Monday, March 25, 2013

अख़बार ,सुप्रीम कोर्ट और मारकंडे काटजू की ख़ामोशी

जस्टिस मारकंडे काटजू हर सवाल पर बोलते है .वे सरकार पर बोलते है तो नेता से लेकर अभिनेता तक पर बोलते है .पर प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष के रूप में वे मीडिया के कई महत्वपूर्ण सवाल पर खामोश है जो उनकी ही बिरादरी से जुड़ा है .मजीठिया वेज बोर्ड मामला सुप्रीम कोर्ट में करीब एक साल से जिस तरह से लटका हुआ है और आगे भी उसके लटके रहने की आशंका है उससे सुप्रीम कोर्ट और कई बड़े वकीलों को लेकर तरह तरह की अटकले लगाई जा रही है .अख़बार मालिकों का पक्ष देश के जाने माने वकील लाखों रुपये फीस लेकर रखते है और प्रयास यह हो रहा है कि लगातार सुनवाई आगे बढती जाए .कभी बेंच बदल जाए तो कभी रिटायर होने वाले जस्टिस की बेंच में यह मामला चला जाए ताकि उसके रिटायर होने के बाद फिर नई बेंच गठित हो और सुनवाई आगे बढ़ जाए .यह तौर तरीके निचली अदालत में खूब चलते है .पर सुप्रीम कोर्ट में यह अख़बारों से जुड़े पत्रकार और गैर पत्रकारों के सवाल पर हो रहा है जो शर्मनाक है .अख़बार मालिकों का ऐसा दबाव सुप्रीम कोर्ट में पहले नहीं दिखा .पर इस सवाल को जस्टिस मारकंडे काटजू नहीं उठाते है .यह श्रमजीवी पत्रकारों का मामला है और वे प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष भी है .वे कभी यह सवाल नहीं उठाते कि न्याय में यह देरी जो उनके साथ के लोग कर रहे है वे किसका साथ दे रहे है .वे कभी यह सवाल नहीं उठाते कि अख़बार में काम करने वालों को संसथान कोई न्यूनतम वेतन दे रहा है या नहीं .पर वे न्यूनतम योग्यता का सवाल जरुर उठा रहे है .वे मीडिया संस्थानों ठेका प्रणाली पर सवाल नहीं उठाते .वे यह भी चिंता नहीं जताते कि जिलों में काम करने वाले संवादाताओं को एक मजदूर के बराबर मजदूरी मिलेगी या वह खुद कमाओ खुद खाओं के सिद्धांत पर चलता रहेगा .यह सारे सवाल मीडिया से जुड़े है .काटजू ने हाल में ही कहा था कि वे जब बोलते है तो देश सुनता है .अब अपना विनम्र अनुरोध है कि वे मीडिया के सवाल पर बोले .सुप्रीम कोर्ट में जो हो रहा है उस पर मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखे .वे श्रमजीवी पत्रकारों की सामाजिक आर्थिक सुरक्षा पर सवाल उठाए .जो मीडिया संसथान करोड़ों का विज्ञापन ले सकते है वे अपने पत्रकारों को कोई न्यूनतम वेतन और सुविधाए दे इस इस विज्ञापन की शर्त पर सुनिश्चित किया जा सकता है यह हम भी जानते है और अख़बार मालिक और सरकार भी .अब काटजू कुछ बोले तो मीडिया का कुछ तो भला हो .दिल्ली के अखबारी ट्रेड यूनियन नेताओं से हुई बातचीत के बाद इसे लिख रहा हूँ . अंबरीश कुमार

