Thursday, April 18, 2013

ब्राह्मण क्या फिर शंख बजाएगा

ब्राह्मण क्या फिर शंख बजाएगा सविता वर्मा लखनऊ ,१८ अप्रैल । बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आज फिर ब्राह्मण बिरादरी को याद किया और उन्हें लोकसभा चुनाव में करीब एक चौथाई टिकट भी देने जा रही है । पर इस बार क्या सर्वजन और बहुजन फिर साथ खड़ा हो पाएगा यह बड़ा सवाल है । मायावती ने आज यहां फिर सवर्णों को भी आरक्षण देने की वकालत की है। वे आज यहां ब्राह्मण सम्मेलन में बोल रही थी ।पर ब्राह्मण उनके साथ आएगा या नहीं यह बसपा के बड़े नेताओं को भी साफ़ नहीं है ।पिछले विधान सभा चुनाव में बसपा ने अस्सी ब्राह्मणों को टिकट दिया था जिसमे सिर्फ दस जीत पाए यानी सत्तर हार गए ।यह ब्राह्मण या सव्जन के साथ बहुजन के संबंधों को उजागर करने वाला तथ्य है । वर्ष २००७ के विधान सभा चुनाव में ब्राह्मणों ने बसपा का साथ दिया तो सूबे में सरकार बदल गई । तब नारा था ' ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी आगे चलता जाएगा ।' यह वह दौर था जब समाजवादी पार्टी के बाहुबलियों के आतंक के खिलाफ मध्य वर्ग खासकर अगडी जातियों ने सपा के खिलाफ एकजुट होकर वोट दिया था क्योकि मायावती का नारा था ' चढ गुंडों की छाती पर मुहर लागों हाथी पर ।' इस नारे ने जो माहौल बनाया उससे मायावती अपने बूते बहुमत से सत्ता में आई ।पर सत्ता में आने के बाद उनका रास्ता भी अराजकता कि तरफ जाने लगा । जिन ब्राह्मणों ने बसपा को वोट दिया उसका प्रतिनिधित्व ऐसे लोगों के हाथों में चला गया जो नीचे से राजनीति में नहीं आए बल्कि ऊपर से थोपे गए और राजनैतिक संस्कृति से कटे हुए भी थे । मशहूर वकील सतीश मिश्र भी इसका ही उदाहरण माने जाएंगे जिन्हें मीडिया और मायावती दोनों ने पार्टी का ब्राह्मण चेहरा बना दिया । जबकि ब्राह्मणों ने किसी का चेहरा देख कर नहीं बल्कि मुलायम सरकार को हटाने की प्रतिक्रिया में मायावती को वोट दिया था । यह ग़लतफ़हमी बीते विधान सभा चुनाव में साफ़ हो गई जब बसपा के एक से एक दिग्गज ब्राह्मण उम्मीदवार हार गए। नकुल दुबे,राकेशधर त्रिपाठी ,रंगनाथ मिश्र से लेकर अनंत कुमार मिश्र की पत्नी तक इसमे शामिल है । अस्सी टिकट देने के बावजूद जीत कर आने वालों कि संख्या इसकी चौथाई भी नहीं पहुँच पाई । यह सर्वजन की वह हकीकत है जिसे समझना होगा । इसके बाद तो प्रमोशन में आरक्षण की समर्थक बसपा के खिलाफ अगडी जातियां खड़ी हो चुकी है तो नतीजा समझा जा सकता है ।पर असली वजह जनाधार विहीन नेताओं को आगे बढ़ाना रहा जिन्होंने अपने हित परिवार के हित के आगे कुछ सोचा नहीं ।इससे आम ब्राह्मण मतदाता नाराज हुआ ।दूसरे जिस कानून व्यवस्था के नाम पर सरकार सत्ता में आई वह कानून व्यवस्था बाद में और बिगड गई । एक इंजीनियर वसूली के चक्कर मे पीट पीट कर मारा गया तो दिन दहाड़े सीएमओ कि हत्या कर दी गई ।शीलू से सोनम तक के नाम उसी दौर में कानून व्यवस्था पर ही टिपण्णी कर रहे थे ।ऐसे में सरकार के खिलाफ उन्ही ब्राह्मणों ने फिर वित् दिया जो उन्हें सत्ता में लाए थे । यह वोट किसी सभा सम्मलेन से न तो जुटा था और न आगे जुटेगा ।इसके लिए बसपा को फिर से नई रणनीति पर विचार करना होगा तभी उनके राज में अपमानित सर्वजन दोबारा वापस आने पर सोच सकता है ।जनादेश

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