Saturday, March 31, 2012

यह द्वीप नहीं परीलोक है


अंबरीश कुमार
एक यात्रा संस्मरण लिखा तो कुछ मित्रों ने आग्रह किया कि इसके आगे का भी लिखा जाए । यह बहुत मुश्किल काम था पर एक भाग लिखा तो सविता ने कई गलतियों की तरफ याद दिलाया और कई नई जानकारियां दी । फिर सारी फोटो निकली और तय किया कि इसका अंतिम हिस्सा लिख कर उस लेख का लिंक दे दिया जाए जो दो किश्तों में जनसत्ता में छपा था पर मेरे पास एक ही लेख है भी जिसे इच्छा होगी वे पढ़ सकते है । बहरहाल अब आगे ।
बंगरम में जब हम पहुंचे तो दोपहर हो चुकी थी । गहरे समुंद्र में लहरों पर कागज के नाव की तरह चली अपनी मोटर बोट ने जो दहशत पैदा की उससे बंगरम के लैगून में पहुँच कर ही उबार पाए । पानी का ऐसा रंग जीवन में पहले कभी नहीं देखा,लगता था किसी ने पानी में हरा रंग घोल दिया है । बोट से पानी में ही उतरना पड़ा और सामने जो सफ़ेद रेत थी उसे देख कर यह भी महसूस हुआ कि कही अपने पैरों से उसपर दाग न पड़ जाए । सामने कैसीनो होटल का स्वागत कक्ष था जो एक बड़ी झोपड़ी में बना था और उसी में डाइनिंग हाल भी था । हम इस होटल के मेहमान नहीं थे बावजूद इसके फ़ौरन नारियल पानी से लेकर शरबत आदि हाजिर था । कुछ ही देर में साथ आये लक्ष्यद्वीप प्रशासन के बैरा ने बताया काटेज तैयार है और वहा जा सकते है । अपना काटेज दूसरे छोर पर था जिसमे एक बड़ा बड़ा बेड रूम ,छोटा सा बरामदा एक बाथ रूम आदि था । किचन और कर्मचारियों की झोपडी अलग थी ।
काटेज के ठीक सामने नारियल के पेड़ों में बांध कर बड़े बड़े झूले लगे थे जिसमे एक झूले में एक विदेशी युवती न्यूनतम कपड़ों में लेटकर पढ़ रही थी तो दूसरे में आकाश जाकर पसर गए । धूप के बावजूद नारियल के पेड़ों के पत्ते बचा ले रहे थे । दोपहर का खाना करीब दो घंटे बाद मिल गया तो खाना खाकर सोने चले गए और दरवाजा खटखटाने पर उठे तो बैरा ने बताया सूरज डूबने वाला है इसलिए सामने आ जाए कुर्सियां लगा देते है और वही काफी भी सर्व कर दी जाएगी । कुर्सिय ऎसी जहा लगाई गई जहा लैगून का पानी पैरों को भी छू जाता था । समूचे तट पर मुश्किल से चार पांच लोग नजर आ रहे थे जिसमे एक शादी के बाद का विदेशी जोड़ा था तो एक युवती छोड़ बाकि सब बुजुर्ग । जिसमे एक बुजुर्ग स्नोर्किल करने में व्यस्त थे जिसे बाद में हमने भी किया । स्नोर्किल के लिए रक ऐसा उपकरण होता है जिसमे आप पानी में विशेष चश्मे से देखने के साथ एक डंडी के सहारे साँस भी ले सकते है । हमने जब समुंद्र के हरे पानी में झाँका तो वहा तो परीलोक जैसी अलग दुनिया ही नजर आई जिसका वर्णन ही नहीं किया जा सकता । रंगीन मछलियों की क़तर ,छोटे आक्टोपस जो बिजली की गति से निकल जाते तो रंग बिरंगे कछुए और मूंगे की मूर्तिकला । ऐसा लगता था आप किसी बड़े अक्योरियम में बैठ गए हों । कुछ देर बाद हम बाहर आ गए क्योकि दूसरे दिन ग्लास बोट से और बहुत कुछ देखना था ।
फिर बैठे तट पर और सूरज और समुंद्र की बनती बिगडती चित्रकला तब तक देखते रहे जबतक समुंद्र ने उसे पूरी तरह छुपा नहीं लिया । शाम ढलने के साथ ही बंगरम में सैलानियों की शाम जवान होने लगती है ।समुंद्र तट की रेत पर ही बारबेक्यू का धुंवा उठने लगा तो झोपड़ीनुमा बार में बैठी युवती फ़्रांस के एक मशहूर ब्रांड की वाइन का ग्लास लिए समुंद्र के पानी के पास खड़ी हो गई । सौर उर्जा से जलने वाले दुधिया बल्ब जल चुके थे और मछली भुने जाने की गंध भी फैलती जारही थी । इस बीच अंग्रेजी गानों की आवाज तेज हुई तो समुंद्र में भी लैगून के बावजूद लहरों की ऊंचाई बढ़ने लगी थी ।
समाप्त .सम्बंधित लेख को पढना चाहे तो लिंक

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