Sunday, August 24, 2014

महेशखान के घने जंगल में

अंबरीश कुमार महेशखान का जंगल वाकई जंगल लगता है ।इस तरह के जंगल देश में अब कम ही बचे है । रामगढ़ से करीब बारह किलोमीटर दूर इस जंगल में जाने पर पांच किलोमीटर का कच्चा पहाड़ी रास्ता घने जंगलों के बीच से गुजरता है ।यह जंगल रामगढ़ के टैगोरे टाप जिसे टाइगर टाप भी कहते है ठीक उसके पीछे तीन किलोमीटर की दूरी पर है ।महेशखान में जंगलात विभाग का डाक बंगला सौ साल से ज्यादा पुराना है ।यह डाक बंगला वर्ष 1911 में बना था । डाक बंगले के बरामदे में लगे शिलालेख से यह पता चला ।हालाँकि इस जंगल में पैदल रास्ता कुछ दशक पहले तक था जो अब चार पहिया वाहन के लिए कच्चे रास्ते में बदल चुका है पर मजबूत गाड़ी ही इसपर चल पाती है । डाक बंगले का पुराना चौकीदार प्रताप सिंह पिछले करीब तीन दशक से इस जंगल में है । यहाँ आने वाले अफसरों से लेकर जंगल के जानवरों तक के किस्से सुनाता है । महेशखान के लिए चले तो अपने साथ सविता के भाई भाभी और बच्चे भी थे । उन्हें जाना तो था काठगोदाम पर वाहन की दिक्कत होने की वजह से तय हुआ कि वही गाड़ी हमें छोड़कर उन्हें काठगोदाम स्टेशन पहुंचा देगी । महेशखान में बर्ड वाचर की कोई टीम आई हुई थी इसलिए हम लोगों के लिए ठाह्रने की व्यवस्था शाम चार बजे से थी । तीन बंबू हट बुक कराए गए थे । रामगढ़ के नए पडोसी और महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति और पूर्व पुलिस महानिदेशक विभूति नारायण राय ,भाभी जी और पुराने पडोसी विजय शंकर चतुर्वेदी भी परिवार के साथ थे । हमें पहले पहुंचना था तो रेंजर को फोन किया । कोई मिश्रा जी थे जिन्होंने कहा कि हट तो चार बजे ही मिल पाएगा क्योंकि जो लोग उसमे रुके है उनके जाने के बाद सफाई आदि में समय लगता है । साथ ही यह भी बताया कि डिनर के लिए सामान लेकर आए क्योंकि जंगल में कुछ भी नहीं मिलता है आलू तक लाने के लिए बारह किलोमीटर दूर भवाली जाना पड़ेगा । हमने बताया कि हट भले बाद में मिले पर हम बारह बजे तक जंगल में पहुँच जाएंगे । खाने का इंतजाम विजय जी के जिम्मे था वही सब तैयारी किए हुए थे । गागर से करीब पांच किलोमीटर नीचे उतरने पर बाएं तरफ महेशखन के डाक बंगले का एक बोर्ड नजर आया जिसपर दूरी चार किलोमीटर लिखी हुई थी और ड्राइवर ने गाड़ी कच्चे रास्ते पर मोड़ी तो सामने सड़क पर जंजीर लगी नजर आई और साथ ही एक चेक पोस्ट । जंगलात विभाग का गार्ड एक रजिस्टर लिए गाड़ी की खिड़की के पास पहुंचा और बोला आपने परमिट लिया है ,फिर नाम पूछा और रजिस्टर देख कर जंजीर का ताला खोल दिया और हम जंगलों के बीच आगे बढ़ गए । उत्तर से दक्षिण तक जंगलों की कई यादगार यात्रा की है जिसमे बस्तर के जंगल से लेकर केरल के वायनाड के जंगल कभी भी भूल नहीं पाता हूँ । बरसात में तो यह जंगल अद्भुत नजर आते है । खास बात यह है कि महेशखान के जंगल में जाने से एक दिन पहले शाम को इतनी बारिश हुई कि राय साहब ने फोन कर पूछा कि कल जंगल में हम अपने काटेज में तो कैद होकर नहीं रह जाएंगे । पर पहाड़ की बारिश का कोई ठिकाना नहीं होता बरसने पर आमादा हो तो कई दिन बरसती रहे वर्ना एक दो घंटे में ही आसमान साफ़ हो जाता है । और हुआ भी