Saturday, June 29, 2013

सुमेर सिंह के किले में

किले के डाक बंगले में एक रात छह दिन पहले सुमेर सिंह के किले में करीब दोपहर पहुंचे थे और दूसरे दिन दस बजे तक रहे ।तब लिख नही पाया । कल से लगातार हो रही बारिश के बीच आज समय मिला तो लिखने बैठा हूँ । प्राचीन महल जो होटल में तब्दील हो चुके है उनमे कई बार रुकना हुआ पर वह अन्तः होटल की तरह ही महसूस हुआ । इस किले में डाक बंगले जैसा अनुभव हुआ जो कभी बैतूल के डाक बंगले में हुआ था या फिर छतीसगढ के उद्यंती वन्य जीव अभ्यारण्य के तौरंगा के डाक बंगले में हुआ था जो अटल बिहारी वाजपेयी का पसंदीदा डाक बंगला रहा है । यह किला इटावा में यमुना के किनारे एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है जिसका रास्ता पहाड़ों की तरह घुमावदार है और चढाई भी ठीकठाक है । किले को कुछ समय पहले ही एक आलीशान अतिथिगृह में बदला गया है और यह जंगलात विभाग के अधीन है पर नियंत्रण कलेक्टर करता है । जिस दिन इटावा पहुंचा उस दिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी वही थे पर उनके कार्यक्रम में जाना भी नहीं था इसलिए पत्रकार दिनेश शाक्य जो पर्यावरण पर जमकर लिखते है वे सीधे इस किले में ले गए । उत्तर प्रदेश में अल जंगल और जमीन के सवाल पर जिलों में कुछ ही पत्रकार लिखते है इनमे आदि शामिल है । यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योकि मीडिया का एक हिस्सा कलेक्टर के इर्द गिर्द की ख़बरों पर ज्यादा फोकस करता है। खैर यह सब संपादक पर ज्यादा निर्भर करता है कि वह अपने संवाददाता से क्या लिखवाना चाहता है और उसकी खबर को कैसा ट्रीटमेंट देता है । बहरहाल मुद्दा किला है इसलिए वही लौटता हूँ । किले का भव्य और भारी भरकम दरवाजा नया बना है पर पुरानी डिजाइन है जिसके दोनों तरफ द्वारपाल की प्रतिमा लगी है । गाडी जाने के लिए पूरा दरवाजा खुला अंदर खूबसूरत सा बगीचा नजर आया जो ठीक पोर्टिको के सामने था । भीतर से भी नजारा एक भव्य किले जैसा ही था । सीढियाँ चढ कर भीतर गए तो यह किसी चमचमाते होटल जैसा नजर आया पर सन्नाटा छाया था । कुछ दूर चलने के बाद बुर्ज पर जाती सीधी से ऊपर पहुंचे तो लंबा कारीडोर नजर आया और सामने ही चार नंबर का सूट था जिसमे रुकना था । भीतर जाते ही सामने बैठक नजर आई जिसमे आलीशान सोफा और मेज नाश्ते के साथ सजी हुई थी । इसी से एक गैलरी भीतर जाती थी जिसमे बड़ा सा बेड रूम , ड्रेसिंग रूम और फिर बाथरूम आदि था । बेडरूम से लगी बालकनी से उफनती हुई यमुना दिख रही थी । सविता आराम करने गई तो हम दिनेश और उनके सहयोगियों के साथ इस किले के बारे में बात करने लगे । जंगलात विभाग के एक अफसर भी आ गए जो चंबल नदी के बारे में बताने लगे । कुछ देर बाद सभी चले गए और तय हुआ कि चार बजे पचनदा की तरफ चला जाएगा । कुछ देर बाद ही बिजली चली गई तो मैंने दिनेश से कहा कि अब कार्यक्रम में फेरबदल करते हुए जल्दी चलते है तो उन्होंने