Wednesday, November 30, 2011

पिछड़ों ,अति पिछड़ों और मुसलमानों का वर्चस्व बढ़ रहा है कांग्रेस में

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,। कांग्रेस अब उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग की राह पर है। पार्टी ने विधान सभा चुनाव में इस बार जिन २१३ उम्मीदवारों को टिकट दिया है उनमे पिछड़ों ,अति पिछड़ों और मुस्लिम उम्मीदवारों को खास प्राथमिकता दी है। पहले कांग्रेस में ब्राह्मणों का जो वर्चस्व था अब वह बदल रहा है। यह इसी सोशल इंजीनियरिंग का नतीजा है। हाशिए पर रहे राम नरेश यादव मध्य प्रदेश को राज्यपाल बनाना हो या सैयद अली नकवी को झारखंड का । केंद्र में उत्तर प्रदेश के छह मंत्रियों में से तीन आरपीएन सिंह ,श्रीप्रकाश जायसवाल और बेनी प्रसाद वर्मा पिछड़ी जातियों के मंत्री है। जबकि पीएल पुनिया को अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने दलितों का एक नया नेतृत्व देने का प्रयास किया है ।
कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में पश्चिम में अजित सिंह से तालमेल हो या पूर्वांचल में कई छोटे छोटे दलों से तालमेल की कोशिश हो सभी के पीछे सोशल इंजीनियरिंग का दबाव है । पार्टी ने अप तक जो २१३ टिकट बांटे है उनमे ५६ टिकट पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को दिए जा चुके है । दूसरी तरफ २६ मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए गए है । इनके मुकाबले ब्राह्मण उम्मीदवारों की संख्या २५ है। खास बात यह है की दलितों के लिए आरक्षित सीटों के अल्वा सामान्य कोटे से भी कई दलित उम्मीदवार उतारे गए है । कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा -पार्टी की नीति सभी लोगों को साथ लेकर चलने की है और यह बात हाल ही में राहुल गाँधी के दौरे में भी दिखी जिसमे पिछड़े अति पिछड़े ,अगड़े ,दलित मुस्लिम सभी शामिल हुए । वंचित तबके को आगे बढ़ने के लिए ही कांग्रेस ने सामान्य सीटों पर भी दलित उम्मीदवारों को टिकट दिया है ।
दरअसल कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण पर पिछले कुछ समय से ध्यान देना शुरू किया है । यही वजह है कि राहुल वाराणसी में रैदास मंदिर जाते है और दलितों के साथ खाना भी खाते है । पिछली बार जब राहुल वाराणसी के दौरे पर थे और दलितों के साथ भोजन कर रहे थे तो पास के एक गांव से आए बुजुर्ग छांगुर लाल ने भावुक होकर कहा था -इंदिरा गांधी का पोता हम लोगों के साथ खाना खाएगा ,यह कभी नहीं सोचा था । यह बानगी है किस तरह दलितों और पिछड़ों व अति पिछड़ों के बीच कांग्रेस जगह बना रही है । ओमप्रकश राजभर के साथ कई अन्य पिछड़े नेताओं से चुनावी तालमेल की बात इसी बुनियाद पर हो रही है । यह कांग्रेस का नया अवतार है जिसे लेकर विरोध भी शुरू हुआ है। राहुल गांधी के पूर्वांचल दौरे में पिछड़ी जातियों को टिकट देने का जिन लोगों ने विरोध किया उनमे कांग्रेस के ब्राह्मण नेताओं के अलावा ब्राह्मण महासभा भी शामिल थी। बेनी प्रसाद वर्मा को लेकर उनके क्षेत्र में जो विरोध है वह उनके निर्वाचन क्षेत्र में समय न देने और लोगों की मांग पूरी न करने की वजह से है इसे किसी पिछड़े नेता का विरोध नहीं मन जा सकता । कुर्मी बिरादरी के वे बड़े नेता है यह ध्यान रखना चाहिए उनके व्यवहार से पिछड़ों के वोट को नहीं जोड़ा जा सकता है।

Monday, November 28, 2011

बसपा के कल्याण सिंह न बन जाए कुशवाहा


अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवम्बर। मायावती ने अंततः पार्टी के प्रमुख नेता बाबूसिंह कुशवाहा को पार्टी से हमेशा के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया है। राजनैतिक दल अपनी पार्टी से आमतौर पर सिर्फ छह साल के लिए निकालते है । बसपा तो आमतौर पर अपने निर्वाचित सांसदों और विधायकों बहुत कम पार्टी से बाहर निकालती रही है,तकी वे दलबदल कानून का फायदा न उठा ले है ऐसे में कुशवाहा को पार्टी से बाहर करने का फैसला काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश में कुशवाहा बिरादरी का चार दर्जन से ज्यादा विधान सभा सीटों पर कुशवाहा बिरादरी का असर है जो बसपा को नुकसान भी पहुंचा सकता है।इसके अलावा कुशवाहा पार्टी के आर्थिक मामलों से भी जुड़े रहे है जिसके चलते वे पहले से ही कई नेताओं और अफसरों की किरकिरी भी बने जिसके चलते वे काफी कुछ जानते है । सूत्रों के मुताबिक कई संपत्तियां उनके नाम रही जिसमे कुछ वापस ले ली गई है । बसपा ने यह भी आरोप लगाया कि कुशवाहा सीबीआई जांच से बचने के लिए कांग्रेस से मिल गए है । यह भी माना जा रहा है कि एनआरएचएम यानी स्वास्थ्य विभाग घोटाले को लेकर वे सीबीआई को महत्वपूर्ण जानकारी दे सकते है जिसकी पेशबंदी में यह कदम उठाया गया है ।
पार्टी ने आज कुशवाहा को निकलने के साथ ही उनके राजनैतिक इतिहास पर भी प्रकाश डाला। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने उन्हें निकाले जाने की जानकारी देने के साथ कहा - कुशवाहा ने कभी सीधे चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई । उन्होंने पार्टी से अनुरोध किया था कि यदि उन्हें एमएलसी बना दिया जाए तो मुझे अपने समाज को जोड़ने में थोड़ी मदद मिल जाएगी । उनके इस अनुरोध पर पार्टी ने उन्हें दो बार एमएलसी बनाया।
मौर्य ने कहा कि इसके अलावा कुशवाहा ने पार्टी हाईकमान से अनुरोध किया था कि यदि उन्हें मंत्री बना दिया जाए तो उनके लिए पूरे प्रदेश में पार्टी से अपने समाज को जोड़ना और ज्यादा आसान हो जाएगा । कुशवाहा के इस अनुरोध को स्वीकृत करते हुए पार्टी ने उन्हें बड़े विभाग का मंत्री बनाया। इसके बाद कुशवाहा ने कुछ समय के बाद पार्टी हाईकमान से यह भी अनुरोध किया कि उन्हें परिवार कल्याण विभाग का मंत्री बना दिया जाए तो उन्हें इस पद के माध्यम से प्रदेश में शोषितों, दलितों व अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों की सेवा करने का अवसर मिलेगा। इस पर उन्हें परिवार कल्याण विभाग का मंत्री भी बनाया गया।
मौर्य ने कहा कि कुशवाहा ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक ढंग से नहीं किया। जिसके कारण कुशवाहा के मंत्री रहते हुए ही इस विभाग में दो सीएमओ की हत्या हुई व एक की जिला कारागार में मृत्यु हुई। उन्होंने कहा कि कुशवाहा के मंत्री रहने के दौरान इस प्रकार के कृत्य होने पर सरकार और पार्टी की छवि खराब होते देख उन्हें बुलाकर उनसे मंत्री पद से त्याग पत्र ले लिया गया व इस विभाग की जिम्मेदारी नसीमुद्दीन सिद्दकी को सौंप दी गई ।
पार्टी चाहे जो आरोप लगाए कुशवाहा बसपा को राजनैतिक नुकसान उसी तरह पहुंचा सकते है जैसे कभी कल्याण सिंह ने भाजपा से बगावत करने के बाद पहुँचाया था ।हालाँकि कद के लिहाज से कल्याण सिंह के सामने बाबूसिंह कुशवाहा कही नहीं ठहरते पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बिरादरी का जो महत्व है उस लिहाज से कुशवाहा समूचे बुंदेलखंड से लेकर मध्य उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कुशवाहा बिरादरी की प्रतिष्ठा का भी सवाल बन सकते है । वे कई महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुके है और उस दौर में बिरादरी का भी काफी ध्यान रखा था ।
बसपा इसी वजह से ज्यादा आक्रामक है । मौर्य ने आगे कहा कि विरोधी पार्टियों व इनके परिवार जनों की मांग को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ने परिवार कल्याण विभाग में हुई इन हत्याओं व मृत्यु की जांच सीबीआई को सौंप दी । उन्होंने कहा कि गौरतलब है कि कुशवाहा पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो गए व लगातार पार्टी को छति पहुंचाने का कार्य करने लगे । इसके साथ ही उन्होंने बसपा से जुड़े अपने समाज के लोगों को अपने घर पर बुलाकर उन्हें पार्टी के खिलाफ काम करने के लिए भी काफी उकसाया ।
मौर्य ने कहा कि हाल ही में विधान परिषद के आहूत सत्र में कुशवाहा ने भाग तक भी नहीं लिया। उन्होंने विपक्षी पार्टियों के सदस्यों को सरकार के विरूद्ध हंगामा करने के लिए भी भड़काया।मौर्य ने कहा कि कुशवाहा एनआरएचएम व सीबीआई जांच से अपने को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी के लगातार संपर्क में बने रहे । इसके अलावा कुशवाहा विपक्षी पार्टी के नेताओं से मिलकर सरकार व पार्टी के विरूद्ध षड़यंत्र बराबर रच रहे हैं। jansatta

Sunday, November 27, 2011

ममता की चाल के शिकार हुए किशनजी


विवेक सक्सेना
नई दिल्ली, नवंबर। माओवादी नेता किशनजी की पश्चिम बंगाल में गुरुवार को पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत यह बताती है कि राजनीतिज्ञ सत्ता में आने के लिए किस तरह किसी का भी समर्थन लेकर सत्ता में आने के बाद उसे कैसे ठिकाने लगा देते हैं। ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में जीत के लिए माओवादियों का समर्थन हासिल किया और मुख्यमंत्री बनते ही किशनजी मुठभेड़ में मारे गए। किशनजी पिछले तीन दशक पुलिस को चकमा देते आ रहे थे।
पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले के जंगलों में सुरक्षा बलों के एक संयुक्त अभियान में मारे गए मोल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को वे राज्य के नक्सल प्रभावित इलकों की 40 विधानसभा सीटें जिताने में मदद कर रहे हैं, वही सत्ता में आने के बाद उन्हें निपटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। किशनजी और ममता बनर्जी के प्रगाढ़ रिश्तों को जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे लौटना पड़ेगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) में दूसरे नंबर के नेता माने जाने वाले किशनजी पर सौ लोगों की हत्या करने का आरोप था। उनके इशारे पर ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के काफिले को बारूदी सुरंग से निशाना बनाया गया था। इस हमले में वे बाल-बाल बच गए थे। वहीं 15 फरवरी 2010 को सिल्दा में ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के शिविर पर हुए हमले के पीछे भी किशनजी को ही मास्टरमाइंड माना जाता है। इस हमले में 24 जवानों को मौत हो गई थी। वहीं संकरेल के रेलवे स्टेशन मास्टर अतींद्रनाथ दत्ता के अपहरण से लेकर पश्चिम बंगाल में राजधानी एक्सप्रेस पर कब्जा करने और ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में तोड़फोड़ के बाद हुई दुर्घटना की साजिश रचने में भी किशनजी का ही नाम सामने आया था। इस दुर्घटना में 130 से अधिक यात्री मारे गए थे।
ट्रेन अपहरण से लेकर ट्रेन दुर्घटना तक कभी भी ममता बनर्जी ने माओवादियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया। यहां तक की उनके खिलाफ रेलवे ने एफआईआर तक नहीं दर्ज करवाई। ममता बनर्जी जंगलमहल इलाके में माओवादियों के मंच से जनता को संबोधित करती रहीं। उन्होंने केंद्र सरकार से जंगलमहल और नक्सल हिंसा से प्रभावित अन्य इलाकों से अर्ध सैनिक बलों को वापस बुलाने तक की मांग भी कर डाली। ममता ने विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता में आने पर गिरफ्तार माओवादियों को रिहा कर बातचीत शुरू करने का वादा किया था।
उनके इस वादे पर किशनजी ने सद्भावना प्रदर्शित करते हुए चार मार्च 2010 को उन्हें पत्र लिख कर कहा था कि अगर वे सत्ता में आने पर समाज के सबसे निचले तबके के बारे में कुछ करने के लिए तैयार हों तो वे उनकी पार्टी को समर्थन देने को तैयार हैं। उन्होंने अपना वादा भी निभाया। लेकिन सत्ता में आने के बाद ममता ने महसूस किया कि विपक्ष में रहते हुए वादा कर देने और सत्ता में आने के बाद उस पर अमल करने में कितना अंतर होता है। कुछ समय पहले ही सरकार और माओवादियों के बीच हुआ संघर्ष विराम भी टूट गया था।
ममता बनर्जी की सरकार ने उस किशनजी को मुठभेड़ में मार गिराया, जो बड़े गर्व से कहा करते थे कि इस इलाके में उन्हें कोई छू भी नहीं सकता। उन पर हाथ डालने का सीधा मतलब है इलाके 16 सौ गांवों के लोगों से टकराव मोल लेना। किशनजी ने पुलिस और सरकार को इतना गच्चा दिया कि आदिवासी कहने लगे थे कि वह दैवीय शक्तियों के मालिक हैं। लेकिन सरकार ने उन्हें निपटा दिया। उन्होंने ममता बनर्जी को सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई थी।
इलाके में माओवादियों के मंच से जनता को संबोधित करती रहीं। उन्होंने केंद्र सरकार से जंगलमहल और नक्सल हिंसा से प्रभावित अन्य इलाकों से अर्ध सैनिक बलों को वापस बुलाने तक की मांग भी कर डाली। ममता ने विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता में आने पर गिरफ्तार माओवादियों को रिहा कर बातचीत शुरू करने का वादा किया था।
उनके इस वादे पर किशनजी ने सद्भावना प्रदर्शित करते हुए चार मार्च 2010 को उन्हें पत्र लिख कर कहा था कि अगर वे सत्ता में आने पर समाज के सबसे निचले तबके के बारे में कुछ करने के लिए तैयार हों तो वे उनकी पार्टी को समर्थन देने को तैयार हैं। उन्होंने अपना वादा भी निभाया। लेकिन सत्ता में आने के बाद ममता ने महसूस किया कि विपक्ष में रहते हुए वादा कर देने और सत्ता में आने के बाद उस पर अमल करने में कितना अंतर होता है। कुछ समय पहले ही सरकार और माओवादियों के बीच हुआ संघर्ष विराम भी टूट गया था।
ममता बनर्जी की सरकार ने उस किशनजी को मुठभेड़ में मार गिराया, जो बड़े गर्व से कहा करते थे कि इस इलाके में उन्हें कोई छू भी नहीं सकता। उन पर हाथ डालने का सीधा मतलब है इलाके 16 सौ गांवों के लोगों से टकराव मोल लेना। किशनजी ने पुलिस और सरकार को इतना गच्चा दिया कि आदिवासी कहने लगे थे कि वह दैवीय शक्तियों के मालिक हैं। लेकिन सरकार ने उन्हें निपटा दिया। उन्होंने ममता बनर्जी को सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई थी।jansatta

