Saturday, March 31, 2012
जंगलों के पार आदिवासी गांवों में
अंबरीश कुमार
नागपुर से छिंदवाडा के भी आगे जाने के लिए बुधवार की सुबह मेधा पाटकर का इंतजार कर रहे थे । वे चेन्नई से बंगलूर और फिर नागपुर आ रही थी ।एक दिन पहले भी कई गांवों की ख़ाक छानते हुए होटल द्वारका पहुंचे तो रात के बारह बज चूके थे।प्रताप गोस्वामी की मेहरबानी से खाने पीने का प्रबंध हो गया था वर्ना बारह बजे के बाद कुछ मिलना संभव नहीं था।उन गांवों में गए जो पेंच परियोजना के चलते डूब क्षेत्र में आने वाले है । साथ में नर्मदा बचाओ आंदोलन के मधुरेश और किसान नेता विनोद सिंह भी थे । गांवों में कई सभाएं देखी और गांवालों ने उपहार में जो कच्ची मूंगफली दी वह लखनऊ तक ले आए । बहुत ही हरा भरा और खुबसूरत इलाका है यह ।रास्ते में घने जंगल है और पहाड़ियां ऊंचाई तक ले जाती है । करीब आधे घंटे तक यह अहसास होता है कि किसी हिल स्टेशन पर है ।इससे पहले नागपुर के संतरा पट्टी के किसानो पर मंडरा रहे संकट की भी जानकारी ली ।
यह एक दिन पहले की बात है । करीब नौ बजे मधुरेश का फोन आता है कि नीचे रेस्तरां में में आ जाएँ मेधा पाटकर पहुँच गई है और वे भी कमरे से पांच मिनट में में वहां पहुँच जाएगी । नीचे पहुंचा तो सभी इंतजार कर रहे थे । नाश्ता कर दो गाड़ियों से रवाना हुए । कई साल बाद मेधा पाटकर के साथ फिर लंबी यात्रा कर रहा था । छूटते बोली -अंबरीश भाई बस्तर की यात्रा और जो हमला हुआ वह सब याद है । करीब आठ साल पहले जब जनसत्ता का छत्तीसगढ़ संस्करण देख रहा था तब नगरनार प्लांट के विरोध में चल रहे आंदोलन को देखने मै जा रहा था । संयोग से मेधा पाटकर भी जाने वाली थी और उन्हें मेरे जाने की जानकारी मिली तो वे भी साथ चली । बाद में जगदलपुर के सर्किट हाउस में जहाँ मै रुका था दुसरे दिन सुबह जब मेधा पाटकर आई तो कांग्रेस के लोगों ने नगरनार प्लांट का विरोध करने के लिए मेधा पाटकर पर हमला कर दिया । अपने स्थानीय संवाददाता वीरेंद्र मिश्र और एनी लोगों के चलते बड़ी मुश्किल से बेकाबू कांग्रेसियों पर नियंत्रण पाया गया था । यह तब जब मेधा पाटकर खुद अजित जोगी को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में रही थी । रात में अजित जोगी से जब उनकी मुलाकात हुई तो जोगी ने उनके दौरे पर नाराजगी भी जताई थी । वह सब याद आया ।
मेधा पाटकर से रास्ते में लंबी चर्चा हुई खासकर अन्ना आंदोलन को लेकर । पर यह सब निजी जानकारी के लिए । मेधा बिसलरी का पानी नही पीती है इसलिए छिंदवाडा के जंगलों से पहले एक ढाबे में उनके लिए नल का पानी लिया गया तो उन्होंने चाय पीने की भी इच्छा जताई । वे जन आंदोलनों में सालों से शिरकत कर रही है और जो भी रास्ते में मिलता है खा लेती है और नल का पानी पीती है । हम लोग ऐसे जीवन के अभ्यस्त हो चुके है जहाँ अब यह सब संभव नहीं है । रास्ते में उन्होंने अपने मित्र अरुण त्रिपाठी के लेखन पर दोबारा एतराज जताते हुए कहा -मेरे ऊपर किताब का दूसरा संस्करण भी प्रकाशित कर दिया पर एक बार भी बात नही की । यह किताब अभय कुमार दुबे के संपादन में लिखी गई थी जिसमे मैंने भी एक पुस्तक लिखी थी । मैंने मेधा जी बताया कि अरुण त्रिपाठी का कहना है कि उन्हें आपने बातचीत का समय नहीं दिया ।खैर जनसभा बहुत सफल रही और फिर लौटने की जल्दी हुई क्योकि साढ़े छह बजे नागपुर में प्रेस कांफ्रेंस थी तो उसके बाद अन्ना टीम की बैठक और रात में ही उन्हें जबलपुर निकलना था । पांच घंटे का रास्ता काफी तेज रफ़्तार से तय करना पड़ा । फिर भी साढ़े सात बजे प्रेस क्लब पहुंचे तो मीडिया इंतजार में था । वे मीडिया को लेकर कुछ आशंकित भी थी पर दूसरे दिन भूमि अधिग्रहण का मुद्दा सरे अख़बारों में प्रमुखता से आया था । महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के दौरे से क़ल लौटा तो खबरों में उलझ गया ।
(अपना ब्लाग विरोध जो फिर से दुरुस्त कर रहा हूँ उसमे पुराने लिखे को ढूंढ़ ढूंढ़ कर दाल रहा हूँ ।)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Always a its treat to read your blogs Ambrish ji.
ReplyDeletePerfect
ReplyDelete