यही । शाम तक ही मौसम साफ़ हो चूका था । सुबह से ही सविता के भाई भाभी लौटने की तैयारी में जुटे थे जिन्हें दिल्ली जाना था । उनके दोनों बच्चे बगीचे में फल फूलों के बीच मटरगस्ती करने में जुटे थे । करीब ग्यारह बजे नीरज गाड़ी लेकर आ गया और हम महेशखान की तरफ चल पड़े । जंगल की सड़क कच्ची और उबड़ खाबड़ थी । दाहिने तरफ जंगल थे तो बाई तरफ पहाड़ । तरह तरह के पक्षियों की आवाज से बच्चों की उत्सुकता बढ़ रही थी । करीब आधा घंटा चलने के बाद ही एक बाड़े में कुछ घर और बंबू हट दिखाई पड़े तो समझ गए कि महेशखान आ गया है । गाड़ी एक बड़े से लोहे के दरवाजे के सामने खड़ी हुई तो देखा समूचा परिसर सत् आठ फुट ऊँचे तार से घिरा हुआ है । यह बाड़ा जंगली जानवरों से बचने के लिए बनाया गया था ,यह जानकारी डाक बंगले के गार्ड प्रताप सिंह ने दी जो गेट पर पहुँच गया था और सामान उतार रहा था । गेट के पास ही किचन का लाउंज रिसेप्शन जैसा नजर आ रहा था इसलिए सब वही बैठ गए । सामने घना जंगल और सिर्फ पक्षियों की आवाज । तभी दो कुत्ते भौकते हुए अपनी तरफ आगे आते दिखाई पड़े । एक सफ़ेद तो दूसरा काला । सफ़ेद वाला छोटा पामेरियन था तो दूसरा काला वाला किसी और नस्ल का । पास आकर दोनों रुक गए । दोनों बच्चे आदी और मेहुल जो इन कुत्ते के भौंकने से कुछ डरे हुए थे वे अब सहज हुए और फोटो खिंचवाने के लिए सामने आ गए । कुछ देर फोटो खींचने के बाद उन्हें विदा किया गया क्योंकि उन्हें काठगोदाम से ट्रेन पकडनी थी ।उनके जाने के बाद प्रताप सिंह ने सामान बंबू हट में रखवा दिया तो कुछ देर आराम किया गया ।थोड़ी देर बाद उठा तो लैपटाप खोला पर पता चला प्लग में बिजली तब आती है जब जेनरेटर चलता है ।कमरे में एक सीएफएल की रोशनी आ रही थी जो सौर उर्जा से चल रहा था । लैपटाप चलना नही था इसलिए बाहर आ गए और जंगल का मुआयना करने लगे ।पक्षियों की तरह तरह की आवाज गूंज रही थी ।करीब तीन बजे रामगढ़ से दूसरी गाड़ी पहुंची जिसमे विजय चतुर्वेदी और राय साहब राय साहब का परिवार था ।पता चला जंगल के रास्ते पर गाड़ी ज्यादा वजन नही ले पा रही थी इसलिए राय साहब और विजय करीब दो किलोमीटर पैदल चल कर आ रहे थे ।अब सब लोग इकठ्ठा हो गए तो किचन पर महिलाओं ने क़ज़ा कर लिया और चाय बनाई गई ।रात का खाना बनाकर लाया गया था इसलिए ज्यादा चिंता नहीं थी ।जंगल के बीच का यह इलाका सभी को पसंद आया ।विजय ने डारमैट्री को देख कर कहा जब सोलह लोग इसमें रुक सकते है और बारह लोग बंबू हट में तो अगली कार्यशाला यही पर रखी जाए ।चाय के बाद सभी परिसर से बाहर आ कर घने जंगलों की और चल पड़े ।कुछ दूर पर ही पेड़ पर आना वाच टावर था और हमें वही तक जाना भी था ।बांज चीड और देवदार के जंगल में बने वाच टावर से दूर तक का दृश्य नजर आ रहा था ।करी घंटे भर जंगल म भ्रमण के बाद हम अपने काटेज में लौट आए ।शाम ढल रही थी और अँधेरा गहरा रहा था ।हर काटेज के आगे छोटा सा आरामदा था जिसमे बांस की कुर्सियां पड़ी थी ।सविता पद्मा जी और विजय जी की पत्नी अब खाने की व्यवस्था के लिए किचन की तरफ जा चुकी थी ।पर मै ,विजय और राय साहब जंगल के सामने अपने बरामदे में बैठ चुके थे । विजय शुद्ध शाकाहारी तो है ही दूसरा भी कोई शौक नहीं रखते ।