Friday, May 31, 2013

बरसात में भीगा पहाड

अंबरीश कुमार रामगढ़ में तीन चार दिन से जमकर बारिश हो रही है । सामने का दृश्य किसी चित्रकला सा लगता है ।देवदार के पेड़ों के पीछे खडी पहाड़ियां धुंध और बदल से घिरी हुई है और काफी कुछ नीलगिरी की पहाड़ियों जैसी दिखती है ।हालाँकि इनका नीलापन ज्यादा स्याह है जबकि ऊटी में पहाड गहरे नीले नजर आते है शायह इसीलिए वे नीलगिरी की पहाड़ियां कहलाती है ।बरसात में पहाड अद्भुत नजर आता है । रात में तीन की छत पर ओले गिरने की वजह से नीद खुली तो देखा अच्छी खासी बरसात हो रही है और तेज हवा से प्लम का पेड़ लहर रहा है । कल तो जो ओले पड़े उससे सेब के पेड़ के नीचे लगी स्ट्राबेरी के पौधे ही दब गए ।क्यारियों में बर्फ ही बर्फ ।वृन्दावन आर्चिड की तरफ जाने वाले रास्ते में सेब के बगीचे के बाद एक पेड़ खुबानी का पड़ता है जो सबसे पहले पक जाता है। कल बस स्टेशन से जब अखबार लेकर लौट रहा था तो देखा स्कूली लड़कियां एक पुराने घर की तीन की छत पर चढ कर खुबानी तोड़ रही है ।मन हुआ मै भी कुछ खुबानी मांग लू ।अपने यहां खुबानी के तीन पेड़ थे पर एक एक कर सभी सूख गए अब प्लम है ,आडू ,बादाम के साथ सेब की तीन वेरायटी के पेड़ बचे हुए है पर खुबानी का कोई पेड़ नहीं है और पहाड़ी फलों में सेब नाशपाती के बाद यही फल अपने को भाता है ।आडू तो अधपके कलमी आम जैसा लगता है ।वैसे भी सुर्ख होते आडू अब बंदरों के हवाले है जो सुबह अपने घर के रास्ते से निकालते समय इनका स्वाद लेते है तो शाम को लौटते हुए भी । अब शाम को एक बार दूर तक घूमना होता है तो दिन में एक बार बाजार जाना भी । बाजार भी क्या भट्ट ,जोशी की चार पांच दुकाने और दो तीन ढाबे । शुरुआत बकरे और मुर्गे की दुकान से होती है जो भवाली से आने वाले रास्ते में मोड पर है तो अंत पीडब्लूडी के गेस्ट हाउस के पास मछली वाले के पास हो जाता है । अपना टाइगर बहादुर के जाने के बाद यही पुलिस चौकी में रहने लगा है । शाम को मिलता है बिस्कुट खाता है और दुम हिलाते हुए महादेवी सृजन पीठ के आगे शाह जी के बगीचे तक छोड़ने भी आता है पर फिर लौट जाता है । यह आमतौर पर रोज की दिनचर्या है । ब्राडबैंड लग जाने से आकाश और अंबर का ज्यादा समय लैपटाप पर जाता है ,आकाश तो कैमरा लेकर निकल भी आते है अंबर को कोई दिलचस्पी नहीं है पैदल घूमने में । टहलने जाते है तो कई मित्रों के घर और बगीचे भी पड़ते है । इनमे आलोक तोमर भी शामिल है जिनकी इच्छा थी यहां लिखने पढ़ने की पर पूरी नहीं हो पाई । राजेंद्र तिवारी से लेकर सिद्धार्थ कलहंस के भी यहां छोटे छोटे बगीचे है और वे भी आने वाले है । हिमालय पर होने वाली वर्कशाप में । सोनी और हिमांशु भी आ रहे है ।राजेंद्र चौधरी से बात हुई तो बताया सात को पहुँच जाएंगे । कल अल्पना वाजपेयी का फोन आया ,अपने संगठन की तेज तर्रार नेता रही है और बाद में लखनऊ विश्विद्यालय छात्रसंघ की पहली महिला उपाध्यक्ष भी बनी । बहरहाल बरसात में पहाड ज्यादा खूबसूरत नजर आ रहा है और घंटों खिडकी के सामने या बालकनी में बैठकर पढ़ने का मौका भी मिल रहा है । घाट घाट का पानी पुस्तक की भूमिका लिखनी है पर राकेश मंजुल ने एक दिन रुकने को कहा है ।

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