Friday, November 30, 2018

जन आंदोलनों का चेहरा हैं मेधा पाटकर

अंबरीश कुमार मेधा पाटकर को जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई .मेधा पाटकर देश में जन आंदोलनों का चेहरा हैं .मैंने बहुत कम लोगों को इस तरह रोज रोज यात्रा करते और जगह जगह आन्दोलन के लिए जाते देखा है .खांटी समाजवादी साथी सुनीलम और विजय प्रताप जैसे कुछ अपवाद जरुर हैं .समाजवादी आंदोलन से ही मेधा भी निकली और लगातार संघर्ष करती रही .कुछ यात्रा अपने साथ भी हुई और काफी यादगार भी खासकर करीब डेढ़ दशक पहले बस्तर की यात्रा .मुझे जगदलपुर जाना था ,मेधा पाटकर रायपुर में थीं उनका फोन आया और कहा कि वे भी साथ चलेंगी .नगरनार स्टील प्लांट का आंदोलन चल रहा था .साथ ही चलीं और मै जगदलपुर के सर्किट हाउस में ठहर गया वे एक वरिष्ठ वामपंथी नेता के घर रुकी और रात के खाने पर वहीँ बुलाया .दिन में नगरनार के आंदोलनकारियों के बीच जाना हुआ .दूसरे दिन सुबह जगदलपुर से रायपुर लौटना था .मै सर्किट हाउस में नाश्ता कर रहा था तभी बाहर से शोर शराबे की आवाज आई .पता चला मेधा मुझसे मिलने आ रही थीं और विकास समर्थक ताकतों को उनके आने की खबर मिल गई और करीब पच्चीस तीस लोग हुल्लड़ मचाते वहां पहुंच गए .ये यूथ कांग्रेसी थे ,लंपट किस्म के .ये आदिवासियों की जमीन छीनकर उन्हें कारपोरेट घरानों को दिए जाने का समर्थन कर रहे थे .कारपोरेट घराने ऐसे विकास समर्थकों पर काफी पैसा खर्च करते हैं .भ्रम मत पालिएगा इसमें कांग्रेसी और भाजपाई साथ साथ होते हैं .खैर अपने साथ जनसत्ता के जगदलपुर संवाददाता वीरेंद्र भी थे जो सेना की नौकरी निकलकर पत्रकारिता में आए .वे भीड़ में घुसे और मेधा को निकाल कर बाहर लाए .तब तक सुरक्षा में तैनात पुलिस भी पहुंच गई . हम लोग सुरक्षित निकले .साथ में डेक्कन हेरल्ड के अमिताभ तिवारी और मेरा छोटा बेटा अंबर भी था जो साथ जरुर जाता .जगदलपुर से कुछ दूर जाने पर बस्तर गांव आया और सड़क के किनारे एक चाय पकौड़ी वाला दिखा .मेधा ने कार रुकवा दी .बोली पकौड़ी खाई जाएगी .साथ ही पानी की बोतल निकाली और बोली इसे नल से भरवा दीजिए .हम हैरान ,अमूमन बाहर इस तरह की पकौड़ी आदि से बचता हूं .पर वे बेफिक्र थी .आटे की पकौड़ी खाई ,चाय पी और हैंड पंप का पानी .बताया कि वे बोतल वाला यानी मिनरल वाटर नहीं पीती हैं जो पानी आम लोग पीते हैं वही वे भी पीती हैं और वैसा ही खानपान भी .चलते चलते काफी बातचीत होती रही .तभी मुख्यमंत्री अजीत जोगी का फोन आया .वे मेधा पाटकर पर बरस पड़े .सारी घटना की जानकारी उन्हें मिल चुकी थी .वे इस बात से नाराज थे कि वे उन्हें बिना बताए जगदलपुर के आंदोलन में गई क्यों ? दूसरे मेरे साथ क्यों गई .अपने साथ भी तबतक सरकार के संबंध खराब हो चुके थे खबरों को लेकर .बहरहाल रात के खाने पर उन्होंने मेधा को बुलाया .हालांकि मेधा पाटकर बहुत आहत हो चुकी थी .खैर यात्रा पूरी हुई .इसके बाद फिर वर्ष दो हजार बारह में नागपुर से छिंदवाडा की यात्रा मेधा के साथ हुई .जिसका लिंक कमेन्ट बाक्स में हैं .मेधा पाटकर जब भी अनशन करती है तो आशंकित हो जाता है .वे जिद्दी हैं इसलिए .देश को उनकी जरुरत हैं .यह दिन बार बार आये .

