Thursday, March 8, 2012

भोपाल से कांचीपुरम तक ..


डायरी के कुछ पुराने पन्ने
अंबरीश कुमार
कुछ साल पहले की बात है । कांचीपुरम करीब डेढ़ दशक बाद पहुंचा था। इसे दक्षिण की काशी कहा जाता है। विशाल, भव्य, खूबसूरत मंदिरों का यह शहर डेढ़ दशक पहले एक कस्बे की तरह था। पर अब सब कुछ बदल गया है। कांचीपुरम एक नहीं कई बार आना हुआ है। पहली बार जब परिवार के साथ यहां पहुंचा था तो यहां के छोटे से स्टेशन के रिटायरिंग रूम में रूकना पड़ा था। तिरूपति से तब कांचीपुरम पहुंचे थे। शहर से दूर हरे-भरे पेड़ों के बीच था कांचीपुरम रेलवे स्टेशन। पापा रेलवे के इंजीनियर रहे हैं, इसलिए रेलवे से बचपन से रिश्ता रहा है। कांचीपुरम रेलवे स्टेशन पर रूके तो खाने का सारा बंदोबस्त साथ था, अगर न होता तो दिक्कत में फंस जते। आज भी याद है कि शाम ढलते ही स्टेशन का प्रभारी विनम्र ढंग से बाहर गेट पर ताला लगाकर घर जने का आग्रह कर रहा था। हम उसकी बात पर हैरान थे। उसने बताया कि स्टेशन रात भर बंद रहता है क्योंकि कोई ट्रेन नहीं आती। यह बात कभी भूलती नहीं है। आज उसी कांचीपुरम के रास्ते पर हम आगे बढ़ रहे थे।
चेन्नई से कांचीपुरम चले तो एमए की छात्रा लता विश्वनाथ साथ थी गाइड के रूप में। उन्होंने जगह दिखाई जहां पर राजीव गांधी की हत्या की गई थी। रास्ते में श्रीपेरंबुदूर में राजीव गांधी के नाम पर स्मारक बनाया गया है। इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है। चेन्नई से कांचीपुरम तक स्पेशल इकोनोमिक जोन यानी एसईजेड का इलाका पड़ता है जहां बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों के कारखाने हैं।
कांचीपुरम मुक्ति देने वाले सात नगरों में एक माना जता है। १८ पुराणों में प्रसिद्ध पुण्य क्षेत्रों में यह भी शामिल है। पल्लवों के शासनकाल से लेकर कई सौ सालों के कालखंड में बने मंदिरों का शिल्प देखते बनता है। मूल रूप से यहां शिव, विष्णु और पार्वती के तीन मंदिरों का महत्व सबसे ज्यादा है। इनमें श्रीएकाम्बरनाथ मंदिर, श्रीकामाक्षीयम्मन मंदिर, श्री उलगलन्द पेरूमाल मंदिर, कच्छपेश्वर मंदिर, कैलाशनाथ मंदिर, कुमरकोट्टम सुब्रमण्यम मंदिर, वैकुंठ पेरूमाल मंदिर और वरदराजन पेरूमाल मंदिर देखने वाला है। श्रीएकाम्बरनाथ मंदिर का दक्षिणी राज-गोपुरम दक्षिण भारत के ऊंचे गोपुरमों में से एक है जिसकी ऊंचाई 192 फुट है। इसका निर्माण सन 1509 में कृष्णदेव राय ने किया था। कांचीपुरम में मंदिरों का शिल्प देखने वाला है तो श्रद्धालुओं की आस्था देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। टिकट के बावजूद यदि आप सामान्य ढंग से दर्शन करना चाहें तो हर मंदिर में कई किलोमीटर चलने के बाद करीब तीन चार घंटे में दर्शन हो सकता है। जो लोग इन मंदिरों में रोज जते हैं, उन्हें कोई बीमारी नहीं होती क्योंकि वे पैदल ही इतना चल लेते हैं कि दैनिक व्यायाम की सारी जरूरत पूरी हो जती है।

