Wednesday, March 7, 2012

घाटियां और झरने ही झरने



आलोक तोमर
नैनीताल की भीड़ और झील के आसपास के बाजारों के शोर से बचना हो तो रास्ते तो कई हैं मगर असली मंजिल तक पहुंचाने वाला एक ही रास्ता है जो भुवाली और गागर होते हुए रामगढ़ पहुंचता है। रामगढ़ आज भी गांव है और कल्पना ही की जा सकती है कि एक छोटे से टीले पर हिंदी की महान कवियत्री महादेवी वर्मा ने जब यहां छोटा सा मकान बनाकर साहित्य रचने के प्रयोजन शुरु किए थे तो यहां कितना सन्नाटा रहा था। मुश्किल से पांच दुकानों के बाजार रामगढ़ में पांच सितारा होटलों को मात देने वाले होटल औऱ रिसार्ट हैं औऱ पत्रकारिता से लेकर राजनीति और अफसरशाही तक के सबसे बड़े नाम यहां आकर बस गये हैं। होने को नैनीताल भी हिल स्टेशन है मगर इससे भी लगभग सात हजार फीट उपर रामगढ़ में हवाएं जब ठंडी होती हैं तो बहुत ठंडी होती हैं। बारिश होती है तो आसपास हिमालय की प्रकृति द्वारा बनाई गयी पूरी चित्रकला भीग जाती है। कोहरा आपके घर में घुस आता है और आप भूल जाते है कि आप उसी लोक में हैं जिसे मृत्यु लोक कहा जाता है।
जब तक रामगढ़ का नाम नहीं सुना था और देश और दुनिया के बहुत सारे हिल स्टेशन देख डाले थे तब तक नहीं पता था कि पहाड़ियों की खामौश पवित्रता क्या होती है? रामगढ़ पहुंचने के ठीक पहले गागर में एक बड़ा मंदिर है और उसके ठीक उपर घुमावदार सड़क के आखिरी छोर तक जहां निगाह जाती है, हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती है। जून के महीने में पके हुए खुमानी ,आलूबुखारा ,स्ट्राबेरी और आड़ू से लदे पेड़ देखते बनते है तो जुलाई के बाद सुर्ख होते सेब । एकांत को तोड़ते हुए बीच बीच में से गुजर जाने वाले स्थानीय लोग जो अब बाहरी लोगों को कौतुक से नहीं अपनी स्वभाविक आत्मीयता से देखते हैं। आप हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के उस हिस्से में है जहां दुर्गम और सुगम के बीच का फासला मिट जाता है।
पुराने लोगों के जो घर हैं वे अब भी देहाती शैली में बने हुए हैं। सड़क पर हैं तो हवेली जैसा आकार भी देने की कोशिश की गई है। अगर पीछे हैं तो गांव के मकान हैं। वैसे भी रामगढ़ अब तक नगरपालिका भी नहीं बनी , सिर्फ ग्राम पंचायत है। घाटियों और चोटियों के बीच शानदार आशियाने भी बने हैं और इस खामोशी को प्यार करने वाले ऐसे लोग भी हैं जो शेष जीवन के लिए रिटायरमेंट से बहुत पहले आकर बस गये हैं।
खास बात ये है कि इस इलाके का महानगर कहा जाने वाला नैनीताल जहां कोई सिनेमाघर तक नहीं है और जहां दर्जनों हिट फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है, रामगढ़ से सिर्फ पौन घंटे की दूरी पर है। होने को रामगढ़ मे अब एक डाकघर भी है, डिस्पेंसरी भी है और लगभग सभी पार्टियों से जुड़े नेताओं के रईस आशियाने भी हैं। दिल्ली के सबसे भव्य इलाके सुजान सिंह पार्क में एक विराट बंगले में रहने वाले खूबसूरत पत्रकार हिरण्यमय कार्लेकर ने भी यहां घर बना लिया है। भारतीय विदेश सेवा के सर्वोच्च अधिकारी रह चुके शशांक शेखर यहां हैं हीं।
यह कल्पना करना ही सम्मोहित और चकित करता है कि अगर रामगढ़ में महादेवी वर्मा और ज्यादा वक्त बिता पाती तो " अतीत के पता नहीं कितने और चलचित्र " हमे पढ़ने को मिलते। पता नहीं सुमित्रानंदन पंत ने यहां की यात्राओं में क्या लिखा मगर उनके साहित्यिक इतिहास में रामगढ़ का वर्णन नहीं है। रवींद्र नाथ ठाकुर के संस्मरणों में रामगढ़ का वर्णन आता है ।
अगर आप नैनीताल गये और रामगढ़ नहीं गये तो कम से कम आपके जीवन का निजी इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा। इस धरती पर ऐसी जगहें कम मिलती हैं जहां गर्मी नहीं, शोर नहीं, धुआं नहीं, भीड़ नहीं, पार्किंग के झमेले नहीं और जहां तक नजर जाए वहां तक घाटियां और झरने ही झरने दिखते हैं। कई बार बाघ के बच्चे रामगढ़ में आ जाते हैं और यहां के लोग उन्हे दुलारकर वापस जंगल में छोड़ देते हैं। रामगढ़ को मसूरी या दार्जलिंग की तरह होटलों का जंगल बनाने की कोशिश चल रही है और इसके पहले इस खूबसूरत दुनिया के साथ यह हादसा हो जाय, आप भी रामगढ़ हो आइए...
अंबरीश कुमार ने अपनी खबरों वाली शैली से निकलकर रामगढ़ की जो तस्वीर खींची है वह एक झरोखा है जिसे पार करके और वहां रहकर ही रामगढ़ को प्रतीत किया जा सकता है। जब आप शांति में अपनी सांस की आवाज भी सून पाते हैं तो आपको इस बात पर आश्चर्य नहीं होता कि रामगढ़ में गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर शांति निकेतन का एक केंद्र खोलना चाहते थे। एक सड़क और दो मोड़ों वाले इस कस्बे में अभी शहर नहीं घुसा है और यही इसकी खासियत है। अम्बरीश कुमार सौभाग्यशाली हैं कि उनकी गिनती रामगढ़ के आधुनिक आदिवासियों में से की जा सकती है और मित्रों की एक पूरी कतार है जो उनके कृतज्ञ है कि उन्हे बसने के लिए एक बेहतर विकल्प बताया। बाकी बची कमी वे ईंट गारे से नहीं शब्दों से पूरी कर रहे हैं। उनके इस राइटर्स काटेज में मै कई बार रुका हूँ और अब आप भी एक बार यहाँ जरुर जाए । हिमालय की बर्फ से भरी चोटियाँ देखनी हो तो सितम्बर के आखिरी हफ्ते से लेकर नवम्बर तक का समय बेहतर होगा । बर्फ पर चहलकदमीकरने के लिए दिसंबर के आखिरी हफ्ते से लेकर फरवरी तक समय है । और फल फूल से घिरे रामगढ को देखने के लिए मई से अगस्त तक का समय ठीक रहेगा ।