उत्तर प्रदेश में एकजुट हुई वाम ताकते

अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवम्बर । उत्तर प्रदेश के चुनावी परिदृश्य में वाम ताकते इस बार विधान सभा में अपनी मौजूदगी दर्ज करने की कवायद में जुट गई है। पिछले कई साल से वामपंथी दलों का कोई भी प्रतिनिधि न तो विधान सभा पहुंचा और न ही लोकसभा । बीती विधान सभा में माकपा के विधायक रामस्वरूप अंतिम प्रतिनिधि थे वाम ताकतों के जिसके बाद कोई भी नहीं पहुंचा । इस बार उत्तर प्रदेश के चार वामपंथी दलों भाकपा ,माकपा ,फॉरवर्ड ब्लाक और आरएसपीआई ने वाम मोर्चा बनाकर करीब सौ सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला किया है जिसमे दर्जन भर ऎसी सीटें भी है जो वामपंथी आन्दोलन का गढ़ रही है मसलन गाजीपुर ,मऊ ,वाराणसी और बिजनौर आदि की सीटे ,इन सीटों पर साझा अभियान चला कर कुछ को विधान सभा पहुँचाने की तैयारी है । पर वाम दलों के इस मोर्चे से धुर वामपंथी राजनीति करने वाले बाहर है । भाकपा माले को मोर्चे ने न्योता दिया था पर सीटों के तालमेल पर टकराव हुआ और वे इस मोर्चे से बाहर हो गए। मोर्चा नेताओं के मुताबिक हालांकि अभी भी कुछ उम्मीद है अगर वे भाकपा माकपा की परम्परागत सीटें छोड़ दे । दूसरी तरफ वाम मोर्चा जन संघर्ष मोर्चा को एक सियासी दल नहीं मानता इसलिए उनसे कोई संवाद ही नहीं किया गया । धुर वामपंथी ताकतों से यह अलगाव वाम मोर्चे की सियासी ताकत को बाँट जरुर रहा है । हालांकि भाकपा माले के अरुण कुमार ने कहा -भाकपा ने सीटों की घोषणा पहले कर दी है और हमें तो इस बार बातचीत के लिए बुलाया ही नहीं गया । अगर वे बुलाएंगे तो हम जरुर शामिल होंगे ,अभी हमने सीटों की कोई घोषणा नहीं की है ।
कभी मित्रसेन यादव से लेकर रामसजीवन जैसे तेजतर्रार सांसद लोकसभा पहुंचते थे पर पिछड़े और दलितों की गोलबंदी की नई राजनीति ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में वाम ताकतों को हाशिए पर पहुंचा दिया और एक समय तो ऐसा भी आया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का वजूद ख़त्म होते होते बचा । पिछड़ों ,मुसलमानों और दलितों के जनाधार वाली वाली वामपंथी पार्टियों का वोट बैंक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उदय के साथ ही दरकने लगा था क्योकि दोनों ही दलों की राजनीति ने जातीय गोलबंदी को तेज कर दिया था। वाम दलों को ज्यादा नुकसान इन्ही दोनों दलों से हुआ है ,यह बात अलग है कि वाम दलों के राष्ट्रीय नेता कभी मुलायम के साथ होते है तो कभी मायावती के । पर उतर प्रदेश में वाम दलों ने फैसला किया है कि वे किसी भी पूंजीवादी दल से तालमेल नही करेंगे । वाम मोर्चा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहा -वाम मोर्चा ने तय किया है कि समाजवादी पार्टी ,बसपा या कांग्रेस किसी से भी चुनावी तालमेल नहीं किया जाएगा ,इनका वर्गीय चरित्र एक जैसा है। जहां तक भाकपा माले का सवाल है इस बार भी वाम नेताओं की अनौपचारिक बैठक का न्योता उन्हें भेजा गया था पर कोई जवाब नही आया। हम अभी भी चाहते ही माले जुड़े।
उत्तर प्रदेश में वाम ताकते मजबूत आन्दोलन के अभाव में भी बिखरी। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने दादरी आंदोलन के समय प्रदेश की सभी वामपंथी पार्टियों को किसान आन्दोलन से जोड़ दिया था पर चुनावी खेल में आन्दोलन से जड़े राजनैतिक दल बिखर गए वर्ना विधान सभा में इनकी उपस्थिति जरुर दर्ज हो जाती । इसके आड़ उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा आन्दोलन भी नहीं उभरा जिसमे वाम ताकतों की भूमिका नजर आती जिसकी एक प्रमख वजह नेतृत्व भी मानी जाती है। वाम दलों के पास आज बड़े कद का कोई नेता उत्तर प्रदेश में नहीं है यह भी वास्तविकता है,यही वजह है कि विधान सभा और लोकसभा में उत्तर प्रदेश के किसी असरदार वामपंथी नेता की कमी महसूस होती है । यह भी दुर्भाग्य है कि राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाने वाले विश्विद्यालय की छात्र राजनीति से निकले अखिलेन्द्र प्रताप सिंह से लेकर अतुल कुमार अनजान जैसे कई महत्वपूर्ण वामपंथी नेता संसद नहीं पहुँच पाए जबकि उनसे राजनीति का ककहरा सीखने वाले लोकसभा से लेकर राज्य सभा तक पहनक चुके है । यह वाम राजनीति का दूसरा पहलू है।
इस बार विधान सभा चुनाव में वाम दलों की एकजुटता रंग ला सकती है । उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के खिलाफ माहौल बन चूका है और समाजवादी पार्टी उसे ज्यादातर जगहों मजबूत चुनौती देती दिख रही है । पर फिलहाल किसी एक पार्टी के पक्ष में कोई लहर जैसी बात नहीं नजर आ रही है ऐसे में अन्य दलों के अलावा छोटे दलों के मजबूत उम्मीदवार भी कई जगहों पर सत्तारूढ़ दल को कड़ी चुनौती देंगे । वाम दलों को अपने परंपरागत में गढ़ में इसका फायदा मिल सकता है । jansatta

Friday, November 25, 2011

विपक्ष की खबर लेने के मूड में मायावती


अंबरीश कुमार
लखनऊ नवंबर । उत्तर प्रदेश में मायावती एक बार फिर अपनी राजनैतिक ताकत दिखाने जा रही है । वे आगामी २७ नवंबर को यहाँ एक बड़ी रैली में विपक्ष खासकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को जवाब देंगी । बड़ी रैलियों का जो रिकार्ड मायावती और कांशीराम का रहा है उसे कोई दल तोड़ नहीं पाया है और इसका मनोवैज्ञानिक असर दलित वोट बैंक पर पड़ता भी है। आगामी २७ नवंबर को लखनऊ में जो रैली होने जा रही है उसमे पुरानी रैलियों का रिकार्ड टूट सकता है । मायावती जिस तरह विपक्ष के निशाने पर आ चुकी है उसे देखते हुए लग रहा है कि वे इस रैली में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर जोरदार ढंग से हल्ला बोलेंगी । समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव काफी समय से उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में क्रांति रथ लेकर चल रहे है और उनकी रैलियों में सबसे ज्यादा भीड़ भी जुट रही है । दूसरी तरफ राहुल गांधी पूर्वांचल के दौरे पर है जिनकी सभाओं में समाजवादी पार्टी जैसी भीड़ तो नहीं आ रही है पर काफी लोग सुनने आ रहे है और राहुल जो बोल रहे है उससे सपा और बसपा बुरी तरह आहत है। आज फिर राहुल गांधी ने सिद्धार्थ नगर में कहा -
लखनऊ में जो हाथी बैठा है वह आप लोगों का पैसा खा जाता है । पिछले तीन दिन से बहुजन समाज पार्टी लगातार सिर्फ राहुल गांधी के भाषणों का जवाब देने में जुटी है। जाहिर है रविवार को मायावती जब विपक्ष की खबर लेंगी तो उनके एजंडा पर राहुल गांधी सबसे ऊपर होंगे । वैसे भी वे कांग्रेस को ज्यादा तवज्जों दे रही है ताकि वह तिकोने मुकाबले में आ जाए ताकि उसका राजनैतिक फायदा बसपा उठा सके । यही वजह है कि ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाकर वे अपनी राजनैतिक ताकत का अहसास करेंगी और फिर विपक्ष की खबर लेंगी ।
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया पर हो रहे हमले पर आज बसपा के प्रदेश अध्यक्ष ने स्वामी प्रसाद मौर्य ने सफाई देते हुए कहा - राहुल गांधी को राजनीति व केन्द्र की सत्ता विरासत में मिली है, इसलिए उन्हें पता नहीं है कि संघर्ष और सतत संघर्ष क्या चीज होती है। गरीब व आम आदमी का दुःख दर्द कितना तकलीफ देह होता है। उन्हें यह मालूम नहीं है कि बसपा का गठन कैसे हुआ और इसके गठन से पहले वर्ष 1977 से लेकर 1984 तक अर्थात बीएसपी की स्थापना से पहले देश में दलित व अन्य पिछड़े वर्गों एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों तथा अन्य समाज के गरीब पीड़ित लोगों के इतिहास व समस्याओं को जानने व समझने के लिये पूरे देश में गांव-गांव, मौहल्ले एवं गली-गली तक मिशनरी लोग पहुंचे । उनकी तकलीफ को जाना है । इस आन्दोलान के संस्थापक मान्यवर कांशीराम व मायावती ने वर्ष 1977 से 1984 तक गांव-गांव जाकर कैडर कैम्प के जरिए छोटी-छोटी जन सभाएं करके इस आन्दोलन को खड़ा किया था । बसपा की इस सफाई और पार्टी के इतिहास में लौटने की कवायद से मायावती की राजनैतिक चिंता को समझा जा सकता है । इसलिए पार्टी अपने इतिहास को याद करने के साथ फिर एक ऐतिहासिक रैली की तैयारी में है ।
बसपा के मंत्री ,सांसद विधायक और राजनैतिक जिम्मेदारी निभाने वाले अफसर सभी इस रैली में भीड़ लाने के लिए जुट गए है । पार्टी ने नेताओं को हर विधान सभा क्षेत्र से हजारों की संख्या में लोगों को जुटाने का निर्देश दिया है । जिसके लिए ट्रैक्टर ट्राली ,बस से लेकर रेल तक का इंतजाम किया गया है। रैली को लेकर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -यह सरकार के खर्च पर होने वाली बसपा की रैली है जिसके नाम पर जमकर वसूली हो रही है । इस सबके बावजूद मायावती को कुछ मिलना नहीं है उनका जाना तय हो चूका है । कांग्रेस ने कहा -बहुजन समाज पार्टी की रैली में किए जा रहे करोड़ों रूपये सरकारी धन की फिजूलखर्ची एवं प्रशासनिक तंत्र का जिस प्रकार दुरूपयोग किया जा रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है । इस सरकारी रैली आयोजित कर मुहर्रम के पहले दिन व बैंक की प्रतियोगी परीक्षा के दिन भारी भीड़ एकत्र कर वर्ष 2002 की घटना की यदि पुनरावृत्ति होती है तो उसके लिए पूरी तरह बसपा जिम्मेदार होगी। पार्टी प्रवक्ता द्विजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि रैली के लिए अधिकारियों से चंदे वसूले जा रहे हैं और पूरा का पूरा शासन-प्रशासन रैली की तैयारी में जुटा है तथा प्रदेश की जनता को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। उन्होने कहा कि लगभग बीस हजार निजी एवं रोडवेज की बसों को जबरन रैली के लिए ली गई है । लखनऊ में लाखों की भीड़ इकट्ठा की जा रही है उससे परीक्षार्थियों एवं आम जनता को आवागमन में जो कठिनाई होगी, उसके लिए पूरी तरह से बसपा जिम्मेदार है।

