Friday, April 19, 2013

कहवाघर से काफी हाउस का सफर

लोहिया ,फिरोज गांधी ,जनेश्वर और चंद्रशेखर से लेकर मजाज का भी अड्डा रहा अंबरीश कुमार लखनऊ ,19 अप्रैल ।करीब साढ़े सात दशक से लखनऊ का काफी हाउस उत्तर प्रदेश के राजनैतिक घटनाक्रम का गवाह रहा है । अब इसके पचहत्तर साल पूरे होने पर एक आयोजन की तैयारी हो रही है जिसमे इसके इतिहास को याद करने के साथ काफी हाउस के पुराने स्वरुप को बहाल करने का प्रयास किया जाएगा ।इसने अंग्रेजों का दौर देखा तो आजादी का आंदोलन के दौरान भी यह बहस का अड्डा रहा और बाद में राजनीतिकों ,साहित्यकारों ,कलाकारों और छात्र नेताओं का भी अड्डा बना । यहां पर बैठने वालों में आचार्य नरेंद्र देव ,राम मनोहर लोहिया ,हेमवती नंदन बहुगुणा ,चंद्रशेखर ,एनडी तिवारी ,वीर बहादुर सिंह ,जनेश्वर मिश्र ,फिरोज गांधी जैसे राजनितिक थे तो यशपाल ,भगवती चरण वर्मा और अमृतलाल नागर जैसे साहित्यकार थे मजाज जैसे शायर के अलावा नौशाद ,कैफी आजमी से लेकर चित्रकार रणवीर सिंह बिष्ट भी यहां बैठते रहे ।भगवती चरण वर्मा टेम्पो से काफी हाउस आया करते थे ।उस दौर के दिग्गज पत्रकारों में चेलापति राव ,के रामाराव ,सीएन चितरंजन ,एसएन घोष ,चंद्रोदय दीक्षित ,कपिल वर्मा आदि शामिल थे । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लखनऊ का यह काफी हाउस कितना महत्व रखता रहा है । सिर्फ दो मुख्यमंत्री इस काफी हाउस में नहीं आए एक चौधरी चरण सिंह तो दूसरे सीबी गुप्ता ।सीबी गुप्ता को लगता था काफी हाउस में उनके खिलाफ साजिश रची जाती है तो चौधरी चरण सिंह कभी बाजार ही नहीं जाते थे इसलिए वे काफी हाउस के बाहर से ही निकल जाते थे कभी भीतर नहीं गए । पर काफी हाउस ने बदलता हुआ लखनऊ देखा है और दिग्गज नेताओं को यहां लोग बहस करते देख चुके है ।लखनऊ में बैठकबाजी के प्राचीन अड्डों में कहवा घर रहा है जो यहां ईरान से आने वालों का तोहफा माना जाता ।इन कहवा घर का उल्लेख उर्दू साहित्य में भी मिलता है जहां पहले दास्तानगो किस्से सुनाया करते थे ।बाद में यहाँ काफी हाउस खुला । अंग्रेजो के समय में चालीस के दशक में हजरतगंज में आज जहां गांधी आश्रम है वही पर पहला इन्डियन काफी हाउस खुला था ।इसे काफी बोर्ड ने खोला था पर १९५० आते आते काफी बोर्ड ने देश के ज्यादातर काफी हाउस बंद कर दिए ।जिसके बाद कर्मचारियों ने इंडियन काफी हाउस वर्कर्स कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर देशभर में फिर से काफी हाउस की कई शाखाएं खोल दी जिसमे पांडिचेरी ,त्रिशुर ,लखनऊ ,मुंबई ,दिल्ली ,कोलकोता ,पुणे और लखनऊ भी शामिल था । तब लखनऊ में यह जिस जहांगीराबाद बिल्डिंग में शुरू हुआ वही आज भी है । करीब तीन दशक से इस काफी हाउस में नियमित बैठने वाले प्रदीप कपूर ने कहा -यह काफी हाउस उत्तर प्रदेश की साढ़े सात दशक कि राजनीति का गवाह रहा है ।जहां लोहिया,चंदशेखर से लेकर फिरोज गांधी तक बहस करते थे तो मजाज जैसे शायर का भी एक ज़माने में यह अड्डा रहा ।अस्सी के दशक में छात्र नेताओं का भी अड्डा बना । बीच में यह काफी बुरे दौर से भी गुजरा पर अब यह फिर आबाद हो रहा है ।काफी हाउस को हम काफी हाउस आंदोलन के रूप में देखते है।इसे बनाए और बचाए रखने के लिए अगले साल काफी हाउस आंदोलन के पचहतर साल पर एक यादगार कार्यक्रम करने की योजना है ताकि नई पीढ़ी इसके इतिहास को समझ सके । गौरतलब है कि काफी हाउस बीच में बंद हो गया था और इसकी बिजली भी काट दी गई थी । अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने कहा -इसकी संचालिका अरुणा सिंह ने जब यह जानकारी दी तो हमने जरुरी कदम उठाया और बिजली जोड़ी गई । यह काफी हाउस ऐतिहासिक है जहां आचार्य नरेंद्र देव ,लोहिया और चंद्रशेखर तक बैठते थे ।मै खुद भी समय निकाल कर वहाँ बैठने वाला हूँ ।इसे बचाने की और पुरानी संस्कृति को बहाल करने के लिए जो भी मदद होगी मै भी करूँगा । गौरतलब है कि आज भी काफी हाउस की दो तीन मेजों पर राजनीतिक और साहित्यकार व पत्रकार बैठे मिल जाएंगे । पर बाकी पर नौजवान लड़के लड़कियां जो कभी पहले के दौर में नहीं दिखते थे वे नजर आते है ।पर आंदोलन के लोग भी यहां आते है और संचालिका अरुणा सिंह खुद अन्ना हजारे के आंदोलन से भी जुडी हुई है ।पर भुनी हुई उस काफी का स्वाद नहीं मिलता क्योकि काफी के बीज पीसने वाली मशीन नहीं है ।जनसत्ता

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