Tuesday, April 30, 2013

जहरीली हो गई है तराई की नदियां

जहरीली हो गई है तराई की नदियां अंबरीश कुमार लखनऊ ,।हिमालय की तराई में बड़ी नदियां तो बिगड़ते पर्यावरण का किसी तरह मुकाबला कर अपना अस्तित्व बचा ले रही है पर छोटी और बरसाती नदियां दम तोड़ रही है ।इनका पानी इतना जहरीला हो चुका है कि आदमी तो बीमार पड़ कर इलाज करा लेता है पर जानवर अब दम तोड़ दे रहा है ।बीते तेरह अप्रैल को मनकापुर से आगे सादुल्लानगर वन प्रभाग में विसुही नदी और मनोरमा नदी का पानी पीने की वजह से दो हिरन की मौत हो गई तो फिर सोलह अप्रैल को इसी पानी कि वजह से एक और हिरन की मौत हो गई । प्रमुख सचिव वन व पर्यावरण इस घटना की जाँच कर रहे है पर यह घटना समाज और सरकार के लिए खतरे की घंटी है । तराई में इस तरह की छोटी नदियां चीनी मीलों और उद्योगों के जहरीले कचरे का नाला बन गई है । गोरखपुर की आमी नदी हो या गोंडा की विसुही और मनोरमा नदी हो सभी उद्योगों के कचरे के चलते जहरीली हो गई है । आमी नदी गोरखपुर मंडल में करीब पचासी किलोमीटर क्षेत्र में कभी अमृत जैसा पानी लोगों को देती थी । पर अब आमी नदी दम तोड़ चुकी है और उसका पानी जहरीला हो चुका है ।पिछली बार जब इस नदी को बचाने के लिए आंदोलन हुआ तो राहुल गांधी भी पहुंचे और कुछ ठोस पहल का वायदा भी किया ।पर गोरखपुर के सुग्रीव कुमार के मुताबिक हालत पहले से ज्यादा खराब है ।खलीलाबाद ,बस्ती और गोरखपुर के उद्योगों का कचरा इस नदी को खत्म कर चुका है ।इसे लेकर सामाजिक और राजनैतिक संगठन भी लगातार आवाज उठा रहे है ।पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है ।पूर्वांचल में ताल तालाब पर जिस तरह से बीते दो दशक में कब्ज़ा हुआ है उससे पानी का संकट और बढ़ा है ।कुएं और ताल तालाब पर लोगों ने कब्ज़ा किया तो नदियों को नाला बना दिया ।इसमे बड़े बड़े औद्योगिक घराने भी शामिल है जो पर्यावरण को लेकर एक तरफ अभियान चलते है तो दूसरी तरफ जहरीला कचरा नदी में डाल दे रहे है । तराई के देवीपाटन अंचल में चीनी मिलों तथा अन्य औद्योगिक इकाइयों का कचरा इन नदियों के पानी को जहर में बादल रहा है ।हाल में जिस मनोरम नदी का पानी पीकर हिरन मरे थे उसका उद्गम जिले के रुपईडीह विकास खंड के अन्तर्गत तिर्रे मनोरमा ग्राम पंचायत का एक तालाब है। यहीं पर उद्दालक मुनि का आश्रम भी है। यह नदी जिले के धानेपुर, मनकापुर तथा छपिया कस्बे में प्रवाहित होते हुए करीब 100 किमी की दूरी तरह करके बस्ती जिले के ऐतिहासिक मखौड़ा धाम में सरयू में विलीन हो जाती है। मखौड़ा धाम में महाराजा दशरथ ने पुत्रेश्ठि यत्र किया था। गोंडा से जानकी शरण द्वेवेदी के मुताबिक इस नदी में इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज से निकलने वाला कचरा प्रवाहित होता है। बिसुही नदी बहराइच जिले के चित्तौड़गढ़ झील से निकलती है। यह विशेश्वरगंज से आगे चलकर गोंडा जिले की सीमा में प्रवेश करती हैं और रुपईडीह, इटियाथोक, दतौली, श्रृंगारघाट, गऊ घाट (मसकनवा), घारीघाट होते हुए करीब 150 किमी लम्बी यात्रा करके बस्ती जिले में कुआनो नदी में मिल जाती है। खास बात यह है कि बलरामपुर चीनी मिल की दो इकाइयों दतौली तथा बभनान के कचरे से यह पूरी तरह से जहरीली हो चुकी है । दूसरी तरफ गोंडा जिले के मोतीगंज थाना क्षेत्र के अन्तर्गत कस्टुआ गांव के पास से निकली चमनई नदी को लोग धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। यह नदी सोतिया नाला, टिकरी जंगल होते हुए बस्ती जिले में पहुंचकर सरयू नदी में विलीन हो जाती है। यह करीब 60-65 किमी की दूरी तय करती है। इस नदी में हिंदुस्तान बजाज समूह की कुन्दुरखी चीनी मिल का कचरा मिलता है जो इसे जहरीला बना चुका है । बहराइच जिले के सरयू बैराज से निकलने वाली टेढ़ी की कुल दूरी करीब 150 किमी है। यह कटरा विकास खंड में गोंडा जिले में प्रवेश करती है और बालपुर, नवाबगंज होते हुए पटपरगंज से आगे अयोध्या में सरयू नदी में मिल जाती है। इस नदी में बलरामपुर चीनी मिल गु्रप की मैजापुर यूनिट तथा मूलराज नारंग डिस्टलरी का कचरा प्रवाहित होता है। इसके चलते यह नदी भी विशैली हो चुकी है। इसके साथ ही बलरामपुर जिले में सिरिया, कुआनो तथा राप्ती प्रमुख नदियां हैं, जिनके भरोसे तराई का किसान रहता है। सिंचाई का पर्याप्त साधन न होने के कारण इलाके के किसान इनसे सिंचाई भी करते हैं। किन्तु धीरे-धीरे ये नदियां भी सीजनल होती जा रही हैं। बलरामपुर चीनी मिल की बलरामपुर तथा तुलसीपुर इकाइयों का कचरा कुआनो तथा सिरिया में गिरने से इनका जल भी प्रदूशित है। शासन के प्रदूशण संयंत्र लगाए जाने के बारे में तमाम आदेश इनके समक्ष बौने पड़ रहे हैं। जनसत्ता

