Saturday, March 31, 2012

यह द्वीप नहीं परीलोक है


अंबरीश कुमार
एक यात्रा संस्मरण लिखा तो कुछ मित्रों ने आग्रह किया कि इसके आगे का भी लिखा जाए । यह बहुत मुश्किल काम था पर एक भाग लिखा तो सविता ने कई गलतियों की तरफ याद दिलाया और कई नई जानकारियां दी । फिर सारी फोटो निकली और तय किया कि इसका अंतिम हिस्सा लिख कर उस लेख का लिंक दे दिया जाए जो दो किश्तों में जनसत्ता में छपा था पर मेरे पास एक ही लेख है भी जिसे इच्छा होगी वे पढ़ सकते है । बहरहाल अब आगे ।
बंगरम में जब हम पहुंचे तो दोपहर हो चुकी थी । गहरे समुंद्र में लहरों पर कागज के नाव की तरह चली अपनी मोटर बोट ने जो दहशत पैदा की उससे बंगरम के लैगून में पहुँच कर ही उबार पाए । पानी का ऐसा रंग जीवन में पहले कभी नहीं देखा,लगता था किसी ने पानी में हरा रंग घोल दिया है । बोट से पानी में ही उतरना पड़ा और सामने जो सफ़ेद रेत थी उसे देख कर यह भी महसूस हुआ कि कही अपने पैरों से उसपर दाग न पड़ जाए । सामने कैसीनो होटल का स्वागत कक्ष था जो एक बड़ी झोपड़ी में बना था और उसी में डाइनिंग हाल भी था । हम इस होटल के मेहमान नहीं थे बावजूद इसके फ़ौरन नारियल पानी से लेकर शरबत आदि हाजिर था । कुछ ही देर में साथ आये लक्ष्यद्वीप प्रशासन के बैरा ने बताया काटेज तैयार है और वहा जा सकते है । अपना काटेज दूसरे छोर पर था जिसमे एक बड़ा बड़ा बेड रूम ,छोटा सा बरामदा एक बाथ रूम आदि था । किचन और कर्मचारियों की झोपडी अलग थी ।
काटेज के ठीक सामने नारियल के पेड़ों में बांध कर बड़े बड़े झूले लगे थे जिसमे एक झूले में एक विदेशी युवती न्यूनतम कपड़ों में लेटकर पढ़ रही थी तो दूसरे में आकाश जाकर पसर गए । धूप के बावजूद नारियल के पेड़ों के पत्ते बचा ले रहे थे । दोपहर का खाना करीब दो घंटे बाद मिल गया तो खाना खाकर सोने चले गए और दरवाजा खटखटाने पर उठे तो बैरा ने बताया सूरज डूबने वाला है इसलिए सामने आ जाए कुर्सियां लगा देते है और वही काफी भी सर्व कर दी जाएगी । कुर्सिय ऎसी जहा लगाई गई जहा लैगून का पानी पैरों को भी छू जाता था । समूचे तट पर मुश्किल से चार पांच लोग नजर आ रहे थे जिसमे एक शादी के बाद का विदेशी जोड़ा था तो एक युवती छोड़ बाकि सब बुजुर्ग । जिसमे एक बुजुर्ग स्नोर्किल करने में व्यस्त थे जिसे बाद में हमने भी किया । स्नोर्किल के लिए रक ऐसा उपकरण होता है जिसमे आप पानी में विशेष चश्मे से देखने के साथ एक डंडी के सहारे साँस भी ले सकते है । हमने जब समुंद्र के हरे पानी में झाँका तो वहा तो परीलोक जैसी अलग दुनिया ही नजर आई जिसका वर्णन ही नहीं किया जा सकता । रंगीन मछलियों की क़तर ,छोटे आक्टोपस जो बिजली की गति से निकल जाते तो रंग बिरंगे कछुए और मूंगे की मूर्तिकला । ऐसा लगता था आप किसी बड़े अक्योरियम में बैठ गए हों । कुछ देर बाद हम बाहर आ गए क्योकि दूसरे दिन ग्लास बोट से और बहुत कुछ देखना था ।
फिर बैठे तट पर और सूरज और समुंद्र की बनती बिगडती चित्रकला तब तक देखते रहे जबतक समुंद्र ने उसे पूरी तरह छुपा नहीं लिया । शाम ढलने के साथ ही बंगरम में सैलानियों की शाम जवान होने लगती है ।समुंद्र तट की रेत पर ही बारबेक्यू का धुंवा उठने लगा तो झोपड़ीनुमा बार में बैठी युवती फ़्रांस के एक मशहूर ब्रांड की वाइन का ग्लास लिए समुंद्र के पानी के पास खड़ी हो गई । सौर उर्जा से जलने वाले दुधिया बल्ब जल चुके थे और मछली भुने जाने की गंध भी फैलती जारही थी । इस बीच अंग्रेजी गानों की आवाज तेज हुई तो समुंद्र में भी लैगून के बावजूद लहरों की ऊंचाई बढ़ने लगी थी ।
समाप्त .सम्बंधित लेख को पढना चाहे तो लिंक

जंगलों के पार आदिवासी गांवों में


अंबरीश कुमार
नागपुर से छिंदवाडा के भी आगे जाने के लिए बुधवार की सुबह मेधा पाटकर का इंतजार कर रहे थे । वे चेन्नई से बंगलूर और फिर नागपुर आ रही थी ।एक दिन पहले भी कई गांवों की ख़ाक छानते हुए होटल द्वारका पहुंचे तो रात के बारह बज चूके थे।प्रताप गोस्वामी की मेहरबानी से खाने पीने का प्रबंध हो गया था वर्ना बारह बजे के बाद कुछ मिलना संभव नहीं था।उन गांवों में गए जो पेंच परियोजना के चलते डूब क्षेत्र में आने वाले है । साथ में नर्मदा बचाओ आंदोलन के मधुरेश और किसान नेता विनोद सिंह भी थे । गांवों में कई सभाएं देखी और गांवालों ने उपहार में जो कच्ची मूंगफली दी वह लखनऊ तक ले आए । बहुत ही हरा भरा और खुबसूरत इलाका है यह ।रास्ते में घने जंगल है और पहाड़ियां ऊंचाई तक ले जाती है । करीब आधे घंटे तक यह अहसास होता है कि किसी हिल स्टेशन पर है ।इससे पहले नागपुर के संतरा पट्टी के किसानो पर मंडरा रहे संकट की भी जानकारी ली ।
यह एक दिन पहले की बात है । करीब नौ बजे मधुरेश का फोन आता है कि नीचे रेस्तरां में में आ जाएँ मेधा पाटकर पहुँच गई है और वे भी कमरे से पांच मिनट में में वहां पहुँच जाएगी । नीचे पहुंचा तो सभी इंतजार कर रहे थे । नाश्ता कर दो गाड़ियों से रवाना हुए । कई साल बाद मेधा पाटकर के साथ फिर लंबी यात्रा कर रहा था । छूटते बोली -अंबरीश भाई बस्तर की यात्रा और जो हमला हुआ वह सब याद है । करीब आठ साल पहले जब जनसत्ता का छत्तीसगढ़ संस्करण देख रहा था तब नगरनार प्लांट के विरोध में चल रहे आंदोलन को देखने मै जा रहा था । संयोग से मेधा पाटकर भी जाने वाली थी और उन्हें मेरे जाने की जानकारी मिली तो वे भी साथ चली । बाद में जगदलपुर के सर्किट हाउस में जहाँ मै रुका था दुसरे दिन सुबह जब मेधा पाटकर आई तो कांग्रेस के लोगों ने नगरनार प्लांट का विरोध करने के लिए मेधा पाटकर पर हमला कर दिया । अपने स्थानीय संवाददाता वीरेंद्र मिश्र और एनी लोगों के चलते बड़ी मुश्किल से बेकाबू कांग्रेसियों पर नियंत्रण पाया गया था । यह तब जब मेधा पाटकर खुद अजित जोगी को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में रही थी । रात में अजित जोगी से जब उनकी मुलाकात हुई तो जोगी ने उनके दौरे पर नाराजगी भी जताई थी । वह सब याद आया ।
मेधा पाटकर से रास्ते में लंबी चर्चा हुई खासकर अन्ना आंदोलन को लेकर । पर यह सब निजी जानकारी के लिए । मेधा बिसलरी का पानी नही पीती है इसलिए छिंदवाडा के जंगलों से पहले एक ढाबे में उनके लिए नल का पानी लिया गया तो उन्होंने चाय पीने की भी इच्छा जताई । वे जन आंदोलनों में सालों से शिरकत कर रही है और जो भी रास्ते में मिलता है खा लेती है और नल का पानी पीती है । हम लोग ऐसे जीवन के अभ्यस्त हो चुके है जहाँ अब यह सब संभव नहीं है । रास्ते में उन्होंने अपने मित्र अरुण त्रिपाठी के लेखन पर दोबारा एतराज जताते हुए कहा -मेरे ऊपर किताब का दूसरा संस्करण भी प्रकाशित कर दिया पर एक बार भी बात नही की । यह किताब अभय कुमार दुबे के संपादन में लिखी गई थी जिसमे मैंने भी एक पुस्तक लिखी थी । मैंने मेधा जी बताया कि अरुण त्रिपाठी का कहना है कि उन्हें आपने बातचीत का समय नहीं दिया ।खैर जनसभा बहुत सफल रही और फिर लौटने की जल्दी हुई क्योकि साढ़े छह बजे नागपुर में प्रेस कांफ्रेंस थी तो उसके बाद अन्ना टीम की बैठक और रात में ही उन्हें जबलपुर निकलना था । पांच घंटे का रास्ता काफी तेज रफ़्तार से तय करना पड़ा । फिर भी साढ़े सात बजे प्रेस क्लब पहुंचे तो मीडिया इंतजार में था । वे मीडिया को लेकर कुछ आशंकित भी थी पर दूसरे दिन भूमि अधिग्रहण का मुद्दा सरे अख़बारों में प्रमुखता से आया था । महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के दौरे से क़ल लौटा तो खबरों में उलझ गया ।
(अपना ब्लाग विरोध जो फिर से दुरुस्त कर रहा हूँ उसमे पुराने लिखे को ढूंढ़ ढूंढ़ कर दाल रहा हूँ ।)

Wednesday, March 28, 2012

और अगाती से बंगरम



अंबरीश कुमार
कुछ दिन कावरेती में बिताने बाद वहा से दूसरे द्वीप अगाती और बंगरम जाने का कार्यक्रम बना । लक्ष्यद्वीप के विभिन्न द्वीप में जाने के लिए अत्याधुनिक तेज रफ़्तार वाले पानी के जहाज है तो हेलीकाप्टर की सेवा भी । दोनों के भाड़े में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है पर वहा के आम लोग जहाज से चलते है क्योकि उसमे सामान के साथ जा सकते है । हमने एक तरफ हेलीकाप्टर से तो दूसरी तरफ पानी के जहाज से आने का कार्यकता बनाया । हेलीकाप्टर से समुन्द्र के द्वीप का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है । उपरसे दीप हरे फूलों का गुलदस्ता नजर आता है तो साथ ही गहरे समुंद्र और उथले लैगून का अलग अलग रंगों का पानी भी । अगाती के छोटे से हवाई अड्डे पर उतरे तो नजारा किसी बस स्टैंड जैसा था ।
दरअसल यहा यहाँकोच्ची जाने वाले लोगों के लिए एक ही उडान है जिसमे बंगरम से लौटने वाले विदेशी सैलानी भी शामिल होते है । एक ग्यारह सीट का छोटा सा विमान यहाँ से कोच्ची ले जाता और लाता है पर इसमे एक टिकट पर सिर्फ पंद्रह किलो वजन का सामान ले जा सकते है जिसमे हैंड बैगेज की सीमा सिर्फ पांच किलो है । दूसरे बड़े विमान में यह सीमा बढ़ जाती है । एक तरफ हवाई जहाज से यात्रा करने में समय भी काफी बचता है क्योकि सवा घंटे में ही अगाती से कोच्ची पहुँच जाते है । खैर हवाई अड्डे पर उतरे तो तेज हवा के झोके के साथ बरसात भी थी । मौसम तुरंत ही बदला था वरना हेलीकाप्टर की उड़ान भी प्रभावित हो सकती थी । पर बरसात में नारियल के हरे जंगल के साथ नीली लहरों का शोर अच्छा लग रहा था । बाहर स्वास्थ्य विभाग के एक कर्मचारी हमें लेने आए थे । वे अगाती के पुराने डाक बंगले तक ले गए जहाँ हमें रुकना था । यह डाक बंगला समुंद्र के ठीक किनारे है जिसपर बड़े से बोर्ड पर अंग्रेजी में लिखा था 'डाक बंगलो अगाती । बाहर गेरुए रंग की दीवार और भीतर जाते ही बाए हाथ को को खपरैल के छत वाला काटेज था और वह भी वातानाकूलित । डाक बंगले का हाल कमोवेश अपनी तरफ जैसा ही था पर फिर भी किसी होटल से बेहतर और खुला खुला था । सामने ही समुंद्र भी । शाम को एक मुस्लिम परिवार में रात का भोज था और दूसरे दिन लक्ष्यदीप प्रशासन ने बंगरम भेजने का इंतजाम किया था बशर्ते मौसम ठीक हो क्योकि समुंद्र गहरे पानी से होते हुए जाना था छोटी सी मोटर बोट से । शाम को अगाती द्वीप का एक चक्कर काट कर समुंद्र के किनारे पहुंचे तो वहा तुना मछली की प्रोसेसिंग चल रही थी बाहर भेजने के लिए और मछली का ढेर लगा था । टूना मछली कई देशों में बहुत लोकप्रिय है जिसमे जापान भी शामिल है और कोच्चि में इसकी कीमत चार सौ रुपए किलो थी पर यहाँ समुंद्र से तुरंत निकाली हुई चालीस रुपए किलों में मिल रही थी ।
अगाती द्वीप करीब साढ़े तीन मील लंबा है तो चौड़ाई हजार गज की होगी । पर बाजार भी है और कई रिसार्ट भी । दिन में गर्म होता है पर शाम ढलते ही मौसम खुशनुमा और समुंद्र के किनारे सफ़ेद रेत पर घंटों बैठ सकते है । लक्ष्यद्वीप का समाज मात्र सत्तात्मक है और लड़िकयों को सभी अधिकार और आजादी है । इन द्वीप में समुंद्र तट ही यहाँ के लोगों का घर आँगन जैसा भी है क्योकि जब द्वीप ही इतना छोटा हो यह समुंद्र तट ही उनका सब कुछ बन जाता है । कुछ बच्चियां तट पर लगे एक नारियल के पेड़ जो बढ़ता हुआ समुंद्र की सीमा में चला गया था उसपर बैठकर खेल रही थी तो दूसरी तरफ सूरज पानी में डूबता जा रहा था । इस बीच जानकारी दी गई की सुबह करीब दस बजे बंगरम के लिए निकलना है । रात में जिस परिवार के यहाँ खाना था उसने शाकाहारी खाने का इंतजाम किया था और उस मुस्लिम परिवार की महिलाए बिना किसी परदे के खाने पर साथ ही बैठी जो उर्दू मिली हिंदी में बात भी कर ले रही थी और दिल्ली के बारे में जानकारी ले रही थी । दक्षिण भारतीय खाना जिसपर मालाबार का असर साफ़ दिख रहा था ।
डाक बंगले पर लौटे तो रात हो चुकी थी । सुबह चाय के बाद बाहर निकले और समुंद्र तट पर कुछ देर बैठने के बाद लौट आए सामान समेटने । तैयार होकर नाश्ता करने पहुंचे तो साथ जाने वाले लोग भी आ गए थे । मोटर बोट चलाने वाले के अलावा दो कर्मचारी प्रशासन के जो खाने का पूरा सामान लेकर चल रहे थे । गहरे समुंद्र में यह पहली यात्रा थी किसी छोटी मोटर बोट से क्योकि इससे पहले बहुत छोटी दूरी बड़े जहाज से उतर कर बड़ी बोट से कावरेती तक की थी । पर यह तो छोटी मोटरबोट थी जिसमे कुल छह लोग थे । मोटरबोट करीब आधे घंटे बाद गहरे समुंद्र में पहुंची ।और गहरे समुंद्र में आते ही लगा कि अब बोट पलती तो तब पलती । डर कर दोनों किनारे भी पकड़ लिए हालाँकि सविता और आकाश सामान्य नजर आ रहे थे और समुंद्र के पानी में हाथ भी डाल रहे थे । हर लहर आती और नाव को कुछ फुट ऊपर उछाल देती । नाव चलाने वाले से पूछा ,कोई खतरा तो नहीं है जवाब था -नहीं आज तो बहुत शांत मौसम है थोड़ी देर में बंगरम पहुँच जाएंगे । पर सामने का नजारा देख कर दिल बैठा जा रहा था । लहरों में तो मानो होड़ लगी थी ,एक दौडती हुई जाती तो तो दूसरी उसका पीछा करती हुई ।जिसे देखकर और सिहरन हो रही थी । पर कुछ देर बाद समुंद्र के बीच से हरा गुलदस्ता निकलता दिखा तो जान में जान आई ।तब लगा जो लोग बड़ी समुंद्री यात्रा पर निकलते होंगे वे जमीन देख कर क्या महसूस करते होंगे । कुछ ही देर में लैगून के हरे पानी में पहुँच चुके थे और सामने था बंगरम । अद्भुत ,सफ़ेद रेत और हरा पारदर्शी पानी ।यह बंगरम था । जारी

खिसक गई है अन्ना के आंदोलन की जमीन !

