Monday, April 2, 2012

बदलाव की बड़ी लड़ाई के लिए कमर कस रहे है बाबा रामदेव

अंबरीश कुमार
लखनऊ , २ अप्रैल ।बाबा रामदेव अब बदलाव की बड़ी लड़ाई की तैयारी में है । अब तक हुए उनके आंदोलनों से यह अलग होगी और इसमे उनके भक्त और इलाज कराने वाले लोगों से अलग बदलाव की ताकते शामिल होगी । जयप्रकाश आंदोलन और गाँधीवादी ताकतों के साथ करीब आधा दर्जन राज्यों में जड़ मूल स्तर पर काम करने वाली जमात भी इस आंदोलन की धुरी बनने जा रही है ।खास बात यह है कि इस लड़ाई का एजंडा भी व्यापक है और दर्शन समाजवाद का है । आना आंदोलन ने जो मौका चाँद लोगों के अहंकार से खो दिया उस मौके का फायदा बाबा रामदेव को मिलना तय है । जयप्रकाश आंदोलन से निकली छात्र युवा संघर्ष वाहिनी मंच के पुराने और तपे तपाए कार्यकर्ताओं के लेकर विश्विद्यालय की राजनीति से निकले युवा भारत और अन्य गाँधीवादी संगठनों के साथ समाजवादी धारा की ताकतों के साथ बाबा रामदेव का संपर्क और बैठको का सिलसिला पिछले चार महीने से चल रहा है जिसमे उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं की संख्या ज्यादा है ।
वाराणसी के एक वरिष्ठ गाँधीवादी नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा -अब बाबा रामदेव का आंदोलन ज्यादा व्यापक होगा क्योकि इसमे आंदोलनकारी तकते शामिल हो रही है जो लाठी गोली के साथ जेल जाने में भी नहीं हिचकेगी और आंदोलन का दायरा ज्यादा व्यापक बनाएगी । अन्ना आंदोलन ने देश में एक नई उम्मीद जगाई थी जिसे टीम अन्ना के चार लोगों ने अपने बडबोलेपन से पूरी तरह ध्वस्त कर दिया । रही सही कसर संघ के ठप्पे ने पूरी कर दी । पर इस आंदोलन में हर धारा हर तबके को साथ लेकर चलने की तैयारी है ।
गौरतलब है कि दो साल पहले संघर्ष वाहिनी मंच ने नैनीताल शिविर से राजनैतिक दखल का जो फैसला लिया था उसके चलते बाद में आधा दर्जन राज्यों में संगठन के ढांचे की कवायद तेज हुई उस सम्मलेन में सैट राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे जिसमे बोध गया आंदोलन से लेकर ओड़िसा के नियमगिरि आंदोलन के साथ जल जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्त्ता शामिल थे ।जिसमे महात्मा भाई ,राकेश रफीक ,भक्त चरण दास .,अवधेश ,राजीव .पुतुल और बागी जैसे करीब पचास कार्यकर्त्ता शामिल हुए थे । अब वह पहल आगे बढती नजर आ रही है । दरअसल रामदेव के साथ इन ताकतों का जुड़ना बड़ी संभावनाओं को जन्म दे रहा है ।
यह ताकते जल जंगल और जमीन के सवाल पर देश के विभिन्न हिस्सों में पहले से आंदोलनरत है । इनका संकट यह है कि इन आंदोलनों के पास कोई राष्ट्रीय चेहता नहीं है तो बाबा रामदेव की दिक्कत यह है कि अब तक उनका आंदोलन भक्त और मरीजों के साझा प्रयासों से चल रहा था जिसके पीछे कोई बड़ी राजनैतिक ,सामाजिक और आर्थिक दृष्टि नहीं थी और न आंदोलन करने वाली कोई अनुभवी जमात । अब दोनों मिलकर ज्यादा बड़ी और प्रभावी ताकत बना सकते है । दरअसल एनजीओ वाली जमात से कोई बड़े बदलाव के आंदोलन की उम्मीद भी नहीं कर सकता । टीम अन्ना का संचालन इन्ही ताकतों के हाथ में रहा इसलिए वे ज्यादा दूर तक जाने ,संगठन का कोई ढांचा बनाने की बजाय मीडिया में बने रहने पर ज्यादा सक्रिय रहे । जबकि बाबा रामदेव पिछले छह महीने से जुटे है और उसकी कोई ज्यादा चर्चा तक नहीं होती । यह रणनीति ही इस आंदोलन की गंभीरता का अहसास करा रही है । जानकारी के मुताबिक अगस्त तक रामदेव इस आंदोलन और अपने एजंडा के साथ पूरी ताकत के साथ सामने आ जाएंगे । फ़िलहाल कई राज्यों के आधा दर्जन नौजवान नेता इस अभियान की कमान संभल रहे है ।

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