Sunday, April 28, 2013

अमेरिकी हेकडी का जवाब देकर अखिलेश ने दिखाई राजनैतिक ताकत

सविता वर्मा लखनऊ, 27 अप्रैल।देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बोस्टन जाकर भी हार्वर्ड विश्विद्यालय के कार्यक्रम का बायकाट कर एक झटके में अमेरिका विरोधी भावनाओं को मजबूत आधार दे दिया है । आहत मुस्लिम समाज ने अखिलेश के इस कदम का स्वागत किया है जिसमे सभी वर्ग के लोग शामिल है । अमेरिकी दादागिरी का यह माकूल जवाब है जिसके चलते अखिलेश यादव अचानक अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में भी आ गए है । हार्वर्ड विश्विद्यालय विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है और उसने अखिलेश यादव को विश्व के सबसे बड़े धार्मिक समागम को आयोजित करने की वजह से न्योता दिया था । वह भारत से ,उत्तर प्रदेश से यह जानना चाहता था कि किस तरह करोड से ज्यादा श्रद्धालू संगम में डुबकी लगाने आते है और इसकी व्यवस्था कैसे होती है ? कैसे लाखों लोग एक महीने तक संगम तट पर रुकते है । पर वह अमेरिका जो कुंभ कि व्यवस्था को जानना चाहता था खुद कैसी अव्यवस्था का शिकार है इसे अखिलेश यादव ने अपने फैसले से समूचे विश्व को बता दिया है । देश ही नहीं बाहर के देशों में इसका बड़ा राजनैतिक सन्देश गया है और मुस्लिम समाज ने इसका स्वागत किया है । क्योकि अमेरिका ने मुसलमान होने की वजह से ही आजम खान को राजनयिक होने के बावजूद बेइज्जत किया था और आम भारतीय इस घटना से आहत था । कई मुस्लिम संगठनों ने इस घटना पर अमेरिका कि भर्त्सना भी की थी । आजम खान ने साफ़ कहा कि मुसलमान होने की वजह से उनका अपमान किया गया है।इस घटना से विश्व भर में लोग नाराज हुए । पत्रकार रिजवान मुस्तफा ने कहा -आतंकवाद के नाम पर अमेरिका को हेडली याद नहीं रहता और खान याद रहता है ।सारा विश्व शाहरुख खान को जनता है पर अमेरिकी हवाई आड़े के अफसर उन्हें आतंकवादी मानकर अभद्र ढंग से तलाशी लेते है । वे पूर्व मंत्री जार्ज फर्नांडीज से लेकर पूर्व राष्ट्रपति के साथ भी यह सब दोहरा चुके है । इसलिए अखिलेश यादव और आजम खान ने इस हेकड़ी का जिस अंदाज में जवाब दिया है उससे मुस्लिम समाज उनके साथ खड़ा हो गया है । अमेरिका में हुई इस घटना का बड़ा राजनैतिक लाभ समाजवादी पार्टी को मिलेगा यह भी साफ है । कांग्रेस जिस तरह बीच बीच में मोदी का भय दिखकर मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से झटकना चाहती थी ,इस घटना ने उस कवायद पर भी पलीता लगा दिया है।उत्तर प्रदेश में मुस्लिम राजनीति को लेकर लगातार उठापटक चलती रहती है और बीच में यह प्रचार भी चला कि समाजवादी पार्टी के मुस्लिम आधार में कांग्रेस कुछ सेंध लगा सकती है ।पर अब तक जो भी सर्वे उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर आए है उनमे पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों के मुकाबले कांग्रेस की सीटें आधी से भी कम आंकी जा रही है इसलिए यह धारणा कि मुस्लिम बाँट सकता है सही नहीं मानी जा सकती । समाजवादी पार्टी कि उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति में पकड़ बढ़ी है और उसके तैतालीस मुस्लिम विधायक विधान सभा में है । विधान सभा चुनाव में सपा ने जितने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किए उसमे आधे जीत गए । ऐसे मुस्लिम राजनीति कि नब्ज पहचानने वाले इन तथ्यों कि अनदेखी नहीं करते है । ऐसी राजनैतिक पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट करना प्रदेश के आहत मुस्लिम समाज को ताकत देने वाला है । प्रदेश का मुस्लिम समाज पहले से ही अमेरिका से बुरी तरह नाराज है ऐसे में अखिलेश यादव का यह कदम समाजवादी पार्टी को ताकत देने वाला साबित होगा ।जनादेश

हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट ,अखिलेश के साथ खड़ा हुआ मुस्लिम समाज

अंबरीश कुमार खनऊ, 27 अप्रैल।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का हार्वर्ड विश्विद्यालय के कार्यक्रम का बायकाट किया जाना उत्तर प्रदेश के साथ देश विदेश की मुस्लिम राजनीति को गरमा गया है। इस मुद्दे पर मुस्लिम संगठनों और बुद्धिजीवियों ने अखिलेश यादव के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि उन्होंने इसे अमेरिका जमीन पर उसे माकूल जवाब दिया है जो अबतक किसी ने नहीं किया ।इस मुद्दे पर आज समाजवादी पार्टी ने भी अमेरिका पर हमला बोलते हुए इसे उसकी नस्ल भेद नीति का उदहारण बताया है और इसका विरोध करने का एलान किया है ।यह मुद्दा अब राजनैतिक रूप भी ले चुका है । बोस्टन हवाई अड्डे पर उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान के पासपोर्ट को लेकर उनसे अलग से पूछताछ की गई थी ।आजम खान के मुताबिक मुद्दा तलाशी का नही बल्कि पासपोर्ट को लेकर देर तक पूछताछ किए जाने का था जबकि वे खुद हार्वर्ड के बुलाए पर वहाँ गए थे ।इसे लेकर हवाई अड्डे के अधिकारीयों से भी कहासुनी हुई और बाद में आजम खान ने कहा कि मुसलमान होने के नाते उनसे इस तरह का व्यवहार किया गया है ।आजम खान ने इसके बाद ही हार्वर्ड के कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला किया था । पर बाद में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत कर खुद भी हार्वर्ड के कार्यक्रम में न जाने का फैसला किया ।जबकि उससे पहले वे अनौपचारिक रूप से हार्वर्ड विश्विद्यालय में गए और वहाँ का पुस्तकालय देख कर प्रभावित भी हुए । पर आजम खान के साथ जो व्यव्हार हुआ उसका अन्तराष्ट्रीय मंच विरोध जताने के लिए उन्होंने हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट किया और अचानक वे और आजम खान दोनों मुस्लिम देशों में भी चर्चा का विषय बन गए ।आजम खान जो उत्तर प्रदेश में ही ज्यादा जाने जाते रहे है वे अंतराष्टीय स्तर पर चर्चा में आ गए । मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा -मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और आजम खान ने अमेरिका की जमीन पर जिस तरह का करारा जवाब दिया है उससे मुस्लिम समाज में उनके लिए इज्जत बढ़ गई है । अमेरिका में लगातार ऎसी हरकत होती रही है । मुसलमानों के साथ यह आम बात है । मौलाना कल्बे सादिक को भी अपमानित किया जा चुका है । पर मुख्यमंत्री ने हार्वर्ड के कार्यक्रम का बायकाट कर अमेरिका को जो सबक सिखाया है उसका दूरगामी नतीजा होगा ।कम से कम मुस्लिम समाज तो उनके इस फैसले का दिल से स्वागत करता है । लखनऊ के अब्बास हैदर ने कहा -अखिलेश यादव और आजम खान ने जो हिम्मत दिखाई है उससे मुस्लिम बिरादरी उनके साथ खड़ी हो गई है ।अमेरिकी हेकड़ी का इससे बेहतर कोई जवाब नहीं हो सकता । इस बीच समाजवादी पार्टी ने अमेरिका कि जमकर निंदा की है।समाजवादी पार्टी ने कहा है कि अमेरिका में बोस्टन एयरपोर्ट पर उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री आजम खान की तलाशी और पूछताछ के लिए अलग रोककर जो बदसलूकी की गई है उसकी जितनी निन्दा की जाए कम हैं। अमेरिका अपने को लोकतंत्र का हिमायती बताता है उसकी धरती पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के एक वरिष्ठ मंत्री के साथ ऐसा बर्ताव जाहिर करता है कि अमेरिका अपनी शक्ति के घमंड में चूर है। उसे सामान्य शिष्टाचार भी नहीं आता है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने आज यहां पार्टी मुख्यालय पर कहा - मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने साथ गए वरिष्ठ मंत्री के साथ दुर्व्यवहार पर जो सख्त रूख अपनाया है वह उनकी परिपक्व राजनीति को दर्शाता है। भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान को चुनौती देनेवालों को यह कड़ा जवाब है। मुख्यमंत्री जी ने हार्वर्ड में महाकुम्भ प्रबंधन पर अपनी प्रस्तुति रद्दकर राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा की है। अखिलेश यादव ने जता दिया है कि वे एक सच्चे समाजवादी हैं और लोहिया के सिद्धांतों पर चलनेवाले है। अमेरिका ने एक मुस्लिम के नाते आजम खान की विशेष जांच करके अपनी नस्लभेदी मानसिकता जता दी है। डा लोहिया को अमेरिका में ऐसे ही एक प्रसंग में रंगभेद का विरोध करने पर गिरफ्तार तक किया गया था। आजम खान की मुस्लिम होने के नाते जामातलाशी अमेरिकी अधिकारियों ने जता दिया है कि मुसलमानों के प्रति उनमें कितना गहरा पूर्वाग्रह है। अमेरिका की निगाह में हर मुसलमान आतंकवादी है और उससे अमेरिकी सुरक्षा को खतरा है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम, सिने अभिनेता शाहरूख खान और अब आजम खान के साथ अभद्र आचरण यही साबित करता है कि अमेरिका लोकतंत्री व्यवस्था के बजाय अपनी तानाशाही प्रवृत्ति का परिचय दे रहा है।