Thursday, November 24, 2011

जमीनी राजनीति का ककहरा सीख गए राहुल


अंबरीश कुमार
बलरामपुर , नवम्बर । पूर्वांचल के दौरे पर निकले उत्तर प्रदेश की जमीनी राजनीति का अब राहुल गांधी को भी सामना करना पड़ रहा है। अब वे विपक्ष के काले झंडे भी देख रहे है तो लखनऊ से लेकर बाराबंकी ,बहराइच तक अपनी ही पार्टी के बागी नेताओं का विरोध भी झेलना पड़ रहा है। इस सब के बावजूद राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में गरीबी और विकास को एजंडा बनाने के साथ मायावती और मुलायम को आइना भी दिखा रहे है । आज बलरामपुर में राहुल गांधी के निशाने पर सिर्फ मायावती ही नही मुलायम भी रहे । मुस्लिम बहुल इलाकों में राहुल मायावती के साथ मुलायम सिंह पर भी तेज हमला कर रहे है। राहुल गांधी कांग्रेस को फिर से सत्ता की आस दिलाते नजर आ रहे है। वे अपनी सभाओं के जरिए लोगों को यह भी बता रहे है कि करीब दो दशक के गैर कांग्रेसवाद के दौरान प्रदेश कहा पहुँच गया है । भूख से लेकर भीख का मुहावरा उसी की भदेस अभिव्यक्ति है जिसका दूसरे दल मजाक उड़ा ले पर एक तबके को प्रभावित भी कर रहा है ।
आज बलरामपुर में राहुल गांधी ने कहा -कांग्रेस आदिवासियों का ,पिछड़ों का और दलितों का सवाल उठा रही है।हमने इसी तबके के लिए जब मनरेगा शुरू किया तो मायावती ने लखनऊ में भाषण दिया कि मनरेगा से कुछ नहीं होगा । राहुल गांधी ने साफ़ किया कि मायावती गाँव से गरीबों से कटी हुई है इसीलिए ऐसा कह रही है । राहुल ने आगे कहा -जब तक कोई नेता आपके घर गाँव तक नहीं आएगा ,आपके साथ खाना नहीं खाएगा,हैडपंप का पानी नहीं पीएगा वह गरीबी का दर्द कैसे समझेगा । राहुल गांधी की यह बात लोगों को भीतर तक छू रही है। राहुल गांधी पूर्वांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजर रहे है और अंचल के सामाजिक समीकरण के हिसाब से उनका भाषण भी बादल जा रहा है। इससे साफ़ है कि वे अब जमीनी राजनीति का ककहरा काफी हद तक सीख गए है । आज भी मुस्लिम बहुल सभा में उन्होंने कहा -मुलायम सिंह ने पिछले लोकसभा चुनाव में राजनैतिक फायदे के लिए कल्याण सिंह से हाथ मिला लिया था आपकी चिंता नही की । बलरामपुर पीस पार्टी के असर वाला इलाका माना जाता है पर कांग्रेस की सभाओं से लग रहा है कि मुस्लिम कोट बैंक में पार्टी फिर सेंध लगा सकती है । इससे पहले बुधवार को नानपारा में जिस तरह मुस्लिम समुदाय उन्हें सुनने के लिए घरों से निकला वह अन्य दलों के लिए चुनौती बन सकता है । बहराइच में तो समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता वकार अहमद ने अपना गढ़ संभाल लिया पर नानपारा में बसपा अपना घर नहीं संभाल पाई,बसपा के विधायक की सारी कोशशों के बावजूद मुस्लिम समुदाय कांग्रेस की सभा में बड़ी संख्या में जुटा । दूकान चलाने वाले नौजवान जमील ने कहा -सपा बसपा और भाजपा सभी तो राज कर चुके है इनको भी एक मौका दिया जाना चाहिए। कम से कम हमारे दरवाजे तक आते तो है । सत्ता विरोधी रुझान कैसा होता है यह आज नानपारा में दिखा भी । बसपा के विधायक वारिस अली ने अपना भव्य मकान बनवा लिया है जिससे वे स्थानीय लोगों के निशाने पर है जो उनके घर को इमामबाडा बताते है और इस चुनाव में उन्हें आराम देने की बात कहते है ।
बुधवार को राहुल ने मुलायम की टिप्पणी का जवाब देते हुए उन्हें कल्याण सिंह की याद दिलाई थी जो आज भी जारी रही । वे कई मुस्लिम बहुल इलाकों गुजर रहे है जिसकी प्रतिक्रिया कुछ जगहों पर दिख गई । राहुल गांधी ने आज अपनी सभाओं में सरकारी लूट को मुद्दा बनाया और कहा -केन्द्रीय योजनाओं के लिए जो पैसा आता है वह इस सरकार के मंत्रियों की जेब में पहुँच जाता है। दरअसल जहां भी बसपा के विधायक मंत्री साढ़े चार साल में जरुरत से ज्यादा संपन्न हो गए है वहां के लोगों को राहुल गांधी की यह बात ठीक से समझ में आ रही है।
राहुल गांधी अब बाबा वाली छवि से ऊपर उठते नजर आ रहे है । यही वजह है कि वे सपा और बसपा दोनों की दुखती रग पर उंगली रख रहे है जो सरकारी लूट से लेकर जातीय और मजहबी विरोधाभास से संबंधित है । इस पिछड़े और मुस्लिम बहुल इलाकों में चुनाव का आधार भी यही सब बनना है । कांग्रेस ने इस बार जो सोशल इंजीनियरिंग कर टिकट दिया है उससे फौरी तौर पर पार्टी के भीतर विरोध नजर आ रहा है पर जातीय समीकरण के लिहाज से वह मजबूत माना जा रहा है। चाहे बाराबंकी में बेनी बाबू के पुत्र राकेश वर्मा का टिकट हो या बहराइच में दिलीप वर्मा का जिनकी पत्नी बसपा की एमएलसी है।कांग्रेस के पुराने नेता इन्हें बाहरी बता कर विरोध कर रहे है पर नेतृत्व इन्हें मजबूत उम्मीदार मान रहा है ।
पूर्वांचल में कांग्रेस इस बार कई तरह के प्रयोग कर रही है जिसकी कमान राहुल गांधी के हाथों में है । इसमे दलित वंचित तबके से लेकर पिछड़ी जातियों के समीकरण पर खास ध्यान दिया जा रहा है। यही बात विरोधियों को चिंतित भी कर रही है । बसपा से बाबूसिंह कुशवाहा की बगावत ठीक उसी तरह है जैसे भाजपा से कल्याण सिंह की थी।ऐसे में कुशवाहा बिरादरी का विरोध बसपा के लिए भारी पड़ सकता है जिसका फायदा गैर बसपा दल उठाना चाहेंगे । इसमे कांग्रेस भी शामिल है । राहुल गांधी एक बार फिर कांग्रेस को गांवों तक ले जाकर दलित ,वंचित और अति पिछड़ी जातियों तक पहुचने का प्रयास कर रहे है। वे यह भी बता रहे है कि दो दशक के गैर कांग्रेसवाद के दौरान उत्तर प्रदेश कहा पहुँच गया है । इसी वजह से बसपा राहुल गांधी की हर सभा पर नजर रखने के साथ फ़ौरन जवाब भी देती है जिसमे सफाई ज्यादा होती है । इसलिए अब राहुल के इन दौरों को विरोधी भी गंभीरता से ले रहे है ।

jansatta

Tuesday, November 22, 2011

रिहंद का जहरीला पानी पीकर दम तोड़ते बच्चे


अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवम्बर ।सोनभद्र में रिहंद बांध का जहरीला पानी आसपास के गांव वालों के लिए फिर कहर बन गया है।पिछले पंद्रह दिन में इस जहरीले पानी को पीकर डेढ़ दर्जन बच्चों की मौत हो चुकी है।आज ही गाडियारा गांव के तीन बच्चों को अस्पताल भेजा गया है। बड़ों को भी जोड़ ले तो मरने वालों की
संख्या २२ हो चुकी है । खास बात यह है कि यह जिला फार्मूला वन की रेस कराने वाली सरकार के चहेते उद्योगपति जेपी का यह मुख्य ठिकाना है जो अरबों रुपए की आवास योजनाओं में पर्यावरण का सब्जबाग भी दिखाता है और उसी के जिले का जहरीला पानी बच्चों की जान ले रहा है तो कोई आवाज नहीं उठ रही । सोनभद्र जिला मुख्यालय राबर्ट्सगंज से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर रिहंद बांध के किनारे के गांवों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। गरीबों की सरकार के अमीर नेताओं ने इस जिले के प्राकृतिक संसाधनों को जिस बेदर्दी से लूटा है वह नजीर बन गई है।रिहंद बांध का पानी जहरीला हो चूका है यह बात सरकारी महकमे मसलन स्वास्थ्य विभाग से लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों को भी पता है । जिन बच्चों की जान गई है उनमे ज्यादातर पानी से होने वाली बिमारियों के शिकार हुए है । पेचिस ,डायरिया ,पेट दर्द जैसी शिकायतों के बाद इन बच्चों को अस्पताल भेजा जाता है पर लौटकर कम ही आ पाते है ।
पिछले साल भी बच्चे और बड़े रिहंद के प्रदूषित पानी पीकर मरे थे और सरकारी तंत्र ने रस्म अदायगी के बाद फिर लोगों को जहरीले पानी पर निर्भर रहने के लिए छोड़ दिया। जन संघर्ष मोर्चा जो इस अंचल के प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ लगातार आवाज उठाता रहा है उसने जिला प्रशासन को आगाह किया है कि जल्द कोई कदम नही उठाए गए तो फिर वे सड़क पर उतरने को मजबूर होंगे।
जन संघर्ष मोर्चा के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिनकर कपूर के नेतृत्त्व में रिहंद बांध के किनारे के गांवों का दौरा कर बीते पंद्रह दिन में मरने वाले २२ लोगों की सूची जनसत्ता को दी । इसमे अठारह बच्चे और चार बड़े शामिल है । प्रदूषित पानी पीने से जिन लोगों की मौत हुई उनके नाम है लल्लू पुत्र नंदलाल बैगा उम्र 2 वर्ष, सोनू पुत्र सोमारू खरवार उम्र 11 वर्ष, रूपनाथ पुत्र रामकिशुन, पनिका उम्र 11 वर्ष, सोनिया पुत्री रामा गोड़ उम्र 5 वर्ष, आशीष पुत्र हंसराज गोड़ उम्र 5 वर्ष, सन्ती पुत्री हंसराज गोड़ उम्र 7 वर्ष, दश्मतिया पत्नी हंसराज गोड़ उम्र 32 वर्ष, सन्तोष पुत्र सोहन गोड़ उम्र 7 वर्ष, मुन्ना पुत्र सोहन गोड़ उम्र 8 वर्ष, आशीष पुत्र संखलाल गोड़ उम्र 5 वर्ष, मन्ना पुत्र रामनाथ उम्र 3 वर्ष, दीपांशु पुत्र रामलाल यादव उम्र 2 वर्ष, विभा पुत्री महेन्द्र यादव उम्र 3 वर्ष, प्रदीप पुत्र शिवमूरत उम्र 4 वर्ष, शुभचंद पुत्र अमरजीत उम्र 6 वर्ष, संजय पुत्र रामलगन यादव उम्र 11 वर्ष, देवन्ती पुत्री भोला सोनी उम्र 1 वर्ष, बाबूनंदन पुत्र बंसतलाल उम्र 7 वर्ष, कैलाश पुत्र चुक्खुल उम्र 60 वर्ष, तिलक पुत्र प्रसाद उम्र 62 वर्ष, श्यामलाल पुत्र बेचन उम्र 65 वर्ष, शांतिपति पत्नी सोहन गोड़ उम्र 32 वर्ष की अब तक मौत हो चुकी है और दो दर्जन से ज्यादा लोग अभी भी बीमार है। जिनमें भी बच्चों की ही संख्या ज्यादा है।
गौरतलब है कि रेणु सागर के नाम से प्रसिद्ध इस रिहंद बांध के समीप स्थित हिण्डालकों, कन्नौरिया कैमिकल्स, ताप विद्युत उत्पादन गृहों में भारी मात्रा में फेके जा रहे कचड़े से इस जलाशय का पानी जहरीला हो चुका है। पिछले साल भी आसपास के गांवों में कई लोगों की मौत हुई थी । इस क्षेत्र के बेलहत्थी, पाटी, कमरीड़ाड, लभरी, गाढ़ा गांव में कई गांव वालों की मौत प्रदूषित पानी पीने से हुई है। जिस पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बकायदा मुकदमा दर्ज कर जिलाधिकारी सोनभद्र व उत्तर प्रदेश शासन को निर्देश भी दिया था। इस बार गांव का दौरा करने जो प्रतिनिधिमंडल गया था उसमे सुरेंद्र पाल जिलाध्यक्ष ठेका मजदूर यूनियन, म्योरपुर ब्लाक प्रभारी साबिर हुसैन, रामायन गोड़, संत कुमार यादव, विरेंद्र कुमार, रमेश सिंह खरवार, इन्द्र देव खरवार आदि शामिल रहें।
दिनकर कपूर ने बताया कि पूर्व में कमरीड़ाड, लभरी और बेलहत्थी गांवों में हुए इसी तरह के मामले में जन संघर्ष मोर्चा के पत्रों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बकायदा केस संख्या 6071/24/69/2011/ओसी और केस संख्या 36392/24/69/09-10 के मुकदमें दर्ज कर जिलाधिकारी और उत्तर प्रदेश सरकार को कार्यवाही करने को कहा था।इसी मसले पर मोर्चा ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में जनहित याचिका भी दायर की है। जिसपर निर्णय देते हुए हाईकोर्ट ने जांच भी कराई है। बावजूद इसके कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया । आज भी इन गांवों में में साफ पानी मयस्सर नहीं है। गांव वालों ने बताया कि उन्हे कच्चे कुओं, रिहन्द बांध और सिंचाई कूपों के पानी को पीना पड़ता है। नक्सल जिला के नाम पर करोड़ो रूपए विकास के लिए लेने वाले इस जिले में प्रशासनिक संवेदनहीनता की हालत यह है कि इन क्षेत्रों में बार-बार इस सवाल को उठाने के बाबजूद वाटर फिल्टर प्लांट तक नहीं लगाया गया।
उन्होनें कहा कि इन गांवों की हालत तो इतनी बुरी है कि जिन ग्रामीणों या उनके परिजनों की मौतें हुई है उनके लाखों रूपए मनरेगा में मजदूरी तक बकाया है। मजदूरी न मिलने के कारण आदिवासी ग्रामीण गेठी कंदा जैसी जहरीली जड़ खाने के लिए मजबूर है। नाम उजागर करते हुए बताया कि कैलाश यादव पुत्र चुखुल जिनकी मृत्यु हुई है। सिचांई कूप में और रामा, महेन्द्र व रामलाल जिनके बच्चे मरें है उनकी मजदूरी बकाया है। गांव में पूर्व प्रधान के कराए कामों, वनविभाग की बकाया मजदूरी तक का भुगतान सालों से नहीं हुआ है। इसलिए जन संघर्ष मोर्चा ने इस लापरवाही को करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के विरूद्ध मानवाधिकार आयोग को फिर पत्र लिखा है व रिहन्द बांध के पास बसे गांवों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर शुद्ध पेयजल देने और प्रशासनिक लापरवाही के कारण मरें लोगों के परिवार जनों को मुआवजा व बकाया मजदूरी के भुगतान के लिए 24 नवम्बर से म्योरपुर ब्लाक में अनिश्चितकालीन धरना देने का फैसला लिया है । जनसत्ता

