tag:blogger.com,1999:blog-1257840919358603432024-02-18T19:40:50.038-08:00विरोधUnknownnoreply@blogger.comBlogger439125tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-91099768449285399862021-06-19T20:57:00.001-07:002021-06-19T20:57:35.584-07:00 सौ साल पुराना एक कुक हाउस !<b>अंबरीश कुमार <div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIyNpRlE9trDdYiS8Jb1fZ9UoUXuEEl0MpSqRdHUnyeFK1aITKpKIXtT51TT0LSdCwnCQw754rFOYJyIwHw1_5lgR-Ux96x5lkIaa7CSdRV9fxhmjHahhxTXehyphenhyphenzvLaDyIFAMlBIUXzLU/s960/20841804_1991736667506812_8203737710598586431_n.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="540" data-original-width="960" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIyNpRlE9trDdYiS8Jb1fZ9UoUXuEEl0MpSqRdHUnyeFK1aITKpKIXtT51TT0LSdCwnCQw754rFOYJyIwHw1_5lgR-Ux96x5lkIaa7CSdRV9fxhmjHahhxTXehyphenhyphenzvLaDyIFAMlBIUXzLU/s400/20841804_1991736667506812_8203737710598586431_n.jpg"/></a></div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg52gC0cq_AzHaDTaMUt8tHTusvAmczBh4YQEBnbbPM54yM_-pwxcMkxINONf7b66cAmgA9hp2WPUOAc9yY0jjegHWor4zSo7T-dff1CzImcYRJOLBeHK75W0ZK4G_2ZEh3y2bdJkGnAAE/s516/11216794_1015909348432955_4663767427266362938_n.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="344" data-original-width="516" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg52gC0cq_AzHaDTaMUt8tHTusvAmczBh4YQEBnbbPM54yM_-pwxcMkxINONf7b66cAmgA9hp2WPUOAc9yY0jjegHWor4zSo7T-dff1CzImcYRJOLBeHK75W0ZK4G_2ZEh3y2bdJkGnAAE/s400/11216794_1015909348432955_4663767427266362938_n.jpg"/></a></div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTxTUqn2wEoe9NSjC3RRHUHo1weTFQ5NFnl7njrXCwNqO4gVQ9f2n1ZcjfJhrNOrn66gz8tKuTfcSSWWHMXnkHOJQIOlXX0g9fcZADsP22Mk3I3vHybA7k-C2looIDVtBJcHSVa6zlu8E/s865/dak.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="583" data-original-width="865" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTxTUqn2wEoe9NSjC3RRHUHo1weTFQ5NFnl7njrXCwNqO4gVQ9f2n1ZcjfJhrNOrn66gz8tKuTfcSSWWHMXnkHOJQIOlXX0g9fcZADsP22Mk3I3vHybA7k-C2looIDVtBJcHSVa6zlu8E/s400/dak.jpg"/></a></div></b>
ये कुक हाउस है .अंग्रेज इसे कुक हाउस ही कहते थे .चौकोर चिमनी जैसा निर्माण पहाड़ी पत्थरों का है .साथ में एक और छोटा सा निर्माण बाद का हुआ होगा .यह सब रसोई का हिस्सा था .अब खाना बनाने का काम नए हिस्से में ही होता है .पुराने कुक हाउस की रसोई में संभवतः लकड़ी जलाई जाती रही है इसलिए बड़ी चिमनी बनाई गई होगी .दरअसल इस रसोई में पीने और नहाने का पानी भी गर्म होता था क्योंकि तब बिजली तो होती नहीं थी और यह कुमायूं का बर्फीला इलाका रहा है .दरअसल यह सौ साल से ज्यादा पुराने रामगढ़ के डाक बंगले की रसोई है .रामगढ़ का डाक बंगला 1890 का बना है .जंगल के बीच .जंगल तो आज भी है आगे भी पीछे भी तो . गागर की पहाड़ियों से उतरे तो कई मोड़ होते हुए लगातार नीचे उतरना पड़ता है .मल्ला रामगढ़ की बाजार से ठीक पहले एक रास्ता जो नीचे की तरफ जाता है उस पर पीडब्लूडी का बदरंग सा बोर्ड लगा हुआ है जिस पर लिखा था डाक बंगला रोड .यह सड़क सिंधिया घराने के पुराने शिकारगाह से लगती हुई करीब एक किलोमीटर चलती है .आगे घाटी में उतर जाती है .सड़क के दोनों तरफ देवदार के दरख्त थे .अब तो इनकी संख्या बहुत कम हो गई है .पर पच्चीस साल पहले यह सड़क जंगल से गुजरती थी .
उमागढ़ मोड़ के पास से जो बरसाती नदी बहती है उसकी आवाज से लग रहा था कि नदी साथ साथ ही चल रही है .तब इस रास्ते पर आबादी नहीं थी .जो घर भी थे वे पहाड़ी के ऊपर और सड़क से दूर थे .इसलिए पूरा इलाका जंगल जैसा ही था .महेशखान के साथ ही जो जंगल शुरू होता है वह सतबुंगा होते हुए मुक्तेश्वर तक चला जाता है .यह वह इलाका है जहां धूप भी खुलकर खिलती है तो पानी भी तबियत से बरसता है .बर्फ के मौसम में रास्ता हफ्ता भर तक बंद हो सकता है . बताया गया कि सौ साल पहले जब घोड़े से अंग्रेज अफसर आते थे तो शिकार यहीं मिल जाता था .आज भी तीतर ,हिरन ,भालू ,तेंदुआ ,खरगोश ,जंगली सूअर ,जंगली मुर्गा आदि रात में आते रहते हैं .करीब ढाई दशक से कुछ पहले अपना भी इसमें रुकना हुआ था .नैनीताल से शायद पांच रूपये की रसीद कटी थी .जून का आखिरी हफ्ता था जब इस डाक बंगले में पहुंचे थे .बरसात में अंधेरा घिर चुका था .डाक बंगला में दो कमरे और डाइनिंग हाल था .खिड़की दरवाजे के कुछ सीसे टूटे हुए थे जिन्हें गत्ते से ढका गया था .सीलन महसूस हो रही थी ही क्योंकि काफी दिन से यह बंद था पर चादर और तकिए का कवर धुला हुआ मिल गया था .बरसात से ठंढ बढ़ गई थी इसलिए फायर प्लेस में बांज की लकड़ी का एक बड़ा लठ्ठा डाल कर जला दिया गया था .बिजली नहीं थी .लैम्प से काम चाल था .हम लोग कुछ देर इसके बरामदे में बैठे पर कुछ ठंढ महसूस हुई तो भीतर कमरे में चले आये .कमरा पर्याप्त गर्म हो चुका था इसलिए भीतर बैठना ही ठीक लगा .
तब मल्ला में बाजार जैसा कुछ नहीं था .भट्ट जी का ढाबा और दो तीन दुकाने जो शाम होते होते बंद हो जाती थी .ड्राइवर समेत हम तीन लोग थे .दो सामिष और एक निरामिष .चौकीदार को बुलाया गया .जंगल में जाते समय कुछ राशन पानी हम लेकर चलते रहे हैं .खासकर पूर्वांचल का काला नमक चावल या फिर शक्कर चीनी चावल दो किलो ,दाल अरहर आधा एक किलो .आलू टमाटर और प्याज के साथ चाय पत्ती ,चीनी और पावडर वाला दूध भी .बेंत की एक डोलची इसी सामान के लिए होती थी .कुछ फल बिस्कुट आदि के साथ .दरअसल जंगल में ज्यादातर डाक बंगले बाजार से दूर होते हैं और ताज़ी सब्जी आदि भी उनके पास कई बार नहीं होती . जंगल जंगल घूमते हुए जो अनुभव हुए उसके बाद कोई जोखम नहीं लिया जाता है .फिर यह तो जो दो तीन दूकाने थी भी उससे दो तीन मील दूर ही रहा होगा .फिर बरसात में पहाड़ी चढ़ कर कोई जल्दी कहीं जाता भी नहीं .
चौकीदार आया तो ढेर सारी खुबानी एक प्लेट में सजा कर लाया .पास पड़ोस में बड़े बड़े बाग़ भी थे .आडू खुबानी ,नाशपाती और बबूगोशा के .कुछ बगीचे सेब के भी .किंग डेविड ,फेनी और गोल्डन डेलिशियस प्रजाति के .रात के खाने के लिए पूछा तो बताया दल चावल रोटी बन जाएगी .हरी सब्जी अगर मिल गई तो ले आएगा .बगल में सात आठ घर का गांव है जिसमें लोग अपने लिए सब्जी लगते हैं और देसी मुर्गी भी पालते हैं .जो आसानी से मिल जाती है .इस डाक बंगले के आगे पहाड़ की ढलान थी तो पीछे घाटी में दूर तक जाता जंगल .परिंदों की तरह तरह की आवाज अच्छी लग रही थी .सामने जो सड़क घूमती हुई नीचे को उतर रही थी वह तल्ला रामगढ़ तक जाती फिर ऊपर नथुआखान की तरफ बढ़ जाती .
चाय आ चुकी थी जिससे कुछ फुर्ती भी आई .बाहर जाने का सवाल नहीं था क्योंकि बरसात जारी थी .चौकीदार गांव की तरफ चला गया था रात के खाने का इंतजाम करने .अब न कोई आने वाला था न जाने वाला .इसलिए डाक बंगला देखने लगे और पीछे के बरामदे से कुक हाउस को देखने निकले .बरामदे में दरवाले की खिड़की का सीसा टूटा हुआ था जिससे ठंढी हवा भीतर आ रही थी .पर पत्थर के इस कुक हाउस को देख कर हैरानी हो रही थी .फिलहाल इससे लगे बरामदे में बड़ा भगोना चूल्हे पर चढ़ा हुआ था जिसमें पानी गर्म हो रहा था . Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-40921804352544773212021-06-19T19:25:00.001-07:002021-06-19T19:25:25.291-07:00माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई यहीं से शुरू होती है<b>अंबरीश कुमार <div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghr7WknOv3rELXyK4QBOvTWo9LQtcsCXSqV6YZTaeWA1Hhv7RsnmXA_zstGytaIY1p_kuVsv3_OVPk6LE0pifKVjrFgMT-Oiu7L-lOOKvMo48c_2Lsf3NYy5ET7CmyKdjQP6fXliFiyZk/s1000/naepal.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="542" data-original-width="1000" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghr7WknOv3rELXyK4QBOvTWo9LQtcsCXSqV6YZTaeWA1Hhv7RsnmXA_zstGytaIY1p_kuVsv3_OVPk6LE0pifKVjrFgMT-Oiu7L-lOOKvMo48c_2Lsf3NYy5ET7CmyKdjQP6fXliFiyZk/s400/naepal.jpg"/></a></div></b>
माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई यहीं से शुरू होती है इसी वजह से लुक्ला एयरपोर्ट को हिमालय का प्रवेश द्वार कहा जाता है.लेकिन अगर मौसम साफ़ हो तभी .यह संयोग जल्दी होता नहीं है .अक्सर तेज हवाओं के साथ बरसात रास्ता रोक लेती है पर्वतारोहियों का .ऊपर अगर बर्फ गिर जाए तो कड़ाके की ठंढ भी .इसका अहसास इस हवाई अड्डे पर जहाज का दरवाजा खुलते ही होता है .बहुत ही खतरनाक माना जाने वाला यह हवाई अड्डा वर्ष 1960 में बनना शुरू हुआ था . हिमालय के प्रवेश द्वार पर बसा यह एयरपोर्ट विश्व का सबसे खतरनाक एयरपोर्ट है. इसका रनवे 20 मीटर चौड़ा और सिर्फ 460 मीटर लंबा है .रनवे के जो अंतरराष्ट्रीय मानक है उसके मुकाबले यह बहुत ही ज्यादा करीब 10 गुना छोटा है .पर यह तो पर्वतारोही सर एडमंड हिलेरी की जिद थी जो यह बन गया वर्ना यह बहुत मुश्किल काम था .पहले तो समस्या जमीन की थी .आसपासके किसान इसके लिए अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहते थे .फिर उबड़ खाबड़ जमीन को समतल करना आसन भी नहीं था .यहाँ तक वे मशीन भी नहीं आ सकती थी जिससे जमीन को समतल कर रनवे का रूप दिया जाए .पर एडमंड हिलेरी ने हिम्मत नहीं छोड़ी और आसपास के शेरपाओं से 2,650 अमेरिकी डॉलर में जमीन खरीदी.फिर उन्ही शेरपाओं को पैसा और शराब देकर काम कराया .काफी मशक्कत के बाद यह रनवे बना . और यह रनवे वर्ष 2001
तक कच्चा ही रहा बाद में पक्का रनवे बना .वह भी डामर वाला .
वर्ष 2008 में इसका नाम बदलकर तेनज़िंग हिलेरी एयरपोर्ट कर दिया गया. दरअसल माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई यहीं से शुरू होती है इसलिए इस एयरपोर्ट पर रोज हेलीकॉप्टर और छोटे हवाई जहाज लैंड करते हैं.दरअसल इस जगह तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है है इसलिए हर तरह का सामान छोटे जहाज से ही पहुंचता है .हवाई अड्डे का रनवे केवल हेलीकॉप्टरों और छोटे, फिक्स्ड-विंग, शॉर्ट-टेकऑफ़-एंड-लैंडिंग विमानों जैसे डी हैविलैंड कनाडा डीएचसी -6 ट्विन ओटर, डोर्नियर 228, एल -410 टर्बोलेट और पिलाटस पीसी -6 टर्बो के लिए ही ठीक माना जाता है . हवाई अड्डे की ऊंचाई 9,334 फीट (2,845 मीटर) है.पर रोचक तथ्य यह है कि यहाँ कंट्रोल टावर या राडार आदि नहीं है .आप सिर्फ पायलट के भरोसे ही रहते हैं .अगर जरा सी भी गफलत हुई तो छोटा सा जहाज दस हजार फुट नीचे चला जायेगा .और यह होता भी है .कई दुर्घटना हो चुकी है .फिर करीब अस्सी उड़ाने यहाँ से रोज संचालित होती हैं .इसके बावजूद यह दुनिया के दस सबसे ख़राब और जोखम भरे हवाई अड्डों में शामिल है .काठमांडू से अगर आप लुक्ला की तरफ उड़े तो हो सकता है मौसम साफ़ हो पर लुक्ला में तेज बरसात का भी सामना करना पड़ सकता है .यहां का मौसम तेजी से बदलता है .तेज हवाओं के साथ बरसात में जहाज हिलता डुलता और डराता हुआ उड़ता है .
वैसे भी छोटे जहाज पर मौसम का असर कुछ ज्यादा ही होता है .नब्बे के दशक में पूर्वोत्तर के दो तीन दौरे हुए .भारतीय वायुसेना का पुराना एवरो विमान जो एयर पाकेट में आते ही जोर जोर से आवाज करते हुए जब ऊपर नीचे होने लगा तो जान सूख गई .कान पकड़ा कि अब छोटे जहाज से यात्रा नहीं करूँगा पर ऐसा हुआ नहीं और फिर दर्जनों यात्रा छोटे विमानों से हुई .नेपाल में भी .
पर नेपाल की हवाई यात्राओं का अनुभव भी अदभुत रहा है .कुछ साल पहले पीपुल्स सार्क की बैठक में काठमांडू गया .
तब सार्क सम्मलेन में भाग लेने नेपाल आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से इस बार नेपाल की राजधानी काठमांडू में सुरक्षा के कुछ ज्यादा ही कड़े इंतजाम नजर आए जिसके चलते लौटते समय त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ज्यादा ही समय बैठना पड़ा तो पशुपतिनाथ मंदिर भी घूम लिए . नेपाल चैंबर में डाक्टर भीमराव अंबेडकर की एक पुस्तक का विमोचन हुआ और उसके बाद दलित मुद्दों पर हो रही चर्चा में बैठे थे .दूसरे सत्र की शुरुआत हो चुकी थी तभी ओवैश ने बताया कि ढाई बजे से शहर के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे और कब खुलेंगे कोई पता नहीं .यह सब एक दो दिन से चल रहा था और बहुत सी घरेलू उड़ाने रद्द भी की जा चुकी थी .यह जानकारी ढाई बजने से ठीक पांच मिनट पहले मिली तो होटल से सामान उठा कर टैक्सी वाले से पूछा कितनी देर लगेगी हवाई अड्डे तक पहुँचने में तो उसका जवाब था बीस मिनट से लेकर तीन घंटे तक .अपनी उड़ान साढ़े छह बजे की थी और तीन घंटे पहले पहुँचने का निर्देश दिया गया था .साथ में दीपक थे जो भक्तपुर में एक जनसभा को संबोधित कर आ रहे थे और उन्हें नेपालगंज की बस पकडनी थी तो यह तय हुआ उनके साथ ही टैक्सी से निकला जाए . रास्ता बंद होने के बावजूद ड्राइवर भीतर के रास्ते से करीब आधे घंटे में ही एयरपोर्ट पहुँचने वाला था तभी उसने बताया कि बगल में पशुपतिनाथ मंदिर है .समय था इसलिए तय हुआ मंदिर देखते हुए चलेंगे.मंदिर में एक दो फोटो लेने का प्रयास किया तो सुरक्षा गार्डों ने रोक दिया.पर मंदिर का ज्यादातर हिस्सा देख लिया गया जो पहले भी देख चूका हूँ .पीछे बहने वाली बागमती अब और प्रदूषित हो चुकी है.बहरहाल मंदिर से कुछ ही देर में हवाई अड्डे पहुँच गए जो भले ही अंतरराष्ट्रीय हो पर भारत के छोटे से छोटे हवाई अड्डे से भी ज्यादा बदहाल था.अपने यहाँ हैदराबाद मुंबई और दिल्ली का टी थ्री टर्मिनल तो बहुत दूर की बाद है. आवर्जन के बाद सुरक्षा जांच में देखा की नेपाली लोगों की लाइन भी अलग है और उनका जूता भी उतरवा कर एक्सरे मशीन से गुजारा जा रहा था .काठमांडू के बड़े होटलों के कैसीनो में नेपालियों का जाना पहले से वर्जित है .यह सब बहुत ही हैरान करने वाला लगा जहां एक छोटी सी क्रांति के बाद करीब सात सौ साल की राजशाही ख़त्म हो गई हो और हिंदू राष्ट्र पर लाल झंडा लहराने लगा हो .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-56475247125532992202021-06-19T19:22:00.001-07:002021-06-19T19:22:36.652-07:00देवदार के जंगल में एक अंग्रेज का प्रेत !<b>अंबरीश कुमार <div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-1iYYIdB26pHmpQXuPt_Wd3wJOsmkl_iXBfy2K86wCopYQM4r5Hrzjee5MTabiQbPX9epGL6hxyJB4i1doDotALeKFVYKx_2JGbwsOBUqaESo1PpxtRczBdbuUPG74oP4Ut2WzUNlRs4/s1000/FB_IMG_1623745282052.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="667" data-original-width="1000" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-1iYYIdB26pHmpQXuPt_Wd3wJOsmkl_iXBfy2K86wCopYQM4r5Hrzjee5MTabiQbPX9epGL6hxyJB4i1doDotALeKFVYKx_2JGbwsOBUqaESo1PpxtRczBdbuUPG74oP4Ut2WzUNlRs4/s400/FB_IMG_1623745282052.jpg"/></a></div></b>
यह जंगलात विभाग के डीएफओ का पुराना बंगला है .वर्ष 1888 में बना था .दो मंजिला हरे रंग से रंगी टिन की छत वाला .देखने में लगता था कि दो भवनों को जोड़ कर बनाया गया है .पत्थर का बना हुआ .भीतर देवदार की लकड़ी का काम है .चारो तरफ भी देवदार के ही दरख्त हैं .लकड़ी की सीढ़ी चढ़ कर पहली मंजिल पर पहुंचे तो रोशनदान से आती रौशनी से भीतर अंधेरा नहीं लगता .यह इमारत दूर से सैनिकों की पुरानी बैरक जैसा .वीराने में जंगल से लगा हुआ .बताते हैं इसमें एक अंग्रेज अफसर का प्रेत घूमता रहता है .पता नहीं भूत प्रेत होते भी हैं या किस्से गढ़ दिए जाते हैं .लेकिन इसी वजह से कई अफसर इस बंगले को छोड़ गए थे यह भी बताया गया .वैसे भी आसपास का माहौल बहुत ही भुतहा नजर आ रहा था .ऐसे में भूत प्रेत के किस्से और डरा ही देते हैं.यह किस्सा सुनाया डाक बंगला के चौकीदार ने .वैसे वह खुद भी जब अंधेरी रात में बगल की पहाड़ी से एक हाथ में लालटेन और दूसरे में बड़ा सा टिफिन लेकर उतरता तो किसी प्रेत की छाया जैसा ही दिखता .फिर वह डाइनिंग टेबल पर खाना लगाता और साथ किस्से भी सुनाता .रख रखाव तो इस डाक बंगला का बहुत अच्छा नहीं था पर जिस जगह यह बना था वह लोकेशन बहुत अच्छी लगी .आधा बंगला स्कूल को दे दिया गया .वजह यहां निर्माण पर रोक थी और कोई ऐसा भवन भी नहीं था जहां बच्चे पढने जाते .जाड़ों में यह पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता .पर ठंढ तो साल भर ही रहती .हमें भी एडवेंचर का शौक ठहरा सो बहुत मशक्कत के बाद यहां पहुंचे थे .कलेक्टर से परमिट बनवाया गया था वर्ना आम सैलानी यहां जल्दी नहीं आते .और आते भी तो लौट जाते क्योंकि ठहरने की कोई जगह ही नहीं थी .परमिट की वजह से अपना इंतजाम हो गया था . पर यहां पहुंचने के बाद भूत प्रेत के किस्से सुन डर भी लगा .वैसे भी भूत प्रेत लगता है पहाड़ पर ही ज्यादा बचे हैं मैदान से तो अब गायब होते जा रहे हैं .चकराता में अंग्रेजों की सैनिक छावनी 1860 में बनी थी .इसी वजह से इस इलाके में आम लोगों का आना जाना कम ही रहा .
जब बस से उतरे तो शाम भीगी हुई थी .सामने देवदार के दरख्तों से घिरी कोई इमारत थी .यह कोई बस अड्डा जैसी जगह भी नहीं थी .अपने को जाना डाक बंगला तक था .पर जंगल के साथ साथ जा रही सड़क सुनसान थी .इधर उधर देखा तो कुछ दूर पर एक बुजुर्ग दिखे .उनसे पूछा कि डाक बंगला किधर है तो जवाब दिया ,इसी सड़क पर करीब एक किलोमीटर चले जायें एक ही भवन दाहिने तरफ दिखेगा वही डाक बंगला है . ठंढ भी बढ़ रही थी और अंधेरा भी घिर रहा था .डर बरसात का था क्योंकि छाता तो लेकर आये ही नहीं थे .चकराता बस से गए थे और ज्यादा जानकारी नहीं थी .रास्ता पूछते पूछते डाक बंगला की तरफ चले तो घने देवदार की जंगलों में एक किलोमीटर से भी ज्यादा चलने पर एक पुराना बंगला नजर आया जो बंद था .बरामदे की कुर्सियों पर बैठे तभी एक बुजुर्ग सामने आए जो उसके चौकीदार और खानसामा सभी थे .खैर चाय और रात के खाने के बारे में पूछा तो जवाब मिला ,बाजार से सामान लाना होगा तभी कुछ बन पाएगा और बाजार बंद होने वाला है .बाजार क्या था दो चार दूकान जो आसपास के गांव वालों के लिए राशन से लेकर सब्जी भाजी रखते थे .अंडा मुर्गी भी मिल जाता .पर अपने लिए वह दाल चावल सब्जी रोटी के इंतजाम में लग गया .आसपास के खेतों की सब्जी मिल जाती थी .रात के खाने में सब कुछ था .डाक बंगला के रसोइये वैसे भी बहुत हुनरमंद होते हैं .और इस डाक बंगले में तो दूँ स्कूल में पढने वाले राजीव गांधी आते तो गांधी परिवार के सदस्य भी .इसलिए इंतजाम चाक चौबंद रखा जाता .