पर हम बैठे और चर्चा के साथ ब्लैक लेवल का दौर चला ।राय साहा पकिस्तान सीमा पर हुई मुठभेड़ के रोचक किस्से सुना रहे थे ।ठंढ बढ़ गई थी और बीच बीच में जंगल से जानवरों की भी आवाज आ रही थी ।कुछ देर बाद खाने का बुलावा आ गया ।विजय जी की पत्नी ने सत्तू के बहुत ही स्वादिष्ट पराठे बनाए थे और दो तरह की सब्जी भी ।खाने के आड़ कुछ देर टहलना हुआ फिर सही अपने अपने काटेज में चले गए ।देर रात एक जंगली जानवर की आवाज से नींद टूटी तो सुः प्रताप ने बताया कि तेंदुआ हमारे काटेज के सामने जंगल में कुछ दूर ही था ।इसके आलावा भौकने वाला हिरन भी लगातार आवाज कर रहा था । अगर समूचा परिसर तार से ना घिरा हो तो जानवर भीतर आ जाते ।ऊपर के डाक बंगले के आसपास बाघ आता रहता है ।बहरहाल महेशखान की यात्रा यादगार रही इसे लिखने का मौका आज रामगढ़ में भारी बरसात के बीच मिला ।कल से अपना समूचा इलाका बादलों से घिरा हुआ है ।बीच बीच में बरसात हो रही है ।इस मौसम में महेशखान का दृश्य वाकई अद्भुत होता ।

सोनांचल में जहर में बदलता भू जल और नदियों का पानी

अंबरीश कुमार देश की उर्जा राजधानी कहा जाने वाला सोनांचल यानी सिंगरौली सोनभद्र के समूचे इलाके में नदी नालों और तालाब के साथ भू जल तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है ।इसकी मुख्य वजह अन्य उद्योगों के साथ कई वजह बिजली घरों का फ्लाई ऐश कचरा है ।यह कचरा पहले रिहंद नदी और बांध में डाला गया फिर गांवों से लेकर जंगल तक फेंका गया ।इसकी वजह से इस अंचल की तीन नदियां रिहंद ,कन्हर और सोन बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है ।इसे लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछली सोलह मई को दखल भी दिया था पर दो महीने बाद भी कोई ठोस पहल की उम्मीद नजर नहीं आ रही है ।गौरतलब है कि ज्यादातर बिजली घर सरकारी क्षेत्र के है । सिंगरौली और सोनभद्र में करीब तीस हजार मेगावाट बिजली उत्पादन होता है और कई नई परियोजनाएं भी शुरू होने वाली है ।यह सभी योजनाएं इस अंचल में कोयले की भरपूर उपलब्धता की वजह से है ।यह कोयला बाकि देश के लिए भले वरदान हो पर यहां के लोगों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है ।बिजली घरों के फ्लाई ऐश की वजह से से पहले रिहंद बांध का पानी प्रदूषित हुआ तो बाद में नदियां प्रदूषित हो गई ।13 जुलाई 1954 को रिहंद बांध का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने उम्मीद जताई थी कि बिजली परियोजना के शुरू होने के बाद जो विकास होगा उससे यह अंचल स्विट्जरलैंड जैसा बन जाएगा । रोचक यह है कुछ समय पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पडोसी जिला यानी सिंगरौली की बिजली परियोजनाओं को लेकर उसे सिंगापूर में बदल जाने की उम्मीद जताई थी ।पर ना तो यह सिंगापूर बन पाया और ना हो स्विट्जरलैंड ।बल्कि यह देश के बहुत ही पिछड़े इलाके में तब्दील हो चूका है । कई नदियों और बड़े ताल तालाब के बावजूद रेणुकूट के बाजार में आज भी शाम को आंध्र प्रदेश की मछली बिकती है आसपास के पचास कोस तक के दायरे में आने वाले नदी तालाब की मछली कोई नहीं खाता क्योंकि वाज जहरीली हो चुकी है ।