अंबरीश कुमार
लखनऊ , मार्च । उत्तर प्रदेश में बाबा रामदेव जहाँ अपनी राजनैतिक जमीन मजबूत करने में जुट गए है वही टीम अन्ना की राजनैतिक जमीन और कमजोर होती जा रही है । जयप्रकाश आंदोलन से निकली जिन ताकतों ने पहले अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन किया था उनका अब मोहभंग होता जा रहा है । इसकी मुख्य वजह टीम अन्ना का अराजनैतिक ढंग से नए नए विवाद खड़ा कर चर्चा में आना है । ताजा विवाद तकनीकी और पुरानी जानकारी के आधार पर सांसदों को निशाना बनाने की है जिससे टीम अन्ना में ही अंतर्विरोध उभरते नजर आ रहे है । इसे पहले जन अरविंद केजरीवाल ने संसद के औचित्य पर सवाल उठाया था तो गाँधीवादी संगठनों ने किनारा किया था । अब फिर जन संगठनों ने टीम अन्ना की राजनीति पर सवाल उठाया है । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -जिन लोगों को राजनैतिक मुकदमो और आपराधिक मुकदमो का फर्क नहीं पता वे क्या समाज बदलेंगे । टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य सुनीलम पर हत्या समेत १६७ मुक़दमे है जो आंदोलनों के चलते है । इसी तरह मेधा पाटकर से लेकर अन्य लोगों पर भी मुक़दमे होते रहते है । हमारे पर मुक़दमे तो रहे ही बहुत से किसान नेताओं पर मुक़दमे है तो क्या सब अपराधी बन जाएंगे । यह लोग फोर्ड फाउंडेशन के पैसे पर संसदीय लोकतंत्र को कमजोर कर देश के खिलाफ काम कर रहे है । अब लोग इनसे कटते जा रहे है । ज्यादातर जन संगठन इनसे दूर हो चुके है ।
दरअसल अन्ना हजारे ने जिस उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार को छोड़ कांग्रेस के खिलाफ अभियान छेड़ने की बात कही थी उसे वे ऍन मौके पर पलट गए और एक बार भी उत्तर प्रदेश झाँकने नहीं आए। जबकि समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव बार बार कहते रहे कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सिर्फ मीडिया में नहीं लड़ी जाती जमीन पर लड़ी जाती है है जो सिर्फ समाजवादी पार्टी लड़ रही है । सपा के बार बार कहने के बाद अन्ना हजारे उत्तर प्रदेश नहीं आए । इन सबके चलते जो थोडा बहुत समर्थन मिला वह भी ख़त्म हो गया । विधान सभा चुनाव में अन्ना हजारे आंदोलन की एक महिला नेता जो अनशन पर भी बैठी थी वे भी चुनाव लड़ी और उन्हें कुल १०८ वोट मिले थे । दूसरी तरफ टीम अन्ना के कुछ सदस्यों के व्यवहार से साथ के लोग भी आहत है । किसान नेता विनोद सिंह ने आगे कहा -इस बार अन्ना के धरने पर न तो मेधा पाटकर थी और न ही सुनीलम जिससे सारी बात खुद सामने आ चुकी है ।
महिला संगठन तहरीके निस्वां की अध्यक्ष ताहिरा हसन ने कहा -यह लोग संसद और सांसद दोनों को निशाना बना रहे है पर कभी कारपोरेट घरानों की अंधाधुंध लूट के खिलाफ कुछ नहीं बोलते । इसकी वजह यह तो नहीं कि विदेशी फंडिंग एजंसियों के साथ कुछ कारपोरेट घराने इनकी मदद कररहे हों । यह जांच का विषय है ।
राजनैतिक टीकाकार सिद्धार्थ कलहंस ने कहा -,उत्तर प्रदेश में अब अन्ना हजारे का कोई असर नहीं रहा क्योकि रोज ये अपनी मांग बदल देते है । अब लोकपाल नहीं दागी सांसद इनके एजंडा पर है । यह इस देश का बच्चा बच्चा जानता है कि राजनैतिक आंदोलनों और रंजिश के चलते फर्जी मुक़दमे दर्ज होते है तो क्या सब अपराधी हो जाएंगे । खुद टीम अन्ना की कोर कमेटी के सदस्य संजय सिंह पर सुल्तानपुर में कैसे कैसे मुक़दमे दर्ज है ।
प्रदेश में जहाँ बाबा रामदेव जयप्रकाश आंदोलन से जुडी ताकतों को साथ लेकर बड़े आंदोलन की तैयारी में है वही टीम अन्ना के आंदोलन का बिखराव नजर आ रहा है ।

Tuesday, March 27, 2012

कावरेती का हरा लैगून



अंबरीश कुमार
दिन में करीब बारह बजे हम लोग कावरेती पहुंचे । जहाज से गहरे समुंद्र में जब छोटी नाव पर सवार हुए लहरों पर उछलती नाव ने तो डरा ही दिया था । साथ चल रहे नीरज ने कहा ,चिंता न करे लैगून के पानी में पहुँचते सब शांत हो जाएगा । इन द्वीप में जिस तरफ अरब सागर की लहरों का प्रवाह होता है उसके मुकाबले दूसरी और आड़ पड़ जाने की वजह से लहरे काफी कमजोर नजर आती है । दूसरे लैगून आते ही सागर उथला हो जाता है आर समुंद्र का रंग भी नीले से गहरा हरा जैसा नजर आने लगता है ।लैगून आते ही नाव भी शांत हुई और हम लोगों ने भी शांति की साँस ली । कावरेती लक्ष्यद्वीप की राजधानी है ,पर राजधानी जैसा यहाँ कुछ नहीं है । यह एक बड़े गाँव जैसा है जहाँ नारियल के घने जन्गालोंके बीच कुछ प्रशासनिक भवन सरकारी कर्मचारियों के पक्के आवास है । सड़के भी ज्यादा चौड़ी नहीं है जिनपर वहां भी नजर नहीं आएंगे । यहाँ सिर्फ साईकिल दिखती है और एक सीध में अगर आप आधा घंटा साइकिल पर चल ले तो इस राजधानी की सीमा समाप्त हो जाएगी । साईकिल भी डायनमो वाली जो बचपन की याद दिलाती है । कावरेती में बिजली नहीं है कुछ सरकारी महकमो मसलन अस्पताल से लेकर टेलीफोन एक्सचेंज तक को जेनरेटर चलाकर बिजली दी जाती है । इसलिए रात के अँधेरे में साईकिल को इसी डायनमो की की रौशनी सड़क पर रास्ता दिखाती है । जेती से करीब एक किलोमीटर दूर हम नीरज सक्सेना के सरकारी आवास पर रुके जो काफी बड़ा था और आगे पीछे नारियल के झुंड थे । वैसे पपीता और केला भी दिख जाता था पर काफी जमीन होने के बाद भी कोई सब्जी लगी नजर नहीं आई । इसकी एक वजह पानी का खारापन बताया गया । इसीलिए इस द्वीप के बासिन्दे बड़ी बेसब्री से जहाज का इंतजार करते है ताकि कोच्ची से आई ताजा सब्जियां मिल जाए। घर काफी बड़ा था पर बहुत व्यवस्थित नहीं क्योकि नीरज की डाक्टर पत्नी भी दिल्ली में थी । खैर आने के बाद पहली जानकारी मिली की पानी उबालकर पीना पड़ेगा क्योकि पानी का कोई ट्रीटमेंट यहाँ नहीं होता है । इसलिए रसोई में लगातार पानी उबलना शुरू हो गया । कई दिन से दक्षिण का खाना खाकर अघा चुके थे इसलिए घर की दाल ,चावल और सब्जी से तृप्त हुए तो आराम किया । वैसे भी दिन की गर्मी में बाहर जाने का मन नहीं था । बरामदे से नारियल पेड़ों के बीच से अरब सागर दिख रहा था पर लगातार कई घंटे समुंद्र की यात्रा के बाद तट पर जाने का बहुत उत्साह नहीं था । पर शाम होते ही कावरेती में सफ़ेद रेत के समुंद्र तट पर निकल पड़े । जेटी के आगे वीरान था और एक तरफ लहरों का शोर था तो दूसरी तरफ तेज हवा से लहराते नारियल के जंगल । समुंद्र तट पर नारियल के कुछ पेड़ों की आकृति बड़े कैनवास की चित्रकला में बदली नजर आ रही थी । शाम के समय समुंद्र के किनारे का मौसम भी बहुत खुशनुमा हो जाता है । काफी की इच्छा थी पर यहाँ वीराने में कुछ नहीं था । सूरज के अस्त होते ही उठे और जेटी के एक ढाबे पर चाय पीने बैठ गए । सरह ही चाय वाले से कावरेती के बारे में जानकारी लेनी शुरू की । लक्ष्यद्वीप कई द्वीप में बसा है और मुख्य हवाई पट्टी अगाती द्वीप में है कावरेती का हवाई अड्डा बहुत छोटा है और यहाँ से अगाती तक हेलीकाप्टर से जाना हुआ वह भी बहुत रियायती दरों पर । यह सुविधा सभी के लिए है । हवाई अड्डा भी हमारे लिए शाम के घूमने की एक जगह थी जहाँ आकाश को हेलीकाप्टर का उड़न भरना बहुत भाता था । जब हम वहां थे तब सुरक्षा का को ताम झाम भी नहीं था । जारी ..

Monday, March 26, 2012

समुंद्र के पानी पर चौबीस घंटे



अंबरीश कुमार
कोच्चि के समुंद्री बंदरगाह पर खड़ा एमवी टीपू सुलतान का का जैसे लंगर उठा तो हमें छोड़ने आए राकेश सहाय हाथ हिला कर विदा हुए . जहाज की मंजिल थी कावरेत्ती .लोकेशन १०-३३ * उत्तरी अक्षांश ,७२,-३८* पूर्वी अक्षांश ,कोच्चि से दूरी ४०४ किलोमीटर .जहाज के छूटने में घंटे भर की देरी हो चुकी थी .कोच्चि की उमस भरी गर्मी से डेक पर आते ही हवा के झोके से कुछ राहत मिली . एक दिन पहले ही राकेश के साथ एक माल में जाकर पंद्रह दिन का खाने पीने का सामान खरीदा था क्योकि कावरेत्ती में दस पंद्रह दिन बाद ही जहाज जाता था जिसके जरिए दल चावल से लेकर शाक सब्जी पहुंचाई जाती थी .कावरेत्ती केंद्र शासित लक्षद्वीप का मुख्यालय है जहाँ दस दिन रुकने के लिए वहा पर डेपुटेसन पर गए हमारे मित्र डाक्टर नीरज सक्सेना ने परमिट बनवाया था क्योकि आप पर्यटकों को लक्षद्वीप के बंगरम द्वीप को छोड़कर किसी और जगह रुकने की इजाजत नहीं थी .पर्यटकों को ले जाने वाले जहाज द्वीप द्वीप घूमते और सैलानियों को घूम फिर कर लैगून से बाहर खड़े जहाज पर शाम ढलते लौटना पड़ता था .

उत्तर भारतीय लोगो के खान पान का इंतजाम दक्षिण में गड़बड़ा जाता है .दाल भात और सब्जी के बिना ज्यादा दिन रहा नहीं जाता .इसी वजह से कोच्ची के माल से नाश्ते में पोहा ,उपमा ,दलिया आदि बनाने का सारा सामान तो ख़रीदा ही साथ ही दाल और बासमती चावल भी .नीरज वहां अकेले थे क्योकि परिवार दिल्ली आ गया था .इसी वजह से सब सामान ले लिया था . लक्षद्वीप में हमें तीन द्वीप कावरेत्ती,अगाती और बंगरम में रुकना था .राकेश सहाय से दोस्ती लखनऊ विश्विद्यालय के दिनों से है .वे गोंडा के रहने वाले है और कोच्चि में मछुवारों के जाल का सिंथेटिक धागा बनाने की एक निर्यात इकाई के साथ कई अन्य व्यवसाय से जुड़े है और साल में कई महीने विदेश रहते है .मेरा कार्यक्रम बना तो उन्होंने ही सारा इंतजाम किया .रहने का इंतजाम एक रिसार्ट में किया पर मै उनके घर पर ही रुका था .एक दिन पहले वे कोच्चि के किसी आलिशान क्लब में रात के खाने पर ले गए और कई उत्तर भारतीय लोगों से मुलाकात भी करवाई .देर रात लौटने के बाद भी जल्दी जग गए थे और कावरेत्ती का जहाज पकड़ने के लिए नाश्ते के बाद निकल गए थे .कोच्चि काफी खूबसूरत शहर है और समुंद्र के किनारे मछुवारों के बल्लियों में बंधे जाल के फोटो काफी लोकप्रिय है .

पानी के जहाज की यात्रा की शुरुवाती कवायद भी हवाई जहाज से मिलती जुलती है .सब निपटाकर केबिन में पहुंचे जो चार बर्थ का था .यह केबिन रेलगाड़ी के पुराने फर्ष्ट क्लास की याद दिला रहा था .सामने गोल सी खिड़की से शहर दूर जाता दिख रहा था .नीरज साथ थे और आकाश के बुखार की वजह से सविता डेक पर जाने की इच्छुक नहीं थी .बैरे ने चाय और खाने का समय पहले ही बता दिया था .शाम साढ़े तीन से चार बजे तक चाय का समय था और रात आठ बजे से पौने नौ बजे तक डिनर का.फिर सुबह की चाय छह से साढ़े छह के बीच मिलने वाली थी और नाश्ता सात से साढ़े सात के बीच .पर रेस्तरां में जाने पर समय के बाद भी चाय काफी और खाने का सामान मिल जाता .शाम होते ही हम केबिन से बाहर आ डेक पर जम गए .जहाज समुंद्र को चीरता हुआ आगे बढ़ रहा था और सभी तरफ पानी ही पानी .तेज लहरें दौडती हुई आती और जहाज के निचले हिस्से से टकरा कर ढेर हो जाती . दहकते सूरज को को देखने में लीन थे तभी हनीमून पर जा रहे एक जोड़े ने सूरज ,समुंद्र और जहाज के साथ फोटो खीचने का आग्रह किया तो ध्यान टूटा ..समुंद्र में पानी के जहाज पर सूर्यास्त और सूर्योदय का दृश्य बांध कर रख देता है .समुंद्र और सूरज का मिलन नए नए लैंडस्केप बनाता है .सूरज के डूबने के बाद भी उसकी लालिमा समुंद्र पर दिखाई पड़ती है .

रात के साढ़े आठ बजे खाने पर गए तो पता चला शाकाहारी भोजन में आलू टमाटर की सब्जी और बाकी के लिए मछली चावल है . मछली चावल खाने वाला मै ही था .पता चला टूना मछली बनाई गई है जो स्वाद में खट्टी और चिकन की तरह खींचने वाली होती है .टूना जापान में बहुत लोकप्रिय है और कोच्चि में लक्षद्वीप से आती है .खाने के बाद फिर तारों की रोशनी में समुंद्र को देखने लगे जो अब कुछ हद तक डरावना हो चूका था .लहरों की आवाज डरा रही थी .नीला पानी अब काला नजर आ रहा था .हवा भी तेज और ठंढी होती जा रही थी .ज्यादातर मुसाफिर अपने अपने केबिन का रुख कर चुके थे .खारे पानी की नमकीन हवाओं के थपेड़े के आगे खड़ा हो पाना जब मुश्किल हो गया तो केबिन में आ गए .ऊपर की बर्थ पर लेटा तो कुछ ही देर में असहज होने लगा .लग रहा था पालने में झूल रहा हूँ .कब नींद आ गई पता ही नहीं चल पाया .सुबह तडके नींद खुल गई तो शीशे की गोल खिडकी से बाहर काफी उजाला नजर आया .चाय से पहले ही सूरज को देखने बाहर आ गए .पूरब की तरफ अँधेरा छट रहा था .कुछ देर में ही समुंद्र लाल होता नज़र आने लगा इस बीच सूरज और समुंद्र के अनोखे दृश्य दिखाई पड़े .सूरज समुंद्र से बाहर निकला तो पूरे डेक पर सैलानी आ चुके थे .