नब्बे के दशक की शुरुआत थी .घूमने फिरने के शौक के चलते चकराता का कार्यक्रम बना .जनसत्ता अख़बार की कवरेज के चलते आना जाना लगा रहता था .इसके चलते अपना घूमना फिरना काफी होता था और सुविधा भी मिल जाती थी .चकराता एक अछूती सी जगह थी तो सोचा घूमने के साथ एक यात्रा वृतांत भी लिख दिया जाएगा .जनसत्ता ब्यूरो के साथी अनिल बंसल अक्सर कहते थे कि मै जहां भी घूमने जाता हूं लौटकर उसके बारे में रविवारी जनसत्ता में लिख कर यात्रा का पैसा भी वसूल लेता हूं .कुछ हद तक यह सही माना जा सकता है क्योंकि यात्रा में बहुत ज्यादा खर्च न हो इसलिए डाक बंगला में ज्यादा रुकना होता था .चकराता में रुकने के लिए तब परमिट की जरुरत पड़ती .हरिद्वार स्थित अपने संवाददाता सुनील दत पांडेय ने परमिट वगैरह बनवा दिया क्योकि सारा इलाका सेना के अधीन है . पर यहां आने जाने का कोई साधन नहीं था .बस और फिर पैदल ही चलना पड़ा .चकराता का रास्ता तब वन वे था और कई जगह खाई देख दर भी लगता था .खैर शाम को पहुंचे तो देवदार के घने जंगल ,बर्फ से लड़ी पहाड़ियों को देख सम्मोहित थे .हरियाली ऎसी की आखे बंद होने का नाम न ले .यहाँ से शिमला का भी रास्ता है और बहुत ज्यादा दूर भी नहीं है .चकराता में तब कोई आबादी नहीं थी और न ही कोई होटल क्योकि यह इलाका सेना के अधीन है और कोई निर्माण नहीं हो सकता था .आवाज के नाम पर हवाओं से हिलते दरख्त के पत्तों की आवाज या फिर सड़क पर परेड करते सैनिकों के बूटों की आवाज .रात के अंधेरे में यह सन्नाटा डराता भी था .खैर हम डाक बंगला तक पहुंच ही गए .
नाम नहीं याद पर चौकीदार ने डाक बंगले का एक सूट खोल दिया जो ठंडा और सीलन भरा था जिसके कोने में बने फायर प्लेस में रखी लकड़ी को जलाने के साथ मेरे और सविता के लिए दो कप दार्जलिंग वाली चाय भी ले आया तो कुछ रहत मिली .ठंड और बढ़ गई थी . बाहर बरसात और धुंध से ज्यादा दूर दिख भी नहीं रहा था .यह डाक बंगला अंग्रेजों के ज़माने का था जिसका एक हिस्सा स्कूल में तब्दील हो चुका था .बाद में चौकीदार ने बताया वह भी उसी दौर से यहाँ पर है और जब राजीव गांधी देहरादून में पढ़ते थे तो छुट्टियों में यही आते और रुकते थे .डाक बंगले में बिजली नहीं थी और एक पुराने लैम्प की रौशनी में खाना खाते हुए चौकीदार से कुछ पुराने किस्से सुन रहे थे .और उस वीराने में कुछ था भी नहीं बाहर बरसात के चलते अगर निकलते भी तो घना अंधेरा .तेज हवा के साथ बरसात की तेज बूंदे टिन की छत पर गिरकर कर्कश आवाज कर रही थी .कमरे के भीतर एक कोने में भी पानी की बूंदे अपना रास्ता तलाश रही थी .चौकीदार ने भी कुछ ऐसे किस्से सुनाये कि उत्सुकता और बढ़ गई .
खाने के बाद कब नींद आई पता नहीं चला .रात में बरसात और तेज हुई .अचानक खिड़की का एक पल्ला खुल गया और तेज हवा का झोंका आया तो नींद खुल गई .अगर कभी पहाड़ पर टिन की छत वाली किसी इमारत में रुके हो तो अनुभव होगा .लगातार सरसराहट की आवाज आती रहती है जैसे बरसात हो रही हो ऊपर .दरअसल यह टिन और लकड़ी के बीच हवा के दबाव की वजह से होता है .यह पहले पता नहीं था जिससे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था .खिड़की तक गया . बाहर देवदार का दरख्त किसी आकृति की तरह नजर आ रहा था .खिड़की बंद कर दी पर नींद गायब थी .जंगलात विभाग के उस अंग्रेज अफसर के बारे में सोच रहा था जिसकी आत्मा बंगले में भटकती रहती है .पता नहीं कबतक ये आत्मा भटकेगी .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-3050985245343448832021-06-19T19:17:00.001-07:002021-06-19T19:17:23.185-07:00ऐसा भी क्या बरसना !ऐसा भी क्या बरसना !
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अंबरीश कुमार <div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiBaw5NWUANm1FDf2YSWqf5q_Ibw7H_d3UdBguJv1y8otLAlh3PA9cwsfUsLwlg0RWogThCV_vauyL0GpF-8g6WeeUu6-TWZ64bhTnuMkMrIT9JUew_BXHZFwtFR-S2MBlliRpTGhh2LI/s866/new.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="536" data-original-width="866" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiBaw5NWUANm1FDf2YSWqf5q_Ibw7H_d3UdBguJv1y8otLAlh3PA9cwsfUsLwlg0RWogThCV_vauyL0GpF-8g6WeeUu6-TWZ64bhTnuMkMrIT9JUew_BXHZFwtFR-S2MBlliRpTGhh2LI/s400/new.jpg"/></a></div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDLRZQMukK6b00al6zbo0WhjAIucKHXz715nCyMphCYyV0jEjpbZDe-_zB7oVIv-8FRJ9_7_QufnaAg41IGoEA-yXcKJDByFcqeCH4kWcAXaVobVdB31Cb0KL4EMadNgalzWjvQM_smQ8/s719/188185639_4104013729679611_8460876912119917821_n.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="540" data-original-width="719" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDLRZQMukK6b00al6zbo0WhjAIucKHXz715nCyMphCYyV0jEjpbZDe-_zB7oVIv-8FRJ9_7_QufnaAg41IGoEA-yXcKJDByFcqeCH4kWcAXaVobVdB31Cb0KL4EMadNgalzWjvQM_smQ8/s400/188185639_4104013729679611_8460876912119917821_n.jpg"/></a></div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOE5cRJJVLzyAapQZOCgSklTM_BcHDB4XoFNvgwqTXMnsOK6Tfill1FfPDvmj9g4eXPlbRBagZ1ZgKhMIVntzAIo47535BUipJQFMnKQ9US1jPTv4NWYuC1Wymca-nkOVoIPaApbM29-E/s924/20210618_072755.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="400" data-original-height="693" data-original-width="924" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOE5cRJJVLzyAapQZOCgSklTM_BcHDB4XoFNvgwqTXMnsOK6Tfill1FfPDvmj9g4eXPlbRBagZ1ZgKhMIVntzAIo47535BUipJQFMnKQ9US1jPTv4NWYuC1Wymca-nkOVoIPaApbM29-E/s400/20210618_072755.jpg"/></a></div></b>
गांव में तीन दिन से लगातार बरसात .तीस घंटे से एक मिनट के लिए भी नहीं थमी यह बरसात .बाहर निकलना तो दूर बरामदे से भी बाहर जाना मुश्किल .बरसात कभी तेज होती है तो कभी धीमी होती है पर रुक नहीं रही .सब जगह पानी पानी .बिजली भी चली गई है .भवाली की तरफ जाना था पर तीन दिन से टलता ही जा रहा है .जाड़ों में इस बार न बर्फ गिरी न ढंग की बरसात हुई .इसलिए यह बरसात जरुरी भी थी .पहाड़ की बरसात हो या मैदान की आपको बांध देती है .पर बरसात के सैलानी भी कुछ अलग किस्म के होते हैं .लखनऊ के एक साथी आ रहे हैं .पहले उन्होंने महेशखान के जंगल में डाक बंगले का एक सूट बुक कराया पर प्रयास असफल रहा .बताया गया डाक बंगला दस पंद्रह दिन तक बुक है .किलबरी का जंगलात विभाग का डाक बंगला मिल सकता है .बरसात में कच्चे रास्ते वाला महेशखान का डाक बंगला भी न मिले तो समझ लेना चाहिए कि बरसात के शौकीन सैलानी भी काफी संख्या में हैं .
मैदान में ऐसी बरसात अब कम ही होती है .साठ के दशक से सत्तर के दशक के बीच गांव से लेकर मुंबई जैसे महानगर की बरसात देखी है .गर्मी की छुट्टियों में गांव आते तो आंधी पानी सब मिलता .बरसात बरसात में गोरखपुर के बडहल गंज से एक डेढ़ मील की दूरी पर गांव जाना बहुत अच्छा लगता था .रानी का बाग़ से होते हुए .खेतों में पानी भरा रहता था .बाग़ में आम की देर से पकने वाली प्रजातियाँ के साथ जामुन का आकर्षण भी होता .शाम होते ही मेढकों की आवाज गूंजने लगती .गांव में बिजली नहीं आई थी लालटेन और ढिबरी का दौर थे .रात के खाने में भूसे से निकाला गया पका हुआ आम और रोटी .रोटी कुछ अलग होती क्योंकि जौ मिली हुई होती . गांव की बरसात में मिटटी पर नंगे पैर चलना होता तो मुंबई में गम बूट पहन कर .
याद आती है साठ के दशक की मुंबई की वह बरसात जिसमें स्कूल से भीगते हुए लौटना होता .मुंबई के चेंबूर में भाभा एटामिक एनर्जी की कालोनी में पहली मंजिल पर फ़्लैट था .पापा भाभा एटामिक एनर्जी में इंजीनियर थे और सेंटर की बस से सुबह दफ्तर जाते थे .पर उससे पहले मुझे स्कूल भेज दिया जाता था या यूं कहें तो ठेल दिया जाता .बरसात में .मुंबई की बरसात में सिर्फ छाते से काम कहां चलता .घर से स्कूल के रास्ते में दो ठीहे पड़ते जिसे लेकर उत्सुकता रहती .एक राजकपूर का देवनार काटेज तो दूसरा आरके स्टूडियो .स्टूडियों से ही कुछ दूर पर गोल्फ का मैदान होता था .रेन कोट ,गम बूट और छोटा सा छाता भी .सर पर कैप .डकबैक की बरसाती में जेब भी होती और घुटने से नीचे तक कवर कर देती .गम बूट के बिना तो सड़क पर चल ही नहीं सकते क्योंकि करीब आधा फुट तक पानी वेग से बहता रहता .पर अपने को न तो रेन कोट भाता न छाता .और कुछ अपने और साथी थे शरारती किस्म के .हम सब लौटते तो पूरी तरह भीगे हुए .तब की मुंबई कोठियों और चाल वाली थी .कोठियों के आगे दीवार की जगह हैज होती .संभवतः राज कपूर के देवनार काटेज में मेहदी जैसी कोई हैज ही थी .लताएँ और फूल भी तरह तरह के .बरसात के मौसम में जितने रंगों की गुलमेंहदी मैंने मुंबई में लगी देखी वैसी कहीं और नहीं मिलती .स्कूल से लौटते समय गुलमेहदी के कुछ पौधे उखाड़ लाते .इन्हें एक ग्लास स्याही डाल कर छोड़ देते और कुछ देर में गुलमेहदी के पारदर्शी तने को रंग बदलते देखते .ये सब तबके खेल थे .
अब वह बरसात नहीं होती जों सत्तर और अस्सी के दशक में होती थी .तब जो बरसात होती थी वह जमकर होती थी .कई दिन तक .रेनी डे का दौर आता था .लखनऊ में एक बार हफ्ते भर तक रेनी डे रहा क्योंकि बरसात थम ही नहीं रही थी .अब तो शायद रेनी डे की छुट्टी होती ही नहीं होगी .फिर समुद्र तट पर डरा देने वाली बरसात भी देखी तो वह तो उस तूफ़ान का भी इंतजार किया जिससे बचने की उम्मीद छोड़ दी गई थी .हम महाबलीपुरम के बीच रिसार्ट पर अकेले थे .तूफ़ान लेट होता जा रहा था और अंत में वह मद्रास से टकराने की बजाये आंध्र के नेल्लोर से टकराया .हम लोग बच गए .पर ऐसी भीषण बरसात और ऐसा बिगड़ा हुआ समुद्र कभी नहीं देखा था .अपना काटेज ठीक समुद्र के सामने था और सामने की दीवार सीसे की .लगता समुद्र की लहरे बिस्तर तक पहुंच जाएँगी .न फोन न बिजली .रिशेप्शन तक जाना भी मुश्किल .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-3320726110108597372020-12-11T08:04:00.001-08:002020-12-11T08:04:32.119-08:00सबसे बड़ा नायक<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/UX5D60zaIyI" frameborder="0"></iframe>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-58278146794741322192019-10-27T01:18:00.000-07:002019-10-27T01:18:12.570-07:00महाबलीपुरम के समुद्र तट पर कमल सक्सेना का वह काला चश्मा !<b>
अंबरीश कुमार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCp-G73aVierFWwLdFRYL26WW1sNfFS2yEd9YmR7vaHJI2ILS2DaMl0pYJQ6qFaf-40x3uY8RLe3ScXoDeS-ozxdS1sWcy7XI4ze0hUB_aRqfvdwEL1zBZSAiqsLeVncCkYR9UFbQXS14/s1600/DSCN4094.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCp-G73aVierFWwLdFRYL26WW1sNfFS2yEd9YmR7vaHJI2ILS2DaMl0pYJQ6qFaf-40x3uY8RLe3ScXoDeS-ozxdS1sWcy7XI4ze0hUB_aRqfvdwEL1zBZSAiqsLeVncCkYR9UFbQXS14/s320/DSCN4094.JPG" width="320" height="178" data-original-width="967" data-original-height="537" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8bTaoboJFsg5VvItkLS73IyIfxAOiNWnvoAixu8Tcl4ix2oedVWkomfp7wa3yKz7cUqUAy6kjwaBP3OY81WiyOTPkp67v3qrydkC8vlBnyrarsdy4bLZcUBEe3JnMNfwiJEzex1X06c4/s1600/IMG-20181218-WA0005+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8bTaoboJFsg5VvItkLS73IyIfxAOiNWnvoAixu8Tcl4ix2oedVWkomfp7wa3yKz7cUqUAy6kjwaBP3OY81WiyOTPkp67v3qrydkC8vlBnyrarsdy4bLZcUBEe3JnMNfwiJEzex1X06c4/s320/IMG-20181218-WA0005+%25281%2529.jpg" width="320" height="224" data-original-width="775" data-original-height="542" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdHZFTNTYjA3MubeFIsjUmTuASmsl0rOxg11LdFN9BDoDUcldoHjgqkaSZQFotzTOSZMtaZdXctfAcYSmQwawtjUOEsgR9CKP_KrEz3UfFGYxh8PCpoEL26Oqakdv6BtB_fOficDfTPSs/s1600/IMG-20191027-WA0000.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdHZFTNTYjA3MubeFIsjUmTuASmsl0rOxg11LdFN9BDoDUcldoHjgqkaSZQFotzTOSZMtaZdXctfAcYSmQwawtjUOEsgR9CKP_KrEz3UfFGYxh8PCpoEL26Oqakdv6BtB_fOficDfTPSs/s320/IMG-20191027-WA0000.jpg" width="270" height="320" data-original-width="1080" data-original-height="1280" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMskZ_rUPWiBjkeZxwOTfWHF_yY5yTF2hzgtOZ3K9jwJAK3sV7W1mmxhkzDLxG_XABzyytxYm3kBq3aHZYV0KDXVRBbNyZIFTJEdBOVhd-WPAU8BpQQ6WbuqMX_dofH8EdfnUCMX7r1HM/s1600/k.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMskZ_rUPWiBjkeZxwOTfWHF_yY5yTF2hzgtOZ3K9jwJAK3sV7W1mmxhkzDLxG_XABzyytxYm3kBq3aHZYV0KDXVRBbNyZIFTJEdBOVhd-WPAU8BpQQ6WbuqMX_dofH8EdfnUCMX7r1HM/s320/k.jpg" width="320" height="177" data-original-width="658" data-original-height="364" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8i4uiHpoDnKH6MCrBiXkr7KyfroJMocSqPLeQNqZJWIin-zBDm-BLlVr9g0jeAOsbthqSle9UUP3Nx1-wb3jkvLmCQe8TEUgksFKCTNf7aOgw9uldaQ0DMa9yCVjPCw-k9uk_7PDiMKs/s1600/IMG-20181218-WA0008.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8i4uiHpoDnKH6MCrBiXkr7KyfroJMocSqPLeQNqZJWIin-zBDm-BLlVr9g0jeAOsbthqSle9UUP3Nx1-wb3jkvLmCQe8TEUgksFKCTNf7aOgw9uldaQ0DMa9yCVjPCw-k9uk_7PDiMKs/s320/IMG-20181218-WA0008.jpg" width="320" height="304" data-original-width="1229" data-original-height="1169" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCNW22foNRjUwBqMuDTuWurFzBQjKBC4PYdKediZJ46NCQRhbBQmXEqq2FekjEO4MEw1OfTz5ets59tdgQCwfpvcpeoQqA-Q1dybSxyCu89GZkMdE8B7viVij2IJqlQRJ0XDAQeSuRQS0/s1600/l.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCNW22foNRjUwBqMuDTuWurFzBQjKBC4PYdKediZJ46NCQRhbBQmXEqq2FekjEO4MEw1OfTz5ets59tdgQCwfpvcpeoQqA-Q1dybSxyCu89GZkMdE8B7viVij2IJqlQRJ0XDAQeSuRQS0/s320/l.jpg" width="320" height="239" data-original-width="690" data-original-height="516" /></a></b>
बात काफी पुरानी है .साल याद नहीं .हम लोग बंगलूर ,मैसूर ,ऊटी ,महाबलीपुरम जैसी जगह घूमने गए थे .मै ,अपूर्व ,कमल सक्सेना ,रवि जुनेजा और बाबू सिंघा थे .गजब का अनुभव हुआ उस दौरे में .फस्ट क्लास का डब्बा जो लखनऊ से चला वह झांसी में उस ट्रेन से काट कर अलग कर दिया गया .फिर कुछ घंटे बाद उसे किसी दूसरी ट्रेन में जोड़ दिया गया .हम विजयवाड़ा पहुंचे तो तो फिर .फस्ट क्लास का यह डिब्बा काट दिया गया और बताया गया दस घंटे बाद यह किसी दूसरी ट्रेन में जोड़ा जायेगा तबतक यह डिब्बा यार्ड में खड़ा होगा .हम लोग अपने केबिन में ताला बंद कर विजयवाड़ा शहर घूमने निकले .खाना खाया और काफी कुछ देखा .फिर डिब्बे में लौटे .यह डिब्बा अपना होटल बन गया था जो बंगलूर तक चला .बंगलूर स्टेशन पर आधी रात के बाद पहुंचा .वोटिंग रूम में चले गए .चादर वगैरह तो थी पर ठंढ बढ़ेगी यह अंदाजा नहीं था .अप्पू जिधर सोया था उसके बगल में कोई सज्जन होल्डाल बिछा कर सो रहे थे .ठंढ बढी तो अप्पू ने उसका कंबल खीच लिया .सुबह के समय उसने अप्पू को उठाया और कहा ,भईया मेरी ट्रेन आ गई है अब कंबल दे दें .तब उसे कंबल देना ही पड़ा .फिर बंगलूर शाहे मैसूर आदि घूमते हुए ऊटी पहुंचे .महंगा हिल स्टेशन था .ज्यादा पैसे थे नहीं .तय हुआ लंच कांटिनेंटल होगा और खुद बनाया जायेगा .ऊटी की सब्जी मंडी गए .प्याज ,पत्ता गोभी ,टमाटर ,मिर्च आदि खरीदी गई और बंद भी .फिर झील के किनारे सैंडविच बनाकर खाया गया .काफी सामने के रेस्तरां में पी गई .फिर कई शहर घूमते हुए महाबलीपुरम पहुंचें .इस बीच बाबू सिंघा ,रवि जुनेजा और अप्पू किसी बात पर कमल से खुन्नस खा गए .दरअसल वह काम नहीं करता था और पेंट शर्ट के साथ बूट पहनकर हमेशा स्मार्ट बनकर घूमता था .एक कोई महंगा चश्मा भी पहनता था .एक बार वह चश्मा महाबलीपुरम के सी बीच पर छूट गया .कमल को पता नहीं चला .खुन्नस खाए मित्रों को मौका मिला .तय हुआ इसे छुपा दिया जाए .पर फिर सोचा गया अगर बाद में यह मिल गया तो कमल घर जाकर सबकी शिकायत करेगा .बड़ी समस्या सामने थी .अंततः रवि ने कहा सबूत को मिटाना पड़ेगा इसे इधर ही समुद्र तट की रेत में गाड़ दिया जाए .बाबू सिंघा ,अप्पू आदि ने गड्ढा खोदा .पहली फोटो में इसी मंदिर से पहले के कुंड के कोने में ,इसी जगह पर उस महंगे गागल्स का अंतिम संस्कार किया गया .सब लोग चाहे तो आज भी वह चश्मा वहां मिल सकता है क्योंकि प्लास्टिक /शीशा ख़राब तो होता नहीं .इस तरह कमल के उस चश्मे का राज आज मै खोल दे रहा हूं वे चाहे तो सबसे उसका हर्जाना ले सकते हैं .दौरे की कुछ फोटो भी देखें
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-46592961676864706702019-09-28T09:05:00.000-07:002019-09-28T09:05:03.007-07:00डाक बंगला<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8CmynXJ_N96BU-G-3Bmb_n3j5wbM-EsRUrN33AZ4YJ250dTjwHZ4SUzYqIbC6fzj_mxqKGrUmPOu9roFQgpa5iAeEzDBW5DAFAawoMOR5Z02kpBTto-Piw_Uy9OweanLCMtF5jewkCZA/s1600/580513_423490751065279_1085440616_n.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8CmynXJ_N96BU-G-3Bmb_n3j5wbM-EsRUrN33AZ4YJ250dTjwHZ4SUzYqIbC6fzj_mxqKGrUmPOu9roFQgpa5iAeEzDBW5DAFAawoMOR5Z02kpBTto-Piw_Uy9OweanLCMtF5jewkCZA/s320/580513_423490751065279_1085440616_n.jpg" width="320" height="241" data-original-width="274" data-original-height="206" /></a>
डाक-बंगलों के साथ उनका अपना इतिहास भी जुड़ा होता है।उसके साथ उसके किस्से-कहानियों के सिलसिले भी होते हैं।उनको अनुभूति के तल पर पकड़ पाने के लिए अपने भीतर एक साथ साहित्य- बोध और सन्धान दृष्टि, दोनों का होना जरूरी होता है।यह मणि-कांचन योग होता है।डाक-बंगलों का अपना सौंदर्य होता है।उस स्थान का भी अपना सौंदर्य होता है, जहां-कहीं का होने पर भी वह डाक-बंगला विशिष्ट हो जाता है.जाने माने यायावर सतीश जायसवाल ने जल्द आने वाली अपनी पुस्तक ' डाक बंगला 'जो भूमिका लिखी है यह दो लाइन उसी की है .' डाक बंगला 'का एक अंश
धुंध से जंगल में रास्ता भी ठीक से नहीं दिख रहा था . घने जंगलों के बीच करीब पंन्द्रह किलोमीटर चलने के बाद हम जंगलात विभाग के निशानागाढा गेस्टहाउस पहुंचे. यहां बिजली नहीं है और पानी भी हैंडपंप का। दो मंजिला गेस्टहाउस के बगल में रसोई घर है जिसका रसोइया शाम होते ही सहमा-सहमा नजर आता है। घर बगल में ही है जहां एक-दो कर्मचारी और रहते हैं। पर उसके डर की वजह है बाघ के शैतान बच्चे। पता नहीं उसका भ्रम है या हकीकत। पर बाघ के इन बच्चों के आधी रात को दरवाजा थपथपाने से भयभीत रहता है। कतरनिया घाट वन्य जीव अभ्यारण के रेंजर ने बताया कि बाघ शाम से ही इस क्षेत्र में विचरण करने लगते हैं। अंग्रेजों के बनाए निशानगाढ़ा गेस्टहाउस का नज़ारा उस जमाने के नबाबों राजओं के शिकारगाह से मिलता-जुलता है। जिसके चारों ओर घने जंगल हैं और जानवरों और पक्षियों की अजीबो-गरीब आवाज सन्नाटें को तोड़ती रहती है। नीचे का बरामदा लोहे की ग्रिल से पूरी तरह बंद नजर आता है। पूछने पर पता चला कि यह बड़े जानवरों से हिफ़ाजत का इंतजम है। शाम के बाद गेस्टहाउस के आसपास निकलना भी जोखिम भरा माना जता है। Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-6596166805660558812019-06-14T20:45:00.000-07:002019-06-14T20:45:05.338-07:00भटनी -बरहज लूप लाइन <b>अंबरीश कुमार <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifqchNknG05zmt726bNabyuOmS1iQSy7I7KIqakSTBxN5UvSojN-Kzc4j6RwosXtC1SE_PuWE40OsvA3oGytfGjXDRr49RWlxiXRWiKgeRg1yBZmGjcbOdArbR1tC9rYpAxsHanajOIt0/s1600/railway-station.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifqchNknG05zmt726bNabyuOmS1iQSy7I7KIqakSTBxN5UvSojN-Kzc4j6RwosXtC1SE_PuWE40OsvA3oGytfGjXDRr49RWlxiXRWiKgeRg1yBZmGjcbOdArbR1tC9rYpAxsHanajOIt0/s320/railway-station.jpg" width="320" height="214" data-original-width="640" data-original-height="427" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_f0mMA8nhgYjzcS8OyJUeSAP6XF4U_6r_8rMdfrp3b3RFho8mJ0k0EbSGraoLicE_Chw3msRhD87nbdzvZ4F7GhfvlBlh0uiLNltb8NPT6mGhw9x7noeH5wD_hvVriyH4RHndfp-mvJ8/s1600/hqdefault.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_f0mMA8nhgYjzcS8OyJUeSAP6XF4U_6r_8rMdfrp3b3RFho8mJ0k0EbSGraoLicE_Chw3msRhD87nbdzvZ4F7GhfvlBlh0uiLNltb8NPT6mGhw9x7noeH5wD_hvVriyH4RHndfp-mvJ8/s320/hqdefault.jpg" width="320" height="240" data-original-width="480" data-original-height="360" /></a></b>
यह 55103 अप पैसेंजर है .यह ट्रेन भटनी से बरहज बाजार तक जाती है .लूप लाइन है .पिकोल ,सलेमपुर ,देवरहा बाबा रोड ,सतरांव ,सिसई गुलाबराय होते हुए बरहज पहुंचाती है .सिसई गुलाबराय नाम अपने परिजनों के परिवार के नाम पड़ा .इस हाल्ट स्टेशन की जिम्मेदारी भी कुछ दिन उन लोगों ने उठाई . पापा रेलवे में इंजीनियर रहे तो रेल की यात्रा खूब हुई और तरह तरह की ट्रेन और डब्बों में भी .तब उन्हें जो फर्स्ट क्लास मिलता था वह पूरा डिब्बा ही होता था ,चार बर्थ का .बाथरूम में नहाने की भी व्यवस्था .डिब्बा इतना बड़ा होता था कि ट्रेन जब खड़ी हो तो स्टोप जलाकर चाय बन जाए .इसपर दूसरी पोस्ट में विस्तार से .फिलहाल लूप लाइन की इस ट्रेन पर .इसमें शशि थरूर के शब्दों में सिर्फ कैटल क्लास ही होता .इसलिए लोग बकरी /बकरा लेकर भी यात्रा कर लेते .खिड़की वाली सीट के लिए मारामारी होती .लकड़ी वाली सीट .और स्टेशन पर शरबत जैसी चाय और समोसा के अलावा चना मुरमरा से लेकर मौसमी फल भी मिल जाता .भटनी से साढ़े तीन बजे यह लूप लाइन की ट्रेन निकलती और शाम करीब पांच बजे बरहज बाजार पहुंचा देती .गांव से आई बैलगाड़ी से आगे का करीब तीन किलोमीटर का सफ़र होता .पर इस ट्रेन में हर तरह का मनोरंजन भी होता तो राजनैतिक चर्चा भी .कुछ लोग ताश भी खेलते तो बीड़ी का धुआं भी भर जाता .खिड़की खुली रहती और जब आम के बगीचे के बगल से गुजरती तो आम तोड़ने की बड़ी इच्छा भी होती .सिसई गुलाबराय हाल्ट स्टेशन के बगल में ही फूफा जी का भी आम का बगीचा दिखता .सभी देसी आम के पेड़ .बाढ़ के समय सरजू नदी का पानी भी पास आ जाता .लूप लाइन की ट्रेनों में कोई आपाधापी नहीं होती न ही किसी और दिशा से कोई ट्रेन आती .यह तो बैलगाड़ी की तरह एक लीक पर चलने वाली ट्रेन होती है और भटनी -बरहज की दूरी भी डेढ़ दो घंटे की .कभी लूप लाइन की ट्रेन की यात्रा भी करें ,जनरल डिब्बे में .गांव के लोग भी तब चलते थे अब तो सत्तर साल में खुद की गाड़ी ले ली है तो सीधे देवरिया निकल जाते हैं .ज्यादातर गरीब गुरबा ही इस ट्रेन पर चलता है .