बिजली घरों के फ्लाई ऐश के आलावा सीमेंट और रासायनिक उद्योगों का कचरा सीधे तालाब और नदी में डालने की वजह से यह हुआ है ।कुछ उद्योगों ने फ्लाई ऐश के लिए बड़े बड़े गड्ढे भी बनाए पर वे भी रिहंद बांध के तालाब के बहुत ही पास ।इससे फ्लाई ऐश बहकर तालाब तक पहुँच जाता है । इसे लेकर कई बार जब ज्यादा प्रदूषण बढ़ने की वजह से कुछ हादसे हुए और हंगामा हुआ तो कुछ बिजली घरों का कचरा सीधे जंगलों में फेंका जाने लगा ।दूर गांवों में काम करने वाला गांधीवादी वनवासी सेवा आश्रम इस इलाके 1954 से आदिवासियों के बीच सक्रीय है और उसकी प्रयोगशाला में भू जल की जाँच समय समय पर की जाती रही है ।इसमें केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के सहयोग से जो परीक्षण हुआ उसमे पता चला कि भू जल बुरी तरह प्रदूषित हो चूका है ।भूजल में फ्लोराइड के साथ पारा मानक से बहुत ज्यादा है ।वर्ष 2011 में सोनभद्र जिले के म्योरपुर ब्लाक के रजनी टोला गाँव में भू जल में प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा बढ़ गया कि कुछ ही समय में पेट की विभिन्न बिमारियों के चलते पंद्रह बच्चों की मौत हो गई थी ।वनवासी आश्रम की संयोजक और बुजुर्ग गाँधीवादी कार्यकर्त्ता रागिनी बहन के मुताबिक सोनभद्र जिले में भू जल स्तर विषैला हो चूका है और यह बड़े हादसे की वजह भी बन सकता है ।इस जिले के तीन ब्लाक के करीब दो दर्जन गांवों के भू जल में फ्लोराइड और पारा की मात्र मानक से काफी ज्यादा पाई गई है ।इसकी वजह से बड़ी संख्या में बच्चों को हड्डी और पेट से सम्बंधित बीमारिया हो रही है । कुछ गांवों मसलन परवा कुद्वारी ,करमडांड, मंबसा ,औरादंदी ,गोबरदाहा , समथरवा और कुस्मुहा में फ्लोराइड की मात्र दस एमजी प्रति लीटर से भी ज्यादा पाई गई ।किसी में यह मानक डेढ़ एमजी से दस गुना ज्यादा थी तो किसी में पंद्रह गुना ।इससे प्रदूषण खास कर फ्लोराइड होने वाली बीमारियों का अंदाजा लगाया जा सकता है ।इसके अलावा इस अंचल के कोयले में पारा की मात्र बहुत ज्यादा पाई जाती है जिसके चलते बिजली ग्फ्हरों में कोयले के इस्तेमाल के बाद यह कचरे के रूप में नदी तालाब के बाद भू जल में चला जाता है । आठ वर्ष से लेकर साठ साल के लोगों में बारह बच्ची ,महिलाओं और सात पुरुषों में 34.3 अंश प्रति बिलियन (पीपीबी ) पाई गई जबकि इसकी सुरक्षित सीमा 5.8 पीपीबी होती है ।यह एक बानगी है सोनभद्र और सिंगरौली में प्रदूषित होते भू जल की ।सिंगरौली में में कुछ जगहों पर भू जल इतना खारा हो चूका है कि चाय बनाने में कई बार दूध भी फट जाता है ।इससे साफ़ है कि समय रहते हुए हमें जरूरी कदम उठाने होंगे ।साभार -दैनिक हिन्दुस्तान

घुट घुट कर दम तोड़ रही है पाताल गंगा

अंबरीश कुमार मुंबई से करीब सत्तर किलोमीटर दूर रायगढ़ जिले में मुंबई गोवा राजमार्ग पर हरे भरे वर्षा वन जैसे अंचल में एक नदी मिलती है जिसका नाम है पाताल गंगा । यह नदी पुणे में सहाद्री पर्वत श्रृंखला से खंडाला से कुछ दूरी पर निकलती है और कोंकण अंचल में अरब सागर के धरमतर खाड़ी में अवरा गाँव के पास समुद्र ने समा जाती है । करीब तीन दशक पहले तक यह नदी जो इस अंचल के मछुवारों के लिए वरदान बनी हुई अब अभिशाप बन गई