Thursday, November 29, 2018

राजपथ पर बिवाई फटे नंगे पैर

अंबरीश कुमार सिर्फ किसान ही नहीं आदिवासी ,गरीब और गांव सभी हाशिये पर है। जल, जंगल और जमीन का संघर्ष जगह जगह चल रहा है पर मीडिया में उसे काफी कम जगह मिलती है। किसान जगह जगह संघर्ष कर रहा है ।उत्तर प्रदेश के महोबा से लेकर छत्तीसगढ़ के महासमुंद तक।बंगाल से लेकर महारास्त्र के विदर्भ तक । कही पर खाद ,पानी और बिजली की मांग करता किसान पुलिस की लाठी खाता है तो कही पर संघर्ष का रास्ता छोड़ कर ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो जाता है । बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ तक किसान मौत को भी गले लगा रहे है । किसान फिर दिल्ली के राजपथ पर चल रहे है .कोई फर्क नहीं आया पहले से आज के हाल में .कुछ वर्ष पहले ऐसे ही किसान मार्च पर जनसत्ता में एक टिपण्णी लिखी थी वह याद आ गई . हाल ही में लुटियन की दिल्ली के चमचमाते राजपथ पर जब बेवाई फटे नंगे पैर हाथ में गन्ना लिए धोती कुरते वाला किसान नज़र आया तो नव दौलतिया वर्ग ने जो कुछ हिकारत की भाषा में कहा उसे टीवी वालो ने पूरे देश को परोस दिया था। किसान दिल्ली कोई पिकनिक मनाने नहीं आये थे ,वे देश की सबसे बड़ी पंचायत से गुहार लगाने आये थे। वे बिचौलिये की तरह मुनाफा बढाने का नाजायज हथकंडा नहीं अपना रहे थे बल्कि महात्मा गाँधी के रास्ते पर चलते हुए सत्याग्रह करने आये थे।मीडिया के एक तबके ने भी अन्नदाता की खिल्ली उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । पहले भारत की जो छवि विदेशी मीडिया देश के बाहर बनता था आज किसान की वही छवि देसी मीडिया देश में बनता है । सिर्फ किसान ही नहीं आदिवासी ,गरीब और गांव सभी हाशिये पर है। जल, जंगल और जमीन का संघर्ष जगह जगह चल रहा है पर मीडिया में उसे काफी कम जगह मिलती है। किसान जगह जगह संघर्ष कर रहा है ।उत्तर प्रदेश के महोबा से लेकर छत्तीसगढ़ के महासमुंद तक।बंगाल से लेकर महारास्त्र के विदर्भ तक । कही पर खाद ,पानी और बिजली की मांग करता किसान पुलिस की लाठी खाता है तो कही पर संघर्ष का रास्ता छोड़ कर ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो जाता है । बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ तक किसान मौत को भी गले लगा रहे है । विदर्भ के ११ जिलों में वर्ष 2001से जनवरी २००९ तक 48०6 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। केंद्र सरकार के पैकेज के बाद औसतन दो किसान रोज खुदकुशी कर रहे हैं। ।साहूकारों के कर्ज में विदर्भ के ज्यादातर किसान परिवार डूबे हैं। इनकी मुख्य वजह वित्तीय संस्थानों और बैंकों का यहां के किसानों की उपेक्षा किया जाना है।विदर्भ में किसान जो कर्ज लेते है उसमे ६५ से 7० फीसदी कर्जा गांव और आसपास के साहूकारों का होता है,जिसके लिए साहूकार 6० से लेकर 1०० फीसदी ब्याज वसूलता है । कर्ज भी नकद नहीं मिलता। गांव में साहूकारों के कृषि केन्द्ग खुले हुए हैं। इन्हीं से किसानों को कर्ज के रूप में बीज, खाद और कीटनाशक मिलता है। विदर्भ की त्रासदी यह है की अब् गाँव गाँव में ख़ुदकुशी कर चुके किसानो की हजारों विधवा औरतें खेत बचाने के लिए संघर्ष के रही है । किसानो का संघर्ष कई जगहों पर अपनी ताकत भी दिखा चूका है । नंदीग्राम से सिन्दूर तक किसानो के आन्दोलन की आंच वाम खेमा न सिर्फ महसूस कर चूका है बल्कि सत्ता से बाहर जाता नज़र आ रहा है। दादरी के किसान आन्दोलन ने मुलायम सिंह को सत्ता से बेदखल कर दिया।