Bhatni Junction 15:30 -- 1 0.0 39 75m NER Junction Point - SV/GKP/MAU, Uttar Pradesh
2POKL Peokol 15:38 15:39 1 1m 1 5.2 61 80m NER Deoria, Uttar Pradesh
3SRU Salempur Junction 15:44 15:45 -- 1m 1 10.3 19 76m NER Salempur, Uttar Pradesh
4DRBR Deoraha Baba Road 16:10 16:11 -- 1m 1 18.3 42 71m NER Salempur, Uttar Pradesh
5STZ Satraon 16:19 16:20 -- 1m 1 24.0 29 72m NER Satraon, Uttar Pradesh
6SSGR Sisai Gulabrai 16:28 16:29 -- 1m 1 27.8 11 70m NER Barhaj, Uttar Pradesh
7BHJ Barhaj Bazar
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-17334515430792996342019-06-10T19:13:00.000-07:002019-06-10T19:13:32.170-07:00 विशाखापत्तनम किरंदुल पैसेंजर <b>अंबरीश कुमार <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiMm3AqibRUTVyzVW9-1gVuOABkNy4kbGbZQYWJfKktj_wI0cnVZXhkU3lMuD939l2TkWEqSyEJrkMhCy9sKyAX5IQmLebovUzUt1K2M6Gf_A-uY3ZUdW14FH_ITWKkqnNH34SP4Ni7Do/s1600/photo-92-121659-3.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiMm3AqibRUTVyzVW9-1gVuOABkNy4kbGbZQYWJfKktj_wI0cnVZXhkU3lMuD939l2TkWEqSyEJrkMhCy9sKyAX5IQmLebovUzUt1K2M6Gf_A-uY3ZUdW14FH_ITWKkqnNH34SP4Ni7Do/s320/photo-92-121659-3.jpg" width="320" height="180" data-original-width="929" data-original-height="523" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgldTivV7SbJ6MQX2aJOLFFVvL-JaDWTwKwQZyiNtRvhcvva2DqI0bOkWx0h8ZsDbwNRR1TNdS7M13RYdi1bvzeE4EVJQUd9XvR3_Xnhu3sN0k88AlvOKZy62pGlVWdX7B7o480jeR-9IU/s1600/31cbcf3719.jpeg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgldTivV7SbJ6MQX2aJOLFFVvL-JaDWTwKwQZyiNtRvhcvva2DqI0bOkWx0h8ZsDbwNRR1TNdS7M13RYdi1bvzeE4EVJQUd9XvR3_Xnhu3sN0k88AlvOKZy62pGlVWdX7B7o480jeR-9IU/s320/31cbcf3719.jpeg" width="320" height="218" data-original-width="680" data-original-height="463" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqqLVfw1EYP0qzGohD8-75SVlYjq0AJhtdUYi3BPm6c6pT8B88lWtIjC8nqE8iKmNWS6G23HIfGTrtkf619-h1BXq83R7w3zRWCGqbI_UdWIeSIzeH2nuN1D030hOkK5_8gmz4IiVf5H4/s1600/925070164s.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqqLVfw1EYP0qzGohD8-75SVlYjq0AJhtdUYi3BPm6c6pT8B88lWtIjC8nqE8iKmNWS6G23HIfGTrtkf619-h1BXq83R7w3zRWCGqbI_UdWIeSIzeH2nuN1D030hOkK5_8gmz4IiVf5H4/s320/925070164s.jpg" width="320" height="213" data-original-width="799" data-original-height="531" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXbQ0R_IyNrYix96mNCMXali0mOQzoPLxQSwhQO6Wg3DmdBU3C_WFeSwyPPJeYFbVHQOydqdjOdTI09J2-SGUrMZ42InOeKQpBjAtOo7q8wBG1ipaK0atpql6PAPoE0gP-6YvvvdOAgcw/s1600/dsc02384.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXbQ0R_IyNrYix96mNCMXali0mOQzoPLxQSwhQO6Wg3DmdBU3C_WFeSwyPPJeYFbVHQOydqdjOdTI09J2-SGUrMZ42InOeKQpBjAtOo7q8wBG1ipaK0atpql6PAPoE0gP-6YvvvdOAgcw/s320/dsc02384.jpg" width="320" height="240" data-original-width="1600" data-original-height="1200" /></a></b>
जगदलपुर के सर्किट हाउस से निकले तो देर हो चुकी थी .दरअसल बीती रात से ही बरसात हो रही थी और रात का खाना पीना ही काफी देर से हुआ .दरअसल जनसंपर्क विभाग के एक आदिवादी अधिकारी कुरेटी का आग्रह था कि बस्तर आए और कड़कनाथ का स्वाद नहीं लिया तो यात्रा का क्या अर्थ . चित्रकोट जल प्रपात और आसपास घूमकर लौटे तो सर्किट हाउस के एक कोने में जिधर कटहल का पेड़ लगा था उधर ही बैठकर चाय पी और खानसामा से बात करते लगा .वह कडकनाथ का इंतजाम करने निकल रहा था .यह पुराना सर्किट हाउस है पर सामने छोटा सा बगीचा होने की वजह से काफी हराभरा दिखता है .वैसे भी चारो तरफ जंगल ही जंगल तो है .हमें जाना अरकू घाटी और फिर उसके बाद विशाखापत्तनम था .दफ्तर की गाड़ी थी पर अपना ड्राइवर चंद्रकांत को साथ लेकर आया था ताकि वह हमें किरंदुल पैसेंजर पर बिठाकर रायपुर लौट जाए .अपने को इस पैसेंजर से ही अरकू घाटी तक जाना था .पर स्टेशन पर जब टिकट लेने गए तो पता चला सिर्फ फर्स्ट क्लास में ही आरक्षण होता है और बाकी सारी ट्रेन जनरल डब्बे वाली है .खैर टिकट ले ही रहे थे तभी ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया .चंद्रकांत ने कहा ,सर चिंता न करें हम इस ट्रेन को अगले स्टेशन तक पकड़ लेंगे .
दरअसल पैसेंजर ट्रेन थी और हर स्टेशन पर एक मिनट ही रूकती पर रफ़्तार बहुत ज्यादा नहीं थी इसलिए दो स्टेशन छोड़कर हम छोटे से स्टेशन अमगुडा पर पहुंचे तो ट्रेन दूर से आती हुई दिखी .इससे पहले ट्रेन को पीछे छोड़ते हुए हम तेज रफ़्तार से सड़क पर आगे बढ़ रहे थे .बरसात बंद हो चुकी थी पर सड़क पर कोई ख़ास ट्रैफिक नहीं था..यह ओडिशा का ग्रामीण अंचल है जो काफी हराभरा है .इस ट्रेन से अमूमन गरीब आदिवासी ही सफ़र करते हैं .गांव से फल सब्जी आदि लेकर वे दूसरे कस्बे तक जाते हैं .ज्यादातर के हाथ में लाठी भी नजर आ रही थी .ट्रेन के फर्स्ट क्लास में एक केबिन अपना ही हो गया क्योंकि हम चार लोग थे और चार बर्थ थी .बहुत दिन बाद ऐसे डिब्बे में बैठना हुआ जिसमें खिड़की का सीसा उठा दिया तो बाहर से भीगी हुई ताज़ी हवा आ रही थी .बरसात की वजह से मौसम सुहावना हो चुका था .थर्मस में काफी थी और दोपहर का खाना सर्किट हाउस के खानसामा नें ठीक से बांध कर रख दिया था .पराठा ,सब्जी ,दही और अचार मिर्च भी .कुछ देर खिड़की पर बैठने के बाद आकाश ,अंबर ऊपर की बर्थ पर जाकर सो गए .सविता कोई उपन्यास पढने लगी तो मै अख़बार देखने लगा .करीब साढ़े ग्यारह पर जब जयपोर स्टेशन पहूंचे तो काफी पीने की इच्छा हुई .स्टेशन का नाम हिंदी में जयपुर लिखा था पर बोल रहे थे जयपोर .उड़िया में यही कहते होंगे .यह ट्रेन छतीसगढ़ के पहाड़ों से होते हुए पहले ओड़िसा से गुजरती है फिर आंध्र प्रदेश में समुद्र तट पर बसे अत्याधुनिक शहर विशाखापत्तनम तक जाती है .पर हमें बीच में ही अरकू घाटी में उतरना था .यह एक छोटा सा पहाड़ी सैरगाह है .कोरापुट के बाद एक छोटा सा स्टेशन आया सुकू .नीचे उतरे और छोटे से स्टेशन का जायजा लिया .
रायपुर से बस्तर तक कोई रेलगाड़ी नही जाती पर बस्तर में जो रेलगाड़ी चलती है उसका सफ़र कभी भूल नही सकते .छत्तीसगढ़ से सटा एक खूबसूरत पहाड़ी सैरगाह अरकू घाटी तेलुगू फिल्म निदेशकों की पसंदीदा लोकेशन भी है .देश में सबसे ज्यादा ऊँचाई पर चलने वाली ब्राड गेज ट्रेन का सफ़र हमने बस्तर से शुरू किया .किरंदुल विशाखापत्तनम पसेंजर सुबह दस बजने में दस मिनट पहले जगदलपुर से छूटती है.रायपुर से धमतरी होते हुए जब हम जगदलपुर के आसपास घूम कर सर्किट हाउस पहुंचे तो शाम हो चुकी थी .रात सर्किट हाउस में बिता कर सुबह ट्रेन पकडनी थी .बस्तर के अपने संवाददाता वीरेंदर मिश्र साथ थे .यह इलाका तीन राज्यों आंध्र ,ओड़ीशा और छत्तीसगढ़ से घिरा है और यहाँ की संस्कृति पर भी इसका असर दिखाई पड़ता है . साल ,आम, महुआ और इमली के पेड़ों से घीरें इस इलाके घने जंगलों की वजह से जमकर बरसात होती है और देखने वाली होती है ..खैर बस्तर पर बाद में पहले अरकू घाटी की तरफ बढ़ें .बाग- बगीचे , जंगल ,पहाड़ और समुंद्र के सम्मोहन से मै बच नही पाता हूँ .बचपन मुंबई में गुजरा .पापा भाभा एटामिक एनर्जी में इंजीनियर थे और इसका आवासीय परिसर चेम्बूर में जहाँ पर था उसके रास्ते में एक बड़ा गोल्फ मैदान ,आरके स्टूडियो और फिल्म अभिनेता राजकपूर का घर भी पड़ता था .उनके घर के आगे बड़े बड़े पेड़ थे जिससे भीतर का हिस्सा ज्यादा नहीं दिखता था .तब पैदल ही स्कूल जाता और कई बार गोल्फ मैदान में देर तक घूमता .मुंबई का वह इलाका काफी हरा भरा था और तब कैनेरी की गुफा देखने गए तो वहां का जंगल देख कर हैरान रह गए .आज भी वह जंगल याद आता है .पर छत्तीसगढ़ के जंगलों के आगे कही के जंगल नही टिकते है .याद है एक बार अजित जोगी ने कहा था - अफ्रीका के बाद उतने घने जंगल सिर्फ बस्तर में ही है . हेलीकाप्टर से बस्तर का दौरा करने पर जंगल का विस्तार ढंग से दिखता है .और इन्ही जंगलों के बीच से आंध्र प्रदेश की अरकू घाटी का रास्ता भी गुजरता है पर ज्यादा हिस्सा ओड़िसा और आंध्र का पड़ता है .
जंगल ,पहाड़ और चौड़े पाट वाली नदियों के ऊपर से गुजरती रेल अचानक हरियाली में प्रवेश करती है .दूर दूर तक फैले धान के हरे भरे खेत और उनके बीच चटख रंगों की साड़ी में आदिवासी महिलाए काम करती नज़र आती है .इससे पहले जब हमारा ड्राइवर चंद्रकांत गाड़ी लेकर जगदलपुर स्टेशन पंहुचा तो गाड़ी रेंगने लगी थी और दो बच्चों के साथ ट्रेन पकड़ना संभव नहीं था .तभी चंद्रकांत ने कहा -अगला स्टेशन अमगुडा कुछ किलोमीटर दूर है वहां से गाड़ी पकड़ लेंगे .अगले स्टेशन पर हम पहुंचे ही ट्रेन आती दिख गई .इस ट्रेन में एक डिब्बा प्रथम श्रेणी का लगता है .जगदलपुर से अरकू घाटी का प्रथम श्रेणी का रेल का किराया तब २६७ रुपए था . बच्चों का किराया आधा हो जाता है . चार लोग थे इसलिए पूरा कूपा मिल गया था .अभी बैठे कुछ देर ही हुए कि छोटा सा स्टेशन आ गया .स्टेशन भी बहुत छोटा सा .हमारा डिब्बा पीछे था जहां तक चाय वाले भी नहीं पहुँच पाते कि ट्रेन छूट जाती.गनीमत थी कि सर्किट हाउस से फ्लास्क में काफी और नाश्ता/खाना लेकर चले थे .अम्बागांव , जयपोर ,चट्रिपुट जैसे स्टेशन गुजरने के बाद एक बड़ी नदी आई और फिर पहाडी जंगल में ट्रेन भटक गई .हम खिड़की से बहार का बदलता भूगोल ही देखते जा रहे थे .छोटे स्टेशनों पर दक्षिण भारतीय व्यंजन मिल रहे थे पसिंजर ट्रेन होने के बाद भी हर स्टेशन पर यह समय से छूट रही थी .दो इंजन के सहारे यह ट्रेन करीब साढ़े तीन बजे अरकू पहुंची तो पहले इस छोटे से पहाड़ी हिल स्टेशन पर काफी पीने की इच्छा हुई .फोटो साभार इंडिया हेराल्ड
जारी Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-59980078092085989532019-06-04T19:51:00.000-07:002019-06-04T19:51:25.062-07:00एक वीरान समुंद्र तट पर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>अंबरीश कुमार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBKSpyX8lEE2cHsdojmLUyWROyFJWLk2sq_eN1mmebUHH8CIhe3LXxmn4_oKeuLiOgfwta4754Lnuk_TV6lnDL75lP4cmaXue_WKoxmxorcSVVRRsEIwpsgF0N_Eg2jYdQVtwugoagmhg/s1600/DSCN5701.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBKSpyX8lEE2cHsdojmLUyWROyFJWLk2sq_eN1mmebUHH8CIhe3LXxmn4_oKeuLiOgfwta4754Lnuk_TV6lnDL75lP4cmaXue_WKoxmxorcSVVRRsEIwpsgF0N_Eg2jYdQVtwugoagmhg/s320/DSCN5701.JPG" width="320" height="240" data-original-width="708" data-original-height="531" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrqs0C6AWUehNfG4fmdIKNsLlQCDemf9ZfShgp-UPwd54gmrl-puKUyNxQ6KbMBE5EP3tABnhs5n3HRCvO2ElkdLhYYfJ3rSOtS_REiAroaEdgzrKzC3s5jCSayQRYRgOiekapQgNp870/s1600/DSCN5703+%25282%2529.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrqs0C6AWUehNfG4fmdIKNsLlQCDemf9ZfShgp-UPwd54gmrl-puKUyNxQ6KbMBE5EP3tABnhs5n3HRCvO2ElkdLhYYfJ3rSOtS_REiAroaEdgzrKzC3s5jCSayQRYRgOiekapQgNp870/s320/DSCN5703+%25282%2529.JPG" width="320" height="240" data-original-width="908" data-original-height="681" /></a></b>
आगे सड़क खत्म हो गई थी .अपनी बस यहीं रुक गई .बालू वाला एक रास्ता दो बड़ी नावों के बीच से समुंद्र तट को जा रहा था .दूसरा पथरीला रास्ता कच्ची सड़क के रूप में करीब एक फर्लांग दूर एक किले में बने लाइट हाउस की तरफ जा रहा था .हम लाइट हाउस की तरफ जाने की बजाय बड़ी नाव के पास ही रुक गए . सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के नीचे बहते अरब सागर के एक कोने में हम खड़े थे .यह कोंकण के रत्नागिरी जिले के दापोली तालुका का ग्राम पंचायत हरणे है .नाव के सामने मराठी में ग्राम पंचायत हरणे का एक बोर्ड लगा हुआ था .
यह मछुवारों का गांव है .जहां इस अंचल का बहुत पुराना बंदरगाह है .लाइट हाउस से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितना पुराना है .मानसून की वजह से मछुवारे अभी समुंद्र में नहीं जा रहे थे .छोटी नाव से कुछ मछुवारे जरुर निकलते दिखे .जो दो पहियों वाले स्केटनुमा किसी जुगाड़ पर अपनी नाव चढ़ा कर समुंद्र में ढकेल कर ले जा रहे थे .यह दृश्य अपने लिए नया नहीं था .कालीकट और दमन के समुंद्र तट पर देख चुका था .इस बीच अचानक आई बरसात से बचने के लिए बस में चढ़ गया और ड्राइवर से बात करने लगा .वह हमे जिस गांव के बीच से लाया था उसके संकरे रास्ते में भी छोटी से मछली बाजार पड़ी .बांगडा से लेकर मझोले आकार का झींगा बिक रहा था .मछलियों की गंध चारो तरफ फैली हुई थी .हम कल देर रात दापोली पहुंचे थे .पर दापोली बंद की वजह से आसपास के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को बदलना पड़ा और मछुवारों के इस गांव में बने बंदरगाह के साथ शिवाजी का किला देखने इस तरफ आ गए .यह अपने रिसार्ट से करीब दस किलोमीटर दूर था .
हमने समुंद्र की कई यात्रा की और समुंद्र के तट पर कई बार ठहरना हुआ .लक्ष्यद्वीप ,कोवलम ,दमन ,दीव ,कन्याकुमारी ,महाबलीपुरम ,विशाखापत्तनम से लेकर गोवा के बहुत से तट पर .पर लक्ष्यद्वीप के अगाती और बंगरम समुंद्र तट के बाद यह पहला समुंद्र तट मिला जो वीरान था .हम लोग रात में करीब ग्यारह बजे दापोली के इस तट पर पहुंचे थे .जिस सागर हिल रिसार्ट में जाना था वह सड़क के दाईं तरफ था और सड़क के दूसरी तरफ अरब सागर .कमरे की बालकनी की तरफ जो दीवार थी वह शीशे की थी ,दरवाजा छोड़कर .कमरे में जाते ही सामने अरब सागर की लहरे दौडती हुई आती दिख रही थी . बरसात हो चुकी थी और हवा में ठंढ भी थी .