है । अब मछुवारे मछली पकड़ने के लिए बहुत दूर जाते है और उनकी खेती भी चौपट हो गई है । कोई नदी किस तरह घुट घुट कर मरती है और किस तरह एक नदी की मौत के बाद आसपास का जीवन प्रभावित होता है यह पाताल गंगा के किनारे आकर महसूस किया जा सकता है । इसकी वजह है सत्तर के दशक में इस नदी के उद्गम स्थल पर ही कई रासायनिक और दावा बनाने वाले कारखानों का शुरू होना था । महाराष्ट्र औद्योगिक विकास मंडल ने रायगढ़ जिले के खालापुर तालुका को रासायनिक उद्योगों के लिए आरक्षित कर दिया जिसके बाद सौ से ज्यादा उद्योग इस इलाके में स्थापित किए गए । इनमे सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र की नामी कंपनियां शामिल है जो अपना रासायनिक कचरा नदी के उद्गम स्थल के पास ही पानी में डाल रही है ।इसका असर पिछले तीन दशक में यह हुआ कि नदी की मछलियां ख़त्म हो गई और करीब तीन हजार मछुवारे परिवार संकट में आ गए । मछुवारे न सिर्फ इस नदी की मछलियों पर खुद निर्भर थे बल्कि वे जरुरत के बाद बची मछलियों को बेचकर गुजारा करते थे ।अब वे इस नदी से मछली ही नहीं पकड़ पाते है क्योंकि रासायनिक कचरे की वजह से वे ख़त्म हो चुकी है । मछुवारों की जीविका इस नदी पर निर्भर थी । आपटा से आवरा खाडी के लगत तीन हजार से ज्यादा मछुवारा परिवार इसपर अपना गुजारा करते थे। इस नदी के पानी का इस्तेमाल साठ से ज्यादा गाँव के लोग करते है । पर्यावरण और खेती पर भी असर आपटा से आवरा तक की 35 हजार हेक्टर जमीन पर धान की खेती होती थी ।नदी को बचाने के आंदोलन में जुटे मदन मराठे के मुताबिक एक दौर में रावे , दादर, केलवना, दिघाटी, आवरा से लोग पीने का पानी लेन के लिए खारपाडा गांव तक नौका लेकर आते थे और उपर से आने वाला पातालगंगा का मीठा पानी ले जाकर अपना गुजारा करते थे ।पर बाद में इस नदी के तटपर बसे रासायनिक उद्योगों ने अपना असर दिखाना शुरू किया ।इनु उद्योगों से निकले रासायनिक कचरे की वजह से सन 1976 से पाताल गंगा का पानी प्रभावित होने लगा ।इसका पता तभी चला जब बड़ी संख्या में मछलियां मर गई ।यह नदी अपने उद्गम स्थल से अरब सागर तक चालीस किलोमीटर तक का ही सफ़र करती है पर इसके अथाह और मीठे पानी की वजह से बहुत अच्छी खेती इस अंचल में होती थी और जैव विविधिता भी देखने वाली थी ।पास ही एक बड़ा पक्षी विहार है जिसके पक्षी इस नदी के पानी पर निर्भर है ।धान की मुख्य फसल के अलावा करीबन दस हजार हेक्टर क्षेत्र मे बड़े पैमाने पर शाक सब्जियां उगाई जाती थी थे। गाँव मुंर्बइ के भायखला सब्जीमंडी में रोज यहां से ट्रक के ट्रक सब्जी लेकर जाते थे । इसमें भिंडी, खीरा , खरबुज, टमाटर, मिरची, करेला , लौकी, पालक मेथी आदि प्रमुख थी ।पर अब इस नदी के किनारे कुछ नहीं पैदा हो पा रहा है ।इस अंचल में काफी ज्यादा बरसात होती है इसलिए नदी से दूर के इलाकों में अभी भी शाक सब्जियों की अच्छी खेती हो जाती है ।मुंबई से गोवा सड़क से जाएं तो जगह जगह पर खीरा , तुरई ,करेला आदि का ढेर लगाए महिलाएं दिख जाएंगी ।पर नदी के आस पास यह नहीं मिलेगा । पानी का संकट चावणा जल वितरण योजना के जरिए पहले चालीस गांव को पानी मिलता था आज सिर्फ आठ गांव को पानी मिल पा रहा है ।