Friday, March 2, 2012

सभी पर भारी पड़ा यह घाघ किस्म का बाघ !


अंबरीश कुमार
लखनऊ, २ मार्च । उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में बड़े बड़े नेताओं को टक्कर देते हुए अगर किसी ने करीब पचास दिन तक राजधानी के अख़बारों में सबसे ज्यादा जगह घेरी है तो वह है लखनऊ के मुख्य बाजार हजरत गंज से करीब आठ कोस दूर रहमान खेडा में बैठा बाघ । करीब दो महीने से यह बाघ जंगलात विभाग को बुरी तरह छका रहा है । इसके लिए जो पिंजड़ा बनाया गया है उसके पास रखे गए दर्जनों बकरे ,पडवा और सूअर डकारने के बाद भी बाघ जाल में नहीं आ पा रहा है । अबतक करीब साढ़े तीन लाख रुपए इस बाघ को पकड़ने के लिए जंगलात विभाग खर्च कर चुका है जो अभी और बढ़ना तय है क्योकि यह बाघ नेताओ की तरह घाघ नजर आ रहा है ।
बचपन में कहा जाता था सो जाओ नहीं तो बाघ आ जाएगा । पर यहाँ करीब पचास दिन से यह बाघ की सीमा पर घूम रहा है और शहर चैन की नींद भी सो रहा है सिर्फ रहमान खेडा के कुछ गांवों को छोड़कर । इस बाघ के लिए रहमान खेडा में रेलवे क्रासिंग के पास पिंजड़ा लगाया गया तो दूसरा पिंजड़ा जंगलात विभाग के कर्मचारी के लिए लगाया गया । यह इसलिए ताकि पिंजड़े के पास आने पर बाघ को बेहोश करने बंदूक से ट्रेन्कू्लाइज किया जा सके । इसके आलावा चार मचान बनाये गए जिस पर बैठ कर सुबह शाम बंदूक लिए वन विभाग के कर्मचारी इंतजार करते है । जंगलात विभाग इस बाघ को लेकर बुरी तरह हलाकान है ।इसके आने के बाद दो दो बड़े अफसर रिटायर होकर चले गए पर यह बाघ पकड़ में नहीं आया । जनवरी में प्रमुख वन संरक्षक (वन्य जीव )जीबी पटनायक रिटायर हो गए तो फरवरी प्रमुख वन संरक्षक डीएनएस सुमन रिटायर हो गए और मार्च के अंतिम दिन तीसरे प्रमुख वन संरक्षक मोहम्मद अहसन भी रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में यह बाघ जंगलात विभाग के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है । पर बाघ इतना घाघ है कि वह रोज आता है जंगलात विभाग की तरफ से उसे पकड़ने के लिए जो भी चारा जिसमे बकरा ,पडवा और सूअर आदि होता है उसको खाता है ,पिंजड़े के आसपास टहलता है और फिर लौट जाता है । खास बात यह है कि जो पसंद हो वाही खाता भी ही जबरन नहीं कुछ खाता । गुरुवार को उसके लिए सूअर परोसा गया पर उसने उसे छोड़ वही बहुतायत में उपलब्ध नीलगाय का शिकार किया और लौट गया । बाघ की निगरानी के लिए रात में फोटो लेने वाले जो कैमरे लगाए गए है उससे उसका दर्शन वन विभाग करता रहता है पर पकड़ नहीं पा रहा ।डीएफओ ( अवध ) अशोक मिश्र ने जनसत्ता से कहा -इस बाघ को पकड़ने में काफी दिक्कत आ रही है क्योकि यह सुबह शाम नहीं दिखता और नियम कायदों के मुताबिक चलते हुए इसे रात में ट्रेन्कूलाइज नहीं किया जा सकता । दूसरा इसे जिंदा पकड़ना है इसलिए कई तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है । इसे पकड़ने की लिए तय दिशा निर्देशों के तहत करीब साढ़े तीन लाख रुपए खर्च किए जा चुके है ।
जानकारी के मुताबिक यह बाघ लखीमपुर की तरफ से आया है । बाघ के न पकडे जाने को लेकर वन्य जीव विशेषग्य तारा पाटकर ने कहा -दरअसल वन विभाग किसी भी तरह इस बाघ को जिंदा पकड़ना चाहता है इसलिए इसे बंदूक के जरिए बेहोश करना पड़ेगा। यह काफी जोखम भरा काम है क्योकि इसे बेहोश करने के लिए पचास मीटर की दूरी से ही ट्रेन्कूलाइज करना जरुरी है । ज्यादा दूरी पर यह छलांग लगाकर जंगल में कूद सकता है फिर जोखम बढ़ जाएगा क्योकि बेहोशी की दवा का असर आधे घंटे में ही ख़त्म हो जाता है जिसके बाद वह आमना सामना होने पर हमला भी कर सकता है । यही वजह है कि वन विभाग को बहुत संयम से काम लेना पड़ रहा है । दूसरे इस आपरेशन पर देश विदेश की नजर भी लग हुई है । डब्लूएफटीआई की भी टीम यहाँ है ऐसे में यह काफी संवेदनशील माना जा रहा है । जब तक बाघ आदमखोर न हो जाए उसे मारा नहीं जा सकता ।
इस बीच लंदन की संस्था टाइगर अवेयरनेस के फिल डेविस ने इस बाघ से निपटने के लिए हैदराबाद के मशहूर शिकारी नवाब सफाहत अली को बुलाए जाने की चर्चा होते ही विरोध जताया । नवाब साहब ने ही २४ फरवरी २००९ को फैजाबाद में आदमखोर बाघिन को मारा था । उनके इस शिकार को लेकर विवाद खड़ा हुआ तो अब उनको इस आपरेशन में शामिल होने पर भी सवाल खड़ा हो रहा है । पर इन सबसे बेखबर बाघ रहमान खेडा के गांवों में लोगों की नींद छीन चुका है । jansatta

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