Friday, April 19, 2013

कहवाघर से काफी हाउस का सफर

लोहिया ,फिरोज गांधी ,जनेश्वर और चंद्रशेखर से लेकर मजाज का भी अड्डा रहा अंबरीश कुमार लखनऊ ,19 अप्रैल ।करीब साढ़े सात दशक से लखनऊ का काफी हाउस उत्तर प्रदेश के राजनैतिक घटनाक्रम का गवाह रहा है । अब इसके पचहत्तर साल पूरे होने पर एक आयोजन की तैयारी हो रही है जिसमे इसके इतिहास को याद करने के साथ काफी हाउस के पुराने स्वरुप को बहाल करने का प्रयास किया जाएगा ।इसने अंग्रेजों का दौर देखा तो आजादी का आंदोलन के दौरान भी यह बहस का अड्डा रहा और बाद में राजनीतिकों ,साहित्यकारों ,कलाकारों और छात्र नेताओं का भी अड्डा बना । यहां पर बैठने वालों में आचार्य नरेंद्र देव ,राम मनोहर लोहिया ,हेमवती नंदन बहुगुणा ,चंद्रशेखर ,एनडी तिवारी ,वीर बहादुर सिंह ,जनेश्वर मिश्र ,फिरोज गांधी जैसे राजनितिक थे तो यशपाल ,भगवती चरण वर्मा और अमृतलाल नागर जैसे साहित्यकार थे मजाज जैसे शायर के अलावा नौशाद ,कैफी आजमी से लेकर चित्रकार रणवीर सिंह बिष्ट भी यहां बैठते रहे ।भगवती चरण वर्मा टेम्पो से काफी हाउस आया करते थे ।उस दौर के दिग्गज पत्रकारों में चेलापति राव ,के रामाराव ,सीएन चितरंजन ,एसएन घोष ,चंद्रोदय दीक्षित ,कपिल वर्मा आदि शामिल थे । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लखनऊ का यह काफी हाउस कितना महत्व रखता रहा है । सिर्फ दो मुख्यमंत्री इस काफी हाउस में नहीं आए एक चौधरी चरण सिंह तो दूसरे सीबी गुप्ता ।सीबी गुप्ता को लगता था काफी हाउस में उनके खिलाफ साजिश रची जाती है तो चौधरी चरण सिंह कभी बाजार ही नहीं जाते थे इसलिए वे काफी हाउस के बाहर से ही निकल जाते थे कभी भीतर नहीं गए । पर काफी हाउस ने बदलता हुआ लखनऊ देखा है और दिग्गज नेताओं को यहां लोग बहस करते देख चुके है ।लखनऊ में बैठकबाजी के प्राचीन अड्डों में कहवा घर रहा है जो यहां ईरान से आने वालों का तोहफा माना जाता ।इन कहवा घर का उल्लेख उर्दू साहित्य में भी मिलता है जहां पहले दास्तानगो किस्से सुनाया करते थे ।बाद में यहाँ काफी हाउस खुला । अंग्रेजो के समय में चालीस के दशक में हजरतगंज में आज जहां गांधी आश्रम है वही पर पहला इन्डियन काफी हाउस खुला था ।इसे काफी बोर्ड ने खोला था पर १९५० आते आते काफी बोर्ड ने देश के ज्यादातर काफी हाउस बंद कर दिए ।जिसके बाद कर्मचारियों ने इंडियन काफी हाउस वर्कर्स कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर देशभर में फिर से काफी हाउस की कई शाखाएं खोल दी जिसमे पांडिचेरी ,त्रिशुर ,लखनऊ ,मुंबई ,दिल्ली ,कोलकोता ,पुणे और लखनऊ भी शामिल था । तब लखनऊ में यह जिस जहांगीराबाद बिल्डिंग में शुरू हुआ वही आज भी है । करीब तीन दशक से इस काफी हाउस में नियमित बैठने वाले प्रदीप कपूर ने कहा -यह काफी हाउस उत्तर प्रदेश की साढ़े सात दशक कि राजनीति का गवाह रहा है ।जहां लोहिया,चंदशेखर से लेकर फिरोज गांधी तक बहस करते थे तो मजाज जैसे शायर का भी एक ज़माने में यह अड्डा रहा ।अस्सी के दशक में छात्र नेताओं का भी अड्डा बना । बीच में यह काफी बुरे दौर से भी गुजरा पर अब यह फिर आबाद हो रहा है ।काफी हाउस को हम काफी हाउस आंदोलन के रूप में देखते है।इसे बनाए और बचाए रखने के लिए अगले साल काफी हाउस आंदोलन के पचहतर साल पर एक यादगार कार्यक्रम करने की योजना है ताकि नई पीढ़ी इसके इतिहास को समझ सके । गौरतलब है कि काफी हाउस बीच में बंद हो गया था और इसकी बिजली भी काट दी गई थी । अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने कहा -इसकी संचालिका अरुणा सिंह ने जब यह जानकारी दी तो हमने जरुरी कदम उठाया और बिजली जोड़ी गई । यह काफी हाउस ऐतिहासिक है जहां आचार्य नरेंद्र देव ,लोहिया और चंद्रशेखर तक बैठते थे ।मै खुद भी समय निकाल कर वहाँ बैठने वाला हूँ ।इसे बचाने की और पुरानी संस्कृति को बहाल करने के लिए जो भी मदद होगी मै भी करूँगा । गौरतलब है कि आज भी काफी हाउस की दो तीन मेजों पर राजनीतिक और साहित्यकार व पत्रकार बैठे मिल जाएंगे । पर बाकी पर नौजवान लड़के लड़कियां जो कभी पहले के दौर में नहीं दिखते थे वे नजर आते है ।पर आंदोलन के लोग भी यहां आते है और संचालिका अरुणा सिंह खुद अन्ना हजारे के आंदोलन से भी जुडी हुई है ।पर भुनी हुई उस काफी का स्वाद नहीं मिलता क्योकि काफी के बीज पीसने वाली मशीन नहीं है ।जनसत्ता