पर यह पानी भी इतना प्रदूषित हो चूका है कि गाँव के लोगों को टीबी ,पीलिया समेत तरह तरह कि बीमारी हो रही है। धान के खेत में प्रदूषित पानी आने की वजह से दर्जनों गाँव प्रभावित हो चुके है ।इनमे नदी के किनारे बसे केलवणे, दिघाटी, बारापाडा, तारा, जीते ,दुष्मी , खारपाडा, साई, रावे , वषेणी, आवरा, गोवठणे, आपटा गुलसुदा , लाडीवली, चावणा, चावंढा आदि गांव में धान की फसल पूरी तरह चौपट हो गई है । मछुवारे अब नदी से बहुत दूर जाकर मछली पकड़ते है ।कई परिवार पलायन कर चुके है और कर करने वाले है । नदी बचाने के लिए जन आंदोलन पाताल गंगा को बचाने के लिए नब्बे के दशक से ही आंदोलन चल रहा है और इसके दबाव में कुछ ठोस कदम भी सरकार ने उठाए ।पाताल गंगा प्रदूषण निर्मूलन कृति समिति बनी गई और इस महाराष्ट्र की प्रमुख समाज सेवी मंगला बेन पारिख ने इसका नेतृत्व किया ।कुछ समय पहले उनका निधन हो गया और संतोष ठाकुर इस आंदोलन को संभाल रहे है ।संतोष ठाकुर के मुताबिक आंदोलन जारी है क्योंकि उद्योग आज भी प्रदूषित पानी नदी के उपरी स्रोत में डाल रहे है ।ख़ास बात यह है कि इस आंदोलन में सभी राजनैतिक दलों के लोग शामिल है यह बहुत महत्वपूर्ण है ।इसमें .शेतकरी कामगार पक्ष ,कांग्रेस ,भाजपा और शिवसेना भी शामिल है। वर्ना जल जंगल जमीन बचाने के ज्यादातर आंदोलन से कांग्रेस और भाजपा विकास के नाम पर दूरी बनाए रखते है ।उदाहारण है छतीसगढ़ का बस्तर अंचल जहां जंगल काट कर कारपोरेट घरानों को जमीन दिए जाने का भाजपा और कांग्रेस कंधे से कन्धा मिलकर समर्थन करते है ।ऐसे में पाताल गंगा नदी को बचाने के लिए जो राजनैतिक चेतना पनपी है वह महत्वपूर्ण है । साभार -नवभारत टाइम्स

कोंकण की बरसात में

अंबरीश कुमार तारा (रायगढ़ )। युसूफ मेहर अली सेंटर की सीमा से लगा एक बगीचा है ' गो ग्रीन ' संस्थान का जिसके अतिथि गृह में दस अगस्त को जब पहुंचा तो बरसात हो रही थी ।पता चला मुंबई में इस साल छाछठ साल का बरसात का रिकार्ड टूट गया है और फिर मुंबई से करीब सत्तर किलोमीटर दूर कोंकण के जिस अंचल में आया हूँ वह समूचा इलाका वर्षा वन जैसा है । मुझे सेंटर में हो रहे समाजवादी समागम में सुबह ग्यारह बजे पहुंचना था पर पहुंचा साढ़े बारह बजे ।हालाँकि कोशिश पूरी थी समय पर पहुँचने की पर एक चूक हुई और करीब घंटा भर समय ज्यादा लग गया । मुंबई के हासिम भाई समय पर यानी सुबह साढ़े दस बजे हवाई अड्डे लेने आ गए थे और उन्हें ही मुझे सभा स्थल तक पहुँचाना था ।वे नहीं आते तो अपने पुराने मित्र और सीएनबीसी के संपादक आलोक जोशी जिनके घर ठाह्राना था उनका ड्राइवर मुझे कुर्ला स्टेशन तक छोड़ आता और वहां से लोकल ट्रेन से पनवेल तक जाता । बरसात को देखते हुए लोकल से जाने के नाम पर ही परेशानी महसूस हो रही थी इसलिए हाशिम भाई के आने पर राहत की सांस ली ।वे भी मुंबई से बाहर कम निकलते थे इसलिए हर चौराहे पर पूछ पूछ कर चल रहे थे । पर पनवेल में हमें जिस गोवा मार्ग पर पुल के नीचे से मुड़कर जाना था वहां कोई बोर्ड नजर नहीं आया और हम करीब दस किलोमीटर आगे पहुंचे तो सड़क के दोनों तरफ का दृश्य देख कर रोमांचित हो रहे थे । पर चिंता पेट्रोल ख़त्म होने की थी और कोई पेट्रोल पंप नजर नहीं आ रहा था ।