तटीय इलाकों में उमस ज्यादा होती है इसलिए इंतजाम में लगे रवींद्र से मैंने एक एसी कमरे के लिए कहा था .कमरे तो सभी एसी वाले थे पर वे जून से सितंबर तक उसे बंद कर देते है .खिड़की खोलते ही ठंढी हवा का झोंका आया तो लगा इधर फिलहाल एसी की जरुरत ही नहीं है .तबतक खाने का बुलावा आ गया .रात के बारह बज रहे थे .साल ,नारियल ,सुपारी ,आम आदि के घने जंगल से होते हुए आये थे .पहाड़ी और घुमावदार रास्ता था .थकावट महसूस हो रही थी .गर्म पानी से नहाने के बाद खाने के लिए ऊपर लगी मेज कुर्सियों के पास पहुंचे तो लगा किसी जहाज के डेक पर बैठे हैं .सामने सागर और किनारे पर नारियल के लहराते पेड़ .हल लोग कुल पंद्रह लोग थे .शिक्षक ,लेखक ,एक्टिविस्ट ,फोटोग्राफर और यायावर .रेलवे के एक आला अफसर भी थे तो पत्रकार भी .ज्यादातर से परिचय भी रास्ते में या फिर खाने की मेज पर हुआ .यह आपसदारियां का वह समूह था जो मौसम बदलने पर देश के विभिन्न हिस्सों में किसी एक जगह का चयन कर मिलता है .मकसद है देश के अलग अलग अंचल में गांव ,आदिवासी समाज के बीच जाना और उन्हें जानना समझना .ताकि किसी रचनाकार को अपने रचनाकर्म में मदद मिले .इसके सूत्रधार हैं लेखक ,यायावर सतीश जायसवाल .वे हर कार्यक्रम की व्यवस्था किसी स्थानीय मित्र को देते हैं . अमूमन वे गांव कस्बे /डाक बंगले में रुकने की सस्ती व्यवस्था करते हैं .पर इस जगह तो गांव ही रिसार्ट में बदल गया था और आफ सीजन डिस्काउंट के बाद धर्मशाला वाले किराए में ही यह कमरे मिल गए थे .गांव के सरपंच सचिन जब दूसरे दिन आए तो बताया कि यह दापोली का पहला रिसार्ट है जो नब्बे के दशक में बना .ऐसी लोकेशन किसी और की नहीं है .दूसरे दिन नाश्ते के बाद जब समुंद्र किनारे किनारे गांव की तरफ गए तो बदलता हुआ दापोली नजर आया .दरअसल गांव पीछे चला गया था और होटल रिसार्ट आगे हो गए थे .यह मछुवारों का गांव रहा है जिन्होंने बाद में सैलानियों की बढती आवाजाही के बाद अपने घर पीछे कर दिए और होटल रिसार्ट आगे बना दिए .इससे आमदनी का नया जरिया मिला .हर्ले बंदरगाह कुछ किलोमीटर दूर ही है जहां शिवाजी के दो किलों के खंडहर अभी भी मौजूद हैं .शिवाजी का नाम लेने वाली सरकार ने इन किलों को तो बदहाल कर ही रखा है साथ ही उधर जाने वाली सड़क ऐसी बना रखी है कि ज्यादा लोग जाने ही न पाएं .खैर यह दापोली का वर्षावन जैसा अंचल है .बरसात होती है तो जमकर होती है .कई दिन तक होती रहती है .ज्यादातर घरों और होटल रिसार्ट में जगह जगह जमी काई से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है .बरसात जमकर होती है इसलिए हरियाली भी देखने वाली होती है .कई जगहों पर दूर तक फैली हरी घास को देखकर किसी बड़े चरागाह का आभास होता है .
हम लोग आसपास के कई गांव में गए .गांव के लोगों से बात हुई और उन्ही के घर बना भोजन किया .यह आपसदारियां कार्यक्रम की परिपाटी में बदल रहा है .जिस भी गांव में जाएं वहां के लोगों का बनाया स्थानीय भोजन करें .उन्हें जाने समझे .उनकी संस्कृति को समझे और उनके खानपान का स्वाद भी लें .दिन में भी हम सभी ने कोंकड़ी थाली मंगवाई और स्वाद लिया था .दापोली के डा बाला साहेब सांवत कोंकड़ कृषि विद्यापीठ से लौटते हुए .भोजन के बाद हापूस आम की सरकारी नर्सरी में गए तो साथ आई मृदुला ने कुछ पौधे लिए .उन्हें देख मैंने भी हापुस आम का एक पौधा ले लिया .बाद में उसे पैक कराने के लिए स्थानीय बाजार छान डाला पर कुछ नहीं मिला .वजह मुंबई से लखनऊ की उड़ान में उसे ले जाने देंगे या नहीं यह संशय था .खैर मुंबई में सीएनबीसी के प्रबंध संपादक और अपने बचपन के साथी आलोक जोशी ने यह समस्या सुलझा दी और एक विदेशी लंबा डिब्बा दिया जिसमे यह पौधा डाल कर लखनऊ ले गए और अपने घर पर लगा भी दिया .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-2072687266129796202019-05-30T02:24:00.000-07:002019-05-30T02:24:28.145-07:00ब्रिगेडियर जानसन की पीली कोठी <b>अंबरीश कुमार </b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmJsS2sqsSE7mIapW0jQlrX4MXNxTqNoBl3l8o4aO2m62-3FpoftLTTdiFm-E1mGTCVXUhTXGoW74f6PWLUhdgiqkMmyEy58_xcSnT6dC5566cOsWIrgpg-9KgoXIkSf1ot9x-oYFnTyg/s1600/DSCN1056+%25281%2529.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmJsS2sqsSE7mIapW0jQlrX4MXNxTqNoBl3l8o4aO2m62-3FpoftLTTdiFm-E1mGTCVXUhTXGoW74f6PWLUhdgiqkMmyEy58_xcSnT6dC5566cOsWIrgpg-9KgoXIkSf1ot9x-oYFnTyg/s320/DSCN1056+%25281%2529.JPG" width="320" height="240" data-original-width="908" data-original-height="681" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcIXPheOGpxEtO0WcpEqj-_q05cGPlT48gzirYG4e-WXlp2etcjoVrikb-zGHgAeVvPJWR9uDSpX_jWBlUH2oSGVDhCkbpQcai50RtgQcVkpkaBXcJ8ppUUUhku1-4Cb6pWL4ZP5bzSHo/s1600/DSCN2383+%25281%2529.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcIXPheOGpxEtO0WcpEqj-_q05cGPlT48gzirYG4e-WXlp2etcjoVrikb-zGHgAeVvPJWR9uDSpX_jWBlUH2oSGVDhCkbpQcai50RtgQcVkpkaBXcJ8ppUUUhku1-4Cb6pWL4ZP5bzSHo/s320/DSCN2383+%25281%2529.JPG" width="320" height="240" data-original-width="608" data-original-height="456" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhe-0rZUoiJu13hnmx-nJ9FPc-c-H-ySal_xN-Yf8TSN0LPAfXBwti4JLwsRIoirSoJf5Z7F2bK6zGjNSSQELs-PysgrM1GLW-324-iZT-nqIyEHaC_haJ420Vp2wCzxSu4UXKUgIUrsUk/s1600/DSCN2384.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhe-0rZUoiJu13hnmx-nJ9FPc-c-H-ySal_xN-Yf8TSN0LPAfXBwti4JLwsRIoirSoJf5Z7F2bK6zGjNSSQELs-PysgrM1GLW-324-iZT-nqIyEHaC_haJ420Vp2wCzxSu4UXKUgIUrsUk/s320/DSCN2384.JPG" width="320" height="240" data-original-width="608" data-original-height="456" /></a>
वर्ष 1890 के आसपास ब्रिगेडियर जानसन कुमायूं के रामगढ़ में आ बसे .शौकीन मिजाज जानसन को प्रकृति से लगाव था वर्ना काठगोदाम से अल्मोड़ा के पैदल रास्ते पर घोड़े से करीब पचास किलोमीटर का रास्ता तय कर इतनी उंचाई पर न आते .उन्होंने बहुत शानदार कोठी उस समय बनवाई जो आज भी खड़ी है और ग्वालियर के सिंधिया परिवार के पास है .इस कोठी में राजमाता सिंधिया समेत उनके परिवार के सभी सदस्य सत्तर अस्सी के दशक तक आते रहे .उनके साथ गांधी परिवार भी छुट्टियां बिताने इधर आता .संजय गांधी इसी परिसर में परिंदों का शिकार करते .पर यह कोठी बनती उजडती भी रही .
ब्रिगेडियर जानसन ने बड़े शौक से यह कोठी बनवाई .आज भी समूचे रामगढ़ में इसके फायर प्लेस की डिजाइन की तारीफ़ होती है .अपने कैप्टन साहब एक बार बर्फ में ऐसे फंसे कि नीचे के रास्ते पर जाना मुश्किल हो गया तो एक रात इसी कोठी में गुजारी .उन्होंने बताया कि बाहर बर्फ गिर रही थी और वे भीतर के कमरें में फायर प्लेस के सामने बैठ गए .ओवर कोट से लेकर मफलर स्वेटर सब लादे हुए थे .पर आधे घंटे बाद वे सिर्फ पैंट शर्ट में आ गए .ऐसा फायर प्लेस जिससे भीतर जरा सा भी धुआं नहीं रुकता .हालांकि अब इस कोठी का रखरखाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता .
जब यह कोठी बनी थी तो बहुत कम घर आसपास में थे .इसके जैसा तो कोई था ही नहीं .पर ब्रिगेडियर जानसन ने दो दशक के भीतर ही इसे ब्रिटिश सेना के एक अफसर लिंकन को बेच दी .जिसके बाद यह लिंकन स्टेट कहलाई .लिंकन ने इसे सजाया और संवारा .इसे ' एप्पल गर्थ ' का नाम दिया गया .उन्होंने ब्रिटेन से सेब की करीब सौ प्रजातियों के सेब अपने 410 एकड़ के फार्म में लगा दिए .इनमें कुछ प्रजातियां थी 'ब्यूटी आफ बाथ ,विंटर बनाना ,किंग डेविड और न्यूटन आदि .रामगढ़ अगर आज कुमायूं की फल पट्टी बना हुआ है तो उसका ज्यादा श्रेय लिंकन को भी जाता है .
पर वर्ष 1930 में लिंकन को भी भारत छोड़ना पड़ा और उहोने मध्य प्रदेश के महाराजा अजय गढ़ को सेब का यह बड़ा बगीचा और कोठी बेच दी .महाराजा अजय गढ़ से सिंघिया परिवार ने साठ के दशक में यह आर्चिड और कोठी ले ली .सिंधिया ने इसका नाम वृंदावन आर्चिड रखा .पर उसी दौर में सीलिंग के चलते सरकार ने 320 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर ली .अब नब्बे एकड़ जमीन बची जिसके बीच में आज भी यह कोठी मौजूद है .अब यह सिंधिया के पारिवारिक ट्रस्ट के हाथ में है .और जैसे ट्रस्ट चलते हैं वैसे ही यह भी चल रहा है .इस कोठी के कई किस्से कहानियां भी हैं .एक दौर में शाम होते ही इस कोठी की रौनक बढ़ जाती थी .दिन में आसपास के घने जंगल में लोग शिकार करते और रात में महफ़िल जमती .
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-3506259613222679002019-05-29T19:59:00.000-07:002019-05-29T19:59:14.028-07:00कैम्पटी जल प्रपात का मोनाल डाक बंगला
<b>अंबरीश कुमार <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6nkhgcvaXdhydy7Ar1z4m6CIzcyTzqxBcbq8BUlaPNKce3k-ZVPqf3RwoJLXxYI_eeZM2aQvbH3TRTnnsG79J2T7PYtgrGW5T0S52TwYF_nU_h0uK7vFNpJ5TcJZB377QYIM1sTWkr6Y/s1600/IMG_0048+%25281%2529.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6nkhgcvaXdhydy7Ar1z4m6CIzcyTzqxBcbq8BUlaPNKce3k-ZVPqf3RwoJLXxYI_eeZM2aQvbH3TRTnnsG79J2T7PYtgrGW5T0S52TwYF_nU_h0uK7vFNpJ5TcJZB377QYIM1sTWkr6Y/s320/IMG_0048+%25281%2529.JPG" width="320" height="214" data-original-width="816" data-original-height="545" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUp50j3D1jWe1SYoq8S2zTEoSq9I9nfFZe5_Fin-xVARHTtJYzRNxX7zWbRPV4wHEZwuflVFOzEaWscy-28DnTtanKToglcxTqKGINDGyMP7Xm5V14ANqDqe1ByHp1VALkXSUs0N4mBRE/s1600/IMG_0047.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUp50j3D1jWe1SYoq8S2zTEoSq9I9nfFZe5_Fin-xVARHTtJYzRNxX7zWbRPV4wHEZwuflVFOzEaWscy-28DnTtanKToglcxTqKGINDGyMP7Xm5V14ANqDqe1ByHp1VALkXSUs0N4mBRE/s320/IMG_0047.JPG" width="320" height="214" data-original-width="816" data-original-height="545" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMq8gdpKb4NmNygs726w67cU3153korTDtRAn8H7haAvGQ4cp6XH2VmCLTHXhmLKB42jh0CiFSJi2UGjoFIhhttC8Extf5bfa6ZIpSe7YR7mrOnG9Mt9yZeNWUDjrEUCwO3QN3CA1JQi4/s1600/Monal_National_bird_of_Nepal.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMq8gdpKb4NmNygs726w67cU3153korTDtRAn8H7haAvGQ4cp6XH2VmCLTHXhmLKB42jh0CiFSJi2UGjoFIhhttC8Extf5bfa6ZIpSe7YR7mrOnG9Mt9yZeNWUDjrEUCwO3QN3CA1JQi4/s320/Monal_National_bird_of_Nepal.jpg" width="320" height="187" data-original-width="864" data-original-height="505" /></a></b>
यह जंगलात विभाग का मोनाल डाक बंगला है . मोनाल उत्तराखंड का राज्य पक्षी और नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी है जिसके नाम पर यह डाक बंगला समर्पित है .कुछ साल पहले जब मंसूरी के कांदिखाल गया था राष्ट्र सेवा दल के एक शिविर में भाग लेने के लिए तो एनएपीएम के संयोजक जबर सिंह ने मुझे जंगलात विभाग के डाक बंगले में ठहराया था .मैंने उनसे कहा था कि मुझे कैम्पटी जल प्रपात के सामने ठहरना है .साथ में जनसत्ता के समाचार संपादक अरविंद उप्रेती भी थे देहरादून पहुंचा तो जबर सिंह ने बताया कि लोक गायक बल्ली सिंह चीमा को भी आपके साथ इधर आना है .चीमा का मशहूर गीत ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के ,आंदोलनों में काफी गाया जाता है .उन्हें साथ लेकर चला .कुछ देर मंसूरी में चाय के लिए रुके फिर इस डाक बंगले आ गए .दो सूट का यह डाक बंगला भीतर से बहुत साफ सुथरा था और एक आलमारी पुस्तकों से भरी थी .किसी डाक बंगले में पुस्तकालय हो यह बहुत कम देखा है .पता चला इस अंचल की डीएफओ कोई मोहतरमा हैं जिन्हें पढने का शौक है जिसके चलते उन्होंने यह व्यवस्था की .यह बहुत अच्छा लगा .रात में बरसात हुई और हम शमशाद बेगम को सुनते रहे और सामने झरने की आवाज भी सम्मोहित कर रही थी .बहरहाल अब उस पक्षी पर आते हैं जिसके नाम पर इस डाक बंगले का नामकरण किया गया है .यह मोनाल है .
मोनाल को स्थानीय भाषा में ‘मन्याल” व ‘मुनाल’भी कहा जाता है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी, मसूरी, केदारनाथ, पिथौरागढ़, टिहरी, बदरीनाथ, रामनगर, पौड़ी और बागेश्वर के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस खूबसूरत पक्षी के दर्शन होते हैं.मोनाल नर का रंग नीला भूरा होता है एवं सिर पर तार जैसी कलगी होती है. मादा भूरे रंग की होती है. यह भोजन की खोज में पंजों से भूमि अथवा बर्फ खोदता हुआ दिखाई देता है. कंद, तने, फल-फूल के बीज तथा कीड़े-मकोड़े इसका भोजन है. मोनाल एक पहाड़ी पक्षी है और यह हिमालय के 8 से 15 हजार फिट की उंचाई पर पाया जाता है पर ठंढ और बरसात के दिनों में पहाड़ के निचले हिस्से में चला जाता है.चिंता की बात यह है कि इसकी आबादी घट रही है .जो बचे हैं वे शिकारियों की भेंट चढ़ जा रहे हैं .वैसे भी इस समय इधर के जंगलों में जो आग लगी हुई है उससे सबसे ज्यादा परेशान जंगली जानवर और पक्षी हैं .बड़ी संख्या में पक्षी इन आग के शिकार हो रहे हैं ,उनके घोसले जल रहे हैं छोटे बच्चे कहीं भाग भी नहीं सकते .जंगल की आग को लेकर कोई रणनीति काम नहीं कर रही .अंतिम फोटो मोनाल पक्षी की और उससे पहले कैम्पटी की .Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-41108423069121875222019-03-16T18:43:00.000-07:002019-03-16T18:43:15.716-07:00कैंडोलिम के समुद्र तट पर कुछ दिन
<b>अंबरीश कुमार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNnMCvPNAK3LRwb4wh9BWXnAIrP8NaW60IA7FBzhtLox5h7sPnh1y4jY9L03BsGCmyIsVGEtVvlf2Y1v01gCzTPtF94gSDeVlOf4RCt-VXGLOhb76n6XZa14zHk8bU7vOoez2cuyfmMjo/s1600/DSCN6624.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNnMCvPNAK3LRwb4wh9BWXnAIrP8NaW60IA7FBzhtLox5h7sPnh1y4jY9L03BsGCmyIsVGEtVvlf2Y1v01gCzTPtF94gSDeVlOf4RCt-VXGLOhb76n6XZa14zHk8bU7vOoez2cuyfmMjo/s320/DSCN6624.JPG" width="320" height="240" data-original-width="1600" data-original-height="1200" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkyqmZTTf5VhO3d2xrH5Q9CPrngeocGNaGrW14qq9ZRai3xFmCtqs_QZz1ksiAEgHNyYU-NCPD0Lhh1r4mh97Y-2IFWHSw1BkS27NOWZqhwvBI2Iov9UebdgJDOXzEMF97zZTQdXAStcM/s1600/DSCN6673.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkyqmZTTf5VhO3d2xrH5Q9CPrngeocGNaGrW14qq9ZRai3xFmCtqs_QZz1ksiAEgHNyYU-NCPD0Lhh1r4mh97Y-2IFWHSw1BkS27NOWZqhwvBI2Iov9UebdgJDOXzEMF97zZTQdXAStcM/s320/DSCN6673.JPG" width="320" height="240" data-original-width="1600" data-original-height="1200" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3cZn8JKYnTU3Z8KYSfKE3cGvtKmKgYPOewh7pYvVFRKzYlymR3WSIwxqzc-mnzUTxjpW0sg58AdRICSVv8WKoxit6P2sDTlaZVKmxIK3LCam7G5ys39ctjslEZeR1EOyFC3Amb1k7N0E/s1600/download+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3cZn8JKYnTU3Z8KYSfKE3cGvtKmKgYPOewh7pYvVFRKzYlymR3WSIwxqzc-mnzUTxjpW0sg58AdRICSVv8WKoxit6P2sDTlaZVKmxIK3LCam7G5ys39ctjslEZeR1EOyFC3Amb1k7N0E/s320/download+%25281%2529.jpg" width="320" height="213" data-original-width="275" data-original-height="183" /></a></b>
यह कैंडोलिम का समुद्र तट है . दूर तक जाती हुई सफ़ेद रेत . कौन जाने कितनी दूर तक ,इतना चलने की अपनी हिम्मत भी नहीं थी . सुबह के साढ़े पांच थे पर अंधेरा पूरा छटा नहीं था . रात करीब एक बजे गोवा के इस छोटे से कस्बे में पहुंचे थे . रात दिल्ली से चले और गोवा के डाबोलिम हवाई अड्डे से बाहर आते आते बारह बज ही चुके थे . जाना दूर था . करीब पचास किलोमीटर था अपना कैंडोलिम का ठिकाना . इस बार अपन होटल की बजाए एपार्टमेंट में रुके थे . चाय ,काफी ,नाश्ता के अलावा मन हो तो खाना भी बना सके इस वजह से . रात एक बजे जब कैंडोलिम के समुद्र तट के इस कस्बे में पहुंचे तो नजारा ही अलग था . हम तो डर रहे थे की बोतल बंद पानी मिल पाएगा या नहीं क्योंकि दिल्ली से जो पानी लेकर चले थे वह खत्म हो गया था . एयरपोर्ट में टैक्सी लेने की आपाधापी में भूल ही गए . पर जिस न्यूटन सुपर मार्केट के पीछे अपना ठिकाना था उसके सामने और आसपास ज्यादातर रेस्तरां और बार खुले हुए थे . हमें पंजिम का पुराना अनुभव था जहां रात ग्यारह बजे सारे रेस्तरां /बार बंद हो जाते हैं और आटो भी मिलना मुश्किल होता है . जबकि वह गोवा की राजधानी है . और इस समुद्र तटीय कस्बे में रात चार बजे तक रेस्तरां खुले रहते हैं . भारतीय तो कम मिलेंगे पर विदेशी जमे रहते है . पश्चिमी संगीत बजता रहता है . सड़क के ठीक किनारे बैठकर वे अपनी मनपसंद शराब पीते रहतें हैं . कोई रोकटोक नहीं . कैंडोलिम में बहुत कम भीड़ होती है और समुद्र तट साफ़ सुथरा है .
कैंडोलिम गोवा का बहुत खूबसूरत समुद्र तटीय गांव है जो यह गांव सोलहवीं शताब्दी में पूरी तरह ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया था . पंजिम शहर रात ग्यारह बजे भले ही सो जाता हो पर कैंडोलिम के होटल रेस्तरां रात चार बजे तक खुले रहते हैं . राष्ट्रवादी सरकार है पर गैर राष्ट्रवादी सभी सामग्री जगह जगह उपलब्ध है खान पान और संस्कृति पर (पुर्तगालियों ) ईसाइयों का ज्यादा प्रभाव है . यहां सब कुछ खाने को मिलेगा जिसका नाम लेने पर उत्तर भारत में लोग डर जाते हों . सुपर मार्किट में सभी तरह की मदिरा मिलती है . लोग चावल दाल शाक सब्जी के साथ विह्स्की से लेकर वाइन तक खरीदते मिल जाएंगे . इनमे सत्तर साल के बुजुर्ग भी होते है . ईसाई समाज बहुत खुला हुआ होता है और वह सब यहां दिखता भी है . इसबार होटल रिसार्ट और गेस्ट हाउस से बचते हुए दो बेडरूम एपार्टमेंट में ठहरना ठीक लगा जिसमे रसोई और बर्तन होते है . वीएन राय साब ने यह सुझाव दिया था . वे कड़ाके की ठंढ के समय महीना भर इस अंचल में रहते हैं . जगह तो बहुत अच्छी है पर खानपान को लेकर कुछ व्यावहारिक दिक्कत आती है . . अपने को सरसों के तेल में खाना ठीक लगता है और सविता शुद्ध शाकाहारी है जिन्हें उन होटल में जाने में दिक्कत होती है जो लोबस्तर ,प्रान और बीफ आदि परोसते हैं . इसलिए वे नाश्ता भी खुद बना रहीं है और खाना भी . इसलिए सब्जियों के भाव भी पता चले . पहाड़ और मैदान में जो हरी मटर तीस रुपए किलो है वह यहां अस्सी रुपए . खीरा साठ रुपए तो सेब दो सौ रुपए . पर विह्स्की /फेनी तो हर दूकान पर और कोल्ड ड्रिंक के दाम में भी मिल जाएगी . पर हवाई आड़े से यह जगह करीब पचास किलोमीटर दूर है . देर रात में टैक्सी का भाड़ा तीस फीसदी बढ़ जाता है ,दो हजार पड़ा . हमें लगा था रात एक बजे तो सन्नाटा होगा पर पता चला चार बजे तक पूरी रौनक रहती है समुद्र तट के होटल रिसार्ट में . गोवा एक राज्य है और इसके चार समुद्र तट पर रुकना हो चुका था इसलिए अबकी बारी वेगाटार ,बागा और कैंडोलिम समुद्र तट को देखना ठीक लगा . कई महीने बाद गर्म कपड़ों से भी निजात मिली .
अगला पड़ाव था सालिगाव . यह उत्तरी गोवा का छोटा सा गांव है . कलंगूट से ढाई किलोमीटर और कैंडोलिम से नौ किलोमीटर दूर . हम कैंडोलिम से करीब ग्यारह बजे चले . धूप थी पर बहुत तेज नहीं . टैक्सी वाले सात आठ सौ रुपए मांग रहे थे . ज्यादा लगा इसलिए बस में बैठ गए . दस रुपए एक आदमी का भाड़ा था दो बैग थे इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं हुई . गोवा की बसों में दक्षिण के अन्य राज्यों की तरह महिलाओं के लिए कई सीट आरक्षित रहती है . पर सभी को जगह मिल गई . थोड़ी देर का ही रास्ता था पर बस हर जगह रूकती हुई चल रही थी . नारियल के पेड़ों से घिरा रास्ता . दोनों तरफ छोटे पर खूबसूरत घर . कुछ देर में ही हम सालिगाव चौराहे पर उतर गए . यहां समस्या हो गई . ओवाईओ के जिस एपार्टमेंट में फ़्लैट बुक कराया था उसका कोई बोर्ड नहीं लगा था . जिसे ढूंढने में दिक्कत हुई और खीज भी . गुस्से में इसके करता धर्ता को डांट भी दिया . दरअसल यह रिसेप्शन विहीन व्यवस्था थी . यहां आपको कोई व्यक्ति नहीं मिलना था ,सारा इंतजाम खुद करना था . मोबाइल पर एक कोड भेजा गया . इस कोड से फ़्लैट पर लगा एक बड़ा ताला खुला और उसमे से मुख्य दरवाजे की चाभी निकली . दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुए .
भीतर से फ़्लैट ठीक ठाक था . लिविंग रूम में सोफे टीवी के साथ डाइनिंग टेबल थी . दो बेडरूम थे एसी वाले . हर बेडरूम बालकनी के साथ था . सामने बड़ी बालकनी . बालकनी के ठीक सामने से नारियल के बाग़ में बना एक पुराना चर्च दिख रहा था . हम लोग हल्का नाश्ता करके चले थे ,इसलिए फिर कुछ खाने की इच्छा हुई . चार दिन से ऐसे ही एपार्टमेंट में थे इसलिए सारा सामान था . किचन में बिजली वाला चूल्हा और बर्तन के साथ आरओ भी चालू था . सब्जी फल और ब्रेड मक्खन को फ्रीज में रख दिया गया . गाजर ,मटर ,भुनी मूंगफली ,धनिया मिर्च और चिवड़ा था ही इसलिए सविता ने पोहा बनाया . अपने पास इंदौर की अच्छी नमकीन भी थी . पत्रकार धरा पांडे जब लखनऊ आई तो दे गई थी . वह रखा था . पोहा के साथ भुजिया /नमकीन और नींबू का प्रचलन है . नागपुर की तरफ तली हुई हरी मिर्च नमक और नींबू के साथ दी जाती है .
दरअसल पोहा आदि का नाश्ता अपने पुरबिया परिवार में सविता के आने के बाद शुरू हुआ . वे बुन्देलखंड की है जिसपर मराठा खानपान का असर रहा . इसी वजह से पोहा अपने घर में भी ज्यादा बनने लगा . खैर इस एपार्टमेंट के किचन में भी बालकनी थी जो आम और नारियल के बगीचे में खुलती थी . वहीँ कुर्सी लेकर बैठ गया . आम में बौर आ चुके थे . कई जगह आम के टिकोरे दिखे भी . यह आबोहवा का असर था . कुछ देर बाद नीचे उतरे और आसपास निकले . कार्यक्रम बना कि वेगाटार समुद्र तट निकला जाए मापुसा होकर . पीछे ही सालिगाव का मशहूर चर्च था . यह पुराना चर्च है . Mãe de Deus Parish Church 1873 में बना था . इसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं . पर सलिगाव इधर चर्चा में आया पानी बचाने को लेकर . भूजल का दोहन इधर काफी तेज हुआ है जिसे लेकर यहां के लोगों ने चिंता जताई . दरअसल बगल में गोवा का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल कलंगूट है . इधर से पानी उधर जाता है और उधर का कूड़ा कचरा इधर डंप किया जाता है .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-48800846627166560492019-03-04T00:42:00.000-08:002019-03-04T00:42:30.786-08:00इस अहलुवालिया ने तो हवा ही निकाल दी !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-spkeGxj3YuqoBZwwgONepQl50o3kYeeBVQwXmHnO1g1Okw21NQ6LwhV88D1mqmNsE1DEwXmQu6k1NXl7eQzBtUl4Z5SD2nbj5ZcG1b1fGYbfJ1II3O8fEcr6rgIS45_6TZyMVIlihME/s1600/53492946_2162659257148411_4654285226351001600_n.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-spkeGxj3YuqoBZwwgONepQl50o3kYeeBVQwXmHnO1g1Okw21NQ6LwhV88D1mqmNsE1DEwXmQu6k1NXl7eQzBtUl4Z5SD2nbj5ZcG1b1fGYbfJ1II3O8fEcr6rgIS45_6TZyMVIlihME/s320/53492946_2162659257148411_4654285226351001600_n.jpg" width="218" height="320" data-original-width="654" data-original-height="960" /></a>
अंबरीश कुमार
नई दिल्ली .अद्भुत सरकार है यह .ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक की कि देश के लोगों का दिमाग घूम गया है .कहां मारा गया ,किसे मारा गया और कितने मारे गए . जिस पार्टी की सरकार है उसका मुखिया कह रहा है कि पकिस्तान में आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला कर ढाई सौ से ज्यादा आतंकवादी मार गिराए गए .दूसरी तरफ पार्टी अध्यक्ष के इस दावे की हवा खुद सरकार के केंद्रीय मंत्री एसएस अहलुवालिया ने ही निकाल दी .केंद्रीय मंत्री एसएस अहलुवालिया ने कहा है कि इस हमले का उद्देश्य मानवीय क्षति पहुंचाना नहीं बल्कि एक संदेश देना था कि भारत दुश्मन के क्षेत्र में अंदर दूर तक घुसकर प्रहार कर सकता है. अहलुवालिया ने कहा कि न तो प्रधानमंत्री और न ही किसी सरकारी प्रवक्ता ने हवाई हमले के हताहतों पर कोई आंकड़ा दिया है. बल्कि यह तो भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया ही था जहां मारे गए आतंकवादियों की अपुष्ट संख्या की चर्चा हो रही थी. उन्होंने शनिवार को सिलीगुड़ी में संवाददाताओं से सवाल किया कि हमने भारतीय मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें देखी हैं और यह भी देखा कि मोदीजी ने क्या कहा था.यह कहकर उन्होंने भाजपा के चुनावी गुब्बारे की हवा ही निकाल दी है .हो सकता है वे कल को खंडन कर दे पर जो फजीहत वे सरकार की कर चुके हैं उसकी भरपाई संभव नहीं है .अब सभी सरकार की इस कार्यवाई को शक की नजर से देखने लगे हैं .
इससे पहले विदेश सचिव ने इस मामले पर गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड लिया .दरअसल रायटर्स ,बीबीसी और अल जजीरा आदि की रपट के बाद सरकार घिर गई है .सरकार सिर्फ इसलिए घिरी क्योंकि वह सेना के पराक्रम को अपने चुनावी पराक्रम में बदलना कहती थी .वर्ना हमले के दस बारह घंटे बाद ही यह कह सकती थी कि इस हमले का मकसद सिर्फ पकिस्तान को सांकेतिक चेतावनी देना था ,किसी को मारना नहीं .इससे सरकार की प्रतिष्ठा कम नहीं होती .
दरअसल इस हवाई हमले की नाकामी हमारे ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी है दूसरे यह हमारी विदेश नीति की भी नाकामी है .अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया भर में हल्ला नहीं मचाया होता कि भारत पकिस्तान पर कुछ बड़ा करने जा रहा है तो शायद बालाकोट के आतंकी शिविर खाली नहीं मिलते .ट्रंप को इस मामले में डालने का यह बड़ा नुकसान हुआ .दूसरे जिस कश्मीर को हम दो देशों का मुद्दा मानते आएं हैं वह अब पंचायती हुक्का बन चुका है .अब अमेरिका हर बातचीत में दखल भी देगा .यह विदेश नीति में हुए बदलाव का नतीजा है .ओआईसी में बची खुची कसर निकल गई जिसने अपने प्रस्ताव में भारत को कश्मीर में आतंक फैलाने वाला देश घोषित कर दिया .सुषमा स्वराज के लिए इससे ज्यादा फजीहत की बात क्या होगी .चीन किस तरफ है यह सभी को पता है .दरअसल पकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थित के चलते कई देशों की जरुरत बना हुआ है .जिसमे चीन सबसे ऊपर है तो अमेरिका भी उसके बाद ही है .यह बात समझनी चाहिए .ऐसे में बहुत संभल संभल कर कदम रखने की जरुरत थी .
पर मोदी के लिए चुनाव सबसे ऊपर है .जब सीमा पर बम गोला चल रहा था तो भी वे देश में बूथ मजबूत करने में जुटे थे .जब पुलवामा हमला हुआ तो भी वे शूटिंग और चुनाव प्रचार में लगे थे .जब सैनिक का शव पटना आ रहा था तो भी वे रैली में ही थे .कोई मंत्री तक इन शहीदों के घर झांकने नहीं गया . पर चुनाव प्रचार में सैनिक की फोटो ये ढाल बना चुके हैं .इससे न सिर्फ विश्व मंच पर देश की फजीहत हो रही है बल्कि विदेशी मीडिया में भी खिंचाई हो रही है .हमले में मारे गए लोगों की संख्या से यह शुरुआत हुई .सरकार ने जानबूझ कर पहले तीन सौ /चार सौ लोगों के मारे जाने की खबर लीक कराई .ताकि चुनावी प्रचार में माहौल बने और विपक्ष ठंढा पड़ जाए .पर मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इस सर्जिकल स्ट्राइक को मनोरंजन में बदल दिया .कोई सैनिक बनकर टीवी पर आ गया तो कोई तोप तमंचा लेकर .जो संख्या ठीक लगी वह चला दी ,चार सौ कुछ कम लगी तो छह सौ तक पहुंच गए .पर जब अंतरराष्ट्रीय एजंसियों ने खबर लेनी शुरू की तो मामला गड़बड़ा गया .दरअसल सारा मामला ख़ुफ़िया जानकारी का ही था .इसमें चूक हुई होगी यह माना जा रहा है .ख़ुफ़िया तंत्र हमारा इतना लचर कभी नहीं रहा जितना देसी जेम्स बांड डोवाल के समय में हो गया है .वर्ना अर्ध सैनिक बल के इतने बड़े दस्ते के रास्ते में तीन सौ किलो विस्फोटक न आता .घाटी में रोज अपने जो जवान मारे जा रहे हैं उसके पीछे भी ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता बड़ी वजह है .
पर सरकार तो चुनाव का बूथ मजबूत करने में लगी है .लोग समझ नहीं पा रहें हैं कि पचास सैनिक हमारे मारे गए .एक को पकिस्तान ने हमें दिया .नुकसान हमारा ज्यादा हुआ फिर भी ढोल नगाड़ा हम ही बजा रहें है .हम क्यों उत्सव मना रहे हैं यह एक सैनिक परिवार ने भी पूछा .पर कौन सुनता है किसी सैनिक की आवाज .सैनिक की फोटो को जीप के बोनट पर डाल कर वोट जो मांगना है .पर इसमें अहलुवालिया ने खलल डाल दिया है .आप दिग्विजय सिंह को क्या घेरेंगे ,मीडिया को क्या घेरेंगे पहले अपने मंत्री से तो निपट लें जिसने सेना के पराक्रम को पार्टी पराक्रम में बदलने की योजना में पलीता लगा दिया है .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-65645629383427282152019-03-02T18:38:00.000-08:002019-03-02T18:38:54.358-08:00कभी इस गांव में भी रुके <b>
अंबरीश कुमार </b>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixitwjgrwX23AMi_O_HP-4A8E5W40CmJKn7mEdT4R5lJ3oRyI9g39zYmZTHfCj3P03SjLg4hJT-FhWNXbukLXrFGJpDq__DPDrhb82Nr2hIOPMaoCfLwkv3a5nvz1kfzhwTWV5Li3FNok/s1600/DSCN6739.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixitwjgrwX23AMi_O_HP-4A8E5W40CmJKn7mEdT4R5lJ3oRyI9g39zYmZTHfCj3P03SjLg4hJT-FhWNXbukLXrFGJpDq__DPDrhb82Nr2hIOPMaoCfLwkv3a5nvz1kfzhwTWV5Li3FNok/s320/DSCN6739.JPG" width="320" height="240" data-original-width="1600" data-original-height="1200" /></a> का छोटा सा गांव है .कलंगूट से ढाई किलोमीटर और कैंडोलिम से नौ किलोमीटर दूर .हम कैंडोलिम से करीब ग्यारह बजे चले .धूप थी पर बहुत तेज नहीं .टैक्सी वाले सात आठ सौ रुपए मांग रहे थे .ज्यादा लगा इसलिए बस में बैठ गए .दस रुपए एक आदमी का भाड़ा था दो बैग थे इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं हुई .गोवा की बसों में दक्षिण के अन्य राज्यों की तरह महिलाओं के लिए कई सीट आरक्षित रहती है .पर सभी को जगह मिल गई .थोड़ी देर का ही रास्ता था पर बस हर जगह रूकती हुई चल रही थी .नारियल के पेड़ों से घिरा रास्ता .दोनों तरफ छोटे पर खूबसूरत घर .कुछ देर में ही हम सालिगाव चौराहे पर उतर गए .यहां समस्या हो गई .ओवाईओ के जिस एपार्टमेंट में फ़्लैट बुक कराया था उसका कोई बोर्ड नहीं लगा था .जिसे ढूंढने में दिक्कत हुई और खीज भी .गुस्से में इसके करता धर्ता को डांट भी दिया .दरअसल यह रिसेप्शन विहीन व्यवस्था थी .यहां आपको कोई व्यक्ति नहीं मिलना था ,सारा इंतजाम खुद करना था .मोबाइल पर एक कोड भेजा गया .इस कोड से फ़्लैट पर लगा एक बड़ा ताला खुला और उसमे से मुख्य दरवाजे की चाभी निकली .दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुए .
भीतर से फ़्लैट ठीक ठाक था .लिविंग रूम में सोफे टीवी के साथ डाइनिंग टेबल थी .दो बेडरूम थे एसी वाले .हर बेडरूम बालकनी के साथ था . सामने बड़ी बालकनी .बालकनी के ठीक सामने से नारियल के बाग़ में बना एक पुराना चर्च दिख रहा था .हम लोग हल्का नाश्ता करके चले थे ,इसलिए फिर कुछ खाने की इच्छा हुई .चार दिन से ऐसे ही एपार्टमेंट में थे इसलिए सारा सामान था .दरअसल कैंडोलिम में चारो ओर जो होटल रेस्तरां थे उसमे बीफ के व्यंजन भी थे .सविता ठहरी शुद्ध शाकाहारी .साफ़ मना कर दिया कि इन किसी भी होटल में नहीं खाएंगे खुद एपार्टमेंट के किचन में बनाया जायेगा .ठीक बगल में न्यूटन सुपर मार्किट थे .सब्जी भाजी फल से लेकर दाल चावल और फ्रोजेन रोटी तक ले ली गई .मछली भी थी ,अपनी इच्छा भी हुई पर कौन झमेला करता इसलिए मै भी शाकाहारी हो गया .वह सब सामान था ही .किचन में बिजली वाला चूल्हा और बर्तन के साथ आरओ भी चालू था .सब्जी फल और ब्रेड मक्खन को फ्रीज में रख दिया गया .गाजर ,मटर ,भुनी मूंगफली ,धनिया मिर्च और चिवड़ा था ही इसलिए सविता ने पोहा बनाया .अपने पास इंदौर की अच्छी नमकीन भी थी .धरा पांडे जब लखनऊ आई तो दे गई थी .वह रखा था .पोहा के साथ भुजिया /नमकीन और नींबू का प्रचलन है .नागपुर की तरफ तली हुई हरी मिर्च नमक और नींबू के साथ दी जाती है .
दरअसल पोहा आदि का नाश्ता अपने पुरबिया परिवार में सविता के आने के बाद शुरू हुआ .वे बुन्देलखंड की है जिसपर मराठा खानपान का असर रहा .इसी वजह से पोहा अपने घर में भी ज्यादा बनने लगा .खैर इस एपार्टमेंट के किचन में भी बालकनी थी जो आम और नारियल के बगीचे में खुलती थी .वहीँ कुर्सी लेकर बैठ गया .आम में बौर आ चुके थे .कई जगह आम के टिकोरे दिखे भी .यह आबोहवा का असर था .कुछ देर बाद नीचे उतरे और आसपास निकले .कार्यक्रम बना कि वेगाटार समुद्र तट निकला जाए मापुसा होकर .पीछे ही सालिगाव का मशहूर चर्च था .यह पुराना चर्च है .Mãe de Deus Parish Church 1873 में बना था .इसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं .पर सलिगाव इधर चर्चा में आया पानी बचाने को लेकर .भूजल का दोहन इधर काफी तेज हुआ है जिसे लेकर यहां के लोगों ने चिंता जताई .दरअसल बगल में गोवा का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल कलंगूट है .इधर से पानी उधर जाता है और उधर का कूड़ा कचरा इधर डंप किया जाता है .सभी सैरगाहों में कूड़ा कचरा डंप करने की बड़ी समस्या आ रही है .मोदी जी ने स्वच्छता अभियान जो चलाया उसका कुछ असर तो सरकारी स्तर पर हुआ है .यह हमें कैंडोलिम में भी दिखा .वहां सुबह छह बजे से लेकर शाम तक कूड़ा उठाने वाले ट्रक कई बार आते थे .पर ये कूड़ा लेकर जाते कहां थे मालूम नहीं .जारी Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-21088906802112761942019-03-01T09:15:00.000-08:002019-03-01T09:15:17.629-08:00बदलते हुए इस पाकिस्तान को भी देखें <b>
अंबरीश कुमार <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgEFCzdn-R5OqEOZD9n4OSuOU10lABRlqq-ABq_Bq3IjLe4vanywnKImCyh1HeoLu0mlkA2Jj01ovpNLguphg6JjIUAxbnwf3JO25OeMzT8u9mA_rCmcNpn70PeTUCwg2EkD9HrPGW0Ac/s1600/53082566_1058417854344662_655746273789345792_n.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgEFCzdn-R5OqEOZD9n4OSuOU10lABRlqq-ABq_Bq3IjLe4vanywnKImCyh1HeoLu0mlkA2Jj01ovpNLguphg6JjIUAxbnwf3JO25OeMzT8u9mA_rCmcNpn70PeTUCwg2EkD9HrPGW0Ac/s320/53082566_1058417854344662_655746273789345792_n.jpg" width="320" height="240" data-original-width="720" data-original-height="540" /></a></b>
विंग कमांडर अभिनंदन जो पाकिस्तान का जहाज गिरा कर उधर ही गिर गए थे वे लौट आएं हैं . पकिस्तान कट्टरपंथियों का देश रहा है कोई लोकतांत्रिक देश नहीं जिससे दुश्मन देश के किसी सैनिक से सम्मानजनक बर्ताव की उम्मीद की जाए .वे क्या जिनेवा समझौता मानेगा जिसने अपने ही जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया था .भुट्टो की बेटी बेनजीर को इसी देश में चुनाव प्रचार के दौरान बम से उड़ा दिया गया .सौरभ कालिया याद है न और अजय आहूजा भी .ऐसे देश से अपना एक बहादुर सैनिक सकुशल लौट आए तो यह ख़ुशी का मौका है ही .पर इसके पीछे कई और वजह भी है .पकिस्तान का नेतृत्त्व कुछ तो बदला रहा है .रोज मुठभेड़ होने के बावजूद भी .गौरतलब है कि विभाजन के बाद भारत ने धर्म निरपेक्ष रास्ता अपनाया तो पकिस्तान मजहबी कट्टरपंथ के रास्ते पर चला गया .जिसका असर उसके चौतरफा विकास पर पड़ा और अर्थव्यवस्था भी बिगड़ती गई .पाकिस्तान की राजनीति कट्टरपंथियों और सेना के कब्जे में चली गई .कश्मीर के अलगाववाद को उसने हवा दी तो खुद भी आतंकवादियों का शिकार होता रहा है .लंबी सूची है पकिस्तान के उन महत्वपूर्ण लोगों की जिनकी जान आतंकवादियों ने ली .बेनजीर भुट्टो भी उन्ही का निशाना बनी थी .पर अब उसी पाकिस्तान की नई पीढी का रास्ता बदलता हुआ नजर आ रहा है .
अभी तक हमारे जैसे ज्यादातर लोग पाकिस्तान को धर्मांध ,जाहिल और बर्बर मुल्क के रूप में ही देखते रहें हैं .हालांकि कुछ समय पहले एनडीटीवी की रिपोर्टर ने जब पाकिस्तानी छात्राओं से बातचीत की तो काफी हैरानी हुई थी .ये छात्राएं भारत आना चाहती थी ,लोगों से मिलना जुलना चाहती थी .भारत पकिस्तान के बीच नए सिरे से संबंध विकसित हो इस पक्ष में थी .बहुत ज्यादा इस रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया था .पर दो दिन पहले लाहौर प्रेस क्लब पर पकिस्तान के नौजवानों के प्रदर्शन की जो फोटो देखी तो हैरान रह गया .इसमें छात्र छात्राएं भी थी तो बड़े भी .ये भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई की मांग कर रहीं थी .उस पकिस्तान में जो विश्व के सबसे ज्यादा आतंकी संगठनों से घिरा हुआ है .वह पाकिस्तान जो कट्टरपंथ के रास्ते पर है .हर रोज ये कट्टरपंथी लोगों को निशाना बनाते हैं .
ऐसे में नौजवान लड़के लड़कियों का यह प्रदर्शन पकिस्तान की नई पीढ़ी में आ रहे बड़े बदलाव को दर्शा रहा है .इसके पीछे पाकिस्तान के मीडिया की भी भूमिका है .समूचा मीडिया तो नहीं पर बड़ा हिस्सा काफी समय से अपनी निष्पक्षता को बनाए हुए है .वह सरकार से सवाल भी पूछता है और अपनी राय भी मजबूती से रखता है .भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन की वीरता के किस्से पहले वहीँ सामने आए जबकि भारतीय मीडिया इस घटना को ही दबाने में जुटा था .मीडिया की खबरों के चलते ये नौजवान सड़कों पर उतरे और एक भारतीय सैनिक को छोड़ने की मांग की .
वह भी उस माहौल में जब ज्यादर भारतीय चैनल उन्माद फैलाने में जुटे थे .बालाकोट में हवाई कार्यवाई को पर चैनलों ने तीन सौ से लेकर छह सौ आतंकवादी मारे जाने का दावा कर दिया .जबकि रायटर्स ,बीबीसी से लेकर अल जजीरा की रिपोर्ट इन दावों की हवा निकाल रही थी .रायटर्स ने तो सिर्फ एक कौव्वा मारे जाने की भी खबर दी .चूंकि सेना या विदेश मंत्रालय ने मारे गए आतंकवादियों की संख्या या नाम को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी इसलिए जो जिसके मन में आया वह संख्या देने लगा .हिंदी चैनल वैसे भी रिसर्च आदि की ज्यादा जहमत उठाते भी नहीं हैं .खैर ऐसे तनाव वाले माहौल में भारतीय मीडया युद्ध का उन्माद फैला रहा था तो प्रधानमंत्री देश को संबोधित करने की बजाए पार्टी का बूथ मजबूत करने के कार्यक्रम में जुटे थे .जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने देश की संसद में भारतीय विंग कमांडर को छोड़ने का एलान किया .इसपर वहां की संसद में तालियां भी बजी .यह पहली बार हुआ .नौजवान तो सड़क पर उतरे एक भारतीय सैनिक के समर्थन में तो पकिस्तान की संसद ने उस सैनिक की रिहाई का स्वागत किया .यह बदलाव मामूली बदलाव नहीं है .
