व बसपा की अंदरूनी सांठगांठ उजागर हुई है। कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वीरेंद्र मदान ने कहा कि भाजपा ने जो सूची अभी जारी की है उसमें बसपा सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपी दो दागी मंत्री, प्रदेश के पूर्व मंत्री व दागी विधायक अवधेश वर्मा व ददन मिश्र जिन्हें बसपा ने मंत्रिमंडल व पार्टी से बाहर कर दिया था। भाजपा ने उन मंत्रीयों को प्रदेश के पूर्व मंत्री व दागी विधायक अवधेश वर्मा को शाहजहांपुर की ददरौल सीट से व दद्दन मिश्र को भिनगा सीट से भाजपा के उम्मीदवार घोषित किए गए। मदान ने कहा कि इससे भ्रष्टाचार के विरूद्ध कोरी आवाज उठाने व थोथा आरोप लगाने वाली भाजपा का दो मुंहा चरित्र उजागर हुआ है। उन्होंने कहा कि भाजपा की कथनी और करनी में सदैव अंतर रहा है। jansatta