पर उस मीडिया को यह समझ नहीं आता जो मोतियाबिंद का शिकार है। फिर भी देश के अलग अलग हिस्सों में किसान एक ताकत बनकर उभर रहा है ।कही पर किसानो के धुर्वीकरण का असर ज्यादा है तो कही कम ।पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान मजबूती से खड़ा हो जाता है तो विदर्भ का किसान निराश होकर ख़ुदकुशी का रास्ता चुन लेता है।पर वहां भी प्रतिकार के लिए किसान लामबंद हो रहा है। उत्तर प्रदेश में एक तरफ बुंदेलखंड का किसान सालो से सूखा के चलते पलायन कर रहा है तो पूर्वांचल में बाढ़ से तबाह हो गया है । गोंडा,बस्ती से लेकर फैजाबाद जैसे कई जिलों में खाद के लिए किसानी पर पुलिस लाठी भांजती है । सहारनपुर ,मेरठ ,बुलंदशहर और मुज्जफरनगर में गन्ने के खेत में आग लगाकर किसान आत्मदाह कर रहा है । विकास की नई अवधारण में किसान की कोई जगह नहीं बची है।शहर बढ़ रहे है तो गाँव की कीमत पर और गाँव के ख़त्म होने का अर्थ किसान का ख़त्म होना है।लखनऊ शहर के गाँव ख़तम होते जा रहे है ।चिनहट के बाबूलाल के पास सात बीघा जमीन थी जो शहर से लगी थी । लखनऊ की विस्तार योजना में उसकी जमीन चली गई जो पैसा मिला वह शादी ब्याह और मकान बनाने में ख़तम हो गई ।जिसके बाद रिक्शा चला कर परिवार का गुजारा होता है ।बीमार पड़ते ही फांकाकशी की नौबत आ जाती है । यह उनका उदहारण है जो साल भर अपनी खेती से खाते थे और शादी ब्याह का दस्तूर भी निभा लेते थे।गंगा एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे के नाम पर हजारो किसान अपनी खेती से बेदखल होने जा रहे है। जब दादरी में किसानो की जमीन के अधिग्रहण के सवाल पर वीपी सिंह ने आन्दोलन शुरू किया तो देवरिया से दादरी के बीच उनके किसान रथ पर राजबब्बर के साथ हमने भी कवरेज के लिए कई बार यात्रा की ।कई जगह पर रात बारह बजे तक पहुँच पाते थे पर किसान सभा में मौजूद रहते। जगह जगह वीपी सिंह से किसान यही गुहार लगते की जमीन से बेदखल न होने पाए ।जमीन का सवाल किसान के लिए जीवन का सवाल है।यही वजह है की दादरी का आन्दोलन आज भी जिन्दा है और उम्मीद है की किसान अदालती लड़ाई भी जित जायेगा।यह भूमि अधिग्रहण का संघर्ष करने वाले किसानो को नई ताकत भी देगा।यह लड़ाई सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं पूर्वांचल में भी चल रही है ।गंगा एक्सप्रेस वे उदहारण है ।अदालती रोक के बावजूद जेपी समूह के कर्मचारी मिर्जापुर के गावं में पैमाइश कर खूंटा गाद रहे है ।और राजधानी लखनऊ से उन्नाव के बीच लीडा के नाम किसानो के 84 गावं अपना अस्तित्व खोने जा रहे है ।यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के दायरे में ९५० सौ गाँव आ रहे है। इसी तरह गंगा एक्सप्रेस वे २१ जिलो के कई सौ गाँव को प्रभावित करेगी ।यह सब योजनाये बड़े पैमाने पर किसानो का विस्थापन करेंगी। जबकि दादरी की लड़ाई २७६२ एकड़ जमीन की थी ।दादरी आन्दोलन से जुड़े रहे भाकपा नेता डाक्टर गिरीश यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण को लेकर खेती बचाओ -गावं बचाव आन्दोलन में जुटे है ,जमीन के सवाल पर गिरीश ने कहा -किसान जमीन नहीं देगा यह तय कर चूका है।यह फैसला यमुना एक्सप्रेस वे से प्रभावित चारों जिलों के किसानो का है ।इस परियोजना से आगरा ,मथुरा ,हाथरस और अलीगढ के ८५० गावं प्रभावित हो रहे है।