Saturday, July 1, 2017

तौरंगा का डाक बंगला

अंबरीश कुमार यह सवा सौ साल से भी ज्यादा पुराना है .सन 2001 में पहली बार यहां गया था .देवभोग की हीरा खदान पर इंडियन एक्सप्रेस में जो स्टोरी की थी उसपर संसद में विवाद हुआ और केंद्रीय मंत्री पटवा भी इस विवाद में फंसे .खैर इस सिलसिले में दोबारा देवभोग जाना हुआ तो एक सहयोगी पत्रकार भी साथ थी .देवभोग क्षेत्र में रुकने की कोई जगह नहीं थी और हीरा खदान क्षेत्र को देख कर गांव वालों से बात कर लौटने में देर हो चुकी थी .देवभोग पुलिस थाने को पहले ही अपने दौरे को लेकर सूचित किया जा चुका था क्योंकि यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र भी था .थाना प्रभारी का फोन बार बार आ रहा था .हम लोग उससे मिले और बताया कि कल फिर दूसरे गांव की तरफ जाना है .स्टोरी काफी संवेदनशील थी इसलिए कोई कोर कसर छोड़ने का सवाल ही नहीं था .तौरंगा के डाक बंगले पर रुकने की व्यवस्था जंगलात विभाग ने कर रखी थी पर थाना प्रभारी परेशान था .उसका कहना था रात में रुकना ठीक नहीं है .जंगली जानवरों का खतरा है तो नक्सली भी हमला कर सकते हैं .पर हमने कहा ,अब तो यहीं रुकना है .तौरंगा का डाक बंगला साल के घने जंगल से घिरा था .जब पहुंचे तो शाम हो चुकी थी .खानसामा साहू इंतजार कर रहा था क्योंकि उसे जंगलात विभाग के वायरलेस से सूचना कर दी गई थी .इस जगह कोई मोबाइल काम नहीं करता है .फोन भी नहीं था न बिजली आ रही थी .जो पानी लेकर आया वह बहुत ठंढा था पता चला बहुत पुराने कुवें का पानी है . तौरंगा का डाक बंगला परिसर भी जंगल जैसा ही था .साल के कई उंचे उंचे दरख्त से घिरे इस डाक बंगला में दो सूट थे और बीच में डाइनिंग हाल जो पीछे की तरफ से भी खुला हुआ था ,पर दरवाजा था .पीछे आम और कटहल के पेड़ के नीचे रसोई घर था जहां से धुवां निकल कर फ़ैल रहा था .एक बार बरसात हो चुकी थी जिसका असर बरक़रार था .हवा की नमी भी महसूस हो रही थी .थोड़ी ही देर में चाय और बिस्कुट वह ले आया .तब उससे बात शुरू हुई .खानसामा ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी को यह डाक बंगला बहुत पसंद आया था .वे यहां रुके थे .दोपहर के समय आए और दूसरे दिन लौटे थे .शाम के समय परिंदों की चहचहाट से डाक बंगला गुलजार था .हम लोग भी काफी देर तक बरामदे के आगे बने बगीचे में बैठे रहे .गुलाब के फूलों की खुशबू फैली हुई थी .यह बगीचा साल के पेड़ों से घिरा हुआ था .अंधेरा होते ही साहू लालटेन लेकर आया और बरामदे में टांग गया .मोबाइल में नेटवर्क नहीं था इसलिए किसी से किसी तरह का संपर्क होने का सवाल ही नहीं था .मैंने लालटेन की रौशनी में उस स्पाइरल डायरी में नोट दिन में गांव वालों से हुई बातचीत को देखना चाह पर कुछ देर बाद उसे बंद करना पड़ा .ड्राइवर के रात में सोने की व्यवस्था करने के बाद करीब आधा घंटा और बाहर बैठे पर ठंढ के चलते कमरे में जाना पड़ा .हवा भी तेज हो चुकी थी .करीब नौ बजे खानसामा ने बताया कि खाना डाइनिंग हाल में लग चुका है . डाक बंगला के खानसामा भी बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं .कड़कनाथ का स्वाद भी इन्ही खानसामा से मिला था .कुछ देर हम रसोई घर में भी रहे और खाना बनाने का तौर तरीका भी देखा .जिसपर आदिवासियों का असर बरक़रार था .पहले खड़े मसलों को देर तक भूनना फिर सिलबट्टे पर पीसना .रसोई में महुआ की पहली धार वाली मदिरा भी उपलब्ध थी जो वे अपने लिए रखे हुए थे .एक बार बार नवापारा वन्य जीव अभ्यारण्य में ठहरने पर डेक्कन हेराल्ड के साथी अमिताभ ने इसका स्वाद भी चखाया था .उनका दावा था ये किसी भी स्काच से बेह्त्ज़र होती है .खैर दिन भर की भागदौड से इतना थके हुए थे की खाना खाने बाद जो नींद आई तो सुबह पांच बजे ही उठ पाए .जबकि इतनी जल्दी बहुत कम सोना होता था .बहरहाल तौरंगा का यह डाक बंगला अद्भुत है .अब मुख्य भवन का कायाकल्प हो रहा है .कुछ महीने पहले अल्लू चौबे और राजस्थान पत्रिका के पत्रकार राज कुमार सोनी के साथ यहां फिर कुछ समय गुजारने का मौका मिला .