Tuesday, March 19, 2013

आलोक तोमर

आज को गए दो साल पूरे हो गए .संभवतः 1988 के मई में अपनी पहली मुलाक़ात एक्सप्रेस बिल्डिंग में हुई थी ..जबरदस्त गर्मी थी और रात में भी लू चल रही थी .तब विजयप्रताप के आस्था कुटीर में रूका था जो समाजवादी साथियों का अड्डा था .जनसत्ता ज्वाइन करने के बाद उन्हें लड़ते, भिड़ते और लिखते देखा .उनकी खबर का संपादन भी किया जो बहुत मुश्किल होता था क्योकि कही से भी कोई शब्द हटाने का अर्थ पूरी स्टोरी का संतुलन बिगाड़ना होता .कई बार इसे लेकर नाराजगी भी जताई .एक बार आलोक ने कहा ,मै सिर्फ एक वाक्य में पूरी स्टोरी लिख दूंगा और उसका संपादन आसान नहीं होगा .वे जनसत्ता में प्रयोग के दिन थे और प्रभाष जोशी के नेतृत्व में हम सभी सातवें आसमान पर रहते थे .रामनाथ गोयनका वही एक्सप्रेस बिल्डिंग में बैठते थे और एक बार बिजली चली गई तो मैंने उन्हें कमरे से बाहर आकर धोती सँभालते गुस्से में कोहली (जीएम ) को गाली देते हुए देखा .तब वे काली फियट खुद चला कर आते थे .बाद में आलोक सुप्रिया की शादी में आए और बहुत देर तक रहे .परसों ही सुप्रिया भायुक होकर कह रही थी कि जिन लोगों को बीस के कार्यक्रम के लिए बुला रही हूँ उनमे कई तो ऐसे लोग है जिन्होंने मुझे बीस बाइस साल की उम्र से आलोक के साथ देखा है मसलन बनवारी ,कुमार आनंद आदि .आलोक कुछ भी लिख सकते थे और किसी पर भी .एक लेख देखे उनका लिखा हुआ .

