Friday, March 15, 2013

पोस्ट कार्ड ,अंतरदेशीय और लिफाफा

पोस्ट कार्ड ,अंतरदेशीय और लिफाफा अंबरीश कुमार कल गोरखपुर से आई पुरानी फ़ाइल देखने बैठा क्योकि पापा के घर का बिजली का बिल जमा करने के लिए उनका कंजूमर नंबर के साथ मीटर नंबर आदि चाहिए था तो अचानक एक फ़ाइल पर निगाह गई जो पत्रों से भरी थी । बंगलूर के पते के कई पोस्ट कार्ड ,अंतर देशीय और लिफाफे । घर के मम्मी के ढेर सारे पत्र के अलावा अन्नू का पत्र ,ज्यादा से संवाद था ही नहीं । पर मित्रों और संगठन के साथी कार्यकर्ताओं के पत्र देख कर मन भर गया । मित्रों में जो अब प्रतिष्ठित पत्रकार बन चुके है आलोक जोशी ,वासिंद्र मिश्र ,रामेन्द्र जनवार ,राजेंद्र तिवारी ,आशुतोष मिश्र ,मानुषी की संपादक मधु किश्वर ,तब नवभारत टाइम्स की डा तृप्ति ,चौधरी चरण सिंह की नातिन और संगठन की सहयोगी पत्रकार विनीता सोलंकी ,रश्मि आदि शामिल है । कुछ सर्कुलर भी जो मेरे नाम के अलावा राजेंद्र ,शाहीन ,नुपुर जुत्सी और देवेन्द्र उपाध्याय ( जो अब इलाहबाद हाई कोर्ट के जज है )की तरफ से भेजे गए थे । रामेन्द्र के चुनाव में मैंने जो पम्फलेट लिखा वह भी मिला जिसे बाद में अमृत प्रभात ने प्रकाशित किया था । बिहार में बोध गया आन्दोलन के विजय का पोस्ट कार्ड भी मिला ।हत्यारी संस्कृति यानी गर्भ में बच्चियों की हत्या के खिलाफ अपने अभियान का जो सर्कुलर मिला उसपर देवेन्द्र उपाध्याय ,शाहीन ,शिप्रा दीक्षित ,संगीता अग्रवाल ,राजश्री पन्त ,मोनिका बोस ,लीना गुप्ता ,प्रकृति श्रीवास्तव और मीनाक्षी श्रीवास्तव का नाम है ।इनमे आखि के चार नाम जिनके है उनका चेहरा ध्यान नहीं आ रहा बाकि तो साथ काम करने वाली छात्राए थी जिनमे शिप्रा फेस बुक पर है ।हर चिठ्ठी पर पता 'अंबरीश कुमार ,मनीष टावर ,जेसी रोड ,बंगलूर ,560002 ' लिखा था । सबसे रोचक राजेंद्र के पत्र की दो लाइन लगी जो अपने संगठन से जुडी थी देखने वाली है -युवा की कटिंग मसूद भेज रहा है ।वैसे युवा के वे संस्थापक सदस्य जो एलयूटिसी के नहीं है बिलकुल निष्क्रिय है ।बाद में पता चला है कि जब एक बार युवा की मीटिंग टैगोर के सामने हुई थी तब सुमिता और संदीप कैंटीन में चाय पी रहे थे ।एनी लोगों ने भी कोई उत्साह नहीं दिखाया ।अब अगर युवा को कंटीन्यू रखना है तो सारी ताकत एलयूटीसी को ही देनी होगी । क्रन्तिकारी अभिवादन के साथ आपका ,राजेंद्र तिवारी ,55 तिलक हाल लखनऊ विश्विद्यालय ।यह एक बानगी है उस दौर के लखनऊ की जब मुझे सारी गतिविधियों को छोड़ बंगलूर में एक अख़बार संभालना पड़ा । शायद जितने पत्र उस दौर में अपने पास आए और अपन ने लिखे उतने फिर कभी नहीं लिखे गए ।पात्रता भी काफी संख्या में है ,मन करता है उसका संकलन प्रकाशित करा दूँ पर इसपर राय मशविरा भी होगा । बंगलूर के उन दिनों के बारे में अगली बार

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