यह इलाका आलू की थाली कहलाता है जहाँ का किसान हर साल लाखों का आलू बेचता है।मामला सिर्फ सड़क बनाने का नहीं है ।गिरीश ने आगे कहा -सड़क के दोनों तरफ माल और रीसोर्ट बनाकर किसानो को उनकी जमीन से बेदखल करना क्या विकास है । कुछ महीने पहले नागपुर के आगे हम ऐसे ही एक गावं सीवनगावं में थे जहाँ किसान भूमि अधिग्रहण की लड़ी लड़ रहा था ।यह इलाका संतरा पट्टी के रूप में मशहूर है । करीब दस एकड़ खेत सामने नज़र आता है ,जिसमे संतरा लगा था ,बीच में अरहर ।पक्का घर और दो वाहन खड़े नज़र आते है । एक मारुती वेन और एक इंडिका कार।हाथ पकड़कर किसान भुसारी ने संतरे के खेतो को दिखाते हुए कहा - हमारी दस एकड़ की खेती है। हर साल ५-६ लाख की आमदनी संतरा और अन्य फसलो से हो जाती है पर इस जमीन के बदले उन्हें करीब चार लाख मुआवजा मिल रहा है जिससे आस पास एक बीघा जमीन भी नहीं मिलेगी ।उनका सवाल है -हम लोग क्या करेंगे? पूरा परिवार सदमे में है और यह हाल एक नहीं कई परिवारों का है। इस गांव के आस-पास ग्यारह गांवों तिल्हारा, कलकुही, सुनढाना, रहेगा, खापरी, चिजभवन, जामथा, खुर्सापार, हिंगना और इसासनी गावों की करीब दस हजार ऐकड जमीन मेहान परियोजना की भेंट चढ चुकी है। मेहान का मतलब मल्टी मोडल इंटरनेशनल हब एंड एअरपोर्ट होता है। जो महाराष्ट्र एअरपोर्ट डेवलपमेंट कम्पनी ने बनाया है। जिसके चलते किसानों से एक एकड जमीन पचास हजार से लेकर डेढ लाख रूपए मे ली गई और उद्योगपतियों को पचपन लाख रूपए एकड के भाव दी जा रही है। जिसके चलते आस-पास के इलाकों की जमीन की कीमत और ज्यादा बढ गइ है। जिसमें नेताओं और उद्यमियों ने बडे पैमाने पर निवेश करना शुरू कर दिया है। नागपुर से वर्धा की तरफ बढे तो किसानो के खेत पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा नज़र आ जायेगा । सडक के किनारे-किनारे वास्तुलैंड, ग्रेसलैंड, सन्देश रिअल स्टेट, वेंकटेश सिटी, सहारा सिटी, श्री बालाजी रिअल र्टफ जैसे बोर्ड नजर आते। सारा खेल बडे नेताओं और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने का है। विदर्भ में किसान का बेहाल है ।अकोला ,अमरावती ,वर्धा ,भंडाराकही भी जाये किसानो की बदहाली नज़र आ जाएगी । यह वही इलाका है जहां कभी जमना लाल बजाज ने महात्मा गांधी को लाकर बसाया था। सेवाग्राम में गांधी यहीं के किसानों के कपास से सूत कातते थे। जमना लाल बजाज भी कपास के व्यापारी थे। उस समय विदर्भ का कपास समूचे विश्व में मशहूर था और मैनचेस्टर तक जाता था। आज वही कपास किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं। जवान किसान खुदकुशी कर ले तो उसकी पत्नी किस त्रासदी से गुजरती है, वह यहां के गांव में देखा जा सकता है। खेत से लेकर अस्मत बचाने तक की चुनौती झेल रही इन महिलाओं की कहानी कमोवेश एक जैसी है। अकोला के तिलहारा ताल्लुक की शांति देवी ने से बात हुई तो उसका जवाब था , 'आदमी तो चला गया, अब खेत कैसे बचाएं। खेत गिरवी है। साहूकार रोज तकाजा करता है। एक बेटा गोद में तो दूसरी बच्ची का स्कूल छूट चुका है। पच्चीस हजार रूपए कर्जा लिया था और साहूकार पचास हजार मांग रहा है। नहीं तो खेत अपने नाम कराने की धमकी देता है। फसल से जो मिलेगा, वह फिर कर्जा चुकाने में जाएगा। क्या खाएंगे और कैसे बच्चों को पालेंगे? कर्ज माफ़ी का हमे कोई फायदा नहीं हुआ है ।’ यह एक उदहारण है विदर्भ के ज्यादातर जिलों में यही नज़ारा देखने को मिलेगा । यही हाल छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के ओडिसा से लगे इलाके का है जो कालाहांडी जैसा ही है ।उत्तर प्रदेश की तरफ आये तो भूखे और सूखे बुंदेलखंड में अकाल से लड़ते किसानो को देखा जा सकता है।पिछले साल इसी इलाके में हमने एक किसान परिवार को राख में पानी घोलकर अपने सात साल के बेटे को पिलाते देखा।वजह पूछने पचास साल के दसरथ का जवाब था-जब अन्न नहीं बचा तो क्या करें।यह ख़ुदकुशी के पहले का चरण मन जाता है इसके बाद क्या विकल्प बचेगा।इस दर्द को वे नहीं समझ सकते जो न तो किसान को जानते है और न ही गाँव को।न वह मीडिया जो दिल्ली में अपनी आवाज उठाने आये किसान की पेसाब करते हुए फोटो छापता है।उत्तर प्रदेश के कुछ किसान ही दिल्ली गए थे ,सभी नहीं।प्रदेश में चालीस लाख गन्ना किसान है जो वोट के लिहाज से भी बड़ी ताकत है ।कांग्रेस ने जिस तेजी से किसानो की बात मानी उसके पीछे वोट की ही राजनीति थी ।कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी गाँव और किसान को राजनैतिक एजंडा बनाए हुए है और उत्तर प्रदेश का २०१२ का विधानसभा चुनाव उनके लिए चुनौती बना हुआ है ।ऐसे में गन्ना किसानो की नाराजगी कांग्रेस को भरी पड़ती।राहुल गाँधी ने प्रधानमन्त्री से मुलाकात कर दखल देने को कहा था। उत्तर प्रदेश में करीब सवा सौ चीनी मिलें है जिनमे २४ सहकारी ,११ निगम यानि सरकारी और ९४ निजी चीनी मिले।पूरब से पश्चिम तक की यह चीनी मिले भी गन्ना किसानो का कम शोषण नहीं करती।छोटे किसान को तो गन्ने की पर्ची तक नहीं मिल पाती और वह बिचौलियों को कम दाम पर गन्ना देकर पीछे हट जाता है।छोटा किसान हर जगह नुक्सान उठाता है ।कम कीमत पर गन्ना देना और धर्मकांटा पर घटतौली यानी कम गन्ना तौल कर ठगने की कोशिश करना।इसके आलावा भुगतान समय पर न होने की दशा में ब्याज का प्रावधान है पर चीनी मिल मालिक इसके लिए भी सालों चक्कर कटवाते है। दुसरे राज्यों में चीनी मिल मालिक गन्ना किसानो का गन्ना सीधे खेत से उठाता है पर उत्तर प्रदेश में गन्ना क्रय केंद्र तक गन्ना किसान खुद पंहुचाता है और आगे ले जाने का पैसा भी मिल वाले काटते है ।अपवाद एकाध मिल मालिक है जो चीनी की ज्यादा रिकवरी के लिए गन्ना खेत से उठाते है।इस सब कवायद के बाद गन्ना किसान को पैसा मिलता है।चीनी का दाम आसमान छू रहा है पर गन्ना की कीमत मांगना गुनाह हो गया है। निराश होकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई किसान ख़ुदकुशी कर चुके है।गन्ना किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति भी प्रभावित करते है ,यही वजह है चौधरी अजित सिंह से लेकर महेंद्र सिंह टिकैत तक ने दिल्ली में किसानो की पंचायत बुलाई ।दिल्ली जाने से पहले मेरठ में जो किसान पंचायत बुलाई गई थी उसमे अजित सिंह ने किसानो से कहा था -एक गन्ना और दो लत्ता यानि कपडा लेकर दिल्ली आ जाना ,पूड़ी - सब्जी का इंतजाम कर दूंगा।गन्ना किसान दिल्ली पंहुचा तो सड़क जाम हो गई ,हर तरफ किसान नज़र आ रहा था ।नंगे और बेवाई फटे पैरो वाला किसान दिल्ली वालो को रास नहीं आया।मुझे याद है नब्बे के दशक में जब महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली के बोट क्लब पर डेरा डाला था तो पूरा गाँव बस गया था ।कवरेज के लिए हम दिन भर किसानो के अस्थाई गाँव में रहते जहां मवेशी भी थे और चुल्हा भी जलता था।तब भी दिल्ली वालो को किसानो का यह आन्दोलन रास नहीं आया और कहते -यह सब बोट क्लब गन्दा कर दे रहे है। रविवारीय जनसत्ता से