Thursday, April 18, 2013

ब्राह्मण क्या फिर शंख बजाएगा

ब्राह्मण क्या फिर शंख बजाएगा सविता वर्मा लखनऊ ,१८ अप्रैल । बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आज फिर ब्राह्मण बिरादरी को याद किया और उन्हें लोकसभा चुनाव में करीब एक चौथाई टिकट भी देने जा रही है । पर इस बार क्या सर्वजन और बहुजन फिर साथ खड़ा हो पाएगा यह बड़ा सवाल है । मायावती ने आज यहां फिर सवर्णों को भी आरक्षण देने की वकालत की है। वे आज यहां ब्राह्मण सम्मेलन में बोल रही थी ।पर ब्राह्मण उनके साथ आएगा या नहीं यह बसपा के बड़े नेताओं को भी साफ़ नहीं है ।पिछले विधान सभा चुनाव में बसपा ने अस्सी ब्राह्मणों को टिकट दिया था जिसमे सिर्फ दस जीत पाए यानी सत्तर हार गए ।यह ब्राह्मण या सव्जन के साथ बहुजन के संबंधों को उजागर करने वाला तथ्य है । वर्ष २००७ के विधान सभा चुनाव में ब्राह्मणों ने बसपा का साथ दिया तो सूबे में सरकार बदल गई । तब नारा था ' ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी आगे चलता जाएगा ।' यह वह दौर था जब समाजवादी पार्टी के बाहुबलियों के आतंक के खिलाफ मध्य वर्ग खासकर अगडी जातियों ने सपा के खिलाफ एकजुट होकर वोट दिया था क्योकि मायावती का नारा था ' चढ गुंडों की छाती पर मुहर लागों हाथी पर ।' इस नारे ने जो माहौल बनाया उससे मायावती अपने बूते बहुमत से सत्ता में आई ।पर सत्ता में आने के बाद उनका रास्ता भी अराजकता कि तरफ जाने लगा । जिन ब्राह्मणों ने बसपा को वोट दिया उसका प्रतिनिधित्व ऐसे लोगों के हाथों में चला गया जो नीचे से राजनीति में नहीं आए बल्कि ऊपर से थोपे गए और राजनैतिक संस्कृति से कटे हुए भी थे । मशहूर वकील सतीश मिश्र भी इसका ही उदाहरण माने जाएंगे जिन्हें मीडिया और मायावती दोनों ने पार्टी का ब्राह्मण चेहरा बना दिया । जबकि ब्राह्मणों ने किसी का चेहरा देख कर नहीं बल्कि मुलायम सरकार को हटाने की प्रतिक्रिया में मायावती को वोट दिया था । यह ग़लतफ़हमी बीते विधान सभा चुनाव में साफ़ हो गई जब बसपा के एक से एक दिग्गज ब्राह्मण उम्मीदवार हार गए। नकुल दुबे,राकेशधर त्रिपाठी ,रंगनाथ मिश्र से लेकर अनंत कुमार मिश्र की पत्नी तक इसमे शामिल है । अस्सी टिकट देने के बावजूद जीत कर आने वालों कि संख्या इसकी चौथाई भी नहीं पहुँच पाई । यह सर्वजन की वह हकीकत है जिसे समझना होगा । इसके बाद तो प्रमोशन में आरक्षण की समर्थक बसपा के खिलाफ अगडी जातियां खड़ी हो चुकी है तो नतीजा समझा जा सकता है ।पर असली वजह जनाधार विहीन नेताओं को आगे बढ़ाना रहा जिन्होंने अपने हित परिवार के हित के आगे कुछ सोचा नहीं ।इससे आम ब्राह्मण मतदाता नाराज हुआ ।दूसरे जिस कानून व्यवस्था के नाम पर सरकार सत्ता में आई वह कानून व्यवस्था बाद में और बिगड गई । एक इंजीनियर वसूली के चक्कर मे पीट पीट कर मारा गया तो दिन दहाड़े सीएमओ कि हत्या कर दी गई ।शीलू से सोनम तक के नाम उसी दौर में कानून व्यवस्था पर ही टिपण्णी कर रहे थे ।ऐसे में सरकार के खिलाफ उन्ही ब्राह्मणों ने फिर वित् दिया जो उन्हें सत्ता में लाए थे । यह वोट किसी सभा सम्मलेन से न तो जुटा था और न आगे जुटेगा ।इसके लिए बसपा को फिर से नई रणनीति पर विचार करना होगा तभी उनके राज में अपमानित सर्वजन दोबारा वापस आने पर सोच सकता है ।जनादेश