यह उसी पकिस्तान में हुआ जहां जुल्फिकार अली भुट्टों हजार साल तक लड़ने की बात करते थे .जहां अलगाववादी नेता भारत को नेस्तनाबूद करने की कसम खाया करते थे .उस पकिस्तान में इमरान खान शांति की बात कर रहे हैं .विदेश मामलों के जानकार पत्रकार वेद प्रताप वैदिक इसे इमरान खान की बड़ी कुटनीतिक जीत के रूप में देखते है .विदेशी मीडिया भी इस बदले हुए तेवर की तारीफ़ कर रहा है .थोडा सा पीछे जाएं. इन्ही इमरान खान ने ही करतार साहिब का कारिडोर खोला था .यह कितनी पुरानी मांग थी सिखों की .पाकिस्तान में पहली बार कोई हिंदू महिला जज भी बनाई गई जो अघोषित इस्लामी देश है .ये वही पाकिस्तान है जिसमे सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिलवाया .भगत सिंह के नाम पर लोग सड़कों पर निकल आ रहें है .भगत सिंह के नाम पर चौक बनाने की मांग भी तो नौजवानों ने ही की थी . क्या यह सब बदलाव नए नहीं हैं .ये नई पीढ़ी अब इतिहास को पढ़ रही है और दोनों देशो का इतिहास देख भी रही है .वे तुलना भी तो करते होंगे .भारत कहां से कहां पहुंच गया .शिक्षा में ,स्वास्थ्य के क्षेत्र में ,तकनीक के क्षेत्र में .और पाकिस्तान को कट्टरपंथ की कितनी कीमत चुकानी पड़ी है .ऐसी बहुत सी वजह होगी इस बदलाव के पीछे .पर अगर हम इस बदलाव को अब नहीं देख पाए ,नहीं समझ पाए तो फिर टकराव कभी खत्म नहीं होगा .जिन्हें राजनीति में पिछड़ने की आशंका है वे अब युद्ध का अंतिम हथियार निकालना चाहते हैं .पाकिस्तान बदल रहा है ,कट्टरपंथ के रास्ते से आगे बढ़ना चाहता है और हम पीछे जाने का प्रयास कर रहे हैं .मीडिया का क्या वह तो कभी सरजू लाल कर अयोध्या सामने कर देगा तो कभी भाड़े की वर्दी पहन कर सैनिक बन जाएगा .इसलिए बदलते पाकिस्तान के साथ बातचीत का रास्ता खोलना चाहिए .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-18191357277977827692018-12-15T01:48:00.000-08:002018-12-15T01:48:03.588-08:00द टेलीग्राफ का ऐसे तनकर खड़ा होना ! <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWCFmaPLgY2P9e1mec5Bigg8thl_dMYO6vhqi4Y9Ru5LF_mLJJURzVvrrRZMkPd8-9R-QRXDduXoNJtxdkWiLm2c51PmP4g8z5NOOy8v2usssCqso2UEkgs_9j6ALskO1mlL7FN6BV_TA/s1600/48379320_10213544472787444_228747875125821440_n.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWCFmaPLgY2P9e1mec5Bigg8thl_dMYO6vhqi4Y9Ru5LF_mLJJURzVvrrRZMkPd8-9R-QRXDduXoNJtxdkWiLm2c51PmP4g8z5NOOy8v2usssCqso2UEkgs_9j6ALskO1mlL7FN6BV_TA/s320/48379320_10213544472787444_228747875125821440_n.jpg" width="320" height="295" data-original-width="712" data-original-height="657" /></a>आज के दौर में जब मीडिया घुटने टेक रहा हो तो टेलीग्राफ का तन कर खड़ा होना हमें सत्तर ,अस्सी और नब्बे के दशक में इंडियन एक्सप्रेस की याद दिलाता है .अस्सी के दशक के अंतिम दौर में इंडियन एक्सप्रेस समूह के अख़बार ' जनसत्ता ' से जुड़ना हुआ .वह दौर कांग्रेस का था .बहुत ही उठापटक का भी .बोफर्स का दौर देखा और सरकार पर एक्सप्रेस कैसे हमला करता है यह भी देखा ,देखा ही नहीं उसके हरावल दस्ते का हिस्सा भी रहा .और लोग अख़बार का क्या इन्तजार करते होंगे जब एक्सप्रेस समूह के चेयरमैन श्री राम नाथ गोयनका खुद अपने सुंदर नगर स्थित आवास पर सुबह चार बजे उठकर अपने तीनो अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ,जनसत्ता और फाइनेंशियल एक्सप्रेस का इन्तजार करते थे .कई बार हम लोग देर रात की पाली से जब निकलते तो एक्सप्रेस साथ ले जाते .अख़बार क्या होता है ,उसकी क्या ताकत होती है यह तब देखा .अंग्रेजी में अरुण शौरी तो हिंदी में प्रभाष जोशी के लिखे का इंतजार होता .तब कहा जाता था कांग्रेसी जनसत्ता अखबार बाथरूम में पढ़ते हैं क्योंकि पता चल गया तो पार्टी से बेदखल हो जाएंगे .हमले हुए जनसत्ता के पत्रकारों पर ,हड़ताल हुई और लंबी चली पर अख़बार डटा रहा .तिमारपुर में रहता था ज्यादातर सिख परिवार थे .सुबह देखता तो बालकनी में जनसत्ता पढ़ते नजर आते .ऐसी रिपोर्टिंग सिख दंगों की हुई .बिहार प्रेस बिल आया तो इंडिया गेट पर खुद रामनाथ गोयनका ,कुलदीप नैयर और खुशवंत सिंह जैसे दिग्गज हाथ में प्ले कार्ड उठाए नजर आये .अब वह दौर नहीं रहा .मीडिया का बड़ा हिस्सा सत्ता के खिलाफ लिखने बोलने से बच रहा है .वेब साइट जरुर कुछ मोर्चा लिए हैं .पर टेलीग्राफ का ऐसे तनकर खड़ा होना सुखद है .यह लोकतंत्र के लिए शुभ है .हर अख़बार दब नहीं सकता यह सन्देश भी है .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-89286986781544385792018-12-11T18:26:00.001-08:002018-12-11T18:26:58.141-08:00क्या टूटने लगा है मोदी का तिलिस्म !
<b>अंबरीश कुमार</b>
धान का कटोरा कहे जाने वाले छतीसगढ़ में भाजपा के चाउर वाले बाबा की सरकार जा चुकी है । छतीसगढ़ में भाजपा बुरी तरह हारी है । वोट काटने की रणनीति के चलते खड़े किए गए पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी कोई मदद नहीं कर पाए । राजा महाराजों के अंचल राजस्थान में महारानी का राजपाट भी जा रहा है । सिर्फ मध्य प्रदेश में भाजपा के पिछड़े नेता शिवराज सिंह चौहान ही मुकाबला कर पाए हैं ।हालांकि सपा बसपा ने यह साफ़ कर दिया है कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे ऐसे में कांटे के मुकाबले में मध्य प्रदेश में भी भाजपा का रास्ता बहुत आसान नहीं है । तीनो ही हिंदी भाषी राज्यों में शाम तक के रुझान के मुताबिक भाजपा को बड़ा झटका लगा है ।इसके साथ ही भाजपा के शीर्ष नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है । हिंदी पट्टी जिसे ' गाय पट्टी ' भी कहते है वहां के तीन राज्यों से भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव के मुकाबले बुरी तरह हार गई है।हालांकि भाजपा कई बार चुनाव हारने के बाद भी जोड़ तोड़ से सरकार बना लेती है।राज्यपाल तो अभी अपनी भूमिका निभाएंगे ही । पर भाजपा और मोदी को बड़ा झटका लग चुका है यह वास्तविकता भी है ।
ये वही ' गाय पट्टी ' है जहां भाजपा गाय ,गोकशी और मंदिर का मुद्दा लगातार उठा रही थी । पर जमीनी मुद्दों ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया । इन तीनो राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल थी । कहीं नेतृत्व था तो कहीं बिखरा हुआ नेतृत्व था । कांग्रेस के लिए इन राज्यों में कुछ खोने को नहीं था । हालांकि कांग्रेस ने अगर अपना अहंकार छोड़ कर तीनो ही राज्यों में बसपा सपा के साथ गठजोड़ किया होता तो जीत और बड़ी होती । राहुल गांधी के लिए भी यह एक सबक है ।इसके बावजूद राहुल गांधी की राजनैतिक ताकत बढ़ी है । पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी मोदी को सीधी चुनौती देते रहे हैं । राहुल गांधी ने नोटबंदी ,राफेल से लेकर बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाने वाले उद्योगपतियों का सवाल ढंग से उठाया था । संजोग से आज ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल का पार्टी अध्यक्ष के रूप में एक साल पूरा हुआ है।साल भर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कैसा काम किया यह उसका नतीजा भी है।पिछले एक दशक में<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWzeFFVds_Cs20RU2hoy5uKq2hNTzkI9EmjMzQn5pEo911m6bQhBSeaohhuq4AzwblyOhj3YWVymmM6cgd_PYrzor2_MNlJDc87b-6W2f0SpbX_bGPvHs9Hvn0YepGJaWrnu4xvAeNM6I/s1600/PM-Modi.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWzeFFVds_Cs20RU2hoy5uKq2hNTzkI9EmjMzQn5pEo911m6bQhBSeaohhuq4AzwblyOhj3YWVymmM6cgd_PYrzor2_MNlJDc87b-6W2f0SpbX_bGPvHs9Hvn0YepGJaWrnu4xvAeNM6I/s320/PM-Modi.jpg" width="320" height="180" data-original-width="885" data-original-height="499" /></a> की राजनीति में काफी बदलाव आया है । अब वे अपनी तीखी राजनैतिक टिपण्णी की वजह से भी चर्चा में रहते हैं । जैसे कभी मोदी अपने भाषण की वजह से चर्चित हुए थे । पर अब तो मोदी के भाषण भी उनकी हताशा को दर्शा रहे हैं तो सरकार के कामकाज को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं । अब मोदी के भाषण में न तो राजनैतिक धार बची है न ही भाषा की मर्यादा ।' कांग्रेस की विधवा ' वाली टिपण्णी की देशभर में मोदी की निंदा हुई है । बहरहाल सरकार का कामकाज ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है ।
मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कामकाज का भी यह नतीजा है।यह चुनाव नतीजा कामकाज और भाषण के फर्क को भी दर्शाता है।आप बहुत अच्छे वक्ता हो सकते हैं पर अगर सरकार ढंग से नहीं चला सकते हैं तो आम जनता को ज्यादा दिन भरमा नहीं सकते ।साफ़ है केंद्र और राज्य सरकार ने जो भी काम करने का दावा किया था वह जमीनी स्तर पर हवा में था । दूसरे उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में भाजपा जिस हिंदुत्व के मुद्दे को उभारने में जुटी थी उसका कोई बहुत ज्यादा असर इन राज्यों पर नहीं पड़ा । किसानो का सवाल ,नौजवानों का सवाल हो या दलित आदिवासियों का सवाल ज्यादा प्रभावी रहा । इन तीनो हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था । तरह तरह के घपले घोटाले तो थे ही साथ ही सरकार के कामकाज के तौर तरीकों से हर वर्ग नाराज हो रहा था । सबसे ज्यादा नाराजगी किसानो को की थी .नतीजा सामने है । दो राज्यों में तो काफी लंबे समय से ही भाजपा की सरकार थी.राजस्थान में पांच साल में ही भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था ।
इन चुनाव नतीजों पर बात करने से पहले देश में पिछले एक वर्ष की घटनाओं पर नजर डालें।सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चार जज सार्वजनिक रूप से प्रेस कांफ्रेंस करते हैं।वे चीफ जस्टिस की मनमानी के खिलाफ सवाल उठाते हैं।मुद्दा मनचाही बेंच को मनचाहा मामला देने से शुरू हुआ।जानकारी के मुताबिक केस था लालू प्रसाद यादव वाला।विवादों में घिरे चीफ जस्टिस के खिलाफ कांग्रेस महाभियोग प्रस्ताव भी लाती है।हाल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर हुए जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मीडिया कप बताया कि चीफ जस्टिस किसी बाहरी ताकत के इशारे पर काम कर रहे थे।यह आरोप आजाद भारत में पहले कभी नहीं लगा।लोकतंत्र का एक स्तंभ न्यायपालिका की साख किस तरह गिरी यह इस उदाहरण से साफ़ है।अब आइए सीबीआई पर।सीबीआई चीफ को सरकार ने तब छुट्टी पर भेजा जब उनके मातहत अफसर पर सीबीआई ने ही आपराधिक मामला दर्ज कर लिया।इस मामले के तार प्रधानमंत्री कार्यालय तक जुड़े हैं ऐसा आरोप लगा है।सोमवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया।उससे पहले सरकार और रिजर्व बैंक के बीच हुआ विवाद चर्चा का विषय बना रहा।यह बानगी है मोदी सरकार के कामकाज की।नोटबंदी से लेकर जीएसटी जैसे मुद्दों को अलग रखे।डीजल पेट्रोल के लगातार बढती कीमतों को भी अलग रखे तो भी केंद्र सरकार के खिलाफ हिंदी पट्टी में एक आक्रोश तो उभरता हुआ दिख ही रहा था। जिन हिंदी भाषी राज्यों में चुनाव हुए उन सभी राज्यों में अलग अलग मुद्दे प्रभावी हुए। छतीसगढ़ में भाजपा ने चुनाव से पहले ही बहुत जोड़तोड़ किया था पर मामला बना नहीं । अजीत जोगी वाला पैंतरा भी नहीं चला ।भाजपा तो जा ही रही है साथ ही जोगी को भी निपटाती जा रही है ।
पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इन तीनो राज्यों के चुनाव के बाद की राजनीति हो गई है । अब लोकसभा का चुनाव सामने है । विपक्ष एकजुट होने लगा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न सिर्फ एकजुट विपक्ष की बड़ी चुनौती मिलेगी बल्कि पार्टी के भीतर भी चुनौती मिल सकती है । अब मोदी का चेहरा पार्टी को लोकसभा चुनाव में जीत दिला पाएगा या नहीं यह सवाल भी उठ सकता है । पार्टी ही नहीं संघ नेतृत्व में भी मंथन तो होगा ही । संघ अगर भाजपा के लौह पुरुष रहे आडवाणी को हाशिए पर डाल सकता है तो दूसरे को भी उसी रास्ते पर भेजने में वे क्यों हिचकेंगे । इसकी बड़ी वजह उत्तर प्रदेश और बिहार की मौजूदा बदलती राजनैतिक स्थितियां हैं ।बिहार में भाजपा
लगातार कमजोर हो रही है ।उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का मुद्दा अब भाजपा के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है । दूसरे बसपा और सपा के बीच गठजोड़ होना तय है ,ऐसे में भाजपा को सबसे बड़ी चुनौती यूपी से ही मिलेगी ।प्रदेश से भाजपा में सबसे ज्यादा सीटें जीती है । इन तीनो राज्यों के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी असर पड़ना तय है । हालांकि दिल्ली में विपक्ष की राजनीति से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जिस तरह दूरी बनाई हुई है वह समझ से बाहर है। जबकि अब क्षेत्रीय दल सीबीआई के खौफ से मुक्त होते जा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा । आज दिल्ली के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित संशोधित टिपण्णी Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-60810857555697273352018-12-09T18:57:00.001-08:002018-12-09T18:57:30.710-08:00 मुंबई में लखनऊ देखना है तो आएं !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYmCqqWHM5b4X8iZKwcPN7hfjGVgrZ3rnJzbKjkDHfkUbkn7VO0_TnZfMbCIkiCkU6Z4TRX9AMjR6NpJdiu0EQOdCxFKAWUlARZhzcRzXYkGaooNm91Jl-tt167PRau3v7ny01wlbIBCA/s1600/lucknow_1500319717.jpeg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYmCqqWHM5b4X8iZKwcPN7hfjGVgrZ3rnJzbKjkDHfkUbkn7VO0_TnZfMbCIkiCkU6Z4TRX9AMjR6NpJdiu0EQOdCxFKAWUlARZhzcRzXYkGaooNm91Jl-tt167PRau3v7ny01wlbIBCA/s320/lucknow_1500319717.jpeg" width="320" height="213" data-original-width="750" data-original-height="500" /></a>
<b>आलोक जोशी </b>
दो हिस्सों में लिखा था। मगर अब पूरा एक साथ लगा रहा हूँ। और जो लोग रह गए उनके लिए एक ख़बर। मजाज़ की दास्तान का एक और शो है मुंबई में। अगले शनिवार पंद्रह दिसंबर । बायकला में।
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मैंने पहले भी कहा हिमांशु बाजपेयी अपने आप में चलता फिरता लखनऊ हैं। रामगढ़ में एक मुख्तसर सी मुलाक़ात। फेसबुक पर कुछ देखा देखी और कभी कभार फोन पर कुछ सवाल जवाब। यही था मेरा और हिमांशु का रिश्ता। अतुल तिवारी के शब्दों में लखनऊ का लड़का। लखनऊ के बुजुर्ग लड़के नए वालों को ऐसे ही बुलाते हैं।
तो जनाब ख़बर मिली कि हिमांशु आ रहे हैं और मजाज़ की दास्तान ला रहे हैं। मन हुआ कि चलो सुना जाए। भाई उस लड़के को क्यों न सुना जाए जो लखनऊ से दिल लगाए है और जिसके दिल में बसा लखनऊ साथ साथ दुनिया का दौरा करता है, अपना रंग बखेरता है।
तो हम सुनने गए थे हिमांशु को। लगातार दो दिन। शनिवार और रविवार। दास्तान ए आवारगी यानी क़िस्सा मजाज़ लखनवी का। Dastan-e-Aawaargi ( A Dastangoi Performance by Himanshu Bajpai)
शनिवार बांद्रा के कुकू क्लब में फ़ुल हाउस। पहले तो हिमांशु ने सिखाई रिवायत दास्तान गोई की, फिर ये भी बताया कि यहाँ तालियाँ बजाना गुनाह होता है। दिल खुश हो तो दाद दीजिए। मगर दाद की भी कुछ शर्तें हैं, वरना वाह वाह को आह आह में बदलते वक़्त नहीं लगता।
ज़ाहिर है, महफ़िल को अदब सिखाना भी तो लखनऊ का फ़र्ज़ है। तो फ़र्ज़ अंजाम दिया गया और शुरू हुई -दास्तान ए आवारगी।
बस शुरू होने का ही होश है, बाद उसके तो हम बस घूँट घूँट भरते गए और मजाज़ दिल में उतरते गए। कब कहें वाह! कब न कहें, सोचने की कोई ज़रूरत ही न रही।
मजाज़ को जानना हो, गहराई से पहचानना हो और अपने दिल में उतारना हो, तो बस हिमांशु की ये दास्तान सुननी काफी है। और अगर आपने ये न सुनी तो जितना भी मजाज़ पढ़ा सुना हो, सब नाकाफ़ी है।
तकलीफ़ सिर्फ ये कि कुकू क्लब में महफ़िल की शुरुआत में ही सख़्त हिदायत दी गई कि मोबाइल बंद कर दें और फ़ोटो खींचने या वीडियो बनाने की जुर्रत न करें।
मगर बाद में लगा कि ये तकलीफ़ दरअसल कोई तकलीफ़ नहीं दिमाग का वहम था। ...2
...
आप पूछेंगे कि क्यों था दिमाग का वहम? तो जवाब अगले दिन मिला। जब भवन्स के एस पी जैन कॉलेज में हिमांशु Himanshu Bajpai फिर पहुँचे दास्तान ए आवारगी के साथ। और हम भी पहुँचे। इस बार Namita, Vineeta और Siddharth के साथ। यहाँमाहौल कुछ फ़र्क़ था। Ajay Brahmatmaj जी भी मिल गए और Ila Joshi भी।
महफ़िल थी चौपाल। आग़ाज़ ही हुआ अतुल तिवारी की एक शानदार तक़रीर से जिसने ज़मीन बना दी, हवा में नमी घोल दी और हाज़रीन नाज़रीन को बेताब कर दिया सोचने के लिए कि आख़िर अब क्या बचा है जानने को जो हिमांशु की दास्तान में मिलेगा?
महफ़िल की शान में चार चाँद लगाने दास्तान सुननेवालों की अगली क़तार में गुलज़ार साहब भी मौजूद थे।
फिर शुरू हुआ क़िस्सा असरारुल हक़ ‘मजाज़’ लखनवी का। और फिर महफ़िल पर रंग छाने लगा। यहाँ बहुत से थे जो घूँट घूंट पी रहे थे और वाह वाह बरसा रहे थे।
बोल अरी ओ धरती बोल, राज सिंहासन डांवाडोल!
यहाँ से लेकर, आवारगी को बख़्शी गई इज़्ज़त और न जाने कितनी हसीनाओं के ख़्वाब के तारे, आँख के काजल, दिल के क़रार और अरमानों के क़ुतुबमीनार मजाज़ लखनवी की शायरी में औरत के मेयार पर जो और जिस अंदाज में हिमांशु ने रौशनी डाली वो क़ाबिले ग़ौर नहीं, क़ाबिले तारीफ नहीं सिर्फ क़ाबिले रश्क है। -हाय हिमांशु, ऐसा कभी हम क्यों न कर पाए!
ये दूसरी शाम भी दिल में उतर गई, एक जगह घर कर गई। और अब समझिए कि रिकॉर्डिंग न करने की हिदायत तकलीफ़ के बजाय तोहफ़ा क्यों थी।
क्योंकि लगातार दो शाम एक ही दास्तान दोबारा सुनने में भी कहीं यूँ नहीं लगा कि ये तो कल ही सुना था। दोनों बार पूरा मजा आया, नए सिरे से आया। कुछ बहुत फर्क भी था। हाजरीन को देखकर अंदाज भी बदल रहा था तो सुननेवालों का मिज़ाज भी।
अाखिर में गुलज़ार साहब ने दो लाइनें बोलीं मगर सब कुछ कह दिया। उन्हीं की दो लाइनें - हिमांशु , कहा गया कि आप मजाज़पर तालिबे इल्म ( विद्यार्थी) हैं, मगर आप तो मजाज़ पर पूरे प्रोफ़ेसर निकले।
- मार्क्सिज्म के बारे में और कुछ भी कहा जाए लेकिन अगर मार्क्सिज्म ने हमें एक मजाज़ दिया तो उसकी कामयाबीके लिए इतना ही काफी है।
बधाई Himanshu Bajpai और शुक्रिया Dastan-e-Aawaargi ( A Dastangoi Performance by Himanshu Bajpai) के लिए।साभार Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-61853269837973380432018-12-05T05:12:00.000-08:002018-12-05T05:12:25.266-08:00अब यूपी में दंगाई भीड़ को भी मुआवजा !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtZTA743L9j7m0rlGwFm1q-6_pATfQIoolZOck2vU7b3ukSl6BkouDAuoLVtzSj-J0c5j1Gk1DMGRHuoCq6H87pGHgNICSyvDAdsRFqGpiDkRZw1DVdDkCe9uvL6SUvxsIvsbiOLn1GrU/s1600/107304-mwwrchbymp-1543948023.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtZTA743L9j7m0rlGwFm1q-6_pATfQIoolZOck2vU7b3ukSl6BkouDAuoLVtzSj-J0c5j1Gk1DMGRHuoCq6H87pGHgNICSyvDAdsRFqGpiDkRZw1DVdDkCe9uvL6SUvxsIvsbiOLn1GrU/s320/107304-mwwrchbymp-1543948023.jpg" width="320" height="168" data-original-width="900" data-original-height="473" /></a>
अंबरीश कुमार
लखनऊ .अब यूपी में दंगाई भीड़ को भी मुआवजा देने की शुरुआत हो गई है .यह भाजपा की सुशासन वाली सरकार का काम है . उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सांप्रदायिक भीड़ एक पुलिस अफसर की हत्या कर देती है .हत्या में जो नामजद होते हैं वे संघ परिवार से जुड़े बजरंग दल के लोग हैं .भीड़ ने किस तरह हत्या की यह वीडियो भी वायरल होता है .सभी हत्यारों के नाम पता भी पुलिस के पास है .पर इस घटना के बाद सूबे के मुख्यमंत्री पुलिस अफसरों के साथ जो बैठक करते हैं लगता है बजरंग दल ने बुलाई है .पुलिस अफसर की हत्या हुई और बैठक की सरकारी प्रेस रिलीज पूरी तरह बजरंग दल को समर्पित नजर आई .पुलिस अफसर की हत्या पर दो शब्द नहीं और गाय के नाम पर हत्यारी भीड़ का नेतृत्व कर रहे को मुआवजा .यह किस तरह का सुशासन उत्तर प्रदेश में भाजपा ला रही है .भाजपा के और भी मुख्यमंत्री हुए हैं .कल्याण सिंह से लेकर राजनाथ सिंह तक .कभी पुलिस अफसर पर हमला करने वाले के सामने कोई सरकार इस तरह नतमस्तक नहीं हुई है .एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के दौर की एक घटना का हवाला देते हुए लिखा है कि कैसे उन्हें मुख्यमंत्री ने पार्टी के करीबी बदमाश पर कार्यवाई की पूरी छूट दी .और एक सरकार यह है .जिसने दंगाई भीड़ को भी मुआवजा दे दिया है.यह एक ऐतिहासिक घटना है .इसका असर दूरगामी पड़ेगा .इस घटना से भाजपा के सुशासन के दावे की धज्जियां उड़ गई हैं .
