Friday, March 9, 2012

यह वह शिमला तो नहीं!


अंबरीश कुमार
कुफरी में मौसम की पहली बर्फ की फोटो देखते ही करीब दस दिन पहले का दृश्य सामने आ गया। इसी जगह पर दो याक खड़े थे जिनकी फोटो खींचने के लिए उनका मालिक पैसे मांग रहा था। सुबह का समय था, धूप पूरी खिली हुई थी पर ठंड शिमला से कहीं ज्यादा थी। कुफरी शिमला आने वालों के लिए रमणीय स्थलों की सूची में पहले नंबर पर है। नवम्बर अंत से लेकर मार्च-अप्रैल तक यहां बर्फ का नजरा देखने वाला होता है। पिछली बार यहीं पर बर्फ जम जने की वजह से सड़क पर फिसलते-फिसलते बचे थे। बिना बर्फ के कुफरी के वन्य जीव विहार में पहाड़ी जनवरों के दर्शन आसानी से हो रहे थे। देवदार से घिरे इस छोटे से पहाड़ी जंगल में सांभर, बार्किग डियर, हिमालयन भालू, तेंदुओं समेत कई और जनवर विचरण करते नजर आ रहे थे। जब बाहर निकलने को हुए तो गेट पर टिकट जमा करने वाली महिला ने कहा-सुभाष से मिले कि नहीं। यहां पर बाघ के बच्चे को जरूर देखना चाहिए। वह ऐसे नहीं निकलेगा। उसके बाड़े के सामने जकर जोर-जोर से सुभाष बुलाना। उसके बाद दरवाजे को ठक-ठक करना। हम वापस गए और बाड़े के सामने जकर जोर-जोर से सुभाष-सुभाष बुलाने लगे। हमें लगा, सुभाष कोई चौकीदार है जो आकर के बाघ को बाहर निकालेगा। लेकिन कोई नहीं आया। तभी वह महिला दौड़ती हुई आई और सुभाष-सुभाष आवाज देकर लोहे की रेलिंग को पीटा। और आवाज सुनते ही छोटे से बाघ सामने नजर आ गए। पता चला कि खाना देते समय इसी तरह की आवाज करके उसे बुलाया जता है। तभी वह आता है। देवदार के घने जंगलों के बीच इन जंगली जनवरों की मौजूदगी का नजरा देखने वाला होता है।
इससे पहले शिमला पहुंचने के लिए चंडीगढ़ से सुबह करीब साढ़े तीन बजे कालका के लिए रवाना हुए थे। सुबह जल्दी जगना था इसलिए चंडीगढ़ के खूबसूरत प्रेस क्लब से भी दस बजे तक निकलना पड़ा। हालांकि प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष और फाइनेन्शियल एक्सप्रेस के पुराने साथी चरनजीत आहूज ने कुछ मित्रों के साथ रात्रि भोज का न्योता दिया था। चंडीगढ़ का प्रेस क्लब देश के चुनिंदा प्रेस क्लबों में शामिल है। जहां न सिर्फ शांति रहती है बल्कि वहां का भोजन काफी स्वादिष्ट और किफायती भी है। नीचे का डाइनिंग हाल बार होने के बावजूद परिवार वालों के लिए है। दिल्ली के प्रेस क्लब में शाम सात बजे के बाद ही भिंडी बाजर जसा दृश्य नजर आता है तो चंडीगढ़ के प्रेस क्लब का माहौल किसी पांच सितारा होटल की तरह का है। करीब चार एकड़ में फैले इस प्रेस क्लब का लान भी काफी लंबा-चौड़ा है।
इससे पहले शिमला पहुंचने के लिए चंडीगढ़ से सुबह करीब साढ़े तीन बजे कालका के लिए रवाना हुए थे। चंडीगढ़ से कालका पहुंचे तो अंधेरा था। प्लेटफार्म पर अभी हमारी रेल कार लगाई नहीं गई थी। जबकि बगल में शिवालिक एक्सप्रेस तैयार खड़ी थी। थोड़ी देर बाद ही आसमानी रंग की रेल कार प्लेट फार्म पर आ गई। ड्राईवर जिसे इस ट्रेन में पायलट का दज्र दिया जता है, उसके समेत कुल १४-१५ सवारियों वाली यह रेल कार शिमला तक सबसे तेज रफ्तार से जती है। इसकी खासियत यह है कि जहां चाहें, रूकवा लें और चाय-पानी और फोटोग्राफी के बाद फिर सवार हो जएं। बड़ोग स्टेशन पर हम रूके तो बाहर निकलते ही ठिठुरने लगे। पता चला कि शुरूआती स्टेशनों में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर यही स्टेशन है। यह स्टेशन अंग्रेजों के जमाने के डाक बंगले जसा है। जहां पर ठहरने के लिए सूट, काटेज और डबल बेड वाले कमरे उपलब्ध हैं। पहाड़ों की गोद में लकड़ी से बना डाइनिंग हाल भी ब्रिटिश जमाने की याद दिलाता है।