Monday, March 18, 2013

कांग्रेस के गले की हड्डी न बन जाएं बेनी बाबू

अंबरीश कुमार लखनऊ: मार्च । खांटी समाजवादी का बडबोलापन कांग्रेस के गले की हड्डी बनता नजर आ रहा है । विधान सभा चुनाव में बेनी बाबू ने इसी तरह की टिपण्णी की और कांग्रेस को लगा कि बेनी के चलते अवध क्षेत्र में कुर्मी एकजुट हो जाएंगे और पार्टी को बहुत फायदा होगा क्योकि टिकट में भी उनकी चली थी । पर नतीजा आया तो कांग्रेस साफ़ थी और बेनी बाबू अपने पुत्र की जमानत तक नहीं बचा पाए थे । अब बेनी ने मुसलमानों को लेकर मुलायम के खिलाफ जो टिपण्णी की है उसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है । मुसलमानों के खिलाफ यही सबसे बड़ा हमला होता है कि वे आतंकवादियों का साथ देते है । आजमगढ़ के संजरपुर को तो आतंकवादियों की नर्सरी तक कहा जा चुका है । इसके बाद आजमगढ़ में कांग्रेस ने नेताओं ने विधान सभा चुनाव में जिस तरह के बयान दिए उससे मुसलमान आहत हुए और कांग्रेस को पूर्वांचल में इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा । अब जब पूर्वांचल में अल्पसंख्यक समुदाय आशंकित है तब बेनी की यह टिपण्णी हिंदू कट्टरपंथी ताकतों को ताकत देने वाली साबित हो रही है । बेनी के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि सिर्फ देवबंदी मुसलमान उनकी टिपण्णी से नाराज है और बरेलवी और शिया समुदाय खुश । क्योकि अखिलेश सरकार में इन दोनों की हिस्सेदारी बहुत कम है । पर यह तर्क अल्पसंख्यक समुदाय के गले के नीचे नहीं उतर प़ा रहा । मुसलमानों को आतंकवादियों का शुभचिंतक बताने का प्रचार राष्ट्रीय फलक पर हो रहा है और मुलायम सिंह के बहाने अगर बेनी ने भी वही काम किया है तो उसकी राजनीति को भी समझना होगा । अवध क्षेत्र में मुस्लिम राजनीति पर नजर रखने वाले रिजवान ने कहा -बेनी गोंडा से चुनाव लड़ेंगे और वह मुसलमानों का बरेलवी समुदाय है जिनका देवबंदियों से छतीस का आंकड़ा है इसलिए वे इस टिपण्णी से बेनी के साथ आ गए है । पर यह तर्क समूचे प्रदेश और देश की राजनीति के लिहाज से अलग नजर आ रहा है । आज उत्तर प्रदेश विधान सभा के सामने मुस्लिम नौजवानों ने बेनी का पुतला फूंका तो उसमे सभी शामिल थे । कांग्रेस के एक कार्यकर्त्ता परवेज ने कहा -जब राहुल गाँधी मुसलमानों को कांग्रेस के पक्ष में लेन का प्रयास कर रहे हो और प्रदेश में आतंकवाद के नाम गिरफ्तार निर्दोष नौजवानों को रिहा करने की मांग हो रही हो ऐसे में बेनी की यह टिपण्णी मुसलमानों को आहत करने वाली है और वे तो मुलायम सिंह को और मजबूत कर रहे है । ऐसी ही टिपण्णी से बेनी विधान सभा चुनाव में पार्टी का भठ्ठा बैठा चुके है । इस बीच समाजवादी पार्टी ने आज कहा कि कांग्रेस का एक केन्द्रीय मंत्री श्री मुलायम सिंह यादव पर बेहूदा आरोप लगाता है कि आतंकवादियों से उनके रिश्ते हैं। कांग्रेस हाईकमान ने झूठे और अनर्गल बयानबाजी करनेवाले मंत्री से अभी तक इस्तीफा नहीं लिया गया है। यह एक गम्भीर मसला है जिस पर कांग्रेस नेतृत्व की तीन दिनों से चुप्पी जताती है कि मुस्लिमों को वह आतंकवादी ही मानती है। कांग्रेस के इस राजनीतिक मर्यादा से गिरे चरित्र से धर्मनिरपेक्षता कमजोर पड़ती है। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि कांग्रेस का काम राजनीति को प्रदूषित करना और खासकर मुस्लिमो को गुमराह करना रह गया है। आजादी के बाद कांग्रेस ने मुस्लिमो को विभाजन का दोषी ठहराकर और उनका भयादोहन कर वोट हासिल किए। जब मुस्लिमों के सामने सच्चाई आई तो वे कांग्रेस से छिटककर दूर हो गए। कांग्रेस ने तब उनकी बाबरी मस्जिद के ध्वंस में मदद की, मंदिर का शिलान्यास कराया। अब जब कांग्रेस का सत्ता जाने की बेचैनी है तो फिर मुस्लिमो के लिए उसके नेता घड़ियाली आंसू बहाने लगे हैं।जनसत्ता फोटो -विधान सभा के सामने बेनी का पुतला फूंकते मुस्लिम नौजवान

