Friday, October 14, 2016

अखिलेश को हाशिये पर डाला मुलायम ने

अंबरीश कुमार लखनऊ .समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने आज यहां प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी की राजनीति में हाशिये पर तो फेंक ही दिया है .मुलायम सिंह ने आज कहा कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह अभी तय नहीं .चुनाव के बाद पार्टी का संसदीय दल यह फैसला करेगा .मुलायम सिंह जब यह टिपण्णी कर रहे थे तो एक तरफ खनन के चलते चर्चा में रहने वाले गायत्री प्रजापति थे तो दूसरी ओर शिवपाल यादव .पच्चीस साल बाद पार्टी जिस रास्ते पर है उसके वास्तविक प्रतीक ये दो नेता माने जा सकते है .जिस पार्टी की नीव कभी जनेश्वर मिश्र ,बृजभूषण तिवारी ,मोहन सिंह से लेकर खुद मुलायम सिंह यादव ने डाली हो उसकी रजत जयंती मनाने की जिम्मेदारी अगर गायत्री प्रजापति को मुलायम सिंह ने सौंप दी है तो अब सबकुछ साफ़ हो चुका है .मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को अब गैर समाजवादियों को ठेके पर दे दिया है . जिसमे ताकतवर खेमा अमर सिंह ,शिवपाल यादव ,गायत्री प्रजापति और अंसारी बंधुओं का है .मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब इस पार्टी में हाशिये पर है तो समूची युवा टीम भी .अब अखिलेश यादव को अपना रास्ता तय करना है .वे या तो अमर सिंह ,शिवपाल और गायत्री गुट के आगे समर्पण कर कोयले की कोठरी में प्रवेश करे या समाजवाद का नया मुहावरा गढ़ें .अब बाईस चौबीस कैरेट वाला समाजवाद तो कही मिलेगा नहीं जो भी बचा हुआ है उसमे अखिलेश यादव से लोगों को बहुत उम्मीद है .क्योंकि उन्होंने ही मुलायम सिंह के समाजवाद की धारा मोड़ने की कोशिश की थी .बाहुबलियों के समाजवाद को हाशिये पर डाल यूपी की राजनीति में विकास का एजंडा तो सामने रख ही दिया .हो सकता कुछ को यह विकास कहीं से भी न दिखे तो यह उनकी समस्या है पर आम लोगों को कुछ न कुछ दिख्ग रहा है .सबसे बड़ी बात कि कोई उम्मीद नजर आ रही है .वह उम्मीद जो ढाई दशक की मंदिर मंडल की राजनीति में खत्म हो गई थी .पर अब रास्ता इतना आसान भी नहीं है .उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अपना दबदबा कायम करने वाली ताकतों ने पहले बहुजन समाज पार्टी को अपना निशाना बनाया फिर समाजवादी पार्टी को .क्योंकि इन्ही दोनों दलों के पाले में उत्तर प्रदेश की राजनीति सिमटी हुई थी .अब कई साल बाद अगर फिर यूपी में जय श्रीराम का नारा गूंज रहा है तो पूरी तैयारी के साथ वे आ रहे है .वे खुद को मजबूत कर रहे हैं और दलित पिछड़ों की राजनीति को कमजोर करते जा रहे हैं .फिर भी लोगों को अगर उम्मीद है तो अखिलेश यादव से ही है .पर वे इस राजनीति में कितना जोखम लेंगे यह उन्हें ही तय करना है .वे ठीक उसी मोड़ पर खड़े है जिस मोड़ पर कभी इंदिरा गांधी कांग्रेस के दिग्गजों के सामने खड़ी थी .इंदिरा गांधी में हिम्मत थी और उन्होंने नई कांग्रेस खडी कर दी .वे इस देश में अपनी जो जगह बना गई है उसे लोग याद रखते हैं .अब अखिलेश यादव के सामने बड़ी चुनौती है .साथ है विकास का एजंडा और नौजवानों की एक टीम भी तो खांटी समाजवादियों का साथ भी .अगर वे चुनौती मंजूर करते है तो नया इतिहास रच देंगे नहीं तो हाशिये पर धकेल दिए जाएंगे .फिलहाल तो मुलायम सिंह से लेकर शिवपाल तक यही चाहते भी है .