एक बार फिर हम केबिन में लौटे .इस बार उतरने की तैयारी करनी थी .यह जहाज लैगून में नहीं जा सकता था इसलिए गहरे समुंद्र में ही मोटर बोट से जेटी तक जाना था .करीब ग्यारह बजे खिड़की से समुंद्र में हरियाली नज़र आई .नारियल के पेड़ों का जंगल एक गुलदस्ते की तरह उभर रहा था .जो कुछ ही देर में हरे भरे बगीचे के रूप में दिखाई देने लगा .तभी गहरे समुंद्र में ही जहाज ने लंगर डाल दिया .अब हमें सबसे निचली मंजिल पर जाकर मोटर बोट पर बैठना था .जहाज से मोटर बोट पर उतरना भी काफी मुश्किल कवायद है .एक रस्से के सहारे जहाज से मोटर बोट पर जाते है .गहरे समुंद्र की वजह से मोटरबोट लहरों पर उछलती रहती है .फिर गहरे समुंद्र में लगता है मोटर बोट पलट जाएगी .पर लैगून आते ही जान में जान आ जाती है .कावरेत्ती की जेटी करीब आधा किलोमीटर लम्बी है जिसके एक छोर पर हम उतरे तो डाक्टर नीरज के सहयोगी स्वागत में खड़े थे.

आम आदमी के लिए खुला मुख्यमंत्री के घर का दरवाजा

अंबरीश कुमार
लखनऊ, मार्च।उत्तर प्रदेश की राजनैतिक संस्कृति बदलने लगी है । राजधानी लखनऊ में कई बदलाव नजर आने लगे है । आज दिन में पैसठ साल का एक दलित बुजुर्ग दशरथ जो बाहर से शहर देखते देखते सूबे के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण पते पांच कालीदास मार्ग पर मुख्यमंत्री आवास के भीतर पहुँच गया तो उसे भरोसा ही नहीं हुआ कि वह इसी प्रदेश में है जहाँ एक पखवाड़े पहले तक कोई आसपास मंडरा भी नहीं सकता था वहा वह पहुँच गया है । यह उत्तर प्रदेश की नई राजनैतिक संस्कृति है जिसमे आम आदमी हर जगह सिर्फ जा ही नही सकता बल्कि अपनी आवाज भी मुख्यमंत्री तक पहुंचा सकता है । अब जनता इस प्रदेश के मुख्यमंत्री से मिल सकती है ,यह खबर भी है और अखिलेश यादव की नई राजनीति का नया संदेश भी ।इससे पहले विधान सभा के सामने धरना प्रदर्शन की इजाजत देकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जो पहल की उसका विपक्ष ने भी स्वागत किया । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहा -यह बहुत महत्वपूर्ण फैसला है जिससे लगता है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कुछ नया रास्ता बना रहे है । उत्तर प्रदेश में पिछले चार साल से जिस तरह लोकतंत्र का गला घोटा गया और धरना प्रदर्शन की जगह विधान सभा से दूर ले जाकर झुलेलाल पार्क में की गई वह शर्मनाक घटना थी । इस व्यवस्था के चलते उत्तर प्रदेश में आंदोलन भी लालफीताशाही का शिकार हो गया । एक धरना प्रदर्शन के लिए थाने से लेकर एसएसपी दफ्तर और फायर स्टेशन तक चक्कर काटने के बाद आधा दर्जन अनापति प्रमाण पत्र के बाद किसी को शहर के एक कोने में विरोध की इजाजत मिलती । अब राजनैतिक दल चाहते है कि शहर के बीच किसी भी पार्क में बड़ी जन सभाओं की इजाजत मिले । जैसे एक ज़माने में बेगम हजरत महल पार्क में बड़े नेताओं की रैलियां होती थी । जहाँ इंदिरा गाँधी से लेकर अटल विहारी वाजपेयी तक की ऐतिहासिक सभाए हो चुकी है ।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पांच कालिदास मार्ग पर आज रविवार को जश्न का माहौल था। मौका था प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का औपचारिक रूप से अपने सरकारी आवास मुख्यमंत्री निवास पहुंचना। उनके के संग परिवार के सभी सदस्य व बच्चे भी थे। सदियों से जहां सन्नाटा पसरा रहता था। चारों ओर दहशत और संदेह का माहौल था। पहले जहाँ कालिदास मार्ग आम लोगों के लिए प्रतिबंधित था आज वहां मुक्ति का एहसास हो रहा था। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -पहले यहां लोकतंत्र कैद था। पूरा राज्य जेलखाना बना हुआ था। अब तो फिर से लोकतांत्रिक अधिकार बहाल हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की उपस्थिति में लोहिया जयंती पर 23 मार्च को धरना स्थल विधान भवन के सामने बहाल करने की घोषणा कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति अपनी निष्ठा पहले ही जाहिर कर दी थी।अब यह परिवर्तन की नई दस्तक है । मुख्यमंत्री अब जन दर्शन में आम लोगों से मिलेंगे । इसके लिए दिन तय किया जा रहा है ।
कालिदास मार्ग के मुख्यमंत्री आवास में आजादी के जश्न जैसा माहौल दिखा। यहां अखिलेश के संघर्ष के दिनों के साथी, उनके साथ क्रांतिरथ और साइकिल यात्राओं पर दिनरात साथ चलनेवाले उत्साही नौजवान भी थे। हजारों दूसरे सामान्य जन भी थे जो अपनी समस्याएं लेकर आए थे मुख्यमंत्री ने पहले ही दिन उनकी बातें सुनी और तत्काल कार्यवाही के निर्देश दिए। इनमें किसान, अल्पसंख्यक, नौजवान व महिलाएं सभी थे। मुख्यमंत्री बनने पर बधाई देने के लिए छपरौली ;बागपत से साइकिल से चलकर आयुष पवार के नेतृत्व में चार नौजवान भी आए। इस मौके पर मुख्यमंत्री आवास पर समाजवादी क्रांतिरथ, जो पिछले साल 12 सितम्बर से चला था आज पांच कालीदास मार्ग पहुंचकर एक नए परिवर्तन का नया प्रतीक बन गया था।बाद में मुलायम सिंह यादव भी पहुंचे और अखिलेश यादव को आशीर्वाद दिया ।

Saturday, March 24, 2012

काली रेत के समुद्र तट पर




सविता वर्मा
दोपहर तीन बजे मुंबई के सांताक्रुज हवाई अड्डे पर उतरे तो बाहर आते ही स्वेटर उतारने पर ही रहत मिली ।उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड से आने पर मुंबई की गर्मी खली नहीं ,पर ट्रैफिक ने काफी परेशान किया । जाना दादरा नागर हवेली और दमन के दोनों खुबसूरत समुद्री तट पर था । बीच में बोरीवली के आगे किटी मुखर्जी के न्योते पर सूटिंग भी देखनी थी । सब निपटाकर मुंबई -अमदाबाद राजमार्ग पर आए तो राहत महसूस हुई ।सड़क के दोनों तरफ कभी खेत आते तो कभी जंगल और पहाड़ ।करीब तीन घंटे बाद हम मोती दमन के वीआईपी सर्किट हाउस पहुँच गए जो दमन प्रशासन का राजभवन माना जाता है ।पुर्तगालियों का बनाया करीब ५०० साल पुराना चर्च बगल में है तो आगे बढ़ने पर जम्पोर का समुद्र तट ।सर्किट हाउस के नीचे के सूट में रुकने का इंतजाम था ।ऊपर दिल्ली के उप राज्यपाल तेजिंदर खन्नाऔर उनकी पत्नी रुकीं थी ।बैरा रात के खाने का मीनू जानना चाहता था ताकि बेवक्त बाहर न जाना पड़े ।दरअसल बाजार कुछ दूर था और सामिष व्यंजनों के लिए पहले व्यवस्था करनी थी ।समुद्र तट के किनारे होने के बावजूद हम लोगों में किसी को मछली खाने का शौक नहीं था ।कुछ ही देर में हम जम्पोर तट पर पहुच गए ।रास्ते में जगह जगह नारियल,हापुस आम और चीकू के पेड़ नज़र आ रहे थे ।
मोती दमन से जम्पोर तट का रास्ता घूमता बल खाता कई गाँव से होता हुआ तट तक पहुँचता है ।समूचा परिवेश गोवा से मिलता जुलता है सिर्फ मौसम को छोड़ कर ।गोवा में तीखी गर्मी का सामना करना पड़ता है तो दमन में जनवरी में सुबह शाम हाफ स्वेटर की जरुरत पड़ती है ।पर सूरज के चढ़ते ही गर्मी शुरू हो जाती है ।शाम को समुद्र तट पर कैशुरिना के जंगलों के साथ साथ लहरों को देखते हुए करीब दो किलोमीटर आगे चले गए ।सामने नानी दमन का तट और आबादी नज़र आ रही थी ।अचानक सूरज पर नज़र गई जो दहकता हुआ समुद्र की तरफ सरकता जा रहा था । शाम ढल रही थी और समुद्र के उथले पानी में बच्चो से लेकर हनीमून पर आए जोड़े पानी उछालते नज़र आ रहे थे । इस बीच सूरज समुद्र में समां चुका था और अँधेरा घिरने लगा था । पर तट के किनारे झोपडी नुमा रेस्तरां की रौशनी में लोग जमे हुए थे । इस समुद्री तट पर गुजरात का असर भी दिखाई पड़ रहा था । गोवा के कलंगूट बीच से लेकर अंजुना बीच तक शाम ढलते ही समुद्री व्यंजनों के बनाने की खुसबू हवा में महसूस की जा सकती है । यहाँ कुछ महिलाएं टोकरी में मदिरा की बोतले उठाए बेचती जरुर नज़र आई पर समुद्री व्यंजनों की वह
खुशबू नहीं जो लक्ष्य द्वीप के बंगरम द्वीप के समुद्र तट से लेकर गोवा के कलंगुट बीच पर महसूस होती है । पर दमन का यह खुबसूरत सैरगाह अब खतरनाक होता जा रहा है । अरब सागर का पानी दम तोड़ रहा है । बाक़ी अगली किस्त में ।

भाजपा के नए भस्मासुर बन गए है अंशुमान मिश्र ,एक एक कर निपटाएंगे


नितीन गडकरी की राजनैतिक प्रयोशाला में अंशुमान मिश्र का तड़का !
अंबरीश कुमार
लखनऊ, मार्च।अंशुमान मिश्र भाजपा के नए भस्मासुर साबित हो सकते है ।उनके निशाने पर आडवानी ,यशवंत सिन्हा ,शांता कुमार ,मुरली मनोहर जोशी के बाद अरुण जेटली आ चुके है । झारखंड में राज्यसभा उम्मीदवारी से भाजपा में अचानक चर्चा में आए अंशुमान मिश्र की जड़े उत्तर प्रदेश में है और ज्यादा गहरी है । अंशुमान मिश्र का दावा है कि भाजपा के हर नेता तक उनकी सीध पहुँच है जिसमे नरेंद्र मोदी भी शामिल है । वे उत्तर के देवरिया जिले के रहने वाले है और राजनीति का ककहरा विदेश में पढाई के दौराम महर्षि महेश योगी के यहाँ सीखा । बीते विधान सभा चुनाव में गडकरी ने उत्तर प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व को अंशुमान मिश्र की प्रतिभा की जानकारी देते हुए कहा था ये हर तरह की मदद करेंगे । भाजपा सूत्रों के मुताबिक अंशुमान मिश्र ने इससे पहले पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर दबाव डालकर न सिर्फ शीर्ष पदों पर मनमाफिक नियुक्ति करवाई बल्कि पार्टी के पुराने कार्यकर्त्ता का टिकट कटवा कर अपने भाई को टिकर दिलवा दिया जिसके चलते पार्टी बागी उम्मीदवार तो कांटे के मुकाबले रहा पैरवी वाला उम्मीदवार बुरी तरह हारा ।उत्तर प्रदेश को नितिन गडकरी की राजनैतिक प्रयोगशाला बताया जा रहा था जहाँ तरह तरह के प्रयोग किए गए । घोटाले से चर्चा में आए बाबू सिंह कुशवाहा को नई सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर लिया गया तो वंशवाद की जड़ों पर खाद पानी डालते हुए बहुत से नेताओं के परिजनों को टिकट दिया गया और सब बुरी तरह हारे। पर फिलहाल मुद्दा अंशुमान मिश्र है जिनसे पार्टी किनारा कर रही है । पर वे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को एक एक कर निपटाएंगे । और यह सब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर हो रहा है ।कांग्रेस मीडिया सेल के प्रभारी सिराज मेंहदी ने कहा -यह बहुत गंभीर मामला है ।अंशुमान मिश्र के आरोप बहुत गंभीर है और इससे भाजपा का चाल चरित्र और चेहरा सामने आ गया है । इस पर पार्टी जवाब दे और उच्च स्तरीय जाँच भी कराई जाए । जोशी और जेतली पर उनके आरोप गंभीर है ।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक अंशुमान मिश्र ने उत्तर प्रदेश में काफी समय से अपनी जड़े जमा रखी है और वे शीर्ष नेताओं के साथ प्रदेश नेताओ के बीच न सिर्फ पुल भी बने हुए थे बल्कि नेतृत्व किसे दिया जाए इसमे भी बड़ी भूमिका निभाई । जिसका उपहार भी उन्हें मिला । प्रदेश नेतृत्व ने पुराने और जनाधार वाले कार्यकर्त्ता का टिकट काटकर अंशुमान मिश्र के भाई राजीव मिश्र को दे दिया । पार्टी अब उनसे दूरी दिखा रही हो पर वे लगातार गडकरी के निर्देश पर पार्टी के जन संपर्क अभियान की अप्रत्यक्ष कमान संभाले रहे । गोरखपुर रैली में अंशुमान मिश्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के साथ ही मंच पर भी मौजूद था । बाद में पार्टी ने उनके भाई राजीव मिश्र को देवरिया के रामपुर कारखाना विधान सभा सीट से टिकट दिया वह भी पुराने और जमीनी कार्यकर्त्ता गिरिजेश उर्फ़ गुड्डू शाही का टिकट कट कर दिया गया । नतीजे आए तो जिसका रिक्त काटा गया था वह तो दूसरे नंबर पर रहा और उसे ४४६८७ वोट मिले और पार्टी के सिफरिही उम्मीदवार और अंशुमान मिश्र के भाई राजीव को १७४४२ वोट मिले थे ।इससे साफ़ है अंशुमान मिश्र की पार्टी में कैसी पहुँच थी ।लगता है वे दिल्ली में पार्टी के लिए नए कुशवाहा बन रहे है ।jansatta

