Monday, March 19, 2012

पाकिस्तान से ज्यादा पर्दा यहाँ -फरहीन


अंबरीश कुमार
लखनऊ ,मार्च । औरते चाहे यहाँ की हो या पाकिस्तान की कोई बहुत फर्क नहीं है उनमे , पकिस्तान से ज्यादा पर्दा या बुरका तो यहाँ दिखता है । यह बात सार्क देशों के लेखकों के सम्मलेन में पकिस्तान से आई लेखिका फरहीन चौधरी ने कही जो अपनी कहानियों के चलते काई बार विवादों से भी घिरी। पाकिस्तान के मौजूदा समाज और उसमे औरतों की स्थिति पर जनसत्ता से बात करते हुए फरहीन चौधरी ने कहा -जयपुर के बाद फिर यहाँ आने पर भी मुझे महसूस हो रहा है कि पाकिस्तान में औरतो की आजादी को लेकर काफी गलतफहमी है। गांवों के इलाकों को छोड़ दे तो शहरी इलाकों में लड़कियां उसी तरह रहती है जैसे भारत में और ऐसा ही पहनावा । मै जिस तरह यहाँ बिना सिर ढके सलवार कुरते में यहाँ आपके सामने हूँ उसी तरह वहां भी रहती हूँ ।
कट्टरपंथी ताकतों का ऐसा कोई दबाव नहीं है । पकिस्तान के मशहूर स्कूलों की श्रृंखला मसलन बिकन हाउस से लेकर सिटी स्कूल में लड़के लडकिय साथ पढ़ते है । कुछ लड़कियां तो इतनी आजाद ख्याल है कि लड़कों के साथ ही सुट्टा लागती है । यह आजादी ही तो है कि आज पाकिस्तान में प्रेम विवाह का प्रचलन काफी ज्यादा बढ़ गया ।
पाकिस्तान में अमेरिका को लेकर आम लोगों का क्या रुख है ? फरहीन का जवाब था -बहुत नाराजगी है ,माना जा रहा है कि पश्चिम की ये तकते देश को तोडना चाहती है। भारत में इस्लाम तो हजार साल रहा और सभी मिलजुल कर रहे पर ब्रिटेन के आते ही सबकुछ टूटने लगा इससे तो साफ़ है पश्चिम की ताकते क्या करना चाहती है । उनसे लड़ने में रानी लक्ष्मी बाई से लेकर बेगम हजरत महल की जो भूमिका रही वह उस दौर की मजहबी एकता की भी मिसाल है । ये हमारे साझा इतिहास की लड़ाकू नाइका है । हमें इन पर फक्र है । उस पश्चिम को लेकर पाकिस्तान के लोगों में नाराजगी है । पढाई लिखाई का जिक्र करते हुए फरहीन ने आगे कहा - वैसे तो मेरी पढ़ाई पूरे पाकिस्तान में घूम घूम कर हुई है । पर ज्यादातर समय हम लोगों का लाहौर में बीता है । लाहौर शहर सांस्कृतिक गतविधियों का केंद्र रहा है । मेरे वालिद पाकिस्तान के एक बैंक में नौकरी करते थे और उनका ट्रांसफर होता रहता था जिससे समूचा पकिस्तान घूम लिया ।
लिखना कैसे शुरू हुआ यह पूछे जाने पर कहा -मेरा बचपन का नाम शहाबा था जिसे मैंने सन 2000 में मैंने बदल कर फरहीन कर लिया ।जब मैं क्लास चार में थी तब उस समय स्कूल में घर से चार लाइने लिख कर लाने को कहा । तो घर आकार मैंने ऐसे चार लाइन को जोड़ कर एक नज्म तैयार की जिसे सुन कर स्कूल की टीचर को विश्वास नहीं हुआ की उन चार लाइनों को मैंने लिखा है इस बात की तस्दीक टीचर ने घर पर फोन कर अम्मी से पूछा क्या यह अपने लिखी है तो अम्मी ने कहा नहीं । मेरी उन चार लिखी लाइनों को टीचरों ने दुरुस्त कर एक ऐसी नज्म तैयार की जिसने उस छोटी सी उम्र में मुझे एक नया मुकाम दिलाया । बाद में इंटर स्कूल प्रतियोगिता में भी उस नज्म ने खूब धूम मचाई । आगे चल कर मैंने कायदे आजम, इस्लामाबाद से इंटरनेशनल रिलेशन में पढ़ाई की । मैंने कई छोटी छोटी कहानियां भी लिखी हैं जैसे उस पार, आधा सच और दीमक । इन कहानियों के ऊपर कई पाकिस्तान में डाक्यूमेंटरी बनी हैं । उस पर में मैंने जंग के हालात के दृश्य को उतारा है । फिर मैंने एक छोटी कहानी लिखी आधा सच जिसमें मैंने एक वेश्या की त्रासदी को दिखाया गया । जिसमे वेश्या का किरदार निभा रही औरत कहती है - मैं तो एक किराए का मकान हूं यहां कौन मुश्तकील रहेगा ।ऎसी कहानियों को लेकर मुझ पर आरोप लगे और विरोध भी हुआ । कुछ लोगों ने मुझे लेडी मंटो तक कहां ।
हिन्दुस्तानी साहित्यकारों को पकिस्तान में पढ़ा जाता है तो उन्होंने कहा कि जनाब उनके बिना तो हमारी जिंदगी अधूरी है । अमृता प्रीतम कि तो मैं दीवानी हूं । और उनको तो मैं तब से पढ़ रही हूं जब मैं नौंवी क्लास में थी। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकतें हैं की मैं उनकी कितनी दीवानी हूं।
इसी क्रम उन्होंने बताया कि मैंने बहते पत्थर नामक एक कार्यक्रम मैंने पाकिस्तान रेडियो के लिया भी किया है । पाकिस्तान सिने जगत की मशहूर हस्ती कासिम पाशा के साथ 1991 में मैंने एक सीरियल भी किया था । इसी तरह मैंने यूएनडीपी के लिए औरतों के विषय पर एक सीरियल बनाया था माटी की गुडिया । मेरी ज्यादातर कहानियां और डाक्युमेंटरी पिक्चरें सामाजिक मुद्दों पर लिखा अथवा बनाई है ।
जनसत्ता

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