Saturday, January 2, 2016

अपनी जमीन ही नसीब हुई अरविंद उप्रेती को

अंबरीश कुमार अरविंद उप्रेती के जाने की खबर से सन्न रह गया हूं .भीतर से डरा दिया दिया उनके की जाने की खबर ने .वे तो साथ के थे .हम प्याला हम निवाला थे .कुछ महीने पहले दो दिन साथ थे तो लंबी चर्चा हुई थी घर परिवार गाँव को लेकर . उनका अपने पौड़ी स्थित गांव से बहुत लगाव थे .वे वही से आए और अपनी वही जमीन उन्हें नसीब हुई . खबर पच्चीस साल से ज्यादा का संबंध रहा .वे एक अच्छे संपादक थे .बिना किसी अहंकार के बहुत कुछ सिखाया भी .वे कोई साहित्यकार या कवि नहीं थे शांत किस्म के बहुत ही इंट्रोवर्ड किस्म का व्यक्तित्व था .कई तरह की परेशानियों से गुजर रहे थे पर किसी से कुछ कहते नहीं .जब भी दिल्ली आता कोई और हो न हो अरविंद साथ रहते .जब रायपुर में इंडियन एक्सप्रेस ज्वाइन करने जा रहा था तो साथ गए भी बस्तर तक .रम्मू भय्या से मिलवाने के लिये आए थे जिनके साथ वे जबलपुर में काम कर चुके थे .खाने पीने का शौक रहा .पिछली बार दो दिन देहरादून से मंसूरी तक साथ थे .देहरादून स्टेशन आ गए थे लेने और फिर छोड़ने भी आए .दो पराठे और सब्जी बंधवा कर लाये .मंसूरी में मै कार्यशाला में थे तो वे नीचे उतर कर गाँव की तरफ चले गए .कुछ समय पहले बहन गुजर गई थी इसलिए उससे संबंधित दस्तावेज आदि जमा कराने के लिये देहरादून में रहते .बेटे की नौकरी को लेकर परेशान रहते .पर पहाड़ के गांव से मोह था इसलिए कहते जनसत्ता एपार्टमेंट का फ़्लैट बेच कर अब गाँव में रहूँगा .बेटी जाब में आ चुकी थे इसलिए वे उसकी तरफ से निश्चिंत भी रहते .मुझे समझ नहीं आता वे अकेले कैसे देहरादून और पौढ़ी में रहते .पूछता तो बेफिक्र होकर कहते ,कौन दिल्ली में है ही .रिटायर होने के बाद का अकेलापन भी कई बार तोड़ता है .वे जनसत्ता एपार्टमेंट में रहते पर बहुत कम लोगों से संबंध रहा .मै आता तो उनके घर जाता .दो तीन साल पहले घर पर दावत दी तो उनको टोका भी खानपान को लेकर .खाने में फैट जरुरत से ज्यादा था .कोई परहेज नहीं .बाद में सुगर की भी समस्या हो गई पर खानपान अनियमित ही रहता .देहरादून में में कैसे खाना होता है यह पूछने पर बताया था कि नास्ता वे करते नहीं सीधे दाल चावल आदि बना लेते है .यह फिर रात में बाहर से खाना लाकर खाते है .एक्सप्रेस यूनियन में चुनाव हुआ हिंसा हुई वे अपनी हिफाजत में सबसे आगे रहे .अपनी प्रतिबद्धता कभी नहीं बदली और न जीवन शैली .शुक्रवार शुरू किया तो अरविंद से कहा कि वे एपार्टमेंट में ही रहते है तो संपादकीय विभाग का काम संभाले .वेतन भी ठीक ठाक देने की पेशकश हुई .उप्रेती का जवाब था ,छोडो यार बहुत हो गई नौकरी अब मौज करनी है .बेटे की नौकरी के लिये जरुर कहते .एक अंग्रेजी अख़बार में बात भी हुई पर उसे रास न आया .यह चिंता उन्हें जरुर परेशान करती .पर किसी से कोई व्यथा नहीं बताते .याद है कैम्पटी फाल के डाक बंगले में रुके तो वे ही गए खाने आदि का इंतजाम करने .फिर देर तक बैठे और शमशाद बेगम और सुरय्या आदि के गाने सुनते रहे .वे बीच बीच में बाहर जाते झरने की तरफ .बोले यह जगह बहुत अच्छी है यहां दोबारा आऊंगा .पिछली बार एपार्टमेंट स्थित मेरे फ़्लैट में आए और देर तक बैठे .उनसे कहा था ,भाई ये गुटका छोड़ दे .कुछ चेकअप आदि भी करा लिया करे पर वे बेफिक्र थे .कहा -जबतक रहेंगे ठीक से रहेंगे जब चले जाएंगे तो फिर क्या चिंता रहेगी .अभी मंगलेश जी का फोन आया बताया कि परसों ही मुलाकात हुई थी .फिर शंभुनाथ शुक्ल का फोन आया बोले आपके फेसबुक से फोटो ली तो मेरा जवाब था ,अरविंद उप्रेती की तो शायद कोई फोटो मिले भी नहीं .उनका कोई मेल अकाउंट नहीं था फेसबुक तो बहुत आगे की बात है .बीते तीस अगस्त को मैंने उनकी बहुत सी फोटो ली थी कुछ लोक कवि बल्ली सिंह चीमा के साथ तो कुछ अलग .कुछ फोटो ब्लाग पर दे रहा हूं