Friday, March 23, 2012

जहाँ बादलों में खो जाती है सड़क



अंबरीश कुमार
गागर से करीब दो किलोमीटर आगे बढ़ने के बाद बाजारपर करते ही तीखा मोड़ है जो सिंधिया परिवार के वृदांवन आर्चड से लगा कुछ दूर तक चलता है। जहां पर उसकी सीमा खत्म होती है, वहीं से जंगल भी शुरू होता है। ऊपर टैगोर टॉप है जहां कभी रवीन्द्र नाथ टैगोर ने गीतांजलि के कुछ हिस्से लिखे थे, ऐसा यहां के लोग बताते हैं। लेकिन वहां उमागढ़ में महादेवी वर्मा के मीरा कुटीर जैसा कोई निर्माण नजर नहीं आता।
उमागढ़ से अपना संबंध करीब डेढ़ दशक पुराना है। पहली बार १९९५ में उनका वह घर देखा जो उन्होंने १९३0 के दशक में खुद वहां रहकर बनवाया था। वहां से हिमालय से बड़ी श्रंखला का खूबसूरत नजरा दिखता है तो पहाड़ी के निचले हिस्से में सेब, आडृू और खुबानी के बागान नजर आते है। और ऊपर चढ़ते देवदार के घने दरख्त। यहीं पर सुमित्रा नंदन पंत, महादेवी वर्मा, अज्ञेय और धर्मवीर भारती ने कई रचनाएं लिखीं। महादेवी वर्मा १९३६ से यहां हर गर्मी में लगातार आती रहीं। उमागढ़ से उनका संबंध अंतिम समय तक रहा। उनका घर अब संग्रहालय बना दिया गया है। साथ ही शलेश मटियानी के नाम पर बना पुस्तकालय है।
शैलेश मटियानी से अपनी मुलाकात १९८0 के दशक में लखनऊ में अमृत प्रभात अखबार के दफ्तर के बाहर चाय की दुकान पर हुई थी। परिचय अमृत प्रभात के रविवारीय परिशिष्ट के संपादक विनोद श्रीवास्तव ने कराई थी। तब हम विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में सक्रिय थे और अखबारों में लिखना शुरू किया था। पुनीत टंडन, अरूण त्रिपाठी, हरजिंदर और अनूप आदि के साथ हम भी संघर्ष के दौर में थे। लखनऊ विश्वविद्यालय का मिल्क बार, टैगोर लाइब्रेरी, अशोक वाटिका, डीपीए हाल परिसर और यूनियन भवन हमारे बैठने के अड्डे थे। १९७८ में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव जीतने के बाद हमारी मुलाकात खांटी समाजवादियों के नए खेमे से हुई। इसके बाद शहर के अन्य अड्डों में चंद्र दत्त तिवारी का विचार केन्द्र, काफी हाउस, गांधी भवन, आशुतोष मिश्र और डाक्टर प्रमोद कुमार का इंदिरानगर स्थित आवास शामिल था। पर सबसे ज्यादा समय राजीव के लालबाग स्थित आवास पर गुजरता था जो छात्र युवा आंदोलन का मुख्य केन्द्र बना हुआ था। जहां पर देश भर से जेपी की बनाई छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के प्रतिबद्ध नौजवान जुटते थे। तब इस शहर में अमृत लाल नागर, मंगलेश डबराल, चंद्र दत्त तिवारी, सर्वजीत लाल वर्मा, भईया जी, राम कृपाल, कमर वहीद नकवी, आशुतोष मिश्र, प्रमोद जोशी, उदय सिन्हा, रणवीर सिंह विष्ट, केएन कक्कड़, भुवनेश मिश्र जसे लोगों काभी हमें सानिध्य मिला। कई लोगों के नाम इसमें छूट गए होंगे। बहरहाल शैलेश मटियानी का नाम देखते ही अस्सी के दशक का लखनऊ याद आ गया। बाद में विश्वविद्यालय में हमने थिंकर काउंसिल नाम का संगठन बनाया जिसमें अमिताभ श्रीवास्तव, राजेन्द्र तिवारी, देवेन्द्र उपाध्याय, मसूद, रमन,धर्मेन्द्र जय नारायण, अर्पणा माथुर, शाहीन और शिप्रा दीक्षित आदि नेतृत्व की अगली कतार में थे। दो और मंडली थी जिसमे एक में अलोक जोशी,अशोक शुक्ल से लेकर सुधीर तिवारी शामिल थे तो दूसरे में अजय मेहरोत्रा और ओम प्रकाश जो अपने बचपन के पुराने साथी रहे । इनमे ओम प्रकाश के घर वालों का जवाहर भवन के नीचे पेट्रोल पंप था और एक अम्बेसडर गाड़ी जिसका इस्तेमाल विश्विद्यालय में मेरे चुनाव में भी हुआ और मै अकेला उम्मीदवार था जिसका प्रचार किसी कार से हुआ था ।हालाँकि तब सभी साइकिल से चलते थे। स्कूटर एक अपने यहाँ था पर चलने की इजाजत नहीं थी और दूसरा स्कूटर अलोक जोशी का था जिसके जरिए शहर नापा जाता था ,जाहिर है चलते आलोक जोशी ही थे और मुझे बैठने का सुख मिलता था ।आलोक जोशी अगर आज पत्रकारिता में है तो उसका बड़ा श्रेय उस स्कूटर को भी जाता है जिसने समय पर अख़बार के दफ्तर और पत्रकारों से मिलना आसान कराया ।
उस समय थिंकर्स कौंसिल के सहयोगी राजेन्द्र तिवारी आज यहां खुद अपनी फोर्ड फियस्टा ड्राइव करते हुए पहाड़ पर आगे चल रहे थे।इससे पहले पंद्रह अगस्त की सुबह हमारी नींद बच्चों के गीत से खुली जो प्रभात फेरी में हम होंगे कामयाब एक दिन-क्रांति होगी चारों ओर जैसे गीत गाते जा रहेथे। कमरे से बाहर आए तो ठंड की वजह से फौरन शाल ओढ़नी पड़ी। बाहर बारिश हो रही थी और बादलों के झुंड तैर रहे थे। पर भीगते बच्चों का उत्साह देखने वाला था। यह नजरा बाद में मुक्तेश्वर जते हुए सारे रास्ते दिखा। हम सतबुंगा पहुंचे नहीं कि फिर बारिश शुरू हुई और बादल रास्ते को घेरते जा रहे थे। मैंने राजेन्द्र को अपनी गाड़ी पीछे लेने को कहा क्योंकि हमारी गाड़ी में अनुभवी ड्राइवर था। करीब सात हजर फुट की ऊंचाई पर जंगल और जमीन के साथ मौसम भी भीगा हुआ था। बादलों की धमा-चौकड़ी हमें डरा रही थी। कई बार मोड़ पर सड़क गायब हो जाती और हम बादलों के बीच अपनी सड़क को ढूंढते-ढूंढते आगे बढ़ रहे थे। देवदार के घने दरख्तों के जंगल पार कर हम
आगे बढ़े तो सतबुंगा की चौड़ी घाटी दिखाई पड़ी। चारों ओर हरियाली।
सीढ़ीदार खेत और सड़क के किनारे बलूत और बांज के पेड़। बीच-बीच में चीड़ और देवदार भी आ जते। दिल्ली-हरियाणा और पंजब के नंबर वाली लक्जरी गाड़ियां जगह-जगह बने काटेजों के सामने दिखाई पड़ रही थीं। साथ चल रहे इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार वीरेन्द्र नाथ भट्ट ने टिप्पणी की-दिल्ली-हरियाणा के लोगों के यहां काटेज बन गए हैं और पहाड़ी भाई लोग खोमचा और ढाबा खोले बैठे हैं। यह भी एक किस्म का सांस्कृतिक अतिक्रमण है।भटेलिया से मुक्तेश्वर की तरफ बढ़ते ही रिसार्ट के बोर्ड जगह-जगह नजर आते हैं। मुक्तेश्वर में पर्यटन विभाग के टूरिस्ट रेस्ट हाउस की महिला प्रभारी ने बताया कि कोई कमरा खाली नहीं है। आने वाले तीन-चार दिन तक यहां पर्यटकों की भीड़ बनी रहेगी। टूरिस्ट रेस्ट हाउस से ठीक पहले मुक्तेश्वर धाम पड़ता हैं जहां शंकर भगवान का प्राचीन मंदिर है। करीब पांच सौ मीटर ऊपर चढ़ने पर पांडवों के बनवाए इस मंदिर का दर्शन होता है।
मंदिर के बगल में देवदार के पेड़ पर कौवों का झुंड नजर आता है। सामने का नजरा बादलों की वजह से नहीं दिखता। पर अगर बादल न हों तो कुमाऊं के एक अंचल का खूबसूरत नजरा आपको दिखाई पड़ सकता है। पर मंदिर से नीचे उतरते ही दिल्ली-हरियाणा के नंबर वाली गाड़ियों के पीछे दोपहर से पहले ही बीयर पीते नौजवानों की हरकत को देखकर मन खट्टा हो गया। ये सभी बीयर पीते जा रहे थे और बीयर केन जंगलों में फेंकते ज रहे थे। इससे पहले इनके वाहन हमारे आगे चल रहे थे तो उसमें से कभी विसलरी की खाली बोतल फेंकी जाती तो कभी कुरकुरे व चिप्स के खाली पैकेट। सड़क के किनारे जगह-जगह इन पर्यटकों की वजह से गंदगी के ढेर नजर आते हैं।फिर भी रामगढ़ से मुक्तेश्वर की यात्रा अद्भुत है और रास्ते की खूबसूरती कोई भूल नहीं सकता। चारों ओर घने जंगल, पक्षियों की आवाजें, जगह-जगहफूटते पानी के स्रोत और रास्ते भर मंडराते बादल।
फोटो -राजेंद्र तिवारी और वीना

एक बागी नदी



सुप्रिया राय
प्रेम से मोक्ष का एक रास्ता खुलता है। रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम कहानी मांडू के जिन पत्थरों में लिखी है, वहां से लगभग कावेरी के किनारे किनारे धामनोद के रास्ते चलते चले जाए तो अंतत: पहुंचेगे वहां जहां कावेरी नर्मदा से मिलती हैं दोनों ही नदियां तेज धार वाली है, मगर मिलन के ठीक पहले उनकी धार दोस्ती की यानी धीमी हो जाती हैं इसका श्रेय आप या यहां केपहाड़ी भूगोल को दे, या नदियों के मिलन के प्रेम रूपक को या यहां की धार्मिक किंवदंती बन गए धर्म स्थल ओंकारेश्वर को मगर सच यह है कि नदियां इतनी खामोशी से एक दूसरे में विलीन नहीं होती। खास तौर पर नर्मदा तो दुनिया की अकेली नदी है, जो पूर्व की तरफ नहीं पश्चिम की तरफ बहती है। एक बागी नदी को भी आत्मीय बनाने का यह चमत्कार ओंकारेश्वर में होता है।
दोनों नदियां सीधे नहीं मिलती। थोड़ा घूम कर लजाते शर्माते एक दूसरे के करीब आती है और उनके इसी प्रवाह में एक द्वीप बन गया हैं पड़ोस के पर्वतों या हेलीकॉप्टरों से देखें तो यह द्वीप सीधे ओम अक्षर की आकृति में बना है। इस द्वीप के नाम पर इस तीर्थ का नामकरण हुआ है- ओंकारेश्वर। इंदौर-महाराष्ट्र राजमार्ग पर बाड़वाह से 12 किलोमीटर जंगलों से घिरे एक रास्ते पर चलें तो ओंकारेश्वर की दुनिया प्रकट होती है।
रास्ते में ओंकारेश्वर बांध के कारण बस गया नर्मदा नगर का रास्ता भी है फिर हमेशा एक आस्तिक मेले की शकल में जागता रहने वाला ओंकारेश्वर तीर्थ है, जोहै तो नर्मदा के पार मगर वहां पहुंचने के लिए दो पुल मौजूद है। एक सीधा और दूसरा झूलता हुआ। पूल पार करते ही ऊपर एक बहुत प्राचीन लेकिन बसे हुए किले के नीचे रास्ता चला जाता है और वहां से एक तंग लेकिन उदार गली आप को आेंकारेश्वर महादेव के परम प्राचीन मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचा देती है। हाइटेक जमाना आ गया ह, इसलिए मंदिर के प्रेवश द्वार के सामने ही इस तीर्थ की महिमा बखानने वाली सीडी भी बिकती है और आम इसे देख सकें, इसकी व्यवस्था भी है।
आज तो आवागमन और संचार के सब साधन मौजूद है- जैसे ओंकारेश्वर के एटीएम से आप पैसे निकाल सकते हैं, दुनिया भर में बात कर सकते हैं, बीबीसी और सीएनएन देख सकते हैं, इंटरनेट पर संदेशें भेज सकते हैं और इसी कारण उस युग की कल्पना करना जरा कठिन प्रतीत होता है। जब भगवान राम के पूर्वज मांधाता ने यहां तपस्या करके सीधे भगवान शिव का दर्शन पया था और यही आदि शंकराचार्य ने अपने प्रारंभिग शिष्यों मेंसे एक को दीक्षा दी थी। मंदिर के तलघर में एक चट्टानी गुफा अब भी मौजूद हे, जहां मांधाता ने तपस्या की थी ओर इसके ठीक ऊपर एक कक्ष में एक आसन भी रखा है, जिसे राजा मांधाता का आसन कहा जाता हैं कहावत तो यह भी है कि इसी रघुवंश के राजा परीक्षित का जब नागदेव से झगड़ा हो गया था और नागदेवता राजा परीक्षित को दंडित और दंशित करने पर तुले हुए थे, मांधाता के तप ने ही मध्यस्थता की थी।
यही भगवान शिव की तपस्या करने नक्षत्र मंडल से उतर कर शनि देवता के आने की कथा भी कहीं जाती है और उसी पहाड़ी चट्टान पर शनि की एक सिध्द मंदिर भी है। ओंकारेश्वर मंदिर को श्री ओंका मांधाता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और यह एक मल लंबे और आधा मील चौड़े चट्टानी द्वीप पर बना हुआ हैं।
चूंकि स्वयं भगवान शिव यहां प्रकट हुए थे, इसलिए वे अपने आगमन के स्मारक के रूप में एक ज्योर्तिलिंग की शक्ल में यहां स्थापित है और ओंकारेश्वर इसलिए संसार में 12 ज्योतिर्लिंग में से एक गिना जाता हैं एक उत्सुक साधारण यात्री के लिए ओंकारेश्वर का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि यह बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री जैसे शिव को समर्पित तीर्थों की तुलना में सबसे कम दुरूह रास्ते के अंत पर बसा है। इंदौर से सवा घंटे में आप या कर के कारक युग में पहुंच जाते हैं और वहां से जप तप के कर्मकांड से गुजर कर वापस अपने इस इस नश्वर संसार में अपने दुनियादारी के कर्तव्य पूरे कर सकते है।
वैसे अगर समय हो तो ओंकारेश्वर में हर धर्म और हर विचार का अपना तीर्थ मौजूद है। मध्य कालीन ब्राम्हणी विचार धारा का अति प्राचीन सिध्दनाथ मंदिर है, जहां एक ही चट्टान पर हाथियों की पूरी बारात मौजूद है। चौबीस अवतार के नाम से हिंदू और जैन मंदिरों का एक पूरा सिलसिला मौजूद है जो धर्म के अलावा अपने स्थापात्य के लिए भी देखा जाना चाहिए। सिर्फ 6 किलोमीटर दूर दंसवी सदी के मंदिरों का एक समूह है हां फिर कलाकरों के भक्ति से जुड़ने की साक्षात कथा देखी जा सकती है। पिकनिक का मन हो तो नो किलोमीटर दूर पर काजल रानी गुफाए हैं, जो 21 वीं सदी में भी आपको जंगल बुक की दुनिया में होने का एहसार करवा सकती है।
वैसे ओंकारेश्वर महादेव मंदिर के एक दम पड़ोस में गायत्री शक्ति पीठ भी लगभग बन कर तैयार है और वह भी कम तीर्थ नहीं हैं ठहरने की चिंता छोड़ दीजिएं दस रुपए रोज की धर्मशालाओं से ले कर 700 रुपए तक के वातालुकूलित कमरे मौजूद हैं और जब तीर्थ में आए है तो मैन्यू देख कर खाने का क्या लाभ? शाकाहारी भोजनालयों की कतार लगी है, भरपेट खाइए, चाहें तो सो जाइए या फिर नर्मदा में चल रही नावों पर नौका विहार करके आइए। आप बहुत सारे ईश्वरों और देवताओं की छत्र छाया में हैं इसलिए चिंता की कोई बात नहीं।
जनादेश में सुप्रिया राय का लेख