Thursday, November 15, 2018

होका पाम से घिरे द्वीप पर

अंबरीश कुमार मुंबई से करीब घंटे भर बाद नारियल और होका पाम के पेड़ों से घिरे के हवाई अड्डे पर पाँव रखते ही लगा की समुंद्र में उतरने जा रहे है .यह हवाई अड्डा समुंद्र से लगा हुआ है और अन्य शहरों के मुकाबले काफी छोटा और खुला हुआ है . जो सड़क इसे शहर से जोड़ती है उलटी दिशा में वह नागोवा बीच की तरफ जाती है . चारो और पानी से घिरा यह द्वीप अब सैलानियों के आकर्षण का नया केंद्र बनकर उभर रहा है . दीव जो करीब साढ़े चार सौ साल तक पुर्तगालियों के कब्जे में रहा . आज भी पुर्तगाल की संस्कृति और वास्तुशिल्प की झलक इस शहर में मिलती है . यह शहर आज भी एक कस्बे की तरह है . दीव का बाजार आज भी हाट बाजार की तरह है तो एक भी माल यहाँ नही है और न ही मल्टीप्लेक्स . मछुआरों का परंपरागत व्यवसाय आज भी दीव का प्रमुख व्यवसाय है और ज्यादातर परिवारों का जीवन बसर मछली के कारोबार से जुड़ा है .पर दीव के किले की बुर्ज पर सागर की तरफ तनी हुई तोपों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सैकड़ों सालों तक किस तरह यह द्वीप सामरिक दृष्टि महत्वपूर्ण है . पहले कभी यह समूचा द्वीप इस किले में सिमटा हुआ था पर बाद में दीव किले की दीवारों से आगे बढ़ता गया . किला भी काफी बड़ा है और इसके एक छोर का अवशेष जालंदर समुंद्र तट पर बने सर्किट हाउस के सामने आज भी नजर आता है . अरब सागर की लहरों के थपेड़े से सदियों से मुकाबला कर रही किले की दीवारे अब कमजोर पड़ चुकी है तो बुर्ज भी बदहाल है . किले के भीतर ही ऐतिहासिक चर्च है तो दीव की जेल भी . सामने अरब सागर में एक और किला नजर आता है जो शाम ढलते ही रोशनी से जगमगा जाता है . समूचे दीव में न तो ज्यादा वाहन नजर आते है और न ही शोर शराबा जैसा गोवा में शाम ढलते ही नजर आता है . समर हाउस से पैदल ही बाजार की तरफ चलने पर बाए हाथ विशाल चर्च के सामने दो तीन आटों सैलानियों का इंतजार करते नजर आते है . इनके अलावा करीब दो किलोमीटर चलने पर भी दो चार वहां ही नजर आए इससे दीव के माहौल का अंदाजा लगाया जा सकता है . एक दो रेस्तरां बीच में पड़े जहाँ विदेशी पर्यटक समुंद्री व्यंजन का लुत्फ़ उठाते नजर आए . पर पूरे रास्ते सन्नाटा छाया रहा . बंदर चौक पहुँचने पर जरुर भीड़ नजर आई पर ज्यादातर सैलानी थे जो समुंद्र के किनारे बने रेस्तरां में बैठकर शाम गुजरने आए थे तो कुछ फेरी से समुंद्र का चक्कर काटने के लिए टिकट की लाइन में थे . समुंद्री हवा के बावजूद हलकी सी उमस महसूस हो रही थी जबकी नवंबर का आधा महीना निकल चुका था . पर थोड़ी ही देर में बदल गरजे और तेज बरसात से बचने के लिए बंदर चौक में जेटी के पास बने एक रेस्तरां में शरण लेनी पड़ी . शाम के साढ़े छह बजे थे और पहली मंजिल के इस रेस्तरां में समुंद्र की तरफ लगी सीटों पर बैठे नही कि बेयरा ने बताया कि चाय काफी या कुछ और आधे घंटे से पहले नही मिल सकता . पता चला कि यह रेस्तरां देर शाम खुलता है और रात में देर तक लोग यहाँ से समुंदरी नजारा देखते हुए खाना खाते है . दीव का यही इलाका भीड़ भाड़ वाला है इसके आलावा सिर्फ समुंद्र तट पर सप्ताह के अंत में यानी शनीवार - रवीवार को ज्यदा भीड़ मिलेगी क्योकि तब गुजरात