Tuesday, August 8, 2017

मोर्चे पर डटा है ' भारत छोडो ' आंदोलन का सिपाही


अंबरीश कुमार मुंबई .भारत छोडो आंदोलन का एक सिपाही आज भी मोर्चे पर डटा हुआ है । ये हैं दिग्गज समाजवादी जीजी पारीख जो वर्ष 1942 में भारत छोडो आंदोलन में भाग लेंने की वजह से दस महीने तक वर्ली की अस्थाई जेल में रहे । वे इस समय 93 वर्ष के हैं और समाजवादी आंदोलन का दिया जलाए हुए है ।वे न कभी चुनाव लड़े और न कोई शासकीय पद लिया । दिग्गज समाजवादी जीजी पारीख से पनवेल के युसूफ मेहर अली सेंटर में जो बातचीत हुई थी उसके अंश- सवाल -आप किसी प्रेरणा से भारत छोडो आंदोलन से जुड़े ?- यह उस समय का देश का माहौल था । लोग आजादी की बात करते थे ।जेल जाने की बात करते थे ।इस सबका असर मेरे ऊपर भी पड़ा ।गांधी और कांग्रेस की हवा बह रही थी जिसका असर मेरे घर पर भी पड़ा ।शुरुआत कहा से हुई ?एआईसीसी का मुंबई में भारत छोडो आंदोलन का जो सेशन हुआ उसमे एक वालंटियर के रूप में मै भी शामिल हुआ था ।अन्य नेताओं के साथ महात्मा गाँधी मंच पर थे ।उनके भाषण से प्रभावित हुआ और फिर इस आंदोलन का हिस्सा बन गया । समाजवादियों की कई बार एकजुटता की कोशिश हुई ,कई बार बिखराव हुआ ।आप इसे कैसे देखते है ?-मै सोशलिस्ट पार्टी में हमेशा विभाजन के खिलाफ रहा ।इस मामले में डा राम मनोहर लोहिया से भी सहमत नहीं था ।हमें जोड़ना चाहिए तोडना नहीं । महाराष्ट्र में लम्बे समय से है यहां की राजनीति में शिवसेना के उदय को किस तरह देखते है ? मै खुद गुजरात से हूँ पर पचास साठ के दशक में मुंबई के कल कारखानों में जिस तरह मराठी लोगों की उपेक्षा हुई उसी से यह सब शुरू हुआ ।जो पहल समाजवादियों को करनी चाहिए थी उसे बाल ठाकरे ने किया और वे कामयाब भी हुए ।नौकरी में जब स्थानीय लोगों की हिस्सेदारी नहीं होगी तो यह सब होगा । इस युसूफ मेहर अली सेंटर में अस्पताल है ,स्कूल है लड़कियों का छात्रावास है और बड़ी संख्या में स्टाफ है ,इसका खर्च कैसे निकलता है ?-इन सब जनहित के कामो में काफी पैसा लगता है कुछ हमारे अपने संसाधनों से मिलता है तो ज्यादा हिस्सा जनता से मांगता हूँ ।हर साल करीब दो करोड़ का खर्च आता है जो मांग कर इकठ्ठा करता हूँ । समाजवादियों की नई पहल से क्या उम्मीद है ? जिस तरह लोगों ने यहां आकर अपनी बात रखी और समाजवादी आंदोलन के लिए समय देने का संकल्प लिया है उससे अभी भी बहुत उम्मीद है ।हमने कई बदलाव देखे है और फिर बदलाव होगा । (डा. जीजी पारिख को कई तरह से लोग जानते हैं, सन 42 के भारत छोडो आंदोलन में दस महीने तक जेल में रहने वाले जीजी समाजवादी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गांधीवादी और पेशेवर चिकित्सक के रूप में जाने जाते है । उन्हें सबसे ज्यादा युसुफ मेहरअली सेंटर के संस्थापक के तौर पर जाना जाता है, जिसकी स्थापना उन्होंने 52 साल पहले महाराष्ट्र में रायगढ़ जिले के तारा गांव में की थी, जहां हिंदी, उर्दू तथा मराठी भाषा में चार स्कूलों का संचालन किया जा रहा है। जिनमें ढाई हजार से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। यहां ग्रामीणों के लिए