Wednesday, April 10, 2013

इन सफ़ेद फूलों की सादगी

इन सफ़ेद फूलों की सादगी अंबरीश कुमार सुबह से बगीचे में हूँ । बगीचा अब अपने पास एक ही जगह है वह भी पहाड़ पर जो करीब दो नाली का है । जिसे गज में नापने चाहे तो पांच सौ वर्ग गज के बराबर होता है जिसमे दो कमरे का ड्यूप्लेक्स '' भी शामिल है । यह फल और फूलों से घिरा हुआ है । कल से इस बगीचे में कई बार टहल चूका हूँ । मौसम ठंढा है और अपने साथी राजू जैकेट शाल और टोपी में बंधे हुए है ।फूलों के पौधों पर तो कम फूल है पर फलों के पेड़ फूलों से लद गए है । सेब के पेड़ों पर सफ़ेद फूलों के गुच्चे भरे हुए है और स्थानीयभाषा में कहें तो फल की सेटिंग होने लगी है । इस साल हालैंड की विशेष प्रजाति के उन सेब पर भी फूल आ गए है जिन्हें पिछले साल अपन ने लगवाया था । इसे देख कर बहुत ख़ुशी हो रही है । बरसों पहले गाँव में दशहरी आम के साथ अमरुद और कटहल अदि का पेड़ लगाया था जिसका फल कभी नहीं खा पाया पर है बहुत फल आता है । पर अबकी अपना लगाया फल और वह भी सेब का सामने फूलों से लदा तैयार था । जब लगाया था तो इसे इसे अपने उन करीबी लोगों के नाम समर्पित किया था जो अचानक छोड़ कर चले गए । सबसे पहले मम्मी गई । उसके बाद बड़ा धक्का प्रभाष जी के जाने का लगा और अंत में साथी आलोक तोमर जो यही पर रुकते थे और इस बगीचे में सिर्फ सिगरेट पीने आते और देर तक सामने के देवदार को देखते । सेब का पेड़ आलोक को बहुत पसंद था । पिछले साल उनकी याद में एक निजी आयोजन किया था । अबकी एक प्रदर्शनी करना चाह रहा हूँ पर्यावरण को लेकर ।महादेवी सृजन पीठ में जो महादेवी जी का घर है । महादेवी वर्मा के इस घर के भी पिचहत्तर साल पूरे हो गए है । कुछ मित्र लोग आना चाहते है अपनी व्यवस्था के साथ जिनके साथ एक दो शाम गुजरेगी । चंचल एक पेंटिंग भेज रहे है जो फ़िलहाल अभी पहुंची नहीं है । सोनू ने सौ साल से करीब दो साल पीछे चल रहे रस्तोगी साहब और उनकी पत्नी की बहुत खुबसूरत फोटो थी जो कल शाम हम सब जब देने गए तो जर्मन टेक्नीकल विश्विद्यालय में हिंदी पढ़ाने वाली अंजना सिंह और उनके जर्मन छात्र छात्राए भी साथ थी । फिर रस्ते भर सेब के सफ़ेद फूलों के बीच से गुजरे । हालाँकि आम के बौर की तरह इनमे कोई मादक खुशबू नहीं होती ।पर सेब के फूल की सादगी आपका ध्यान जरुर खींचती है । जर्मनी की मारियों ने एक पक्षी के बारे में पूछा जिसकी आवाज लगातार आती रहती है और पहाड़ में गूंजती है । मैंने बताया यह पहाड़ की कोयल है जिसकी आवाज मैदान के कोयल से ज्यादा तेज होती है ।शाम तक बीन्स ,धनिया ,भिंडी और मूली के बीज क्यारियों में डलवाता रहा । सविता ने एक तुलसी ,दो पौधे कर्निएशन और एक आर्चिड भेजा था जो कुछ ही दिन में लखनऊ की गर्मी में झुलस जाता । इस सबको क्यारियों में लगवाने के बाद जिम्मेदारी से मुक्त था ।घोटू नाम की कुतिया जो करीब बारह साल से साथ थी उसे कुछ महीने पहले बाघ ले जा चूका था और अपना टाइगर उस सदमे के बाद से घर छोड़ रामगढ बाजार की पुलिस चौकी में रहने लगा है । बाजार में मिला तो कुछ देर साथ भी रहा ।अब परिवार के साथ जाने पर ही वह घर लौटेगा । मौसम ख़राब होने लगा है और हम लौटने की तैयारी कर रहे है ताकि बर्ष से पहले पहाड़ से नीचे उतर जाए ।