कालका से शिमला की ट्रेन को यूनीसेफ ने अंतर्राष्ट्रीय धरोहर का दज्र दिया है। शिमला के नाम पर अब यह ट्रेन ही पुराने जमाने की याद दिलाने वाली है। पिछले २0-२५ सालों में शिमला करीब सात-आठ बार जना हुआ है। पर इस बार के शिमला को देख पुरानी स्मृतियां काफूर हो गईं। यह वह शिमला तो नहीं था जिसे हमने अस्सी के दशक में देखा था। यह वह शिमला भी नहीं था जिसकी छवि साठ के दशक की फिल्मों में दिखी थी। तब चारों तरफ हरियाली और बड़े-बड़े काटेज हुआ करते थे। पर अब शिमला स्टेशन से लेकर छोटा शिमला या फिर नया शिमला सभी जगह पांच-छह मंजिला अपार्टमेन्ट नजर आते हैं। इतनी भीड़, धूल-धक्कड़ और वाहनों का प्रदूषण पहले कभी नहीं दिखा था। यह वही शिमला था जिसका जिक्र निर्मल वर्मा ने अपनी कहानियों में किया। यह वही शिमला है जो कभी वहीदा रहमान से लेकर प्रेम चोपड़ा, प्राण, अनुपम खेर की वजह से जना जता था तो कभी रंजीता, संजय दत्त, पूनम ढिल्लो से लेकर प्रीति जिंटा की वजह से चर्चा में रहा। अंग्रेजों ने जिस शिमला को देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था, उसकी तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। अंग्रेजों ने जब शिमला बसाया था तो उस समय सारी व्यवस्था करीब २५ हजर की आबादी के लिए की गई थी। योजनाकारों का अंदाज था कि यह आबादी भी कई सालों बाद बढ़ पाएगी। पर आज शिमला की आबादी करीब आठ गुना बढ़कर पौने दो लाख से ऊपर हो चुकी है। यही वजह है कि हर जगह भीड़ नजर आती है। अपवाद है तो सिर्फ मालरोड और स्कैंडल प्वांइट। माल रोड में आज भी वाहनों को जने की इजजत नहीं है जिसकी वजह से यह क्षेत्र प्रदूषण से बचा हुआ है। पर नीचे उतरते ही धूल-धक्कड़ देखकर पर्यटकों का मन खिन्न हो जता है। कुछ महीने पहले जब महानायक अमिताभ बच्चन शिमला के दौरे पर आए तो यहां की हालत देखकर वे भी आहत हो गए थे। अमिताभ बच्चन ने तब कहा था-शिमला की छवि जो मन में समायी थी, वो टूट गई है। यह वह शिमला नहीं है जो कुछ साल पहले तक था। गौरतलब है कि अमिताभ बच्चन की कुछ फिल्मों की शूटिंग शिमला में हो चुकी है।
हालांकि दूरदराज के इलाके अभी भी पुरानी यादों को ताज करते हैं। कुफरी से लेकर वाइल्ड फ्लावर हाल या फिर मशोबरा व नालदेहरा हों, शिमला के मुकाबले अभी कम प्रदूषित हैं। पर अंधाधुंध निर्माण इन्हें भी जल्द ही प्रदूषित बना सकता है। वाइल्ड फ्लावर हाल के बगल में प्रियंका गांधी का आशियाना बनता नजर आता है। उनका काटेज बनने में अभी समय लगेगा क्योंकि फिलहाल कालम-बीम ही नजर आते हैं। पर इस जगह से हिमालय का खूबसूरत नजरा दिखाई देता है। हिमालय की कई मशहूर चोटियां आसमान साफ होने पर नजर आती हैं। मशोबरा के पास सेब प्रोसिसिंग की सरकारी इकाई बंद हो चुकी है। पहले इस जगह पर भीड़ लगी रहती थी। नालदेहरा अब पहले की तरह खुला-खुला नहीं है। चारों तरफ कांटेदार बाड़ लगा दी गई है। ऊपर एक रास्ता जता है जो पर्यटकों के पिकनिक स्पॉट के रूप में खुला हुआ है। नालदेहरा का गोल्फ क्लब देश के मशहूर गोल्फ क्लबों में से एक है जो सौ साल से पुराना है।

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