Thursday, May 30, 2019

ब्रिगेडियर जानसन की पीली कोठी

अंबरीश कुमार वर्ष 1890 के आसपास ब्रिगेडियर जानसन कुमायूं के रामगढ़ में आ बसे .शौकीन मिजाज जानसन को प्रकृति से लगाव था वर्ना काठगोदाम से अल्मोड़ा के पैदल रास्ते पर घोड़े से करीब पचास किलोमीटर का रास्ता तय कर इतनी उंचाई पर न आते .उन्होंने बहुत शानदार कोठी उस समय बनवाई जो आज भी खड़ी है और ग्वालियर के सिंधिया परिवार के पास है .इस कोठी में राजमाता सिंधिया समेत उनके परिवार के सभी सदस्य सत्तर अस्सी के दशक तक आते रहे .उनके साथ गांधी परिवार भी छुट्टियां बिताने इधर आता .संजय गांधी इसी परिसर में परिंदों का शिकार करते .पर यह कोठी बनती उजडती भी रही . ब्रिगेडियर जानसन ने बड़े शौक से यह कोठी बनवाई .आज भी समूचे रामगढ़ में इसके फायर प्लेस की डिजाइन की तारीफ़ होती है .अपने कैप्टन साहब एक बार बर्फ में ऐसे फंसे कि नीचे के रास्ते पर जाना मुश्किल हो गया तो एक रात इसी कोठी में गुजारी .उन्होंने बताया कि बाहर बर्फ गिर रही थी और वे भीतर के कमरें में फायर प्लेस के सामने बैठ गए .ओवर कोट से लेकर मफलर स्वेटर सब लादे हुए थे .पर आधे घंटे बाद वे सिर्फ पैंट शर्ट में आ गए .ऐसा फायर प्लेस जिससे भीतर जरा सा भी धुआं नहीं रुकता .हालांकि अब इस कोठी का रखरखाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता . जब यह कोठी बनी थी तो बहुत कम घर आसपास में थे .इसके जैसा तो कोई था ही नहीं .पर ब्रिगेडियर जानसन ने दो दशक के भीतर ही इसे ब्रिटिश सेना के एक अफसर लिंकन को बेच दी .जिसके बाद यह लिंकन स्टेट कहलाई .लिंकन ने इसे सजाया और संवारा .इसे ' एप्पल गर्थ ' का नाम दिया गया .उन्होंने ब्रिटेन से सेब की करीब सौ प्रजातियों के सेब अपने 410 एकड़ के फार्म में लगा दिए .इनमें कुछ प्रजातियां थी 'ब्यूटी आफ बाथ ,विंटर बनाना ,किंग डेविड और न्यूटन आदि .रामगढ़ अगर आज कुमायूं की फल पट्टी बना हुआ है तो उसका ज्यादा श्रेय लिंकन को भी जाता है . पर वर्ष 1930 में लिंकन को भी भारत छोड़ना पड़ा और उहोने मध्य प्रदेश के महाराजा अजय गढ़ को सेब का यह बड़ा बगीचा और कोठी बेच दी .महाराजा अजय गढ़ से सिंघिया परिवार ने साठ के दशक में यह आर्चिड और कोठी ले ली .सिंधिया ने इसका नाम वृंदावन आर्चिड रखा .पर उसी दौर में सीलिंग के चलते सरकार ने 320 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर ली .अब नब्बे एकड़ जमीन बची जिसके बीच में आज भी यह कोठी मौजूद है .अब यह सिंधिया के पारिवारिक ट्रस्ट के हाथ में है .और जैसे ट्रस्ट चलते हैं वैसे ही यह भी चल रहा है .इस कोठी के कई किस्से कहानियां भी हैं .एक दौर में शाम होते ही इस कोठी की रौनक बढ़ जाती थी .दिन में आसपास के घने जंगल में लोग शिकार करते और रात में महफ़िल जमती .

Wednesday, May 29, 2019

कैम्पटी जल प्रपात का मोनाल डाक बंगला

अंबरीश कुमार यह जंगलात विभाग का मोनाल डाक बंगला है . मोनाल उत्तराखंड का राज्य पक्षी और नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी है जिसके नाम पर यह डाक बंगला समर्पित है .कुछ साल पहले जब मंसूरी के कांदिखाल गया था राष्ट्र सेवा दल के एक शिविर में भाग लेने के लिए तो एनएपीएम के संयोजक जबर सिंह ने मुझे जंगलात विभाग के डाक बंगले में ठहराया था .मैंने उनसे कहा था कि मुझे कैम्पटी जल प्रपात के सामने ठहरना है .साथ में जनसत्ता के समाचार संपादक अरविंद उप्रेती भी थे देहरादून पहुंचा तो जबर सिंह ने बताया कि लोक गायक बल्ली सिंह चीमा को भी आपके साथ इधर आना है .चीमा का मशहूर गीत ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के ,आंदोलनों में काफी गाया जाता है .उन्हें साथ लेकर चला .कुछ देर मंसूरी में चाय के लिए रुके फिर इस डाक बंगले आ गए .दो सूट का यह डाक बंगला भीतर से बहुत साफ सुथरा था और एक आलमारी पुस्तकों से भरी थी .किसी डाक बंगले में पुस्तकालय हो यह बहुत कम देखा है .पता चला इस अंचल की डीएफओ कोई मोहतरमा हैं जिन्हें पढने का शौक है जिसके चलते उन्होंने यह व्यवस्था की .यह बहुत अच्छा लगा .रात में बरसात हुई और हम शमशाद बेगम को सुनते रहे और सामने झरने की आवाज भी सम्मोहित कर रही थी .बहरहाल अब उस पक्षी पर आते हैं जिसके नाम पर इस डाक बंगले का नामकरण किया गया है .यह मोनाल है . मोनाल को स्थानीय भाषा में ‘मन्याल” व ‘मुनाल’भी कहा जाता है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी, मसूरी, केदारनाथ, पिथौरागढ़, टिहरी, बदरीनाथ, रामनगर, पौड़ी और बागेश्वर के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस खूबसूरत पक्षी के दर्शन होते हैं.मोनाल नर का रंग नीला भूरा होता है एवं सिर पर तार जैसी कलगी होती है. मादा भूरे रंग की होती है. यह भोजन की खोज में पंजों से भूमि अथवा बर्फ खोदता हुआ दिखाई देता है. कंद, तने, फल-फूल के बीज तथा कीड़े-मकोड़े इसका भोजन है. मोनाल एक पहाड़ी पक्षी है और यह हिमालय के 8 से 15 हजार फिट की उंचाई पर पाया जाता है पर ठंढ और बरसात के दिनों में पहाड़ के निचले हिस्से में चला जाता है.चिंता की बात यह है कि इसकी आबादी घट रही है .जो बचे हैं वे शिकारियों की भेंट चढ़ जा रहे हैं .वैसे भी इस समय इधर के जंगलों में जो आग लगी हुई है उससे सबसे ज्यादा परेशान जंगली जानवर और पक्षी हैं .बड़ी संख्या में पक्षी इन आग के शिकार हो रहे हैं ,उनके घोसले जल रहे हैं छोटे बच्चे कहीं भाग भी नहीं सकते .जंगल की आग को लेकर कोई रणनीति काम नहीं कर रही .अंतिम फोटो मोनाल पक्षी की और उससे पहले कैम्पटी की .