खेती की जमीन बचाने के लिए सड़क पर उतरेंगे किसान

अंबरीश कुमार
लखनऊ, मार्च। उत्तर भारत के कई राज्यों में अब किसानो की खेती की जमीन छीने जाने के खिलाफ बड़ा किसान आंदोलन उभरने जा रहा है । इस आंदोलन में उत्तर प्रदेश के किसान मंच के साथ ,किसान संघर्ष समिति और जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय देश के विभिन्न किसान संगठनों को लामबंद करने का प्रयास करेगा । दिल्ली से लखनऊ पहुंचे किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने अप्रैल से शुरू होने वाले इस किसान आंदोलन की जानकारी दी । इस आंदोलन की अगली कतार में मेधा पाटकर ,सुनीलम ,स्वामी अग्निवेश ,चितरंजन सिंह और विनोद सिंह आदि होंगे ।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में अडानी पेच पावर प्रोजेक्ट, पेच डाइवरशन प्रोजेक्ट, मैक्सो व एस के एस प्रोजेक्ट के नाम पर 50 हजार किसानों की जमीनों का जोर जबरदस्ती से छीनी जा चुकी है और वहा इसे लेकर आंदोलन चल रहा है । अब यह आंदोलन और व्यापक होने जा रहा है और इसमे अदानी समूह की सभी परियोजनाओं के खिलाफ किसानो को खड़ा किया जाएगा । दिल्ली में इस सिलसिले में हुई जन संसद में भी कई महत्वपूर्ण फैसले किए गए है । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने आज यहाँ जनसत्ता से कहा -दिल्ली की सरकार को भी किसानो की आवाज सुनाई नहीं पड़ रही है इसलिए अब किसान जमीन पर ही संघर्ष तेज करने जा रहा है । संसद के बाद विभिन्न राज्यों में जहाँ अडानी की परियोजनाए चल रही है वहा आंदोलन छेड़ा जाएगा । इसके लिए संसद पर प्रदर्शन के बाद पूरी रणनीति बने जाएगी । फ़िलहाल कई किसान संगठनों ने इस आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जताई है । इस वजह से सभी किसान संगठनों की बैठक बुलाकर इस आंदोलन की रूप रेखा बने जाएगी ।
गौरतलब है कि इस मुद्दे को लेकर छिंदवाडा में मेधा पाटकर ,विनोद सिंह और चितरंजन सिंह बड़ी जन सभा कर चुके है । मेधा पाटकरका आरोप है कि केंद्र के दो-दो मंत्रियों ने हमें भरोसा दिया था कि पर्यावरण के अनुमति न मिलने के कारण अडानी परियोजना का कोई निर्माण कार्य नहीं होगा पर यह भरोसा झांसा साबित हुआ ।
पर अब इसका प्रतिकार और तेज होगा और उनसभी जगहों पर होगा जहा अडानी की परियोजना में काम हो रहा हो । विनोद सिंह ने आगे कहा - जिस तरह नोएडा व दादरी में हमने लड़कर किसानों की जमीन बचाई है उसी तरह किसान मंच छिंदवाड़ा के किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलकर संघर्ष करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि हमारे साथ पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के प्रपोत्र अक्षय सिंह व राजनारायण के भांजे और किसानो का सावाल उठाने वाले बृजेश राय भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे । दूसरी तरफ किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुनीलम ने कहा- बिजली परियोजनाओं को लेकर किसानो की जमीन छीनने के मामले में कांग्रेस और भाजपा साथसाथ है । केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर किसानों को अपनी जमीन से बेदखल करने पर अमादा हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि पर्यावरण विभाग के बिना अनुमति के अडानी पॉवर प्रोजेक्ट व पेच परियोजना में माचागोरा बांध निर्माण कार्य को आगे बढ़ने देने के लिए सरकार जिम्मेदार है।

Thursday, March 22, 2012

वर्षा वन में भटकते हुए




अंबरीश कुमार
जंगल में घूमते हुए कई क्षण ऐसे आए है जो कभी भूलते नहीं .ऐसा ही एक यात्रा केरल के वायनाड जिला के जंगलों की है .जाना था वायनाड के जंगल के बीच बने वैथ्री रिसार्ट में .इससे पहले पुकोट झील में कुछ देर रुके और बोटिंग भी की .कालीकट से करीब सौ किलोमीटर दूर वायनाड के जंगलों में आगे बढे तो मौसम भी बदल चुका था और नहाया हुए जंगल में पक्षियों की आवाज गूंज रही थी .जंगल का रास्ता भी काफी उबड़ खाबड़ था और कई जगह लगता गाड़ी फंस जाएगी .इससे पहले ड्राइवर चाय बागान घुमाने के साथ काली मिर्च की बेल के दर्शन करा चुका था .यह कालीमिर्च का इलाका है जिसके चलते सदियों से विदेशी व्यापारियों की नजर इस अंचल पर रही .कालीकट के पास ही वह समुन्द्र तट है जहाँ पुर्तगाल से चला वास्को डी गामा २० मई १४९८ को अपने जहाज से उतरा था .कपड में उस जगह एक उपेक्षित स्मारक आज भी उसकी याद दिलाता है .यहाँ फ्रांसीसी ,डच और अरब के सौदागर भी आये और हर किस्म का दखल भी दिया .यहाँ की संस्कृती और खानपान पर भी इसका असर पड़ा .काली मिर्च और अन्य मसालों के चलते यह बड़ा व्यापारिक केंद्र भी रहा है .
खैर जंगल में वैथ्री रिसार्ट के रास्ते पर जाते हुए रास्ता भी भटक गए पर कुछ देर बाद सही रास्ता मिल गया .यह जंगल कई मशहूर जगहों से घिरा हुआ है जिसमे एक तरफ ऊटी मैसूर है तो दूसरी तरफ वायनाड के खुबसूरत इलाके और कालीकट का समुंद्र तट भी .वैथ्री रिसार्ट बहुत ही अद्भुत जगह है जो जंगल के बीच में इस तरह बनाया गया है कि सारी सुवधाओं के बावजूद जंगल में रहने का अहसास करता है .पास में ही झरनों की आवाज आती है तो पेड़ पर बने हट आपको आसमान के पास ले जाते है ..तरह तरह के पक्षी और जानवर रास्ते में नजर आए जो रिसार्ट के आसपास भी मंडरा रहे थे .बारिश के बाद जंगल बहुत ही खूबसूरत नजर आता है खासकर जब धुंध छाई हो . ओस की तरह गिरती बूंदों के बीच कुछ देर बैठे रहे ,भीगने के बावजूद उठने का मन नहीं हो रहा था ..यह जंगल का सम्मोहन था जो इस जगह से बांधे हुए था .जंगल बहुत घुमा है और हर जगह की अलग अलग विशेषता भी है .चाहे उतर पूर्व के जंगल हो या फिर गुजरात में गीर के जंगल .बस्तर का जंगल तो अफ्रीका का मुकाबला करता है .पर केरल में वायनाड का यह वर्षावन जल्दी वापस नहीं लौटने देता .हालाँकि यह रिसार्ट कुछ महंगा जरूत है पर दो तीन दिन यहाँ रुकने वाला है .

Wednesday, March 21, 2012

उत्तर प्रदेश में फिर लोहिया बनाम आंबेडकर


अंबरीश कुमार
लखनऊ मार्च । उत्तर प्रदेश में डा राम मनोहर लोहिया बनाम भीमराव आंबेडकर का विषय फिर उठ गया है। करीब साढ़े चार साल उपेक्षित रहा लोहिया पार्क और लोहिया पथ अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने से पहले झाड़ पोछ चमकाया जाने लगा था । आगामी २३ मार्च को समाजवादी आन्दोलन के नायक डा0 राममनोहर लोहिया का जन्म दिन है जो लखनऊ में लोहिया पार्क में मनाया जायगा। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के प्रदेश के सभी जिला/महानगर अध्यक्ष से लेकर पार्टी के वधायक और सांसदों से कहा है कि समाजवाद के चिन्तक राममनोहर लोहिया की जन्मतिथि पर हमें उनकी नीतियों पर चर्चा के साथ उनके विचारों से प्रेरणा लेनी चाहिए। दूसरी तरफ दलित चिंतक आशंकित है कि आंबेडकर ,कांशीराम समेत दलित विभूतियों के स्मारकों का स्वरूप न बदल जाए। रोचक तथ्य यह है कि राजधानी की सबसे प्रमुख सडक को आंबेडकर के नाम करना हो या विधान सभा में उनका भव्य चित्र लगवाना या आम्बेडकर ग्राम योजनाओं की शुरुआत सभी मुलायम सिंह की शुरू की है और इस चुनाव में सबसे ज्यादा करीब पचास दलित विधायक समाजवादी पार्टी के जीते है। इसलिए मुलायम सिंह से दलित चिंतकों को यह अपेक्षा है कि वे इस स्मारकों का स्वरुप बदलने नहीं देंगे वर्ना देश भर के दलितों के बीच गलत सन्देश जा सकता है ।
आंबेडकर महासभा के अध्यक्ष डा निर्मल ने जनसत्ता से कहा -दलित विभतियों के नाम से जो भी स्मारक लखनऊ में बने है उनके मौजूदा स्वरुप में किसी तरह की छेड़छाड़ ठीक नहीं होगी । इससे वह दलित समाज भी आहत होगा जो मुलायम सिंह के साथ खड़ा है और उनका संरक्षण चाहता है । मुलायम सिंह ने आम्बेडकर के नाम योजनाए शुरू की ,सड़क का नामकरण किया और उनका बड़ा तैल चित्र विधान सभा में लगवा कर अपना सम्मान जताते रहे है । दलितों के सवाल पर पुरी ताकत से लड़े है । ऐसे में तो यह होना चाहिए कि वे मूर्तियों को लेकर एक नई नीति बनवाएं ताकि आगे भी कोई विवाद न हो ।
गौरतलब है कि दक्षिण के मशहूर दलित चिंतक कांचा एलैय्या बहुत पहले से कहते रहे है कि लखनऊ को देश की दलित राजधानी घोषित कर देनी चाहिए । इसकी मुख्य वजह एक जगह इतनी ज्यादा दलित विभूतियों का स्मारक होना है । दलित चिंतक एसआर दारापुरी मायावती के आलोचक रहे है पर इस मुद्दे को वे अलग ढंग से देखते है । दारापुरी ने कहा -यह सही है कि कई स्मारकों में जगह ज्यादा ली गई है पर उस जगह के सदुपयोग के चक्कर में इन स्मारकों का मौजूदा स्वरुप पूरी तरह चौपट हो जाएगा और उसका सौन्दर्य भी ख़त्म हो जाएगा । इसलिए इनके स्वरुप को बदलना या यहाँ अस्पताल बना देना ठीक नहीं होगा ।
राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -इतिहास से नहीं लड़ा जाता है । यह ठीक नहीं कि मायावती रहे तो लोहिया के स्मारकों की अनदेखी हो और मुलायम आए तो आंबेडकर हाशिए पर चले जाए । बदले की इस राजनीति का राजनैतिक सन्देश ठीक नहीं जाएगा । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -किसी भी मूर्ति के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी यह तो मुलायम सिंह पहले ही साफ कर चुके है । अब करीब छह सौ एकड़ जमीन इस सब मर लगे गई है तो उसके सदुपयोग पर विचार हो तो गलत क्या है । उन्होंने यह भी कहा कि राम मनोहर लोहिया का जन्म दिवस बहुत उत्साह से मनाया जाएगा । सभी पदाधिकारियों से कहा है कि इस अवसर पर वे जिला स्तर पर गोष्ठी आदि कार्यक्रम के आयोजन करें, जिसमें पार्टी की नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को डा लोहिया के सिद्धान्तों और नीतियों से परिचित कराया जाए। समाजवादी पार्टी आज भी उनके रास्ते पर चल रही है। jansatta

Tuesday, March 20, 2012

हर रविवार लखौली के डाक बंगले में



अंबरीश कुमार
वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रदीप श्रीवास्तव ने रायपुर की याद दिलाई जहाँ वे पहली बार जा रहे है .मै भी जब पहली बार रायपुर जा रहा था तो दो लोगों ने मदद की थी एक कांग्रेस के तत्कालीन प्रवक्ता और सांसद अजित जोगी और दूसरे मध्य प्रदेश सूचना विभाग की एक आकर्षक मोहतरमा जिनका नाम मुझे याद नहीं आ रहा है .अपना नया नया तबादला हुआ था और लोगों ने बताया काफी गर्म जगह होती है .जनसत्ता के वरिष्ठ सहयोगी मनोहर नायक ने दो पत्रकारों के नाम दिए और पत्र भी दिया था .एक नवभारत के तत्कालीन संपादक बब्बन प्रसाद मिश्र और दूसरे मध्य प्रदेश के दिग्गज पत्रकार रम्मू श्रीवास्तव .दोनों लोगों से मिला और काफी मदद भी मिली .इंडियन एक्सप्रेस के मौजूदा कार्यकारी संपादक उन्नी राजन शंकर तब ईएनएस यानी एक्सप्रेस न्यूज़ सर्विस के संपादक थे और एक दिन फोन आया ,अम्बरीश जल्दी से सरगुजा चले जाओं और जूदेव पर धर्म परिवर्तन की एक स्टोरी छह घंटे में भेज दो जो इंडियन एक्सप्रेस के न्यूयार्क एडिशन में भी जानी है और उसकी डेड लाइन बहुत कम बची है .मैंने पता किया तो मालूम हुआ जहां जाना है वहां पहुँचने में पंद्रह घंटे लग सकते है .तब बब्बन जी के पास गया और पूछा कि कोई संवादाता उस क्षेत्र में है .फिर बब्बन जी ने बात कर वहां से पूरी जानकारी मंगवा दी और वह खबर एक्सप्रेस में पूरी प्रमुखता से छपी .खैर इससे समझा जा सकता है रायपुर में कई वरिष्ठ पत्रकारों ने कैसे मदद की .रम्मू श्रीवास्तव के यहाँ तो रोज शाम बैठता था और कई बार उन्होंने न सिर्फ खबर बताई बल्कि इंट्रो भी लिखा .धीरे धीरे छत्तीसगढ़ को समझा तभी जनसत्ता निकालने की जिम्मेदारी दी गई और लिखना पढना सब बंद हो गया क्योकि सुबह दस बजे से रात बारह बजे तक दफ्तर .सिर्फ खाना खाने बीच में जाता पर ज्यादातर अपना ड्राइवर चंद्रकांत खाना लेकर आ जाता .इस पर एक दिन हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ प्रदीप मित्र ने कहा ,अम्बरीश जी आप सब एडिटर की तरह क्यो काम करते है सारा घूमना फिरना बंद हो गया .तब तय किया रवीवार का दिन बाहर काटा जाएगा .अपनी मंडली में उस समय प्रदीप मैत्र ,प्रकाश होता ,लव कुमार मिश्र ,अमिताभ तिवारी ,आरती आदि थी .वरिष्ठ अफसर और निदेशक जनसंपर्क सीके खेतान भी यदा कदा कई दावतों में शामिल होते थे .पर जनसत्ता निकलते निकलते इस टीम में बदलाव हुआ और कई हट गए तो कई नए जुड़ गए .राज नारायण मिश्र अपने साथ जुड़े सूफी हो चुके राजनारायण मिश्र
ने बाहर कुछ इंतजाम शुरू किया और व्यवस्था भी .कुछ दावत खेतों के बीच आयोजित हुई तो बाद में आरंग की तरफ २९ किलोमीटर दूर महानदी से निकली एक नहर के किनारे सिंचाई विभाग का भुतहा डाक बंगला सभी को पसंद आया गया जो लखौली में साल के पेड़ों से घिरा निर्जन इलाके में था और लगातार कई रविवार के लिए हमारे लिए बुक कर दिया गया .इसमे दस बजे हम लोग जाते और परिवार के रूप में होता और अपना परिवार भी होता .दो कमरे जिसकी खिडकिय टूटी हुई थी वह आराम के लिए था ..पर ज्यादातर बैठकी बाहर ही बड़े लान में होती जो लान कम जंगल ज्यादा था और आने पहले चौकीदार साफ़ कर देता था ..उसके बाद लकड़ी इकठ्ठा होती और करीब बारह बजे तक चूल्हा जल जाता .इस बीच ठंढा गर्म दोनों तरह के पेय भी आ जाते और फिर तरह तरह की चर्चा .
मै ,मैत्रा,प्रकाश होता ,अमिताभ ,अनिल ,राजनारायण मिश्र और अलग अलग मौकों पर आने वाले कुछ और पत्रकार मित्र .नहर के किनारे यह डाक बंगला जंगल में मंगल मनाने जैसा था .इस महफ़िल में सामिष भी थे तो निरामिष भी और दोनों का खाना बनता .प्रकाश होता ओडिशा के है और उनकी पत्नी मौसमी बहुत अच्छा खाना बनाती है पर उन्हें मैंने अपने दिशा निर्देशन में ठेठ उत्तर भारतीय तरीके से सरसों और खट्टे देशी टमाटर में रोहू बनाने को कहा और जो बना तो चौकीदार के लिए भी नहीं बच पाया .छत्तीसगढ़ में हर जगह ताल तलब मिलते है और मछली बड़े पैमाने पर पाली जाती है .पर कई जो शाकाहारी थे उनके लिए सविता सब्जी बनाती थी .पर मै चूल्हे के पास ही रहता था .खाना वही बाहर होता और फिर कुछ आराम तो कई पढने में जुट जाते थे .इस तरह एक रविवार ख़त्म होता और सब घर
लौट आते थे

अपने मोहल्ले की लड़कियों के बारे में



एक लड़की
सीखने जाती है
सिलाई मशीन से
घर चलाने का तरीका


एक लड़की
दिनभर सुनती है
लता मंगेशकर का गाना

एक लड़की
सुबह भाई को
स्कूल छोड़ती है
और.. पिता को अस्पताल


एक लड़की
छत पर खड़े होकर
पतंग को कटता देख
लगती है रोने

एक लड़की
शिकाकाई से धोए बालों को
मुस्कुराकर सुखाती है आंगन में

एक लड़की
छज्जे पर केवल कंघी-चोटी
करते हुए ही आती है नजर

एक लड़की
हटती ही नहीं है.
आइने के सामने से


एक लड़की
छोटी सी छोटी बात पर
हो जाती है परेशान
और पोंछते रहती है पसीना

एक लड़की
जरा सी गलती पर
गिलहरी की तरह
कुतरती है
दांतो से नाखून

एक लड़की
छोटे बच्चों को
पढ़ाती है ट्यूशन

एक लड़की
हर रोज चढ़ाती है
तुलसी को एक लोटा पानी

एक लड़की
किसी न किसी घर
थाली पर अपने हुनर का घूंघट ओढ़ाकर
ले जाती है मीठे-मीठे पकवान

एक लड़की
हर तीसरे दिन
किसी अन्जान आदमी को
गाना सुनाती है
सितार बजाती है
और बताती है
चिड़ियां उसने बनाई है
तोता भी उसका बनाया हुआ है.