Friday, March 15, 2013

पोस्ट कार्ड ,अंतरदेशीय और लिफाफा

पोस्ट कार्ड ,अंतरदेशीय और लिफाफा अंबरीश कुमार कल गोरखपुर से आई पुरानी फ़ाइल देखने बैठा क्योकि पापा के घर का बिजली का बिल जमा करने के लिए उनका कंजूमर नंबर के साथ मीटर नंबर आदि चाहिए था तो अचानक एक फ़ाइल पर निगाह गई जो पत्रों से भरी थी । बंगलूर के पते के कई पोस्ट कार्ड ,अंतर देशीय और लिफाफे । घर के मम्मी के ढेर सारे पत्र के अलावा अन्नू का पत्र ,ज्यादा से संवाद था ही नहीं । पर मित्रों और संगठन के साथी कार्यकर्ताओं के पत्र देख कर मन भर गया । मित्रों में जो अब प्रतिष्ठित पत्रकार बन चुके है आलोक जोशी ,वासिंद्र मिश्र ,रामेन्द्र जनवार ,राजेंद्र तिवारी ,आशुतोष मिश्र ,मानुषी की संपादक मधु किश्वर ,तब नवभारत टाइम्स की डा तृप्ति ,चौधरी चरण सिंह की नातिन और संगठन की सहयोगी पत्रकार विनीता सोलंकी ,रश्मि आदि शामिल है । कुछ सर्कुलर भी जो मेरे नाम के अलावा राजेंद्र ,शाहीन ,नुपुर जुत्सी और देवेन्द्र उपाध्याय ( जो अब इलाहबाद हाई कोर्ट के जज है )की तरफ से भेजे गए थे । रामेन्द्र के चुनाव में मैंने जो पम्फलेट लिखा वह भी मिला जिसे बाद में अमृत प्रभात ने प्रकाशित किया था । बिहार में बोध गया आन्दोलन के विजय का पोस्ट कार्ड भी मिला ।हत्यारी संस्कृति यानी गर्भ में बच्चियों की हत्या के खिलाफ अपने अभियान का जो सर्कुलर मिला उसपर देवेन्द्र उपाध्याय ,शाहीन ,शिप्रा दीक्षित ,संगीता अग्रवाल ,राजश्री पन्त ,मोनिका बोस ,लीना गुप्ता ,प्रकृति श्रीवास्तव और मीनाक्षी श्रीवास्तव का नाम है ।इनमे आखि के चार नाम जिनके है उनका चेहरा ध्यान नहीं आ रहा बाकि तो साथ काम करने वाली छात्राए थी जिनमे शिप्रा फेस बुक पर है ।हर चिठ्ठी पर पता 'अंबरीश कुमार ,मनीष टावर ,जेसी रोड ,बंगलूर ,560002 ' लिखा था । सबसे रोचक राजेंद्र के पत्र की दो लाइन लगी जो अपने संगठन से जुडी थी देखने वाली है -युवा की कटिंग मसूद भेज रहा है ।वैसे युवा के वे संस्थापक सदस्य जो एलयूटिसी के नहीं है बिलकुल निष्क्रिय है ।बाद में पता चला है कि जब एक बार युवा की मीटिंग टैगोर के सामने हुई थी तब सुमिता और संदीप कैंटीन में चाय पी रहे थे ।एनी लोगों ने भी कोई उत्साह नहीं दिखाया ।अब अगर युवा को कंटीन्यू रखना है तो सारी ताकत एलयूटीसी को ही देनी होगी । क्रन्तिकारी अभिवादन के साथ आपका ,राजेंद्र तिवारी ,55 तिलक हाल लखनऊ विश्विद्यालय ।यह एक बानगी है उस दौर के लखनऊ की जब मुझे सारी गतिविधियों को छोड़ बंगलूर में एक अख़बार संभालना पड़ा । शायद जितने पत्र उस दौर में अपने पास आए और अपन ने लिखे उतने फिर कभी नहीं लिखे गए ।पात्रता भी काफी संख्या में है ,मन करता है उसका संकलन प्रकाशित करा दूँ पर इसपर राय मशविरा भी होगा । बंगलूर के उन दिनों के बारे में अगली बार

