Tuesday, June 11, 2013

वे कांग्रेस से भी लड़े थे


वे कांग्रेस से भी लड़े थे अंबरीश कुमार विद्याचरण शुक्ल से अपनी पहली मुलाकात सन २००० में रायपुर में उनके घर पर ही हुई जब मै इंडियन एक्सप्रेस की जिम्मेदारी निभा रहा था और जनसत्ता लांच नही किया था ।एक प्रेस कांफ्रेंस में मुझे बुलाया गया जहां हर पत्रकार ने वीसी शुक्ल के पैर छूकर आशीर्वाद लिए। अपवाद मै था और कुछ हैरान भी क्योकि वीसी शुक्ल के बारे में मै सिर्फ उनके आपातकाल के व्यवहार के किस्से कहानियों से ही जानता था ।इसलिए जहां सभी पत्रकार उन्हें विद्या भैया कह कर संबोधित कर रहे थे मैंने उन्हें श्री शुक्ल कहकर संबोधित किया ।छतीसगढ में वह अजित जोगी का दौर था जो दिल्ली में मीडिया से काफी करीब रहे और अपना भी उसी वजह से उनसे परिचय भी रहा । छतीसगढ आया तो इंडियन एक्सप्रेस में सबसे पहले लिखा भी सारे दावों के बावजूद मुख्यमंत्री अजित जोगी ही बनेंगे । वे बने और दिल्ली से पहुंचे पत्रकारों को अक्सर न्योता भी देते और खबर पर फोन कर बात भी करते ।यह शुरू का दौर था और लगता था कि अजित जोगी दूर तक जाएंगे।सुनील कुमार से लेकर शैलेश पाठक और चितरंजन खेतान जैसे जोशीले आइएएस अफसर भी इस धारणा को मजबूत करते थे ।पर बाद में अफसरों के चलते अजित जोगी पहले मीडिया से दूर हुए फिर आमजन से और आंदोलनों का दौर शुरू हुआ ।भाजपा के एक प्रदर्शन के दौरान शीर्ष नेताओं पर लाठीचार्ज हुआ और कई के हाथ पैर टूटे । भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार साय पैर टूटने की वजह से महीनों बिस्तर पर रहे । उसी दौरान वरिष्ठ पत्रकार राजनारायण मिश्र की गिरफ़्तारी के मुद्दे पर भी आंदोलन हुआ तो बाद में सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाने पर जनसत्ता के दफ्तर पर भी हमला हुआ और अपना भी टकराव शुरू हुआ ।जनसत्ता की ख़बरों को देख वीसी शुक्ल ने मुझे घर बुलाया और पूछा ,इस तरह की खबरे कब तक लिखी जाएँगी ।अपना जवाब था ,जब तक यहाँ रहूँगा ।फिर लंबी बातचीत भी हुई । वे किसानो के सवाल पर आंदोलन शुरू कर चुके थे और अब कांग्रेस से लड़ रहे थे ।उस कांग्रेस से जिसके वे सबसे बड़े खलनायक माने गए । वे पंडित रविशंकर शुक्ल के वंशज थे जिनका अविभाजित मध्य प्रदेश में कितना असर आज भी है यह छतीसगढ के बाहर का कोई व्यक्ति नही जान सकता । आज भी मध्य प्रदेश या छतीसगढ के गांव गांव में किसी राजनितिक का नाम लोग जानते है तो वे रविशंकर शुक्ल ही है । बहरहाल वीसी शुक्ल ने उस दौर में खेत खलिहानो में उतर कर आंदोलन किया और शायद धमतरी के संवाददाता की खबर थी जिसपर मैंने तब हेडिंग लगाई थी ' नंगे पैर खेतों में उतरे वीसी ।' वे कांग्रेस से लड़ रहे थे और उस उम्र में जिस अंदाज से लड़ रहे थे वह देखने वाला था ।कांग्रेस अगर छतीसगढ में हारी तो उसकी बड़ी वजह वीसी का वह आंदोलन भी था जिसने कांग्रेस के वोट को बाँट दिया ।वीसी शुक्ल ने कांग्रेस के समान्तर एक पार्टी कड़ी कर दी थी जो खुद भले न जीत पाई पर कांग्रेस को जरुर निपटा दिया जिस कांग्रेस का नेतृत्व दलित आदिवासियों में मशहूर जोगी जैसे नेता कर रहे थे ।सत्ता से जोगी क्या हटे तबसे वे विपक्ष में ही है । इसलिए वीसी शुक्ल की पहचान सिर्फ आपातकाल से ही नही होती । वे एक लड़ाकू राजनितिक रहे और अंत तक लड़े । यूं ही नही समूचा छतीसगढ उन्हें विद्या भइया कहता था ।

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