शहर के एक होटल में बुला लिया ताकि खबर वहां से भेज कर चला जाए । गरमी कुछ ज्यादा ही थी इसलिए होटल में लिखने का काम कर लिया और फिर पचनदा की और चले । चंबल के किनारे पहुंचे तो पत्रकार राधे कृष्ण और फोटोग्राफर दीक्षित जी भी साथ था । बीहड़ से गुजरती चंबल नदी की खूबसूरती देखते बनती थी । जंगलात विभाग के वाच टावर से नजारा देखा और फोटो भी खींची । आगे बढे तो करीब घंटे भर बाद एक छोटे कसबे में आगे की गाडी रुकी और दिनेश उतर कर आए और कहा - भाई साहब यहां साबुत मुंग के मुंगोड़े बहुत अच्छे बनते है । हमने कहा चाय के साथ ख्य जा सकता है । पता चला आगरा और इटावा से लोग इसे खाने आते है । दिनभर में पचास किलों मूंग के पकौड़े बनाकर वह चला जाता है । बहुत ही स्वादिष्ट पकौड़े जिसमे साबुत लहसुन और हींग का स्वाद भारी था । बहरहाल पचनदा तक गए और लौटे तो रात हो चुकी थी और हम कमरे में पहुंचे तो बाकी लोग रिसेप्शन । पूछा तो बताया कि खाना बनवा रहे है । नहाने के बाद हम यमुना को देखने सामने की बालकनी में आए फिर गरमी की वजह से ड्राइंग रूम में ही बैठ गए । भीतर का एसी ठीक से काम नहीं कर रहा था इसलिए कुछ देर बाद नीचे के कमरे में शिफ्ट हो गए । कुछ देर बाद खाना हो गया तो सभी लोग चले गए । यह बताया कि सुमेर सिंह का दूसरा महल जो कुछ दूरी पर है वह उनके सामंती शौक का गवाह भी रहा है और वे नृत्य के भी बहुत शौकीन रहे थे । और जैसा कि हर महल और किले की कहानियां प्रचलित होती है इनके बारे में भी थी । कहा जाता है गांव वालों को आज भी महल के पास घुंघरू की आवाज सुने देती है । पर किले में सन्नाटा था गैलरी के अंतिम छोर तक पहुँचने में भी आठ दस मिनट लग गया ।बाहर अंधेरी रात थी और मुख्य द्वार के पास बेला के फूलों की खुशबू फैली हुई थी ।पता चला किले में सिर्फ एक कुक और दो चौकीदार रहते है । वे कही दिख नहीं रहे थे ।गरमी और उमस के बीच फिर लंबी गैलरी पार कर हम कमरे में पहुंचे तो ग्यारह बज चुके थे ।कही कोई आवाज नहीं ।बाकी सारे कमरे बंद थे ।अजीब सा रहस्मय माहौल था । बालकनी से बाहर भी बहुत दूर रौशनी दिखी आसपास न कोई आबादी न कोई आवाज । ठीक उसी तरह जैसे तौरंगा के डाक बंगले में पहले अंतिम पुलिस चौकी के प्रभारी ने वहाँ रात गुजरने पर चेतावनी दी फिर डाक बंगले के चौकीदार ने समझाया कि रात में दरवाजा मत खोलिएगा यहाँ बाघ से लेकर भालू तक आते है । पर यहाँ बाघ भालू तो कुछ नही था पर फिर भी अजीब सा डरावना माहौल जरुर था ।यह पता चलने के बाद कि इस किले के बहुत प्राचीन कुएं में किसी को मार कर डाला जा चूका है,डर जरुर लग रहा था । किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज पर नींद खुली तो देखा रसोइया चाय और बिस्कुट के साथ खड़ा है । आसमान में बदल छाए हुए थे और हम बालकनी में यमुना का घुमावदार मोड देखते हुए चाय का स्वाद ले रहे थे । अंबरीश कुमार

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