Wednesday, March 13, 2013

अस्सी के दशक में इंडियन एक्सप्रेस

अस्सी के दशक में इंडियन एक्सप्रेस दो दिन से दिल्ली में था अभी लखनऊ पहुंचा हूँ .वर्ल्ड सोशल फोरम की बैठक के अलावा गांधीवादियों की एक बैठक में शरीक हुआ .कल रात प्रेस क्लब में पुराने मित्रों से भी मिलना हुआ। सारा दिन एक्सप्रेस की लाइब्रेरी में गुजरा अस्सी के दशक में जो लिखा उसमे बहुत कुछ मिला तो काफी कुछ छूट भी गिया .वर्ष 1991 तक पहुँच चूका हूँ और अगली बार फिर चार पांच साल का लिखा देख कर ले आऊंगा .पर अस्सी के अंतिम दौर और नब्बे की शुरुआत में जनसत्ता में जो लिखा गया फिर देख कर इतिहास में लौटा .राजेंद्र माथुर ,रघुवीर सहाय ,शरद जोशी से लेकर नूतन का जाना और राजनैतिक घटनाक्रम पर प्रभाष जोशी का लिखा फिर पढ़ा .कुछ हैडिंग देखे -प्रभाष जोशी ने दलबदल पर लिखा ' चूहे के हाथ चिंदी है ' फिर एक हैडिंग -चौबीस कहारों की पालकी ,जय कन्हैया लाल की ' और एक की हेडिंग थी -नंगे खड़े बाजार में .'उस दौर में जनसत्ता में इंडियन एक्सप्रेस के जिन लोगों की खबरे छपी उनमे अरुण शोरी ,नीरजा चौधरी ,पीएस सूर्यनारायण ,पुष्पसराफ ,अश्वनी शरीन ,चित्रा सुब्राह्मनियम ,आरती जयरथ देव सागर सिंह आदि प्रमुख थे .मैंने देवीलाल का जो इंटरव्यू लिया वह जनसता के साथ एक्सप्रेस में भी प्रकाशित हुआ था वह अभी नहीं मिला है . इसी बीच विजयप्रताप का फोन आया तो जीपीएफ पहुंचा . गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन से मुलाकात हुई तो पता चला वे भी रामगढ की रहने वाली है और डाक बंगले के नीचे गाँव घर है .आना जाना लगा रहता है अब वहां भी मुलाकात होगी .बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसर और पुराने मित्र गोगी बिहार आन्दोलन के बड़े नेता रघुपति के साथ वाइएमसीए में दोपहर का खाना खिलने ले गए .खाने के बाद फिर बहादुरशाह जफ़र मार्ग के दफ्तर .अपना स्कैन कैमरा काम नहीं कर रहा था इसलिए फोटो कापी के लिए निशान लगा कर भेजना पड़ा .लाइब्रेरी में सबसे ख़राब हालत जनसत्ता की है .पर अब विवेक गोयनका के पुत्र ने कुछ सुध ली है और पुराने अख़बार को कंप्यूटर में डाला जा रहा है .इस दौरे में कुमार आनंद से लेकर मनोहर नायक से मुलाकात हुई .बहुत पहले मैंने मनोहर के साथ देव आनंद का लम्बा इंटरव्यू लिया था करीब ढाई घंटे बात हुई थी जो लिखा वह अगली बार निकलना है