मेरे मोहल्ले में कुछ लड़कियां चश्मा पहनती है
कुछ मेहन्दी लगाते रहती हैं


आप सोच रहे होंगे कि
अच्छा लड़कीबाज आदमी है
जो लड़कियां देखते रहता हैं

क्या करूं साहब..
जिस मोहल्ले में रहता हूं वहां
कुछ इसी तरह की लड़कियां रहती है
इन लड़कियों में से कोई न कोई
लाल रिबन बांधकर
झम से आ खड़ी होती है
मोटर साइकिल के सामने
और थमा जाती है किसी न किसी
ईश्वर का प्रसाद.

मैं अपने मोहल्ले की लड़कियों को
घूरता नहीं... देखता हूं



हर रोज ... देर रात
जब मैं लौटता हूं अखबार के दफ्तर से
तब लड़कियां सीरियल देखकर
सो चुकी होती हैं

मैंने अब तक मोहल्ले की
किसी भी लड़की को
काली कार से उतरते हुए नहीं देखा है.

राजकुमार सोनी

Monday, March 19, 2012

अखिलेश की सरकार पर मुलायम का चाबुक !


अंबरीश कुमार
लखनऊ , मार्च । उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार में शामिल अंततः पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह को चाबुक फटकारना ही पड़ा । आज यहाँ मुलायम सिंह को खुद यह कहना पड़ा कि इस सरकार के मंत्री अराजकता से बाज आए वर्ना उनके खिलाफ भी कार्यवाई होगी । सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव है पर समूचा मंत्रिमंडल मुलायम सिंह का है जो सभी को साथ लेने के चक्कर में विवादों में भी घिरा । पर पहला मुद्दा समाजवादी पार्टी की पुरानी संस्कृति का है जो कई बार लोकतंत्र को भी लूट लेती रही है इसी वजह से पार्टी की छवि ख़राब हुई थी जिसे अखिलेश यादव के भरोसे पर प्रदेश ने भारी बहुमत सौंप दिया । बहुमत आने बाद से जो घटनाए हुई उससे यह छवि दरके इससे पहले ही कई कार्यकर्ताओं और नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है और आज फिर दिखाया गया । साथ ही मंत्रियों को चेतावनी भी दी गई कि अब परंपरा बदल गई है नही माने तो दंडित भी किए जाएंगे ।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने आज कहा - मंत्रिमण्डल के सभी सदस्य अपने स्वागत समारोहों में आतिशबाजी और फायरिंग से बचें। उन्होने कहा स्वागत समारोहों में मालाएं पहनाई जा सकती हैं लेकिन ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए जिससे जनता को असुविधा हो। मुलायम सिंह यादव ने यह भी साफ़ किया कि केन्द्र सरकार में समाजवादी पार्टी शामिल नहीं हो रही है। हम केन्द्र सरकार को सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता में आने से रोकने के लिए ही समर्थन दे रहे है। हमारी भूमिका विपक्ष की है। इससे पहले पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुएमुलायम सिंह यादव ने कहा -अब बहुत दिन समाजवादी पार्टी की जीत और सरकार बनने का जश्न मना लिए। अब वे अपने-अपने क्षेत्रों में लौट जाए और सन् 2014 में लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी सीटें जीतने के लक्ष्य के लिए काम करने में जुट जाएं। उन्होने कहा कि कार्यकर्ताओं से पार्टी बनती है और वह मंत्री बनाती है। मैं जनता के साथ रहूँगा । हम आपस में मिलकर काम करेगें। सरकार पर अंकुश लगाएगें।
दरअसल सारा मामला छवि का है। मुलायम की छवि ध्वस्त कर मायावती सत्ता में लौटी थी पर उन्होंने और उनके मंत्रियों ने जो जो किया उसके चलते बसपा की नई छवि बनी बनी। वह बसपा जिसका मजबूत दलित जनाधार कांसीराम ने तैयार किया था और एक नया राजनैतिक एजंडा मायावती को थमाया था उसे मायावती खुद ,उनके दो चार अफसर और दर्जनों मंत्रियों ने ध्वस्त कर दिया। इस बार तो उनका सर्वजन गया और गैर जाटव वोट बैंक भी दरक चुका है ,यह खतरे का संकेत है। पर उससे ज्यादा जोखम भरा रास्ता समाजवादी पार्टी का है। मुलायम सिंह के साथ जब यह संवाददाता आजमगढ़ की बड़ी रैली से लौट रहा था तो रास्ते में बलराम यादव ने मुलायम सिंह से कहा था -नेताजी ,यह भीड़ इस कुशासन के खिलाफ आई है अगर हम भी इस रास्ते पर चले तो अगली बार यह जनता हमें भी सत्ता से बेदखल कर देगी । यह बात मुलायम सिंह अच्छी तरह जानते है। जबसे यह चर्चा तेज हुई कि अखिलेश यादव मुख्यमंत्री जरुर है पर समूची कैबिनेट तो मुलायम सिंह की है ,तबसे मुलायम सिंह की भी जिम्मेदारी काफी बढ़ गई है। जब अमरोहा के मंत्री महबूब अली के स्वागत में रायफल और कट्टे निकले तो फिर खुद मुलायम सिंह को यह तेवर दिखाना पड़ा । उत्तर प्रदेश की राजनैतिक संस्कृति में हथियारों का काफी महत्त्व है पर इसपर अगर अंकुश लगाने का प्रयास अखिलेश यादव के राज में न हुआ तो उनका रास्ता भी आसान नहीं होगा । जनसत्ता

पहली बार प्रेम करने वाली लड़की



पहली बार प्रेम करने वाली लड़की
नींद में तैयार करती है खुद को
जागती है नींद में
और नींद में ही
अम्मा.. अभी आई कहकर
निकल जाती है घर से

चटख लाल रंग लाने वाली मेहन्दी
इत्र, नेलपालिश की शीशियां
और चमकदार कागजों की तलाश के बाद
जब घर लौटती है लड़की
तब भी वह नींद में ही होती है.

हर फूल को देखकर मुस्कुराती है
पहली बार प्रेम करने वाली लड़की
और.. डायरी में रखें फूलों के बीच
नोट करती है खूब सारी कविताएं

पहली बार प्रेम करने वाली लड़की
बर्फ के गोले खाती है
बारिश में भीगती है
और.. देखते ही देखते
बन जाती है तितली

पहली बार प्रेम करने वाली लड़की
जरा-जरा सी बात पर
रोती है
और जरा सी बात पर
हंसती भी है इस कदर कि
मीठे गाढ़े चुंबन के लिए
आसमान धरती पर उतरने को
हो जाता है उतावला.

पहली बार प्रेम करने वाली लड़की
किसी से कुछ नहीं बोलती
फिर भी सबको
पता चल जाता है
उसके प्रेम के बारे में.

राजकुमार सोनी
यह फोटो श्रीनगर के मशहूर चार चिनार की है .चिनार का पेड़ अपने नैनीताल में भी है और जब इसकी पत्तियां रंग बदलती है तो देखने वाला होता है राजकुमार सोनी अपने जनसत्ता के पुराने सहयोगी है और फिलहा तहलका में छत्तीसगढ़ देख रहे है

पाकिस्तान से ज्यादा पर्दा यहाँ -फरहीन


अंबरीश कुमार
लखनऊ ,मार्च । औरते चाहे यहाँ की हो या पाकिस्तान की कोई बहुत फर्क नहीं है उनमे , पकिस्तान से ज्यादा पर्दा या बुरका तो यहाँ दिखता है । यह बात सार्क देशों के लेखकों के सम्मलेन में पकिस्तान से आई लेखिका फरहीन चौधरी ने कही जो अपनी कहानियों के चलते काई बार विवादों से भी घिरी। पाकिस्तान के मौजूदा समाज और उसमे औरतों की स्थिति पर जनसत्ता से बात करते हुए फरहीन चौधरी ने कहा -जयपुर के बाद फिर यहाँ आने पर भी मुझे महसूस हो रहा है कि पाकिस्तान में औरतो की आजादी को लेकर काफी गलतफहमी है। गांवों के इलाकों को छोड़ दे तो शहरी इलाकों में लड़कियां उसी तरह रहती है जैसे भारत में और ऐसा ही पहनावा । मै जिस तरह यहाँ बिना सिर ढके सलवार कुरते में यहाँ आपके सामने हूँ उसी तरह वहां भी रहती हूँ ।
कट्टरपंथी ताकतों का ऐसा कोई दबाव नहीं है । पकिस्तान के मशहूर स्कूलों की श्रृंखला मसलन बिकन हाउस से लेकर सिटी स्कूल में लड़के लडकिय साथ पढ़ते है । कुछ लड़कियां तो इतनी आजाद ख्याल है कि लड़कों के साथ ही सुट्टा लागती है । यह आजादी ही तो है कि आज पाकिस्तान में प्रेम विवाह का प्रचलन काफी ज्यादा बढ़ गया ।
पाकिस्तान में अमेरिका को लेकर आम लोगों का क्या रुख है ? फरहीन का जवाब था -बहुत नाराजगी है ,माना जा रहा है कि पश्चिम की ये तकते देश को तोडना चाहती है। भारत में इस्लाम तो हजार साल रहा और सभी मिलजुल कर रहे पर ब्रिटेन के आते ही सबकुछ टूटने लगा इससे तो साफ़ है पश्चिम की ताकते क्या करना चाहती है । उनसे लड़ने में रानी लक्ष्मी बाई से लेकर बेगम हजरत महल की जो भूमिका रही वह उस दौर की मजहबी एकता की भी मिसाल है । ये हमारे साझा इतिहास की लड़ाकू नाइका है । हमें इन पर फक्र है । उस पश्चिम को लेकर पाकिस्तान के लोगों में नाराजगी है । पढाई लिखाई का जिक्र करते हुए फरहीन ने आगे कहा - वैसे तो मेरी पढ़ाई पूरे पाकिस्तान में घूम घूम कर हुई है । पर ज्यादातर समय हम लोगों का लाहौर में बीता है । लाहौर शहर सांस्कृतिक गतविधियों का केंद्र रहा है । मेरे वालिद पाकिस्तान के एक बैंक में नौकरी करते थे और उनका ट्रांसफर होता रहता था जिससे समूचा पकिस्तान घूम लिया ।
लिखना कैसे शुरू हुआ यह पूछे जाने पर कहा -मेरा बचपन का नाम शहाबा था जिसे मैंने सन 2000 में मैंने बदल कर फरहीन कर लिया ।जब मैं क्लास चार में थी तब उस समय स्कूल में घर से चार लाइने लिख कर लाने को कहा । तो घर आकार मैंने ऐसे चार लाइन को जोड़ कर एक नज्म तैयार की जिसे सुन कर स्कूल की टीचर को विश्वास नहीं हुआ की उन चार लाइनों को मैंने लिखा है इस बात की तस्दीक टीचर ने घर पर फोन कर अम्मी से पूछा क्या यह अपने लिखी है तो अम्मी ने कहा नहीं । मेरी उन चार लिखी लाइनों को टीचरों ने दुरुस्त कर एक ऐसी नज्म तैयार की जिसने उस छोटी सी उम्र में मुझे एक नया मुकाम दिलाया । बाद में इंटर स्कूल प्रतियोगिता में भी उस नज्म ने खूब धूम मचाई । आगे चल कर मैंने कायदे आजम, इस्लामाबाद से इंटरनेशनल रिलेशन में पढ़ाई की । मैंने कई छोटी छोटी कहानियां भी लिखी हैं जैसे उस पार, आधा सच और दीमक । इन कहानियों के ऊपर कई पाकिस्तान में डाक्यूमेंटरी बनी हैं । उस पर में मैंने जंग के हालात के दृश्य को उतारा है । फिर मैंने एक छोटी कहानी लिखी आधा सच जिसमें मैंने एक वेश्या की त्रासदी को दिखाया गया । जिसमे वेश्या का किरदार निभा रही औरत कहती है - मैं तो एक किराए का मकान हूं यहां कौन मुश्तकील रहेगा ।ऎसी कहानियों को लेकर मुझ पर आरोप लगे और विरोध भी हुआ । कुछ लोगों ने मुझे लेडी मंटो तक कहां ।
हिन्दुस्तानी साहित्यकारों को पकिस्तान में पढ़ा जाता है तो उन्होंने कहा कि जनाब उनके बिना तो हमारी जिंदगी अधूरी है । अमृता प्रीतम कि तो मैं दीवानी हूं । और उनको तो मैं तब से पढ़ रही हूं जब मैं नौंवी क्लास में थी। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकतें हैं की मैं उनकी कितनी दीवानी हूं।
इसी क्रम उन्होंने बताया कि मैंने बहते पत्थर नामक एक कार्यक्रम मैंने पाकिस्तान रेडियो के लिया भी किया है । पाकिस्तान सिने जगत की मशहूर हस्ती कासिम पाशा के साथ 1991 में मैंने एक सीरियल भी किया था । इसी तरह मैंने यूएनडीपी के लिए औरतों के विषय पर एक सीरियल बनाया था माटी की गुडिया । मेरी ज्यादातर कहानियां और डाक्युमेंटरी पिक्चरें सामाजिक मुद्दों पर लिखा अथवा बनाई है ।
जनसत्ता