छह सात किलोमीटर बाद जब रास्ता पूछा तो पता चला हम लोनावाला पहुँचने वाले है और गोवा मार्ग तो बहुत पीछे छूट चूका है ।पेट्रोल पंप भी कुछ किलोमीटर दूर मिलेगा तभी लौट भी पाएंगे । हम हैरान पर अब कोई चारा भी नहीं था ।पर भारी बरसात में लोनावाला की हरियाली देखकर जाने का मन भी नहीं कर रहा था ।हर पहाड़ी हरीभरी और जहां हरियाली नहीं थी उन चट्टानों से पानी रिस रहा था । बादल पहाड़ों की चोटी से बहते हुए इधर उधर घूम रहे थे। समूचा माहौल ही भीगा भीगा नजर आ रहा था । खैर वापस हुए और जब गोवा मार्ग पर स्थित सेंटर में पहुंचे तो किसान नेता डा सुनीलम सभा से बाहर आए और मुझे बताया कि मुझे गो ग्रीन के अतिथि गृह में रुकना है जहां कश्मीर के एक पूर्व राज्यसभा सांसद शेख साहब भी ठहरे हुए है ।वे मुझे बांस से घिरे कच्चे रास्ते से उस जगह पहुंचा आए ।ठीक एक दिन पहले ही पहली बार सुगर की समस्या का पता चला था और सुबह लखनऊ में उसकी दावा भी ले ली थी । रास्ते के लिए सविता ने खाना दिया था जिसे लोनावाला के रास्ते में खा लिया था ।अब नींद आ रही थी पर सामान रखकर सभा में पहुंचा और भाई वैद्य ,आनंद कुमार समेत कई को सुना ।अचानक मेधा पाटकर दिखी और नमस्कार के बाद बगल की कुर्सी पर बैठ गई तो कुछ देर उनसे चर्चा हुई ।जब बैठने में दिक्कत महसूस हुई तो गेस्ट हाउस की तरफ चल दिया और कमरे में पहुँच कर सो भी गया ।अचानक तेज आवाज से नींद खुली तो खिड़की के बाहर तेज बरसात दिखी ।थकावट दूर हो गई थी और अब कैमरा लेकर बाहर आ गया ।अतिथि गृह बहुत ही साधारण था पर हरियाली और वातावरण उसे भव्य बना रहे थे । बाथरूम भी अलग था और हर जगह चप्पल उतार कर जाना पड़ता था ।नीचे एक पैंट्री किचन था पर रसोइए ने बताया कि सिर्फ काम करने वाले कर्मचारियों का सादा खाना यहां बनता है और अतिथियों यानी हमारी कोई व्यवस्था नहीं है ।मैंने उससे रोटी के लिए पूछा था क्योंकि सभा स्थल के किचन में जो खाना बन रहा था उसमे पूड़ी और चावल आदि था । मेरे लिए यह खाना मुश्किल था पर मुख्य आयोजक गुड्डी ने मेरे और सुनीलम के लिए रोटी की व्यवस्था करा दी थी ।भोजन के बाद सभी को छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की तरह यहां पर भी अपने अपने बर्तन साफ़ करने थे और सभी ने यह किया भी ।कार्यक्रम में कुछ समय गुजरने के बाद सेंटर के परिसर को देखा जो कई एकड़ में फैला हुआ था और जंगल जैसा था । ज्यादातर लोगों के रहने कि व्यवस्था तीन बड़े बड़े हाल और बंबू हट में थी । बाक़ी लोगो को बाहर ठहराया गया था ।मै अपने गेस्ट हाउस में लौटा तो नर्सरी देखने लगा ।तरह तरह के फूल पौधे और हर पौधे पर उसकी कीमत भी पड़ी थी ।डेढ़ सौ से लेकर पचास हजार रुपए वाले बोनसाई पौधे भी थे । नर्सरी तो बहुत देखी पर इतने सुरुचिपूर्ण तरीके से बनाई नर्सरी पहली बार देखी । यह एक विशाल बगीचा था जो बार बार भीग रहा था । इसका अतिथिगृह और कैंटीन खुला हुआ था जिसके एक तरफ बड़ी बरसाती लगी हुई थी तो हर स्विच बोर्ड प्लास्टिक के आवरण में था । यह सब बरसात से बचाने के लिए।