चीन पाक कला में भी पीछे नहीं

अरुणेंद्र नाथ वर्मा
पंद्रह दिनों की चीन यात्रा में खाने को क्या मिलेगा, यह प्रश्न मेरी पत्नी को सता रहा था। अनेक देशों की यात्रा करते हुए पाश्चात्य शैली के भोजन की वे अभ्यस्त हो गई हैं। फिर लगभग सभी देशों में भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के साथ भारतीय भोजन भी खूब मिलने लगा है। पर चीन के विषय में मन में बहुत से पूर्वग्रह थे। कुत्ता, बिल्ली, बंदर, गिरगिट, सांप, कीड़े मकोड़े- सभी कुछ वहां खाए जाते हैं। सामिष भोजन किया तो क्या इन सबसे बचना संभव हो पाएगा? दूध-दही से चीनियों को प्रेम है नहीं! तो क्या चावल-नूडल और उबली सब्जियों पर ही निर्वाह करना पड़ेगा? यह सोच कर यात्रा के प्रति उनका उत्साह ठंडा पड़ता जा रहा था।
मेरी तरह सेना में कई दशक बिताए होते और भारत की पूर्वोत्तर सीमाओं- विशेषकर नगालैंड और मिजोरम में रहने का अवसर मिला होता तो शायद वे जानतीं कि कुत्ते, बंदर और सांप भारत के भी कई भागों में खाए जाते हैं। बड़े चूहे (बैंडीकूट और फील्ड रैट) तो बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, संथाल परगना आदि में अनेक जनजातियां शौक से खाती हैं। सेना में कमांडो फोर्स के प्रशिक्षार्थियों को बताया जाता है कि सिर अलग करने के बाद सांप का मांस स्वाद में किसी श्वेतमांस (मछली-चिकेन आदि) के जैसा ही होता है और प्रशिक्षार्थी चाहें तो उसे खाने का अवसर दिया जाता है। चीन में कुत्ते के मांस को सर्दियों का पौष्टिक आहार मानते हैं और सांप को गर्मियों के लिए। सुदूर उत्तर चीन और कोरिया में बंदर का मस्तिष्क स्वादिष्ट समझा जाता है। चिड़िया तो हर प्रकार की ही भक्ष्य है, पर गिद्ध नहीं। कीड़े-मकोड़ों की भी खैरियत नहीं। मछली का मांस कच्चा या अधकच्चा जापान (सूशी बहुत लोकप्रिय है), नीदरलैंड, स्कैंडिनेविया, आइसलैंड या ग्रीनलैंड की तरह चीन में भी खूब खाया जाता है।
इतना कहने के बाद यह स्पष्टीकरण आवश्यक हो जाता है कि पर्यटकों के लिए अखाद्य खाने की मजबूरी नहीं आती। सभी होटलों- रेस्तराओं में चावल, मक्की या गेहूं के नूडल, सोयाबीन की पनीर (टोफू) आदि मुख्य भोजन के रूप में और साथ में अनेक सब्जियां, जैसे टमाटर, गाजर, गोभी, ब्रोकेली, मटर, लौकी, कद्दू, तोरी, बैंगन, मशरूम, नरम भुट्टे और बांस की कोंपल आदि खूब मिलते हैं। फल भरपूर मात्रा में मिल जाएंगे। मांसाहारियों के लिए बकरे का मांस, गोमांस, मुर्गी, बत्तख, मछली, झींगे आदि भी उपलब्ध होता है। वे जानते हैं कि कुत्ता, बंदर, सांप और कीड़े-मकोड़े से विदेशी पर्यटकों को अरुचि, बल्कि जुगुप्सा होती है। यह सब अच्छे होटलों में गलती से भी खाने की नौबत नहीं आती।चीन की पांच हजार साल पुरानी सभ्यता पाक कला में भी पीछे नहीं है। उनके भोजन की आठ मुख्य शैलियां हैं- अनह्युई, कैंटोनीज, फूजियान, हुनान, शानडांग, जियांगसू, सिजुआन (या सिचुआन) और ज्हेजियांग। अल्पसंख्यकों और सीमावर्ती जनजातियों की अपनी भोजन शैलियां हैं, जैसे सिनकियांग और उगयूर प्रदेश जैसे मुसलिम बहुल क्षेत्रों में हलाल मांस का कबाब, सीख कबाब और तिब्बत का याक का मांस आदि। पर वास्तव में पाक कला की चार ही मुख्य शैलियां हैं- कैंटोनीज (गुवांगडांग), शानडांग, जिआंगसू और सिचुआन। कैंटोनीज भोजन में डिमसूम आदि कई व्यंजन छोटी-छोटी मात्रा में (गुजराती थाली जैसी) परोसे जाते हैं तो जिआंगसू में तंदूरी मछली आदि का बाहुल्य है। बीजिंग की बीजिंगडक तो हमारे तंदूरी चिकन टिक्के की तरह विश्वविख्यात है। शंघाई के निकटस्थ क्षेत्र का समुद्री भोजन- झींगे-केकड़े, घोंघे आदि प्रसिद्ध हैं। सिचुआन शैली लहसुन, अदरक, लाल-काली मिर्च, तिल, पिसी मूंगफली और अनेक मसालों, चटखारेदार चटनी आदि के कारण हम भारतीयों की स्वादग्रंथि को आकर्षित करती हैं तो कैंटोनीज पाक शैली कम मिर्च मसाले वाले सादा भोजन करने वाले भारतीयों को भाएगी। लेकिन हम भारतीयों को भारत में जो चीनी भोजन मिलता है, वह स्वाद में चीन के चीनी भोजन से बहुत हट कर है।
सच तो यह है कि नए देश में जाकर वहां के व्यंजनों का स्वाद न लिया तो पर्यटन का पूरा आनंद नहीं। फिर भी भोजन में प्रयोगवाद से घबराने वाले चिंतित न हों। चीन के सभी बड़े शहरों में कई भारतीय रेस्तरां मिल जाएंगे। तुरंता भोजन के शौकीनों के लिए मैकडोनाल्ड, पिज्जा हट, सबवे, केएफसी आदि की कई शाखाएं हर बड़े शहर में मिल जाएंगी। फलों की कमी नहीं है। चाय बिना दूध-शक्कर के पी सकते हैं तो ढेरों तरह की ‘ग्रीन’ और सुगंधित (जैस्मिन आदि) चाय मिल जाएगी और अगर दूध चीनी मिला कर उसे बर्बाद करना ही चाहें तो पाउडर-दूध भी मिल जाएगा। पर भइया, दाल, भात, रोटी ही खाना है और सास-बहू का धारावाहिक देख कर सो जाना है तो पर्यटन के लिए इतनी दूर जाएं ही क्यों!
जनसत्ता

Monday, November 21, 2011

तीन मिनट में बांट दिया चार प्रदेश

अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवंबर। उत्तर प्रदेश विधान सभा में कुल तीन मिनट के भीतर प्रदेश के चार टुकडे करने का प्रस्ताव पास हो गया । विधान सभा का शीतकालीन सत्र कुल डेढ़ घंटे का रहा जिसमे सदन की कार्यवाही कुल सोलह मिनट चली । जिसमे तीन मिनट में प्रदेश का बंटवारा करने का प्रस्ताव बिना किसी बहस के पास किया गया तो बाकी तेरह मिनट में ५४ हजार ७६३ करोड़ का लेखानुदान भी पास हो गया । सत्ता पक्ष ने बुंदेलखंड ,पूर्वांचल ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बिना किसी मांग के अवध प्रदेश बनाने का प्रस्ताव पास कर दिया । अविश्वास प्रस्ताव लाने वाला विपक्ष संसदीय लोकतंत्र का यह चमत्कार देख भौचक था। यह देश में अपने ढंग की पहली घटना है जिसमे जिस प्रदेश की कभी मांग तक न उठी हो वह अवध प्रदेश बनाने का प्रस्ताव सदन ने पास किया हो । विपक्ष का आरोप था कि जो सरकार अल्पमत में आ चुकी है वह किस तरह प्रदेश का बंटवारा करने का प्रस्ताव बिना बहस के पास करा सकती है । हत्यारी ,बलात्कारी और लुटेरी सरकार बर्खास्त करों के बैनर लिए विपक्षी सदस्यों के वेल में आ जाने बाद सदन की कार्यवाही पहले सवा घंटे के लिए स्थगित की गई तो बाद मी सोलह मिनट बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई । इस कार्रवाई के बाद समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव पचास सपा विधायकों के साथ राज्यपाल से मिले और विधानसभा की कार्रवाई रद्द करने की मांग की।
सोमवार को विधानसभा में सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सपा और भाजपा ने स्‍पीकर को अलग-अलग अविश्‍वास प्रस्‍ताव सौंपा। विपक्षी दल मायावती सरकार की बर्खास्‍तगी की मांग कर रहे थे। नारेबाजी और हंगामे के चलते फौरन कार्यवाही स्थगित कर दी गई। दोपहर 12:20 बजे कार्यवाही शुरू होने पर भी हंगामा जारी रहा। हंगामे के बीच ही सरकार ने उत्तर प्रदेश को बांटने का प्रस्‍ताव पेश कर फ़ौरन पास करा दिया । इससे पहले सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू होते ही मायावती सदन में पहुंचीं और राज्‍य के बंटवारे का प्रस्‍ताव सदन के पटल पर रखा गया। विपक्ष हंगामा करता रहा लेकिन उनकी नहीं सुनी गई । बिना किसी बहस के ही ध्‍वनिमत से यह प्रस्‍ताव पारित कर दिया गया। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने सदन को अनिश्चितकाल तक के लिए स्‍थगित कर दिया। सब कुछ तीन मिनट के भीतर हो गया।
सदन की कार्यवाही समाप्त होते ही सदन के बाहर की राजनीति शुरू हो गई। विधान सभा में तो हंगामा हुआ ही बाहर भी हंगामा और टकराव हुआ ।मुख्यमंत्री मायावती ने कहा -हमने तो अपना काम कर दिया अब आगे की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है । मायावती ने यह भी सफाई दी कि उनकी सरकार अल्पमत में नहीं है । समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने कहा-एक बंटवारे का जख्म अभी भरा नहीं और अब चार हिस्सों में इस प्रदेश को बांटने का प्रस्ताव पास किया गया है । कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रमोद तिवारी ने कहा - भाजपा ने वेल में घुस कर सदन को अव्यवस्थित कर दिया। इससे साफ़ है कि भाजपा और बसपा की मिलीभगत है । नेता विपक्ष शिवपाल यादव ने कहा -आज जो भी हुआ वह शर्मनाक और पूरी तरह आलोकतांत्रिक है। भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -मायावती ने संसदीय लोकतंत्र का मजाक बना दिया है । जो कुछ आज हुआ वह एक डरी और विदा होती हुई सरकार का कारनामा था जो अल्पमत में आ चुकी है ।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री मायावती ने सरकार के अल्पमत में होने की बात का पूरे तौर पर खंडन करते हुए इसे गलत व तथ्यहीन बताया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा में उनकी पार्टी का बहुमत ही नहीं उसके पास बहुमत की निर्धारित संख्या से अधिक विधायक हैं। उन्होंने कहा कि यह दुष्प्रचार सभी विरोधी पार्टियों की केवल उनकी सरकार को कमजोर बनाने की बहुत बड़ी मिलीजुली एक सोची समझी साजिश है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में उनकी पार्टी व सरकार के प्रति सभी विरोधी पार्टियों के साथ केंद्र सरकार के चले आ रहे अभी तक के रवैये की सजा प्रदेश की जनता कुछ ही महीनों के अंदर होने वाले विधानसभा आम चुनाव में सभी विरोधियों पार्टियों को जरूर देगी।
उन्होंने कहा कि यह सभी विरोधी पार्टियां उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के जबर्दस्त खिलाफ हैं। ये सभी विरोधी पार्टियां उत्तर प्रदेश व यहां की जनता का संपूर्ण रूप से विकास होते हुए नहीं देखना चाहती। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र की सरकार के काफी सांसद व मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण दिल्ली की जेल में बंद हैं। और काफी के खिलाफ अन्य विभिन्न मामलों को लेकर अदालत व कई एजेन्सियों में अभी भी कार्रवाई चल रही है। इसके अलावा देश में ऐसे अनेक और भी उदाहरण देखने को मिलेंगे। लेकिन फिर भी इन सब के आधार पर कांग्रेस व अन्य सभी विरोधी पार्टियों ने कभी भी आन्ध्र प्रदेश व दिल्ली में केंद्र की सरकार को अल्पमत में होने की बात नहीं कही है। उन्होंने कहा कि लेकिन उत्तर प्रदेश के मामले में काफी गंभीरता से सोचने की बात यह है कि जब यह सब उत्तर प्रदेश में होता है। तब इस आधार पर विरोधी पार्टियां उनकी सरकार को अल्पमत में होने की बातें काफी बढ़ा चढ़कर करती हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह सब उनकी पार्टी व सरकार के खिलाफ विरोधियों की मिली.जुली एक सोची.समझी बहुत बड़ी राजनैतिक साजिश है। इसी के साथ इन सभी विरोधी पार्टियों की आज भी दलित विरोधी मानसिकता होने का रवैया भी साफ नजर आता है। मायावती ने आगे कहा - विधानसभा भंग करने की सिफारिश करने का सवाल ही नहीं उठता।

Sunday, November 20, 2011

डरे हुए है मंत्री से लेकर बाहुबली सांसद तक !


अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवंबर । उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के मंत्री से लेकर बाहुबली सांसद तक जब अपनी हत्या की आशंका जता रहे हो तो मायावती के सुशासन का अंदाजा लगाया जा सकता है।पहले जौनपुर के सांसद धनंजय सिंह जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है ,उन्होंने प्रदेश के पुलिस मुखिया बृजलाल से अपनी जान का खतरा बताया था ।मायावती सरकार के मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता उर्फ़ नंदी पर पिछले साल बम से हमला हो चूका है जिसमे वे गंभीर रूप से घायल हो चुके है ,इस हादसे में इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार की भी जान चली गई थी । इससे पहले स्वास्थ्य विभाग के एक अफसर ने अपनी जान का खतरा बताया था तो आईपीएस अफसर डीडी मिश्र भी इसी तरह की बात कर चुके है । एक वरिष्ठ अफसर की खुदकुशी का मामला भी संदिग्ध बताया गया था । अब बाबूसिंह कुशवाहा ने काबीना मंत्री नसीमुद्दीन से लेकर कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह से अपनी जान का खतरा बताकर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन यानी एनआरएचएम घोटाले के पीछे की बड़ी ताकतों को और इशारा कर दिया है।सीबीआई भी अपनी जांच का दायरा व्यापक कर रही है ।प्रदेश में अलग अलग घोटालों के चलते अफसरों पर भी दबाव बढ़ रहा है । यह देश के किसी राज्य की पहली सरकार है जिसके ताकतवर नेता अपनी हत्या की आशंका जता रहे है ।
उत्तर प्रदेश में खाद्यान घोटाले के बाद का यह सबसे बड़ा घोटाला है जो २००५ से लगातार चल रहा था। राजनैतिक जानकारों का आकलन है कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के नाम पर उत्तर प्रदेश को करीब पंदह हजार करोड़ रुपए मिले जिसमे से करीब चार हजार करोड़ रुपए की बंदरबांट नेता अफसर और ठेकेदारों के बीच हुई है। इसी धन की बन्दरबांट को लेकर प्रदेश के तीन बाद अफसरों की हत्या हुई और भी कई लोग अपनी हत्या की आशंका जता रहे है । क्योकि अगर यह जांच ढंग से आगे बढ़ गई तो कई बड़े भी घेरे में आएंगे ।
भाकपा नेता अशोक मिश्र ने कहा - इस सरकार की खासियत यह है कि पहले वह नेताओं से लेकर बाहुबलियों का इस्तेमाल करती है फिर उन्हें बहार का रास्ता दिखा देती है । कुशवाहा पहले मायावती के सबसे करीबी थे और पार्टी संगठन के लिए जो भी पैसा आता था सब उन्ही के जरिए आगे जाता था जिसे लेकर उनके सहयोगी मंत्री से लकर अफसर तक उनसे नाराज रहते थे । नसीमुद्दीन से कुशवाहा का छत्तीस का आंकड़ा बुंदेलखंड की राजनीति के वर्चस्व को लेकर भी था । यही वजह है आज जब कुशवाहा को बलि का बकरा बनया जा रहा है । इसी तरह बाहुबली बबलू सिंह से रीता बहुगुणा जोशी का घर फुकवाया और फिर उसे भी बाहर का रास्ता दिखा दिया । एक दो नहीं दर्जनों उदाहरण है । ऐसे में कोई भी डर सकता है ।
यह घोटाला दरअसल दो विभागों के बीच का भी था जिसमे परिवार कल्याण विभाग और स्वास्थ्य विभाग शामिल था । पैसा आता था परिवार कल्याण की दो तीन प्रमुख योजनाओं के नाम जिसमे स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद ,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना और जिला अस्पतालों की सुविधाओं का विस्तार पमुख था । परिवार कल्याण विभाग को आने वाला स्वास्थ्य मिशन का यह पैसा सीएमओ के जरिए खर्च होता था जबकि सीएमओ स्वास्थ्य विभाग के अधीन होते थे। बाद में कुशवाहा ने परिवार कल्याण विभाग के अलग सीएमओ बनवा दिय ताकि स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को इससे अलग किया जा सके । सारा विवाद यहाँ से शुरू हुआ और हैरानी की बात यह है कि जिन दो सीएमओ और एक डिप्टी सीएमओ की हत्या हुई वे परिवार कल्याण विभाग के थे ।सूत्रों के मुताबिक इन लोगों से योजना का दस फीसद पैसा अग्रिम मांगा जाता था जो काफी बड़ी राशि होती थी। मसलन यदि किसी फसर को किसी योजना में पचास करोड़ दिया जाना है तो उसे पांच करोड़ का इंतजाम करना होता। पैसा न मिलने पर वसूली के दुसरे हथकंडे भी अपनाए जाते । इसी वजह से इस खेल में माफिया का भी दखल हुआ और तीन जाने जा चुकी है। ऐसे में आगे बढ़ती सीबीआई की जांच की आंच को लेकर ताकतवर नेता भी आशंकित हो रहे है । jansatta