(पिछली होली का ही दिन था जब आलोक तोमर हम सबको छोड़ गए .कोई फ्लाईट नहीं मिलने के बाद बुखार में मै बिना आरक्षण के लखनऊ स्टेशन रात करीब बारह बजे पहुंचा तो वाराणसी से आई एक ट्रेन के ऐसी कम्पार्टमेंट में जगह मिल गई थी पर जब तक वहां पहुंचा वह बारूद राख में बदल चुका था .सुप्रिया ने रात बताया उनकी पहली पुण्य तिथि को मध्य प्रदेश शासन कोई आयोजन कर रहा है .हमने उनकी याद में २५ मै को रामगढ में एक कार्यक्रम रखा है और उसी पर यहाँ आलोक तोमर का एक पुराना लेख दिया जा रहा है )

1 comment:

  1. बहुत खूबसूरत तरीके से लेख लिखा गया है.. इतनी खूबसूरत जगह के साथ हल्की सी भी ना इंसाफी ठीक ना होती.. बाकी में कुछ दिन पहले कुल्लू हो कर आया पर उधर ऐसा कुछ नही प्रतीत हुआ शायद जैसा रामगढ़ में है.. इंतज़ार रहेगा कब यहा जाकर इस लेख को हक़ीक़त में जियु..

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