Friday, August 2, 2013

दक्षिण के गाँधीवादी संत शोभाकांत दास

अंबरीश कुमार चेन्नई ,३ अगस्त । शुक्रवार की शाम चेन्नई के गोपालपुरम में जयप्रकाश नारायण के साथी शोभाकांत दास जी के यहाँ जब पहुंचा तो वे चरखा से सूत / धागा तैयार कर रहे थे । करीब तीस साल से अपना शोभाकांत जी से संबंध है जिसकी शुरुआत अस्सी के दशक में तबके मद्रास से एक अखबार निकालने को लेकर हुई थी और तब मै लखनऊ से पहली बार वाहिनी की साथी किरण और विजय के साथ मद्रास सेंट्रल के ठीक बगल में ५९ गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट पहुंचा था और बगल में ठहरने का इंतजाम था ।बहुत ही अलग अनुभव था । उनका जड़ी बूटियों का बड़ा कारोबार स्थापित हो चूका था ।शोभाकांत जी के पुत्र तब तमिलनाडु छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के संयोजक भी थे और उनसे मित्रता हो गई क्योकि वे अपनी उम्र के आसपास के ही थे ।पत्रिका की योजना बनने से पहले ही विजय बिहार चले गए । हफ्ते भर बाद शोभाकांत जी का निर्देश हुआ कि मै पत्रिका शुरू करने से पहले तमिलनाडु को समझू ।उन्होंने अपने दफ्तर को कहा कि पांडिचेरी में अरविंदो आश्रम के गेस्ट हाउस में हम लोगों के रहने और आने जाने का इंतजाम कर दिया जाए और खर्च के लिए नकद भी दे दिया जाए। उस दौर में बिहार से रोजाना बहुत से लोग उनके यहाँ आते थे और सबका खाना भी साथ नीचे बैठकर ही होता था । शोभाकांत जी की पत्नी मैथिल बोलती थी और उनका आतिथ्य कभी भूल नहीं सकता ।अमूमन इडली वडा साम्भर आदि का नाश्ता तो पास के होटल से आ जाता था पर दोपहर और रात का खाना वे खुद बनाकर खिलाक्ती थी चाहे कितने ही लोग न हो ।खाना उत्तर भारतीय होता था बिहार का उसपर प्रभाव भी दिखता था ।तब बिहार के सभी वरिष्ठ नेता जो मद्रास आते थे शोभाकांत जी के ही मेहमान होते थे ।एम् करूणानिधि समेत तमिलनाडु के शीर्ष राजनीतिक भी उनके मित्र ही थे । जयप्रकाश नारायण को शोभाकांत जी ने जो बादामी रंग की फियट दी थी बाद में उससे हमने भी कई यात्रा की ।पास में ही उनके मित्र और मीडिया के सबसे बड़े और कद्दावर व्यक्तित्व श्री रामनाथ गोयनका का घर था । कल बाद में दिल्ली से साथ आए वर्ल्ड सोशल फोरम के विजय प्रताप ,भुवन पाठक और मुदगल जी से शोभाकांत जी की रात के भोजन पर मुलाक़ात हुई तो उन्होंने विजयप्रताप से उलाहना देने के अंदाज में कहा -अंबरीश जी को तो मद्रास से अखबार निकालने के लिए बुलाया था पर जब इनका मन उत्तर भारत छोड़ने का नहीं हुआ तो रामनाथ गोयनका के पास भेज दिया ।तबसे आजतक वह अखबार नही निकल पाया ।खैर विजयप्रताप से गाँधी , जेपी ,सुभाष चंद्र बोस से लेकर धर्मपाल और राजीव गाँधी तक के कई संस्मरण उन्होंने सुनाए । तेरह साल की उम्र में वे आजादी की लड़ाई से जुड गए थे और जवान होते होते आंदोलन और जेल के बहुत से अनुभव हो चुके थे । हजारीबाग जेल में जेपी को क्रांतिकारियों का पत्र पहुंचाते और उनका सन्देश बाहर लेकर आते ।बाद में सरगुजा जेल में खुद रहना पड़ा जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी के नाम उन्होंने गुडवंचारी में आश्रम बनवाया जिसके ट्रस्ट में तमिलनाडु के सभी महत्वपूर्ण लोग शामिल थे और आसपास के तीस गांवों में इसका काम फैला हुआ था । बिहार से बहुत से लोग मद्रास के वेलूर अस्पताल में इलाज करने आते तो वे शोभाकांत जी के घर या बादे में राजेंद्र भवन में रुकते जो उन्होंने मद्रास शहर के बीच बनवाया हुआ है ।कई साल पहले वाहिनी के सम्मलेन में ही शोभाकांत जी ने जनादेश वेबसाईट की शुरुआत की थी और मुलाक़ात होने पर उसकी भी चर्चा की । अनुपम मिश्र की पुस्तक आज भी खरे है तालाब देख कर बोले -तमिल में इसे छपवा देता हूँ अगर वे इजाजत दे दे ।जयप्रकाश नारायण की कई पुतकों को वे तमिल भाषा में प्रकाशित करवा चुके है ।बाद में तय हुआ पर्यावरण और परम्परागत चिकत्सा पद्धति पर तमिलनाडु में पहल की जाए और इसकी पहली बैठक बुलाने की जिम्मेदारी प्रदीप कुमार ने स्वीकार कर ली साथ ही तमिल में लोगों से संवाद की भी ।सुबह जल्दी उठा तो यह सब लिखने बैठ गया जो अभी जारी रहेगा क्योकि समुंद्र तट पर घूमने के लिए ही जल्दी उठा हूँ ।

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