Sunday, March 18, 2012

कहाँ खो गया वह शहर



अंबरीश कुमार
बहुत पुरानी बात है .तबके मद्रास में जयप्रकाश नारायण के सहयोगी और स्वतंत्रता सेनानी शोभाकांत दास का मेहमान था उनका घर का पता ५९ गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट इसलिए भी याद हो गया क्योकि वह दक्षिण का घर जैसा हो गया था .वे जड़ी बूटियों के बड़े कारोबारी रहे है और आज भी गाँधीवादी जीवन गुजारते है .मद्रास में बिहार भवन बनवाया जो बिहार से वेलोर अस्पताल में इलाज के लिए जाने वालों के लिए मद्रास शहर के बीच रुकने की आरामदायक जगह है .शोभाकांत जी जेपी और रामनाथ गोयनका व करूणानिधि के बीच के पुल भी थे .आजादी की लड़ाई के समय वे सरगुजा जेल से फरार हुए तो जब जेपी जेल में रहे तो वे बच्चे थे और खाने के साथ क्रांतिकारियों का पत्र भी पहुंचाते थे .रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनपर लिखा भी है .वे दक्षिण से हिंदी में एक पत्रिका निकालना चाहते थे और मुझे उसकी जिम्मेदारी सँभालने को कहा .उसी सिलसिले में बातचीत करने मद्रास में था ,पर समझ नहीं पा रहा था क्या करना चाहिए .अपना संगठन ,साथी सब लखनऊ में थे और कोई फैसला नहीं हो प् रहा था .बहरहाल शोभाकांत जी ने निर्देश दिया कि पत्रिका निकले या न निकले पहले आप दक्षिण घूमे और समझे .उन्होंने अपने सचिव को इस सिलसिले में सारा इंतजाम करने को कहा और शुरुआत पांडिचेरी से हुई .
वाहिनी की एक तेजतर्रार कार्यकर्त्ता भी साथ थी जिन्हें उस पत्रिका से जुड़ना था और उनसे कुछ ही घंटों में झगडा होना एक परंपरा हो गई थी .वाहिनी वाले उस दौर में सिर्फ क्रांति का इंतजार करते थे और चर्चा का बड़ा हिस्सा भी उसी में गुजर जाता था .खैर अपना घुमाने का शौक था इसलिए मुझे अच्छा लगा .पांडिचेरी में अरविंदो आश्रम की सारी व्यवस्था होती थी और उसके एक ट्रस्टी शोभाकांत जी के मित्र थे और उन्होंने समुन्द्र के किनारे बने गेस्ट हाउस का वह अतिथि गृह आवंटित कराया जो मुख्य भवन से अलग समुन्द्र से लगा हुआ रेस्तरां के ऊपर था .शायद काटेज गेस्ट हाउस कहते है .पिछली बार जिस गेस्ट हाउस में रुके उसमे तो बहुत पाबन्दी थी और लगता था कि गाँधी जी के वर्धा आश्रम में रुके हों .पर साफ़ सफाई और अनुशासन से सविता बहुत खुश थी .और उन्हें लाइन लग कर दूध ,ब्रेड और दलिया जैसा खाना भी बहुत अच्छा लगता था .पर मुझे बाहर जाकर खाना खाना पड़ता था .
पर पहली बार जिस काटेज गेस्ट हाउस में रुके थे वहां इस तरह की कोई पाबन्दी नहीं थ और रेस्तरा में सबकुछ खाने को मिल जाता था .कमरे भी बड़े जिसकी बड़ी बड़ी खिडकिय जिससे समुन्द्र और सामने की वह सड़क दिखती जो समुन्द्र तट के किनारे किनारे चलती थी .कुछ साल पहले तक फ़्रांस का उपनिवेश रहे पांडिचेरी में बहुत कम लोग दिखते थे .रात दास बजे तक तो सन्नाटा .याद है देर रात तक समुन्द्र के सामने बैठे रहे और फिर तब समुन्द्र से लगे हुए रेस्तरां में काफी पीने चले गए .तब वहा रेट ज्यादा थी पर जब पिछली बार गए तो काले पत्थर डाल दिए गए रहे .पर तब के पांडिचेरी और अबके पांडिचेरी में बहुत फर्क नजर आया .अब तो कई बार रात एक बजे तक इस सड़क पर मेला लगा रहता है .अस्सी के दशक वाला वह 'शहर' जिसे मै पिछली बार तलाश रहा था वह नहीं मिला .अरविंदो आश्रम में माँ का चमत्कार यह भी है कि तरह तरह के फूल और वनस्पतियाँ यही दिखती है और ऎसी शांति की कुछ देर के लिए हर कोई ध्यान में चला जाता है .पर समुन्द्र तट पर आते ही बदला हुआ माहौल इस शहर की पुरानी छवि को तोड़ देता है .छोटे बेटे अंबर की उसी तट की एक फोटो बार बार सब याद दिलाती है .

Saturday, March 17, 2012

महुआ फूले सारा गाँव





अंबरीश कुमार
सरस मूर्तियों के लिए मशहूर खजुराहो के आसपास महुआ के फूलों को झड़ते देखना एक अलग तरह का अनुभव है । ये फूल आदिवासी समाज के लिए रोजीरोटी का जरिया भी है । इन फूलो की मादकता और सामाजिक सरोकार खजुराहो के आसपास के गांवों में महसूस किया जा सकता है । मध्य प्रदेश का मशहूर पर्यटन स्थल खजुराहो आज भी एक गाँव जैसा नजर आता है । खजुराहो से बहार निकलते ही महुआ के फूलों की मादकता महसूस की जा सकती है । अप्रैल से मई के शुरुआती दिनों तक यह अंचल महुआ के फूलों से गुलजार नजर आता है । खजुराहो से टीकमगढ़ या पन्ना किसी तरफ निकले महुआ के पेड़ों की कतार मिलती है जिनके पेड़ों से महुआ का फूल झरता नजर आता है । पेड़ पर महुआ का जो फूल सफ़ेद नजर आता है जमीन पर गिरते ही गुलाबी हो जाता है जिसे हाथ में लेते ही उसकी खुसबू भीतर तक समां जाती है । सुबह के समय जब खजुराहो के मंदिरों के सामने खड़े महुआ के पेड़ों के नीचे एक व्यक्ती को झाड़ू से इन फूलों का इकठ्ठा करते देखा तो वहा आए विदेशी सैलानी भी खड़े हो गए और उन्होंने भी महुआ के फूलों को हाथ में लेकर अपने गाइड से इनका बोटनिकल नाम पूछना शुरू किया । उत्सुकता बढ़ी तो हरी घास से लेकर सीमेंट की सड़क से महुआ के फूल इकठ्ठा करने वाले नंदलाल से बात की । जिसके मुताबिक खजुराहो के मंदिर परिसर में महुआ के जितने भी पेड़ है फूलो के आने से पहले उनका ठेका दे दिया जाता है । नंदलाल ने यह ठेका लिया था और रोज करीब तीस चालीस किलों वह फूल बटोर कर ले जाता है जिसे सुखाने के बाद करीब बारह रुपए किलों के भाव बेच दिया जाता है ।
खजुराहो के बाद जब किशनगढ़ के आदिवादी इलाकों में आगे बढे तो गांव गांव में महुआ के फूलों से लदे पेड़ तो नजर आए ही हर घर की छत पर सूखते हुए महुआ के फूल भी दिखे । बुंदेलखंड में किशनगढ़ का पहाड़ी रास्ता जंगलों से होकर जाता है पर उत्तर प्रदेश के हिस्से में पड़ने वाले बुंदेलखंड के कई जिलों के मुकाबले यह हराभरा और ताल तालाब वाला अंचल है । शायद इसलिए यह बचा हुआ है क्योकि इस तरफ प्राकृतिक संसाधनों की उस तरह लूट नही हुई है जैसे उत्तर प्रदेश के हिस्से में पड़ने वाले बुंदेलखंड की हुई है । इस तरफ के रास्तों के किनारे नीम ,इमली ,पीपल ,आम और महुआ जैसे पेड़ है तो छतरपुर पार कर महोबा से आगे बढ़ते ही बबूल ही बबूल नजर आते है । खैर इन पेड़ों में भी महुआ का स्थान आदिवासी समाज में सबसे ऊपर है । यह पेड़ बच्चों ,बूढों से लेकर मवेशियों तक को भाता है । पिपरिया गांव से बाहर लगे महुआ के पेड़ के नीचे गाय से लेकर बकरियों के झुंड महुआ के फूल चबाते नजर आए । गांव के भीतर पहुँचने पर नंग धडंग एक छोटा बच्चा एक कटोरे में महुआ के सूखे फूलों के बदले सौदागर से तरबूज का टुकड़ा लेता नजर आया । यह ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का दूसरा पहलू देखने को मिला । बचपन में गांव में सेर की माप वाले बर्तन से हाट बाजार में तरकारी से लेकर लकठा ,बताशा खरीदते देखा था । पिपरिया गांव में बच्चे से लेकर बूढ़े तक मोटर साइकिल पर आए इस सौदागर को घेरे हुए थे ।वह तरबूज साथ लिए था जिसके चलते गांव भर के बच्चे अपने अपने घर से कटोरे और भगोने में सूखा महुआ लेकर सौदा कर रहे थे । कोई मोलभाव नही जितना महुआ उतने वजन का तरबूज कट कर वह सौदागर दे देता था ।
यह सब देख कर हैरानी भी हुई और जिज्ञासा भी । इस गांव में पानी का कोई श्रोत नहीं था और एक फसल मुश्किल से हो पाती थी । करीब सत्तर अस्सी परिवार वाले इस गांव के लोगो की आमदनी का जरिया बरसात के जरिए हो जाने वाली एक फसल और नरेगा ,मनरेगा योजना में काम के बदले होने वाली आमदनी के साथ महुआ के फुल भी थे ।
चार पांच सदस्यों एक परिवार के मुखिया और औरत को मजदूरी से साल भर में पांच छह हजार रुपए मिल जाते है । इन्द्र देवता मेहरबान हुए चार पांच बोरा अन्न भी हो जाता है । पर अप्रैल -मई के दौरान समूचा घर आसपास के महुआ के फूलों को इकठ्ठा करके सुखाता है जिससे चार पांच हजार की अतिरिक्त आमदनी हो जाती है । इस अर्थ व्यवस्था में ऐसे गांव वालों के लिए महुआ कितना उपयोगी है ,इसका अंदाजा लगाया जा सकता है । गांव के किनारे से लेकर जंगल में लगे महुआ के पेड़ों का गांव के समाज ने बंटवारा भी कर रखा है । जिसका पेड़ पर हक़ है वाही उस पेड़ से फूल भी बटोरेगा । दिन में बारह बजे से तीन चार बजे शाम तक महुआ के फूल बिने जाते है क्योकि शाम ढलते ही जंगली जानवरों का खतरा बढ़ जाता है । आसपास के जिलों में भी महुआ किसानो की अर्थ व्यवस्था का अभिन्न अंग बना हुआ है । पर इस दिशा में न तो कोई वैज्ञानिक पहल हुई है और न ही बाजार के लिए कोई सरकारी प्रयास । छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में इमली ठीक इसी तरह आदिवासी समाज की अर्थ व्यवस्था मजबूत किए हुए है । पर वहा इमली को लेकर सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाये बनाकर आदिवासियों को वाजिब दाम दिलाने का प्रयास किया था । बस्तर की इमली दक्षिण भारत के चारों राज्यों में पसंद की जाती है । अगर महुआ को लेकर बागवानी विशेषग्य और सरकार कुछ नई पहल कर नए उत्पाद के साथ बाजार की व्यवस्था कर दे तो सूखे और भूखे बुंदेलखंड में महुआ आदिवासियों का जीवन भी बदल सकता है ।

जनसत्ता से साभार

यह पाकिस्तान की 'लेडी मंटों ' है



अंबरीश कुमार
कई बार साहित्य से कटना बड़ी समस्या पैदा कर देता है .आज ही सुबह अपने संपादक का फोन आया कि लखनऊ में सार्क देशों के साहित्यकारों का बड़ा कार्यक्रम हो रहा है और जनसत्ता में कोई खबर नहीं है .खास बात यह भी है इस कार्यक्रम में सार्क देशो के जिन लेखकों को सम्मानित किया गया था उनमे जनसत्ता के संपादक ओम थानवी भी शामिल थे और वे कल से लखनऊ में थे .मैंने कहा अभी आता हूँ और फिर तहलका के हिमांशु वाजपेयी को तलाशा और कहा क्लार्क्स होटल पहुंचे इस साहित्य के कार्यक्रम की कवरेज में मदद करे .अपना साहित्य का ज्ञान बहुत कम है .खाई वहां पहुंचे तो कुछ पुराने लोग मिले जिसमे राम किशोर भी थे ..चाय पर नेपाल की बड़ी साहित्यकार से मुलाकात हुई तो फिर लाहौर के पास का सूफी परम्परा वाला मलंग नृत्य देख कर हैरान रह गया .ढोल पर पांच नौजवान जो काले कपडे और बड़े बालों के साथ पैर में घुंघरू बांध नृत्य कर रहे थे उसे देखना भी गजब का अनुभव था ..इस नृत्य के बाद मेरी मुलाकार पाकिस्तान की युवा लेखिका और कई धारावाहिक की निदेशिका फरहीन से हुई .वे अपनी कहानियों और किरदारों की बोल्डनेस के बारे में बताने लगी .तो मैंने कहा ,हम मंटों के प्रशंसक है .इस पर उनका जवाब था ,मुझे पाकिस्तान में लेडी मंटों कहा जाता है .फिर उन्होंने जेल में लड़कियों को लेकर अपने लिखे का ब्यौरा दिया .फिर तय हुआ शाम को विस्तार से बातचीत होगी .पर फरहीन का 'लेडी मंटों' वाला वाक्य देर तक गूंजता रहा .
फरहीन फेसबुक प़र है और उन्होंने कहा .मै दोस्ती का पैगाम भेजती हूँ .बातचीत हो जाए तो फिर और ..

Wednesday, March 14, 2012

समुद्र तट पर शिल्प का नगर


अंबरीश कुमार
मद्रास से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर फ़्रांसिसी संस्कृति का केंद्र रही पांडिचेरी जाने का एक रास्ता पल्लव साम्राज्य के प्राचीन अवशेषों के किनारे से भी जाता है। समुद्र तट से लगे सर्पिल रास्ते से गुजरते हुए पल्लव साम्राज्य का बंदरगाह और द्रविण शैली के मंदिरों की बुनियाद माना जाने वाला महाबलीपुरम यात्रियों के लिए पहला पडाव है। खूबसूरत समुद्री तटों और द्रविण शैली के पुराने मंदिरों का यह अनोखा संगम है। महाबलीपुरम होते हुए पांडिचेरी पहुंचना इतिहास में वापस जाने जैसा है। जहां दो अलग संस्कृतियों को देखा जा सकता है। महाबलीपुरम को यहां मामल्ल्पुरम कहा जाता है। समुद्र तट के किनारे सातवीं शताब्दी के इन मंदिरों को देखकर वास्तुकला व मूर्तिकला के किसी खुले विश्वविद्यालय में पहुंचाने का भ्रम होता है। करीब आठ वर्गमीटर में अलग अलग संकायों की तरह मंदिरों के अवशेष यहां नजर आते हैं। समुद्र तट के किनारे खड़ा तट मंदिर आज भी समुंदरी लहरों और हवाओं का वैसे ही मुकाबला कर रहा है जैसे करीब 13 सौ साल पहले कर रहा था।महाबलीपुरम से करीब पांच किलोमीटर पहले ही विभिन्न पर्यटन एजेंसियों के बीच रिसार्ट की श्रृंखला शुरू हो जाती है। हालांकि करीब 20 किलोमीटर पहले ही गोल्डेन बीच रिसार्ट बनाया गया है। सुनहरी रेत के इस किनारे पर हर समय कई फिल्मों की शूटिंग देखि जा सकती है। गोल्डेन बीच रिसार्ट को एक उद्योगपति ने पर्यटन के लिहाज से विकसित किया है। जहां हर तरह की इमारतें प्राचीन वास्तुकला के मुताबिक बनाई गई हैं। कुल मिलकर यह एक बड़ा सा खूबसूरत फिल्म स्टूडियो नजर आता है। इसके बाद आइडियल बीच रिसार्ट, गोल्डेन सन बीच रिसार्ट, सिल्वर सैंड और भारतीय पर्यटन विभाग का टेम्पल वे बीच रिसार्ट पड़ता है। कभी मछुवारों के गांव रहें इस इलाके को आज पूरी तरह पर्यटन केंद्र में बदल दिया गया है। इस बीच रिसार्ट की एक खासियत जरूर है कि यह पर्यटकों को समुद्र के पड़ोस में ज्यादा से ज्यादा गुजारने की पूरी सुविधा मुहैया करा देते हैं। बीच रिसार्ट की श्रृंखला समुद्र के मंदिर के पास तक चलती है जिसके चलते देर रात तक पर्यटकों की भीड़ चहलकदमी करती नजर आती है। समुद्र के किनारे तक कैशुरिना के जंगल नजर आते हैं। हालांकि यह जंगल पर्यटन विभाग ने खड़े किए हैं। कैशुरिना के दो दो पेड़ों के बीच प्लास्टिक के जाली वाले लंबे लंबे झूले डाले गए हैं। जिन पर बच्चों और जोड़ों को हर समय देखा जा सकता है। एक तरफ परंपरागत नाव कड़ी है तो दूसरी तरफ शिव मंदिर या तट मंदिर तक कुकरमुत्ते की शक्ल में छोटी छोटी झोपड़ियां बनाई गई हैं। रेतीली जमीन पर समुद्री लताओं का जालसा नजर आता है। जिनमें बैगनी फूल लगे हैं। महाबलीपुरम अब सिर्फ पल्लव साम्राज्य के प्रचीनन अवशेषों का स्मारक नहीं है बल्कि खूबसूरत समुद्री तटों के लिए भी पहचाना जाने लगा है यह बात अलग अलग है कि यहां परंपरागत मेहराबी शक्ल वाले तट नजर नहीं आते। लेकिन कैशोरिना- नारियल और नागफनी के पेड़ों से सटे इस समुद्री तट कि खूबसूरती अलग किस्म की है। वैसे भी यहां समुद्र का किनारा तेज लहरों से शोर में डूबा रहता है। लहरों के साथ साथ आम तौर पर हवा में भई तेजी रहती है। जबकि गोवा और कोवलम (केरल) के ज्यादा तर समुद्री तट शांत प्रकृति के नजर आते हैं। तेज बारिश, उत्तेजित समुद्र और कडकती बिजली के साए में समुद्र तट का मंदिर अद्भुत नजर आता है।
कला, संस्कृत और प्रकृति का अनोखा संगम यहीं पर देखा जा सकता है। महाबलीपुरम के इन मंदिरों को द्रविण शैली की नीव मन जाता है। इस शैली के दो तरह के स्मारक देखे जा सकते हैं। जिनमें एक तरफ स्तंभ मंडप हैं तो दूसरी तरफ रथ जैसे एकाश्म मंदिर। यहां चट्टानों को तराशकर मंडपों में तब्दील किया गया है। कहा जाता है की कभी यहां समुद्र के किनारे ग्रेनाईट का एक बड़ा पर्वत था। जो एक किलोमीटर लम्बा, अध किलोमीटर चौड़ा और करीब टिस मीटर ऊँचा था इसके दक्षिण में 75 मीटर लम्बा और 14 मीटर ऊँचा एक दूसरा पर्वत था। इन दोनों चट्टानों को काटकर द्रविण शैली के ऐतिहासिक मंदिर की नीवं डाली गई थी। इन मंदिरों में तरह तरह के धार्मिक मिथकों को तराशा गया है।
जनसत्ता

