Monday, March 12, 2012
पहाड़ की एक भीगी हुई शाम
कुछ दिन पहले चकराता के डाक बंगले के बारे मी लिखा था .आज एक फोटो मिली तो बहुत कुछ याद आया .नब्बे के दशक की शुरुआत थी और हरिद्वार पहुंचे तो पहली बार बीएचइएल के गेस्ट हाउस की जगह एक साध्वी के आश्रम में रुके .इसके लिए सुनील दत्त पांडेय बहुत दिन से कह रहे थे .यह आश्रम सभी सुविधाओं से लैस और साफ सुथरा एक होटल की तरह था .खाना इतना ज्यादा सादगी भरा था कि मुझे अकेले बाहर खाना पड़ा .साध्वी ज्यादा उम्र की नहीं थी और उनकी सेवा में सिर्फ और कम उम्र की कई साध्वी थी जो सारी व्यवस्था भी देख रही थी .सविता के साथ उनकी लंबी बातचीत हुई पर मै कटा रहा .रात में सुनील दत्त पांडेय आये और चकराता के डाक बंगले में रुकने का परमिट दिया जो देहरादून से बनकर आया था और बताया सुबह निकलना है .चकराता का रास्ता तब वन वे था और कई जगह खाई देख दर भी लगता था .खैर शाम को पहुंचे तो देवदार के घने जंगल ,बर्फ से लड़ी पहाड़ियों को देख सम्मोहित थे .हरियाली ऎसी की आखे बंद होने का नाम न ले .यहाँ से शिमला का भी रास्ता है और बहुत ज्यादा दूर भी नहीं है .चकराता में कोई आबादी नहीं थी और न ही कोई होटल क्योकि यह इलाका सेना के अधीन है और कोई निर्माण नहीं हो सकता था .आवाज के नाम पर हवाओं से हिलते दरख्त के पत्तों की आवाज या फिर सड़क पर परेड करते सैनिकों के बूटों की आवाज .रात के अँधेरे में यह सन्नाटा डराता भी था .इसी चकराता में जब टाइगर फाल देखकर लौट रहे थे तो मुसलाधार बारिश शुरू हो गई और पहाड़ पर जिस पगडण्डी से चढ़ रहे थे वह बरसाती नाले में बदल चुका था .दो बार फिसल कर खाई में गिरते गिरते बचे .खैर किसी तरह जब चकराता के छोटे से बाजार पहुंचे तो शाम ढल चुकी थी सविता की उस हाल में एक फोटो ली जिसे देखते सब याद आ जाता है .
अंबरीश कुमार
(चकराता पर पहले की कहानी विरोध पर लिखी जा चुकी है )
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