मीडिया मालिक और संपादक खामोश हैं

अनिल चमड़िया
भारतीय प्रेस परिषद के नवनियुक्त अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने कहा है कि मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए प्रेस परिषद के विस्तार और उसे ताकतवर बनाने की जरूरत है।इसके अलावा उन्होंने मीडिया के व्यवहार और मीडियाकर्मियों के बौद्धिक स्तर को लेकर भी अपनी राय जाहिर की है। इसे लेकर संपादकों की जमात बेहद नाराज है। काटजू ने मीडिया के व्यवहार से जुड़े कुछ तथ्य पेश किए हैं। इन्हीं तथ्यों के आधार पर उन्होंने परिषद को ताकतवर बनाने की मांग की है। मीडिया के मालिक और संपादक उन तथ्यों को लेकर खामोश हैं।
काटजू ने मीडिया के सामाजिक सरोकार से विचलन और उसके सांप्रदायिक चरित्र पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने उदाहरण के रूप में देश भर में अब तक हुए बम विस्फोटों की खबरों को लेकर मीडिया के रुख पर सवाल खड़े किए हैं। ‘देश भर में जहां कहीं बम विस्फोट की घटनाएं होती हैं, फौरन चैनल उनमें इंडियन मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद, हरकत उल-अंसार जैसे संगठनों का हाथ होने या किसी मुसलिम नाम से इ-मेल या एसएमएस आने की खबरें चलाने लगते हैं। इस तरह चैनल यह जाहिर करने की कोशिश करते रहे हैं कि सभी मुसलमान आतंकवादी या बम फेंकने वाले हैं। इसी तरह मीडिया जानबूझ कर लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने का काम करता रहा है। ऐसी कोशिशें राष्ट्रविरोधी हैं।’
इसमें दो राय नहीं कि आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिकता बढ़ाई गई है। देश में सांप्रदायिक दंगों का एक दूसरा रूप तैयार किया गया है। दंगे एक बार होते हैं, मगर उनका असर लंबे समय तक समाज पर रहता है। लेकिन बम विस्फोट की घटनाओं ने तो समाज में रोज-ब-रोज दंगों जैसे हालात पैदा कर दिए। मुसलमानों में जितनी असुरक्षा इस दौर में बढ़ी है वह शायद पचास वर्षों के दंगों में भी नहीं पैदा हुई होगी। इस बीच सरकारी तंत्र का भी एक नया रूप दिखाई दिया। हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकारी तंत्र के सांप्रदायिक चरित्र की तरफ इशारा किया था। उससे पहले उप-राष्ट्रपति हमीद अंसारी ने खुफिया एजेंसियों को किसी के प्रति जवाबदेह बनाने की वकालत की थी।
कई मौकों पर जाहिर हो चुका है कि प्रशासन तंत्र में जातिवादी और सांप्रदायिक पूर्वग्रह हैं। दंगों के दौरान भी उसकी भूमिका साफतौर पर अल्पसंख्यक विरोधी देखी गई है। यही बात मीडिया पर भी लागू होती है। मीडिया की वजह से दंगे भड़कने के पहलू पर कई शोध भी हुए हैं। लेकिन मीडिया ने सांप्रदायिकता को अपने विकास का आधार बनाए रखा है। बम विस्फोटों के बाद मुसलमानों के बीच आतंक फैलाने में मीडिया की भूमिका रही है। मुसलमानों से पहले सिखों की ऐसी ही छवि बनाई गई थी। जबकि खासतौर से मालेगांव की घटनाओं की विश्वसनीय जांच के बाद उसमें हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों का हाथ पाया गया है। हैदराबाद में जिन्हें मुसलमान होने के कारण पकड़ा गया था उनसे राज्य सरकार ने माफी मांगने की भी पेशकश की।
काटजू ने मीडिया के लिए जिम्मेदार संस्था के अध्यक्ष के तौर पर मुसलमानों के साथ होने वाले अलोकतांत्रिक व्यवहार पर राय जाहिर की है। सांप्रदायिक तनाव को एक हद से ज्यादा बढ़ाने में जब कभी मीडिया की भूमिका दिखाई दी तो परिषद ने जांच समितियां गठित की। मसलन, अक्तूबर-नवंबर, 1990 में समाचार-पत्रों ने खबरों के जरिए सांप्रदायिक वातावरण बनाने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया तो प्रेस परिषद ने एक जांच समिति बनाई थी। आरएसएस समर्थकों के नेतृत्व में उन्मादी भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद बम विस्फोट की जितनी घटनाएं हुर्इं, उनमें मुसलमानों के हाथ होने की खबरें अंधाधुंध तरीके से प्रस्तुत की जाती रही हैं। अमेरिका में 26/11 के बाद तो जैसे भारत में विस्फोट की घटनाओं में मुसलिम आतंकवादियों को आरोपित करने की भूमंडलीय स्वीकृति-सी मिल गई।
मीडिया और पुलिस की एक सांप्रदायिक पृष्ठभूमि देखने को मिलती है। बम विस्फोटों के प्रचार से जो माहौल बना, उसमें इन दोनों के बीच खुले गठजोड़ का एक तर्क विकसित कर लिया गया। बम विस्फोट की घटनाओं के बाद मीडिया और पुलिस की भाषा में अंतर ही खत्म हो गया। मीडिया पुलिस सूत्रों और अपनी जांच में जो अंतर करती है वह खत्म हो गया। पुलिस की जांच को ही मीडिया ने अपनी जांच मान ली और पुलिस ने मीडिया को अपनी किसी भी तरह कार्रवाई और उस पर सहमति बनाने का माध्यम बना लिया। मीडिया ने किसी भी विस्फोट की अपने स्तर से जांच करने की कोशिश नहीं की। बल्कि आतंकवाद विरोधी दस्ते बम विस्फोट की घटनाओं और उनके आरोपियों को जिस तरह पेश करते रहे उन्हें व्यापक स्वीकृति दिलाने की मुहिम में मीडिया खूब सक्रिय रहा।
किसी विस्फोट के बाद पुलिस और आतंकवाद निरोधक दस्ते ने मुठभेड़ में किसी को मार गिराने के बाद जैसी सुर्खियां मीडिया को दीं, क्या उन्हें याद नहीं किया जाना चाहिए? आखिर क्या दबाव रहा मीडिया पर कि समाज में बढ़ती दूरियों की उसने परवाह करना जरूरी नहीं समझा। एक तथ्य तो यह मिलता है कि ऐसी घटनाओं को आम आपराधिक घटना की तरह मीडिया ने लिया और उन्हें आपराधिक मामलों के रिपोर्टरों के जिम्मे छोड़ दिया। सामाजिक-राजनीतिक रूप से संवेदनशील रिपोर्टरों को नहीं लगाया गया। बम विस्फोटों की रिपोर्टिंग किन परिस्थितियों में की गई, कैसे दबाव महसूस किए गए, इन पहलुओं पर एक समिति से जांच क्यों नहीं कराई जानी चाहिए? मुंबई में ताज होटल पर हमले की रिपोर्टिंग को लेकर काफी बहस हुई। इस पहलू पर भी बातें हुर्इं कि सुरक्षा बलों की जान खतरे में डाल कर रिपोर्टिंग नहीं की जा सकती। लेकिन जिस रिपोर्टिंग से सांप्रदायिक दंगों से ज्यादा भयावह असर दिखाई दे रहे हैं उस पर अध्ययन और बहस की कोई पहल क्यों नहीं होनी चाहिए?
दरअसल, ये सवाल काफी समय से उठते रहे हैं। काटजू ने उन सवालों पर बस अपनी मुहर लगाई है। मगर सवाल है कि क्या अपनी बेबाक राय जाहिर कर देना ही काफी है? मार्कंडेय काटजू को मीडिया के सांप्रदायिक चरित्र से निपटने और सामाजिक सरोकारों से लैश करने के लिए परिषद को और ताकतवर बनाने की जरूरत से पहले अपनी जिम्मेदारियों को फिर से परिभाषित करना चाहिए। दरअसल, मीडिया की ताकत जितनी बढ़ी है, उसमें परिषद के ताकतवर होने के लिए पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं के समर्थन की जरूरत है।
पेड न्यूज को लेकर परिषद ने पहल की थी और उसे चंद मीडिया मालिकों के दबाव में अपना रुख बदलना पड़ा था। प्रेस परिषद का रिश्ता पहले पाठकों-दर्शकों से है, लेकिन वह पाठकों की तरफ कभी मुखातिब नहीं होती है। उसके सारे कामकाज अंग्रेजी में होते हैं। पाठकों-दर्शकों की स्वतंत्रता ही मीडिया की स्वतंत्रता है। मगर मीडिया मालिक और पत्रकार दो अलग-अलग स्वतंत्रताओं पर जोर देते हैं। दूसरी बात कि मार्कंडेय काटजू सरकार को संबोधित करने में घबराए-से दिखते हैं। आखिर उन्होंने मीडिया की जैसी भूमिका की चर्चा की है, सरकार का उसे बढ़ावा देने का रुख रहा है। इसके राजनीतिक कारण भी हैं। सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए एक निगरानी विभाग बनाया है, उसकी क्या उपयोगिता साबित हुई है? जिस तरह से अवैज्ञानिक, अंधविश्वास और धोखाधड़ी को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम और विज्ञापन आते हैं, उनमें से कितनों को धंधे उठा लेने को बाध्य किया गया है? परिषद को एक स्वायत्त संस्था के रूप में सक्रिय दिखना चाहिए, वरना सरकारी भोंपू का विशेषण पाने में देर नहीं लगती!जनसत्ता

Saturday, November 19, 2011

कुशवाहा की बगावत से सांसत में मायावती



अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवंबर । मायावती सरकार और संगठन के सबसे ताकतवर राजनीतिक रहे बाबू सिंह कुशवाहा ने बगावत कर अपनी हत्या की आशंका जताई है।
जिन लोगों से कुशवाहा ने अपनी जान का खतरा बताया है उनमे मंत्री नसीमुद्दीन , कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह और प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर शामिल है । मुख्यमंत्री के नाम लिखे इस पत्र की प्रतिलिपि प्रधानमंत्री ,राज्यपाल ,चीफ जस्टिस और सीबीआई निदेशक को भी भेजी गई है। अख़बारों के दफ्तरों को फैक्स से भेजे इस पत्र के सामने आते ही राजनैतिक माहौल गरमा गया । विधान सभा सत्र से दो दिन पहले ही कुशवाहा की बगावत मायावती सरकार की लिए संकट पैदा कर सकती है।फिलहाल बसपा ने कुशवाहा की आशंका को गलत बताते हुए उनसे पल्ला झाड़ लिया है।
मायावती सरकार के ताकतवर मंत्री रहे कुशवाहा का नाम राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ( एनआरएचएम ) घोटाला में आने के बाद उनसे इस्तीफा ले लिया गया था । उस समय दो मंत्रीयों अंतु मिश्र और बाबू संघ कुशवाहा का नाम आया था जिसके बाद दोनों से इस्तीफा ले लिया गया । पर अब यह घोटाला मायावती सरकार के गले की हड्डी बनता जा रहा है । अरबों के इस घोटाले में तीन अफसरों की हत्या हो चुकी है इस घोटाले इस घोटाले का दायरा बढ़ता जा रहा है और इसी घोटाले को लेकर दो सीएमओ और एक डिप्टी सीएमओ की हत्या की जांच में सीबीआई के निशाने पर भी कुछ राजनीतिक भी आ चुके है। मायावती अपनी पार्टी के करीब पचास विधायक और मंत्रियों का टिकट काट चुकी है ,ऐसे में कुशवाहा की बगावत बसपा के लिए नई चुनौती बनकर सामने आई है । कुशवाहा ने न सिर्फ ताकतवर मंत्री नसीमुद्दीन का नाम लिया है बल्कि मंत्रिमण्डलीय सचिव शशांक शेखर सिंह और प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर से जान का खतरा भी बताया है। यह तीनो नाम उत्तर प्रदेश में सरकार का पर्याय भी माने जाते है ।
बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने कुशवाहा के लिखे पत्र पर हैरानी जताई । उन्होंने कहा कि कुशवाहा का कथित पत्र अभी मुख्यमंत्री को तो प्राप्त नहीं हुआ है, पर इससे पहले ही मीडिया को यह पात्र मिल गया जिससे साबित हो गया है कि कुशवाहा अपनी पेशबन्दी में लगे हैं।
मौर्य ने कहा कि कुशवाहा काफी दिनों से पार्टी से जुड़े रहे और सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। उन्होंने कहा कि सरकार में मंत्री रहते हुए उन्हें मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, मंत्रिमण्डलीय सचिव शशांक शेखर सिंह तथा प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर से जान का कोई खतरा नहीं था और इन्होंने उनके साथ काफी दिनों तक काम किया। जब वे मंत्रिपरिषद से बाहर हुए तब भी काफी लम्बे समय तक इन्हें कोई खतरा नजर नहीं आया। लेकिन अचानक पिछले कुछ दिनों से श्री कुशवाहा को इन लोगों से जान का खतरा कैसे नजर आने लगा, यह आश्चर्य की बात है।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें मीडिया से जानकारी मिली है किकुशवाहा की जांच लोकायुक्त द्वारा आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में की जा रही है। इसके अलावा उच्च न्यायालय में भी उनके सम्बन्ध में एक जनहित याचिका विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुशवाहा जब चारो तरफ से कानून के शिकंजे में घिर गये हैं, तो लोगों का ध्यान हटाने के लिए इस प्रकार की ड्रामेबाजी पर उतर आये हैं। मौर्य ने कहा कि पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते स्पष्ट तौर पर उनके स्तर से यह साफ किया जाता है कि कुशवाहा अब न तो पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं और न ही पार्टी के किसी कार्यक्रम या आयोजन में इनकी कोई भूमिका ही होती है। इसीलिए कुण्ठाग्रस्त होकर वे बेबुनियाद आरोप लगाकर अपने सहकर्मियों एवं शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को बदनाम करने की घिनौनी हरकत कर रहे हैं।प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कुशवाहा को इस प्रकार की हरकत से बचना चाहिए था। उन्होंने कहा कि श्री कुशवाहा को लोकायुक्त के विचाराधीन अपने आय से अधिक मामले पर तथा उच्च न्यायालय में दाखिल पीआईएल पर कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए सहयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुशवाहा को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे उनसे पार्टी के लोग आक्रोशित हों।jansatta