शहरी मध्य वर्ग भाजपा का समर्थन तो करता है पर बवाल फसाद के साथ नहीं खड़ा होता .मुलायम सिंह यादव से शहरी मध्य वर्ग की बड़ी खुन्नस उनके लाठी वाले समर्थकों से थी .वे आज भी मुलायम सिंह वाली समाजवादी पार्टी को गुंडों की ही पार्टी मानते हैं .वीपी सिंह ने जब दादरी को लेकर अभियान छेड़ा तो किसान उत्पीडन के साथ मुलायम सिंह यादव की इसी लाठी वाली छवि को मध्य वर्ग के बीच पहुंचा दिया .राज बब्बर ने देवरिया से दादरी तक की जो यात्रा कुशीनगर से शुरू की उस सभा का मुख्य नारा था , जिस गाड़ी पर सपा का झंडा ,उस गाड़ी में बैठा गुंडा .यह वही दौर था जब एक लोहिया के नाती ने कैसरबाग में पुलिस इन्स्पेक्टर को बोनट पर टांग कर घुमाया था .ऐसी ही बहुत सी घटनाएं हुई और मुलायम सिंह सत्ता से बेदखल हो गए .शहरी मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा भाजपाई हो गया है पर
कभी अपने बेटे बेटी को हुडदंगी या बजरंगी नहीं बनाना चाहता .वह तो खुद के लिए एक सुरक्षित समाज चाहता है .वह अयोध्या में मंदिर चाहता था और वोट भी दिया .पर दंगा फसाद नहीं चाहता .मुझे याद है यूपी विधान सभा का दो हजार बारह का चुनाव प्रचार जब अखिलेश यादव आगे बढ़ रहे थे और मीडिया उन्हें ख़बरों से बाहर किये था .एक वरिष्ठ पत्रकार ने तब कहा था ,अब भाजपाई चाहे जो कटवा दे ये इस बार सत्ता से बहुत दूर हैं . साफ़ कहना था कि मवेशी कटवाने से हर बार सरकार बना लें यह संभव नहीं है .बुलंदशहर में जो हुआ उसकी खोजबीन अभी हो रही है .पर यह साफ़ है कि साजिश दंगा कराने की थी .वह नाकाम रही .इस घटना से बड़ा हिंदू समाज भी डर गया है .ये किस भीड़ का समर्थन किया जा रहा है जो एक हिंदू पुलिस अफसर को दौड़ा का मार डालती है .और आप इस दंगाई भीड़ के साथ खड़े हो गए हैं .उन्हें मुआवजा दे रहे है .क्या उस पुलिस अफसर की बीबी ,बहन और बेटे की बात सुनी .सुन लीजिये यह भी एक हिंदू परिवार की आवाज है .
कार्टून साभार -सत्याग्रह Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-78091567162740026262018-12-03T08:54:00.000-08:002018-12-03T08:54:30.748-08:00उनका इस्लाम और हमारा हिंदुत्व
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikNQYwACgGjuFqUeelpET0ATZAIPf5hIAKxGfPDgLRjEQS4PzoNDmX7Yg-0_hXXsr7E6weDScHsupO_8KdGi6vDquDVpXn4mbbCueHQ_li7fzO1F0UO-Fwln8CHRtG_vhyphenhyphenzhjFt8OF3ng/s1600/Bulandshahar-1-1-620x400.jpeg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikNQYwACgGjuFqUeelpET0ATZAIPf5hIAKxGfPDgLRjEQS4PzoNDmX7Yg-0_hXXsr7E6weDScHsupO_8KdGi6vDquDVpXn4mbbCueHQ_li7fzO1F0UO-Fwln8CHRtG_vhyphenhyphenzhjFt8OF3ng/s320/Bulandshahar-1-1-620x400.jpeg" width="320" height="206" data-original-width="620" data-original-height="400" /></a>
पकिस्तान में कट्टरपंथी मुसलमानों को इस्लाम की शिक्षा दे रहे हैं .कई वर्षों से ,कट्टरपंथियों ने इस्लाम सिखाते सिखाते हजारों मुसलमानों को मार डाला .भारत में यह मौका पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व सिखाने वालों को खुलकर मिला है .अब अपना हिंदुत्व भी पकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ जुगलबंदी करने लगा है .बुलंदशहर में हिंदुत्व सिखा रही इस भीड़ को देखें ये बेरोजगार हैं जो हिंसक भीड़ में बदल गए नौजवान हैं .बेरोजगार न होते तो ढेला ,पत्थर और कट्टा लेकर सड़क पर कैसे उतरते .बेरोजगार हिंदू भी एक बड़ी ताकत है .जिसका श्रेय सरकार को देना चाहिए .हिंदुत्व के नामपर बड़ा राजनैतिक एजंडा इन्हें दे दिया गया है .आज इन्होने हिंदुत्व सिखाते सिखाते एक थानेदार को मार डाला .वह थानेदार हिंदू ही था .यह वह शुरुआत है जो पकिस्तान में काफी पहले हो चुकी है .हमारे यहां अब हो रही हैं .इस मामले में भाजपा नेताओं का कोई दोष भी नहीं .उनके पुत्र पुत्री तो विदेशों में डाक्टर /इंजीनियर /प्रबंधन की पढ़ाई करते हैं .वे कोई जाहिल नहीं है जो इस रास्ते पर जाएं .इसलिए तो मोदी कहते हैं ,कांग्रेस हमें हिंदुत्व न सिखाए .यह काम तो बेरोजगार हिंदू नौजवानों की भीड़ करने ही लगी है .यह होता है असर धार्मिक और मजहबी एजंडा का .उनको कौन हिंदुत्व सिखा सकता है ,उन्होंने हिंदुत्व सिखाने वाली धर्मान्ध और बेरोजगार हिंसक भीड़ सड़क पर उतार दी है . जो गाय के नाम पर थानेदार तक की हत्या कर देती है . देखिये कभी आपका हिंदू परिवार उनके रास्ते पर न आ जाए .वे किसी को पहचानते नहीं है ,हिंदू को भी नहीं छोड़ेंगे .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-60975723630164442852018-11-30T19:58:00.000-08:002018-11-30T19:58:09.859-08:00जन आंदोलनों का चेहरा हैं मेधा पाटकर<b>अंबरीश कुमार <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjxdqtVMPzQePFfxjdapncKJregV2zoGLuvewi6fM_42IL_K__Cw3wwkZCWC2vowYh_ifHGUD6ves0-RvctM5JCmRsY3s5vxgVzi7vEEtxgzH2wEQR84YrCDgypRiyG-hlGWcg2rqAv7E/s1600/Medha-Patkar-Images-1-700x403.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjxdqtVMPzQePFfxjdapncKJregV2zoGLuvewi6fM_42IL_K__Cw3wwkZCWC2vowYh_ifHGUD6ves0-RvctM5JCmRsY3s5vxgVzi7vEEtxgzH2wEQR84YrCDgypRiyG-hlGWcg2rqAv7E/s320/Medha-Patkar-Images-1-700x403.jpg" width="320" height="184" data-original-width="700" data-original-height="403" /></a></b>
मेधा पाटकर को जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई .मेधा पाटकर देश में जन आंदोलनों का चेहरा हैं .मैंने बहुत कम लोगों को इस तरह रोज रोज यात्रा करते और जगह जगह आन्दोलन के लिए जाते देखा है .खांटी समाजवादी साथी सुनीलम और विजय प्रताप जैसे कुछ अपवाद जरुर हैं .समाजवादी आंदोलन से ही मेधा भी निकली और लगातार संघर्ष करती रही .कुछ यात्रा अपने साथ भी हुई और काफी यादगार भी खासकर करीब डेढ़ दशक पहले बस्तर की यात्रा .मुझे जगदलपुर जाना था ,मेधा पाटकर रायपुर में थीं उनका फोन आया और कहा कि वे भी साथ चलेंगी .नगरनार स्टील प्लांट का आंदोलन चल रहा था .साथ ही चलीं और मै जगदलपुर के सर्किट हाउस में ठहर गया वे एक वरिष्ठ वामपंथी नेता के घर रुकी और रात के खाने पर वहीँ बुलाया .दिन में नगरनार के आंदोलनकारियों के बीच जाना हुआ .दूसरे दिन सुबह जगदलपुर से रायपुर लौटना था .मै सर्किट हाउस में नाश्ता कर रहा था तभी बाहर से शोर शराबे की आवाज आई .पता चला मेधा मुझसे मिलने आ रही थीं और विकास समर्थक ताकतों को उनके आने की खबर मिल गई और करीब पच्चीस तीस लोग हुल्लड़ मचाते वहां पहुंच गए .ये यूथ कांग्रेसी थे ,लंपट किस्म के .ये आदिवासियों की जमीन छीनकर उन्हें कारपोरेट घरानों को दिए जाने का समर्थन कर रहे थे .कारपोरेट घराने ऐसे विकास समर्थकों पर काफी पैसा खर्च करते हैं .भ्रम मत पालिएगा इसमें कांग्रेसी और भाजपाई साथ साथ होते हैं .खैर अपने साथ जनसत्ता के जगदलपुर संवाददाता वीरेंद्र भी थे जो सेना की नौकरी निकलकर पत्रकारिता में आए .वे भीड़ में घुसे और मेधा को निकाल कर बाहर लाए .तब तक सुरक्षा में तैनात पुलिस भी पहुंच गई .
हम लोग सुरक्षित निकले .साथ में डेक्कन हेरल्ड के अमिताभ तिवारी और मेरा छोटा बेटा अंबर भी था जो साथ जरुर जाता .जगदलपुर से कुछ दूर जाने पर बस्तर गांव आया और सड़क के किनारे एक चाय पकौड़ी वाला दिखा .मेधा ने कार रुकवा दी .बोली पकौड़ी खाई जाएगी .साथ ही पानी की बोतल निकाली और बोली इसे नल से भरवा दीजिए .हम हैरान ,अमूमन बाहर इस तरह की पकौड़ी आदि से बचता हूं .पर वे बेफिक्र थी .आटे की पकौड़ी खाई ,चाय पी और हैंड पंप का पानी .बताया कि वे बोतल वाला यानी मिनरल वाटर नहीं पीती हैं जो पानी आम लोग पीते हैं वही वे भी पीती हैं और वैसा ही खानपान भी .चलते चलते काफी बातचीत होती रही .तभी मुख्यमंत्री अजीत जोगी का फोन आया .वे मेधा पाटकर पर बरस पड़े .सारी घटना की जानकारी उन्हें मिल चुकी थी .वे इस बात से नाराज थे कि वे उन्हें बिना बताए जगदलपुर के आंदोलन में गई क्यों ? दूसरे मेरे साथ क्यों गई .अपने साथ भी तबतक सरकार के संबंध खराब हो चुके थे खबरों को लेकर .बहरहाल रात के खाने पर उन्होंने मेधा को बुलाया .हालांकि मेधा पाटकर बहुत आहत हो चुकी थी .खैर यात्रा पूरी हुई .इसके बाद फिर वर्ष दो हजार बारह में नागपुर से छिंदवाडा की यात्रा मेधा के साथ हुई .जिसका लिंक कमेन्ट बाक्स में हैं .मेधा पाटकर जब भी अनशन करती है तो आशंकित हो जाता है .वे जिद्दी हैं इसलिए .देश को उनकी जरुरत हैं .यह दिन बार बार आये .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-51421996838336610952018-11-29T08:04:00.000-08:002018-11-29T08:04:12.156-08:00राजपथ पर बिवाई फटे नंगे पैरअंबरीश कुमार
<i>सिर्फ किसान ही नहीं आदिवासी ,गरीब और गांव सभी हाशिये पर है। जल, जंगल और जमीन का संघर्ष जगह जगह चल रहा है पर मीडिया में उसे काफी कम जगह मिलती है। किसान जगह जगह संघर्ष कर रहा है ।उत्तर प्रदेश के महोबा से लेकर छत्तीसगढ़ के महासमुंद तक।बंगाल से लेकर महारास्त्र के विदर्भ तक । कही पर खाद ,पानी और बिजली की मांग करता किसान पुलिस की लाठी खाता है तो कही पर संघर्ष का रास्ता छोड़ कर ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो जाता है । बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ तक किसान मौत को भी गले लगा रहे है । किसान फिर दिल्ली के राजपथ पर चल रहे है .कोई फर्क नहीं आया पहले से आज के हाल में .कुछ वर्ष पहले ऐसे ही किसान मार्च पर जनसत्ता में एक टिपण्णी लिखी थी वह याद आ गई .</i>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2kt__7jK14jqU5pOmVJtW1GIeVwZNzxlRLdxNDuOHfG_sCnfplnnMWbWD29oBBHgD9cMCsMKrQ8D7oJSj3RalMDMoXuQK1aToAuguudtfb9JiXbBVeShr8cd6HMuvI_BOD62LcHdNneE/s1600/01-U83A4252.width-1400.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2kt__7jK14jqU5pOmVJtW1GIeVwZNzxlRLdxNDuOHfG_sCnfplnnMWbWD29oBBHgD9cMCsMKrQ8D7oJSj3RalMDMoXuQK1aToAuguudtfb9JiXbBVeShr8cd6HMuvI_BOD62LcHdNneE/s320/01-U83A4252.width-1400.jpg" width="320" height="213" data-original-width="1400" data-original-height="933" /></a>हाल ही में लुटियन की दिल्ली के चमचमाते राजपथ पर जब बेवाई फटे नंगे पैर हाथ में गन्ना लिए धोती कुरते वाला किसान नज़र आया तो नव दौलतिया वर्ग ने जो कुछ हिकारत की भाषा में कहा उसे टीवी वालो ने पूरे देश को परोस दिया था। किसान दिल्ली कोई पिकनिक मनाने नहीं आये थे ,वे देश की सबसे बड़ी पंचायत से गुहार लगाने आये थे। वे बिचौलिये की तरह मुनाफा बढाने का नाजायज हथकंडा नहीं अपना रहे थे बल्कि महात्मा गाँधी के रास्ते पर चलते हुए सत्याग्रह करने आये थे।मीडिया के एक तबके ने भी अन्नदाता की खिल्ली उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । पहले भारत की जो छवि विदेशी मीडिया देश के बाहर बनता था आज किसान की वही छवि देसी मीडिया देश में बनता है ।
सिर्फ किसान ही नहीं आदिवासी ,गरीब और गांव सभी हाशिये पर है। जल, जंगल और जमीन का संघर्ष जगह जगह चल रहा है पर मीडिया में उसे काफी कम जगह मिलती है। किसान जगह जगह संघर्ष कर रहा है ।उत्तर प्रदेश के महोबा से लेकर छत्तीसगढ़ के महासमुंद तक।बंगाल से लेकर महारास्त्र के विदर्भ तक । कही पर खाद ,पानी और बिजली की मांग करता किसान पुलिस की लाठी खाता है तो कही पर संघर्ष का रास्ता छोड़ कर ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो जाता है । बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ तक किसान मौत को भी गले लगा रहे है । विदर्भ के ११ जिलों में वर्ष 2001से जनवरी २००९ तक 48०6 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। केंद्र सरकार के पैकेज के बाद औसतन दो किसान रोज खुदकुशी कर रहे हैं। ।साहूकारों के कर्ज में विदर्भ के ज्यादातर किसान परिवार डूबे हैं। इनकी मुख्य वजह वित्तीय संस्थानों और बैंकों का यहां के किसानों की उपेक्षा किया जाना है।विदर्भ में किसान जो कर्ज लेते है उसमे ६५ से 7० फीसदी कर्जा गांव और आसपास के साहूकारों का होता है,जिसके लिए साहूकार 6० से लेकर 1०० फीसदी ब्याज वसूलता है । कर्ज भी नकद नहीं मिलता। गांव में साहूकारों के कृषि केन्द्ग खुले हुए हैं। इन्हीं से किसानों को कर्ज के रूप में बीज, खाद और कीटनाशक मिलता है। विदर्भ की त्रासदी यह है की अब् गाँव गाँव में ख़ुदकुशी कर चुके किसानो की हजारों विधवा औरतें खेत बचाने के लिए संघर्ष के रही है । किसानो का संघर्ष कई जगहों पर अपनी ताकत भी दिखा चूका है । नंदीग्राम से सिन्दूर तक किसानो के आन्दोलन की आंच वाम खेमा न सिर्फ महसूस कर चूका है बल्कि सत्ता से बाहर जाता नज़र आ रहा है। दादरी के किसान आन्दोलन ने मुलायम सिंह को सत्ता से बेदखल कर दिया।पर उस मीडिया को यह समझ नहीं आता जो मोतियाबिंद का शिकार है।
फिर भी देश के अलग अलग हिस्सों में किसान एक ताकत बनकर उभर रहा है ।कही पर किसानो के धुर्वीकरण का असर ज्यादा है तो कही कम ।पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान मजबूती से खड़ा हो जाता है तो विदर्भ का किसान निराश होकर ख़ुदकुशी का रास्ता चुन लेता है।पर वहां भी प्रतिकार के लिए किसान लामबंद हो रहा है। उत्तर प्रदेश में एक तरफ बुंदेलखंड का किसान सालो से सूखा के चलते पलायन कर रहा है तो पूर्वांचल में बाढ़ से तबाह हो गया है । गोंडा,बस्ती से लेकर फैजाबाद जैसे कई जिलों में खाद के लिए किसानी पर पुलिस लाठी भांजती है । सहारनपुर ,मेरठ ,बुलंदशहर और मुज्जफरनगर में गन्ने के खेत में आग लगाकर किसान आत्मदाह कर रहा है । विकास की नई अवधारण में किसान की कोई जगह नहीं बची है।शहर बढ़ रहे है तो गाँव की कीमत पर और गाँव के ख़त्म होने का अर्थ किसान का ख़त्म होना है।लखनऊ शहर के गाँव ख़तम होते जा रहे है ।चिनहट के बाबूलाल के पास सात बीघा जमीन थी जो शहर से लगी थी । लखनऊ की विस्तार योजना में उसकी जमीन चली गई जो पैसा मिला वह शादी ब्याह और मकान बनाने में ख़तम हो गई ।जिसके बाद रिक्शा चला कर परिवार का गुजारा होता है ।बीमार पड़ते ही फांकाकशी की नौबत आ जाती है । यह उनका उदहारण है जो साल भर अपनी खेती से खाते थे और शादी ब्याह का दस्तूर भी निभा लेते थे।गंगा एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे के नाम पर हजारो किसान अपनी खेती से बेदखल होने जा रहे है।
जब दादरी में किसानो की जमीन के अधिग्रहण के सवाल पर वीपी सिंह ने आन्दोलन शुरू किया तो देवरिया से दादरी के बीच उनके किसान रथ पर राजबब्बर के साथ हमने भी कवरेज के लिए कई बार यात्रा की ।कई जगह पर रात बारह बजे तक पहुँच पाते थे पर किसान सभा में मौजूद रहते। जगह जगह वीपी सिंह से किसान यही गुहार लगते की जमीन से बेदखल न होने पाए ।जमीन का सवाल किसान के लिए जीवन का सवाल है।यही वजह है की दादरी का आन्दोलन आज भी जिन्दा है और उम्मीद है की किसान अदालती लड़ाई भी जित जायेगा।यह भूमि अधिग्रहण का संघर्ष करने वाले किसानो को नई ताकत भी देगा।यह लड़ाई सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं पूर्वांचल में भी चल रही है ।गंगा एक्सप्रेस वे उदहारण है ।अदालती रोक के बावजूद जेपी समूह के कर्मचारी मिर्जापुर के गावं में पैमाइश कर खूंटा गाद रहे है ।और राजधानी लखनऊ से उन्नाव के बीच लीडा के नाम किसानो के 84 गावं अपना अस्तित्व खोने जा रहे है ।यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के दायरे में ९५० सौ गाँव आ रहे है। इसी तरह गंगा एक्सप्रेस वे २१ जिलो के कई सौ गाँव को प्रभावित करेगी ।यह सब योजनाये बड़े पैमाने पर किसानो का विस्थापन करेंगी।
जबकि दादरी की लड़ाई २७६२ एकड़ जमीन की थी ।दादरी आन्दोलन से जुड़े रहे भाकपा नेता डाक्टर गिरीश यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण को लेकर खेती बचाओ -गावं बचाव आन्दोलन में जुटे है ,जमीन के सवाल पर गिरीश ने कहा -किसान जमीन नहीं देगा यह तय कर चूका है।यह फैसला यमुना एक्सप्रेस वे से प्रभावित चारों जिलों के किसानो का है ।इस परियोजना से आगरा ,मथुरा ,हाथरस और अलीगढ के ८५० गावं प्रभावित हो रहे है।यह इलाका आलू की थाली कहलाता है जहाँ का किसान हर साल लाखों का आलू बेचता है।मामला सिर्फ सड़क बनाने का नहीं है ।गिरीश ने आगे कहा -सड़क के दोनों तरफ माल और रीसोर्ट बनाकर किसानो को उनकी जमीन से बेदखल करना क्या विकास है ।
कुछ महीने पहले नागपुर के आगे हम ऐसे ही एक गावं सीवनगावं में थे जहाँ किसान भूमि अधिग्रहण की लड़ी लड़ रहा था ।यह इलाका संतरा पट्टी के रूप में मशहूर है । करीब दस एकड़ खेत सामने नज़र आता है ,जिसमे संतरा लगा था ,बीच में अरहर ।पक्का घर और दो वाहन खड़े नज़र आते है । एक मारुती वेन और एक इंडिका कार।हाथ पकड़कर किसान भुसारी ने संतरे के खेतो को दिखाते हुए कहा - हमारी दस एकड़ की खेती है। हर साल ५-६ लाख की आमदनी संतरा और अन्य फसलो से हो जाती है पर इस जमीन के बदले उन्हें करीब चार लाख मुआवजा मिल रहा है जिससे आस पास एक बीघा जमीन भी नहीं मिलेगी ।उनका सवाल है -हम लोग क्या करेंगे? पूरा परिवार सदमे में है और यह हाल एक नहीं कई परिवारों का है। इस गांव के आस-पास ग्यारह गांवों तिल्हारा, कलकुही, सुनढाना, रहेगा, खापरी, चिजभवन, जामथा, खुर्सापार, हिंगना और इसासनी गावों की करीब दस हजार ऐकड जमीन मेहान परियोजना की भेंट चढ चुकी है। मेहान का मतलब मल्टी मोडल इंटरनेशनल हब एंड एअरपोर्ट होता है। जो महाराष्ट्र एअरपोर्ट डेवलपमेंट कम्पनी ने बनाया है। जिसके चलते किसानों से एक एकड जमीन पचास हजार से लेकर डेढ लाख रूपए मे ली गई और उद्योगपतियों को पचपन लाख रूपए एकड के भाव दी जा रही है। जिसके चलते आस-पास के इलाकों की जमीन की कीमत और ज्यादा बढ गइ है। जिसमें नेताओं और उद्यमियों ने बडे पैमाने पर निवेश करना शुरू कर दिया है। नागपुर से वर्धा की तरफ बढे तो किसानो के खेत पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा नज़र आ जायेगा । सडक के किनारे-किनारे वास्तुलैंड, ग्रेसलैंड, सन्देश रिअल स्टेट, वेंकटेश सिटी, सहारा सिटी, श्री बालाजी रिअल र्टफ जैसे बोर्ड नजर आते। सारा खेल बडे नेताओं और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने का है।
विदर्भ में किसान का बेहाल है ।अकोला ,अमरावती ,वर्धा ,भंडाराकही भी जाये किसानो की बदहाली नज़र आ जाएगी । यह वही इलाका है जहां कभी जमना लाल बजाज ने महात्मा गांधी को लाकर बसाया था। सेवाग्राम में गांधी यहीं के किसानों के कपास से सूत कातते थे। जमना लाल बजाज भी कपास के व्यापारी थे। उस समय विदर्भ का कपास समूचे विश्व में मशहूर था और मैनचेस्टर तक जाता था। आज वही कपास किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं। जवान किसान खुदकुशी कर ले तो उसकी पत्नी किस त्रासदी से गुजरती है, वह यहां के गांव में देखा जा सकता है। खेत से लेकर अस्मत बचाने तक की चुनौती झेल रही इन महिलाओं की कहानी कमोवेश एक जैसी है। अकोला के तिलहारा ताल्लुक की शांति देवी ने से बात हुई तो उसका जवाब था , 'आदमी तो चला गया, अब खेत कैसे बचाएं। खेत गिरवी है। साहूकार रोज तकाजा करता है। एक बेटा गोद में तो दूसरी बच्ची का स्कूल छूट चुका है। पच्चीस हजार रूपए कर्जा लिया था और साहूकार पचास हजार मांग रहा है। नहीं तो खेत अपने नाम कराने की धमकी देता है। फसल से जो मिलेगा, वह फिर कर्जा चुकाने में जाएगा। क्या खाएंगे और कैसे बच्चों को पालेंगे? कर्ज माफ़ी का हमे कोई फायदा नहीं हुआ है ।’ यह एक उदहारण है विदर्भ के ज्यादातर जिलों में यही नज़ारा देखने को मिलेगा ।