वादा किया है ,नौजवानों को बेरोजगारी भत्ता देंगे -अखिलेश यादव


अंबरीश कुमार
लखनऊ , मार्च । समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव जब समाजवादी क्रांति रथ लेकर निकले तो सबसे ज्यादा भीड़ नौजवानों की उमड़ी थी । यह वह भीड़ थी जिसे लेकर हर दल का अलग अलग आकलन था पर नतीजों ने बताया कि नौजवानाखिलेश यादव के साथ थे । पर कल से सत्ता संभालने जा रहे अखिलेश यादव की प्राथमिकता पर भी यही नौजवान है । कल से मुख्यमंत्री पद संभालने जा रहे अखिलेश यादव ने आज यहाँ कहा -प्रदेश में बेरोजगार नौजवान काफी है है पर इतनी बड़ी संख्या में होंगे यह उम्मीद नहीं थी । खासकर जिस तरह रोजगार दफ्तर पर पंजीकरण करने वालों की भीड़ उमड़ी है । पर हमने घोषणा पत्र में जो वादा किया है वह पूरा किया जाएगा ।
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में दो वादे ऐसे किए जो जंगल में आग की तरह फ़ैल गए और राजनैतिक दलों को अपना एजंडा बदलना पड़ा ।
इनमे एक वादा बेरोजगारी भत्ता का था तो दूसरा छात्रों को लैपटाप देने का । पार्टी के घोषणा पत्र में कहा गया है -सभी सरकारी सेवाओं में भारती की उम्र ३५ साल होगी और ३५ वर्ष की उम्र पूरा कर चुके जवान लेकिन बेरोजगार नौजवान के लिए बेरोजगारी भत्ते की व्यवस्था होगी जो बारह हजार रुपए सालाना होगी । दूसरा वादा लैपटाप का था जो बारहवी पास छात्र के लिए था जबकि हाई स्कूल पास छात्र के लिए टैबलेट की बात कही गई थी । यह पूछने पर कि इतनी बड़ी संख्या में लैपटाप ,टैबलेट और बेरोजगारी भत्ता देना क्या संभव होगा इस पर अखिलेश यादव ने जनसत्ता से कहा ,जब पत्थरों पर हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा सकते है तो जिससे नई पीढी का भविष्य बनना हो उसपर क्यों नहीं । हमने जो वादा किया है उसे पूरा करने का हर संभव प्रयास होगा ।
चुनाव में जो समर्थन मिला उसकी मुख्य वजह क्या रही ? इसपर जवाब था ,हमर साढ़े चार साल का संघर्ष और लोगों का भरोसा की सिर्फ हम ही सत्ता को बदल सकते है । हमने साढ़े चार साल तक लगातार संघर्ष किया । हमारे कार्यकर्ताओं को बुरी तरह प्रताड़ित किया गया । आंदोलनों के दौरान पुलिस ने बेरहमी से पिटाई की और बड़ी संख्या में हमारे कार्यकर्त्ता जेल भेज दिए गए । इस संघर्र्ष के चलते ही आम नौजवान हमारी साथ खड़ा होता गया ।
समाजवादी धारा से से कैसे प्रभावित हुए ? इसपर अखिलेश यादव का जवाब था -बचपन से जो माहौल मिला उसका असर पड़ा और फिर जनेश्वर मिश्र ने प्रेरित किया । नेताजी ने मेरी मुलाकात जब जनेश्वर मिश्र से कराई तो उन्होंने तभी कह दिया था कि मै राजनीती ही करूँगा । फिर लोहिया को पढ़ा और उससे बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ । यह मेरा सौभाग्य है कि मै लोकसभा में लोहिया के क्षेत्र से चुना गया था । दूसरा बड़ा सौभाग्य यह था कि जब पहली बार १९९९ में कन्नौज से चुनाव लड़ा तो खुद जनेश्वर मिश्र मेरा नामांकन कराने आए थे । राजनीति का क ख तो मैंने तभी जनेश्वर मिश्र से सीखा । उन्हें देखकर न सिर्फ बोलना सीखा बल्कि बहुत कुछ ऐसा भी सीखा जो राजनीति में आज भी बहुत काम आता है । समाजवाद क्या होता है सही मायनों में उनसे ही सीखा । जब पहली बार क्रांति रथ लेकर उत्तर प्रदेश के दौरे पर निकला तो जनेश्वर मिश्र ने ही हरी झंडी दी थी ।
अखिलेश यादव उन लोगों में से है जो आज भी लाल टोपी पहनते है और लोहिया का नारा देते है । किसी कांग्रेसी के सर पर कभी भी गाँधी टोपी नजर नहीं आएगी पर अखिलेश यादव समाजवादी चोले में उस पार्टी को लैपटाप तक पहुंचा चुके है जिसकी पहचान कुछ साल पहले तक लाठी से हुआ करती थी ।
अखिलेश यादव ने आज यहां उद्योगपतियों को प्रदेश में कानून व्यवस्था की अनुकूल स्थिति और प्रदेशवासियों को सभी चुनावी वायदे पूरे करने का भरोसा दिलाया। यादव ने कहा हम प्रदेश को खुशहाली के रास्ते पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और समाजवादी पार्टी की नई सरकार प्रदेश को प्रगति के पथ पर ले जानेवाले निर्णय लेने में हिचकेगी नहीं। उन्होने कहा कि मुख्यमंत्री का पद शासन-सत्ता के लिए नहीं है बल्कि जनता की सेवा करने का अवसर है और इसे पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ निभाऊंगा । अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि समाजवादी पार्टी की उनकी सरकार में नए और अनुभवी दोनो ही लोगों का तालमेल होगा। मंत्रिमण्डल छोटा होगा और इसमें हर वर्ग का प्रतिनिधित्व होगा। उन्होने कहा कि बेकारी भत्ता देने का वायदा अवश्य पूरा किया जाएगा।
जनसत्ता

Tuesday, March 13, 2012

नीलगिरी की खुशबू में नीला कैनवस


सविता वर्मा
नीले रंग का कैनवस है नीलगिरी की पहाड़ियां इस पर बदलते हुए बहुरंगी लैंडस्केप उकेरे हुए हैं चाहे कुन्नूर हो या कोत्तागिरी या फिर नीलगिरी जिले का मुख्यालय ऊटी, लगातार बहते हुए लैंडस्केपो को अपने आगोश में समेटते नजर आते है। एक तरफ जंगली फूलों की सैकड़ों किस्में और दूसरी तरफ चाय बागान के हरित विस्तार और इनकी रखवाली करते नजर आते हैं यूकीलिप्टस और देवदार दरख्त ऊटी के नार्थ लेख रोड से अगर बोटेनिकल गार्डेन की पहाड़ियों पर नजर डालें तो हर पांच दस मिनट में बदल जाने वाला एक मनोरम दृश्य दिखता है। यह बदलाव लाते हैं यूकीलिप्टस और देवदार के दरख्तों को घेरे हुए बादल. नीलगिरी की पहाड़ियां सिर्फ रंगों की खूबसूरती ही नहीं समेटे है, इसमें यूकीलिप्टस (नीलगिरी) की ख़ुशबू भी बसी है। जिसमें यह छोटा सा पहाड़ी शहर डूबा रहता है कहीं भी जाएं रेलवे स्टेशन, रेस्तरां, झील या फिर दूर किसी पहाड़ों पर नीलगिरी की ख़ुशबू साथ नहीं छोड़ती। शहर के भीतर जगह जगह पर यूकिलिप्टस का तेल निकलने का लघु उपयोग फैला हुआ है कहीं कहीं इसकी ख़ुशबू को बदबू में भी बदल देता है।
नीलगिरी को आमतौर पर 'नीला गिरी' कहा जाता है। यह नाम पहाड़ियों और पेड़ पौधों की की सघनता से पैदा होने वाली नीली धुंध की वजह से रखा गया था।
ऐसा कहा जाता है कि करीब 850 साल पुराना है पर नीले रंग की चमक आज भी ताजा है। ऊटी इस जिले का मुख्यालय है जो दक्षिण भारत के सबसे खूबसूरत और देश के चंद अच्छे पहाड़ी शहरों में गिना जाता है। इस पहाड़ी शहर को विकसित करने का काम 1819 में कोयम्बतूर के कलेक्टर जान सुलिवान ने किया था। सबसे पहले 1823 में यहां झील बनाने का काम शुरू हुआ। प्राकृतिक झरने के पानी को इकठ्ठा करके उसे झील में तब्दील करने के काम में तीन साल लगे, इस झील का पानी इतना साफ था कि 1877 तक ऊटी के निवासी इसी को पीने के काम में लाते थे। ऊटी में नवधनाढय के पर्यटकों के लिए और मौजूदा पर्यटन संस्कृति के लिहाजा से बहुत आकर्षण है। गोल्फ और रेस कोर्स, घुड़सवारी, उम्दा किस्म के होटल और क्लब हैं। लेकिन ऊटी का असली सौंदर्य बागानों और जंगली फूलों में हैं। झील, अभयारण्य सीढ़ीनुमा खेतों के हरित विस्तार ही ऊटी का असली सौंदर्य है।
हालांकि अब यहां भी उत्तर भारत की 'हिल स्टेशन संस्कृति' पाँव फैलती जा रही है। खासकर कश्मीर, पंजाब, असम,आदि में हिंसक घटनाएं बढ़ने के बाद देशी पर्यटकों का तांता दक्षिण भारत की तरफ बढ़ा है। और गर्मियों में सबसे ज्यादा असर ऊटी को झेलना पड़ रहा है। अभी तक ऊटी को गर्मियों में शुरू होने वाले मशहूर फ्लावर शो का इंतजार रहता था। पर अब यह शो शहर वालों को खलने लगा है। वजह है पर्यटकों की बेतहासा बढती भीड़। करीब दो दिन चलने वाली इस शो के दौरान ऊटी शहर में तिल धरने की जगह नहीं रहती। फ्लावर शो देखने वालों की संख्या कभी कभी ऊटी की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा हो जाती है। और उनके विदा होने के बाद ऊटी की सड़कें और पार्क कूड़ा घर जैसे नजर आते हैं। पर्यटकों की बढती भीड़ से नीलगिरी में प्रदूषण का नया खतरा पैदा हो जा रहा है। जिसे लेकर नागरिक काफी चिंतित हैं। पिछले महीने ऊटी में पर्यावरण प्रदूषण पर एक प्रदर्शनी लगाई गई। इसका समय फ्लावर शो के दौरान ही रखा गया था। ताकि बाहर के लोगों को भी इसका पता चले , हालांकि काफी पहले से ही यहां नीलगिरी बचाओ अभियान चल रहा है। नाराजगी की खास वजह पर्यटकों के नाम पर फैलते जा रहे बेतरतीब निर्माण और उससे जुडी गतिविधियाँ हैं।
नीलगिरी की पहाड़ियां हिम रेखा में नहीं आती गर्मियों में तापमान 25 डिग्री से ऊपर नहीं जाता और रात में तो यह 10 डिग्री तक गिर जाता है। ज्यादातर सैलानी दक्षिण भारतीय हिल स्टेशन होने के कारण तापमान के बारे में भ्रमित होकर आते हैं कि यहां सर्दी ज्यादा नहीं होगी, पर यहां आकर गर्म कपडे खरीदने पड़ते हैं। अगर तेज बौछार पड़ने लगे तो तापमान और ज्यादा गिर जाता है। और यहां बरसात कब होने लगेगी कहा नहीं जा सकता। ऊटी सुन्दर है तो ऊटी पहुंचाने के दोनों रास्ते भी सुन्दर हैं। अगर बंगलूर, मैसूर होते हुए मुदमुलाई अभयारण्य के बीच से निकली सड़क के जरिए यहां पहुंचे तो एक अलग ही अनुभव मिलेगा। एक हजार मीटर कि ऊंचाई और 321 वर्ग किलोमीटर में बेस इस अभयारण्य से शेर, चीते, भेडिए, जंगली बिल्ली, बड़ी गिलहरी, हाथी और तरह तरह के सांप है। लेकिन हाथियों का जमावड़ा अक्सर नजर आता है जो कभी कभी कार या बस के सामने भी जम जाते हैं। इस अभयारण्य के बीच में एलिफैंट कैंप है जहां पालतू हाथी नजर आएँगे। मैसूर से ऊटी की सड़क यात्रा भी कभी भूली नहीं जा सकती। सड़क के दोनों तरफ पहाड़ियों के अदभुत दृश्य नजर आते हैं। दूर तक फैली नीली पहाड़ियां तराशी हुई लगती हैं। इसकी वजह है फैले हुए चाय बागान, जो पहाड़ियों को एक गोल तराश दे देते है। सड़क के दोनों ओर काफी घने पेड़ लगे हैं जो सूरज की रोशनी सड़क तक नहीं पहुंचने देते। सड़क के दोनों ओर सुन्दर पहाड़ियां है। ऊटी पहुंचाने का दूसरा रास्ता कोयम्बतूर से है। वह एक दम फर्क तरह का है। कोयम्बतूर से मट्टूप्लायम पहुंचते ही ऊटी कि पहाड़ियां नजर आंए लगती हैं। मैदानी इलाके में ही कुछ किलोमीटर का रास्ता केरल की हरियाली जैसा है जो जंगलों के बीच से गुजरता है। जंगल में नारियल, खजूर, और ताड़ के अलावा कई खूबसूरत जंगली पौधे नजर आते हैं। पर दूर तक फैले हुए नारियल और ताड़ के पेड़ों की सघनता मोहक है। मट्टूप्लायम से ऊटी तक मांडटेन रेल भी चलती है। यहां से पहाड़ियों कि शुरुवात हो जाती है।
कुन्नूर पहुंचते पहुंचते हवाओं में ठंड और यूकीलिप्टस कि खुशबू होने लगती है। यहीं से दूर तक फैले हुए चाय बागान और आलू और बंद गोभी की सीढ़ीदार खेती नजर आने लगती है। निलगिरी में आलू की कई मशहूर किस्मों का उत्पादन होता है और यहां की मुख्य नकदी फसल भी है। कुन्नूर करीब 13 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ क़स्बा है जिसकी जनसँख्या पचास हजार के आसपास है। जो लोग ऊटी की भीडभाड से बचना चाहते हैं वे यहीं रुक जाते हैं क्योंकि यह ऊटी के मुकाबले काफी शांत है। ऊटी में दर्शनीय स्थलों में मुख्य रूप से डोडाबेट्टा चोटी, कथाटी झरना, कट्टी ब्यू पॉइंट, झील बोटनिकल गार्डेन, सबसे पुराने हैं। यहां का बोटनिकल गार्डन और बच्चों का लेक गार्डन है जिनमें से झील और बोटनिकल गार्डन सबसे पुराने हैं। यहां का बोटनिकल गार्डन 1847 में बनाया गया था जिसमें आज कई दुर्लभ किस्म के फूल पौधे नजर आते हैं। बोटनिकल गार्डन मैदान से शुरू होकर पहाड़ी पर ख़त्म होता है। जिसके बीच बीच में दुर्लभ पौधों और बहुरंगी फूलों का गलीचा नजर आता है। यह बात अलग है कि ज्यादातर फूलों में खुशबू नहीं है।
(बहुत पहले जनसत्ता में प्रकाशित लेख )