Friday, November 18, 2011

संघ परिवार का परिवारवाद


अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवंबर।कंग्रेस के परिवारवाद को लेकर निशाना साधने वाला अब संघ परिवार अब संगठन के परिवारवाद में उलझ गया है। संगठन के पुराने कार्यकर्त्ता अब भाजपा में परिवार वालों के लिए टिकट मांग रहे है। जबकि इसी हथियार का इस्तेमाल संघ कांग्रेस को घेरने के लिए करता रहा है ।
गुरूवार को ही अयोध्या में विनय कटियार ने कहा था कि काग्रेस मृतक आश्रित कोटे की पार्टी है । इससे पहले उमा भारती ने कसया में परिवारवाद को बड़ा खतरा बताया था तो लालकृष्ण आडवानी ने भी गुरुवार को ही वंशवाद को लोकतंत्र के लिए बड़ा ख़तरा बताया । जबकि वंशवाद का विरोध करने वाली यह पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पीछे छोड़ रही है । संघ के कार्यकर्त्ता और भाजपा के आधा दर्जन से ज्यादा बड़े नेताओं ने अपनी दूसरी पीढी के लिए टिकट मांगा है । इन नेताओं में पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद राजनाथ सिंह ,पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी ,सांसद लालजी टंडन ,ओमप्रकाश सिंह ,सत्यदेव सिंह ,प्रेमलता कटियार आदि शामिल है । यह तो बड़े नेता है अब इसी तर्ज पर जिलों में भी पुराने नेता अपनी अगली पीढी के लिए टिकट मांग रहे है ।
वंशवाद को लेकर अब राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानी आरएसएस भी अपनों के निशाने पर है जो कांग्रेस के वंशवाद पर हमला करता रहा है खासकर नेहरु-गांधी परिवार पर। संघ के प्रचारक इसी वंशवाद से दूर रहने के लिए पहले बिना शादी विवाह भूजा खाकर देश के दूर दराज इलाकों में जीवन गुजार दिया करते थे पर अब हालत बदल गए है। संघ के प्रचारकों ने भी न सिर्फ परिवार बनाना शुरू किया बल्कि परिवार की राजनैतिक प्रगति के लिए पार्टी पर दबाव भी बना रहे है। जितने बाद नेताओं के नाम ऊपर दिए गए है वे सभी अपने को संघ का खांटी प्रचारक मानते रहे है पर अब बेटे बेटी के लिए टिकट भी मांग रहे है । इस मामले में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पिछड़ रही है । उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के जिन प्रमूख नेताओ के परिवारवालों को टिकट मिला है उनमे प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के भाई और सांसद हर्षवर्धन व जगदंबिका पाल के पुत्र शामिल है। पर भाजपा में यह सूची लंबी है ।
आधा दर्जन बड़े नेता अपने पुत्र पुत्री के लिए जहाँ विधान सभा टिकट के लिए पार्टी पर दबाव बना रहे है वही उनकी देखादेखी दूसरी कतार के नेता और जिलों के नेता अपने परिवारवालों के लिए टिकट मांग रहे है । कुछ दिवंगत नेताओं के परिवारवालों ने भी टिकट मांगा है । नेताओं ने अपने परिवार को किस तरह आगे बढाया है इसकी बानगी भी देखने वाली है । लखनऊ के भाजपा विधायक सुरेश तिवारी ने अपने पुत्र को भाजपा युवा मोर्चे का मंत्री बनवा दिया है तो दुसरे विधायक विद्या सागर गुप्त ने अपने पुत्र को लघु उद्योग प्रकोष्ठ का संयोजक बनवा दिया है।दोनों विधायकों के पुत्र टिकट के मजबूत दावेदार है। लालजी टंडन तो अपने पुत्र के लिए पिछली बार बागी तक हो गए थे । ऐसे में विनय कटियार की भाजपा भी पैत्रिक कोटे वाली पार्टी बनती नजर आ रही है। jansatta

Wednesday, November 16, 2011

श्रेय लेंगी मायावती और बदनाम होंगे मुलायम !


अंबरीश कुमार
लखनऊए नवंबर।उतराखंड राज्य की मांग को लेकर ज़ब आंदोलन चल रहा था तो उस समय प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकार थी जिसने आंदोलन को दमनात्मक तरीके से कुचला था। जब यह मामला उठा तो जो जांच के लिए जो टीम गई उसने उत्तर प्रदेश सरकार को क्लीन चिट दी ,इस टीम की एक सदस्य थी उत्तर प्रदेश की मौजूदा मुख्यमंत्री मायावती ।पर आज बुधवार को मुख्यमंत्री मायावती ने कहा -उत्तराखंड राज्य के गठन की मांग को लेकर दिल्ली में धरना.प्रदर्शन करने के लिए जा रहे लोगों पर 1 या 2 अक्टूबर 1994 की रात में रामपुर तिराहे (मुजफरनगर) पर की गई पुलिस फायरिंग में अनेक निर्दोष लोग मारे गए थे। उस समय उत्तर प्रदेश में सपा नेता मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। इसके विपरीत बसपा पहली पार्टी थी। जिसने उत्तराखंड राज्य के गठन के प्रस्ताव का सबसे पहले समर्थन किया था। इसी के साथ मायावती ने उत्तर प्रदेश के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और भाजपा की भी खबर ली है । समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -मायावती आज भी प्राइमरी शिक्षक के आगे नहीं बढ़ पाई है।वे जिस सरकार में शामिल थी उसी सरकार के समय रामपुर कांड हुआ था और वे भी जांच दल में शामिल थी जिसने क्लीन चिट दी थी। अब वे छोटे राज्य की बात कर रही है । यह बानगी है उत्तर प्रदेश में चुनावी राजनीति की जिसने बिना मांगे प्रदेश को बांटने का खेल किया है । समूचे प्रदेश में किसी नए राज्य के लिए न कही धरना हो रहा ,न प्रदर्शन और न अनशन फिर भी तीन राज्यों का नक्शा बना दिया गया तो अवध राज्य मुफ्त में इस पैकेज में आ गया है।
कल मायावती ने राज्य के बंटवारे का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराकर अपनी पीठ खुद थप थपाई तो आज सारी जिम्मेदारी कांग्रेस पर दल कर समाजवादी पार्टी को भी इस खेल में फंसाने का प्रयास किया । मायावती ने बुधवार को जो कहा है उसका लब्बोलुआब यह है कि राज्य के गठन का काम तो केंद्र सरकार का है इसमे राज्य सरकार की कोई भूमिका ही नहीं है चाहे वह विधान सभा में कोई प्रस्ताव लाए या न लाए । मायावती इस मामले में गेंद केंद्र सरकार के पाले में फेंक कर जहाँ कांग्रेस को फंसा रही है वही मुख्य मुकाबले की पार्टी सपा की घेरेबंदी करना चाहती है । ताकि इसका चुनावी लाभ मायावती को मिले और विरोध कर फंसे मुलायम । मायावती ने आज कहा -उप्रदेश को चार नए राज्यों में पुनर्गठित करने के लिए उनकी सरकार को मंत्रिपरिषद व विधानमंडल में कोई प्रस्ताव पारित कराने की संवैधानिक बाध्यता नहीं थी। क्योंकि भारत के संविधान के मुताबिक ऐसा विधेयक लाने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास ही है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीए सरकार यदि प्रदेश का विकास चाहती तो वह संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाकर केंद्रीय कैबिनेट से इस आशय के विधेयक का मसौदा पारित करवाकर उसे महामहिम राष्ट्रपति को भेजती व विधेयक को संसद में प्रस्तुत किए जाने की संस्तुति भी उनसे प्राप्त करती।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्राविधान नहीं है जिसके तहत राज्य के पुनर्गठन की कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संबंधित विधान मंडल का प्रस्ताव आवश्यक हो। संविधान के अनुच्छेद.3 में यह व्यवस्था है कि संसद में प्रस्तुत किए जाने से पहले महामहिम राष्ट्रपति की पुनर्गठन विधेयक पर संबंधित राज्य के विधान मंडल की राय निर्धारित समयावधि में प्राप्त कर ली जाएगी। केंद्र के इस दिशा में कोई कार्यवाही न किए जाने पर अफसोस जताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मई 2007 में बसपा की सरकार बनने के फौरन बाद वे प्रधानमंत्री से प्रदेश का पुनर्गठन करने के लिए लगातार लिखित अनुरोध करती रही थीं। केंद्र सरकार ने साढ़े चार वर्ष से भी अधिक अवधि बीत जाने के बावजूद जब कोई कार्यवाही नहीं की गई तो फिर मुख्यमंत्री की पहल पर केंद्र सरकार पर दबाव डालने के लिए प्रदेश सरकार ने पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव को राज्य विधानमंडल में 21 नवम्बर को रखने का फैसला मजबूरीवश लिया। पुनर्गठन संबंधी अपनी सरकार के फैसले पर विपक्षी पार्टियों के रवैये को पूरी तरह गलत व विकास विरोधी बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इसे आगामी विधान सभा चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि प्रस्ताव कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है। विधान मंडल का प्रस्ताव केंद्र सरकार पर दबाव डालने में मददगार साबित होगा। इसलिए विपक्षी पार्टियों का राज्य सरकार के इस फैसले को आगामी विधानसभा चुनाव से जुड़कर देखना पूरी तरह गलत है और इस मामले में विपक्षी नेताओं के सभी आरोप बेबुनियाद हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिग्विजय सिंह का दिया गया बयान कि कांग्रेस पार्टी पुनर्गठन का स्वागत करती है और उनका यह भी कहा जाना कि वे केंद्र सरकार से अनुरोध करेंगे कि स्टेट री.आर्गनाइजेशन कमीशन बनाए साफ कर देता है कि कांग्रेस की कथनी और करनी में काफी अंतर है और यह पार्टी राज्य के पुनर्गठन को लेकर बहानेबाजी कर रही है। उन्होंने कहा कि सिंह का स्वागत संबंधी बयान पूरी तरह भ्रामक है क्योंकि स्टेट री.आर्गनाइजेशन कमीशन की इस मामले में न तो कोई आवश्यकता है और न ही संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 के तहत कोई कानूनी बाध्यता। मायावती ने कहा कि स्टेट री.आर्गनाइजेशन कमीशन की बात करके दिग्विजय सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस पार्टी की मानसिकता उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के विपरीत है और वह तेलंगाना राज्य ही की तरह इस मामले को भी लटकाना चाहती है। कांग्रेस पार्टी किसी भी प्रकार से यह नहीं चाहती कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, पूर्वांचल अवध पश्चिम के भागों में किसी भी प्रकार की तरक्की हो।