यही हाल छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के ओडिसा से लगे इलाके का है जो कालाहांडी जैसा ही है ।उत्तर प्रदेश की तरफ आये तो भूखे और सूखे बुंदेलखंड में अकाल से लड़ते किसानो को देखा जा सकता है।पिछले साल इसी इलाके में हमने एक किसान परिवार को राख में पानी घोलकर अपने सात साल के बेटे को पिलाते देखा।वजह पूछने पचास साल के दसरथ का जवाब था-जब अन्न नहीं बचा तो क्या करें।यह ख़ुदकुशी के पहले का चरण मन जाता है इसके बाद क्या विकल्प बचेगा।इस दर्द को वे नहीं समझ सकते जो न तो किसान को जानते है और न ही गाँव को।न वह मीडिया जो दिल्ली में अपनी आवाज उठाने आये किसान की पेसाब करते हुए फोटो छापता है।उत्तर प्रदेश के कुछ किसान ही दिल्ली गए थे ,सभी नहीं।प्रदेश में चालीस लाख गन्ना किसान है जो वोट के लिहाज से भी बड़ी ताकत है ।कांग्रेस ने जिस तेजी से किसानो की बात मानी उसके पीछे वोट की ही राजनीति थी ।कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी गाँव और किसान को राजनैतिक एजंडा बनाए हुए है और उत्तर प्रदेश का २०१२ का विधानसभा चुनाव उनके लिए चुनौती बना हुआ है ।ऐसे में गन्ना किसानो की नाराजगी कांग्रेस को भरी पड़ती।राहुल गाँधी ने प्रधानमन्त्री से मुलाकात कर दखल देने को कहा था।
उत्तर प्रदेश में करीब सवा सौ चीनी मिलें है जिनमे २४ सहकारी ,११ निगम यानि सरकारी और ९४ निजी चीनी मिले।पूरब से पश्चिम तक की यह चीनी मिले भी गन्ना किसानो का कम शोषण नहीं करती।छोटे किसान को तो गन्ने की पर्ची तक नहीं मिल पाती और वह बिचौलियों को कम दाम पर गन्ना देकर पीछे हट जाता है।छोटा किसान हर जगह नुक्सान उठाता है ।कम कीमत पर गन्ना देना और धर्मकांटा पर घटतौली यानी कम गन्ना तौल कर ठगने की कोशिश करना।इसके आलावा भुगतान समय पर न होने की दशा में ब्याज का प्रावधान है पर चीनी मिल मालिक इसके लिए भी सालों चक्कर कटवाते है।
दुसरे राज्यों में चीनी मिल मालिक गन्ना किसानो का गन्ना सीधे खेत से उठाता है पर उत्तर प्रदेश में गन्ना क्रय केंद्र तक गन्ना किसान खुद पंहुचाता है और आगे ले जाने का पैसा भी मिल वाले काटते है ।अपवाद एकाध मिल मालिक है जो चीनी की ज्यादा रिकवरी के लिए गन्ना खेत से उठाते है।इस सब कवायद के बाद गन्ना किसान को पैसा मिलता है।चीनी का दाम आसमान छू रहा है पर गन्ना की कीमत मांगना गुनाह हो गया है। निराश होकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई किसान ख़ुदकुशी कर चुके है।गन्ना किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति भी प्रभावित करते है ,यही वजह है चौधरी अजित सिंह से लेकर महेंद्र सिंह टिकैत तक ने दिल्ली में किसानो की पंचायत बुलाई ।दिल्ली जाने से पहले मेरठ में जो किसान पंचायत बुलाई गई थी उसमे अजित सिंह ने किसानो से कहा था -एक गन्ना और दो लत्ता यानि कपडा लेकर दिल्ली आ जाना ,पूड़ी - सब्जी का इंतजाम कर दूंगा।गन्ना किसान दिल्ली पंहुचा तो सड़क जाम हो गई ,हर तरफ किसान नज़र आ रहा था ।नंगे और बेवाई फटे पैरो वाला किसान दिल्ली वालो को रास नहीं आया।मुझे याद है नब्बे के दशक में जब महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली के बोट क्लब पर डेरा डाला था तो पूरा गाँव बस गया था ।कवरेज के लिए हम दिन भर किसानो के अस्थाई गाँव में रहते जहां मवेशी भी थे और चुल्हा भी जलता था।तब भी दिल्ली वालो को किसानो का यह आन्दोलन रास नहीं आया और कहते -यह सब बोट क्लब गन्दा कर दे रहे है।
रविवारीय जनसत्ता से
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-41941573080192531022018-11-15T06:09:00.000-08:002018-11-15T06:09:38.486-08:00होका पाम से घिरे द्वीप पर
अंबरीश कुमार
मुंबई से करीब घंटे भर बाद नारियल और होका पाम के पेड़ों से घिरे <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT3IFd0fx5slcW6x7vO4BNjSqINRdbwL6UPAk1M0su3Bh0Mqhg9qx7IbDloD-PJqIJbthWKJwAJzEmqVY9fQGgL8XXfWUl31JHaus8G_lFF90qZuZhBYfPHKZrb6hOY626Dybo-2-czLI/s1600/d4.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT3IFd0fx5slcW6x7vO4BNjSqINRdbwL6UPAk1M0su3Bh0Mqhg9qx7IbDloD-PJqIJbthWKJwAJzEmqVY9fQGgL8XXfWUl31JHaus8G_lFF90qZuZhBYfPHKZrb6hOY626Dybo-2-czLI/s320/d4.jpg" width="320" height="240" data-original-width="1000" data-original-height="750" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3_Xu4k9JH1DZ24FycRRjciV3U8bymAZzptt6XsM4Cxw_MFBZMX75gJI8i4KsYIfjnUs4jcuSxRHT8Dlosfi1PIupF3jQmlUErNTwziT1k5UvQKF9UbBUo-KoRBfHUmDWe48OHkXo1jiA/s1600/d7.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3_Xu4k9JH1DZ24FycRRjciV3U8bymAZzptt6XsM4Cxw_MFBZMX75gJI8i4KsYIfjnUs4jcuSxRHT8Dlosfi1PIupF3jQmlUErNTwziT1k5UvQKF9UbBUo-KoRBfHUmDWe48OHkXo1jiA/s320/d7.jpg" width="320" height="240" data-original-width="1000" data-original-height="750" /></a> के हवाई अड्डे पर पाँव रखते ही लगा की समुंद्र में उतरने जा रहे है .यह हवाई अड्डा समुंद्र से लगा हुआ है और अन्य शहरों के मुकाबले काफी छोटा और खुला हुआ है . जो सड़क इसे शहर से जोड़ती है उलटी दिशा में वह नागोवा बीच की तरफ जाती है . चारो और पानी से घिरा यह द्वीप अब सैलानियों के आकर्षण का नया केंद्र बनकर उभर रहा है . दीव जो करीब साढ़े चार सौ साल तक पुर्तगालियों के कब्जे में रहा . आज भी पुर्तगाल की संस्कृति और वास्तुशिल्प की झलक इस शहर में मिलती है . यह शहर आज भी एक कस्बे की तरह है . दीव का बाजार आज भी हाट बाजार की तरह है तो एक भी माल यहाँ नही है और न ही मल्टीप्लेक्स . मछुआरों का परंपरागत व्यवसाय आज भी दीव का प्रमुख व्यवसाय है और ज्यादातर परिवारों का जीवन बसर मछली के कारोबार से जुड़ा है .पर दीव के किले की बुर्ज पर सागर की तरफ तनी हुई तोपों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सैकड़ों सालों तक किस तरह यह द्वीप सामरिक दृष्टि महत्वपूर्ण है . पहले कभी यह समूचा द्वीप इस किले में सिमटा हुआ था पर बाद में दीव किले की दीवारों से आगे बढ़ता गया . किला भी काफी बड़ा है और इसके एक छोर का अवशेष जालंदर समुंद्र तट पर बने सर्किट हाउस के सामने आज भी नजर आता है . अरब सागर की लहरों के थपेड़े से सदियों से मुकाबला कर रही किले की दीवारे अब कमजोर पड़ चुकी है तो बुर्ज भी बदहाल है . किले के भीतर ही ऐतिहासिक चर्च है तो दीव की जेल भी . सामने अरब सागर में एक और किला नजर आता है जो शाम ढलते ही रोशनी से जगमगा जाता है .
समूचे दीव में न तो ज्यादा वाहन नजर आते है और न ही शोर शराबा जैसा गोवा में शाम ढलते ही नजर आता है . समर हाउस से पैदल ही बाजार की तरफ चलने पर बाए हाथ विशाल चर्च के सामने दो तीन आटों सैलानियों का इंतजार करते नजर आते है . इनके अलावा करीब दो किलोमीटर चलने पर भी दो चार वहां ही नजर आए इससे दीव के माहौल का अंदाजा लगाया जा सकता है . एक दो रेस्तरां बीच में पड़े जहाँ विदेशी पर्यटक समुंद्री व्यंजन का लुत्फ़ उठाते नजर आए . पर पूरे रास्ते सन्नाटा छाया रहा . बंदर चौक पहुँचने पर जरुर भीड़ नजर आई पर ज्यादातर सैलानी थे जो समुंद्र के किनारे बने रेस्तरां में बैठकर शाम गुजरने आए थे तो कुछ फेरी से समुंद्र का चक्कर काटने के लिए टिकट की लाइन में थे . समुंद्री हवा के बावजूद हलकी सी उमस महसूस हो रही थी जबकी नवंबर का आधा महीना निकल चुका था . पर थोड़ी ही देर में बदल गरजे और तेज बरसात से बचने के लिए बंदर चौक में जेटी के पास बने एक रेस्तरां में शरण लेनी पड़ी . शाम के साढ़े छह बजे थे और पहली मंजिल के इस रेस्तरां में समुंद्र की तरफ लगी सीटों पर बैठे नही कि बेयरा ने बताया कि चाय काफी या कुछ और आधे घंटे से पहले नही मिल सकता . पता चला कि यह रेस्तरां देर शाम खुलता है और रात में देर तक लोग यहाँ से समुंदरी नजारा देखते हुए खाना खाते है . दीव का यही इलाका भीड़ भाड़ वाला है इसके आलावा सिर्फ समुंद्र तट पर सप्ताह के अंत में यानी शनीवार - रवीवार को ज्यदा भीड़ मिलेगी क्योकि तब गुजरात और मुंबई से सैलानियों की भीड़ आ जाती है . गुजरात में नशाबंदी है जिसके चलते शौकीन लोग भी चले आते है . गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भले ही पूरे देश में विकास पुरुष घोषित किया जाए पर दीव के लोग इसे किसी कीमत पर नही मानने वाले क्योकि दीव से समूचे विश्व में मशहूर गीर के जंगल और सोमनाथ की सड़क पर चलते ही गुजरात के विकास का भ्रम दूर हो जाएगा . एक घंटे में बीस किलोमीटर का सफ़र हम तय कर पाए थे . इसकी वजह लोग बारिश बता रहे थे पर समूचे दीव में सडकों पर कही जोड़ का निशान नही नजर आया . केंद्र शासित प्रदेश होने का फायदा दीव को जरुर मिला पर अन्य केंद्र शासित राज्यों के मुकाबले यह जगह काफी बेहतर है . गोवा, दमन और दीव में दीव ही ऎसी जगह नजर आई जो चार पांच दिन से लेकर हफ्ते भर तक लिखने पढने के लिए बेहतर जगह है . भीडभाड से दूर यहाँ कई होटल और गेस्ट हाउस पूरी तरह एकांत में है . जालंदर समुंद्र तट पर दीव का दूसरा सर्किट हाउस ऐसे जगह है जहाँ आसपास कोई आबादी नही है . कैशुरिना और नारियल के पेड़ों से घिरा यह समुंद्र तट पूरी तरह एकांत में है और करीब एक किलोमीटर लंबी सड़क इससे लगी हुई है . एक छोर पर समर हाउस है तो दूसरे छोर पर किले के अवशेष .दीव में होका पाम ( ताड़ ) के खूबसूरत पेड़ नजर आए जो और जगहों पर नही मिलते है . ताड़ के पेड़ आमतौर पर एक शाखा वाले मिलते है पर यहाँ पर कई शाखाओं वाले ताड़ मिलेंगे जो सड़को के किनारे किनारे चलते है . इसे पुर्तगाली अपने साथ पुर्तगाल से लाए थे . इसके आलावा नारियल के घने झुरमुठ भी जगह जगह नजर आते है . दीव का इतिहास तो रोचक है ही भूगोल भी लोगों को आकर्षित करता है . नागोवा बीच से लेकर घोघला बीच उदाहरण है . सप्ताहांत में तो नागोवा बीच में लगता है मेला लग गया है .और शाम ढलते ही लहरों के पीछे एक छोटी पहाड़ी पर नीले लाल रंग में दीव लिखा जगमगाने लगता है . समुंद्र में वाटर स्पोर्ट्स की सुविधा है और बच्चे- बड़े समुंद्र की लहरों में पानी के स्कूटर से लेकर मोटर बोट से वाटर स्कीइंग करते नजर आते है . दूसरी तरफ कुछ शौकीन नौजवान समुंद्र में नहाने के बाद रेत पर ही प्लास्टिक के गिलास में मदिरा उड़ेलते नजर आते है . समुंद्र तट पर ओपन एअर बार कई जगह देखा है और गोवा के कलंगूट बीच पर तो महिलाओं को सर पर टोकरी रखकर बीयर से लेकर फेनी बेचती देख चुका हूँ . पर गुजरात के नौजवानों का इस तरह बैठना हैरान करने वाला था . बीच के किनारे करीब पांच सौ वहां लाइन से लगे थे जिसमे कई तो खाना बनाने की व्यवस्था और तंबू आदि के साथ थे . नागोवा से लौटते समय रास्ते में कई जगह सैलानियों के तंबू और चूल्हे भी जलते नजर आए .दीव शहर की तरफ जाते ही सेंट पॉल चर्च रास्ते में पड़ता है . 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में बने इस चर्च को पूरे होने में तकरीबन दस साल का वक्त लगा. पुर्तगालियों ने जो चर्च यहाँ बनवाए उनमे इस चर्च को सबसे भव्य माना जाता है. इसका वुड वर्क दुनिया के बेहतरीन क्राफ्ट वर्क्स में गिना जाता है. इसी के पास ही सेंट थॉमस चर्च है जो अब म्यूजियम में बदल चुका है म्यूजियम में दीव पर राज करने वाले तमाम शासकों और उनके दौर के क्राफ्ट के नमूने हैं. दीव एक और आकर्षण सी-शेल म्यूजियम है जिसे मर्चेंट नेवी के एक कैप्टन ने बनाया है .यहां तकरीबन तीन हजार शेल हैं. यह दुनिया का पहला म्यूजियम है, जहां समुद्र में पाए जाने वाली सीपों और शंखियों को के किनारे पहाड़ी पर बना खुकरी मेमोरियल भारतीय नेवी के शौर्य की अनूठी मिसाल है . खुकरी इंडियन नेवी का एक तेज लड़ाकू जहाज था. 1971 की लड़ाई में इसने पाकिस्तान पर बमबारी की और बाद में नेवी की जांबाजी का परिचय देता हुआ 18 ऑफिसरों और 176 नाविकों सहित समुद्र में समा गया.पुर्तगालियों का बनाया एक और किला समुंद्र के बीच में है जो कभी फोर्ट्रेस आफ पानीकोटा के नाम से जाना जाता था तो आज पानीकोठा भी कहलाता है .इस किले में मोटर बोट से जाया जा सकता है .पर दीव का मुख्य किला ही महत्वपूर्ण माना जाता है जिसका निर्माण १५३५ में नुनो दे कुन्हा ने कराया था बाद में भारत में पुर्तगाल के चौथे वाइसराय (1547-1548) जोआओ दे कास्त्रो ने इस किले का पुनर्निर्माण कराया . किले में चर्च है तो जेल भी और जब यह बना था तो एक छोटा सा पुर्तगाल इसमे समाया हुआ था . इस किले ने कई युद्ध देखे और पुर्तगालियों को बचाया भी . पुर्तगालियों के किले , चर्च और अन्य निर्माण आज भी दीव में है पर अब कोई पुर्तगाली नही बचा है . सभी पुर्तगाल लौट चुके है . पुर्तगालियों की जो पीढी भारत में ही पैदा हुई और जवान हुई वह भी जा चुकी है . गोवा ,दमन और दीव की आजादी के बाद पुर्तगाल ने सभी को वीजा देकर बुला लिया अपवाद है तो गोवा जहा कुछ पुर्तगाली परिवार अभी भी है . जबतक पुर्तगाली शासन रहा पुर्तगाली भाषा आभिजात्य वर्ग की भाषा रही और आज भी कुछ परिवार पुर्तगाली भाषा बोलते नजर आ जाएंगे . पर खानपान और संस्कृति पर पुर्तगाली जो असर छोड़ गए है वह बरकरार है . शाम को खानसामा ने जो सुरमई मछली और किंग प्रान परोसे वह भी पुर्तगाली व्यंजन थे , जो आज भी गोवा ,दमन और दीव में लोकप्रिय है . रिजवान भाई समुंद्र में मछली पकड़ने का कारोबार करते है . खाना बनाने का शौक भी है . रिजवान के शब्दों में - साहब जब समुंद्र में मछली पकड़ने जाते है तब हफ्ता भर रहना पड़ता है . प्लास्टिक के बड़े बड़े डिब्बों जैसे कैशरोल में बर्फ का चूरा लेकर जाते है ताकि मछली पकड़ने बाद उसको रखा जा सके . खाना नहाना सबकुछ छोटे से जहाज पर ही होता है . मै जब खाना बनाने बैठता हूँ तो किसी को हाथ नही लगाने देता . समुंद्र की ताजा मछली होती है और वह मसाले जो पुर्तगाली इस्तेमाल करते थे वही तरीका भी . दीव में आज भी पुर्तगाली खाना बहुत लजीज माना जाता है .यह बानगी है दीव पर पुर्तगाल के असर की . दीव में मदिरा पर टैक्स नही है और काफी सस्ती मिलती है इसलिए दीव के बाहर यानी गुजराज के नौजवानों की भीड़ भी उमडती है और शाम से ही यहाँ के बार गुलजार हो जाते है .जो कुछ और उन्मुक्त होते है वे समुंद्र तट का रुख कर लेते है . पर गोवा की तरह लहराते हुए लोग नही नजर आएंगे . दमन की आबादी में गुजरातियों का बड़ा हिस्सा है और उनके चलते माहौल अलग बना हुआ है खासकर गोवा के मुकाबले . यही वजह है कि दोपहर एक बजते ही बाजार बंद हो जाता है जो शाम को ही खुलता है . सब्जी और मछली बाजार तो दोपहर तक ही लगता है . पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए दीव में मछुआरों का कार्यस्थल भी बदल कर घोघला समुंद्र तट पर बसे गाँव में कर दिया गया है ताकि मछली सुखाने से हवा में जो गंध फैलती है उससे निजात मिले . गोवा ,दमन और दीव को आजाद हुए पचास साल होने जा रहे है और दिसंबर से इसके समारोह भी शुरू हो जाएंगे .
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-125784091935860343.post-27773391166266724912018-09-26T01:51:00.000-07:002018-09-26T01:51:52.150-07:00काकपिट में मटका!काकपिट में मटका!
अंबरीश कुमार
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn0w-_Weqk_Vlzo8xgt79pJDLVc5EhLKynWcPbTzWBt18ed_bcF5btPhPgczvb6y0x3lD3emO3hsU_IPJfZFwr_4Uup7GG08b4j6HmuK70idcO2tX-ZWky-4grvoMqfxHGZiGUcoekz34/s1600/DSCN2069.JPG" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn0w-_Weqk_Vlzo8xgt79pJDLVc5EhLKynWcPbTzWBt18ed_bcF5btPhPgczvb6y0x3lD3emO3hsU_IPJfZFwr_4Uup7GG08b4j6HmuK70idcO2tX-ZWky-4grvoMqfxHGZiGUcoekz34/s320/DSCN2069.JPG" width="320" height="240" data-original-width="1600" data-original-height="1200" /></a>अस्सी के दशक में एयर इंडिया /इंडियन एयरलाइन्स की कई नियमित उड़ान के पायलट रहे .मुख्य रूट था कलकत्ता /भुवनेश्वर /विशाखापत्तनम और हैदराबाद .रत का पड़ाव हुआ हैदराबाद में रुके नहीं तो कोलकता वापस .टालीगंज में रहते थे .बीच बीच में दिल्ली /कोलकोता या कोलकोता सिंगापूर /ढाका आदि भी .दिल्ली से कई ऐसी भी उड़ान में पायलट रहे जिसमे मुख्य पायलट राजीव गांधी होते थे .कैप्टन श्रीवास्तव याद करते हुए बोले ,ऐसा व्यक्तिव मैंने बहुत कम देखा .इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी .कोलकोता से लौटे और हम होटल अशोका में चले गए तो राजीव गांधी एक सफदरजंग .उड़ान से पहले जब पायलट और को पायलट का परिचय दिया जाता तो राजीव गांधी का आग्रह होता कि उनके गांधी सरनेम का उल्लेख न किया जाए .सिर्फ कैप्टन राजीव कहा जाए .और यही कहा भी जाता .पायलट के प्रशिक्षण में हैदराबाद में वे भी अन्य पायलट के साथ रहते और किसी को यह अहसास नहीं होता कि ये प्रधानमंत्री के पुत्र हैं .
खैर कैप्टन श्रीवास्तव अस्सी पार कर चुके हैं .दो ढाई साल पहले .पायलट की नौकरी से रिटायर हुए तो रामगढ़ में बस गए .गोंडा में उनके पिता जो मशहूर डाक्टर रहें हैं उनकी काफी बड़ी कोठी आज भी है .रहने वाले चार प्राणी और चौबीस कमरे .क्या देखें और कैसे देखें .अभी भी ज्यादा समय पहाड़ पर अकेले रहते हैं .खानपान में कोई बदलाव नहीं आया है .पांच किलोमीटर तो चलते ही हैं .पायलट रहे तो देश विदेश घूमना होता ही था .पर नियमित उड़ान पर भी जाते तो कुछ न कुछ जरुर लाते .चाहे पूर्वोत्तर का संतरा हो या भुवनेश्वर /विशाखापत्तनम का झींगा .भुवनेश्वर की उड़ान से लौटते तो चिलिका झील का मशहूर झींगा जरुर रहता .वह भी पानी भरे छोटे से घड़े में .बोइंग तो बाद में आया फोकर और एवरो भी खूब उड़ाया .बोले ,काकपिट में पीछे की तरफ अपने सामान के साथ यह घड़ा संभाल कर रखता और आराम से कलकत्ता आ जाता .पर समस्या कार से घर जाने पर होती .इसे हाथ में पकड़ना पड़ता .खैर वह भी दौर था .अब वे नैनीताल जाते हैं तो हैम /सलामी /सासेज ले आते हैं जो फ्रीजर में पड़ा रहता है .
उम्र के चलते बगीचा देखना संभव नहीं होता .अच्छी प्रजाति के सेब और बबूगोशा होता है .घर के सामने खुबानी का पड़ा कलमी आम जैसा लगता है जिसके नीचे उनकी यह फोटो है .बगल में ही रस्तोगी जी का घर था ,अब बिक गया .रस्तोगी जी के बारे में कुछ दिन पहले लिखा था .दो साल पहले वे यहां से अपने पुत्र कर्नल अभय के पास चंडीगढ़ चले गए थे .जाते समय कैप्टन श्रीवास्तव से बोले ,मै यहां से जा तो रहा हूं पर अब मेरी उम्र आधी रह जाएगी .जड़ से काटने पर ऐसा ही तो होता है .यही वजह है कैप्टन श्रीवास्तव यह जगह नहीं छोड़ते ,भले अकेले रहना पड़े .
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