और मुंबई से सैलानियों की भीड़ आ जाती है . गुजरात में नशाबंदी है जिसके चलते शौकीन लोग भी चले आते है . गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भले ही पूरे देश में विकास पुरुष घोषित किया जाए पर दीव के लोग इसे किसी कीमत पर नही मानने वाले क्योकि दीव से समूचे विश्व में मशहूर गीर के जंगल और सोमनाथ की सड़क पर चलते ही गुजरात के विकास का भ्रम दूर हो जाएगा . एक घंटे में बीस किलोमीटर का सफ़र हम तय कर पाए थे . इसकी वजह लोग बारिश बता रहे थे पर समूचे दीव में सडकों पर कही जोड़ का निशान नही नजर आया . केंद्र शासित प्रदेश होने का फायदा दीव को जरुर मिला पर अन्य केंद्र शासित राज्यों के मुकाबले यह जगह काफी बेहतर है . गोवा, दमन और दीव में दीव ही ऎसी जगह नजर आई जो चार पांच दिन से लेकर हफ्ते भर तक लिखने पढने के लिए बेहतर जगह है . भीडभाड से दूर यहाँ कई होटल और गेस्ट हाउस पूरी तरह एकांत में है . जालंदर समुंद्र तट पर दीव का दूसरा सर्किट हाउस ऐसे जगह है जहाँ आसपास कोई आबादी नही है . कैशुरिना और नारियल के पेड़ों से घिरा यह समुंद्र तट पूरी तरह एकांत में है और करीब एक किलोमीटर लंबी सड़क इससे लगी हुई है . एक छोर पर समर हाउस है तो दूसरे छोर पर किले के अवशेष .दीव में होका पाम ( ताड़ ) के खूबसूरत पेड़ नजर आए जो और जगहों पर नही मिलते है . ताड़ के पेड़ आमतौर पर एक शाखा वाले मिलते है पर यहाँ पर कई शाखाओं वाले ताड़ मिलेंगे जो सड़को के किनारे किनारे चलते है . इसे पुर्तगाली अपने साथ पुर्तगाल से लाए थे . इसके आलावा नारियल के घने झुरमुठ भी जगह जगह नजर आते है . दीव का इतिहास तो रोचक है ही भूगोल भी लोगों को आकर्षित करता है . नागोवा बीच से लेकर घोघला बीच उदाहरण है . सप्ताहांत में तो नागोवा बीच में लगता है मेला लग गया है .और शाम ढलते ही लहरों के पीछे एक छोटी पहाड़ी पर नीले लाल रंग में दीव लिखा जगमगाने लगता है . समुंद्र में वाटर स्पोर्ट्स की सुविधा है और बच्चे- बड़े समुंद्र की लहरों में पानी के स्कूटर से लेकर मोटर बोट से वाटर स्कीइंग करते नजर आते है . दूसरी तरफ कुछ शौकीन नौजवान समुंद्र में नहाने के बाद रेत पर ही प्लास्टिक के गिलास में मदिरा उड़ेलते नजर आते है . समुंद्र तट पर ओपन एअर बार कई जगह देखा है और गोवा के कलंगूट बीच पर तो महिलाओं को सर पर टोकरी रखकर बीयर से लेकर फेनी बेचती देख चुका हूँ . पर गुजरात के नौजवानों का इस तरह बैठना हैरान करने वाला था . बीच के किनारे करीब पांच सौ वहां लाइन से लगे थे जिसमे कई तो खाना बनाने की व्यवस्था और तंबू आदि के साथ थे . नागोवा से लौटते समय रास्ते में कई जगह सैलानियों के तंबू और चूल्हे भी जलते नजर आए .दीव शहर की तरफ जाते ही सेंट पॉल चर्च रास्ते में पड़ता है . 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में बने इस चर्च को पूरे होने में तकरीबन दस साल का वक्त लगा. पुर्तगालियों ने जो चर्च यहाँ बनवाए उनमे इस चर्च को सबसे भव्य माना जाता है. इसका वुड वर्क दुनिया के बेहतरीन क्राफ्ट वर्क्स में गिना जाता है. इसी के पास ही सेंट थॉमस चर्च है जो अब म्यूजियम में बदल चुका है म्यूजियम में दीव पर राज करने वाले तमाम शासकों और उनके दौर के क्राफ्ट के नमूने हैं. दीव एक और आकर्षण सी-शेल म्यूजियम है जिसे मर्चेंट नेवी के एक कैप्टन ने बनाया है .