Tuesday, March 20, 2012
अपने मोहल्ले की लड़कियों के बारे में
एक लड़की
सीखने जाती है
सिलाई मशीन से
घर चलाने का तरीका
एक लड़की
दिनभर सुनती है
लता मंगेशकर का गाना
एक लड़की
सुबह भाई को
स्कूल छोड़ती है
और.. पिता को अस्पताल
एक लड़की
छत पर खड़े होकर
पतंग को कटता देख
लगती है रोने
एक लड़की
शिकाकाई से धोए बालों को
मुस्कुराकर सुखाती है आंगन में
एक लड़की
छज्जे पर केवल कंघी-चोटी
करते हुए ही आती है नजर
एक लड़की
हटती ही नहीं है.
आइने के सामने से
एक लड़की
छोटी सी छोटी बात पर
हो जाती है परेशान
और पोंछते रहती है पसीना
एक लड़की
जरा सी गलती पर
गिलहरी की तरह
कुतरती है
दांतो से नाखून
एक लड़की
छोटे बच्चों को
पढ़ाती है ट्यूशन
एक लड़की
हर रोज चढ़ाती है
तुलसी को एक लोटा पानी
एक लड़की
किसी न किसी घर
थाली पर अपने हुनर का घूंघट ओढ़ाकर
ले जाती है मीठे-मीठे पकवान
एक लड़की
हर तीसरे दिन
किसी अन्जान आदमी को
गाना सुनाती है
सितार बजाती है
और बताती है
चिड़ियां उसने बनाई है
तोता भी उसका बनाया हुआ है.
मेरे मोहल्ले में कुछ लड़कियां चश्मा पहनती है
कुछ मेहन्दी लगाते रहती हैं
आप सोच रहे होंगे कि
अच्छा लड़कीबाज आदमी है
जो लड़कियां देखते रहता हैं
क्या करूं साहब..
जिस मोहल्ले में रहता हूं वहां
कुछ इसी तरह की लड़कियां रहती है
इन लड़कियों में से कोई न कोई
लाल रिबन बांधकर
झम से आ खड़ी होती है
मोटर साइकिल के सामने
और थमा जाती है किसी न किसी
ईश्वर का प्रसाद.
मैं अपने मोहल्ले की लड़कियों को
घूरता नहीं... देखता हूं
हर रोज ... देर रात
जब मैं लौटता हूं अखबार के दफ्तर से
तब लड़कियां सीरियल देखकर
सो चुकी होती हैं
मैंने अब तक मोहल्ले की
किसी भी लड़की को
काली कार से उतरते हुए नहीं देखा है.
राजकुमार सोनी
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पढ़ कर बहुत ही रोचक, अच्छा और जीवंत लगा अंबरीश जी।
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