Friday, March 8, 2013

राजा के लिए लामबंद हुए राजपूत तो आजम का भी मोर्चा खुला

अंबरीश कुमार लखनऊ 9 मार्च ।कुंडा के सीओ जियाउल हक़ की हत्या के मामले में फंसे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैआ के लिए उत्तर प्रदेश के राजपूत विधायक और सांसद लामबंद हो रहे है। कुंडा कांड की सीबीआइ जाँच के एलान के बाद करीब तीन दर्जन राजपूत विधायकों ने राजा भैया के साथ एकजुटता दिखाई है।सूत्रों के मुताबिक इनकी बैठक भी हुई जिसमे अन्य दल के भी विधायक शामिल हुए । भाजपा के एक शीर्ष राजपूत नेता ने भी राज भैया से संपर्क किया । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी में राजा भैया के धुर विरोधी आजम खान के समर्थकों ने भी मोर्चा खोल दिया है । राजा भैया के समर्थकों ने कुंडा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने आजम खान के खिलाफ नारेबाजी की थी तो अलीगढ मुस्लिम विश्विद्यालय में राजा भैया का पुतला फूंक कर हिसाब बराबर किया गया । आजम खान काफी पहले से राजा भैया के खिलाफ रहे है । प्रतापगढ़ के आस्थान के दंगों जिसमे मुस्लिम समुदाय के चालीस से ज्यादा घर जला दिए गए थे ,इस घटना को लेकर आजम खान ने काफी नाराजगी जताई थी । भाकपा माले न्यू डेमोक्रेसी का साफ आरोप है कि आस्थान दंगों में राजा के सहयोग से प्रवीण तोगडि़या व आरएसएस तत्वों ने मुस्लिम नागरिकों पर हमला किया था, कुंडा के सीओ जिया उल हक़ उन दंगों की जांच भी कर रहे थे इसलिए राजा की भूमिका संदिग्ध है । कुंडा में अब यह सब खुल कर सामने आ गया है । यही वजह है कि राजा भैया के लिए राजपूत विधायक लामबंद हो रहे है । यह ध्यान रखना चाहिए कि मुलायम सिंह से जब अमर सिंह अलग हुए तो राजपूत एकजुटता की जगह राजा भैया ने मुलायम का साथ दिया और अमर सिंह अलग थलग पड़ गए थे । पर अब कुंडा में सीओ जिया उल हक़ के साथ यादव भाइयों की हत्या ने सब समीकरण बदल दिए है । अखिलेश यादव ने मामला सीबीआइ को देकर फिलहाल काफी हद तक हालात को काबू में करने का प्रयास किया है पर जातीय संतुलन गड़बड़ा रहा है । हालाँकि राजा भैया हमेशा निर्दलीय रहते है पर सभी पार्टी में उनका अलग आभा मंडल है कुछ जग जाहिर है तो कुछ परदे के पीछे ।वे भाजपा के राज में भी मंत्री रहे तो सपा के राज में भी । उनके बचाव में राजपूत विधायक और सांसद जिसमे कुछ खुद भी बाहुबली है लामबंद हो रहे है ।वैसे उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों की राजनीति भी दिलचस्प रही है और कई तो कभी भी किसी दल के मोहताज नहीं रहे है । दलों के मुखिया इनके कसीदे काढते रहे है । बाहुबली मुख़्तार अंसारी जिनका लोकसभा चुनाव का प्रचार करने वाराणसी गई बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने तब कहा था - ये तो ग़रीबों के मसीहा है । वे फिलहाल किसी दल में नहीं है । इस समस्या का स्थाई समाधान करने के लिए उन्होंने खुद अपना दल बना लिया है । वे दिन में विधान सभा में प्रदेश चलने की कवायद से जुड़े रहते है तो रात को जेल पहुँच जाते है । अतीक अहमद भी फिलहाल स्वतंत्र है जो पंडित जवाहर लाल नेहरु के संसदीय क्षेत्र का भी प्रतिनिधित्व कर चुके है । उनपर बसपा विधायक राजूपाल की हत्या का आरोप है । अमरमणि त्रिपाठी भी जेल में है जिनके बारे में अगस्त 2003 में मुलायम सिंह ने कहा था -इन्होने प्रदेश ही नहीं देश को भी बचा लिया है । ऐसा नहीं कि इस खेल में सिर्फ सपा बसपा का ही वर्चस्व हो ,भाजपा भी पीछे नहीं है । राजा भैया पर जब मायावती ने पोटा लगाया तो राजनाथ सिंह से लेकर विनय कटियार तक ने एलान किया ,अब पोटा पर सोंटा चल्रेगा । अब फिर राज़ा भैया संकट में है तो प्रदेश के ज्यादातर राजपूत विधायक दलगत सीमा से ऊपर उठकर उनके साथ । राजा भैया का कुंडा में जो दबदबा है उसपर राजनैतिक विश्लेषक वीरेन्द्र नाथ भट्ट ने कहा - राजा भैया तो तुलसीदास के उस दोहे को चरितार्थ कर रहे कि भय बीन हो न प्रीत ,वे अपना राजनैतिक और कारोबारी सामराज्य बचाने के लिए वे सब हथकंडे अपनाते है जो कोई सामंत अपनाता रहा है और जो कुछ वहां हुआ वह इसी कार्यक्रम का विस्तार है । हालाँकि सीबीआइ काफी तेजी से काम कर रही है पर कामयाब हो पाएगी यह समय ही बताएगा ।