यहां तकरीबन तीन हजार शेल हैं. यह दुनिया का पहला म्यूजियम है, जहां समुद्र में पाए जाने वाली सीपों और शंखियों को के किनारे पहाड़ी पर बना खुकरी मेमोरियल भारतीय नेवी के शौर्य की अनूठी मिसाल है . खुकरी इंडियन नेवी का एक तेज लड़ाकू जहाज था. 1971 की लड़ाई में इसने पाकिस्तान पर बमबारी की और बाद में नेवी की जांबाजी का परिचय देता हुआ 18 ऑफिसरों और 176 नाविकों सहित समुद्र में समा गया.पुर्तगालियों का बनाया एक और किला समुंद्र के बीच में है जो कभी फोर्ट्रेस आफ पानीकोटा के नाम से जाना जाता था तो आज पानीकोठा भी कहलाता है .इस किले में मोटर बोट से जाया जा सकता है .पर दीव का मुख्य किला ही महत्वपूर्ण माना जाता है जिसका निर्माण १५३५ में नुनो दे कुन्हा ने कराया था बाद में भारत में पुर्तगाल के चौथे वाइसराय (1547-1548) जोआओ दे कास्त्रो ने इस किले का पुनर्निर्माण कराया . किले में चर्च है तो जेल भी और जब यह बना था तो एक छोटा सा पुर्तगाल इसमे समाया हुआ था . इस किले ने कई युद्ध देखे और पुर्तगालियों को बचाया भी . पुर्तगालियों के किले , चर्च और अन्य निर्माण आज भी दीव में है पर अब कोई पुर्तगाली नही बचा है . सभी पुर्तगाल लौट चुके है . पुर्तगालियों की जो पीढी भारत में ही पैदा हुई और जवान हुई वह भी जा चुकी है . गोवा ,दमन और दीव की आजादी के बाद पुर्तगाल ने सभी को वीजा देकर बुला लिया अपवाद है तो गोवा जहा कुछ पुर्तगाली परिवार अभी भी है . जबतक पुर्तगाली शासन रहा पुर्तगाली भाषा आभिजात्य वर्ग की भाषा रही और आज भी कुछ परिवार पुर्तगाली भाषा बोलते नजर आ जाएंगे . पर खानपान और संस्कृति पर पुर्तगाली जो असर छोड़ गए है वह बरकरार है . शाम को खानसामा ने जो सुरमई मछली और किंग प्रान परोसे वह भी पुर्तगाली व्यंजन थे , जो आज भी गोवा ,दमन और दीव में लोकप्रिय है . रिजवान भाई समुंद्र में मछली पकड़ने का कारोबार करते है . खाना बनाने का शौक भी है . रिजवान के शब्दों में - साहब जब समुंद्र में मछली पकड़ने जाते है तब हफ्ता भर रहना पड़ता है . प्लास्टिक के बड़े बड़े डिब्बों जैसे कैशरोल में बर्फ का चूरा लेकर जाते है ताकि मछली पकड़ने बाद उसको रखा जा सके . खाना नहाना सबकुछ छोटे से जहाज पर ही होता है . मै जब खाना बनाने बैठता हूँ तो किसी को हाथ नही लगाने देता . समुंद्र की ताजा मछली होती है और वह मसाले जो पुर्तगाली इस्तेमाल करते थे वही तरीका भी . दीव में आज भी पुर्तगाली खाना बहुत लजीज माना जाता है .यह बानगी है दीव पर पुर्तगाल के असर की . दीव में मदिरा पर टैक्स नही है और काफी सस्ती मिलती है इसलिए दीव के बाहर यानी गुजराज के नौजवानों की भीड़ भी उमडती है और शाम से ही यहाँ के बार गुलजार हो जाते है .जो कुछ और उन्मुक्त होते है वे समुंद्र तट का रुख कर लेते है . पर गोवा की तरह लहराते हुए लोग नही नजर आएंगे . दमन की आबादी में गुजरातियों का बड़ा हिस्सा है और उनके चलते माहौल अलग बना हुआ है खासकर गोवा के मुकाबले . यही वजह है कि दोपहर एक बजते ही बाजार बंद हो जाता है जो शाम को ही खुलता है . सब्जी और मछली बाजार तो दोपहर तक ही लगता है . पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए दीव में मछुआरों का कार्यस्थल भी बदल कर घोघला समुंद्र तट पर बसे गाँव में कर दिया गया है ताकि मछली सुखाने से हवा में जो गंध फैलती है उससे निजात मिले . गोवा ,दमन और दीव को आजाद हुए पचास साल होने जा रहे है और दिसंबर से इसके समारोह भी शुरू हो जाएंगे .