jansatta

बिना मांगे बांट दिया उत्तर प्रदेश


अंबरीश कुमार
लखनऊ नवंबर। न कहीं धरना, न कहीं प्रदर्शन और न कहीं लंबा अनशन बावजूद इसके उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार विधानसभा के आगामी सत्र में प्रदेश को बांटने का प्रस्ताव ला रही है । यह जानकारी आज खुद मुख्यमंत्री मायावती ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद दी।
ऐन चुनाव से पहले विपक्ष के हमलों में घिरी मायावती ने आज उत्तर प्रदेश को विभाजित करने का प्रस्ताव कैबिनेट में पास कर दिया है।मायावती ने कहा है कि प्रदेश की जनता की मांग व अपेक्षाओं तथा सर्वसमाज के हित में उनकी सरकार ने उत्तर प्रदेश के चार नए राज्यों-पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश में पुनर्गठन किए जाने के लिए राज्य विधानमंडल के 21 नवम्बर से शुरू हो रहे सत्र में प्रस्ताव पारित कराकर आवश्यक कार्यवाही हेतु भारत सरकार को भेजने का निर्णय लिया है।
विधानसभा में प्रस्ताव पास करने के साथ ही गेंद केंद्र के पाले में चली जाएगी। जिसके बाद मायावती इस मुद्दे को लेकर आगामी विधानसभा चुनाव में केंद्र को कठघरे में खड़ा कर सकती है ।
ख़ास बात यह है की समूचे उत्तर प्रदेश में इस समय कहीं भी नए राज्य के गठन की मांग को लेकर कोई भी आंदोलन नहीं चल रहा है। बुंदेलखंड को लेकर कोरी बयानबाजी जरुर हुई है तो दूसरी तरफ हरित प्रदेश का मुद्दा भी ठंडा पड़ा हुआ है। विपक्ष ने इसे चुनावी स्टंट बताया है । मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने कहा की वह मायावती के इस मंसूबों को पूरा होने नहीं देंगे ।
जबकि कांग्रेस ने सवाल उठाया की साढ़े चार साल तक मायावती सरकार कहां सो गई थी । जब चुनाव सामने आया तो उन्होंने अपनी हार की आशंका के दर से यह शगूफा छोड़ा । भारतीय जनता पार्टी ने भी इसे राजनैतिक स्टंट करार दिया । आज यहां हुई मंत्रिमंडल की बैठक में मायावती ने उत्तर प्रदेश के बंटवारे का प्रस्ताव पास किया ।हालांकि इस बात को लेकर अटकले पहले से तेज थी । मायावती विधानसभा चुनाव को लेकर आशंकित है । और वे उनको तरकश में एक एक तीर निकाल रही है । गन्ने के कीमतों में 40 रूपए की बढ़ोत्तरी से लेकर अगड़ो को आरक्षण देने की मांग इसी रणनीति का हिस्सा है ।इन सबके बावजूद मायावती का रास्ता आसन नहीं दिख रहा है । प्रदेश के बंटवारे पर विपक्ष ने जिस तरह तीखी प्रतिक्रिया की है । वह मायावती के लिए चुनौती की है ।
उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत, संसद ही विधि के माध्यम से नये राज्यों के निर्माण, वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं व नामों में परिवर्तन कर सकती है । और यह सब कार्य, बगैर केन्द्र सरकार की पहल के नहीं किया जा सकता। उन्होंने आशा व्यक्त की कि प्रदेश के विकास में दूरगामी अनुकूल प्रभाव डालने वाले इस फैसले पर केन्द्र सरकार सकारात्मक रूख अपनाकर अपने स्तर से सभी जरूरी संवैधानिक कार्यवाही तेजी के साथ करेगी।
मायावती ने कहा कि वे महसूस करती हैं कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की जनता की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए यहां विकास को गति प्रदान करने के लिए उत्तर प्रदेश को छोटे राज्यों में पुनर्गठित किया जाना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि सर्वविदित है कि नए राज्यों का गठन करना केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। लेकिन दुःख की बात है कि केन्द्र में कांग्रेस पार्टी व भाजपा ने अपने अपने शासनकाल के दौरान इस मामले में अभी तक कोई सार्थक कदम नहीं उठाया। जबकि उनकी सरकार ने केन्द्र सरकार को कई बार चिट्ठी लिखी है।
उन्होने ने कहा कि प्रदेश सरकार को उम्मीद थी कि केन्द्र सरकार इस मामले में जरूर कोई सकारात्मक फैसला लेगी। यदि ऐसा होता तो फिर उनकी पार्टी की सरकार तुरन्त ही इसके लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर, इसका प्रस्ताव पारित कराके केन्द्र सरकार के पास भिजवा देती। लेकिन दुःख की बात है कि केन्द्र सरकार द्वारा आज तक इस सम्बन्ध में कोई भी कदम नहीं उठाया गया। ऐसी स्थिति में अब केन्द्र सरकार पर फिर से दबाव बनाने के लिए उनकी पार्टी की सरकार ने काफी गम्भीरता से सोच विचार करने के बाद यह फैसला लिया।
मायावती ने 09 अक्टूबर, 2007 को लखनऊ में आयोजित एक विशाल जनसभा में उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन कर अलग राज्यों-पूर्वांचल, बुन्देलखण्ड एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गठन का सार्वजनिक रूप से प्रबल समर्थन किया था ।
सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि मायावती के प्रदेश बांटने के इस प्रयास का समाजवादी पार्टी जमकर विरोध करेगी। वहीँ सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि विभाजन से विकास नहीं होता। यह ऐलान जनता का ध्यान भटकाने के लिए है। विभाजन से कोई हल नहीं निकलेगा। यूपी में जितने भी जिले बने है उनमें पता कीजिये कही पुलिस कार्यालय तक नहीं बन पाया है।
जान संघर्ष मोर्चा के संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि नए राज्यों के गठन कि यह नई कयावाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कार्पोरेट घरानों के लिए नया उपनिवेश बनाने की है । इससे छोटे राज्यों के संशाधनों के लूट का रास्ता साफ़ हो जाएगा ।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि मायावती सरकार के इस निर्णय को बसपा सरकार में व्याप्त जंगलराज, कुशासन, घोटाला और नाकामयाबीसे जनता का ध्यान बंटाने के लिए किया गया राजनैतिक स्टंटबाजी है । उन्होने कहा कि मायावती चुनाव आता देख डर गई हैं इसलिए इस प्रकार का जल्दबाजी भरा निर्णय ले रही हैं ।
उधर कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष डा रीता बहुगुणा जोशी ने भी इसे मायावती सरकार का नया राजनीतिक हथकण्डे करार दिया। उन्होने कहा कि मायावती राज्य के बंटवारे के लिए इतना ही गंभीर थीं तो उन्होने पिछले साढ़े चार वर्षों के शासनकाल में बंटवारे से संबंधित प्रस्ताव विधानसभा में पेश क्यों नहीं किया।
वहीँ राष्ट्रीय लोकदल के कोकब हबीब ने कहा प्रदेश बंटवारे का मुद्दा उनका है ना कि मायावती का। और यह प्रस्ताव उनकी पार्टी ने 2002 -03 में जब बसपा-भाजपा कि सरकार में उनकी पार्टी एक सहयोगी पार्टी के रूप में थी तब लाया था। मायावती इस मुद्दे को अब चुनावी फायदे के लिए खुद इस्तेमाल करना चाहती हैं ।
भारत कि कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने मायावती सरकार के इस निर्णय को चुनावी चाल करार दिया । साथ ही साथ भाकपा (माले) ने द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग कि मांग की ।jansatta

Thursday, November 10, 2011

अन्ना की तर्ज पर मुस्लिम संगठनों ने भी केंद्र को दिया अल्टीमेटम

अंबरीश कुमार
लखनऊ नवंबर । सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशो के आधार पर मुस्लिम संगठन अब आरक्षण को लेकर कांग्रेस पर दबाव बढ़ा रहे है । केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने दो महीने के भीतर पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण की बात कही थी । पर अब मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि कांग्रेस मुसलमानों को झांसा देने की फ़िराक में है। मुस्लिम रिजर्वेशन मूवमेंट ने कांग्रेस को अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि अगर शीतकालीन सत्र में अनुसूचित जाति के दायरे में आने वाली मुस्लिम बिरादरी को आरक्षण देने का रास्ता साफ़ नहीं किया गया तो उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पार्टी को मुसलमानों की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा।संगठन ने साफ़ किया है कि इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के संसदीय क्षेत्र में सम्मलेन किए जाएंगे । इनमे राहुल गाँधी से लेकर सलमान खुर्शीद का संसदीय क्षेत्र शामिल है ।
दरअसल अनुसूचित जाति के दायरे में आने वाली कुछ जातियों को आरक्षण का फायदा सिर्फ सलिए नहीं मिल पाता क्योकि वे मुसलमान है । उदाहरण के तौर पर धोबी ,नट,मुशहर और मेहतर जैसी बिरादरी के उन्ही लोगों को फायदा मिल पाता है जो हिंदू,बौद्ध या सिख हो । पहले इन बिरादरी के आरक्षण का फायदा सिर्फ हिंदू के लिए था जिसमे संसोधन कर उसमे सिख और बौद्ध को शामिल किया गया। मुस्लिम रिजर्वेशन मूवमेंट के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा -जब एक ही बिरादरी के लोगों को हिंदू होने पर आरक्षण का फायदा मिल सकता है तो मुसलमान को क्यों नहीं ,मसलन धोबी अगर हिंदू हो तो उसे आरक्षण मिलता है पर मुसलमान हो तो नहीं। यह काम तो कांग्रेस को आगामी शीतकालीन सत्र में करना चाहिए क्योकि वह इस मामले में काफी समय से टालमटोल कर रही है । इसी तरह सच्चर कमिटी और रंगनाथ आयोग की सिफारिशों को लागू करने का मामला है । यदि कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया तो उसे विधान सभा चुनाव में मुसलमानों की नाराजगी का समना करना पड़ सकता है ।
दूसरी तरफ आल इंडिया सुन्नी उलमा फेडरेशन ने आरोप लगाया कि सुन्नी बरेलवी मुसलमान की उपेक्षा हो रही है। फेडरेशन के राष्ट्रीय महामंत्री मौलाना गुलाम अब्दुल कादिर ने कहा कि पिछले दिनों दरगाह आला हजरत बरेली शरीफ से केंद्र की मौजूदा कांग्रेस अगुवाई वाली यूपीए सरकार मुसलमानों की अनदेखी व सुन्नियों को मुनासिब नुमाइंदगी न देने पर आल इंडिया सुन्नी उलमा फैडरेशन के बैनर तले उलमा अहले सुन्नत ने आवाज बुलंद की। जिसको खानकाहे आला हजरत के सज्जादा नशीन हजरत अल्लामा सुबहानी मियां व खानखा आला हजरत की हिमायत हासिल रही।
कादिर ने कहा कि पिछली केंद्रीय सरकारों में पंडित नेहरू इंदिरा गांधी, राजीव गांधी व नर्सिम्हा राव के काबीना में मुसलमानों खासकर सुन्नी बरेलवी मुसलमानों की वाजिब नुमाइंदगी होती थी। उन्होंने कहा कि जब से मुस्लिम मामलों का फैसला अहमद पटेल लेने लगे हैं तब से उसका कोई फायदा मुसलमानों को नही मिल पा रहा है। जिसका सबूत ये है कि मजमूई तौर पर केंद्रीय मंत्रिमंडल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घट कर केवल दो रह गया है।
उन्होंने कहा कि हम कांग्रेस पार्टी को आगाह करना चाहते है कि अगर केंद्र की यूपीए सरकार मुसलमानों खास कर सुन्नी बरेलवी मुसलमानों के हुकूक का इस्तेमाल करती रही तो आने वाले उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ वोट करने को कहा जाएगा ।
मौलाना ने कांग्रेस को छह सूत्री मांग को तत्काल पूरा करने की मांग की जिसमें छह मुसलमानों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना व प्रतिशत के ऐतबार से कम से कम तीन सुन्नी बरेलवी मुसलमानों को केंद्रीय मंत्रीमंडल में नुमाइंदगी दिया जाना,राज्य सभा ,केंद्रीय कमीशन , हज कमेटी दरगाह कमेटी आदि के साथ साथ आने वाले चुनाव में सुन्नी बरेलवी मुसलमानों को उनकी हिस्सेदारी के मुताबिक टिकट दिया जाना ,जस्टिस सच्चर कमेटी जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमीशन रिपोर्ट लागू कर के आईन की धारा 341 की तहत लगी पाबंदी हटाया जाना आदि शामिल है । jansatta

धरोहर पर संकट के बादल


अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवंबर । उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती नए लखनऊ के निर्माण में जुटी है पर पुराना लखनऊ बदहाल है । अवध के नवाबो की ऐतिहासिक ईमारतों पर संकट के बदल मंडरा रहे है । अवध के पहले बादशाह गाजिउद्दीन हैदर ने जो छतरमंजिल बनवाई थी उसका पोर्च मंगलवार को अचानक ढह गया । जिसको न दे मौला उसको दे आसिफुद्दौला वाले आसिफुद्दौला के बनवाये रूमी दरवाजा में दरार आ गई है तो वाजिद अली शाह के पिता अमजद अली शाह का मकबरा अतिक्रमण का शिकार है । शाहनजफ इमामबाडा के परिसर को शादी ब्याह के लिए भाड़े पर दिया जाता है । शादी ब्याह और पार्टियों के चलते यहाँ शोर शराबा और खाना पीना भी चलता है । खाना बनाने के लिए भठ्ठियां सुलगती रहती है और धुआं ऐतिहासिक ईमारत को नुकसान पहुंचता है । इसका निर्माण भी बादशाह गाजिउद्दीन हैदर ने 1816-17 में करवाया था ।बड़ा इमामबाडा परिसर से लेकर छोटा इमामबाडा परिसर में लोगों ने माकन से लेकर दुकान तक खोल ली है । यह बानगी है लखनऊ के ऐतिहासिक ईमारतों की बदहाली की ।
मंगलवार को छतरमंजिल का पंद्रह फुट ऊंचा और तीस फुट लम्बा पोर्च अचानक गिर जाने के बाद सब की नींद खुली है । यह ऐतिहासिक इमारत है और कई दशक से इसमे सेंट्रल ड्रग रिसर्च सेंटर की प्रयोगशाला चल रही है । उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व निदेशालय के निदेशक राकेश तिवारी के मुताबिक यह इमारत जर्जर हो चुकी है और सीडीआरआई को करीब एक दशक पहले ही इसकी जानकारी दे दी गई थी पर इसे खाली नहीं किया गया । यह बताता है कि किस तरह ऐतिहासिक धरोहरों की अनदेखी की जा रही है । नवाबो के वंशज और अभिनेता जाफर मीर अब्दुल्ला ने जनसत्ता से कहा -सरकार तो चाहती है यह सब ऐतिहासिक इमारते गिर जाएं क्योकि वह तो नया इतिहास बना रहे है । उनके स्मारक यहां बन रहे है जिनका इस अवध की जमीन से कोई रिश्ता नहीं रहा । जिन लोगों ने अवध का निर्माण किया उनके स्मारक ढह रहे है। भारी ट्रैफिक के चलते रूमी दरवाजे में दरार आ चुकी है तो इमामबाडा में अतिक्रमण बढ़ रहा है । सिबटेनाबाद इमामबाडा के गेट पर तो सरकार ने ही अतिक्रमण कर लिया है ।
जाफर मीर अब्दुल्ला ने संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक समिति के सेक्रेट्री जनरल(रिटायर ) और स्वीडन में बसे मशहूर वास्तुकलाविशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सतीश चंद्रा का हवाला देते हुए कहा कि इन ईमारतों का रख रखाव भी ठीक से नहीं हो रहा है । सतीश चंद्रा का भी यही मानना है कि ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण में जो सामग्री इस्तेमाल की जा रही है उससे काफी नुकसान पहुँच सकता है । इन इमारतों को दुरुस्त करने का काम पोर्टलैंड सीमेंट, सुर्खी चूना और मौरंग आदि की मदद से किया जा रहा है । इनसे इमारतों की पोरेसिटी ख़त्म हो जा रही है जिससे संकट और बढ़ रहा है । अब्दुल्ला ने आगे कहा -अवध की इन इमारतों की ख़ास बात यही है कि इन इमारतों में जो पोरेसिटी होती है उसी के चलते दीवारों के कान होते है वाला मुहावरा भी मशहूर हुआ और भूल भुलैया में दीवार के एक छोर पर कोई कागज फाड़े तो तो दूसरे छोर पर आवाज सुनी जा सकती । पर इमारतों की मरम्मत के चलते यह पोरेसिटी ख़त्म हो रही है जिससे इन इमारतों को नुकसान पहुँच रहा है ।
एमिटी विश्विद्यालय के आर्किटेक्ट विभाग के कुछ छात्रों ने इन इमारतों के हालात का अध्ययन कर कई महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई है। अध्ययन के मुताबिक लखनऊ की पहचान रूमी दरवाजा में जो दरार आई है यदि उसे जल्द दुरुस्त नहीं किया गया तो आसिफुद्दौला की यह धरोहर इतिहास के पन्नो से गायब हो जाएगी । अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के पिता अमजद अली शाह का मकबरा सिबटेनाबाद हजरत गंज में है । यह शिया लोगों का महत्त्वपूर्ण स्थल है। यह भवन भी भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के संरक्षित भवनों में से एक है। इस इमामबाड़े पर लोगों ने कब्ज़ा कर रखा है। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे आप किसी मुहल्ले में खड़े है। इमामबाड़े में अंदर जाने पर आपको गैस एजेंसी से लेकर चाट की दुकान मिल जाएगी । और लोग अतिक्रमण करे तो समझ में आता है सरकारी महकमा भी इस काम में पीछे नहीं है । हजरत गंज को खुबसूरत बनाने के नाम पर पर इस इमामबाड़े के मुख्य गेट पर बड़ा सा फौव्वारा बना दिया गई जिसके चलते अब कोई धार्मिक जलूस आदि भी बाहर नहीं आ सकता ।
ऐसी ही स्थिति बड़ा इमामबाडा की है । इसको अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1784 में बनवाया था। यहां पर भी लोगों ने कब्ज़ा जमा रखा है। इमामबाड़े के बाहर के हिस्से में एक होटल वाले ने कब्ज़ा कर रखा है। बाहर वह ठेला लगाता है व इमामबाड़े के अंदर की तरफ उसने अपना किचन बना रखा है। इमामबाड़े के अंदर की तरफ मस्जिद के पीछे की तरफ व नीचे लोगों ने अवैध कब्ज़ा जमा रखा है। छोटा इमामबाड़ा में बाहर अन्दर दोनों जगह लोगों ने कब्ज़ा जमा रखा है। यहां बाकायदा इन परिवारों का चौका चूल्हा जलता है। कहने को तो यह भी पुरातत्व विभाग का संरक्षित भवन है पर इसकी देख रेख करने वाला कोई है ऐसा देख कर नहीं लगता। करीब दर्जन भर इमारतें जर्जर हो चुकी है । jansatta