Friday, April 5, 2013

अब कारपोरेट घराने करेंगे खेती

अंबरीश कुमार लखनऊ: अप्रैल । केंद्र सरकार खेती के लिए कारपोरेट घरानों को करीब तीन हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी देने जा रही है । जिससे बड़े कारपोरेट दलहन तिलहन और आलू से लेकर केला तक उगाएंगे । यह कारपोरेट घराने उत्तर प्रदेश ,राजस्थान ,मध्य प्रदेश से लेकर गुजरात छतीसगढ़ और पंजाब जैसे कई राज्यों में अब खेती कराएंगे । एक तरफ सरकार की बेरुखी से जहां हजारों किसान ख़ुदकुशी कर रहे कारपोरेट घरानों को खेती की जिम्मेदारी देना हैरान करने वाला है । यह टिपण्णी किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष डा सुनीलम की थी जो अब इस मुद्दे को लेकर कई किसान संगठनों के साथ उठाने जा रहे है । सुनीलम ने जनसत्ता से कहा -. किसान संघर्ष समिति के साथ अखिल हिन्द अग्रगामी किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राघवशरण शर्मा ने इस मुद्दे पर व्यापक ढंग से विरोध करने का फैसला किया है ।उत्तर प्रदेश में किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने इसका पुरजोर विरोध करने का एलान किया है । किसान नेताओं ने कहा है कि हाल ही राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत दस लाख किसानों को लेकर तैयार की गई कम्पनियों की तरफ से पेश सात हजार करोड़ रुपए की योजना केन्द्र सरकार ने स्वीकृत की है, जिसमें 2900 करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में देने का प्रावधान है। सुनीलम् ने बताया कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी से समग्र कृषि विकास (पीपीपीआईएडी) के तहत तैयार की गई इस योजना में 35 प्रस्ताव शामिल है। आईटीसी, गोदरेज एग्रोवर्ट, अडानी, मैरिको, नेसले, टाटा केमिकल्स, श्रीराम, नेशनल स्पाट एक्सचेंज लिमिटेड ., एनएसएल, काटन कार्पो, एनएसएल शुगर्स, एवं एनएसएल टेक्सटाईल्स, नुजिवीदु सीड्स, एक्सेस लाइवलीहुड कन्सल्टिंग प्रालि., भूषण एग्रो, एफआरटी एग्री वेंचर्स, ग्रामको इंफ्राटेक तथा निड ग्रीन्स कम्पनियां शामिल हैं। ये परियोजनाएं 17 राज्यों की 12 लाख हेक्टेयर भूमि पर संचालित होंगी। इनको कार्यान्वित करने के लिए बिहार, आंध्र, तमिलनाडु, राजस्थान, मध् यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बंगाल, मिजोरम, गुजरात, ओड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और झारखण्ड राज्यों के 11 लाख किसानों की भूमि चयनित की गई है।उत्तर प्रदेश में टाटा केमिकल्स से लेकर आईटीसी बड़े पैमाने पर इस तरह की खेती करेंगी और किसानो से मटर चना से लेकर सरसों तक की खेती कराएंगी । किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार ने एक तरफ खेती को घाटे का सौदा बना दिया जिससे कर्ज के बोझ तले किसान आत्महत्या के लिए विवश हो रहा है, दूसरी ओर सरकार किसानों को सब्सिडी बढ़ाने की बजाय उसे खत्म करने पर आमादा है। अब कारपोरेट को बड़ी सब्सिडी देकर सरकार ने किसान संगठनों के इस आरोप को प्रमाणित कर दिया है कि केन्द्र सरकार किसान से भूमि हथियाकर कार्पोरेट को सौंपने की नीयत से कार्य कर रही है। किसान नेताओं ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा कांग्रेस और भाजपा से जुड़े किसान संगठनों से खेती के कार्पोरेटाईजेशन पर सरकार और संगठन की नीति स्पष्ट करने की मांग की है। विशेषतौर पर इस संदर्भ में कि खेती राज्य का विषय है तथा राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार के किसी भी फैसले पर अमल करने या न करने का अधिकार प्राप्त है।जनसत्ता

Thursday, April 4, 2013

उतर प्रदेश में क्या समाजवादी कैडर में बदल गई है पुलिस !