निशुल्क अस्पताल चलाया जाता है। खादी ग्रामाद्योग भी स्थापित हैं। सेंटर की 11 राज्यों में शाखाएं संचालित की जा रही हैं। उन्होंने अपना अधिकतर समय रचनात्मक कार्यों मंे तथा प्राकृतिक आपदा से पीडि़त लोगों के पुनर्वास में लगाया है। लातूर, कश्मीर हो या गुजरात के कच्छ का भुकंप, दक्षिण भारत में सूनामी आई हो या उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा, जीजी के नेतृत्व में युसुफ मेहरअली सेंटर द्वारा बढ़चढ़ कर पुनर्वास का कार्य किया गया। गुजरात में सौराष्ट्र के सुरेंद्रनगर (बधवान कैंप) में गुणवंत राय पारिख का जन्म 30 दिसंबर 1924 को हुआ था। पिता स्व. श्री गणपत लाल पारिख जयपुर स्टेट के डाक्टर थे, जो बाद में राजस्थान चिकित्सा सेवाओं के डायरेक्टर बने। जीजी की माता का नाम श्रीमति विजया पारिख था, जिनके छह बच्चों में से एक जीजी थे। जीजी की सुरेंद्रनगर के विभिन्न स्कूलों में पढ़ाई हुई। स्कूल के दिनों में ही वे छात्र आंदोलन से जुड़ गए तथा 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने हिस्सेदारी की, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर 10 महीने वर्ली की अस्थाई जेल में रखा गया तथा एक महीने थाणे की जिला जेल में रहे। जीजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव महात्मा गांधी, अच्युत पटवर्धन, युसुफ मेहरअली, जयप्रकाश नारायण तथा ब्रिटेन के समाजवादियों का पड़ा। 1946 में वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए तथा श्रमिक आंदोलन और सहकारिता आंदोलन से जुड़ गए। वे छात्र कांग्रेस की मुंबई शाखा के अध्यक्ष हुए। 1949 में उनका विवाह सुश्री मंगला से हुआ, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थी। उन्होंने मृणाल गोरे, प्रमिला दंडवते के साथ मिलकर समाजवादी महिला आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। जीजी सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे। वे अशोक मेहता, नाना साहेब गोरे, मधु दंडवते के साथ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में सक्रिय रहे। 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू किए जाने के बाद 23 अक्टूबर को सोशलिस्ट पार्टी की मंुबई शाखा के अध्यक्ष होने के नाते उन्हें जाॅर्ज फर्नाडिज के साथ बड़ौदा डायनामाईट कांड में गिरफ्तार किया गया। जिसके परिणामस्वरूप वे 20 महीने पुणे की यरवादा जेल में रहे। बाद में उनका तबादला दिल्ली की तिहाड़ जेल में किया किया गया। चुनाव की घोषणा के बाद जीजी रिहा हुए। श्रीमति मंगला पारिख जी प्रमिला दंडवते के साथ 18 महीने यरवदा तथा धुले जेल में रहीं। उनकी बेटी सोनल ने 19 वर्ष की आयु में आपात काल के खिलाफ सत्याग्रह किया, जिसके चलते उन्हें चार सप्ताह मंबई की आर्थर रोड़ जेल में रखा गया। 1940 में ही राजनीति मंे प्रवेश करने साथ ही जीजी ने तय कर लिया था कि वे ना तो कभी चुनाव लड़ेंगे, न ही कोई शासकीय पद लेंगे। इस कारण उन्होंने जीवनभर तमाम बार पार्टी टिकट का प्रस्ताव मिलने के बावजूद कभी चुनाव नहीं लड़ा, न ही कोई शासकीय पद लिया। )