चेन्नई हम भोपाल से आए तो बीच में नागपुर में किसान नेता प्रताप गोस्वामी मिले। जबकि तीन घंटे पहले बैतूल में मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार मयंक भार्गव कई पत्रकारों के साथ स्टेशन मिलने आए। मयंक भार्गव साथ भोजन-नाश्ता भी लेकर आए जो चेन्नई तक चलता रहा। इससे पहले भोपाल से सुबह जीटी एक्सप्रेस से चले तो माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र हिमाशुं बाजपेई और रोहित महावर के साथ राज एक्सप्रेस के विनोद पटेल सुबह चार बजे ही छोड़ने के लिए कमरे पर आ गए। भोपाल से चेन्नई की कोई उड़ान नहीं है लिहाज चेन्नई तक की लम्बी दूरी ट्रेन से ही तय करनी थी। हालांकि इसी बीच मुंबई से राजबब्बर का फोन आया जो चाहते थे कि मैं भोपाल से मुंबई आ जऊं। पर हमने कार्यक्रम में कोई फेरबदल न करते हुए भोपाल में पत्रकारों और पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के साथ दो दिन तक काफी चर्चा की। भोपाल के जिस रेजीडेन्सी होटल में रूका था, उसका कमरा छात्र-छात्राओं से भरा रहता था। जिस सेमिनार में आया था, उससे निपट कर कमरे में ईमेल चेक करने बैठा तो फिर दरवाज खटखटाया गया। करीब 8-10 छात्र-छात्राएं सामने थे। सभी को भीतर बुलाया और उनके अनुभव सुने। इन छात्रों में लखनऊ के हिमांशु, छिंदवाड़ा के महेन्द्र राय, रीवा के अरविन्द मिश्रा, दिल्ली की छात्रा मौली, भोपाल की अर्पिता सरकार, सीतापुर के रोहित, मुजफ्फरपुर के प्रशांत ङा और सिवनी की लुबना अजमत शामिल थे। छोटे-छोटे शहरों से लड़कियां भी पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रही हैं। रायपुर में तब देखा जब जनसत्ता शुरू करने के लिए लिखित परीक्षा ली थी। तब भी लिखित परीक्षा में करीब २५ लड़कियों ने हिस्सा लिया था और भारती यादव, अनुभूति, आकांक्षा और निवेदिता चक्रवर्ती आदि रायपुर जनसत्ता की टीम में प्रतिभाशाली पत्रकार के रूप में उभर कर सामने आई। भोपाल में जो लड़के-लड़कियां आए थे, उनमें सिवनी, बैतूल और छिंदवाड़ा जसी जगहों के भी छात्र थे। सिवनी से आई लुबना अजमत का जन्मदिन सभी ने मेरे कमरे में ही
मनाया। यह भी एक संयोग था। मध्य प्रदेश के दूरदराज के शहरों से जो लड़के -लड़कियां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के तृतीय सेमेस्टर में हैं, वे वेब पत्रकारिता से भी जुड़े हैं और राष्ट्रीय अखबारों के नियमित पाठक भी हैं। जिन छात्रों से बात हुई, उनमें सभी आने वाले समय में टीवी चैनल या प्रिंट मीडिया में नजर आएंगे। उत्साह से भरे ये नौजवान मीडिया में कुछ कर दिखाना चाहते हैं। हालांकि इसकी गुंजइश राज्यों में काफी कम रह गई है। पर लिखने-पढ़ने की जो नई आजदी वेब पर मिल रही है, वह जरूर रंग ला सकती है।
चेन्नई में तांबरम के पास एक आयोजन में फिर आसपास के छात्र-छात्राओं से मिलने का मौका मिला। सभी बीए, बीएससी, कम्प्यूटर, पत्रकारिता आदि के छात्र थे। दक्षिण में द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस आदि के चलते आज भी इस पेशे का सम्मान किया जता है। वहां कोई ब्यूरो या जिला हिंदी पट्टी के अखबारों की तरह नीलाम नहीं होता है। और न ही चुनाव में वहां अखबारों का स्थान बेचा जता है। बेहद गरीब परिवार से आई लक्ष्मी अय्यर प्रिंट मीडिया में जना चाहती है और अखबार भी तय है-द हिन्दू। वजह बताते हुए लक्ष्मी अय्यर ने कहा-यह अखबार उन लोगों की आवाज उठाता है जिसे हर कोई दबा देना चाहता है।
रायपुर, भोपाल से लेकर चेन्नई तक छोटे-छोटे शहरों से आए इन नौजवानों को देखकर पत्रकारिता में अभी भी काफी संभावनाएं नजर आती हैं। जरूरत है इन लोगों को प्रोत्साहित करने की। उत्तर और दक्षिण के बीच पिछले दो महीने में कई यात्राएं हुई जिसमें कई यादगार क्षण भी आए। विशाखापटनम की बारिश वाली वह शाम नहीं भूलती। हैदराबाद से दिल्ली लौटना था पर हम पहुंच गए थे राजमुंदरी तक। ऐसे में विशाखापटनम से दिल्ली की उड़ान ज्यादा सुविधाजनक थी। दूसरे एक शाम समुद्र के किनारे बिताने की इच्छा आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग का अनंतगिरि स्थिति हिल रिसोर्ट काफी खूबसूरत है। करीब दो सौ फुट नीचे समुद्र की लहरें टकराती हैं। विशाखापटनम पहुंचते ही नहाने के बाद बाहर निकले तो तेज बारिश हो रही थी। साथ थे लखनऊ से आए एक पत्रकार। तय हुआ कि कहीं बैठकर समुद्र को निहारा जए। करीब 40-50 फुट नीचे उतरने पर रिसोर्ट का आफसोर बार था। बालकली में फुहारों के बीच बैठे तो उठना पड़ा। हालांकि कई जोड़े उसी बारिश में गले में बाहें डाले जमे रहे। भीतर पहुंचने पर समुद्र की तेज आवाज नहीं सुनाई पड़ रही थी पर लहरों का गुस्सा साफ ङालक रहा था। इस बीच समुद्री व्यंजनों का स्वाद लिया गया। पर समुद्र को देखते-देखते जब मन नहीं भरा तो हम करीब सौ फुट नीचे समुद्री लहरों के पास ही पहुंच गए। अंधेरे में कड़कती बिजली, तूफानी समुद्र और तेज हवाओं का तिलिस्म भरा माहौल अभी भी याद आ जता है। समुद्र की हमने कई यात्राएं की पर हर बार समुद्र का सम्मोहन अलग महसूस हुआ।

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