अंबरीश कुमार लखनऊ: 4 अप्रैल । उत्तर प्रदेश में पुलिस क्या समाजवादी कैडर में बदल गई है ,यह सवाल विपक्ष का है । यही वजह है कि कानून व्यवस्था की बिगडती हालत को सुधारना मुश्किल होता जा रहा है । वैसे भी पुलिस के तठस्थ अफसरों का मानना है कि उतर प्रदेश में पिछले कुछ सालों में तीन तरह की पुलिस काम कर रही है जिसे समाजवादी पुलिस ,बहुजनी पुलिस और सामान्य पुलिस के रूप में जाना जाता रहा है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विधान सभा में कह चुके है कि बसपा के राज में पुलिस सत्तारूढ़ दल के काडर के रूप में काम करती रही है इसलिए जब एक दल की सरकार पर यह आरोप चस्पां हो सकता है तो फिर सत्ता बदलने पर दूसरा दल भी अगर पुलिस को काडर में बदल दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद बहुजनी पुलिस का शिकार हो चुके है इसलिए उनकी बात गलत भी नहीं है । पुलिस ने मायावती सरकार के समय जिस तरह उन्हें गिरफ्तार किया था वह लखनऊ के लोगों को याद है । वह एक घटना नहीं थी बल्कि कई घटनाएँ ऐसी हुई जिससे पुलिस का बर्बर चेहरा सामने आया था । चाहे विधान सभा पर छात्राओं को गिराकर बेदर्दी से पीटना हो या सपा के युवा नेता का सर बूट से कुचलना हो । अब फिर हालत बिगड़ रही है और विपक्ष फ़ौरन आंकड़े पेश कर बताने लगता है कानपूर के बाइस थानों के थानेदार यादव है तो गोंडा से लेकर गाजियाबाद तक में ज्यादातर थानों के थानेदार सत्तारूढ़ दल की बिरादरी के है । हालाँकि जाति से ही पुलिस का चरित्र बदल जाता हो यह बात गले नहीं उतरती । लखनऊ में एक महिला थानेदार है शिवा शुक्ल जो अपने कामकाज के नए कीर्तमान कायम कर रही है और पुलिसिया हथकंडों को लेकर उनकी शिकायत लखनऊ ही नहीं दिल्ली के आला अफसरों तक पहुँच चुकी है पर कोई बदलाव नहीं आया है । पर फिर भी विपक्ष के निशाने पर एक खास जाति के ही अफसर निशाने पर होते है । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आज इलाहाबाद जनपद में पुलिसकर्मियों के घर में घुस कर महिलाओं के साथ की गई बदसलूकी और कई महिलाओं को घायल करने की घटना को राज्य सरकार के माथे पर कलंक का निशान बताते हुए इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना की है । भाकपा ने इस घटना के सभी दोषियों को फौरन गिरफ्तार करने की मांग की है । पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि प्रदेश में महिलाओं के साथ दुराचार,उनकी हत्याएं और उत्पीडन की वारदातें थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं । भाकपा का मानना है कि इसकी मुख्य वजह पुलिस-प्रशासन का राजनीतिकरण और उसका एकपक्षीय हो जाना है । प्रदेश सरकार ने ऊपर से नीचे तक हर स्तर पर बड़ी तादाद में एक ही पक्ष के लोगों को तैनाती की नीति अपना रखी है. दलित, कमजोर वर्गों तथा अन्य तबकों से आने वाले अधिकारियों-कर्मचारयों को पुलिस एवं प्रशासन की मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया है । डा गिरीश का इशारा सभी समझ सकते है और इसे समझने के लिए किसी खास योग्यता की जरुरत भी नहीं है । दूसरी तरफ भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक खुलकर कहते है कि जब एक जाति वाले पुलिस पर हावी हो जाएंगे तो संतुलन बिगड़ेगा ही । खुद मुख्यमंत्री अगर सभी जिलों के थानेदारों की सूची देख लें तो उन्हें यह असंतुलन नजर आ जाएगा । दरअसल समाजवादी पार्टी के पहले की सरकार और इस सरकार में काफी फर्क आया है और जिस तरह पिछली सरकारों में जातीय समीकरण का ध्यान रखा जाता था वैसा इस सर्कार खासकर अखिलेश यादव से अपेक्षित नहीं है । इसलिए हैरानी जरुर होती है । पार्टी वोट की राजनीति से चलती है इसलिए उसकी मज़बूरी सभी समझते है पर इसका संतुलन जब बिगड़ता है तो उस पार्टी को खामियाजा भी भुगतना पड़ता है जिसे अन्य जातियों का भी वोट चाहिए होता है । बसपा का सत्ता से बाहर जाना इसका उदाहरण जिसे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समझना चाहिए ।