Wednesday, March 14, 2012

समुद्र तट पर शिल्प का नगर


अंबरीश कुमार
मद्रास से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर फ़्रांसिसी संस्कृति का केंद्र रही पांडिचेरी जाने का एक रास्ता पल्लव साम्राज्य के प्राचीन अवशेषों के किनारे से भी जाता है। समुद्र तट से लगे सर्पिल रास्ते से गुजरते हुए पल्लव साम्राज्य का बंदरगाह और द्रविण शैली के मंदिरों की बुनियाद माना जाने वाला महाबलीपुरम यात्रियों के लिए पहला पडाव है। खूबसूरत समुद्री तटों और द्रविण शैली के पुराने मंदिरों का यह अनोखा संगम है। महाबलीपुरम होते हुए पांडिचेरी पहुंचना इतिहास में वापस जाने जैसा है। जहां दो अलग संस्कृतियों को देखा जा सकता है। महाबलीपुरम को यहां मामल्ल्पुरम कहा जाता है। समुद्र तट के किनारे सातवीं शताब्दी के इन मंदिरों को देखकर वास्तुकला व मूर्तिकला के किसी खुले विश्वविद्यालय में पहुंचाने का भ्रम होता है। करीब आठ वर्गमीटर में अलग अलग संकायों की तरह मंदिरों के अवशेष यहां नजर आते हैं। समुद्र तट के किनारे खड़ा तट मंदिर आज भी समुंदरी लहरों और हवाओं का वैसे ही मुकाबला कर रहा है जैसे करीब 13 सौ साल पहले कर रहा था।महाबलीपुरम से करीब पांच किलोमीटर पहले ही विभिन्न पर्यटन एजेंसियों के बीच रिसार्ट की श्रृंखला शुरू हो जाती है। हालांकि करीब 20 किलोमीटर पहले ही गोल्डेन बीच रिसार्ट बनाया गया है। सुनहरी रेत के इस किनारे पर हर समय कई फिल्मों की शूटिंग देखि जा सकती है। गोल्डेन बीच रिसार्ट को एक उद्योगपति ने पर्यटन के लिहाज से विकसित किया है। जहां हर तरह की इमारतें प्राचीन वास्तुकला के मुताबिक बनाई गई हैं। कुल मिलकर यह एक बड़ा सा खूबसूरत फिल्म स्टूडियो नजर आता है। इसके बाद आइडियल बीच रिसार्ट, गोल्डेन सन बीच रिसार्ट, सिल्वर सैंड और भारतीय पर्यटन विभाग का टेम्पल वे बीच रिसार्ट पड़ता है। कभी मछुवारों के गांव रहें इस इलाके को आज पूरी तरह पर्यटन केंद्र में बदल दिया गया है। इस बीच रिसार्ट की एक खासियत जरूर है कि यह पर्यटकों को समुद्र के पड़ोस में ज्यादा से ज्यादा गुजारने की पूरी सुविधा मुहैया करा देते हैं। बीच रिसार्ट की श्रृंखला समुद्र के मंदिर के पास तक चलती है जिसके चलते देर रात तक पर्यटकों की भीड़ चहलकदमी करती नजर आती है। समुद्र के किनारे तक कैशुरिना के जंगल नजर आते हैं। हालांकि यह जंगल पर्यटन विभाग ने खड़े किए हैं। कैशुरिना के दो दो पेड़ों के बीच प्लास्टिक के जाली वाले लंबे लंबे झूले डाले गए हैं। जिन पर बच्चों और जोड़ों को हर समय देखा जा सकता है। एक तरफ परंपरागत नाव कड़ी है तो दूसरी तरफ शिव मंदिर या तट मंदिर तक कुकरमुत्ते की शक्ल में छोटी छोटी झोपड़ियां बनाई गई हैं। रेतीली जमीन पर समुद्री लताओं का जालसा नजर आता है। जिनमें बैगनी फूल लगे हैं। महाबलीपुरम अब सिर्फ पल्लव साम्राज्य के प्रचीनन अवशेषों का स्मारक नहीं है बल्कि खूबसूरत समुद्री तटों के लिए भी पहचाना जाने लगा है यह बात अलग अलग है कि यहां परंपरागत मेहराबी शक्ल वाले तट नजर नहीं आते। लेकिन कैशोरिना- नारियल और नागफनी के पेड़ों से सटे इस समुद्री तट कि खूबसूरती अलग किस्म की है। वैसे भी यहां समुद्र का किनारा तेज लहरों से शोर में डूबा रहता है। लहरों के साथ साथ आम तौर पर हवा में भई तेजी रहती है। जबकि गोवा और कोवलम (केरल) के ज्यादा तर समुद्री तट शांत प्रकृति के नजर आते हैं। तेज बारिश, उत्तेजित समुद्र और कडकती बिजली के साए में समुद्र तट का मंदिर अद्भुत नजर आता है।
कला, संस्कृत और प्रकृति का अनोखा संगम यहीं पर देखा जा सकता है। महाबलीपुरम के इन मंदिरों को द्रविण शैली की नीव मन जाता है। इस शैली के दो तरह के स्मारक देखे जा सकते हैं। जिनमें एक तरफ स्तंभ मंडप हैं तो दूसरी तरफ रथ जैसे एकाश्म मंदिर। यहां चट्टानों को तराशकर मंडपों में तब्दील किया गया है। कहा जाता है की कभी यहां समुद्र के किनारे ग्रेनाईट का एक बड़ा पर्वत था। जो एक किलोमीटर लम्बा, अध किलोमीटर चौड़ा और करीब टिस मीटर ऊँचा था इसके दक्षिण में 75 मीटर लम्बा और 14 मीटर ऊँचा एक दूसरा पर्वत था। इन दोनों चट्टानों को काटकर द्रविण शैली के ऐतिहासिक मंदिर की नीवं डाली गई थी। इन मंदिरों में तरह तरह के धार्मिक मिथकों को तराशा गया है।
जनसत्ता

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