कोंकण के इस अंचल में ज्यादा बरसात होती है और इसीलिए हरियाली भी देखते बनती है । रसोइयें ने बताया कि अक्सर तरह तरह के सांप घूमते हुए इधर आ जाते है जिन्हें आदिवासी लोग पकड़ कर जंगल में छोड़ देते है इन्हें मारा नहीं जाता है । रात का खाना खाकर गेस्ट हाउस पहुँचने के लिए एक साथी की मदद ली क्योंकि आंध्र था और रास्ता झाड़ियों के बीच से । रिमझिम जारी थी । भोर में जब नींद टूटी तो मुसलाधार बरसात हो रही थी ।नीचे उतरा तो कैंटीन से काली और फीकी चाय मिल गई तो बालकनी में बैठ गया । अपने रामगढ़ जैसा नजारा था । वाकई देश में ऐसी कितनी छोटी छोटी जगहें है जहां कई दिन ठहरा जा सकता है । समाजवादी समागम से शाम चार बजे एक मजदुर नेता सुरेश चिटनिश के साथ निकला वे छिंदवाड़ा की आंदोलनकारी वकील अराधना भार्गव को दादर छोड़ने जा रहे थे तो मुझे भी साथ ले लिया । मुझे शाम को निकलना जरुरी था क्योंकि दुसरे दिन सुबह नौ बजे से पहले एयरपोर्ट पहुंचना था जो सेंटर से जाना संभव नहीं था खासकर बरसात और सड़क जाम को देखते हुए । इसलिए मै भी उनके साथ चल दिया । सुरेश जार्ज फर्नांडीज से प्रभावित होकर राजनीति में आए थे और आज भी उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत मानते है ।उन्हें पता चला कि मेरा बचपन चेंबूर में गुजरा है और मुझे उस समय का सिर्फ आरके स्टूडियो और देवनार काटेज याद है तो वे मुझे बचपन में लौटा ले गए । कार रुकी तो बाई और आरके स्टूडियो था । कुछ बदला हुआ पर बहुत कुछ याद दिलाने वाला । स्कुल का रास्ता इसके सामने से होकर जाता था और रोज इसे देखता था इसलिए सब याद आ गया ।बरसात में गम बूट और बरसाती के बावजूद कई बार ठीक से भीग कर घर पहुँचता था ।साथ ही गुलमेहंदी के रंग बिरंगे फूलों वाले पौधे लेकर जिन्हें एपार्टमेंट के नीचे मिटटी में हाथ से ही लगा देता था और वे दूसरे दिन तरोताजा नजर आते थे । याद नहीं पर स्कुल के रास्ते में पड़ने वाले कई बंगलों के बाहर गुलमेहंदी के बहुत से पौधे लगे रहते थे । यादों में डूबा था तभी आलोक जोशी का फोन आ गया कि वे ड्राइवर को कहा पर भेज दे और रात में खाना कैसा लूँगा । ड्राइवर को केएम अस्पताल के बाहर बुला लिया और खाने के बारे में कहा जब समुद्र तट पर आए है तो मछली खासकर पमफ्रेट का स्वाद लेना चाहूँगा । सुरेश जी ने हमें अस्पताल के पास आलोक की गाड़ी में बैठा दिया और वे चले गए । वे कुछ साल पहले तक मुंबई की एक चाल में रहते थे अब ठाणे के एक छोटे से फ़्लैट में रहते है ।बाद में ड्राइवर मुझे समुद्र के किनारे ले गया ताकि कुछ फोटो ले सकूँ पर बरसात के चलते यह संभव नहीं हुआ और लौट कर सीएनबीसी के दफ्तर पहुंचा जहां काफी दिन बाद सीएनबीसी आवाज के मुखिया संजय पुगलिया से मुलाक़ात हुई । बातचीत हुई और कुछ देर बाद आलोक के साथ उनके घर लौटा । उन्होंने किसी कोलकोता क्लब से बंगाली ढंग से सरसों में बनी कई तरह कि मछली मंगवा ली थी । बेटकी और रोहू में नमक कुछ ज्यादा था पर स्वाद अद्भुत ।कुछ और सामिष व्यंजन नमिता ने बनाए थे वे और स्वादिष्ट थे । बारहवी मंजिल पर आलोक का फ़्लैट है और तेज हवा आती रहती है ।बरसात के मौसम में ठंड इतनी थी कि पंखे में भी ठंड लग रही थी । मुंबई की दिनचर्या बहुत व्यस्त होती है इसलिए ग्यारह बजे सोने गया तो कमरे से सामने दूर समुंद्र के किनारे की लाईट भी दिख रही थी ।