Tuesday, November 8, 2011

जमीन छीनी सवा सौ रुपए मीटर, गन्ना ढाई सौ रुपए कुंतल

अंबरीश कुमार
लखनऊ , नवंबर । उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव को देखते हुए एक तरफ कांग्रेस जहां पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण की तैयारी में है वही मायावती सरकार कांग्रेस से पैंतरों से आशंकित पेशबंदी में जुट गई है। गन्ने की कीमतों में चालीस रुपए की बढ़ोतरी का फैसला भी इसी पेशबंदी का नतीजा है। गन्ना उत्तर प्रदेश में राजनैतिक हथियार बनता रहा है और गन्ना किसान इसी राजनीति में पिसते रहे है जिसके चलते पूर्वांचल में किसानो ने बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती से हाथ खींच लिया है । अब तराई और पश्चिमी उत्तर प्रदेश खासकर मेरठ और सहारनपुर मंडल में गन्ने की राजनीति का असर पड़ना है । यह वही इलाका है जहां लोकदल और कांग्रेस के संभावित गठबंधन से बसपा का संकट बढ़ सकता है । जिसे देखते हुए आज मायावती ने गन्ने की कीमतों में चालीस रुपए का इजाफा किया । किसान मायावती सरकार से पहले से ही नाराज बैठा था जिसपर लोकदल कांग्रेस गठबंधन हो जाने पर मायावती की दिक्कते और बढ़ जाती । उत्तर प्रदेश में मायावती के सत्ता में आने के बाद किसानो पर आधा दर्जन से ज्यादा बार लाठी गोली चल चुकी है । एक तरफ किसानो की ज़मीन १२० रुपए मीटर के भाव ली गई तो अब गन्ने का दाम २४० रुपए कुंतल कर किसानो को खुश करने की कोशिश हो रही है । यह बात अलग है कि पिछली बार किसान को २७० से ज्यादा का भी भाव मिला था । लोकदल से लेकर समाजवादी पार्टी ने भी एक सुर में यही कहा कि जब किसान को तीन सौ रुपए कुंतल का दाम पहले मिल चूका हो तो इस बढ़ोतरी का क्या अर्थ है ।
हाल ही में जब करछना में किसानो पर लाठी गोली चली तो अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा ने कहा था कि किसानो की जमीन १२० रुपये मीटर के भाव छीनी गई है जो कपडे से भी सस्ती है। किसान सभा के नेता सुरेश चंद्र ने कहा -यहाँ जमीन का अधिग्रहण पुलिस, दलालो व गुण्डों के दबाव में किया गया था। मुआवजा तीन लाख रुपये प्रति बीघा दिया गया जो मात्रा 120 रुपये वर्गमीटर पड़ता है। 120 रुपए वर्गमीटर में साधारण कपड़ा भी बाजार में नहीं मिलता। सरकार इस रेट पर किसानों की जमीनें छीनकर उनके भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। यह बानगी है किस तरह उद्योगपतियों के लिए किसानो की जमीन सस्ते में छीनी गई । अब यह सरकार किसानो की हमदर्द बन रही है। किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -यह सारा खेल तो राजनैतिक है जो मुख रूप से कांग्रेस और लोकदल गठबंधन के चलते किया जा रहा है । किसानो से इनका क्या लेना जिनकी जमीन १२० रुपए के भाव छीन ली जाती है । गन्ना किसानो को तो इतना परेशान किया गया कि पूर्वांचल में सिर्फ दस फीसदी किसान अब गन्ना बोते है बाकी ने बंद कर दिया ।जब किसानो को वाजिब दाम न मिलाने से गन्ना को खेतों में जलना पड़े तो यही स्थिति पैदा होगी ।
दरअसल उत्तर प्रदेश में राजनैतिक बिसात बिछ चुकी है और ऐसे में हर घोषणा के राजनैतिक अर्थ भी तलाशे जाएंगे । यही वजह है कि लोकदल प्रवक्ता अनिल दुबे ने इसे किसान विरोधी बताया और कहा -इससे ज्यादा कीमत तो पहले ही मिल चुकी है । नेता विरोधी दल उत्तर प्रदेश विधान सभा शिवपाल सिंह यादव ने कहा -गन्ने का राज्य परामर्शी मूल्य न तो उचित है और नहीं लाभकारी है। यह गन्ना किसानों को लूट कर मिल मालिको का पेट भरने और अपना मोटा कमीशन वसूलने का बसपाई तरीका है। इस सरकार में किसान पहले से परेशान है, उसको यह सरकार और ज्यादा तबाह करने पर तुली है। इधर डीजल, पानी, बिजली, खाद सभी के दामों में भारी वृद्धि हुई है। मिलों पर सैकड़ों करोड़ रूपए बकाया हैं। घोषित मूल्य से तो लागत भी नहीं निकलेगी। इसलिए समाजवादी पार्टी की मांग है कि राज्य सरकार गन्ना किसानों को कम से कम 350 रूपए कुंतल के दाम दे।jansatta

Friday, November 4, 2011

विधायको की बगावत से आशंकित मायावती भंग कर सकती है विधानसभा


अंबरीश कुमार
लखनऊ नवम्बर । राज्यसभा चुनाव में विधायको के बगावती तेवरों से आशंकित बसपा की मुखिया और मुख्यमंत्री मायावती ने विधान सभा का सत्र २१ नवंबर
से बुला कर राजनैतिक जमीन बचाने का प्रयास किया है । २ अप्रैल २०१२ को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए के दस सांसदों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है । इनमे बसपा के पांच सांसद नरेश अग्रवाल ,मुनकाद अली ,गंगाचरण राजपूत ,राजपाल सिंह सैनी और प्रमोद कुरील शामिल है ।विधान सभा का शीत कालीन सत्र बुलाते ही प्रदेश की राजनीति में अटकलों का बाजार गर्म हो गया । परम्परा के मुताबिक चुनावी साल में कोई भी सर्कार बजट सत्र न बुलाकर जरुरी सरकारी खर्च के लिए लेखानुदान मांग पास कराती है जो जरुरी है । पर इसके साथ ही मायावती सरकार का राजनैतिक एजंडा भी चर्चा में है । जिसके तहत उत्तर प्रदेश में तीन छोटे राज्यों बुंदेलखंड ,पूर्वांचल और हरित प्रदेश के पक्ष में विधान सभा में प्रस्ताव पास करने से लेकर कई चुनावी टोटकों को आजमाया जा सकता है । इसमे आरक्षण भी शामिल है।पर राजनैतिक जानकर मानते है कि मायावती ने जिन पचास विधायको के टिकट काट दिए है वे अप्रैल में राज्यसभा का चुनाव होने पर बगावत कर सकते है । ऐसे में बसपा को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। इस वजह से मायावती शीत्त्कालीन सत्र में जरुरी कामकाज निपटने के बाद विधान सभा भंग करने की सिफारिश कर सकती है ।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -मायावती कुछ भी कर सकती है । लोकतंत्र में उनका भरोसा नही है इसलिए वे कोई भी कदम उठा सकती है । बसपा में भगदड़ की स्थिति है ऐसे में राज्य सभा चुनाव में पराजय भी तय है इसलिए वे पेशबंदी में किसी भी हद तक जा सकती है । विधान सभा का सत्र तो बुलाना ही था क्योकि लेखानुदान प्रस्ताव पास होना है पर इसके साथ वे चुनावी दांव पेंच भी चल रही है । गौरतलब है कि विधान सभा में दो सौ से ज्यादा बसपा विधायको में से पचास के टिकट काटे जा चुके है और बहुत से मंत्रियों और विधायको का टिकट कटना तय है । ऐसे में राज्य सभा चुनाव में बागी विधायकों का समर्थन सत्तारूढ़ दल को नहीं मिल सकता है । जिसके चलते विधान सभा चुनाव से पहले ही राज्य सभा चुनाव की हार का सन्देश चला जाएगा । यही वजह है क्योकि मायावती पहले ही विधान सभा भंग करने की सिफ़ारिश कर सकती है ।
राज्यसभा में बसपा की संख्या काफी है और अप्रैल २०१२ में इनमे से पांच बसपा सांसदों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है । दूसरी तरफ प्रदेश में जो राजनैतिक माहौल है उसमे आने वाले विधान सभा चुनाव में बसपा को ज्यादा नुकसान होता नजर आ रहा है । ऐसे में मायावती राज्य सभा का चुनाव कराकर अपनी फजीहत क्यों कराना चाहेंगी इसलिए वे आगामी सत्र में विधान सभा भंग करने की सिफारिश कर सकती है ।

दरअसल मायावती की चिंता विधान सभा का चुनाव है जिसे लेकर वे कोई भी बड़ा राजनैतिक कदम उठा सकती है जिसमे आरक्षण से लेकर प्रदेश का बंटवारा भी शामिल है । पर इसका उन्हें कीताना फायदा मिलेगा यह कहा नहीं जा सकता । jansatta

Thursday, November 3, 2011

भ्रष्टाचार के मामले में नया रिकार्ड बना रहे है मायावती के मंत्री !


अंबरीश कुमार
लखनऊ नवम्बर ।भ्रष्टाचार के मामले मे मायावती सरकार के मंत्री नया रिकार्ड बना रहे है । आए दिन मायावती सरकार का कोई न कोई मंत्री किसी न किसी मामले में फंसता जा रहा है । हफ्ते भर में तीन मंत्री लोकायुक्त की जांच के घेरे में आ चुके है । ये मंत्री है ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय, अम्बेडकर ग्राम्य विकास मंत्री रतनलाल अहिरवार और खेल मंत्री अयोध्या पाल । जबकि कृषि मंत्री लक्ष्मी नारायण के खिलाफ जमीन हथियाने को लेकर मथुरा में आज लोग सड़क पर उतरे और उनका पुतला जलाया । अभी कई मंत्री इस कतार में है । जबकि लोकायुक्त के जांच में दोषी पाए जाने पर दुग्ध विकास मंत्री अवधपाल सिंह यादव, धर्माथ कार्य मंत्री राजेश त्रिपाठी, श्रम मंत्री बादशाह सिंह और माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र को मायावती मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा चुकी है । इसी तरह कई अन्य मामलों में कुछ मंत्री पहले ही हटाए जा चुके है मसलन बाबू सिंह कुशवाहा से लेकर अंतु मिश्र आदि ।पर कोई ऎसी कार्यवाई नहीं की गई जिससे यह लगे कि सरकार इन दागी मंत्रियों को दंडित कर रही है । इन माननीय मंत्रियों पर लूट खसोट और जमीन कब्जाने जैसे कई आरोप है । खास बात यह है कि भ्रष्टाचार के मामले देश के अग्रणी राज्यों में शुमार उत्तर प्रदेश के भ्रष्ट मंत्रियों और नेताओं के खिलाफ टीम अन्ना ने कोई ठोस पहल तक नहीं की है ।
कांग्रेस नेता राजबब्बर ने कहा -जिस सरकार का रोज एक मंत्री किसी न किसी मामले में फंसता नजर आए उस सरकार की क्या साख बचेगी । आने वाले चुनाव में आमलोगों की नाराजगी का पहला शिकार ये दागी मंत्री होंगे और उनके बाद दागी विधायकों का नंबर आएगा इसी वजह से ऐसे लोगों का टिकट कट कर सत्तारूढ़ दल लोगों को सन्देश देना चाहता है पर इन टोटकों का अब कोई असर नहीं होगा। इस सरकार का जाना तय हो गया है ।
समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज कहा - बसपा सरकार में जुल्म और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा हो गई है। बसपा मंत्रियों विधायकों पर हत्या, लूट, बलात्कार के आए दिन आरोप लग रहे हैं। हर वर्ग दुःखी, अपमानित और उत्पीड़न का शिकार है। इस सरकार को सजा देने का काम जनता करेगी।
भारतीय जनता पार्टी ने लोकायुक्त जांचों में आरोपी पाए गए मंत्रियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग की है और जिनके विरूद्ध जांच जारी है उनको मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की भी मांग की। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने आज कहा कि दलितों व दलितों के नाम पर सत्ता में आने वाली बसपा सरकार की पहचान भ्रष्टाचार व अपराधियों की संरक्षक सरकार के रूप में बन गई है। पाठक ने कहा कि मंत्रियों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच के लिए आवश्यक है कि आरोपित मंत्रियों को तत्काल मंत्रिमंडल से हटाया जाए। क्योंकि अपने पद और रसूख का बेजा इस्तेमाल कर ये लोग जांच को प्रभावित कर रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता ने मांग की कि बसपा सरकार के कार्यकाल में हुए घपले-घोटालों की सीबीआई के माध्यम से जांच कराई जाए। क्योंकि कई मामलों में जांच के लिए लोकायुक्त अधिकृत नहीं है। राज्य के 12 से अधिक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार व गम्भीर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगे हैं। कई मंत्रियों के विरूद्ध शिकायतों की जांच लोकायुक्त कर रहे हैं। लेकिन आरोपों के घेरे में आए मंत्रियों ने न तो इस्तीफा दिया और न ही मुख्यमंत्री ने उन्हें बर्खास्त किया।
पाठक ने आगे कहा -विभिन्न संगीन मामलों में फंसे मंत्रियों की अराजकता का आलम यह है कि वह अपने खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाले शिकायत कर्ताओं को धमकाने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। मथुरा में तेल के काले धंधे के कारोबार के खिलाफ पुलिस की मदद करने वाले युवक की हत्या के मामले में एक वरिष्ठ मंत्री का नाम आना और वरिष्ठ काबिना मंत्री दद्दू प्रसाद पर हाल ही में लगे आरोपों पर जिस प्रकार सरकार ने रवैया अपनाया उससे पीड़ित को न्याय मिलना तो दूर मामले की जांच को भी प्रभावित किया जा रहा है।